आपका-अख्तर खान

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13 सितंबर 2010

जी हाँ में हिंदी हूँ ..........

परम आदरणीय ,
बेतार के
स्वचालित यंत्र के
लेखक साथियों
सदर नमन हे ,
में हिन्दुस्तान की
हिंदी भाषा हूँ
मेरा परिचय आपके लियें
नया नहीं हे
लेकिन परिचय की आवश्यकता इसलियें हें
के में अपने ही लोगों में पराई हो गयी हूँ
मुझे देश के कुछ लोग हें जो जानते हें पहचानते हें
में वोह हिंदी हूँ जिसने एक जुट होकर
लोगों तक आज़ादी के तराने पहुंचाए
और लोगों को स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूदने का जज्बा दिया
नतीजा सामने हे मेरी एकता से ही अँगरेज़ हिंदी के इस हिन्दुस्तान को छोड़ को छोड़ भागे
आज़ाद देश को देख कर हिन्दुस्तानियों ने
मुझ पर उपकार किया मुझे संविधान की भाषा बनाया गया
मुझे राज भाषा का दर्जा दिया राज भाषा यानी राज चलाने की भाषा आदेश देने की भाषा निर्देश देने की भाषा
लेकिन मेरे स्वचलित यंत्र के लेखक साथियों
आप जानते हें इस हिन्दुस्तान में दिल्ली की भाषा अंग्रेजी हे , महाराष्ट्र की भाषा मराठी हे, बंगाल की भाषा कुछ और हे तो दक्षिणी भारत में तो में ला पता हूँ मुझे महाराष्ट्र में कोई अपनाये तो वोह पिटता हे , दक्षिणी भारत के बेल्लारी में कोई मुझे बोल दे तो गाँव के गाँव में लोगों को ज़िंदा जला दिया जाता हे ।
आखिर मेरा कुसूर क्या हे क्यूँ मेरा मजाक उड़ाया जाता हे लाट साहब लोग साहित्यकार लोग अगर किसी का मजाक बनता हे तो मेरा नाम लेकर उसे मुहावरा दिया जाता हे और कहा जाता हे उसकी हिंदी हो गयी अरे भाई मुझे अपनाने के लियें नेता मंत्री सरकारी खर्च से करोड़ों अरबो खर्च करते हे खर्च करते या नहीं लेकिन सरकार के खजाने से मेरे नाम पर तो रुपया जाता हे , बेंकों केन्द्रीय विभागों में हिंदी अपनाने की बात लिखी होती हे लेकिन पत्र अंग्रेजी में लिखा होता हे मुझ हिंदी को संवेधानिक दर्जा दे रखा हे कल १४ सितम्बर को मेरे दिवस के नाम पर हजारों करोड़ों रूपये खर्च होंगे दिखावा होगा जो नेता अधिकारी साहित्यकार पत्रकार मुझे अपनाने का भाषण देंगे उनके बच्चे और पोते पोतियाँ सब के सब अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ेंगे ।
मेरे स्वचालित बेतार यंत्र के लेखक साथियों बहनों समाचार पत्र और दूरदर्शन के पत्रकार तो मेरा दर्द नहीं समझते नेता मंत्री सांसद और विधायक तो मेरे नाम पर व्यवसाय करते हें कमाई करते हें वोटों की राजनीती करते हें लेकिन वोह नहीं चाहते के में पुरे देश में राष्ट्र भाषा के रूप में अपनाई जाऊं राष्ट्र भाषा और राज भाषा दोनों का ही दर्जा बार बार मुझसे छिना गया हे , इसके लियें आप लोग मेरी मदद करों मेरा दर्द समझों क्षेत्रीयता की भाषा चाहे अलग हो लेकिन सरकारी और राष्ट्रिय भाषा तो में हूँ तो मुझे ही अपनाया जाए इसके लियें कानून बनवाओ जो मेरे नाम का मजाक उधाये , मुझे अपनाने से इंकार करे या कोई अधिकारी मुझे पहचानने से इंकार करे उसे नोकरी से हटाओं अपमान करने वाले को सजा दो। पुरे देश के विभागों में सरकारी बोर्ड मेरी भाषा में बनवाओ कानून बनाओ जो हिदी पढ़ लिख और बोल सकता हे बस भी सांसद,विधायक,पार्षद,पंच सरपंच का चुनाव लढ़ सकेगा ऐसा हुआ तभी मेरी वक्त बढ़ेगी नहीं तो हर बार की तरह इस बार भी मेरा अपमान सिर्फ अपमान ही होगा और अगर ऐसा होना हे तो फिर १४ सितम्बर हिदी दिवस के नाम का यह तमाशा तो बंद ही किया जाना चहिये । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बेरहम हें वोह लोग ...


कितने
बेरहम
हें वोह लोग,
कुदरत के
हुस्न का
रोज़ वोह
कत्ल
किया करते हें ,
अपने शोक
के खातिर
रोज़ नयीं
तितलियों को
अपनी किताबों में
रखा करते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

तेरे लियें


तेरे लियें
तडपते हें
तेरे लियें
पीते हें
जिंदगी का
जहर
मिटा करते हें
तेरे लियें
म़ोत
आना चाहती हे
लेकिन
रोज़ धोखा
उसे देकर
इस बेरहम
जिंदगी को
सिर्फ और सिर्फ
किस्तों में
तेरे लियें
जीते हें।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

में कितना खुश हूँ


में कितना खुश हूँ
तेरे जाने के बाद
आ ,
जरा आकर तो देख ,
तुने सोचा था
मर जाउगा तेरे बगेर
देख
कितनी तितलियाँ हें
मेरे आगे पीछे
जरा आकर तो देख ,
तेरी ही सदा थी
मेरे दिल और दिमाग में
एक दिन
तू चली गयी तो क्या
मुझ से
सदायें कई और टकराई हें
कितने खुबसुरत
बने हें
पत्थर के बुत
मेरे महबूब
आ जरा
आकर तो देख ,
तू जहां थी
वहीं आज भी हे
नफरत और कडवाहट
तेरे जहन में आज भी हे
शक का
वहम हे
आज भी तेरे जहन में
तू जल रही हे
तू पिघल रही हे
मोम की तरह
में आज भी खुश हूँ
में आज भी मुस्कुराता हूँ
आ देख
जरा आकर तो देख।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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