आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

28 जुलाई 2011

आदेश का पालन करे,नहीं तो अवमानना कार्रवाई




jaipur
जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने सख्त रूख दिखाते हुए राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि पदोन्नति में री-गेनिंग मामले में तीन सप्ताह में अदालती आदेश का पालन करे, अन्यथा अवमानना कार्रवाई के लिए तैयार रहे। न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई 23 अगस्त तक टाल दी है। पदोन्नति में री-गेनिंग में उलटफेर से प्रदेश के सात लाख अघिकारी-कर्मचारियों में से करीब दो लाख अघिकारी-कर्मचारियों के प्रभावित होने की सम्भावना है।


मुख्य न्यायाधीश अरूण मिश्र व न्यायाधीश बेला एम. त्रिवेदी की खण्डपीठ ने गुरूवार को बजरंग लाल शर्मा व सात अन्य की अवमानना याचिका पर यह सख्त रूख दिखाया। हाईकोर्ट ने पांच फरवरी 10 को री-गेनिंग मामले में दिसम्बर 02 व अपे्रल 08 में जारी सरकारी अघिसूचनाओं व उसके आदेशों को निरस्त कर दिया था। इसकी पालना नहीं होने पर दायर अवमानना याचिका पर कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले नवम्बर में रोक लगा दी थी।     

  हाल में 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना कार्रवाई पर रोक हटा दी।    इसके बाद गुरूवार को पहली बार सुनवाई के लिए लगे इस मामले में महाघिवक्ता जी.एस. बापना ने अदालती आदेश के पालन के लिए एक माह का समय मांगा, इस पर अपीलार्थी पक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई। न्यायालय ने अपीलार्थी पक्ष से मौखिक रूप से कहा कि आप अघिकारियों को जेल भिजवाना चाहते हैं, लेकिन पहले आदेश का पालन कराया जाएगा।

हरकत में नहीं आया कार्मिक विभाग

पदोन्नति में री-गेनिंग के मामले में हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है, लेकिन कार्मिक विभाग ने इसके लिए फिलहाल कोई तैयारी नहींं की है। विभाग के पास यह जानकारी भी नहीं है कि किन्हें पदोन्नति मिलेगी और किन्हें पदावनति। उधर, मिशन-72 ने हाईकोर्ट के निर्देश का स्वागत किया है वहीं सचिवालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रामस्वरूप विश्नोई ने भी फैसले का स्वागत करते हुए सरकार से इसे तुरंत लागू करने की मांग की।

5 फरवरी 10 - हाईकोर्ट ने पदोन्नति में री-गेनिंग रोकने के लिए राज्य सरकार की ओर से दिसम्बर 2002 व अपे्रल 08 में जारी अघिसूचनाओं व उसके तहत जारी वरिष्ठता सूचियों सहित सभी आदेशों को निरस्त कर दिया।
1 नवम्बर 10 - आदेश की पालना नहीं होने पर हाईकोर्ट से मुख्य सचिव व प्रमुख कार्मिक सचिव को अवमानना नोटिस
16 नवम्बर 10- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका की सुनवाई पर रोक लगाई
7 दिसम्बर 10- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पांच फरवरी 10 के आदेश को सही ठहराया
31 मार्च 11- राज्य सरकार ने भटनागर कमेटी का गठन किया

कैसे उपजा विवाद

राज्य सरकार ने एक अप्रेल 97 को अनारक्षित वर्ग को पदोन्नति में री-गेनिंग का लाभ दिया, लेकिन 28 दिसम्बर 02 को री-गेनिंग पर भविष्य के लिए रोक लगा दी और 25 अपे्रल 08 को दिसम्बर 02 से मिल चुके री-गेनिंग के लाभ को भी वापस ले लिया।

 आंघियां रोकनी है तो आदेश का पालन करो

अपीलार्थी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के 20 जुलाई के आदेश की जानकारी देने का प्रयास किया, इस पर न्यायालय ने कहा कि फैसला देखने की जरूरत नहीं है यहां के अखबार बडे तेज हैं, उनसे पूरी जानकारी मिल गई है। कोर्ट ने सरकारी पक्ष से कहा कि हमें सरकार की समस्याओं की जानकारी है। यह फैसला आंधी लाने वाला है लेकिन इसकी पालना से ही आंघियां रूकेंगी और आदेश का पालन तो करना ही होगा।

जरा हंस भी लो यार .....

