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16 अगस्त 2010

मशहूर गजल कवि कोटा में आये

सेवानिवृत रेलवे अधिकारी और मशहूर गजल कवि लेखक के के सिंग मयंक हाल ही में अपनी यात्रा पर कोटा आये थे कई वर्षों बाद उनसे मुलाक़ात हुई लेकिन अपने पन का वही पुराना एहसास वही साहित्यिक अंदाज़ ऐसा लगा मानो किसी पारिवारिक सदस्य के साथ बेठे हों। के के सिंह मयंक ने करीब २८ से भी अधिक गजल के दीवान या यूँ कहिये के पुस्तकें लिखी हें उनकी शायरी में एक ख़ास बात तो यह हे के वोह महबूब,माशुज़,जुल्फों,प्यार,और विरह से दूर रहे हें उनका मानना हे के वर्तमान हालातों में और भी गम हे जमाने में मोहब्बत के सिवा और इसीलियें आज के हालात और उन पर नसीहत पर ही उन्होंने बहुत कुछ लिखा हे ।
के के सिंह मयंक वेसे तो कोटा के लियें नये नहीं थे लेकिन फिर भी वोह जब यहा रहे तो कोटा के माहोल में अपनापन,प्यार का वातावरण बन गया उन्होंने रेलवे की नोकरी में व्यस्तताओं के बावजूद जो कुछ भी लिखा वोह देश के कोने कोने में जो हालात हें उनकी तर्जुमानी हे उनकी तस्वीर हे एक गजल में वोह वर्मान हाआतों में भटके नोजवानों को यूँ सिख देते हें ; यूँ तुम दंगों में अपना लहू बहा दोगे तो बताओ देश की रक्षा में जब जररत पढ़ेगी तुम्हारे लहू की तो कहां से लाओगे ; उनकी हर पंक्ति हर शेर में जिंदगी हे और ऐसे ज़िंदा दिल इंसान का ही दुसरा नाम के के सिंह मयंक हे । दोस्तों मयंक अपनी हर गजल ७ या ९ अशार में पूरी करते हें और उन्होंने कभी साहित्य के मामलों मन अल्फाजों की लफ्फाजी नहीं की उन्हने तो बस अल्फाजों को चुना हे , गजल की माला में पिरोया हे और गजल लिखना गजल कहना उनका शोक या व्यवसाय नहीं उनकी साधना हे उनकी पूजा हे और इसीलियें वोह जब भी लिखते हें राष्ट्र धर्म मानवता की ही बात कहते हें उनकी साधना की हद यह हे के उनका कोई शेर उर्दू गजल के मानकों की कसोटी से निचा नहीं उतरा हे वही बहर भी मीटर नाप टोल शब्दों का उतार चडाव उन्होंने नहीं छोड़ा हे , अब के के सिंह मयंक जब कोटा से गये हें तो कोटा के साहित्यकार उनसे नहीं मिल पाने का अफ़सोस जता रहे हें , मयंक कोटा से तो चले गये लेकिन अपनी यादें छोड़ गये । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

