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29 जुलाई 2011

हिंदू संगठनों का साथ चाहता है ब्रिविक




brivik
ओस्लो। नार्वे की राजधानी ओस्लो में प्रधानमंत्री कार्यालय के पास धमाका करने का आरोपी एंडर्स बेहरिंग ब्रीविक भारत के दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों का समर्थक है। वह चाहता था कि उसके अभियान का हिंदू संगठन भी समर्थन करें। हालांकि हिंदू संगठन इसे सोचि समझी साजिश करार दे रहे हैं। गौरतलब है कि संघ पर पहले भी जर्मन तानाशाह हिटलर से संबंधों के आरोप लगते रहे हैं। धर्मनिरपेक्ष ताकतें संघ पर फासीवादी सोच का आरोप लगाती रही हैं।

संघ के प्रवक्ता राम माधव ने इसे मोटिवेटेड प्रोपोगेंडा करार दिया है। वहीं विश्व हिंदू परिषद के नेता विनोद बंसल ने कहा कि ब्रिविक के मेनिफेस्टो का कोई मतलब नहीं है। वहीं भाजपा के सांसद बीपी सिंघल का कहना है कि ब्रिविक की सोच सही है लेकिन उसका तरीका गलत है। ब्रिविक ने सोशल नेटवर्किग साइट पर जो मेनीफेस्टो जारी किया है उसमें भारत के दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों की जमकर तारीफ की है।

उसने हिंदू संगठनों को अपना साथी करार दिया है। ब्रिविक ने हिंदू संगठनों से अपने अभियान में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने की अपील की है। यूरोप में इस्लाम के फैलाव को रोकने को अपना मिशन बताया है। उसने हिंदू धर्म आंदोलन और भारतीय राष्ट्रवादियों का खुला समर्थन किया है। अपने रेफरेंस के लिए उसने भाजपा, एबीवीपी और संघ की वेबसाइट्स को इस्तेमाल किया है।

मंत्री ने पटवारी से लगवाई उठक-बैठक



सिवनी। मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी कार्यशैली को लेकर हमेशा चर्चा में रहते हैं। ताजा मामला सिवनी जिले में एक पटवारी से सरेआम उठक-बैठक लगवाने का है। सिवनी जिले छिमदा गांव में बुधवार को एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सहकारिता मंत्री बिसेन भी पहुंचे। कार्यक्रम में ग्रामीणों ने मंत्री से पटवारी की शिकायत कर दी। फिर क्या था! ग्रामीणों को सम्बोधित करते हुए मंत्री ने न केवल पटवारियों को खरी-खोटी सुनाई, बल्कि सम्बंधित पटवारी को भीड़ के समक्ष बुलाया भी और वहीं उठक-बैठक लगाने को कहा।

मंत्री का आदेश सुनकर पटवारी पहले तो कुछ झिझका, लेकिन जब बिसेन ने झिड़की देते हुए उठक-बैठक लगाने के लिए दोबारा कहा तो वह घबरा गया और सबके सामने ही उसने उनके आदेश का पालन शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, बिसेन ने क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (एसडीएम) की भी क्लास ले डाली।
बिसेन अपनी बेबाक बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं। अपने ऎसे ही बयानों से कई बार उन्होंने सरकार के लिए मुश्किल भी खड़ी की। दो दिन पहले ही उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लेकर सवाल उठाए थे।

चांद दिखा तो पहला रोजा दो अगस्त को




जयपुर। रोजों के जरिए सब्र का इम्तेहान देने का पाक महीना रमजानुल मुबारक चांद दिखने पर एक अगस्त शाम को शुरू होगा। चांद दिखाई देने पर पहला रोजा दो अगस्त को रखा जाएगा। एक को चांद नहीं दिखा तो पहला रोजा तीन अगस्त को रखा जाएगा।
 जौहरी बाजार जामा मस्जिद के सचिव हाजी अनवर शाह ने बताया कि चांद की गवाही और नए महीने की घोष्ाणा के लिए एक को जामा मस्जिद में हिलाल कमेटी की बैठक होगी। चीफ काजी खालिद उस्मानी, मुफ्ती हकीम अहमद हसन, जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती अमजद अली समेत अनेक इस्लामी विद्वान हिस्सा लेंगे।

