आपका-अख्तर खान

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23 जनवरी 2011

अमेरिका लोबिंग पर खर्च ७ करोड़

दोस्तों हमारा देश अमेरिका में भी अब दलाली और रिश्वतखोरी का बाज़ार गर्म करने लगा हे हमारा देश अमेरिका से जुड़ा रहना चाहता हे वहां अपनी नीतिया लागू करवाना चाहता हे बाज़ार स्थापित करना चाहता हे और इसके लियें हमारे देश के फंड से एक नम्बर यानि एक नम्बर जिसका हिसाब हे ७ करोड़ रूपये दलाली लोबिंग पर खर्च हुए हें यह राशि स्विस बेंक के काले धन की राशी से अलग हे अब दोस्तों हमारी सरकार जब खुद इस मामले में लोबिंग खर्च कर रही हे ।
दोस्तों हमारे देश का किरदार तो खेर दलाली और रिश्वत खोरी का ही रहा हे लेकिन यहाँ भी कई ऐसे लोग हें जिनके किरदार की वजह सें इन रिश्वत खोरों की हालत खराब हो गयी हे चाहे लालू जी हों चाहे पूर्व प्रधानमन्त्री जी हो सभी को सबक मिल चूका हे लेकिन केवल अपने सम्बन्ध बनाने के लियें यह फ़िज़ूल खर्ची क्या ठीक बात हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

महंगाई से जनता आहत नहीं सी पी जोशी

दोस्तों राजस्थान के लाल और केंद्र सरकार में अभी हल ही में केन्द्रीय पंचायत मंत्री से हटाए गये नये भूतल मंत्री जो राजस्थान में अभी भी खुद को कोंग्रेस सन्गठन का अध्यक्ष कोंग्रेस विधान के विपरीत बनाये हुए हें वोह सी पी जोशी जी जो जनता की नाराज़गी के साथ साथ खुद की पत्नी की लापरवाही के कारण उनके द्वारा वोट नहीं डालने पर केवल एक वोट से चुनाव हार गये थे और फिर भी सभी सिद्धांतों को ताक में रख कर हारे हुए विधायक होने पर भी मुख्यमंत्री राजस्थान सरकार बनने की कोशिशों में जुट गये थे उनमें नेतिकता कितनी होगी राष्रीय भाव कितना होगा येह तो आप उनके पूर्व आचरण से ही समझ गये होंगे लेकिन अब इन जनाब ने जनता पर सीधा हमला कर दिया हे कोंग्रेस दोनों हाथों से जनता को लूट रही हे और जनता त्राहि त्राहि कर रही हे लेकिन इन जनाब का दावा हे के जनता महंगाई से त्रस्त नहीं हे उनका कहना हे के अगर भाजपा इस नाम पर आन्दोलन करती हे तो लोग अख्त्ते नहीं होते सी पी जोशी जी का ने इस मामले में जनता को भी ललकारा हे के अगर जनता महंगाई से त्रस्त हे तो वोह फिर सडकों पर क्यूँ नहीं उतरती हे क्यूँ आन्दोलन में भाजपा का साथ नहीं देती हे ।
सी पी जोशी जी आप जीवन भर मुफ्त की तनख्वाह लेकर बिना काम करे जीते रहे हें आपको जनता एके दर्द का क्या पता आप आधारहीन नेता हें आपको अभी आता,गेस,पेट्रोल,प्याज,लस्सन,कपड़े,सोना चंडी खुद खरीद कर लाना नहीं पढ़ते और आप गरीबों में और कार्यकर्ताओं में तो उठते बैठते ही नहीं हें इसलियें आपको महंगाई का दर्द का क्या पता जो इस तरह मानसिक रोगी की तरह बयानबाज़ी कर रहे हो जय हो भिया अगले चुनाव के बाद जब आप किसी ढाबे पर अपने हाल पर रोते हुए मिलेंगे तब आपसे बात करेंगे अभी तो आपके अंदर सत्ता का रावण जिंदा हे जिसे जनता का वोट राम बाण मारेगा तब कहीं रावण राज खत्म होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

तिरंगे की अस्मत क्यूँ करते हो तार तार ....

