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10 जुलाई 2011

रेलवे की सुस्ती हादसों का कारण



रेलवे की सुस्ती हादसों का कारण


india news

नई दिल्ली। रविवार को हुई कालका रेल दुर्घटना कोई पहला हादसा नहीं है। हर साल कई ट्रेन हादसे हो रहे हैं। कुछ बड़े, तो कुछ छोटे। प्रत्यक्ष रूप से तो कई हादसों का कारण तकनीकी या मानवीय भूल नजर आता है, मगर सच कुछ और ही है। हादसों के लिए सीधे तौर पर रेलवे की सुस्त चाल ही जिम्मेदार है।
 इन हादसों को टालने के लिए तैयार किए गए एंटी कोलीजन डिवाइस (एसीडी) को आज भी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। पूर्व रेलमंत्री ममता बनर्जी ने संसद में कई बार एसीडी को सभी व्यस्ततम मार्गो पर जल्द अमल में लाए जाने का वादा भी किया, मगर यह सिस्टम आज भी कई प्रमुख ट्रेनों में लगने का इंतजार कर रहा है।
रेलवे बोर्ड के सदस्य यातायात रह चुके वी.एन. माथुर ने विशेष बातचीत में बताया कि अब समय आ गया है जब रेलवे यातायात सिस्टम में अपग्रेडेशन की प्रक्रिया तेजी से पूरी करे। एसीडी का सभी व्यस्ततम मार्गाें पर प्रमुखता से उपयोग किया जाना चाहिए। इसके साथ सिगनल व ट्रेक को अपग्रेड करने एवं मानव रहित कॉसिंग की समस्या समाप्त करने के अलावा चालकों व सहयोगियों को दूरभाष उपकरण से लैस किया जाना चाहिए।
एसीडी की धीमी प्रक्रिया
उन्होंने कहा कि ये उपाय बरसों से लम्बित हैं, इस दिशा में काम हो रहे हैं लेकिन जिस तेजी की अपेक्षा है, वैसा नहीं हो रहा है। कोंकण व नार्थ इस्ट फ्रंटियर में एसीडी सिस्टम लगाया जा चुका है। 
वायुसेना का राहत अभियान
इधर,वायुसेना की प्रवक्ता स्क्वाड्रन लीडर प्रिया जोशी ने बताया कि पीडितों को राहत पहुंचाने के लिए दो चेतक हेलीकॉप्टर, दो एम आई-17, दो एवरो और एक आई एल-76 विमान को राहत कार्य में जुटाया गया है। रविवार को एवरो विमान से छह सौ किलो ग्राम दवाइयां और राहत सामग्री तथा रेलवे अधिकारियों के दल भेजे गए।
एंटी कोलीजन डिवाइस: महत्वपूर्ण रक्षक
2000 करोड़ रूपए खर्च किए जाएंगे सभी ट्रेनों में एसीडी लगाने में
4000 यात्री व माल ट्रेनों में लगना है एसीडी
क्या है एसीडी?
यह एक तरह का अलार्म है, जो ड्राइवर के केविन में लगेगा। एक ही ट्रैक पर दूसरी ट्रेन होने या ट्रेनों के बेहद करीब से गुजरने पर यह चेतावनी के रूप में बजता है।
ऎसे करेगा काम
यह ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) पर आधारित है। यात्री ट्रेनों के एक ही ट्रैक पर होने की सूचना यह एक किमी पहले, जबकि माल गाडियों के एक ट्रैक पर होने की दो किमी पहले ही दे देगा।
ड्राइवर को संकेत
गाडियां एक टै्रक पर करीब होने पर यह ड्राइवर को संकेत देगा कि इमरजेंसी ब्रेक लगाओ। पास-पास बने ट्रैकों पर दूसरी ट्रेन आने पर भी यह जानकारी उपलब्ध कराएगा।
हाल के ट्रेन हादसे
20 सितंबर 2010 मप्र के शिवपुरी में ग्वालियर इंटरसिटी मालगाड़ी से टकराई, 33 की मौत, 160 घायल।
19 जुलाई 2010 पश्चिम बंगाल में उत्तर बंग एक्सप्रेस और वनांचल एक्सप्रेस की टक्कर, 62 की मौत, 150 से ज्यादा घायल।
28 मई 2010 पश्चिम बंगाल में संदिग्ध नक्सली हमले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतरी, 170 लोगों की मौत।
16 जनवरी 2010 उप्र में टुंडला के नजदीक श्रमशक्ति को कालिंदी एक्सप्रेस ने पीछे से टक्कर मारी, 3 की मौत, 14 घायल।