दीक्षित की छुट्टी, आरसीए दो फाड़



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उदयपुर। राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन (आरसीए) अध्यक्ष सीपी जोशी ने शुक्रवार को संजय दीक्षित की सचिव पद से छुट्टी कर दी। भीलवाड़ा के सचिव व आरसीए के संयुक्त सचिव केके शर्मा को कार्यवाहक सचिव बनाया गया है। यहां सिटी पैलेस स्थित शिव निवास में सीपी जोशी की अध्यक्षता में हुई बैठक में दीक्षित को बर्खास्त करने का फैसला लिया गया। बैठक में सांसद महेश जोशी की आरसीए चेयरमैन के रूप में की गई नियुक्ति को भी अमान्य कर दिया गया।

इसके साथ ही अध्यक्ष, कार्यवाहक सचिव व कोषाध्यक्ष तीनों ही उदयपुर संभाग से हो गए हैं। बैठक में जुटे बीस जिला संघों ने सर्वसम्मति से फैसले कर आरसीए के कार्यकारी अघिकारी जेपी सोनी व एकेडमी के निदेशक तारक सिन्हा को भी बर्खास्त कर दिया। साथ ही आरसीए ने बर्खास्त जिला क्रिकेट संघों नागौर, श्रीगंगानगर व जालौर को मान्यता दे दी। इन्हें मिलाकर जोशी गुट ने 23 जिला संघों के समर्थन का दावा किया है। ज्ञात हो कि पिछले कई दिनों से सीपी जोशी और संजय दीक्षित में तनातनी चल रही थी।
इन संघों की भागीदारी : बैठक पर पूरे प्रदेश की नजर थी। उदयपुर के अलावा जयपुर, करौली, राजसमन्द, स.माधोपुर, बीकानेर, कोटा, चित्तौड़गढ़, भरतपुर, बांसवाड़ा, बारां, झालावाड़, झुंझुनूं, सीकर, दौसा, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, अलवर, धौलपुर, डूंगरपुर जिला क्रिकेट संघ के सचिव थे। नागौर, श्रीगंगानगर व जालौर के सचिवों ने भी भाग लिया।
दीक्षित के सभी फैसले रद्द
बैठक के बाद सीपी जोशी ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में आरोप लगाया कि दीक्षित असंवैधानिक रूप से जिला संघों के सचिवों को टीए-डीए देकर साथ जोड़ने का काम कर रहे थे। उन्होंने कहा कि तीनों बर्खास्त संघों की भी दीक्षित गुट ने बिना एजीएम मान्यता समाप्त कर दी थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि दीक्षित की वजह से राजस्थान के बाहर के खिलाड़ी यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और स्थानीय खिलाडियों को मौका नहीं मिल रहा था। सचिव के बदलाव की सूचना आगामी कार्य दिवस में ही बैंक को भी दे दी जाएगी। उन्होंने कहा कि दीक्षित का हाल ही सांसद महेश जोशी को आरसीए चेयरमैन बनाने का फैसला भी असंवैधानिक है। दीक्षित की ओर से गत बैठकों में किए गए सभी निर्णयों को इस बैठक में शून्य घोषित कर दिया गया।
आरसीए के 2 पदाधिकारी निलंबित
विवाद के चलते संजय दीक्षित गुट ने आरसीए के दो पदाघिकारियों को नोटिस जारी कर निलंबित कर दिया है। जयपुर के सांसद महेश जोशी की मौजूदगी में कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कार्यकारिणी की बैठक कर राजसमंद जिला संघ के सचिव गिरिराज सनाढ्य पर 48 लाख रूपए तथा भीलवाड़ा जिला संघ के सचिव के.के. शर्मा पर 20 लाख  रूपए के गबन का आरोप लगाते हुए उन्हें नोटिस देने के साथ निलंबित कर दिया गया  है।