दोस्तों यह मेरा हिन्दुस्तान हे यहाँ लोग तिरंगे से प्यार तो करते हें तिरंगे का सम्मान तो करते हें लेकिन कुछ हे जो तिरंगे से जलते हें छिड़ते हें इसका उपहास मजाक उड़ाते हें तो कुछ हें के तिरंगे पर राजनीती करते हें और इस तिरंगे के नाम पर खुद की छवि खुद सो कोल्ड राष्ट्रीयता की बनाना चाहते हें सारा देश जानता हे के भाजपा और इसके पूर्व भाजपा की जननी पार्टियां विचारधाराएँ देश में क्या करते आये हें देश में गायें से लेकर बछड़े तक और पानी से लेकर मन्दिर मस्जिद इंसानियत तक को यह लोग राजनीति से जोड़ते आये हें इन ओगों को कभी महंगाई से जूझती पीड़ित जनता का दर्द नजर नहीं आया कभी इन लोगों ने इस देश की मुख्यधारा में खुद को शामिल नहीं किया खेर खुदा ने बिल्ली के बाग़ से इनके हक में छीका भी तोड़ा हे और और यह लोग १३ दिन १ महीने और पुरे पांच साल शासन में रहे हें इसके पहले भी गठ्बन्धन में सरकार में यह लोग रहे हें आज इस देश में नफरत के जो भी बीज हें वोह सब इस पार्टी से जुड़े लोगों ने ही इस देश में बिखेरे हें जो आतंकवाद के रूप में एक बढ़ा संकट कालीन पढ़ बन गया हे प्रज्ञा और असिमान्न्द जेसे लोग इसी का नतीजा हें खेर मेरे इस देश में जब जब इन लोगों की सरकार रही इन्हें ना तो मन्दिर याद आया ना ही इन्हें कश्मीर में ३७० हटाने का मामला याद आया इतना ही नहीं लाल चोक श्रीनगर में तिरंगे का मामला इन्हें खुद के सत्ता में रहते कभी याद नहीं आया तिरंगा क्या होता हे इन्हें पता नहीं लेकिन जब जब भी यह पार्टी सत्ता से अलग होती हे तो सत्ता तक पहुँचने के लियें इस पार्टी ने यह खतरनाक रास्ता अपना लिया हे पहले मुरली मनोहर जोशी जी थे जो लाल चोक पर तिरंगा फहराना चाहते थे फिर इनकी सरकार आ गयी तब इन्होने केंद्र में खुद की सरकार होते हुए क्यूँ लाल चोक पर जाकर झंडा नहीं फहराया इस सवाल का जवाब इनके पास नहीं हे लेकिन आब सत्ता से दूर रहें के बाद यह लोग मानसिक रोगी हो गये हें और अराजकता पैदा करने के लियें यह सब नाटक किया जा रहा हे दोस्तों अगर इन लोगों के सत्ता में रहते हुए लाल चोक पर तिरंगा नहीं फहराने का संकल्प था तो फिर सत्ता से दूर होने के बाद आखिर कोनसा बदला हे जो अब यह ऐसा करने के लियें प्रपंच रच रहे हे ।
यह तो बात हुई राजनीति की अब हम बात करते हें तिरंगे की तिरंगा जिसके लियें देश में हजारों लोगों ने अपनी आहुति हे खून बहाया हे उस तिरंगे को अगर यह लोग यूँ सडकों पर तमाशा बना कर अपमानित करते हें तो फिर देश में नेशनल ओंर एक्ट का क्या होगा देश की ध्वज संहिता का क्या होगा जिसमें तिरंगे को किस तरह से कहां इस्तेमाल किया जाएगा कानूनी तोर पर लिखा गया हे और इस का उल्न्न्घं करने पर ऐसे दोषी लोगों को ओद्न्दित करने का प्रावधान हे अब सरकार ऐसा तो नहीं करती फिर इन लोगों को तिरंगे की बात करने का हक खाना रह जाता हे जो लोग अपनी पार्टी कार्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराते जो लोग तिरंगे का स्वरूप बदल देने के लियें संकल्प बद्ध हें उनका तिरंगे से क्या लेना देना , लेकिन सरकार चाहे कोई सी भी हो सभी इस मामले में राजनीति कर रही हे अरे लाल चोक हमारे भारत देश में हे और वहां अगर सरकार खुद भी तिरंगा फहराए तो क्या बुराई हे लेकिन यह मेरा देश हें यहाँ तिरंगा हो चाहे कुछ भी हो दुरंगे लोग इस पर राजनीति कर इसके मां समान को कम करने के प्रयासों में जुटे हें जिन्हें जनता को एक जुट होकर ध्वज संहिता के उल्लंघन और नेशनल ओंर एक्ट के प्रावधानों के तहत अपराध करने पर जेल भिजवाना चाहिए जो लोग तिरंगे की बात करते हें उनसे अगर पूंछा जाए के तिरंगा कब अमल में आया इसका इतिहास किया हे तो बगलें झाँकने लगेंगे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