नदी में 3 घंटे फंसे रहे 14 जने

नदी में 3 घंटे फंसे रहे 14 जने


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भीलवाड़ा/सलावटिया। मेनाल के विख्यात झरने के मुहाने पर 'अपनों' को फंसा देखकर किनारे खड़े परिजनों की सांसें अटक गई। पानी का बहाव तेज था और चौदह जिंदगियां दांव पर लगी थीं। चारों ओर पानी और उसमें घिरे परिवार के सदस्यों की जिंदगी सांसत में आने से महिलाओं और बच्चों की रूलाई से खुशी का माहौल सन्नाटे में बदल गया।
 पानी में फंसे पर्यटकों को बचाने में जुटी पुलिस को सोच समझकर और संभल कर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना पड़ा। तीन घण्टे परिजन अपनों के इंतजार में टकटकी लगाए बैठे-बैठे पुलिस की ओर से बचाव कार्य को देखते रहे। जान में जान तब आई जब पानी में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
पेड़ पर चढ़ बचाई जान
पानी का बहाव चट्टान से काफी ऊपर तक हो गया। चट्टान पर खड़े सात लोगों को  पेड़ पर चढ़कर जान बचानी पड़ी। सात अन्य एक चट्टान को पकड़ कर बैठ गए। पानी का बहाव  बढ़ता जा रहा था। इससे चट्टान पर बैठे लोगों की सांसें ऊंची-नीची होती रही। पलभर में पिकनिक का आनंद धूमिल हो गया। 
चारों ओर चीख-पुकार मच गई। बहाव तेज होने से कोई बचाव के लिए आगे नहीं आ पा रहा था। पर्यटकों के फंसने की जानकारी मिलते ही  बेगूं तहसीलदार मदनसिंह, पुलिस उप अधीक्षक पूनमाराम, थानाधिकारी विक्रमसिंह सहित कई अघिकारी मौके पर पहुंचे व लोगों की सहायता से राहत कार्य शुरू किया।
 डूबते को रस्सी का सहारा
बचाव दल ने रस्सी के भारी पत्थर बांध कर बहाव में डाला ताकि पानी में अटके लोगों तक पहुंचा जा सके। चित्तौड़गढ़ से भी दो दमकल मेनाल भेजे गए। मौके पर बड़ी संख्या में लोग जमा थे तथा जाप्ता तैनात किया गया। पानी में फंसे लोगों को एक-एक कर बाहर निकालने के दौरान अंधेरा होता जा रहा था।
ऎसे में देरी होने पर लाइट का बंदोबस्त करने में भी पुलिसकर्मी जुट गए। बचाव कार्य के दौरान एक व्यक्ति हिम्मत कर रस्सा पेड़ से बांध कर बहाव में उतर गया और पेड़ पर चढ़े युवकों तक पहुंच गया। पेड़ पर रस्सा बांध कर ब्यावर के शब्बीर अली व मुस्तफा अली को निकाल लिया गया। धीरे-धीरे एक के बाद एक रात्रि साढ़े सात बजे तक सभी को निकल लिया गया।
मेनाल में बहार
मेनाल में बहाव में फंसे पर्यटक ब्यावर व चित्तौड़गढ़ के थे। ब्यावर से परिवार के 12-13 जने मेनाल आए थे। इनमें से सात जने बहाव में फंसने से पेड़ पर चढ़े। ये युवक ब्यावर में चौहान कॉलोनी के रहने वाले बताए गए। शेष 7 जने चित्तौड़गढ़ के दाऊदी बोहरा समाज के थे। एक तरफ रविवार की छुट्टी का दिन और ऊपर मानसून की मेहरबानी के चलते दोपहर तक  चौतरफा  पर्यटक दिखाई दे रहे थे। शाम साढे चार  बजे मेनाली नदी में अचानक पानी का बहाव तेज हो गया। महिलाओं और बच्चों को निकाला गया, लेकिन बचाव के दौरान चौदह जने पानी के बीच फंस गए।

बढ़ते महिला अपराधों के खिलाफ बेशर्मी मोर्चे का 'स्लट वॉक'


 
 
 
 
दिल्ली। समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध और शोषण के विरूद्ध आयोजित प्रदर्शन स्लट वॉक शाम 4 बजे जंतर-मंतर पर शुरू हुआ। लगभग 2 घण्टे चलने के बाद यह प्रदर्शन शांतिपूर्वक समाप्त हो गया। जैसा कि इस मोर्चे में पश्चिमी देशों की तर्ज पर नग्न होकर प्रदर्शन करने की बात की जा रही थी, वैसा इस प्रदर्शन में कुछ भी नहीं हुआ। 

बेशर्मी मोर्चा की ओर से आयोजित किए गए इस 'स्लट वॉक' में महिलाओं के अधिकारों के हनन को रोकने के लिए आवाज उठाई गई। इस मोर्चे की आयोजनकर्ता और बेशर्मी मोर्चा की प्रमुख उमंग सबरवाल कई युवक-युवतियों के साथ जंतर मंतर पर इकट्ठे हुई। साथ ही कई एनजीओ कार्यकर्ता भी मोर्चे में मौजूद रहे।
मोर्चे में महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कारों और यौन शोषण को रोकने को लिए कड़े कानून बनाने संबंधी मसले पर चर्चा की गई। बेशर्मी मोर्चा की मुख्य कार्यकर्ता उमंग सबरवाल ने भास्कर के पत्रकार को बताया कि हम केंद्र सरकार से दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे अपराधों को रोकने की गुहार कर रहे हैं। इसी मांग के तहत हम सभी यहां इकट्ठे हुए हैं।
प्रदर्शन के दौरान किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए भारी पुलिस बल द्वारा जंतर मंतर इलाके को घेरा गया था। दिल्ली पुलिस ने मोर्चा के आयोजकों को सुरक्षा कारणों से स्लट वॉक को जल्द से जल्द खत्म करने की बात कही थी। दिल्ली पुलिस का कहना है कि वो इस मोर्चे में अधिक देर तक सुरक्षा उपलब्ध नहीं करा सकती।

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने धमकी देकर इस मोर्चे के प्रदर्शन को रोकने को कहा था। हांलांकि बाद में विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता से बात करने पर उन्होंने कहा कि अगर इस मोर्चे के कार्यकर्ता किसी भी तरह की नग्नता का प्रदर्शन करेंगे तो वीएचपी के कार्यकर्ता इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे, लेकिन अगर वो शांतिपूर्वक महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं तो हम उनके साथ हैं।