गब्बर- ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर... ठाकुर - ले ले मेरे हाथ ले ले, बसंती को भी ले जा, जा...और वीरू भी ले जा...दुर्गा माता बन जा तू ! गब्बर- सॉरी यार, तू तो जज्बाती हो गया यार.. रहने दे..मत दे।

सुहाग उजड़ने की आशंका से कांप जाती है पत्नी

| Email 


 
 
जोधपुर। कश्मीर में आतंकियों से मुकाबला करते शहीद हुए नायब सूबेदार लालसिंह के बारे में परिजनों ने उनकी पत्नी ओमकंवर से अभी सच्चाई छुपा रखी है, लेकिन सुहाग उजड़ने की आशंका से ओमकंवर रह-रह कर कांप जाती हैं। पति से मोबाइल फोन पर बात कराने की जिद करते हुए वे बार-बार फफक पड़ती हैं। वे किशोर बाग स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। परिवार के सदस्य उन्हें यही विश्वास दिला रहे हैं कि लालसिंह गोली लगने से घायल हो गए और उनका ऑपरेशन हुआ है। इसके बावजूद ओमकंवर के चेहरे पर चिंता की लकीरें उनके अंतद्र्वंद्व की पीड़ा स्पष्ट बयान करती हैं।
इधर लालसिंह की मां पवन कंवर अपने बेटे को गोली लगने की खबर सुनने के बाद से दुखी हैं, लेकिन फिर भी एक उम्मीद मन में है कि पहले की तरह बेटा मौत को मात देकर फिर से सकुशल लौट आएगा।बीजेएस कॉलोनी में अपनी बेटी सीमा व बेटे भोमसिंह के साथ रहने वाली ओमकंवर को सुसराल वालों ने जब सूचना दी कि लालसिंह आतंकियों की गोली से घायल हो गए हैं, तो मानो पैरों के नीचे जमीन खिसक गई। वे हिम्मत जुटा कर सुसराल चली गईं, लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ गई। उन्हें बुधवार रात अस्पताल में भर्ती कराया गया। गुरुवार को जब भास्कर संवाददाता ने उनसे मुलाकात की तो वे रोते हुए पूछने लगी कि वे फोन क्यों नहीं कर रहे?
देश सेवा का जुनून था लालसिंह में
लालसिंह के बड़े भाई भीम सिंह ने बताया कि लालसिंह में देश सेवा का ऐसा गजब का जुनून था कि वे आतंकियों या सीमा पार दुश्मन से लड़ने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहते थे। वे तीन साल बाद रिटायर होने वाले थे। उन्हें पिछली बार गोली लगने पर जम्मू कश्मीर की बजाय दूसरी जगह पोस्टिंग लेने के लिए दबाव डाला गया, मगर वे नहीं माने। वे हमेशा कहते थे कि आतंकियों से लड़ते मौत भी आ जाए तो गम नहीं।
दो दिन पहले ही तो आने का वादा किया था
ओमकंवर ने बताया कि मंगलवार रात लालसिंह का फोन आया था। उन्होंने अगले सप्ताह दो महीने की छुट्टी पर आने का वादा किया था। वे रोजाना रात को फोन कर घर के हाल-चाल पूछने के साथ घाटी के माहौल के बारे में बातचीत करते थे। तमाम आशंकाओं के बावजूद ओमकंवर बोलीं, बस एक बार उनसे फोन पर बात हो जाए तो चैन आ जाए।
राखी बांधने आने वाली थीं बहनें
लालसिंह इस बार रक्षा बंधन जोधपुर में मनाने वाले थे। उनकी मुंबई में रहने वाली बहनें सागर कंवर व खम्मा कंवर भाई को राखी बांधने जोधपुर आने वाली थीं। जब उन्हें भाई के शहीद होने की खबर मिली तो वे दोनों जोधपुर आ पहुंचीं। हालांकि वे अपनी मां व भाभी के सामने भाई के खोने की पीड़ा को छुपाए हुए हैं, लेकिन बहनों के भी पहुंचने से पवन कंवर व ओमकंवर की घबराहट बढ़ती जा रही है।
ढाई साल पहले ही बनाया घर
बीस साल से सेना में नौकरी के दौरान आतंकियों से मुकाबला करते रहे लालसिंह की बेटी सेंट्रल स्कूल में बारहवीं और बेटा नवीं कक्षा में पढ़ते हैं। उनकी पढ़ाई के लिए ढाई साल पहले बीजेएस कॉलोनी में मकान बनवाया था। ओमकंवर यहां दोनों बच्चों के साथ रह रही हैं।

लोकपाल: मंत्रियों ने पीएम की भी नहीं सुनी, अन्‍ना 16 से करेंगे अनशन

 
| Email  Print
 
नई दिल्‍ली. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकपाल बिल के लिए तैयार किए गए ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है। कैबिनेट ने सरकार के प्रतिनिधियों की तरफ से पेश किए गए ड्राफ्ट को कुछ बदलावों के साथ हरी झंडी दिखा दी, लेकिन गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के ड्राफ्ट को दरकिनार कर दिया। कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए बिल को संसद की मंजूरी के लिए १ अगस्त से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा। इसमें प्रधानमंत्री और न्‍यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान है (लोकपाल बिल के अहम प्रावधानों को जानने के लिए रिलेटेड आर्टिकल की दूसरी खबर पर क्लिक करें)

हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद इस बिल के दायरे में आना चाहते थे लेकिन मंत्रिमंडल ने उनकी एक नहीं सुनी और मौजूदा पीएम को लोकपाल से बाहर रखने का फैसला किया। वैसे सरकार के इस फैसले के बाद उसकी मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गई हैं। टीम अन्‍ना सरकार के इस फैसले और नए बिल के प्रावधानों से बेहद नाराज है। अन्ना हजारे ने कहा है कि सरकार ने सिर्फ मेरे साथ धोखा ही नहीं किया बल्कि देश को छला है। अन्ना ने कहा है कि सरकार के इस निर्णय के खिलाफ वह 16 अगस्त से धरने पर बैठेंगे। वहीं, किरण बेदी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि कैबिनेट ने जिस लोकपाल बिल को मंजूरी दी है, उसमें राजनेता के हितों का खयाल रखा गया है।

टीम अन्ना ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि प्रस्तावित लोकपाल बिल के मुताबिक गठित होने वाली समिति में ज़्यादातर लोग सरकार से जुड़े होंगे। टीम के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकारी लोकपाल बिल देश के साथ क्रूर मजाक है। उन्होंने कहा कि सरकारी लोकपाल बिल के दायरे में कॉमनवेल्थ खेल घोटाला, सांसद रिश्वत कांड, कैश फॉर वोट जैसे मामले नहीं आएंगे। अरविंद केजरीवाल ने पूछा, क्या सरकार अपने सवा करोड़ कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के लिए खुला छोड़ देगी? सरकार को इन सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए? केजरीवाल के मुताबिक प्रस्तावित बिल देश में एक और कानून की तरह ही होगा और इससे कुछ रिटायर नौकरशाहों और जजों को काम मिल जाएगा। वहीं, किरण बेदी और प्रशांत भूषण ने भी सरकारी बिल की तीखी आलोचना की है। किरण बेदी ने इस मौके पर कहा कि प्रस्तावित लोकपाल बिल के मुताबिक शिकायत सुनने के लिए सेल नहीं बनेगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को किसी तरह की सुरक्षा या प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। वहीं, 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन'  की वेबसाइट पर टीम अन्ना ने सरकारी लोकपाल बिल की तीखी आलोचना की है। वेबसाइट के मुताबिक प्रस्तावित बिल आम आदमी की लडा़ई नहीं लड़ेगा (वेबसाइट के मुताबिक प्रस्तावित लोकपाल बिल क्या नहीं कर पाएगा, यह जानने के लिए रिलेटेड आर्टिकल की पहली खबर पर क्लिक करें)
वहीं, कैबिनेट की लोकपाल बिल पर मंजूरी के बाद लेफ्ट ने इसे काफी कमजोर बताया है। पार्टी की नेता वृंदा करात ने कहा है कि प्रस्तावित बिल भ्रष्टाचार से लड़ाई में बहुत कमजोर साबित होगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को इसके दायरे से बाहर रखना चाहिए।

दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कि टीम अन्ना को यह हक नहीं है कि वह किसी सरकारी ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे। इससे पहले कैबिनेट के फैसले पर सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और अंबिका सोनी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि लोकपाल बिल के दायरे में पूर्व प्रधानमंत्री आएंगे। सरकार का दावा है कि नए बिल में शीर्ष पदों पर आसीन लोगों को भी जबाबदेह बनाया गया है। कैबिनेट ने इस बात का भी ध्यान रखा कि लोकपाल से प्रशासनिक व्यवस्था को भी नुकसान न पहुंचे इस लिए सात साल की समयसीमा तय की गई है। इस समयसीमा में प्रधानमंत्री भी शामिल होंगे।

सलमान खुर्शीद ने कहा कि जन लोकपाल बिल में शक्ति के बंटवारे का प्रावधान है, लेकिन कैबिनेट ने जिस ड्राफ्ट को मंजूरी दी है, उसमें ऐसा नहीं है। खुर्शीद ने तर्क दिया कि जैसे प्रधानमंत्री या संसद अपनी शक्तियां किसी के साथ साझा नहीं कर सकती वैसे ही लोकपाल को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। लोकपाल की व्यवस्था अलग रहेगी और न्यायपालिका की व्यवस्था अलग रहेगी। इसी दौरान केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने बताया कि न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ज्यूडिशयल अकाउंटेबिलिटी बिल ला रही है।
इससे पहले गुरुवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में सिविल सोसाइटी और सरकार के प्रतिनिधियों के मसौदे में फर्क पर चर्चा की गई। यह चर्चा दो घंटों तक चली। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाए या नहीं, बहस का मुख्य मुद्दा यही रहा। प्रधानमंत्री ने खुद इस मुद्दे पर मीटिंग के दौरान कहा, 'अगर आप सभी लोग चाहते हैं, तो मैं मुझे कोई समस्या नहीं है। मैं यह निर्णय कैबिनेट पर छोड़ता हूं।'   
आपकी राय
क्या आप लोकपाल बिल के दायरे से पीएम और न्यायपालिका को बाहर रखे जाने से सहमत हैं? क्या टीम अन्ना के ड्राफ्ट को सरकार ने अनदेखा कर दिया है? क्या ऐसा लोकपाल आपको मंजूर होगा? इन मुद्दों पर अपनी राय जाहिर करने के लिए नीचे क्लिक करें।