अख्तर खान उदयपुर प्रेस क्लब अध्यक्ष बने

दोस्तों राजस्थान में झीलों की नगरी उदयपुर में स्थापित लेक सिटी प्रेस क्लब के चुनाव में टाइम्स और इण्डिया के अख्तर खान उर्फ़ अक्कू को अध्यक्ष निर्वाचित किया गया हे उनके इस निर्वाचन पर उदयपुर सम्भाग के मीडिया क्षेत्र में ख़ुशी की लहर दोद गयी हे , क्षेत्रीय पत्रकारों का मानना हे के अख्तर खान के प्रेस क्लब अध्यक्ष निर्वाचन से पत्रकारिता क्षेत्र में नये आयाम स्थापित होंगे और उदयपुर क्षेत्र के पत्रकारों को प्रदेश , देश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गतिविधियों से जुड़ने का अवसर मिलेगा उनके कार्यकाल में उन्होंने पत्रकारों के लियें कल्याण , सेमीनारे सहित आधुनिक तकनीक सहित पत्रकारिता के गुर सिखाने के लियें अनेक कार्यशालाएं संचालित करने के लियें कार्यक्रम तयार किये हें , अख्तर खान टाइम्स ऑफ़ इंडिया के जांबाज़ निर्भीक निष्पक्ष तेज़ तर्रार पत्रकार हें और इस खान शेर दिल पत्रकार की पठाना शेरनी पत्रकार शबाना उनके हर कदम पर उनकी साथी हें । अख्तर खान के इस निर्वाचन पर उन्हें कोटा प्रेस क्लब के महासचिव हरिमोहन शर्मा और मुझ अख्तर खान अकेला कार्यकारिणी सदस्य द्वारा भी हार्दिक बधाई मुबारकबाद उनसे उम्मीद हे के वोह ब्लोगर इंटरनेट पत्रकारिता की राह में भी कुछ नया करने का प्रयास करेंगे और ब्लोगर जर्नलिस्ट लेखक एसोसिएश्न के नाम पर भी कुछ नया करेंगे क्योंकि अब पत्रकारिता जो चोथा स्तम्भ थी उसकी तर्ज़ पर ही ब्लोगिंग दुनिया की पत्रकारिता और लेखन चोथी दुनिया या चोथा स्तम्भ बन कर खुद बा खुद स्थापित हो गया हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

