तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 जनवरी 2011
अमेरिका लोबिंग पर खर्च ७ करोड़
दोस्तों हमारे देश का किरदार तो खेर दलाली और रिश्वत खोरी का ही रहा हे लेकिन यहाँ भी कई ऐसे लोग हें जिनके किरदार की वजह सें इन रिश्वत खोरों की हालत खराब हो गयी हे चाहे लालू जी हों चाहे पूर्व प्रधानमन्त्री जी हो सभी को सबक मिल चूका हे लेकिन केवल अपने सम्बन्ध बनाने के लियें यह फ़िज़ूल खर्ची क्या ठीक बात हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
महंगाई से जनता आहत नहीं सी पी जोशी
सी पी जोशी जी आप जीवन भर मुफ्त की तनख्वाह लेकर बिना काम करे जीते रहे हें आपको जनता एके दर्द का क्या पता आप आधारहीन नेता हें आपको अभी आता,गेस,पेट्रोल,प्याज,लस्सन,कपड़े,सोना चंडी खुद खरीद कर लाना नहीं पढ़ते और आप गरीबों में और कार्यकर्ताओं में तो उठते बैठते ही नहीं हें इसलियें आपको महंगाई का दर्द का क्या पता जो इस तरह मानसिक रोगी की तरह बयानबाज़ी कर रहे हो जय हो भिया अगले चुनाव के बाद जब आप किसी ढाबे पर अपने हाल पर रोते हुए मिलेंगे तब आपसे बात करेंगे अभी तो आपके अंदर सत्ता का रावण जिंदा हे जिसे जनता का वोट राम बाण मारेगा तब कहीं रावण राज खत्म होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तिरंगे की अस्मत क्यूँ करते हो तार तार ....
यह तो बात हुई राजनीति की अब हम बात करते हें तिरंगे की तिरंगा जिसके लियें देश में हजारों लोगों ने अपनी आहुति हे खून बहाया हे उस तिरंगे को अगर यह लोग यूँ सडकों पर तमाशा बना कर अपमानित करते हें तो फिर देश में नेशनल ओंर एक्ट का क्या होगा देश की ध्वज संहिता का क्या होगा जिसमें तिरंगे को किस तरह से कहां इस्तेमाल किया जाएगा कानूनी तोर पर लिखा गया हे और इस का उल्न्न्घं करने पर ऐसे दोषी लोगों को ओद्न्दित करने का प्रावधान हे अब सरकार ऐसा तो नहीं करती फिर इन लोगों को तिरंगे की बात करने का हक खाना रह जाता हे जो लोग अपनी पार्टी कार्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराते जो लोग तिरंगे का स्वरूप बदल देने के लियें संकल्प बद्ध हें उनका तिरंगे से क्या लेना देना , लेकिन सरकार चाहे कोई सी भी हो सभी इस मामले में राजनीति कर रही हे अरे लाल चोक हमारे भारत देश में हे और वहां अगर सरकार खुद भी तिरंगा फहराए तो क्या बुराई हे लेकिन यह मेरा देश हें यहाँ तिरंगा हो चाहे कुछ भी हो दुरंगे लोग इस पर राजनीति कर इसके मां समान को कम करने के प्रयासों में जुटे हें जिन्हें जनता को एक जुट होकर ध्वज संहिता के उल्लंघन और नेशनल ओंर एक्ट के प्रावधानों के तहत अपराध करने पर जेल भिजवाना चाहिए जो लोग तिरंगे की बात करते हें उनसे अगर पूंछा जाए के तिरंगा कब अमल में आया इसका इतिहास किया हे तो बगलें झाँकने लगेंगे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
अख्तर खान उदयपुर प्रेस क्लब अध्यक्ष बने
दाने दाने पर लिखा होता हे खाने वाले का नाम
हुआ क्या जनाब के आज रविवार अवकाश का दिन था हमारे एक दूर के रिश्तेदार हमसे कई दिनों से सपरिवार दावत करने की जिद पर अड़े हुए थे एक उनके ही पडोस का परिवार और हे जो भी परिचित हे और वोह भी काफी दिनों से द्दाव्त के पीछे पढ़ा हुआ था , आज सुबह जेसे ही फोन की घंटी बजी और अवकाश का होना कहकर हमारे एक रिश्तेदार ने दावत की कहा तो मेने फोन हमारी में साहब को पकड़ा दिया में साहब का हुआ के आज तो शाम को रिश्तेदार जी के यहाँ ही दावत खायेंगे खेर हमने प्लान बनाया गाड़ी उठायी बच्चों को साथ लिया पहले देनिक भास्कर के मेघा ट्रेड फेयर में टाइम पास किया फिर सी ऐ दी सर्किल पर लगे व्यापरिक मेला डेकोर मेले की ख़ाक छानी शाम हुई और हम एक दो जगह मिलते मिलाते रिश्तेदार जी के यहाँ खाने जा पहुंचे , रिश्तेदार जी के यहाँ मकान का काम चल रहा था हम थोड़ी देर बेठे फिर पडोस में रहने वाले दुसरे रिश्तेदार जी जो खुद भी कई बार दावत की कह चुके थे उनसे मिलने का मन हुआ और हमारी में साहब ने उनसे मिलें की इच्छा ज़ाहिर की तो हम भी उनके साथ मिलने चल दिए ।