भास्कर पत्रकार शेखर घोष ने इस संबंध में मॉडल प्रिया गुप्ता से बात की तो उन्होंने कहा कि भारत महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है। यहां हर दूसरे मिनट महिलाओं के साथ यौन शोषण या ईव टीसिंग की घटना होती है और दिल्ली इस मामले में अव्वल होता जा रहा है।
गौरतलब है कि कल ही दिए एक टिप्पणी में दिल्ली के पुलिस आयुक्त बृजेश कुमार गुप्ता  ने कहा कि दिल्ली में लड़कियों को रात होने से पहले ही घर आ जाना चाहिए, ताकि उनके प्रति अपराध कम हों। पुलिस कमिश्नर के इस तरह के बयान से साफ है कि पुलिस महिलाओं की सुरक्षा के मामले में काफी सुस्त है और गंभीर नहीं है।

गौरतलब है कि बेशर्मी मोर्चा द्वारा आज नग्न प्रदर्शन करने की बात कही गई थी, जिसके कारण यह स्लट वॉक पिछले कई दिनों से सोशल नेटवर्किंग साइटों और मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल प्रदर्शन शांतिपूर्वक समाप्त हो चुका है। बेशर्म मोर्चा ने अपनी अगली नीति के बारे में बताया कि वे अगले कुछ दिनों में दिल्ली के अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को जागरूक करेंगे।

न्यूरोसर्जरी में आई एडवांस टेक्नोलॉजी

न्यूरोसर्जरी में आई एडवांस टेक्नोलॉजी

 
 
 
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कोटा. अब न्यूरोसर्जरी में एडवांस टेक्नोलॉजी आ गई है। एंडोस्कोप सर्जरी से एक छोटे से चीरे से बड़ा ऑपरेशन सहजता से हो सकेगा। एंडोस्कोप से कमर डिस्क की सर्जरी संभव हो चुकी है। न्यूरोसर्जरी में न्यू एंड एडवांस टेक्नोलॉजी आ चुकी है। यह कहना था देशभर से आए न्यूरो फिजिशियन, सर्जन एवं एनेस्थेटिक का। उन्होंने बताया कि जहां पहले लोग ब्रेन व डिस्क संबंधित बीमारियों को लेकर परेशान होते रहते थे। कोमा में जाने के बाद इंसान के बचने की संभावना कम मानते थे, लेकिन अब कोमा के बाद इंसान को बचाया जा सकता है।

डेढ़ सेमी चीरे से इलाज: नई दिल्ली के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. राजेश आचार्य ने बताया कि एंडोस्कोप सर्जरी में छोटे से चीरे से बड़ा ऑपरेशन संभव हो गया है। डिस्क सर्जरी में डेढ़ इंच के चीरे से मरीज का इलाज हो सकता हैं। इसमें एक सप्ताह के स्थान पर 24 घंटे में यह होने लगा है। इस तकनीक में पहले ब्लड की जरूरत पड़ती थी। अब ऐसा नहीं होता है। लाइफ स्टाइल बदलने से ब्रेन की बीमारी बढ़ी है। हैल्थ के प्रति अवेयर नहीं होना व फास्ट फूड, पीजा का इस्तेमाल अधिक होना भी एक वजह है।

अब छह घंटे के बाद पैरालिसिस रोगी ठीक: न्यूरो इंटरवेंशनिस्ट डॉ. विपुल गुप्ता ने कहा कि अब छह घंटे बाद पैरालिसिस रोगी को ठीक किया जा सकता है। वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार की जरूरत हैं। न्यूरो एनेस्थेटिक डॉ. मेरी अब्राहम ने कहा कि यदि आईसीयू में केयर नहीं हो तो न्यूरोसर्जन की मेहनत बेकार चल जाती है। अब यह टेक्नोलॉजी आ गई है कि आईसीयू के मॉनिटर में खून की स्थिति, ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड तथा ब्रेन संबंधित जानकारी मिल जाती है। डॉ. प्रकाश ने कहा कि पहले शुरुआती दौर में ब्रेन संबंधित बीमारी का इलाज सामान्य होता था। पहले के मुकाबले आज न्यूरोसर्जन की तादाद भी बढ़ी हैं।

ऑपरेशन का लाइव प्रसारण: आईएमए व सुधा अस्पताल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में डॉ. कृष्णहरि शर्मा एवं डॉ. राजेश आचार्य ने दो ऑपरेशन एवं उसके प्रोसीजर्स कर दूरबीन द्वारा रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन, मस्तिष्क के ऑपरेशन, दूरबीन द्वारा नाक के रास्ते से पिट्यूटरी ग्रंथी को निकालने की सर्जरी का लाइव प्रसारण बताया गया। साथ ही ऑपरेशन्स का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा अस्पताल के कॉन्फ्रेंस हाल में मौजूदा डॉक्टर्स ने इस देखा। सेमिनार में बताया गया कि भारत में डॉक्टर का हाथ इतना मजबूत है कि उनकी देश-विदेश में पहचान बन गई है। अब मेडिकल टूरिज्म में यहां पर विश्व के कई मरीज यहां ऑपरेशन, इलाज के लिए आ रहे हैं। इससे मेडिकल टूरिज्म विकसित होने लगा है।

पौधों को दरकार सुरक्षा की भी

पौधों को दरकार सुरक्षा की भी

 

 
 
 
कोटा. विश्व जनसंख्या दिवस पर सोमवार सुबह 11 बजकर 11 मिनट व 11 सैकंड पर प्रदेश में रोपे जाने वाले 11 लाख पौधों में 58 हजार पौधे कोटा जिले के भी होंगे। पिछले साल भी शिक्षा विभाग और विभिन्न संस्थाओं ने स्कूलों में करीब एक लाख से ज्यादा पौधे रोपे थे।

भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि अब उनमें से दस फीसदी भी जीवित नहीं हैं। वजह साफ है, ज्यादातर स्कूलों में चारदीवारी नहीं है और आवारा मवेशी खुलेआम चरते रहते हैं। कहीं बच्चों के पीने के लिए ही पानी की व्यवस्था नहीं है तो पौधों को भला कौन पिलाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना इंतजाम किए आखिर हर साल इतने पौधों की आहुति फिर क्यों दे दी जाती है। स्टूडेंट्स व शहरवासियों को प्रकृति प्रेम संदेश व अधिकाधिक पौधे लगाने की मुहिम हर साल होती है। पौधे लगाने के बाद स्थिति यह होती है कि उनकी प्रॉपर देखभाल व मॉनिटरिंग की भी उतनी ही जरूरत होती है।

आयोजन यहां: स्काउट गाइड एसोसिएशन की ओर से संभाग में सोमवार को पौधरोपण किया जाएगा। मंडल सचिव यज्ञ दत्त हाड़ा ने बताया कि कोटा में मुख्य आयोजन बारां रोड स्थित सैकर्ड स्कूल/ कॉलेज नया नोहरा में एवं मित्तल इंटरनेशनल स्कूल नया नोहरा में आयोजन किया जाएगा। आयोजन में संभागीय आयुक्त प्रीतमसिंह, कलेक्टर जीएल गुप्ता, विधायक भवानीसिंह राजावत, ओम बिरला, करणसिंह, चंद्रकांता मेघवाल, महापौर डॉ. रत्ना जैन, स्काउट-गाइड, स्टूडेंट्स सहित प्रबुद्ध नागरिक मौजूद रहेंगे। सीओ स्काउट प्रदीप चित्तौड़ा ने बताया कि शहर के स्कूलों में भी पौधरोपण कार्यक्रम होगा। अभियान के तहत पंचायत समिति सुल्तानपुर के राउप्रा स्कूल सुहाणा में जिला प्रमुख विद्याशंकर नंदवाना पौधरोपण करेंगे।

रोपने की ही नहीं सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लें: पर्यावरणविदों का कहना है कि पौधरोपण की मुहिम तेज हुई है, यह अच्छी बात है लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि हम उतने ही पौधे लगाएं जिनकी सुरक्षा कर सकते हों और जिन्हें पाल-पोषकर बड़ा कर सकते हों। दूसरा यह कि हम जितने पौधे लगाएं उनकी सेवा का संकल्प भी लें। विद्यार्थियों और शिक्षकों को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।

सिर साटै रूंख बचे तो भी सस्तो जाण: झालावाड़ जिले के टांडी सोहनपुरा गांव के लोग यहां जंगल से पेड़ की टहनी तक नहीं काटने देते हैं। यहां एक पेड़ की टहनी काटने का मतलब इंसान के हाथ-पैर काटने जैसा समझा जाता है। यहां पर स्व. बापू भील ने पेड़ों की रक्षा का संकल्प लिया था। जिसे बाद में ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से बरकरार रखा है। पहाड़ी पर बने जंगल में पेड़ की टहनी काटने पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध है। यदि कोई टहनी भी काट देता है उस पर ग्रामीणों की पंचायत में जुर्माना वसूला जाता है। यहां के लोग भी सिर साटै रूंख बचे तो भी सस्तो जाण यानी सिर कटवाकर भी पेड़ को बचाया जा सके तो सस्ता समझो, इस बात का अक्सर हवाला देते हैं।

पिछले साल रोपे थे एक लाख पौधे: पिछले साल सघन वृक्षारोपण अभियान के तहत अलग-अलग विभागों की ओर से एक लाख पौधे रोपे गए थे। अब इन पौधों की स्थिति यह है कि कहीं पर तो ट्री गार्ड नहीं है और कहीं लगाने के बाद सुध तक नहीं ली और लोग भूल गए। वन विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो पिछले साल लगाए पौधों में दस फीसदी से ज्यादा जीवित नहीं बचे हैं

कोंग्रेस का टार्गेट २०१३ अभियान शांति धारीवाल ने कोटा से शुरू किया

हाडोती का एक ही लाल , शांति कुमार धारीवाल जिंदाबाद , अशोक गहलोत जिंदाबाद , सोनिया गाँधी जिंदाबाद , राहुल गाँधी जिंदाबाद के बीच आज कोटा जिला कोंग्रेस के ऐतिहासिक कार्यभार ग्रहण समारोह में राजस्थान सरकार के काबिना मंत्री शांति कुमार धारीवाल ने वर्ष २०१३ में फिर से सत्ता में आने के लियें टार्गेट २०१३ का शुभारम्भ कर कार्यकर्ताओं इस कार्य के लियें जी जान से जुट जाने का आह्वान किया .......राजस्थान के काबिना मंत्री और कोटा जिला कोंग्रेस के तात्कालिक दिग्गज अध्यक्ष आज जिला कोंग्रेस कार्यालय में नव निर्वाचित अध्यक्ष पंडित गोविन्द शर्मा के कार्यभार ग्रहण समारोह में बोल रहे थे ..शांति धारीवाल जी ने कहा के विकास और भ्रष्टाचार मुक्त शासन केवल कोंग्रेस ही दे सकती है उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा के राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा सिंधिया ने कोटा में आकर आनन फानन में २४ कार्यों का शिलान्यास किया था आज उन कामों में से केवल दो ही काम हो पाए हैं ..जबकि जिन कार्यों का शिलान्यास एक ही दिन में किया गया था उनकी प्रशासनिक,तकनिकी और वित्तीय स्वीक्रति भी नहीं थी उन्होंने कहा के कोटा नगर विकास न्यास ने भाजपा शासन में सात सो करोड़ रूपये की ज़मीं बेचीं लेकिन उस रूपये का क्या करा आज तक कोई हिसाब नहीं है ..धारीवाल ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा के कोंग्रेस की सोनिया जी किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में थोड़ी भी खबर छपने पर उसे मुख्यमंत्री पद से हटा देती है ..मंत्री या कोई भी कोंग्रेस का सांसद भ्रष्टाचार में डूबा हो तो उसे जेल भिजवाने में भी पीछे नहीं रहती है लेकिन भाजपा जो पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबी है उसके मध्य प्रदेश और कर्नाटक के मुख्यमंत्री के खिलाफ भार्स्ताचार के प्रमाणित अपराध होने के बाद भी उन्हें नहीं हटाया गया है ..धारीवाल ने कहा के भ्रष्टाचारियों को बचाने के बाद भी भाजपा भ्रष्टाचार की बात करती है ..धारीवाल ने कहा के कोटा में ८५० करोड़ रूपये के कार्य हो रहे हैं तो इससे भाजपा को जलन हो रही है और वोह कोटा विकास नहीं देखना चाहती केवल रोड़े अटकाना चाहती है ..धारीवाल ने कहा के ऐसे में अब कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारी आ जाती है के वोह कोंग्रेस के विकास कार्य जनता के सामने गिनाएं और बूथ स्तर पर कार्यकर्ता तय्यार कर कोंग्रेस को मजबूत करें उन्होंने कोंग्रेस के नव निर्वाचित अध्यक्ष को चेताया के उन्हें बनवाने में मेरा कोई हाथ नहीं है कोंग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष , सी पि जोशी और अशोक जी गहलोत की कोशिश है और उन्हें उनके प्रति कोंग्रेस के प्रति कार्यकर्ताओं के प्रति जवाबदार बनना होगा .धारीवाल ने कार्यकर्ताओं से कहा के अगर कार्यकर्ताओं को फिर से मान सम्मान प्रतिष्ठा चाहिए तो वोह आज से ही कोंग्रेस की स्थिति मजबूत करने में जुट जाए और भाजपा की काली करतूतों को जनता के सामने लायें ...........धारीवाल ने कोंग्रेस के पदाधिकारियों से समाज  सेवा कार्य करने के लियें कहा .....आज कोटा जिला कोंग्रेस में पहली बार ऐतिहासिक कार्यक्रम में हजारों कार्यकर्ता उपस्थित थे और कोटा कोंग्रेस कार्यालय कार्यकर्ताओं की भीड़ के आगे छोटा पढ़ गया था .कार्यक्रम में प्रदेश कोंग्रेस प्रवक्ता पंकज मेहता , नव निर्वाचित शहर कोंग्रेस अध्यक्ष गोविन्द जी शर्मा , देहात कोंग्रेस अध्यक्ष श्रीमती रुकमनी शर्मा ,  आनंद पाटनी  ,शिवकांत नंदवाना ,,ललित जी चित्तोड़ा..डोक्टर ज़फर ,नरेश जी विजय वर्गीय सहित पूर्व कोंग्रेस अध्यक्ष और कई पदाधिकारी मोजूद थे ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

पर्वत की उंचाई देख कर ना डरें.............

एक शीर्ष
ऊँचे पर्वत
की बुलंदी को देखकर
तुम यूँ ना घबराओं
कोशिश करो
चलते चलो
एवरेस्ट पर भी चढो
और फिर सोचो
एवरेस्ट की
जो ऊंचाई
कभी तुम्हे
डराया करती थी
आज वाही ऊंचाई
एवरेस्ट को जीत लेने के बाद
तुम्हारे कदमों में है ..............
बस बढ़ते चलो बढ़ते चलो
जीना और जितना
खुद बा खुद आ जाएगा .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

खजाने खरबों के, लेकिन कानून एक भी नहीं!

खजाने खरबों के, लेकिन कानून एक भी नहीं!