दाने दाने पर लिखा होता हे खाने वाले का नाम

दोस्तों कहावत हे के दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता हे और कुदरत इस कहावत को हर कदम पर सच करती आई हे इसी कहावत के तहत आज हम खुद भी मामू बन गये और हें एहसास हो गया के सच में खुदा की कुदरत हे और वोह जिसको जहां जो खिलाना चाहता हे उसे वही मिलता हे ।
हुआ क्या जनाब के आज रविवार अवकाश का दिन था हमारे एक दूर के रिश्तेदार हमसे कई दिनों से सपरिवार दावत करने की जिद पर अड़े हुए थे एक उनके ही पडोस का परिवार और हे जो भी परिचित हे और वोह भी काफी दिनों से द्दाव्त के पीछे पढ़ा हुआ था , आज सुबह जेसे ही फोन की घंटी बजी और अवकाश का होना कहकर हमारे एक रिश्तेदार ने दावत की कहा तो मेने फोन हमारी में साहब को पकड़ा दिया में साहब का हुआ के आज तो शाम को रिश्तेदार जी के यहाँ ही दावत खायेंगे खेर हमने प्लान बनाया गाड़ी उठायी बच्चों को साथ लिया पहले देनिक भास्कर के मेघा ट्रेड फेयर में टाइम पास किया फिर सी ऐ दी सर्किल पर लगे व्यापरिक मेला डेकोर मेले की ख़ाक छानी शाम हुई और हम एक दो जगह मिलते मिलाते रिश्तेदार जी के यहाँ खाने जा पहुंचे , रिश्तेदार जी के यहाँ मकान का काम चल रहा था हम थोड़ी देर बेठे फिर पडोस में रहने वाले दुसरे रिश्तेदार जी जो खुद भी कई बार दावत की कह चुके थे उनसे मिलने का मन हुआ और हमारी में साहब ने उनसे मिलें की इच्छा ज़ाहिर की तो हम भी उनके साथ मिलने चल दिए ।
कुदरत का करिश्मा कहिये के यह जनाब भी किसी की दावत कर बेठे थे और हम जब वहां गये तो वोह लोग भी मोजूद थे बस उन्होंने इधर उधर की बात के बाद कहा के आजकल तो पडोस में मकान का काम चल रहा हे तो धूल मिटटी की वजह से उनके यहाँ का खाना भी यहीं आ जाता हे और मिल बेठ कर साथ कहा लेते हें फिर उन्होंने दस्त्र खाना बिछाया और खाना परोस दिया हमसे खाने को कहा हमने देखा के जिन रिश्तेदार ने हमें दावत दी थी वोह आयीं और एक बर्तन में कुछ इन जनाब के यहाँ दे गयीं बस हम समझे के खाना यहीं खाना हे और हम भी खाने बेठ गये सपरिवार जब खाना खा रहे थे तो हमारी में साहब ने कहा के नीचे तो उन्होंने पुलाव भी बनाया हे कहा था वोह तो अभी तक आया नहीं पड़ोसी जी उठे और नीचे जाकर पुलाव भी ले आये थोड़ी देर में जब हम खाना खा चुके तब जिन रिश्तेदार जी ने हमें सपरिवार दावत दी थी वोह पडोस में उपर आये और हमें खाने के दस्तरखान पर लपकते देख चुपचाप बेठ गये थोड़ी देर में जब कोफ़ी आई तो उन्होंने कहा के में तो आपके लियें नीचे गर्म गर्म रोटी बनवा रहा था और दो तीन तरह के व्यंजन के नाम उन्होंने गिनाये के यह व्यंजन जो आपको पसंद हें वोह मेने बनवाये हें मेने जिन जनाब के यहाँ खाना कहा लिया था उनकी तरफ देखा तो राज़ खुला के यह जनाब तो सोचते थे के आज हम नके यहाँ खाना खाने पुराने वायदे के मुताबिक आ गये हे पर इसीलियें उनके घर में जो भी था जो उन्होंने दूसरों की दावत के लियें बनाया था हमें परोस दिया अब हमारे तो काटो तो खून नहीं लेकिन बाद में बस यही कहावत ने हमें सहारा दिया के दाने दाने वाले पर खाने वाले का नाम खुदा ही लिख देता हे फिर जब नीचे जहां दावत थी उन रिश्तेदार के यहाँ पहुंचे तो उनकी में साहब का पारा सातवें आसमां पर था कहती थी मेने यह और वोह सब चीजें मन पसंद बनाई हें दिन भर परेशान रही और खाना आपने दूसरी जगह खाकर ठीक नहीं किया यकीन मानिए भाई उनको भी फिर यही कहावत के दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता हे इसलियें हमारा रिज़क खुदा ने जहां उतरा था वहां हमने कहा लिए तो फिर रिश्तेदार जी की में साहब का परा तो थोड़ा ठंडा हुआ लेकिन उन्होंने खाना एक टिफिन हमारे साथ जरुर कर दिया अब हम सोचते हें के यह टिफिन में रखे खाने पर सुबह किसका नाम खुदा ने लिखा हे सुबह ही पता चल पायेगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

कोलेज की छत गिरी और एक छात्रा दफन

देश में निजी शिक्षा माफियाओं द्वारा जो गडबड घोटाला कर जनता को लुटा जा रहा हे और सरकार भी उसमें पूरी तरहसे ज़िम्मेदार हे इस सांठ गाँठ का ही नतीजा रहा के भरतपुर के खिर्निघात स्थित एक निजी कोलेज की बिल्डिंग की छत नीचे गिर गयी और एक बच्ची की म़ोत हो गयी जबकि कई अन्य घायल हो गये ।
देश में निजी कोलेज बनाने के लियें सरकार ने कानून बनाया हुआ हे कोलेज की इमारत केसे बनेगी उसमें कमरों की पेमाइश कितनीं होगी कितने कमरे होंगे और खेल का मैदान व् जनसुविधाएं कहां कहां रहेंगी इसका पूरा नियमों के तहत जांच पड़ताल होती हे और इसके अलावा सार्वजनिक निर्माण विभाग नगर पालिका से भी भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र लेना जरूरी होता हे लेकिन सब कुछ गांधी जी के हरे नोटों से स्वीक्रत हो जाता हे और नतीजा को भरतपुर में जो हादसा हुआ इस तरह से सामने आता हे । कल अपनी क्लास में भूगोल की पढाई करने वाली छात्रा को ख्वाबों में भी पता नहीं था के वोह घर से अपने माता पिता से वापस आने का वायदा कर के जायेगी और फिर कोलेज से घर कभी नहीं लोटेगी इस हादसे में ऐसा ही हुआ जर्जर इमारत की छत एक दम नीचे गिर गयी एक बच्ची की तो म़ोत हो गयी जबकि २७ अभी भी घायल हे अब अगर सरकारी मान्यता देने वालों और भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र दें वाले लोगों को ही शर्म नहीं आती तो फिर यह हादसेहादसे तो होते ही रहेंगे देखते हें इस मामले में अब प्रशासन और कोलेज प्रशासन किया करता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता

दोस्तों इस देश की बर्बादी का एक प्रमुख कारण इन दिनों महंगाई भ्रस्ताचार के बाद आरक्षण माना जा रहा हे , महंगाई भ्रस्ताचार का खात्मा या उस पर नियन्त्रण तो नेताओं के हाथ में हे लेकिन एक बहुत बढ़ी देश की बिमारी आरक्षण को तो जनता खुद खत्म करने का सरकार पर दबाव बनाती हे ।
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता

दोस्तों इस देश की बर्बादी का एक प्रमुख कारण इन दिनों महंगाई भ्रस्ताचार के बाद आरक्षण माना जा रहा हे , महंगाई भ्रस्ताचार का खात्मा या उस पर नियन्त्रण तो नेताओं के हाथ में हे लेकिन एक बहुत बढ़ी देश की बिमारी आरक्षण को तो जनता खुद खत्म करने का सरकार पर दबाव बनाती हे ।
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

वोह देखो इस दीवाने को ...

वोह देखो
उधर देखो
यूँ एक तक
नजर टिकाये
बेठे इस दीवाने को
दुनिया हे
के इसी दीवाने को
तक रही हे
लेकिन यह
बेबस उदास दीवाना
कहां किसे तक रहा हे
किसी को पता नहीं ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

ऐ शमा में भी तुझ सा हूँ

ऐ शमा
में जनता हूँ
यूँ जलने के
बाद
रात भर
जलते रहने की
ज़िम्मेदारी से
तू उदास हे
लेकिन
मुझे तो देख
मुझे भी तो
साथ तेरे
यूँ ही
अपने गमों में
तडपते हुए
रात गुजारना हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

काँटों से घिरे हे फूल


अकेलेपन में
अपनी
फूटी किस्मत मानकर
यूँ रोने वाले
उठ जरा
बाग़ में चल
खिलते हुए
फूलों को देख
चारों तरफ
काँटों से
घिरकर भी
केसे मुस्कुरा
रहे हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

आरक्षण आखिर खत्म क्यूँ नहीं किया जाता

दोस्तों इस देश की बर्बादी का एक प्रमुख कारण इन दिनों महंगाई भ्रस्ताचार के बाद आरक्षण माना जा रहा हे , महंगाई भ्रस्ताचार का खात्मा या उस पर नियन्त्रण तो नेताओं के हाथ में हे लेकिन एक बहुत बढ़ी देश की बिमारी आरक्षण को तो जनता खुद खत्म करने का सरकार पर दबाव बनाती हे ।
आज़ादी के बाद देश की उपजी स्थतियों में चाहे सरकार की आरक्षण देना मजबूरी रही हो लेकिन सरकार ने उस वक्त अनमन लगा लिया था के आरक्षण दस वर्षों से अधिक अगर दिया गया तो खतरनाक होगा और इसीलियें संविधान में आरक्षण मामले में केवल दस साल तक के आरक्षण का प्रावधान रखा गया था फिर कमजोर सरकारों ने जाती और समाज के डर से वोटों के लालच में आरक्षण को दस वर्ष के लियें बढ़ा दिया हद तो यह कर दी के आरक्षण के जो अद्यादेश देश में जारी किये गये उसमें धर्मनिरपेक्ष इस देश में विधान के विपरीत केवल जाती के आधार पर आरक्षण का आदेश जारी किया गया आदेश में कहा आज्ञा था के केवल हींदुओं को ही आरक्षण दिया जाएगा जबकि काका केलकर ने मांस का व्यवसाय करने वाले ,चमड़े का व्यवसाय करने वाले ,कपड़े बुनने का अव्यवसाय करने वालों सहित कई दस्तकारों को पिछड़ा मान कर आरक्षण देने की सिफारिश की थी जो इस व्यवसाय से जुड़े सभी जाती के दस्तकारों को दिया जाना थी लेकिन केंद्र की कोंग्रेस सरकार ने इसमें केवल हिन्दुओं के लियें शब्द जोड़ कर आरक्षण की सुविधा पिछड़े और मजलूम मुसलमानों से दूर कर दी नतीजा यह रहा के मांस के व्यापारी खटीकों को तो आरक्षण मिला लेकिन इसी व्यसाय से जुड़े कसाइयों को यह सुविधा नहीं दी गयी इतना ही नही कपड़ा बुनने वाले बुनकर समाज के कोलियों को तो आरक्षण दिया गया लेकिन मुलिम बुनकर अन्सारियों जुलाहों को इसका लाभ नहीं दिया ऐसी कई बेईमानियाँ इस सुविधा में जारी रखी गयीं लेकिन अब तो हर वर्ग हर जाती हर धर्म सभी आरक्षण के इस बहुत से चिंतित नजर आ रहे हें और घर घर की आवाज़ हे के आरक्षण का तो अब तमाशा बंद होना चाहिए लेकिन सियासत से जुड़े लोग जो इस देश से ज्यादा कुर्सी से जमे रहना बहतर समझते हें वोह आरक्षण के इस बहुत को आगे बढ़ा कर देश को घुन की तरह से बर्बाद करते रहे हें नतीजा सामजिक असंतुलन आज सबके समने हें स्वर्ण अब आरक्षित जातियों से निम्नतर और उनके गुलाम होते जा रहे हें और देश की जनता इस मुद्दे पर आज बगावत के कगार पर खड़ी हे , आज वर्ष २०११ में आरक्षण का संविधन के प्रावधानों के तहत दुबारा से दस वर्ष के लियें अध्य्देश को बढ़ाया जाना प्रस्तावित हे कोंग्रेस भाजपा या कोई भी पार्टी किसी भी स्तर पर वोटों के बेंक के कारण इस आरक्षण को वक्त की आवाज़ होने पर भी खत्म करने को तयार नहीं हे लेकिन सरकार को अब राष्ट्रहित में तो बली का बकरा तो बनना ही पढ़ेगा वरना आरक्षण का यह जहर देश में इतनी बढ़ी खायी पैदा कर देगा के देश में ग्रह युद्ध की स्थित हो जायेगी इसलियें दोस्तों अब वर्ष २०११ में आरक्षण से देश को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता हे के देश में आरक्षण मामले में अगर सरकार इसे दस वर्ष के लियें बढाना चाहटी हे तो कम से कम जनता से जुड़े इस मुद्दे पर अब सरकार केवल एक ही मुद्दे पर जनमत संग्रह चुनाव आयोग के जरिये करा ले और बहुमत के आधार पर अगर आरक्षण बढाने का फेसला हो तो आरक्षण बढ़ा दिया जाए और नहीं तो आरक्षण हमेशा के लियें खत्म कर आर्थिक आधार पर जरूरत मंद पिछड़ों को कोई न कोई सुविधा के लियें पैकेज योजना तय्यार की जाए और इसके लियें अब जनमत की आवाज़ बुल्लने करना जरूरी हे क्योंकि इस बार देश और देश की जनता खामोश रही और आरक्षण दस वर्षों के लिए अनावश्यक गेर्ज़रुरी होने पर भी बढ़ा दिया गया तो आने वाला कल देश के लियें अराजकता और गृह युद्ध का ही होगा । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

कोलेज की छत गिरी और एक छात्रा दफन

देश में निजी शिक्षा माफियाओं द्वारा जो गडबड घोटाला कर जनता को लुटा जा रहा हे और सरकार भी उसमें पूरी तरहसे ज़िम्मेदार हे इस सांठ गाँठ का ही नतीजा रहा के भरतपुर के खिर्निघात स्थित एक निजी कोलेज की बिल्डिंग की छत नीचे गिर गयी और एक बच्ची की म़ोत हो गयी जबकि कई अन्य घायल हो गये ।
देश में निजी कोलेज बनाने के लियें सरकार ने कानून बनाया हुआ हे कोलेज की इमारत केसे बनेगी उसमें कमरों की पेमाइश कितनीं होगी कितने कमरे होंगे और खेल का मैदान व् जनसुविधाएं कहां कहां रहेंगी इसका पूरा नियमों के तहत जांच पड़ताल होती हे और इसके अलावा सार्वजनिक निर्माण विभाग नगर पालिका से भी भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र लेना जरूरी होता हे लेकिन सब कुछ गांधी जी के हरे नोटों से स्वीक्रत हो जाता हे और नतीजा को भरतपुर में जो हादसा हुआ इस तरह से सामने आता हे । कल अपनी क्लास में भूगोल की पढाई करने वाली छात्रा को ख्वाबों में भी पता नहीं था के वोह घर से अपने माता पिता से वापस आने का वायदा कर के जायेगी और फिर कोलेज से घर कभी नहीं लोटेगी इस हादसे में ऐसा ही हुआ जर्जर इमारत की छत एक दम नीचे गिर गयी एक बच्ची की तो म़ोत हो गयी जबकि २७ अभी भी घायल हे अब अगर सरकारी मान्यता देने वालों और भवन सुरक्षा प्रमाण पत्र दें वाले लोगों को ही शर्म नहीं आती तो फिर यह हादसेहादसे तो होते ही रहेंगे देखते हें इस मामले में अब प्रशासन और कोलेज प्रशासन किया करता हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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