जयपुर में छात्रों के साथ मीडिया कर्मियों की पिटाई

आज़ादी के जश्न के तुरंत बाद दुसरे दिन जयपुर में जब छात्र अपने हक की मांग को लेकर रेली निकाल कर प्रदर्शन कर रहे थे तब अचानक पुलिस और छात्रों में झडप के बाद पुलिस ने छात्रों पर बेरहमी से लाठीवार किया उन्हें सडकों पर डोडा डोडा कर मारा पुलिस लाठी की चपेट में कई पत्रकार,कई राहगीर और कई नाबालिग छात्र भी आये , कहानी की मजेदारी यह रही के जब छात्रों को पुलिस जब दोडा दोडा कर मार रही थी तो कई छात्र गम्भीर घायल ह गये और जब इस बेरहमी की तस्वीर मीडिया कर्मी अपने अपने कमरों में केद करने में लगे थे तो पुलिस ने उन पर भी जमकर लाठियां भांजी , हालात यह रही की कई मीडिया कर्मियों के भी चोटें आई हें , मीडिया कर्मियों पर पुलिस हमले को मीडिया कर्मियों ने गम्भीरता से लिया और तुरंत दोषी पुलिस कर्मियों की बर्खास्तगी की मांग को लेकर वहीं सडक पर धरने पर बेठ गये इतना ही नहीं अपनी मांगों के समर्थन में मीडिया कर्मियों ने जाम भी किया , मीडियाकर्मियों को मिल रहे इस समर्थन से सरकार और पुलिस अधिकारी भी घबरा गये ।
लेकिन बेचारे मिडिया करी तो ठहरे देहादी मजदूर उनका कोई धनी धोरी नहीं पुलिस कर्मियों ने पहले तो मीडिया कर्मियों को समझाया ऑफ़ फिर जब वोह अपनी मांग पर अड़े रहे तो फिर सरकार के नुमाइंदों ने अपनी अक्ल और प्रभाव का इस्स्तेमा कर अखबार और चेनल मालिकों को फोन घुमाया हालात ऐसे बने के बचाए देहादी मजदूर की जिंदगी जी रहे मीडिया कर्मियों को बिना अपनी मांग मनवाए हटना पढ़ा वोह बेरहमी से पिटे उनके आहन टूटे उन्हें भी भगा भगा कर मारा जिन मालिकों के लियें वोह रिपोर्टिंग करने गये थे उन्होंने ही वीटो जारी कर अपने अपने नोकर मीडिया कर्मियों को सख्ती से हट जाने को कहा बेचारे मरते क्या नहीं करते सब को पेट पालना हे नोकरी चलाना हे सो भीगी बिल्ली की तरह से चुप चाप चल दिए हद तो यह हे के आज कल की इस दरिंदगी की घटना की खबर तक कई अखबारों से गायब हे और पत्रकारों को निशाना बना कर पीटने वाले पुलिस कर्मी आज भी पत्रकारों की तरफ शरारती मुस्कान से कह रहे हे के लो देख लो हम तो जहां के जहां हे तुम ने हमारा क्या कर लिया अब सरकार थोड़ी बहुत लिपा पोती और दिखावटी कार्यवाही कर कुछ पत्रकार संगठनों की दूकान चलाने के लियें मामूली सी कार्यवाही की सोच रही हे लेकिन यह घटना पत्रकारिता और संघर्ष के इतिहास को कलंकित कर देने वाली हे और एक बात साफ़ हो गयी हे के मीडिया के मालिक व्यवसायिक हें उन्हें पत्रकारों के मान सम्मान से कुछ लेना देना नहीं और यह लोग पत्रकारों को पत्रकार नहीं इशारों पर नाचने वाला एक गुलाम समझते हें लेकिन इन मालिकों को पता नहीं के हर हालात में कोई ना कोई भगत सिंह , चन्द्र शेखर भी पैदा होता हे और अब पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कोई तो पैदा होगा ही जो मालिकों और सरकार के इन दमन कारी नीतियों का मुंह तोड़ जवाब देकर पत्रकारिता की गरिमा को पुनर्जीवित करेगा। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

वन्दे मातरम कहते हो तो अमल क्यूँ नहीं करते यारों

वन्दे मातरम , वन्दे मातरम
का नारा देते हो
तो इसपर अमल क्यूँ नहीं करते यारों ,
धरती हमारी पूजनीय हे वन्दनीय हे
तो फिर इस धरती पर
बेगुनाहों का लहू क्यूँ गिराते हो यारों
कहते हो अगर वन्दे मातरम
तो इसे मानते क्यूँ नहीं हो यारों
दंगे फसादों में बेगुनाहों के खून से
क्यूँ रंगते हो इस वन्दनीय राष्ट्र भूमि को यारों
वन्द मातरम हे तो इसे दिल से मानो
राजनीति इस नाम पर क्यूँ करते हो यारों
वन्दे मातरम हे तो फिर तुम ही बताओ
दंगे हिंसा भडका कर
इसी देश की पूजनीय भूमि पर बने
मकान और दूकान क्यूँ जलाते हो यारों
सोचो .दिल पर हाथ रखों
पूंछो अपने जमीर से
कहते हो वन्दे मातरम
तो क्यूँ फेलाते हो इस धरती पर भ्रष्टाचार
क्यूँ फेलाते हो महंगाई,मिलावट और अत्याचार ,
कहते हो वन्देमातरम
दिल से इसे पूरा करके भी दिखाओ
नहीं कर सकते ऐसा
तो फिर छोड़ दो देश हमारा
जहां मर्जी हो वहां जाओ
वन्द मातरम कहते हो
तो इसपर अमल भी कर के दिखाओ यारों
यूँ सियासत ना करो इस पर
दोहरी चाल ,दोहरी नीतिया छोड़ दो
राजनितिक गिरगिटों से मेरे देश को बचा लो यारों ....
वन्दे मातरम वन्दे मातरम हो चारों तरफ
धरती हे पूजनीय
तो स्वर्ग हो चारों तरफ
सब जान कर भी तुम
इस स्वर्ग रूपी देश को
नरक क्यूँ बनाते हो यारों
झाँक लो गिरेबान में अपने
देख लो काली करतूतें अपनी
छोड़ दो इन सब को फिर कहो
और दिल से मानो वन्देमातरम यारों ,
यह गीत राष्ट्र का हे
यह ना आपका हे ना मेरा हे
ना किसी के बाप का हे ,
अब तो छोड़ दो दंगे फसाद वोटों के लियें
नेता इन हरकतों को नहीं छोड़ते हें तो मत छोड़ने दो
तुम तो वन्दे मातरम मानते हो
राष्ट्र भक्ति को मानते हो ,
बताओ फिर ऐसे नेताओं को तुम छोड़ क्यूँ नहीं देते यारों ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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