साथ ही  आर्बिट्रेशन का फैसला आने तक अध्यक्ष  सी.पी. जोशी के अघिकारों पर रोक लगा दी है। दीक्षित गुट ने एक अंतरराष्ट्रीय अपराधी को बहाल करने तथा एक सांसद को पद से हटाने के लिए सी.पी. जोशी गुट की आलोचना भी की है। दीक्षित गुट ने उदयपुर में हुई बैठक के सभी फैसलों को असंवैधानिक भी बताया है।
वांछित बहाल, मुझे हटाना दुर्भाग्यपूर्ण
राजनीति में कांग्रेस के हमराह केन्द्रीय मंत्री सी.पी. जोशी व सांसद महेश जोशी क्रिकेट की राजनीति में आमने-सामने हो गए हैं। उदयपुर बैठक में खुद की आरसीए चेयरमैन पद की ताजपोशी को अमान्य करार दिए जाने से भड़के जयपुर के सांसद महेश जोशी ने कहा, 'जिस वांछित व्यक्ति के खिलाफ भारत सरकार का ब्ल्यू कॉर्नर नोटिस है उसे बहाल किया जा रहा है और मुझ चुने हुए सांसद जो संयोग से अपनी ही पार्टी का है उसे हटाने की कार्रवाई की कोशिश से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता।'
जोशी का इशारा नागौर जिला क्रिकेट संघ की बहाली की ओर था जिसके अध्यक्ष आरसीए के पूर्व अध्यक्ष ललित मोदी हैं। जोशी ने आरोप लगाया कि जयपुर में क्रिकेट के केन्द्र को उदयपुर ले जाने की साजिश रची जा रही है जिसका जयपुर के सांसद के नाते वे खुद व शहर की जनता विरोध करेगी।
सांसद के नाते यह उनकी जिम्मेदारी भी है। जोशी ने रात को पत्रिका से बातचीत में कहा कि सी.पी. जोशी उनकी पार्टी के नेता हैं और उनका सम्मान भी है लेकिन क्रिकेट को जयपुर से उदयपुर ले जाने की साजिश बर्दाश्त नहीं की जा सकती। वे बोले, ' मैं सी.पी. जी से पहले पिछले 20 साल से क्रिकेट से जुड़ा हूं, जयपुर में प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते हैं, जयपुर से क्रिकेट को बाहर कैसे जाने देंगे?' सवालों के जवाब में जोशी ने कहा कि क्रिकेट के मामले में दलीय राजनीति का कोई लेना-देना नहीं है।
पार्टी नेतृत्व ने उनसे क्रिकेट राजनीति के बारे में न कोई बात की है और न ही कोई जानकारी मांगी है, यदि मांगी जाएगी तो वे अवगत करवाएंगे लेकिन अपनी तरफ से नहीं। उनकी सी.पी.जोशी से भी कोई बात नहीं हुई है। कोई रास्ता निकालने के लिए सी.पी. बात करते हैं तो स्वागत है लेकिन वे अपनी ओर से कोई बात नहीं करेंगे। चेयरमैन पद से हटाने के खिलाफ कानूनी कदम उठाने के बारे में पूछने पर जोशी ने कहा, ' कानूनी कार्रवाई जिनको करनी है वे करेंगे लेकिन जिन लोगों ने मुझे चेयरमैन बनाया था मैं उनके साथ हूं।'

हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही के निर्देश दिए

 
आधीरात को मां बाप को घायल कर लड़की को उठा कर ले जाने के मामले में महीने भर कार्यवाही नहीं करने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया

जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले की सुनवाई में पुलिस महानिरीक्षक अजमेर रेंज को नागौर जिले के डेगाना पुलिस थाना के सहायक उपनिरीक्षक सोहनलाल के विरुद्ध अनुसंधान में कोताही बरतने पर अधिकारी के विरुद्ध उचित कार्यवाही करने के आदेश दिए हैं। यह आदेश न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायाधीश सीएम तोतला ने प्रार्थी डेगाना तहसील अंतर्गत खुडीकलां गांव के निवासी रामनिवास की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत दिए ।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता इन्द्रराज चौधरी ने अदालत में बताया कि 21 जून 2011 को रात्रि 1.30 बजे रामदेव, हरदेवराम, भंवरराम, राजू एवं सुरेश वगैरह गाडिय़ों में सवार होकर उसकी ढाणी आए व उसके व उसकी पत्नी के साथ मारपीट कर उसकी नाबालिग बेटी को उठा कर ले गए। इसकी रिपोर्ट डेगाना थाने में लिखवाई जिसे आईपीसी की धारा 365, 458 व 325 के तहत दर्ज किया गया, लेकिन पुलिस ने आरोपियों के साथ मिलीभगत के चलते आज दिन तक न तो गिरफ्तार किया व न ही उसकी लड़की को बरामद किया।
इस पर खंडपीठ ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि या तो अनुसंधान अधिकारी आरोपियों से हाथ मिलाए हुए है, अन्यथा उसे अनुसंधान के बेसिक्स भी नहीं आते। उन्होंने आईजी अजमेर रेंज व पुलिस अधीक्षक नागौर को अनुसंधान अधिकारी के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही करते हुए मामले को व्यक्तिगत रूप से देखने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 1 अगस्त को रखी गई है।

यहां है खून पीने वाले पिशाचों का साम्राज्य!

 
भूत, प्रेत और आत्मा का वैसे तो कोई निश्चित स्थान नहीं होता लेकिन दुनिया भर में कुछ जगहें हैं जहां आत्माएं खुद स्थान बना लेती हैं। अभी तक आपने पुराने घरों, इमारतों और जहाजों पर आत्माओं के होने के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस कब्रिस्तान के बारे में जहां खून पीने वाले पिशाचों का साम्राज्य है।



हम बात कर रहे हैं लंदन के हाईगेट कब्रिस्तान की। इस कब्रिस्तान में अभी तक कई लोगों ने वैम्पायर्स (खून पीने वाला पिशाच) को घूमते फिरते देखा है। लेकिन अभी तक उन्होंने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है। लोगों को यहां पर सिर्फ मौत के राक्षसों का अनुभव हुआ है। लोगों का मानना है कि वे अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं।



वैसे दुनिया में कब्रिस्तान का नामभर सुनकर लोगों को भूत प्रेत और आत्मा का खयाल आ जाता है। लेकिन यहां का माहौल कुछ अजीब ढंग से है। क्योंकि आज तक किसी को कोई खंरोच नहीं आई है, वे सिर्फ चहल-कदमी करते हुए दिखाई देते हैं। इसलिए लोगों का मानना है कि इनकी अपनी अलग दुनिया है, अलग साम्राज्य है, इनका किसी से कोई लेना-देना नहीं है।

इस डॉगी के पास है अजीब शक्ति, जानकर चौंक जाएंगे आप!

 


लंदन. यूं तो आप टीवी-सर्कस और घर में डॉगी का कई कारनाम देख ही चुके हैं। लेकिन यहां हम जिस डॉगी के बारे में बताने जा रहे हैं वह हवा में उड़ता है। जी हां यह डॉगी 6 फिट से ज्यादा हवा में जंप कर सकता है।
डॉग के मालिक स्टेकी क्लार्क का कहना कि उनका डॉगी 6 फिट से ज्यादा हाईजंप कर सकता है। इसके पहले एक डॉग ने 5.8 फिट हाईजंप करके वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। उन्होंने कहा कि हमने इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए अपने डॉगी पर खास मेहनत की है।
उन्होंने बताया कि वॉकीज हमारे बच्चों के साथ स्वीमिंग के लिए जाता है, जहां पर वह हवा में कई तरह की कलाबाजियां करता है। जब बच्चे किसी चीज को हवा में उछालते हैं तो वॉकीज उसे जंप करके दबोच लेता है। इस तरह की मस्ती वॉकीज को काफी पसंद है। इसके साथ ही उसे बच्चों के साथ घूमना-फिरना भी अच्छा लगता है।
यह परिवार अभी हाल ही में केरगॉर्म्स घूमने गया था जहां पर उन्होंने वॉकीज की कुछ अफलातून तस्वीरों को कैमरे में कैद किया। इस परिवार के लिए वॉकीज एक डॉग ही नहीं बल्कि वह उनके परिवार का एक सदस्य भी है।
 

