आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

15 फ़रवरी 2011

दो प्रासंगिक गीत हे महरबानी करके कुच्छ कहिये ..... जरुर ....

आदरणीय भाईयों आदाब ,
अभी पिछले दिनों कोटा में एक साहित्यिक सम्मेलन में शमशेर ऐतिहासिक साह्तिय्कार पर परिचर्चा थी इस दोरान कोटा के कवि ठाडा राही की कविता से कार्यकम का आगाज़ हुआ और होना भी था क्योंकि मिस्र की तख्ता पलट क्रांति के बाद कई वर्षों पहले लिखी कविता और गीत प्रासंगिक बन गये यकीन मानिए इस गीत को कोटा के प्रसिद्ध साहित्यकार और चित्रकार जनाब शरद तेलंग ने साज़ के साथ जो आवाज़ दी उस आवाज़ ने इन बेजान अल्फाजों को ज़िंदा कर दिया और भारतेंदु समिति कोटा के साहित्यिक होल में बेठे सभी आगंतुकों को देश के हालातों पर सोचने के लियें मजबूर कर दिया इसलियें यह दो गीत हू बहू पेश हें .................................. ।
जाग जाग री बस्ती
अब तो जाग जाग री बस्ती ।
जीवन महंगा हुआ यहाँ पर
म़ोत हुई हे सस्ती । ।
श्रमिक क्रषक तो खेत मिलों में
अपना खून बहाते ,
चंद लुटेरे जबरन सारा
माल हजम कर जाते ,
बंगलों में खुलकर चलती हे
आदमखोर परस्ती । ।
जाग जाग री बस्ती .......
गूंगे बहरे बन जन युग में
पशुओं जेसे जीते ,
आक्रोशों को दबा दबा कर
अपने आंसू पीते
संघर्षों से क्यूँ डरते हो
सहते फाका मस्ती । ।
जाग जाग री बस्ती ............ ।
काली पूंजी का हे संसद
शासन से गठबंधन ,
मेहनत कश जनता जिनको
लगती हे जानी दुश्मन
घूम रहे हें बेदर्दों से
खाकी दस्ते गश्ती । ।
जाग जाग री बस्ती .....
तुमें ही हिटलर नदिरशाहों को धूल चटाई
शोषण के पंजों से
आधी दुनिया मुक्त कराई
उठो मुर्दनी क्यूँ छाई हे
छोडो हिम्मत पस्ती । ।
जाग जाग री बस्ती ॥
टूट गये मस्तूल ढेर ये
फटे हुए पालों को
जिसके चारों और घिरा हे
घेरा घड़ियालों का
खुद पतवार सम्भालो राही
डूब रही हे कश्ती । ।
जाग जाग री बस्ती ...
जमना प्रसाद ठाडा राही ...
एक दुसरा गीत हे जो भी पेश हें ॥
यह वक्त की आवाज़ हे मिल के चलो
यह जिंदगी का राज़ हे मिलके चलो
मिलके चलो मिलके चलो मिलके चलो रे
चलो भाई .........
आओ दिल की रंजिशें मिटा के आ ,
आओ भेदभाव सब भुला के आ ,
देश से हो प्रेम जिनको जिंदगी से प्यार
कदम कदम से और दिल से दिल मिला के आ
यह भूख क्यूँ यह ज़ुल्म का हे जोर क्यूँ
यह जंग जंग जंग का हे शोर क्यूँ ?
हर इक नजर बुझी बुझी हर इक नजर उदास
बहुत फरेब खाए अब फरेब क्यूँ ।
जेसे सुर से सुर मिले हों राग के
जेसे शोले मिल के बढ़े आग के
जिस तरह चिराग से जले चिराग
वेसे बढो भेद अपना त्याग के । ।
दोस्तों यकीन मानिए यह दो गीत जिनके हर अलफ़ाज़ ने मेरे दिल की गहराइयों को छू लिया था और मेने उसी वक्त प्रण किया था के इन दो गीतों से में मेरे साथियों की मुलाक़ात जरुर कराउंगा लेकिन बस वक्त की तंगी इंटरनेट की खराबी ने बेवफा बना दिया ओर में तुरंत खुद से आपके लियें क्या वायदा निभा नहीं सका लेकिन देर से ही सही अब प्रस्तुत हे दोस्तों अगर यह गीत इनके बोल आपको वर्तमान परिस्थितयों में प्रासंगिक और जीवित होने का एहसास दिलाएं और आप के हाथ खुद बा खुद कोई टिप्पणी करने के लियें मजबूर हो जाएँ तो इसके पहले हकदार गीतकार साहित्यकार शरद तेलंग हें और फिर इसका श्रेय भाई दिनेश राय द्विवेदी अनवरत और तीसरा खम्बा के ब्लोगर भाई के साथ महेंद्र नेह जी हें , .... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

