आपका-अख्तर खान

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26 मई 2010

मेरी पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता का सच

दोस्तों में बीमार हूँ मानसिक रोगी हूँ आप सभी जानते हें इसमेक हो शराब हो सिगरेट हो तम्बाकू हो चाहे जो भी नशीली चीज़ हो वोह इंसान से बहुत आसानी से नहीं छुट पाती हे इसी तरह से पत्रकारिता और लेखन का नशा भी इन में से एक हे दोस्तों आप माने या ना माने लेकिन में जब छोटा था तो मेरे मन में सिर्फ और सिर्फ पत्रकार बनने का सपना था मेने आपातकाल के दोरान जब पत्रकारिता में प्रवेश किया तो में नोसिखिया कम उम्र का लिखने वाला पत्रकार था कागज़ और कलम ठीक से पकड़ना भी नहीं आता था सो जो मर्जी पढ़े सच लिख दिया करता था बीएस यही मुझ से ग़लती होती थी एक साइकल पर रोज़ जो भी लिखा जाता था उसे लेजाकर कलक्टर के यहाँ चेक करवा कर चिकिंग हस्ताक्षर करवाने के बाद ही खबरों को छापा जाता था उन दिनों सबसे ज़्यादा मेरी खबरें सेंसर जुआ करती थीं फिर एक नई आज़ादी मिली आपातकाल का डोर खत्म हुआ एम ऐ करने के बाद कोई दिशा नजर नहीं आ रही थी इसलियें पत्रकारिता से जुदा होने के कारण जर्नलिज्म का मास्टर कोर्स करना शुरू किया और जर्नलिज्म करने के बाद जब आपातकाल के बाद की स्थिति देखि तो में भोचक्का था हर कोई एक दुसरे के लियें विज्ञापन और कमाई के लियें गंदगी फेला रहा था मुझे दुसरे अखबार वालों नें पागल करार दिया की यह मुक्य्धारा से अलग हे पत्रकारवार्ताओं में जी भर कर शराब खाना और फिर गिफ्ट की संस्क्रती शुरू हो गयी थी जेसी गिफ्ट जेसा अतिथि सत्कार वेसी खबर लोग अखबार में छापने लगे फिर मेरा अधिस्विक्र्ण राजस्थान सरकार नें किया और में मान्यता प्राप्त पत्रकार खा जाने लगा लेकिन क्या करूं में आदत से मजबूर था में अपनी आदत सच लिखने वाली छोड़ना नहीं चाहता था सो प्रेस क्लब के चुनाओं में मेरे अपनों ने मुझे पहले एक वोट से फिर दूसरी बार दस वोट से हरा दिया । खेर कोई बात नहीं पत्रकारिता के पूल बनने लगे अधिकारियों ठेकेदारों विज्ञ्प्तिबाज़ लोगों की पार्टियां रोज़ फिक्स होती थीं और एक ग्रुप रात के जश्न के बाद एकखबर छापने के लियें देता था वोह खबर सब अखबारों में तो चपटी थी लेकिन मेरे यहाँ वोह छप नहीं पाती थी अधिकारी वर्ग के लोग मुझसे परेशान थे एक दिन बढ़े देनिक के मालिक और हम छोटे देनिक के कर्मचारी कलेक्टर क चेम्बर में बेठे थे केक्त्र बढ़े देनिक के मालिक की चापलूसी में था हमारे वरिष्ट साथी पत्रकार नें कलेक्टर को एक पर्ची पर लिख कर दिया के आप मुर्ख हें कलेक्टर नें जब पढ़ी देखि तो उन्होंने तेष में आकर कहा के जनाब यह तो एक छोटी सी पर्ची हे जिसने आपको हिलाकर रख दिया सोचो ऐसी खबरें अगर दो तिन हजार छपने वाले अखबार में भी छप जाएँ तो आपका क्या होगा । बीएस कलेक्टर साहब सीधे हो गये उन्होंने अपनी ग़लती मानी सोरी कहा और वोह हमारे हम उनके हो गये कोई भी खबर योजना पहले हमारे यहाँ छपती थी और बस इसी वजह से मुझे पत्रकारिता के अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया मेने टी वि रेडियो पत्रकारिता का विशेष पेपर दिया था उन दिनों जब टी वि बहुत कम लोगों के पास हुआ करता था तब दूरदर्शन महानिदेशक ने केरल में सायक टी वि उप सम्पादक पर मेरी नियुक्ति की थी लेकिन मेरा शेहर में छोड़ कर नही जाना चाहता था इसलियें में वहां नहीं गया बढ़े अखबार कोटा से प्रकाशित होने आये मुझे कहा गया के छोटे से देनिक के सम्पादक के बदले बढ़े देनिक में पत्रकार बनो मजे आ जायेंग वेतन भी ठीक मिल रहा था लेकिन में पागल था मेने कहा के भाई एक छोटी स्टेट का राजा यानी होलसोल रहना मेरे लियें बेहतर हें बनिस्बत इसके के में बढ़ी स्टेट का छोटा सा सिपाही बनूं बस फिर बढ़े अखबार आये पत्रिका भास्कर में युद्ध चिडा कभी विज्ञापन को लेकर तो कभी प्रसार संख्या को लेकर तो कभी तेल नमक घी बेचने को लेकर तो कभी कुर्स टेबलें कमरे बाटने को लेकर युद्ध होता रहा और में एक तक पत्रकारिता के इन बदले हालातों को देख कर भोचक्का हो गया पत्रकारिता किराने की दूकान बन गयी एक महाशय ने तो बढ़े पत्रकार जी को राजिव जी के कोटा आगमन पर कितने बेरीकेट्स और बल्लियाँ लगी हें गिनने के लियें लगा दिया बधा ताज्जुब ह़ा के राजिव जी की आम सभा तो विज्ञापन प्रबन्धक कवर कर रहे थे और पत्रकार जी सुनसान इलाके में सुरक्षा की द्रष्टि से लगाये बेरीकेट्स गिन रहे थे । जनाब जो कलेक्टर हमारे फोन करते ही हमारे आने का इन्तिज़ार दरवाज़ा खोल कर किया करते थे आज वही कलेक्टर के बाहर पत्रकारों का जमघट घंटों उनका इन्तिज़ार करता हे । वरिष्ट नेता लालकृष्ण अडवानी,मुरलीमनोहर जोशी,श्रीमती सोनिया जी कोटा आयीं तो पत्रकारों को पास बनाये गये एक पत्रकार एक सवाल पुन्चेगा और इस पाबंदी के बाद भी जब आगन्तुक नेता बिना जवाब दिए चल दिए तो अच्छा नहीं लगा लेकिन भेरोसिंह जी शेखावत और वसुंधरा सिंधिया नें ह्मष पत्रकारों को दिल से चाहा,पत्रकारिता की इस मनोधा के चलते बढ़े अखबारों ने ट्रेड फेयर लगाकर संपादकों और रिपोर्टरों को अफसरों की चापलूसी में लगा दिया हम ने देखा जो अफसर जितना भ्रष्ट होता हे उसके खिलाफ खबर छापने के स्थान पर उसी बढ़े अखबार ज्यादा ह्म्चागिरी करते हें एक बार कोटा कलेक्टर को सागवान की लकड़ी से भरा ट्रक अपने नवनिर्मित मकान में भेजते हुए पकड़ा तो सांसद रघुवीरसिंह कोसल ने कोटा में अखबार वालों को बुलाकर बताया आप यकीन मानिए सिर्फ मेरे अलावा यह खबर कोटा के किसी अखबार में नहीं छपी लेकिन जब इस मामले में जेय्पुर में प्रेस्कोंफ्रेंस हुई तो बस कोटा के पत्रकारों की पोल खुल गयी तो जनाब जब पत्रकारिता पर विज्ञापन नेतागिरी अफसर गिरी शराब पार्टियां गिफ्टें हावी हों और पत्रकार विज्ञापन प्रबंधकों के गुलाम बन गये हों पत्रकारों से खबरें लाने के बदले अफसरों की दलाली करने के लियें कहा जातो हो तो क्या ऐसे में पत्रकारिता करना जरूरी हे बस इसीलियें मेने पत्रकारिता छोड़ कर वकालत का काम शुरू किया कुछ पत्रकारों ने मेरे काम में मेरा सहयोग किया तो कुछ ने बदले की भावना से मेरी ऐसी की तेसी भी की आज एक रफीक पठान जो भास्कर में दुसों के फोटो शापने के लियें फोटो खेचते थे जब सरपंच बनने के बाद एक प्रदर्शन के दोरान उन्होंने अपनी वाजिब खबर छपवाना चाहि तो पत्रिका नें तो फोटो सहित छापी लेकिन भास्कर जी नें एक लाइन भी नहीं छापी ऐसी हे हमारी पत्रकारिता एक रिपोर्टर को हमने मर्द बनाया उसने कोटा कलेक्टर का सच छाप दिया दुसरे दिन जब संपादक जी जयपुर से आये तो उन्हने क्लास ली पत्रकार जी को सच छापने पर पुरस्कृत करने के स्थान पर कलेक्टर से माफ़ी मांगने पर मजबूर किया गया, ऐसे में आप ही बताओ क्या पत्रकारिता करे कोई जो मूल पत्रकार हें उनके अखबार या तो बिकते नहीं अगर रिपोर्टर हें तो उन्हें काबिल होने पर भी अखबार चेनल नोकरी पर रखते नहीं तो जनाब मेने पत्रकारिता तो छोड़ दी हे लेकिन कहते हें कुत्ते की दम कितने ही दिन नली में रखो निकालने पर टेडी की टेडी ही रहेगी इसी तरह से पत्रकारिता का नशा मेरा उतरा नहीं हे कभी कभी जब भी मुझे नशे की खुमारी आती हे बस में अपनी हरकत कर बेठता हूँ जो कुछ के लियें तो एक्स्कुलुज़िव खबर होती हे तो कुछ के लियें पागलपन लेकिन हम भी आप ब्लोगर्स की तरह हें चाहे जो भी हो हम सुधरेंगे नहीं । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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