कुदरत का करिश्मा कहिये के यह जनाब भी किसी की दावत कर बेठे थे और हम जब वहां गये तो वोह लोग भी मोजूद थे बस उन्होंने इधर उधर की बात के बाद कहा के आजकल तो पडोस में मकान का काम चल रहा हे तो धूल मिटटी की वजह से उनके यहाँ का खाना भी यहीं आ जाता हे और मिल बेठ कर साथ कहा लेते हें फिर उन्होंने दस्त्र खाना बिछाया और खाना परोस दिया हमसे खाने को कहा हमने देखा के जिन रिश्तेदार ने हमें दावत दी थी वोह आयीं और एक बर्तन में कुछ इन जनाब के यहाँ दे गयीं बस हम समझे के खाना यहीं खाना हे और हम भी खाने बेठ गये सपरिवार जब खाना खा रहे थे तो हमारी में साहब ने कहा के नीचे तो उन्होंने पुलाव भी बनाया हे कहा था वोह तो अभी तक आया नहीं पड़ोसी जी उठे और नीचे जाकर पुलाव भी ले आये थोड़ी देर में जब हम खाना खा चुके तब जिन रिश्तेदार जी ने हमें सपरिवार दावत दी थी वोह पडोस में उपर आये और हमें खाने के दस्तरखान पर लपकते देख चुपचाप बेठ गये थोड़ी देर में जब कोफ़ी आई तो उन्होंने कहा के में तो आपके लियें नीचे गर्म गर्म रोटी बनवा रहा था और दो तीन तरह के व्यंजन के नाम उन्होंने गिनाये के यह व्यंजन जो आपको पसंद हें वोह मेने बनवाये हें मेने जिन जनाब के यहाँ खाना कहा लिया था उनकी तरफ देखा तो राज़ खुला के यह जनाब तो सोचते थे के आज हम नके यहाँ खाना खाने पुराने वायदे के मुताबिक आ गये हे पर इसीलियें उनके घर में जो भी था जो उन्होंने दूसरों की दावत के लियें बनाया था हमें परोस दिया अब हमारे तो काटो तो खून नहीं लेकिन बाद में बस यही कहावत ने हमें सहारा दिया के दाने दाने वाले पर खाने वाले का नाम खुदा ही लिख देता हे फिर जब नीचे जहां दावत थी उन रिश्तेदार के यहाँ पहुंचे तो उनकी में साहब का पारा सातवें आसमां पर था कहती थी मेने यह और वोह सब चीजें मन पसंद बनाई हें दिन भर परेशान रही और खाना आपने दूसरी जगह खाकर ठीक नहीं किया यकीन मानिए भाई उनको भी फिर यही कहावत के दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता हे इसलियें हमारा रिज़क खुदा ने जहां उतरा था वहां हमने कहा लिए तो फिर रिश्तेदार जी की में साहब का परा तो थोड़ा ठंडा हुआ लेकिन उन्होंने खाना एक टिफिन हमारे साथ जरुर कर दिया अब हम सोचते हें के यह टिफिन में रखे खाने पर सुबह किसका नाम खुदा ने लिखा हे सुबह ही पता चल पायेगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोलेज की छत गिरी और एक छात्रा दफन
देश में निजी शिक्षा माफियाओं द्वारा जो गडबड घोटाला कर जनता को लुटा जा रहा हे और सरकार भी उसमें पूरी तरहसे ज़िम्मेदार हे इस सांठ गाँठ का ही नतीजा रहा के भरतपुर के खिर्निघात स्थित एक निजी कोलेज की बिल्डिंग की छत नीचे गिर गयी और एक बच्ची की म़ोत हो गयी जबकि कई अन्य घायल हो गये ।