 

 

 

संसद में ही मुन्नी बदनाम हुई के जरिए कर डाली 'छेड़छाड़'

 
 
काठमांडू.जब बॉलीवुड फिल्म 'दबंग' प्रदर्शित हुई तो किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि इसका ममता शर्मा का गाया और मलाइका अरोड़ा पर फिल्माया गया 'मुन्नी बदनाम हुई' आइटम गीत इस उप-महाद्वीप में इतना लोकप्रिय होगा। अब इस गीत पर नेपाली संसद में हंगामा खड़ा हो गया है।
नेपाल के पूर्व संस्कृति मंत्री मिनेंद्र रिजल की नेपाली कांग्रेस पार्टी अब विपक्ष में है और संसद की कार्यवाही में बाधा पहुंचाकर प्रधानमंत्री झाला नाथ खनाल के इस्तीफे की मांग कर रही है। रिजल ने गुरुवार को सदन में 'मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिए' गीत का इस्तेमाल किया।
रिजल हिंदी फिल्में देखने के शौकीन हैं। अब 53 साल के हो चुके रिजल छात्रजीवन के दिनों से ही बॉलीवुड फिल्में देख रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी की बात रखने के लिए इस गीत का इस्तेमाल किया।
उन्होंने नेपाली प्रधानमंत्री को 'मुन्नी' की उपमा दी और माओवादी प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड को 'डार्लिग' कहा। उनके कहने का मतलब था कि प्रचंड की खातिर प्रधानमंत्री बदनाम हुए। यह प्रधानमंत्री के माओवादियों संग गठबंधन पर टिप्पणी थी। माओवादियों के कारण ही फरवरी में यह सरकार सत्ता में आई थी और अब उन्हीं के कारण अपनी गद्दी खो सकती है।अब जब संविधान निर्माण की समयसीमा पूरी होने में थोड़ा ही समय बाकी है तब प्रधानमंत्री पर मंत्रिमंडल में फेरबदल करने व माओवादी पार्टी के 24 मंत्री चुनने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
नेपाली कांग्रेस ने चेतावनी दी है कि वह मंत्रिमंडल में फेरबदल नहीं होने देगी। वह खनाल के इस्तीफे की मांग कर रही है।खनाल की दुविधा को देखते हुए गुरुवार को रिजल ने संसद में कहा कि प्रधानमंत्री अपनी 'डार्लिग' के कारण अपनी छवि खराब कर रहे हैं। रिजल की इस टिप्पणी पर जहां प्रधानमंत्री की ही पार्टी के सांसद मुस्कुरा उठे तो वहीं तराई पार्टी नेपाल सद्भावना पार्टी (आनंदी देवी) की सांसद सरिता गिरी ने इस पर आपत्ति जताई

छात्रों ने प्रिंसिपल को चैंबर में बंद किया

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कोटा कॉमर्स कॉलेज की जमीन में से 15 बीघा जमीन गवर्नमेंट लॉ कॉलेज को हस्तांतरित करने के मामले का विरोध कर रहे छात्रों ने शुक्रवार को प्रिंसिपल प्रो.आर के मीणा को 10 मिनट तक अपने ही चेंबर में बंद कर दिया। बाद में कर्मचारियों ने उन्हें बाहर निकाला। प्रदर्शन कर रहे छात्र प्रिंसिपल की टेबल पर चढ़ बैठे और चैंबर में रखी कुर्सियां पलट दी।

