तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
13 अप्रैल 2010
दलित दिवस की पूर्व दोपहर पर दलितों की पिटाई
राजस्थान की राजधानी जयपुर में दलित छात्रों द्वारा दलितों को विधि अनुसार नहीं दी गयी छात्र व्रत्ति की मांग की जा रही थी सरकार नें उनसे इस मामले में बात कर दोषी लोगों द्वारा छात्र व्रत्ति रोकने पर उनके खिलाफ कोई कारगर कार्यवाही करने के बदले बेकाबू हुए आन्दोलन कारियों को सबक सिखाने के लियें उनको लाठियों से धून कर रख दिया कुछ छात्र घायल हें तो कुछ छात्र पुलिस हिरासत में हें अब आप ही देखिये अम्बेडकर जयंती के एक दिन पहले दलित दिवस के पूर्व दलितों का एसा हाल क्या राज्य सरकार को शोभा देता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
जी हाँ में आम इंसान यानी ज़िंदा लाश हूँ
जी हाँ आप मानें या ना मानें में एक आम हिन्दुस्तानी नागरिक हूँ जो एक ज्क्सिंदा लाश की तरह से देश पर बोझ बनकर जी रहा हूँ मेरी तरह में अकेला ही नहीं बलके सेकड़ों हजार लाखों करोड़ों कोग मेरी तरह इस देश पर बोझ बने हुए हें में सुबह आम आदमी की तरह उठता हूँ खाता पीता हूँ अपनने काम करता हूँ देश के लियें ना तो कुछ करता हूँ ना ही कुछ करने की सोचता हूँ में पडोस में चोरी हो जाए उस पर हमला हो जाए तो पुलिस में गवाही देने से भी कतराता हूँ रास्ते में चलते वक्त अगर कोई दुर्घटना हो जाए तो में उसे देखता तो हूँ सरकार को कोसता भी हूँ दो बातें नेतागिरी की भी करता हूँ लेकिन उस तडपते घायल को अस्पताल नहीं पहुंचता हूँ सीधा अपने दफ्तर चला जाता हूँ वहां थोडा बहुत बतियाता हूँ हाजरी बजाता हूँ मेरे काम से मुंह मोड़ क्र आम जनता को चक्कर लगवाता हूँ घर आते वक्त मेरे सामने कोई गुंडा लडकी को छेड़ता हे तो में इसकी खबर ना तो पुलिस को देता हूँ और ना ही उस लडकी बचाता हूँ में सिर्फ मेरे लियें और मेरे बच्चों के लियें जीता हूँ मेरी सोच हे के पुलिस अदालत और गुडों के चक्कर से दूर रहना चाहिए दफ्तर में सबसे ज्यादा गोत लगाता हूँ और नेतागिरी तथा देश भक्ति इमानदारी के उपदेशों में सबसे आगे रहता हूँ में इन सब के बाद भी गर्व से कहता हूँ के मेरा भारत महान हे अब आप ही बताओ में इस देश पर बोझ एक नागरिक ज़िंदा लाश हूँ या नहीं वेसे तो शास्त्रों में मेरी सजा सजा ऐ मोंत हे लेकिन में देश पर बोझ बन कर ज़िंदा लाश की तरह से जी रहा हूँ माफ़ करना भाई में ही नहीं आप और आपके अडोस पडोस के लोग भी मेरे अड़ोसी पड़ोसियों की तरह मेरी ही तरह जिंदगी जी रहे हें सोचो जो अपने देश की नहीं कुडकी सोचता हे कर्तव्य नहीं निभाता केवल अधिकारों की बात करता हे वोह जानवर नहींतो और क्या हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
लो क सं घ र्ष !: या रब, न वह समझें हैं, न समझेंगे मेरी बात
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