देश में निजी कोलेज बनाने के लियें सरकार ने कानून बनाया हुआ हे कोलेज की इमारत केसे बनेगी उसमें कमरों की पेमाइश कितनीं होगी कितने कमरे होंगे और खेल का मैदान व् जनसुविधाएं कहां कहां रहेंगी इसका पूरा नियमों के तहत जांच पड़ताल होती हे और इसके अलावा सार्वजनिक निर्माण विभाग नगर पालिका से भी भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र लेना जरूरी होता हे लेकिन सब कुछ गांधी जी के हरे नोटों से स्वीक्रत हो जाता हे और नतीजा को भरतपुर में जो हादसा हुआ इस तरह से सामने आता हे । कल अपनी क्लास में भूगोल की पढाई करने वाली छात्रा को ख्वाबों में भी पता नहीं था के वोह घर से अपने माता पिता से वापस आने का वायदा कर के जायेगी और फिर कोलेज से घर कभी नहीं लोटेगी इस हादसे में ऐसा ही हुआ जर्जर इमारत की छत एक दम नीचे गिर गयी एक बच्ची की तो म़ोत हो गयी जबकि २७ अभी भी घायल हे अब अगर सरकारी मान्यता देने वालों और भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र दें वाले लोगों को ही शर्म नहीं आती तो फिर यह हादसेहादसे तो होते ही रहेंगे देखते हें इस मामले में अब प्रशासन और कोलेज प्रशासन किया करता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता
दोस्तों इस देश की बर्बादी का एक प्रमुख कारण इन दिनों महंगाई भ्रस्ताचार के बाद आरक्षण माना जा रहा हे , महंगाई भ्रस्ताचार का खात्मा या उस पर नियन्त्रण तो नेताओं के हाथ में हे लेकिन एक बहुत बढ़ी देश की बिमारी आरक्षण को तो जनता खुद खत्म करने का सरकार पर दबाव बनाती हे ।
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता
दोस्तों इस देश की बर्बादी का एक प्रमुख कारण इन दिनों महंगाई भ्रस्ताचार के बाद आरक्षण माना जा रहा हे , महंगाई भ्रस्ताचार का खात्मा या उस पर नियन्त्रण तो नेताओं के हाथ में हे लेकिन एक बहुत बढ़ी देश की बिमारी आरक्षण को तो जनता खुद खत्म करने का सरकार पर दबाव बनाती हे ।
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
वोह देखो इस दीवाने को ...
उधर देखो
यूँ एक तक
नजर टिकाये
बेठे इस दीवाने को
दुनिया हे
के इसी दीवाने को
तक रही हे
लेकिन यह
बेबस उदास दीवाना
कहां किसे तक रहा हे
किसी को पता नहीं ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
ऐ शमा में भी तुझ सा हूँ
में जनता हूँ
यूँ जलने के
बाद
रात भर
जलते रहने की
ज़िम्मेदारी से
तू उदास हे
लेकिन
मुझे तो देख
मुझे भी तो
साथ तेरे
यूँ ही
अपने गमों में
तडपते हुए
रात गुजारना हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
काँटों से घिरे हे फूल
अकेलेपन में
अपनी
फूटी किस्मत मानकर
यूँ रोने वाले
उठ जरा
बाग़ में चल
खिलते हुए
फूलों को देख
चारों तरफ
काँटों से
घिरकर भी
केसे मुस्कुरा
रहे हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोलेज की छत गिरी और एक छात्रा दफन
देश में निजी कोलेज बनाने के लियें सरकार ने कानून बनाया हुआ हे कोलेज की इमारत केसे बनेगी उसमें कमरों की पेमाइश कितनीं होगी कितने कमरे होंगे और खेल का मैदान व् जनसुविधाएं कहां कहां रहेंगी इसका पूरा नियमों के तहत जांच पड़ताल होती हे और इसके अलावा सार्वजनिक निर्माण विभाग नगर पालिका से भी भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र लेना जरूरी होता हे लेकिन सब कुछ गांधी जी के हरे नोटों से स्वीक्रत हो जाता हे और नतीजा को भरतपुर में जो हादसा हुआ इस तरह से सामने आता हे । कल अपनी क्लास में भूगोल की पढाई करने वाली छात्रा को ख्वाबों में भी पता नहीं था के वोह घर से अपने माता पिता से वापस आने का वायदा कर के जायेगी और फिर कोलेज से घर कभी नहीं लोटेगी इस हादसे में ऐसा ही हुआ जर्जर इमारत की छत एक दम नीचे गिर गयी एक बच्ची की तो म़ोत हो गयी जबकि २७ अभी भी घायल हे अब अगर सरकारी मान्यता देने वालों और भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र दें वाले लोगों को ही शर्म नहीं आती तो फिर यह हादसेहादसे तो होते ही रहेंगे देखते हें इस मामले में अब प्रशासन और कोलेज प्रशासन किया करता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान