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07 जुलाई 2011

अद्भुत चमत्कार...3 साल ऐसा करके पा सकते हैं, अपनी मौत पर काबू !!

 
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कुछ ऐसी योगिक क्रियाएं हैं जिनके लाभों को सुनकर एकाएक भरोसा नहीं होता। लेकिन जब हम इन क्रियाओं के पीडे छुपे अद्भुत ज्ञान और विज्ञान को जान लेते हैं तो ऐसी आश्वर्यजनक बातों को भी मानना पड़ता है। यहां हम एक ऐसी ही बहुत प्राचीन योग क्रिया- जालंधर बंध के विषय में बात कर रहे हैं।

बंध का सीधा सा मतलब है मजबूत जोड़। जिस जालंधर बध की बात हम कर रहे हैं उसे कहीं-कहीं चिन बंध भी कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि  इस बंध का अविष्कार प्रसिद्ध सिद्ध जालंधरिपाद नाथ ने किया था इसीलिए उनके नाम पर इसे जालंधर बंध कहते हैं।

योग से संबंधित प्रसिद्ध पुस्तकों की यह पुख्ता मान्यता है कि यह बंध मौत के जाल को भी काटने की ताकत रखता है। क्योंकि इससे दिमाग, दिल और मेरुदंड की नाडिय़ों में निरंतर रक्त संचार सुचारु रूप से संचालित होता रहता है, और जाहिर है कि रक्त संचरण की ऐसी व्यवस्था ही जीवित अवस्था के लिये सर्वाधिक अनिवार्य होती है।

जालंधर बंध की विधि

किसी भी सुखासन में बैठकर पूरक करके कुंभक करें और ठोड़ी को छाती के साथ दबाएं। इसे जालंधर बंध कहते हैं। सरल शब्दों में कहें तो कंठ को संकुचित करके हृदय में ठोड़ी को मजबूती के साथ लगाने का नाम जालंधर बंध है।

इसे करने के आश्वर्यजनक फायदे

1. योग शास्त्रों की निश्चित मान्यता है कि 3 वर्षों तक इस  बंध विधिवत अभ्यास मौत के जाल को भी काटने की ताकत

   रखता है।

2. इड़ा और पिंगला नाड़ी बंद होकर प्राण-अपान सुषुन्मा नाड़ी में प्रविष्ट होता है। इस कारण मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में

   सक्रियता बढ़ती है।

3. इससे गर्दन की मासपेशियों में रक्त का संचार होता है, जिससे उनमें दृढ़ता आती है तथा ताउम्र दर्द या जकडऩ की समस्या



    दूर रहती है।

4. कंठ की रुकावट समाप्त होती है तथा व्यक्ति की बोली में गमक, आकर्षण और प्रभावशीलता बड़ती है।

5. मेरुदंड में खिंचाव होने से उसमें रक्त संचार तेजी से बढ़ता है, जिससे शरीर और मन दोनों को पूर्ण स्वास्थ और तेजस्विता

   प्राप्त होती है।

6. इसके नियमित अभ्यास से सभी रोग दूर होते हैं और व्यक्ति सदा स्वस्थ बना रहता है।



प्रमुख सावाधानियां

-किसी अनुभवी जानकार योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही किसी योगिक क्रिया की शुरुआत करना चाहिये।

-शुरू में स्वाभाविक श्वास ग्रहण करके जालंधर बंध लगाना चाहिए।

-यदि गले में किसी प्रकार की तकलीफ हो तो न लगाएं। शक्ति से बाहर श्वास ग्रहण करके जालंधर न लगाएं।

कैसे पता चलता है यदि कहीं छुपा हो खजाना?

कैसे पता चलता है यदि कहीं छुपा हो खजाना?

 
 
 
खजाना शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में हीरे-मोती, सोना-चांदी, धन-दौलत के ढेर का चित्र उभर आता है। शास्त्रों में खजानों के संबंध में कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। आधुनिक युग में बढ़ती आवश्यकताओं के चलते काफी लोगों को कड़ी मेहनत के बाद भी पर्याप्त धन प्राप्त नहीं हो पाता। ऐसे में यदि उस व्यक्ति को खजाना मिल जाए वह पलभर में मालामाल हो सकता है।

ऐसे अनेक किस्से-कहानियां अक्सर सुने या सुनाए जाते हैं जिनमें खजाना के संबंध में जानकारियां होती हैं। अपार धन संपदा कहीं भी दबी हो सकती है और इसे खोजने के प्रयास कई लोगों द्वारा किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि खजाना हर किसी व्यक्ति को नहीं मिल सकता। जिसकी किस्मत में अचानक अपार धन प्राप्त करने के योग हैं वहीं गुप्त खजाना प्राप्त कर सकता है।

शास्त्रों के अनुसार गुप्त खजाना कहां छिपा होता है? यह मालूम करने के कई उपाय बताए गए हैं। जिस भी स्थान पर अपार धन, सोना-चांदी, हीरे-मोती छिपे या दबे होते हैं वहां सफेद नाग या कोई बहुत पुराना नाग अवश्य दिखाई देता है। इसके अलावा कहीं-कहीं नागों के झूंड भी ऐसे गुप्त खजानों की रक्षा करते हैं। ऐसे नागों का दिखाई देना ही इस बात की ओर इशारा करता है कि उस क्षेत्र में कहीं खजाना दबा हो सकता है। ऐसा खजाना मिलता उसे ही है जिसकी किस्मत में उसे प्राप्त करने का योग है। अन्य लोगों को इस संबंध में कुछ भी हाथ नहीं लगता

2जी घोटाला: इन 3 अफसरों के चलते गई मारन की कुर्सी!

2जी घोटाला: इन 3 अफसरों के चलते गई मारन की कुर्सी!

 
 
नई दिल्ली. टेलीकॉम कंपनी के तीन अफसरों के सीबीआई को दिए बयान पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन के ताबूत में अंतिम कील साबित हुए। एक रिटायर्ड और दो वर्तमान अफसरों ने पिछले सप्ताह सीबीआई को दिए बयान में एयरसेल के पूर्व डायरेक्टर सी शिवशंकर के बयान की पुष्टि की कि मारन ने कंपनी को परेशान किया और जानबूझकर उन्हें करीब दो साल तक स्पेक्ट्रम आवंटन और अतिरिक्त लायसेंस नहीं दिए जबकि इन अफसरों ने उन्हें ऐसा करने से रोका भी था।
मारन यूपीए के पहले कार्यकाल में २००४ से २००७ तक दूरसंचार मंत्री थे। ये तीनों अफसर मारन के कार्यकाल में विभाग में उच्च पदों पर थे।
इन अफसरों के बयानों के आधार पर ही सीबीआई प्राथमिक जांच रिपोर्ट को एफआईआर में तब्दील करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जनवरी में सीबीआई को २जी स्पेक्ट्रम आवंटन की जांच का दायरा बढ़ाने को कहा था और २००१ से २००६ के बीच स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर हुई विभागीय गतिविधियों की भी जांच के आदेश दिए थे। अब सीबीआई जल्दी ही मारन से पूछताछ करेगी।
सीबीआई के वरिष्ठ अफसरों ने संकेत दिए हैं कि वे मारन को नोटिस भेज रहे हैं, जिसमें उनसे पूछताछ के लिए अगले सप्ताह उपलब्ध रहने को कहा जाएगा। अब मारन मंत्री नहीं हैं इसलिए इसके लिए सरकार से इजाजत लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सीबीआई के सूत्रों के अनुसार मारन के खिलाफ १ फरवरी २००४ से ३० मार्च २००५ के बीच विभाग के सचिव रहे नृपेंद्र मिश्रा, जॉइंट वायरलेस एडवाइजर रामजी सिंह कुशवाहा और और उस समय सीनियर डिप्टी डायरेक्टर जनरल रहे पीके मित्तल के बयान काफी अहम साबित हुए हैं।
मारन ने स्पेक्ट्रम पर कैबिनेट को भी अंधेरे में रखा
इसी बीच खुलासा हुआ है कि दयानिधि मारन ने अपने कार्यकाल में दूरसंचार के लिए बनी कैबिनेट उप समिति को भी स्पेक्ट्रम की कीमतों के मुद्दे पर अंधेरे में रखा। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने २जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति को बताया है कि मारन ने  दूरसंचार पर बने मंत्री समूह में भी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होने दी। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उस समय इस पर आपत्ति उठाते हुए कहा था कि पहले इस मुद्दे को मंत्रियों के समूह के सामने रखा जाए और फिर कैबिनेट से पारित कराया जाए। लेकिन मारन इसके लिए कतई तैयार नहीं हुए। मारन का तर्क था कि स्पेक्ट्रम की कीमत निर्धारित करना विभाग का काम है और कैबिनेट का इसमें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
कमेटी के चेयरमैन पीसी चाको ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस मुद्दे पर दोनों विभागों के बीच पत्र व्यवहार भी हुआ, लेकिन मारन अपनी जिद पर अड़े रहे।

‘चंदा’ की रवानगी एस्कॉर्ट ने रोकी

 
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कोटा. जयपुर चिड़ियाघर से कोटा में आने वाली ‘चंदा’ की रवानगी एस्कॉर्ट (वाहन व संसाधन) सुविधा के अभाव में अटकी हुई है। कोटा चिड़ियाघर से रीना शेरनी को जयपुर भेजने की एवज में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, नई दिल्ली से दो माह पहले यहां चंदा बाघिन लाने की परमिशन मिल चुकी है।

जयपुर चिड़ियाघर भी बाघिन यहां भेजने को तैयार हैं। चंदा को कोटा लाने के लिए वन विभाग (वाइल्ड लाइफ) एक कैंटर वाहन उपलब्ध करवा रहा है। इस एक वाहन से उसे यहां लाना डॉक्टर उचित नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि कैंटर गाड़ी में मेडिकल स्टॉफ के अलावा केयर टेकर, केटल गार्ड, ट्रांक्यूलाइजिंग गन, रस्सी, पानी व भोजन सुविधा व पूरा स्टॉफ आना मुश्किल काम है।

जयपुर से बाघिन लाने के लिए दो माह पहले ही स्वीकृति मिल चुकी है। एस्कॉर्ट के लिए वाहन सुविधा नहीं मिल रही है। इस सुविधा के लिए वाइल्ड लाइफ विभाग को लिखा है। - डॉ. अखिलेश पांडे, चिकित्सक चिड़ियाघर

जयपुर चिड़ियाघर से यहां बाघिन लाने के लिए एस्कॉर्ट सुविधा नहीं मिल पा रही है। डॉक्टर को कैंटर से उसे यहां लाने के लिए निर्देश दिए है। शीघ्र ही चंदा को यहां लाने के प्रयास होंगे। - मदनलाल कुलदीप, रेंजर चिड़ियाघर कोटा

तुमसे मिलन की आस में ...

तुम ही बताओं
आखिर कब तक
हाँ
आखिर कब तक
जियूं में
तुमसे मिलन की आस में ...
हां तुम ही बताओं
आखिर
तुम्हारी चाहत के लियें
में
कब तक सहूँ
इस दोज़क से
तड़पती जिंदगी को ..
हां तुम ही बताओं
इतने सालों से
जो तड़प तड़प कर
जी रहा हूँ
में सिर्फ और सिर्फ
तुमसे मिलन की आस में
अगर आखरी वक्त में भी
तुम न मिले
तो फिर क्या होगा .............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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