 
तिरुवनंतपुरम तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिले खजाने की कीमत पांच लाख करोड़ रुपए तक हो सकती है। आजादी के वक्त देश की चार बड़ी रियासतों के खजानों की मौजूदा कीमत भी चार लाख करोड़ के आसपास आंकी गई है। लेकिन कहीं ये सरकार के कब्जे में हैं, कहीं अदालतों में मामले उलझे हैं, कहीं मंदिरों की मिल्कियत है और कहीं राजघरानों के पास। इस दौलत का क्या हो, इसके लिए एक नीति-नियम नहीं है।
खजाने के खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस कृष्णा अय्यर का कहना था कि एक लाख करोड़ रुपए में तीन साल तक देश की रोजगार गारंटी योजना का काम चल जाएगा। दैनिक भास्कर ने देश के जाने-माने इतिहासकारों और मुद्राविज्ञानियों के सामने यही सवाल रखा- इस दौलत का क्या किया जाए? पद्मनाभ स्वामी मंदिर के मामले में इंडियन कौंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (आईसीएचआर) के पूर्व चेयरमैन एमजीएस नारायणन कहते हैं कि खजाना मंदिर की ही मिल्कियत है। सरकार अकेले कोई एक तरफा फैसला नहीं ले सकती। वैसे भी मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और कोर्ट की पहल से ही खजाना सामने आया। ऐसे में खजाने के भविष्य का निर्णय सुप्रीम कोर्ट को ही करना होगा।
सरकार के कब्जे में पहले ही कई राजघरानों के खजाने हैं। मसलन हैदराबाद के निजाम और जम्मू-कश्मीर की पूर्व रियासत का खजाना। जम्मू के खजाने की मौजूदा कीमत करीब 20 हजार करोड़ रुपए आंकी गई है। कर्णसिंह का मालिकाना हक का दावा खारिज होने के बाद यह खजाना जम्मू-कश्मीर सरकार के कब्जे में गया, लेकिन आज इसके बारे में कम लोगों को ही पता है। जम्मू यूनिवर्सिटी में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्रसिंह कहते हैं, ‘खजाने को श्रीनगर शिफ्ट किया गया तो इसकी कई चीजें गायब हुईं। लेकिन सरकार ने चुप्पी साधे रखी।’
यही हाल निजाम के खजाने का है, जिसे 1967 में सरकार ने 240 करोड़ रुपए में ले लिया था। निजाम ट्रस्ट के ट्रस्टी शाहिद हुसैन बताते हैं कि उस वक्त इस खजाने के जानकारों ने असली कीमत ढाई से सात हजार करोड़ आंकी थी। अकेला जैकब हीरा ही चार सौ करोड़ कीमत का था। हम नहीं जानते इसके बाद सरकार ने क्या किया? जबकि इन ऐतिहासिक विरासतों के प्रति पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए। बेहतर हो सरकार जनहित के कामों में इनका बेहतर इस्तेमाल करे। कम से कम पता तो हो कि सरकार के पास प्लान क्या है?
इन अनुभवों से जाहिर है कि सिर्फ सरकारों के भरोसे कुछ नहीं छोड़ा जा सकता। कई किताबों के लेखक प्रसिद्ध इतिहासविद् देवेंद्र हांडा साफ कहते हैं कि कहने को सरकारें जनहित के ही काम कर रही हैं, लेकिन जनता को ही भरोसा नहीं है कि वे खजानों के प्रति पूरी ईमानदारी से काम करेंगी। होना यह चाहिए कि खजानों की देखरेख कर रहे मंदिरों के मौजूदा ट्रस्ट ही स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और रोजगार की योजनाओं पर अमल करें। वे पारदर्शी होकर सरकारों से बेहतर कर सकते हैं। वैसे भी खजानों की दौलत मूलत: जनता की ही है, जिसे राज परिवारों ने मंदिरों के हवाले की या अपने कब्जे में। ऐसे सबूत हैं कि सूखा, अकाल, महामारी, बाढ़ जैसी आपात स्थितियों में पहले मंदिर आम लोगों की मदद करते थे।
इतिहासकारों का मत यह भी है कि सभी खजानों को एक नीति-नियम के दायरे में लाया जाए। एकेडमी ऑफ इंडियन न्यूमिस्मेटिक्स के निदेशक डॉ. एसके भट्ट इसके लिए एक राष्ट्रीय आयोग की जरूरत बताते हुए कहते हैं, ‘तीन साल के लिए इस आयोग में ईमानदार उद्योगपतियों, अर्थशास्त्रियों, कानूनविदें, श्रमिक संगठनों और सिविल सोसायटी के नुमाइंदों को लिया जाए। सबसे पहले मालदार मंदिरों और राजघरानों के खजानों की एक सूची बननी चाहिए ताकि देश को पता चले कि तहखानों या गोपनीय तिजोरियों में पड़ी कितनी दौलत देश के पास है। फिर इसके इस्तेमाल की बहस होनी चाहिए।’ डॉ. भट्ट का मत है कि राष्ट्रीय विकास में इसका उपयोग हो क्योंकि यह जनता की ही संपत्ति है। राजाओं को टैक्स वही चुकाती थी, जिसका इस्तेमाल उन्होंने मंदिर-मकबरे बनाने में किया।
पद्मनाभस्वामी मंदिर के अचानक खुले खजाने ने बताया कि एक अकेले मंदिर में जमा दौलत कई रा%यों के बजट से भी %यादा है। सरकार की कई अहम योजनाओं के सालाना बजट से भी %यादा। ऐसे में दूसरे मंदिरों, महलों और किलों में छिपी दौलत का आंकड़ा क्या होगा? जैसे जयपुर के जयगढ़ किले का रहस्यमय खजाना, जिसे खोजने की तमाम कोशिशें सरकार के स्तर पर 1975-76 में की जा चुकी हैं। इतिहासकारों का कहना है कि आजादी के बाद कई रियासतें अपनी जमापूंजी दबाकर बैठ गई थीं। राजनीतिक रूप से ताकतवर राजघरानों ने भी अपने खजाने बचा लिए।
मशहूर इतिहासविद् इरफान हबीब का नजरिया अलग है। वे कहते हैं, ‘ये खजाने सिर्फ संपत्ति भर नहीं हैं। इसे आज की करेंसी में नहीं तौलना चाहिए। यह सदियों पुरानी ऐतिहासिक विरासत है। यही इसका असली मूल्य है। इसे संग्रहालयों में सहेजकर इसका प्रचार करना चाहिए ताकि दुनिया देखे कि भारत किस तरह सोने की चिड़िया था।’
खजाने सिर्फ मंदिरों और राजघरानों तक ही सीमित नहीं हैं। अक्सर पुरातात्विक खुदाइयों में और अनायास भी प्राचीन महत्व की कीमती वस्तुएं उजागर होती रही हैं। जैसे दिल्ली में आईआईटी के भवन निर्माण के वक्त अलाउद्दीन खिलजी की टकसाल और हजारों सिक्के मिले थे। ये आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के संग्रह में मौजूद हैं।
1966 में उत्तरी अफगानिस्तान के बगलान नाम के स्थान पर करीब 20 हजार सोने की मूर्तियों का खजाना हाथ लगा था। यह खोज दुनिया भर में चर्चित रही। यह पता नहीं चल सका कि किसने इन मूर्तियांे को दबाकर छोड़ दिया। 1946 राजस्थान में बयाना के पास गुप्त काल के सोने के 21 सौ से %यादा सिक्कों का जखीरा एक खेत में मिला था। ये सिक्के मटकों में भरकर रखे गए थे। भरतपुर रियासत ने इन्हें अपने कब्जे में लेकर सुरक्षित रखा।
हरियाणा के सुघ गांव में पंजाब विवि की एक खोज में अशोक के समय बना स्तूप और सोने-चांदी के सिक्के हाथ लगे थे। पंजाब में देवगढ़ में गांव वालों को नींव खोदते वक्त चांदी के एक हजार सिक्के मिले। इस प्रोजेक्ट से जुड़े रहे डॉ. हांडा कहते हैं कि हमारी कमी यह है कि हमें अपनी विरासत की मार्केटिंग नहीं आती। ये भले ही छोटे खजाने हैं लेकिन इनका ऐतिहासिक मूल्य कहीं %यादा है। सभी तरह की इन पुरानी संपदाओं के लिए एक नीति-नियम बनने चाहिए।
मंदिर में कैसे जमा हुई दौलत?
पद्मनाभस्वामी मंदिर में जमा अकूत दौलत हिरण्यगर्भम् और तुलाभारम् अनुष्ठानों के समय जमा होती थी। इन अनुष्ठानों का जिक्र त्रावणकोर रियासत में 1878 में दीवान रहे एस. मेनन ने अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ त्रावणकोर: फ्राम अर्ली टाइम्स’ में विस्तार से किया है। चंडीगढ़ के इतिहासविद् देवेंद्र हांडा के संग्रह में मौजूद इस किताब में लिखा है कि यह मंदिर सन् 825 का है। 1025 में इसको चोल राजाओं के तमिल स्थापत्य के अनुसार नया रूप दिया गया।
1753 में हिरण्यगर्भम् अनुष्ठान मंे राजा ने चार सौ किलो सोने के सिक्के मंदिर को दान किए। हर चार-पांच साल में यह अनुष्ठान होता था। 1811-14 में दीवान जॉन मुनरो थे। उन्होंने मंदिर के रखरखाव के लिए कई बाग-बगीचे और कृषि भूमि दान की। 1829 से 1878 के बीच कई तुलाभारम् अनुष्ठान हुए, जिसमें राजा को सोने के तराजू पर सोने के सिक्कों व हीरे-जवाहरात से तौला जाता था और सारी बेशकीमती सामग्री मंदिर के खजाने को सौंप दी जाती थी।
ऐसे ही एक समारोह में 93 स्वर्ण मूर्तियां और जेवरों से भरे 120 सोने के कलश अर्पित किए गए थे। 1750 में राजा मात्र्तण्ड वर्मा ने अपना रा%य भगवान पद्मनाभस्वामी को समर्पित कर दिया। यहां से एक नया अनुष्ठान त्रिपदी दानम की परंपरा शुरू हुई।
जयगढ़ के खजाने का रहस्य कायम है?
पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने की तरह जयपुर के जयगढ़ किले का खजाना आज तक रहस्य बना हुआ है। सवाई जयसिंह द्वितीय के विश्वासपात्र मंत्री राव कृपाराम ने 285 साल पहले खजाने का विवरण दर्ज किया था। आजादी के समय तक यह उन्हीं के परिजनों के पास सुरक्षित था।
केंद्र सरकार ने 1975-76 में एक साल तक किले को कब्जे में लेकर खजाने की खोज की जबर्दस्त मुहिम छेड़ी थी। ‘जयगढ़ : दॅ इन्विंसीबल फोर्ट ऑव आमेर’ के लेखक और इतिहासकार प्रो. आरएस खंगारोत बताते हैं, खुदाई में दिन-रात जुटे रहे 500 मजदूर जुटे थे।अगर कुछ मिला होता तो रहस्य नहीं रहता।
अफवाहों को बल इसलिए मिला क्योंकि किले से सेना की वापसी के वक्त भारीभरकम वाहनों को निकलने के लिए ट्रेफिक रोका गया था। खजाना आज भी रहस्य है।
खुलासा हुआ कहां से?
खंगारोत के अनुसार राव कृपाराम के परिजनों ने पहले तो महाराज भवानीसिंह से सौदेबाजी की कोशिशें की। लेकिन जब वे तैयार नहीं हुए तो राव कृपाराम के परिजनों ने बीजक गुप्तचर विभाग के तत्कालीन उपनिदेशक एस. वंचिनाथ को सौंप दिया। परीक्षण में यह 250 साल पुराना पाया गया।
और उन्होंने ही केंद्र सरकार को जयगढ़ के इस गुप्त खजाने की जानकारी दी। इसके बाद ही केंद्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट को दॅ ट्रेजर हंट नाम दिया। खुदाई 52 फुट नीचे तक की गई थी। भारतीय सेना के 37 इंजीनियरों के साथ 156 सैनिकों की टीम भी इस काम में लगी।
जयगढ़ की पूर्व निदेशक चंद्रमणिसिंहकहती हैं, खुदाई में कुछ नहीं मिला था। यह इलाका काफी बड़ा था, जहां पूरे समय कडा़ पहरा रहता था। यहां कई पुरानी फौलादी सेफ भी मिली थीं। मेरा अनुमान है यहां खजाना तो था, लेकिन 1947 से पहले तक। जब रियासत टूटने लगीं तो इसे मोती डूंगरी में शिफ्ट कर दिया गया होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो मोती डूंगरी में खजाना मिलता कैसे?
खजाने आए कहां से?
राजघरानों की आमदनी का मुख्य स्त्रोत था खेती से मिलने वाला लगान। इसके अलावा कीमती खदानों, परिवहन और व्यापार पर भी कई तरह के टैक्स थे। मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर बिजौलिया रियासत मंे 79 प्रकार के टैक्स थे। निजाम हैदराबाद के पास गोलकुंडा की मशहूर हीरा खदानें थीं। युद्ध में पराजित रियासतों से हासिल लूट की संपत्ति भी खजानों में जमा होती रहती थी।
कितना धन है..
खजाने में एक टन सोने के सिक्के। इनमें कुछ नेपोलियन बोनापार्ट के दौर के हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने के 17 किलो सोने के सिक्के। इसके अलावा सोने के मुकुट, 18 फुट लंबा ढाई किलो वजनी सोने का नेकलेस, अंगूठी, हजारों आभूषण, हीरे, सोने की मूर्तियां और अन्य कीमती रत्न हैं।
1000 करोड़ रुपए
तिरुपति बालाजी मंदिर का डिपाजिट। सालाना
आय-600 करोड़ रुपए।
427 करोड़ रुपए सांईं बाबा मंदिर का निवेश। औसत आमदनी 165 करोड़ रुपए। गहने-जवाहरात 32.24 करोड़।
धन इतना कि देश की हालत सुधर जाए
शिक्षा पर 31 हजार करोड़, स्वास्थ्य पर 27 हजार करोड़ और रोजगार गारंटी योजना पर 45 हजार करोड़ रुपए का सालाना सरकारी बजट। मंदिरों और राजघरानों के खजानों की दौलत के आगे यह कुछ भी नहीं है। आजादी के पहले की सिर्फ चार बड़ी रियासतों के खजानों की ही मौजूदा कीमत का आकलन चार लाख करोड़ रुपए है।

एक बकरा जो नोट खाता था ...............

जी हाँ दोस्तों आप माने या ना माने लेकिन यह सच है कोटा में एक पालतू बकरा ऐसा था जो नोट खाता था .....एक बकरा जो कई बार अपने धनि की घर में घुस कर इधर उधर रखे नोट ढूंढ़ कर खाने लगा तब धनि परेशान हो गया और इस बकरे को मजबूत रस्सी से खूंटी गाढ़ कर बांध दिया ...लेकिन कल रात को इस बकरे ने नोटों की तलाश में रस्सी तुड़ाई और फिर निकल पढ़ा नोटों की तलाश में ..छत पर बने एक कमरे में इस बकरे को कांच की एक बरनी में नोट रखे दिखाई दिए बस बकरे ने उछाल लगाई और कांच की बरनी को नीचे गिरा दिया ...कांच की बरनी थी इसलियें टूट गयी और बरनी में रखे पचास हजार रूपये यह बकरा खा गया सुबह जब घरवाले उठे तो बकरा गायब था तलाश किया तो बकरा छत पर था ..बरनी टूटी हुई थी और नोट गायब धनि बकरे को देख कर माजरा समझ गए और उन्होंने समझ लिया के बकरे मियाँ नोट खा गए है ..बस फिर क्या था धनि ने इस बकरे को पकड़ा और सीधे कसाई के यहाँ ले गए ..कसाई को सारा किस्सा सुनाया बकरे को ओने पोने इस शर्त पर बेचा गया के बकरा उनके सामने काट कर देखेंगे अगर पेट में रूपये मिले तो वोह वापस देना होंगे ..बकरे को काटा गया उसके पेट से हजार हजार के १२ नोट सलामत निकले ..चार नोट थोड़े गले हुए थे ...दो नोट खत्म हो गए थे बाक़ी नोटों का पता नहीं चला ..खेर इस नोट खाने वाले बकरे को अपनी इस आदत के खातिर जान गंवाना पढ़ी और मालिक को नुकसान उठाना पढ़ा फिर भी मालिक जो रूपये मिल गए उन्हें पाकर ही बहुत खुश था .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

अल्फ्लाह यानि दी वेलफेयर सभी का कल्याण कोटा में अल्फ्लाह का है बस यही काम

दोस्तों कोई भी धर्म ग्रन्थ हो ..गीता हो चाहे कुरान हो .गुरुवाणी हो चाहे बाइबिल हो मानव सेवा और शेक्षणिक जाग्रति कार्यक्रम का मुख्य संदेश सभी धर्म ग्रंथों में है सेवा करोगे तो मेवा मिलेगा ..दूसरों का कल्याण करोगे तो खुद का कल्याण होगा इसी धर्म कल्याण सोच पर कोटा की एक समाज सेवी संस्था पिछले पन्द्रह वर्षों से निर्बाध रूप से अपने इन सेवा कार्यों में लग कर कोटा की गली गली और चप्पे चप्पे पर जाकर अपनी खिदमत अंजाम दे रही है ........अल्फ्लाह यानी दी वेलफेयर ..सभी का कल्याण होता है और इसी विस्तृत सोच के साथ पिछले पन्द्रह वर्षों से कोटा के नोजवानों ने जब एक जुट होकर सेवा कार्य करना शुरू किये तो पूरा शहर उनके साथ जुड़ता चला गया ..चिकित्सा ..शिक्षा सहित सभी मामलों में सभी जाती सभी वर्ग के लोगों को जागरूक कर सुविधाएँ उपलब्ध कराने के काम में जुटी इस संस्था के नोजवान भाई रफ़ीक बेलियम अभी अध्यक्ष है ,,जबकि डोक्टर युनुस अंसारी जावेद इकबाल , आशु गंभीर सहित कई लोग इस सेवा कार्यों में जुटे हैं ..आज इस संस्था को पन्द्रह साला स्थापना दिवस था जिसमे शहर काजी अनवर अहमद ..महापोर रत्ना जेन .पूर्व महापोर श्रीमती सुमन श्रंग्गी ..डोक्टर चन्द्र सेन गोड़..डोक्टर आर सी साहनी ..डोक्टर लक्ष्मी कान्त दाधीच , बूंदी नगर पालिका चेयरमेन सखावत अली . चिल्ड्रन इस्कूल के शफी खान ..कोंग्रेस के नामिमुद्दीन गुड्डू सहित कोटा के ज़िम्मेदार लोग मोजूद थे ..खुदा करे अल्फ्लाह के सेवा कार्यों में खुदा उन्हें तोफिक दे हिम्मत दे और उनके काम में दिन दुनी रात चोगुनी तरक्की मिलती रहे ..आमीन ..सुम्मा आमीन .............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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