आपका-अख्तर खान

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29 अगस्त 2010

दिल की भी अजीब दास्ताँ हे

दोस्तों एक वक्त
यानी २५ साल पहले की बात हे
एक हे
जिसके लियें में रात दिन बेचेन था
जब भी वोह मिलती थी
दिल में घंटियां बजने लगती थी
ऐसा लगता था के मानो
घंटों उससे बात करता रहूँ
और यकीन मानिए घंटों बात करने के बात भी
मुझे तसल्ली नहीं मिलती थी
घंटों बात करने पर भी
ऐसा लगता था मानो क्षणिक मुलाक़ात हे
उसकी आवाज़ , उसका अंदाज़
ऐसा लगता था के वोह
मेरे रोम रोम में बस गयी हे
वोह अलग धर्म की थी
में अलग मजहब का था
बातचीत में साफ़ हुआ
दोनों को ही अपने अपने धर्म प्यारे हे
तो दोस्तों सामजिक मन मर्यादा के चलते
मेने और उसने दोनों ने
दिल की आवाज़ दिल में ही घोट कर रख दी
ना उसने मुझ से कुछ कहा
ना मेने उससे कुछ कहा
दोनों एक दुसरे के लियें बेचेन जरुर रहते थे
उसकी आवाज़ जब भी मेरे कानों में पढती थी
मानो कानों में शहद घोल दिया हो
हर पल हर क्षण बस में यही चाहता था के वोह मेरे पास मेरे साथ रहे
में उसकी मधुर आवाज़ सुनता रहूँ और नशीली आँखें निहारता रहूँ
एक दिन उसने कहा
में इंटर कास्ट मेरिज कर ली हे
मुझे धक्का लगा दिल बेठ गया
सदमा ऐसा लगा के सब कुछ भूल गया
बस में भी निर्णय लिया
के उसे भूल जाओ
लेकिन यह काम कितना मुश्किल होगा
मेने सपनों में भी नहीं सोचा था
वोह शादी ब्याह फंक्शनों में मिलती
कभी में कन्नी काट लेता कभी में चोर निगाहों से निहार लेता
एक दिन बरसों बाद
मेरे पास एक फोन आया
उधर से महिला की आवाज़ थी
पहचाना में कोन
मेने कहा नहीं
उसने कहा पहचानो
में अपनी महिला रिश्तेदारों के नाम गिनाना शुरू किया
लेकिन सब गलत था आखिर में वोह कातिल अंदाज़ में हंसी
और उसने कहा भूल गये में फलां
ओह सोरी माफ़ी चाहता हूँ मेरा फोन गडबड हे
इसलियें पहचानने में गडबड हुई
बस फिर से मेरे दिल दिमाग में
घंटियां बजने लगीं
में सोचने लगा आखिर प्यार भी क्या चीज़ हे
यद् रखो तो याद रहता हे
भूल जाओ तो भल जाते हें
लेकिन जिस आवाज़ को सुनने के लियें
में घंटों इन्तिज़ार करता था और बस उस आवाज़ को हमेशां सुनते रहना चाहता था
आज उसी आवाज़ को में पहचान ना सका
इसे जनाब क्या कहिये
बस यूँ कहिये
दिल की भी अजीब दास्ताँ हे यारों। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

जन्माष्टमी को लेकर असमंजस

कोटा में जन्माष्टमी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई हे यहाँ जन्माष्टमी की सरकारी छुट्टी भी स्टेट टाइम से ही दुसरे दिन होती हे और इस कर्ण भी यहाँ के पंडितों का गुणा भाग ने श्रद्धालुओं को सांसत में डाल रखा हे , कोटा में जन्माष्टमी का त्यौहार पूर्ण श्रद्धा और उत्सव के साथ मनाया जाता हे यहाँ टीपता पाटनपोल इलाके में महाराज दुर्जन साल कृष्ण भगवान के भक्त हो गये थे और हालत यह हुई की उन्होंने खुद का नाम भी बदल कर कृष्णदास रख लिया , महाराजा दुर्जन साल के कार्यकाल में १७९५ में कोटा पाटनपोल इलाके में मथुराधीश जी की मूर्ति स्थापित कर विशाल ऐतिहासिक मन्दिर बनाया गया और इस इलाके में हर सा विशाल उत्सव होने लगा इसी लियें इस इलाके का नाम ही नन्द ग्राम रख दिया गया तो दोस्तों जन्माष्टमी के ममले में एक तो कोटा में विशाल ऐतिहासिक मथुराधीश जी का मन्दिर हे जो अपने आप में आदरणीय हे दसरी बात यह हे के यहाँ श्री कृष्ण जन्मोत्सव के बाद रात भर जश्न की रत होती हे और श्रद्धालु जब थक र सो जाते हें तो सरकारी छुट्टी पुरे राजस्थान में जिस दिन होती हे उसके दुसरे दिन मनाई जाती हे इस मामले में राजस्थान पंचांग शिक्षा केलेंडर और हाई कोर्ट केलेंडर में भी विशिष्ट रूप से यह शर्त दर्ज हे , सभी श्रद्धालुओं ,ब्लोगर बहन भाइयों को जन्माष्टमी के अवसर पर मेरी और मेरे परिवार की और से हार्दिक बधाई। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

पाक का ना पाक मेच फिक्सिंग

क्रिकेट की दुनिया में पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने एक बार फिर कालिख पोत दी हे, पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों को स्टिंग ओपरेशन के तहत रूपये लेकर पहले से तय शुदा कार्यक्रम के तहत मेच हारने का प्रमुख आरोपी माना हे इस मामले में पाकिस्तान के क्रिकेट कप्तान और दो खिलाडी की बोलती बंद हे उनसे सफाई देते नहीं बन रहा हे फिर बी पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने आज तक उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की हे , ताज्जुब हे के पाकिस्तान अब क्रिकेट में भी खुली बेईमानी पर उतर आया हे वोह दुसरे देशों में ताका झांकी कर वहां की सुख शान्ति भंग करने का तो आदतन अपराधी हे ही सही लेकिन अब उसका असली चेहरा विश्व के सामने आता जा रहा हे विश्व भर के क्रिकेटर इस पाकिस्तान को खिलाडियों की नापाक हरकत से स्तब्ध हें लेकिन फिर भी पाकिस्तान और उसके खिलाडी बड़ी बेशर्मी से दांत दिखा रहे हें। अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

डोक्टर साहब नहीं हें आजाओ

एक मरीज़ का
सर्दी के चलते
गले में खराश आने से
गला खराब हो गया
देसी भाषा में
कहो तो
गला बेठ गया
यह जनाब
एक डोक्टर के घर
खुद को दिखाने गये
घंटी बजाई
डोक्टर के घर का
दरवाज़ा खुला
उनकी पत्नी बाहर आई
गले बेठे मरीज़ ने
दबे गले से
धीरे से पूंछा
डोक्टर साहब हें किया
डोक्टर पत्नी फुसफुसाहट भरी
गले बेठे की आवाज़ से कन्फ्यूज़ हो गयीं
और दरवाज़ा खोल कर कहा
नहीं हे नहीं हे
चुप चाप आजाओ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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