क्या देश में गहलोत सा हे कोई दुसरा मुख्यमंत्री

दोस्तों आप इतिहास छानिये भविष्य के गर्भ में जाइए और बताइए क्या देश में हमारे राजस्थान जेसा कोई मुख्यमंत्री हे नहीं ना अब में इन मुख्यमंत्री जी की लोकप्रियता का कारण बताता हूँ राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत जी खुद के पास तो कोई विभाग नहीं रखते हें खुद बिना विभाग के मुख्यमंत्री हें लेकिन कंट्रोल पूरा का पूरा हे छोटी सी भी फ़ाइल हो मुख्यमंत्री भवन से गुजरेगी , अल्पमत हो तो यह जादूगर हें सरकार फिर भी बहुमत साबित कर बना लेते हें असंतुष्ट हो तो उसे अपना बना लेते हें लेकिन कोई गद्दार हो तो फिर उसे सबक भी सिखा देते हें ।
ऐसे कामयाब मुख्यमंत्री जिन्होंने ने विरोधियों को नाकों चने चबा दिए हों कल उनके निवास पर जब जनसुवाई के दोरान जनसुनवाई के दोरान आया और उसने मुख्यमंत्री गहलोत के गिरेबान पर हाथ डालना चाहा एक बार नहीं दो बार नहीं कई बार उसने ऐसा किया लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत ने अपना राजधर्म निभाया उन्होंने इस विक्षिप्त युवक से खुद ने कारण जानना चाहा और एक सन्वेदनशील राजा की तरह उन्होंने अपना राजधर्म निभाते हुए इस विक्षिप्त युवक को उसके गाँव चंव्दिया नागोर भिजवाया ।
मुख्यमंत्री का करिश्मा उनकी संवेदनशीलता इस हद तक तो ठीक थी लेकिन कल तो उन्होंने सभी हदें पार कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया मुख्यमंत्री गहलोत इस विक्षिप्त युवक के ससुराल रह रहे पत्नी और बच्चों का हाल जानने पहुंच गये उन्होंने वहां इस युवक की पत्नी को पचास हजार की सहायता की घोषणा की और उसक युवक के पुत्र पुत्री मनीषा व् किरन की पढाई का खर्चा खुद उठाने की बात कही हमने किताबों में पढ़ा था किस्सों में सुना था के पहले राजा महाराजा रात को बहस बदल कर बाहर निकला करते थे और लोगों के दुःख दर्द छुप कर पता लगते थे फिर उन दुःख दर्द का समाधान उन तक पहुंचा कर राज धर्म अपनाते थे हमारे देश में किसी मुख्यमंत्री ने तो ऐसा नहीं किया था लेकिन जब हमारे राजस्थान के मुख्मंत्री अशोक गहलोत ने ऐसा कर दिखाया तो बस मुझ सहित राजस्थान की जनता का सीना गर्व से ऊँचा हो गया ...................... । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बारा रबीउल अव्वल

दोस्तों
आज
पैगम्बर मोहम्मद का जन्म दिन हे
इसी दिन उन्होंने
इस्लाम को मुकम्मल कर पर्दा लिया था
और खुदा के भेजे हुए संदेश कानून
प्यार दो प्यार लो , नेकियों से दूसरों को जीतो
पहले खुद गुड खाना छोडो फिर दुसरे को गुड नहीं खाने की शिक्षा दी
विनम्रता सहजता अपनापन विकास का पाठ पढ़ाया
दुश्मनों को पहले प्यार से समझाया फिर नहीं माने तो दोडा दोडा कर भगाया
सरकारी खजाने पर राजा का हक नहीं जनता का हक माना
समाजवाद का एक सिद्धांत दिया अमीरों से गरीबों में एक निश्चित हिस्सा दिलवाकर उन्हें बराबरी का दर्जा दिलवाया । गरीब,दलित,दीन हीन ,पीड़ित .महिला ,मुसाफिर,बीमारों को विशेष दर्जा देकर उनकी मदद का हुक्म नामा जारी किया अपने राजा अपने देश के प्रति सम्मान की शिक्षा दी एक जानवर को फरिश्ते जेसा इंसान केसे बनाया जा सकता हे उसकी सभी तरह की सीख हुजुर स्ल्ल्लाहे वसल्लम ने दी आज का दीन मानवता का दीन हे मानवाधिकारों की रक्षा का दीन हे खुदा के भेजे हुए पैगम्बर की यादगार का दीन हे इसलियें भाइयों सभी को मुबारकबाद ................... । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

साहित्य की दुश्मन हें सरकारें

दोस्तों अव्वल तो इन दिनों साहित का अर्थ ही बदल गया हे जो कल लुटेरे हुआ करते थे आज वोह साहित्य के दूकानदार बने बेठे हें पहले साहित्य लिखने समझने और सुनने के लियें बहुत बढा कलेजा चाहिए था में मेरी बात बताता हूँ प्रारम्भ काल यानि बचपन में में भी पत्रकारिता के साथ साथ लोटपोट,चम्पक,चंदामामा ,नन्दन और लोकल समाचारों में कहानी कविताएँ छपवाकर तीसमारखां समझता था .।
मेने उर्दू साहित्य में एम ऐ करने का मन बनाया मेरे और साथी भी थे हमारे गुरु भी विख्यात शायर थे एम ऐ के दोरान जब बढ़े शायर,उर्दू साहित्यकारों को पढ़ा तो लगा हम इनका मुकाबला कभी नहीं कर सकेंगे रदीफ़ काफिया,प्लाट किरदार और भी साहित्य शायरी की बहुत बहुत विधाओं को जान्ने का अवसर मिला उर्दू केसे पैदा हुई फिर उर्दू को केसे ज़िंदा रखने का प्रयास किया फिर अब उर्दू को केसे खत्म किया जा रहा हे पढ़ा फिर एल एल बी के बाद निठल्ले तो सोचा हिंदी साहित्य भी पढ़ डालें सो हिंदी में एम ऐ बात वही साहित्य लिखने के फार्मूले वही बस लेखक अलग तरीके अलग अलफ़ाज़ शब्द अलग विचार एक श्र्गार रस, वीर रस ,सभी रसों ने साहित्य को सरोबार कर दिया फिर मुझे पत्रकारिता क्षेत्र में पहले पत्रकार फिर सम्पादक का काम करने को अवसर मिला इस दोरान साहित्यकारों,रचनाकारों,कवि,शायरों और घसियारों से मिलने का मोका मिला कोटा मेले दशहरे में सिफारिशें केसे लगती थीं केफ भोपाली कोटा में क्या करते थे अपनी गजलों को केसे बेच कर जाते थे सब जानते हें ।
मुम्बई भी कई बार किसी सिलसिले में जाना हुआ वहां देखा एक लेखक कई दर्जन लोगों को नोकर रखता हे एक खानी की थीम देता हे सब अलग अलग लिखते हें और मुख्य लेखक उन्हें भुगतान करता हे उस कहानियों के समूह में से काट छांट कर अपनी कहानी बनाता हे फिल्म वालों को बेच देता हे खेर यह तो साहित्य विक्रेताओं की बात हुई लेकिन टी वी ने अब साहित्य को चाहे आम कर दिया हो लेकिन लिखा जाने वाला साहित्य कम पढ़ा जाने लगा और पढ़ा जाने वाला साहित्य सुना जाने लगा इस बिगड़ी और बदली परिस्थिति को बदलने कोई भी आगे नहीं आया जो जानते हें साहित्य किया हे जो लिखते हें कविता,गजल,कहानी,लेख रिपोर्ताज क्या हें उनका हाल आप और हम सब जानते हें आज की जनता का टेस्ट क्या हे आप और हम देखेंगे तो शर्म के मारे मर जायेंगे आज मुन्नी बदनाम हो गयी ,पप्पू पास हो गया , शीला जवान हो गयी,ऐ बी सी डी छोडो ,एक दो तीन ,मुन्ना बाही मोटर चली जेसे गाने हिट होते हें तो जनता की सोच पर अफ़सोस होता हे ना गीत हे न संगीत हे ना अलफ़ाज़ हें ना विचार हें ना फलसफा हे लेकिन गीत सुपर हिट हे कुल मिला कर अगर मेरे शब्दों में कहा जाए के इन दिनों साहित्य गरीब की जोरू सबकी भाभी बन गयी हे और साहित्य के साथ सरे राह बलात्कार ही बलात्कार हो रहा हे यही वजह हे के आज साहित्य तार तार हे जो साहित्यकार हें उनकी एक अलग कतार हे उनकी आँखों में आंसू चेहरे पर प्यास समाज में उपेक्षा टूटा हुआ घर फटे कपडे दो रोटी की आस उसका सरमाया हे जो दूकानदार हे उनके पास चमचमाती गाडिया हे बंगले हें कई प्रकाशन हे कविसम्मेलन के मुशायरे के साहित्यिक संस्थाओं के बुलावे हें लेकिन कुछ हे जो संघर्ष कर रहे हें और उम्मीद में हें के वोह इस जंग को जीत कर रहेंगे देश में चाहे कभी लिखा जाने वाला साहित्य हो चाहे बोला जाने वाला चाहे छापा जाने वाला साहित्य हो भी साहित्यकारों को कामयाबी का इन्तिज़ार हे आज अकादमियों में सरकार का कब्जा हे अकादमी में राजनीति हो रही हे हमारे अपने राजस्थान की बात करें यहाँ उर्दू,हिंदी,सिन्धी,पंजाबी साहित्य अकादमी में अध्यक्ष पद रिक्त पढ़े हें साहित्यिक गतिविधियाँ नोकर शाहों के हवाले हें कमोबेश देश और दुसरे राज्यों में साहियिक संस्थाओं का यही हाल हे जो निजी साहित्यिक संस्ताये हें वहां संथा अधिनियम की पालना नहीं हे सियासत ने वहां की आमदनी देख कर कब्जा कर लिया हे सदस्य गेर साहित्यकार बने हें और हालात यह हें के चुनाव में गेर साहित्यकार ही संस्थाओं के मालिक बने बेठे हें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...