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09 जुलाई 2010

कोटा में राजस्व रिकोर्ड में ग़लत इन्द्राज

कोटा में राजस्व अधिकारीयों , पटवारियों ने राजस्व रिकोर्ड में क्रषि भूमि की स्थिति का ग़लत इन्द्राज किया हे इसकी पुष्टि कलेक्टर द्वारा कराई गयी जांच में हो गयी हे अब क्रषि भूमि जहां कोलोनियाँ बस गयी हें वहां राजस्व रिकोर्ड में क्रषि भूमि दर्ज हे इसके अलावा भी भूमि का इन्द्राज नही हे कुल मिला कर कोटा के पटवारी और राजस्व कार्यों में लगे कर्मचारी प्रोपर्टी डीलरों किसानन और भू माफियाओं से मिले हें साथ ही वो अतिक्रमण कारियों के रक्षक बन हें इसी की पुस्ती होने के बाद कोटा कलेक्टर टी रवि कान्त ने अब सभी पटवारियों और राजस्व अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए अनुशासनात्क कार्यवाही करने की तय्यारी कर ली हे इसी कारण पटवारियों की रातों की नींद हराम हो गयी हे अब वोह राजनितिक जुगत में लगे हें तो समूह बना कर कलेक्टर को मक्खन लगाने में लगे हें लेकिन यह तो सच हे अब पटवारियों की खेर नहींअख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

अफजल गुरु कोंग्रेस का दामाद वाणी पर गडकरी अड़े

भाजपा के नये अमर्यादित आचरण रखने वाए नितिन गडकरी ने पहे कोंग्रेस के तलवे चाटने की सहयोगी दलों के लियें बात खी थी अब गडकरी के होसले और बुलंद हो गये हें गडकरी ने संसद मामले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी के मामले में कहा हे के अफजल गुरु कोंग्रेस और कोंग्रेस के नेताओं के दामाद हें इसीलियें अब तक उसे फांसी नहीं दी गयी हे इस पर कोंग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा के यह वाणी सही नहीं हे अगर हम कहें की राजीव के हत्यारे भाजपा के दामाद हें तो भाजपा को केसा लगेगा मीडिया ने भी गडकरी की इस मामे में खूब आलोचना की लेकिन गडकरी अब अपनी बात पर कायम हें और उन्होंने माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया गडकरी को शायद पता नहीं के वोह भारत देश में निवास करते हें तालिबानी युग में नहीं जहां कानून नाम की चीज़ नहीं हे गडकरी जी को सोचना चाहिए के वोह देश की लोकतांत्रिक व्यवथा के तहत चुनाव आयोग से विही नियमों के तहत बंधी राजनितिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हें और ऐसे ब्यान दें वाले नेता के खिला खुद चुनाव आयोग प्रसंज्ञान लेकर उसकी पार्टी की राजनितिक मान्यता समाप्त कर सकता हे फिर भी गडकरी नहीं सुद्रें तो हम क्या ख सकते हें बस एक कहावत ही याद कर सकते हें के कुत्ते की दम नो महीने नाली मेर रखी लेकिन टेडी की टेडी ही रही। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

प्रधानमन्त्री जी की सुरक्षा की भेंट चढा कानपुर का अमन

दोस्तों अभी हाल ही में भारत बंद के दोरान मीडिया ने कोंग्रेस मेनेजमेंट के तहत बंद के खिलाफ तूफ़ान खड़ा कर दिया था हालत यह रहे के रस्ते जम के मामले की खबरों को बचा सधा कर ब्यान किया था , लेकिन कानपुर में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह जी के यात्रा के दोरान उनकी सुरक्षा एजेंसियों ने एक मासूम बच्चे अमन की हत्या कर दी जी हाँ में हत्या का शब्द इस्तेमाल इसलियें कर रहा हूँ के अगर उस दिन प्रधानमन्त्री जी कानपुर में नहीं होते तो शायद मासूम अमन की जान बच जाती अमन जो केवल सात साल का था उसके सर पर घर में लोहे का दरवाज़ा गिर गया जिससे वोह घायल हो गया उसे तत्काल इलाज की जरूरत थी सर से खून बहने के बाद लहू लुहान अमन को उसके पिता और ड्रायवर जब अस्पताल दिखाने के लियें निकले तो रास्ते में प्रधानमन्त्री मनमोहन जी की सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें कदम कदम पर रोका सुरक्षा बलों ने मासूम अमन के सर से बहते खून और उसे तडपते देखा लेकिन प्रधानमन्त्री की सुरक्षा के आगे किसी को टीआरएस नहीं आया और नतीजा यह रहा के वक्त पर अमन को चिकित्सा उपचार नहीं मिल पाने से उस बेचारे की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मोत हो गयी , यह सब बंद के पहले कानुर आई आई टी के कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री जी के जाने के दोरान हुआ लेकिन किसी मीडिया कर्मी ने इए खबर नहीं बनाया बात कुछ भी हो प्रधानमन्त्री जी की सुरक्षा के नाम पर हुई इस हत्या की शिकायत अब सोनिया गांधी और दुसरे ज़िम्मेदारों के पास पहुंच गयी हे जीकी खबर तो मीडिया ने कचरे की टोकरी में डाल दी हे लेकिन शिकायत अभी तक कचे में नहीं गयी हे उस पर जवाब भी को नहीं आया हे। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

जजों के फेसलों की समीक्षा के लियें आयोग की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट के एक जज स्वतंत्र कुमार ने एक दिन में ७५ मामलों में फेसले देने का रिकोर्ड बनाया हे इसके पहले भी इन्हीं जज साहब ने मुंबई हाईकोर्ट में ८० मामलों में फेसले सूना कर रिकोर्ड कायम किया था एक दिन में इतने फेसले सुनाना अच्छी बात हे लेकिन वोह फेसले कोनसे हें उनकी विधिक गुणवत्ता किया हे इस मामलों में ऐसे मुकदमों के फेसलों की समीक्षा के लियें आयोग गठित होना चाहिए जल्द बाज़ी के फेसले हों तो सजा और गुणवत्ता वाले फेसले हों तो इनाम का प्रावधान होना चाहिए । हाल ही में कारों से आने जाने वाले एक ज साहब जो शायद वर्षों पहले दो पहिये वाहन पर बेठे होंगे या फिर कभी चलाया होगा उन्होंने दो पहिये वाहनों के लियें फेसला दिया हे के दो पहिये वाहन बेचने वाले हेलमेट साथ ही बेचेंगे अब यह फेसला केसा हे थी हे या अव्यवहारिक अगर जज साहब मोटरसाइकल पर कुछ दिन घुमे होते और फिर उनका यह फेसला होता तो व्यवहारिक लगता लेकिन दोपहिये वाले वाहन चालकों की परेशानी का जब दर्द ही पता नहीं हे तो किताबी फेसला जो फेसला तो हे लेकिन सार्वजनिक नहीं हे , एक कहावत हे के अमीरों को गरीबों का दर्द उनकी जरूरतें पता नहीं होतीं लेकिन व्ही गरीबों के उत्थान की योजनायें बनाते हें जो खाओ पियों मोज करो के हिसाब से बनती हे एक आमिर से गरीबी पर लेख लिखने के लियें कहा तो जनाब उसने लेख लिख डाला लेख मन लिखा था के गरीब बहुत गरीबन हटा हे , उसका ड्राइवर भी गरीब होता हे , उसका नोकर भी गरीब होता हे , घर साफ़ करने के लियें उसके पास पेसे नहीं होते गरीब बहुत गरीब होता हे इनका धोबी भी गरीब होता हे तो जनाब एक आमिर को गरीबी की कल्पना करना पद्धति हे इसलियें वोह उसके बारे में सोच नहीं सकता इसी तरह से हेलमेट के मामले में कारो पर चलने वालों का फेसला किस हद तक व्यवहारिक हे सोचने के बात हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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