राजस्थान प्रशासन में एक सजग सतर्क अधिकारी है बी एल कोठारी

   जी हाँ दोस्तों  राजस्थान प्रशासन में एक सजग सतर्क अधिकारी है बी एल कोठारी यह बात में नहीं कहता जो भी उनके सम्पर्क में आता है जिस भी गरीब की वोह प्रशासनिक मदद कर पीड़ा का हरण करते हैं उसके मुक्ख से स्वत्त ही यह अलफ़ाज़ निकल पढ़ते हैं ..................दोस्तों बी एल कोठारी राजस्थान प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी है वर्तमान में कोटा अतिरिक्त जिला कलेक्टर कोटा नगर के पद पर तेनात रहते हुए उन्होंने जिस सजगता ,त्वरितता ,तत्परता , सूझ बुझ और कुशल प्रशासनिक क्षमता के साथ कोटा की जो सार सम्भाल की है कोटा के हर संकट के वक्त इन्होने कोटा कलेक्टर और दुसरे वरिष्ठ अधिकारीयों का कंधे से कन्धा मिलकर साथ देते हुए जो जिम्मेदारियां निभाई है उससे कोटा कई बार संकट स्थिति से उबर गया है .................कोटा में अब तक जो भी अधिकारी आये है वोह या तो अपने एयर कन्डीशन चेंबर में बेठे है ..या फिर मंत्री और अधिकारीयों की चमचागिरी चापलूसी में अपना वक्त बर्बाद करते रहे हैं लेकिन जो लोग कोठारी को नजदीक से जानते हैं उनका कहना है के कोठारी के कोटा आगमन के बाद दफ्तर में लगा फाइलों का    अम्बार कम हुआ है ..अतिरिक्त जिला कलेक्टर सही सभी कार्यालय हाई टेक हुए है और आधुनिक इंटरनेट युग में इस सुविधा का लाभ सभी अधिकारीयों कर्मचारियों को मिल सका है .जिला पुल में सरकारी वाहनों के दुरूपयोग पर रोक लगी है , इतना ही नहीं दफ्तरों में कर्मचारियों की वक्त पर आने की पाबंदी बढ़ी है ..नोडल अधिकारी के रूप में सभी सियासत से जुड़े लोगों को मान सम्मान मिला है ..खेर यह तो मामूली बात है लेकिन अपने अतिरिक्त नगर दंडनायक कार्यकाल में बी एल कोठारी ने फर्जी पुलिस कार्यवाहियों पर रोक लगा कर जनता को पुलिस उत्पीडन से बचाया है और खुद आगे रहकर मानवाधिकार संरक्षण का कार्य क्या है ..कोटा जेल सुधार में केसे और क्या क्या सुधार हों इसके लियें विस्त्रत रिपोर्ट तयार की है ........जनता का कोई भी आदमी सीधे उनसे काम के लियें सम्पर्क कर सके इसके लियें उन्होंने अंग्रेजी गुलामी मानसिकता के पर्ची सिस्टम को परित्याग कर दिया उनके कार्यालय और चेंबर के दरवाज़े आम आदमी के लियें हमेशा खुले रहे ..कार्यालय वक्त  पर आना अपना सभी कामकाज बिना किसी सिफारिश और दाब धोंस के निपटाना कोठारी की आदत है ..जबकि आम जनता बिना किसी सिफारिश के कोई भी वाजिब काम लेकर जब भी इनके पास  पहुंची है उसकी समस्या का समाधान बिना किसी हील हुज्जत के तुरंत किया गया है ..इतना ही नहीं अगर कोई गलत काम लेकर भरी सिफारिश लेकर भी पहुंचा है तो फिर भी उसका काम नियमों में नहीं आने के कारण कोठारी जी ने नहीं किया है ..इनके कार्यकाल में सरकारी वाहनों के डीज़ल और मरम्मत खर्च पर अंकुश लगा है और सरकार को लाखों की बचत हुई है ...........वर्तमान में कोठारी जी को कोटा राजस्व अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया है लेकिन आम जनता के लियें आम जनता के अधिकारी बन कर विधि नियमों के तहत खुद को अधिकारी के बदले लोकसेवक मानकर जनता से बिना पर्ची के तुरंत मिलकर उसके कार्य को करने की परम्परा जो बी एल कोठारी ने कायम की है वोह दुसरे अधिकारीयों के लियें भी अनुकरणीय है और ऐसे जनता के लियें जनता के सेवक बनकर कार्य करने  वाले कुशल प्रशासनिक अधिकारी को मेरा सलाम ..............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

दोस्तों आज मेरे बढे भाई समीर लाल जी का जन्म दिन है


दोस्तों आज मेरे बढे भाई समीर लाल जी का जन्म दिन है उनकी उड़न तश्तरी का जबलपुर से कनाडा तक का सफ़र तो आप सभी को पता है ......अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी ब्लोगिग्न और हिंदी भाषा के खुबसूरत रंग भरने वाले भाई समीर लाल जी को उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ..भाई  समीर लाल जी  हर छोटे बढे ब्लॉग पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं खट्टे मीठे अनुभव बांटते है और इसीलियें वोह आज हर दिल अज़ीज़ ब्लोगर बन गए है ..कनाडा की एजेक्स , ओटोरियों कम्पनी में सलाहकार का काम कर रहे भाई समीर ब्लोगर्स को भी बहतर प्रदर्शन की सलाह की ज़िम्मेदार बखूबी निभा रहे है ......भाई समीर की उड़नतश्तरी के अलावा लाल और बवाल जुगलबंदी भी ज़ोरों पर है ऐसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्क्रती और हिंदी भाषा के प्रचारक , साहित्यकार , कवि भाई समीर लाल को एक बार फिर उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ..उनके कुछ अलफ़ाज़ उनकी ताज़ी रचना में प्रकाशित है इस रचना में उनके एक मुकम्म्मल और अच्छे इंसान होने का दर्पण है जो हू बहु पेश है ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

चलती सांसो का सिलसिला....

अपनी लम्बी यॉर्क, यू के की यात्रा को दौरान जब अपनी नई उपन्यास पर काम कर रहा था तो अक्सर ही घर के सामने बालकनी में कभी चाय का आनन्द लेने तो कभी देर शाम स्कॉच के कुछ घूँट भरने आ बैठता और साथ ही मैं घर के सामने वाले मकान की बालकनी में रोज बैठा देखता था उस बुजुर्ग को.
उसके चेहरे पर उभर आई झुर्रियाँ उसकी ८० पार की उम्र का अंदाजा बखूबी देती. कुर्सी के बाजू में उसे चलने को सहारा देने पूर्ण सजगता से तैनात तीन पाँव वाली छड़ी मगर उसे इन्तजार रहता दो पाँव से चल कर दूर हो चुके उस सहारे का जिसे उसने अपने बुढ़ापे का सहारा जान बड़े जतन से पाल पोस कर बड़ा किया था. जैसे ही वह इस काबिल हुआ कि उसके दो पैर उसका संपूर्ण भार वहन कर सकें, तब से वो ऐसा निकला कि इस बुजुर्ग के हिस्से में बच रहा बस एक इन्तजार. शायद कभी न खत्म होने वाला इन्तजार.
बालकनी में बैठे उसकी नजर हर वक्त उसके घर की तरफ आती सड़क पर ही होती. साथ उसकी पत्नी, शायद उसी की उम्र की, भी रहती है उसी घर में. वो ही सारा कुछ काम संभालते दिखती. कुछ कुछ घंटों में चाय बना कर ले आती, कभी सैण्डविच तो कभी कुछ और. दोनों आजू बाजू में बैठकर चाय पीते, खाना खाते लेकिन आपस मे बात बहुत थोड़ी सी ही करते. शायद दोनों को ही चुप रहने की आदत हो गई थी या इतने साल के साथ के बाद अकेले में एक दूसरे से कहने सुनने के लिए कुछ बचा ही न हो. कुछ नया तो होता नहीं था. वही सुबह उठना, दिन भर बालकनी में बिताना और ज्यादा से ज्यादा फोन पर ग्रासरी वाले को सामान पहुँचाने के लिए कह देना. पत्नी बीच बीच में उठकर गमलों में पानी डाल देती. उनमें भी जिसमें अब कोई पौधा नहीं बचा था. जाने क्या सोच कर वो उसमें पानी डालती थी. शायद वैसे ही, जैसे जानते हुए भी कि अब बेटा अपनी दुनिया में मगन है, वो कभी नहीं आयेगा- फिर भी निगाह घर की ओर आने वाली सड़क पर उसकी राह तकती.
उनके घर से थोड़ा दूर सड़क पार उसकी पत्नी की कोई सहेली भी रहती थी. नितांत अकेली. कई महिनों में दो या तीन बार इसको उसके यहाँ जाते देखा और शायद एक बार उसे इनके घर आते. जिस रोज वो उसके यहाँ जाती या वो इनके यहाँ आती, उस शाम पति पत्नी आपस में काफी बात करते दिखते. शायद कुछ नया कहने को होता.
अक्सर मेरी नजर अपनी बालकनी से उस बुजुर्ग से टकरा जाती. बस, एक दूसरे को देख हाथ हिला देते. शायद उसने मेरे बारे में अपनी पत्नी को बता दिया था. अब वो भी जब बालकनी में होती तो हाथ हिला देती. हमारे बीच एक नजरों का रिश्ता सा स्थापित हो गया था. बिना शब्दों के कहे सुने एक जान पहचान. मैं अक्सर ही उन दोनों के बारे में सोचा करता. सोचता कि ये बालकनी में बैठे क्या सोचते होंगे?  क्या सोच कर रात सोने जाते होंगे और क्या सोच कर नया दिन शुरु करते होंगे?
मुझे यह सब अपनी समझ के परे लगता. कभी सहम भी जाता, जब ख्याल आता कि यदि इस महिला को इस बुजुर्ग के पहले दुनिया से जाना पड़ा तो इस बुजुर्ग का क्या होगा? मैने तो उसे सिर्फ छड़ी टेककर बाथरुम जाते और रात को अपने बिस्तर तक जाने के सिवाय कुछ भी करते नहीं देखा. यहाँ तक की ग्रासरी लाने का फोन भी वही महिला करती. तरह तरह के ख्याल आते. मैं सहमता, घबराता और फिर कुछ पलों में भूल कर सहज हो जाता हूँ.
मैं भरी दुपहरी अपने बंद अँधेरे कमरे में ए सी को अपनी पूरी क्षमता पर चलाये चार्ल्स डी ब्रोवर की पुस्तक ’फिफ्टी ईयर्स बिलो ज़ीरो’ को पढ़ता आर्कटिक अलास्का की ठंड की ठिठुरन अहसासता भूल ही जाता हूँ कि बाहर सूरज अपनी तपिश के तांडव से न जाने कितने राहगीरों को हालाकान किये हुए है. कितना छोटा आसमान बना लिया है हमने अपना. कितनी क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक.
समय के पंख ऐसे कि कतरना भी अपने बस में नहीं तो उड़ चला. कनाडा वापसी को दो तीन दिन बचे. उस शाम बहाना भी अच्छा था कि अब तो वापस जाना है और कुछ मौसम भी ऐसा कि वहीं बालकनी में बैठे बैठे नियमित से एक ज्यादा ही पैग हो गया स्कॉच का. शराब पीकर यूँ भी आदमी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है और उस पर से एक्स्ट्रा पी कर तो अल्ट्रा संवेदनशील. कुछ शराब का असर और कुछ कवि होने की वजह से परमानेन्ट भावुकता का कैरियर मैं एकाएक उन बुजुर्गों की हालत पर अपने दिल को भर बैठा याने दिल भर आया उनके हालातों पर. सोचा, आज जा कर मिल ही लूँ और इसी बहाने बता भी आऊँगा कि दो दिन में वापस कनाडा जा रहा हूँ. एक बार को थोड़ा सा अनजान घर जाते असहजता महसूस हुई किन्तु शराब ने मदद की और मैं अपनी सीढ़ी से उतर कर उनकी सीढ़ी चढ़ते हुए उनकी बालकनी में जा पहुँचा.
वो मुझे देखकर जर्मन में हैलो बोले. जर्मन मुझे आती नहीं, मैने अंग्रेजी में हैलो कहा. हिन्दी में भी कहता तो शायद उनके लिए वही बात होती क्यूँकि अंग्रेजी उस बुजुर्ग को आती नहीं थी. इशारे से वो समझे और इशारे से ही मैं समझा. फिर उनका इशारा पा कर उनके बाजू वाली कुर्सी पर मैं बैठ गया. उनकी गहरी ऑखों में झांका. एकदम सुनसान, वीरान. मैने उनके हाथ पर अपना हाथ रखा. भावों ने भावों से बात की. शायद एक लम्बे अन्तराल के बाद किसी तीसरे व्यक्ति का स्पर्श पा दबे भावों का सब्र का बॉध टूटने की कागर पर आ गया हो. उनकी आँखें नम हो आईं. मैं तो यूँ भी अल्ट्रा संवेदनशील अवस्था में था. अति संवेदनशीलता में शराब आँख से आँसू बनकर टप टप टपकने लगी. बुजुर्ग भी रो दिये और मेरा जब पूरा एक्स्ट्रा पैग टपक गया, तो मैं उठा. उन्हें हाथ पर थपकी दे ढाढस बँधाई और उन्हें नमस्ते कर बिना उनकी तरफ देखे सीढ़ी उतर कर लौट आया.
सुबह उठकर जब उनकी बालकनी पर नजर पड़ी तो वह बुजुर्ग हाथ हिलाते नजर आये. एक बार फिर मेरी आँख नम हुई यह सोचकर कि कल से यह मेरा भी इन्तजार करेंगे हाथ हिलाने को. आँख में आई नमी ने अहसास करा दिया कि कल जो बहा था वो शराब नहीं थी. दिल की किसी कोने से कोई टीस उठी थी उस एकाकीपन और नीरसता को देख, जो आज न जाने उस जैसे कितने बुजुर्गों की साथी है....

दोस्तों आज मेरे बढे भाई समीर लाल जी का जन्म दिन है

दोस्तों आज मेरे बढे भाई समीर लाल जी का जन्म दिन है उनकी उड़न तश्तरी का जबलपुर से कनाडा तक का सफ़र तो आप सभी को पता है ......अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी ब्लोगिग्न और हिंदी भाषा के खुबसूरत रंग भरने वाले भाई समीर लाल जी को उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ..भाई  समीर लाल जी  हर छोटे बढे ब्लॉग पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं खट्टे मीठे अनुभव बांटते है और इसीलियें वोह आज हर दिल अज़ीज़ ब्लोगर बन गए है ..कनाडा की एजेक्स , ओटोरियों कम्पनी में सलाहकार का काम कर रहे भाई समीर ब्लोगर्स को भी बहतर प्रदर्शन की सलाह की ज़िम्मेदार बखूबी निभा रहे है ......भाई समीर की उड़नतश्तरी के अलावा लाल और बवाल जुगलबंदी भी ज़ोरों पर है ऐसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्क्रती और हिंदी भाषा के प्रचारक , साहित्यकार , कवि भाई समीर लाल को एक बार फिर उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ..उनके कुछ अलफ़ाज़ उनकी ताज़ी रचना में प्रकाशित है इस रचना में उनके एक मुकम्म्मल और अच्छे इंसान होने का दर्पण है जो हू बहु पेश है ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

चलती सांसो का सिलसिला....

अपनी लम्बी यॉर्क, यू के की यात्रा को दौरान जब अपनी नई उपन्यास पर काम कर रहा था तो अक्सर ही घर के सामने बालकनी में कभी चाय का आनन्द लेने तो कभी देर शाम स्कॉच के कुछ घूँट भरने आ बैठता और साथ ही मैं घर के सामने वाले मकान की बालकनी में रोज बैठा देखता था उस बुजुर्ग को.
उसके चेहरे पर उभर आई झुर्रियाँ उसकी ८० पार की उम्र का अंदाजा बखूबी देती. कुर्सी के बाजू में उसे चलने को सहारा देने पूर्ण सजगता से तैनात तीन पाँव वाली छड़ी मगर उसे इन्तजार रहता दो पाँव से चल कर दूर हो चुके उस सहारे का जिसे उसने अपने बुढ़ापे का सहारा जान बड़े जतन से पाल पोस कर बड़ा किया था. जैसे ही वह इस काबिल हुआ कि उसके दो पैर उसका संपूर्ण भार वहन कर सकें, तब से वो ऐसा निकला कि इस बुजुर्ग के हिस्से में बच रहा बस एक इन्तजार. शायद कभी न खत्म होने वाला इन्तजार.
बालकनी में बैठे उसकी नजर हर वक्त उसके घर की तरफ आती सड़क पर ही होती. साथ उसकी पत्नी, शायद उसी की उम्र की, भी रहती है उसी घर में. वो ही सारा कुछ काम संभालते दिखती. कुछ कुछ घंटों में चाय बना कर ले आती, कभी सैण्डविच तो कभी कुछ और. दोनों आजू बाजू में बैठकर चाय पीते, खाना खाते लेकिन आपस मे बात बहुत थोड़ी सी ही करते. शायद दोनों को ही चुप रहने की आदत हो गई थी या इतने साल के साथ के बाद अकेले में एक दूसरे से कहने सुनने के लिए कुछ बचा ही न हो. कुछ नया तो होता नहीं था. वही सुबह उठना, दिन भर बालकनी में बिताना और ज्यादा से ज्यादा फोन पर ग्रासरी वाले को सामान पहुँचाने के लिए कह देना. पत्नी बीच बीच में उठकर गमलों में पानी डाल देती. उनमें भी जिसमें अब कोई पौधा नहीं बचा था. जाने क्या सोच कर वो उसमें पानी डालती थी. शायद वैसे ही, जैसे जानते हुए भी कि अब बेटा अपनी दुनिया में मगन है, वो कभी नहीं आयेगा- फिर भी निगाह घर की ओर आने वाली सड़क पर उसकी राह तकती.
उनके घर से थोड़ा दूर सड़क पार उसकी पत्नी की कोई सहेली भी रहती थी. नितांत अकेली. कई महिनों में दो या तीन बार इसको उसके यहाँ जाते देखा और शायद एक बार उसे इनके घर आते. जिस रोज वो उसके यहाँ जाती या वो इनके यहाँ आती, उस शाम पति पत्नी आपस में काफी बात करते दिखते. शायद कुछ नया कहने को होता.
अक्सर मेरी नजर अपनी बालकनी से उस बुजुर्ग से टकरा जाती. बस, एक दूसरे को देख हाथ हिला देते. शायद उसने मेरे बारे में अपनी पत्नी को बता दिया था. अब वो भी जब बालकनी में होती तो हाथ हिला देती. हमारे बीच एक नजरों का रिश्ता सा स्थापित हो गया था. बिना शब्दों के कहे सुने एक जान पहचान. मैं अक्सर ही उन दोनों के बारे में सोचा करता. सोचता कि ये बालकनी में बैठे क्या सोचते होंगे?  क्या सोच कर रात सोने जाते होंगे और क्या सोच कर नया दिन शुरु करते होंगे?
मुझे यह सब अपनी समझ के परे लगता. कभी सहम भी जाता, जब ख्याल आता कि यदि इस महिला को इस बुजुर्ग के पहले दुनिया से जाना पड़ा तो इस बुजुर्ग का क्या होगा? मैने तो उसे सिर्फ छड़ी टेककर बाथरुम जाते और रात को अपने बिस्तर तक जाने के सिवाय कुछ भी करते नहीं देखा. यहाँ तक की ग्रासरी लाने का फोन भी वही महिला करती. तरह तरह के ख्याल आते. मैं सहमता, घबराता और फिर कुछ पलों में भूल कर सहज हो जाता हूँ.
मैं भरी दुपहरी अपने बंद अँधेरे कमरे में ए सी को अपनी पूरी क्षमता पर चलाये चार्ल्स डी ब्रोवर की पुस्तक ’फिफ्टी ईयर्स बिलो ज़ीरो’ को पढ़ता आर्कटिक अलास्का की ठंड की ठिठुरन अहसासता भूल ही जाता हूँ कि बाहर सूरज अपनी तपिश के तांडव से न जाने कितने राहगीरों को हालाकान किये हुए है. कितना छोटा आसमान बना लिया है हमने अपना. कितनी क्षणभंगुर हो चली है हमारी संवेदनशीलता भी. बहुत ठहरी तो एक आँसूं के ढुलकने तक.
समय के पंख ऐसे कि कतरना भी अपने बस में नहीं तो उड़ चला. कनाडा वापसी को दो तीन दिन बचे. उस शाम बहाना भी अच्छा था कि अब तो वापस जाना है और कुछ मौसम भी ऐसा कि वहीं बालकनी में बैठे बैठे नियमित से एक ज्यादा ही पैग हो गया स्कॉच का. शराब पीकर यूँ भी आदमी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है और उस पर से एक्स्ट्रा पी कर तो अल्ट्रा संवेदनशील. कुछ शराब का असर और कुछ कवि होने की वजह से परमानेन्ट भावुकता का कैरियर मैं एकाएक उन बुजुर्गों की हालत पर अपने दिल को भर बैठा याने दिल भर आया उनके हालातों पर. सोचा, आज जा कर मिल ही लूँ और इसी बहाने बता भी आऊँगा कि दो दिन में वापस कनाडा जा रहा हूँ. एक बार को थोड़ा सा अनजान घर जाते असहजता महसूस हुई किन्तु शराब ने मदद की और मैं अपनी सीढ़ी से उतर कर उनकी सीढ़ी चढ़ते हुए उनकी बालकनी में जा पहुँचा.
वो मुझे देखकर जर्मन में हैलो बोले. जर्मन मुझे आती नहीं, मैने अंग्रेजी में हैलो कहा. हिन्दी में भी कहता तो शायद उनके लिए वही बात होती क्यूँकि अंग्रेजी उस बुजुर्ग को आती नहीं थी. इशारे से वो समझे और इशारे से ही मैं समझा. फिर उनका इशारा पा कर उनके बाजू वाली कुर्सी पर मैं बैठ गया. उनकी गहरी ऑखों में झांका. एकदम सुनसान, वीरान. मैने उनके हाथ पर अपना हाथ रखा. भावों ने भावों से बात की. शायद एक लम्बे अन्तराल के बाद किसी तीसरे व्यक्ति का स्पर्श पा दबे भावों का सब्र का बॉध टूटने की कागर पर आ गया हो. उनकी आँखें नम हो आईं. मैं तो यूँ भी अल्ट्रा संवेदनशील अवस्था में था. अति संवेदनशीलता में शराब आँख से आँसू बनकर टप टप टपकने लगी. बुजुर्ग भी रो दिये और मेरा जब पूरा एक्स्ट्रा पैग टपक गया, तो मैं उठा. उन्हें हाथ पर थपकी दे ढाढस बँधाई और उन्हें नमस्ते कर बिना उनकी तरफ देखे सीढ़ी उतर कर लौट आया.
सुबह उठकर जब उनकी बालकनी पर नजर पड़ी तो वह बुजुर्ग हाथ हिलाते नजर आये. एक बार फिर मेरी आँख नम हुई यह सोचकर कि कल से यह मेरा भी इन्तजार करेंगे हाथ हिलाने को. आँख में आई नमी ने अहसास करा दिया कि कल जो बहा था वो शराब नहीं थी. दिल की किसी कोने से कोई टीस उठी थी उस एकाकीपन और नीरसता को देख, जो आज न जाने उस जैसे कितने बुजुर्गों की साथी है....

इंसानियत , भाईचारा सद्भावना मेरे ब्लोगर भाइयों के दिलों तलाशी है


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...