सुबह 11.30 बजे छात्र संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस मामले को लेकर कॉमर्स कॉलेज में नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। छात्रों का कहना था कि वे कॉलेज की जमीन किसी भी सूरत में लॉ कॉलेज को नहीं देने देंगे। इसके बाद छात्र उग्र हो गए और उन्होंने परिसर में हंगामा करते हुए कक्षाओं में पढ़ाई ठप करा दी। शेष x पेज १क्

कॉलेजों में अगस्त-सितंबर में छात्रसंघ चुनाव होने हैं, इसे देखते हुए छात्रसंघ की राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। कैंपस में छोटे-छोटे मुद्दों पर प्रदर्शन होने लगे हैं, जिससे कॉलेजों में पढ़ाई प्रभावित हो रही हैं।


आए दिन जाम, प्रदर्शन, नोक-झोंक, प्रदर्शन करने से कॉलेज की छवि बिगड़ रही हैं। फ्रेशर्स का कहना है कि इस साल कटऑफ 62 प्रतिशत रहा है, ऊंचे प्रतिशत वाले छात्र रेगुलर क्लासेस में पढ़ना चाहते हैं,लेकिन सीनियर्स के हंगामे से फ्रेशर्स परेशान हैं।

7 दिन में जमीन दें
गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के छात्रों ने शुक्रवार को कॉमर्स कॉलेज पहुंचकर वाइस प्रिंसिपल को ज्ञापन दिया और लॉ कॉलेज के लिए शीघ्र ही जमीन हस्तांतरित करने की मांग की। लॉ कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष ओम गुंजल ने बताया कि सात दिन में यदि भूमि हस्तांतरित नहीं की गई तो कॉमर्स कॉलेज के बाहर अनशन किया जाएगा। छात्र मुकेश गौतम के नेतृत्व में छात्र गृह मंत्री शांति धारीवाल से मिले और कॉलेज के लिए जमीन दिलाने और निर्माण कार्य शुरू कराने की मांग की।
जमीन दी तो आंदोलन
एबीवीपी के छात्रों ने बताया कि कॉलेज में छात्र लंबे समय से कक्षाओं में फर्नीचर की कमी को लेकर परेशान हैं। उन्होंनें कहा कि कॉलेज की जमीन लॉ कॉलेज को दी गई तो उग्र आंदोलन करेंगे।

एक्‍सक्‍लूसिव:रामदेव से सिब्‍बल ने की थी डील- लोकपाल रोकेंगे, आपकी मांग मानेंगे!

 
 
मुंबई. जन लोकपाल बिल अगर  अपने सभी प्रावधानों के साथ लागू हो जाए तो भ्रष्टाचार से कमाई गई रकम का इस्तेमाल मुश्किल हो जाएगा। इसलिए, भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश चल रही है। 3 जून को एक पांच सितारा होटल में कपिल सिब्बल ने बाबा रामदेव से कहा कि सरकार जन लोकपाल बिल को पास नहीं होने देगी लेकिन उनकी मांगें मान ली जाएंगी।  
सरकार ने लोकपाल आंदोलन की धार कुंद करने के लिए 'बांटो और राज करो' की नीति अपनाई थी। सरकार की बाबा रामदेव से हुई डील भ्रष्टाचार से लड़ रहे लोगों को बांटने की सरकार की एक और कोशिश थी। लेकिन सौभाग्य से यह कोशिश नाकाम रही। कुछ पत्रकार, ब्लॉगर, एनजीओ जो आंदोलन का हिस्सा नहीं रहे हैं और छूटा हुआ महसूस करते हैं, वे यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के बीच फूट पड़ गई है।
रामदेव से कहा गया कि वह अन्ना हजारे के साथ मंच साझा न करें। आप यह मान सकते हैं कि 4 जून को स्वामी रामदेव और उनके समर्थकों पर रामलीला मैदान में इसलिए कार्रवाई की गई क्योंकि 5 जून को हजारे रामलीला मैदान जाकर स्वामी रामदेव के साथ मंच पर बैठने वाले थे। 
इसके बाद इटली के कूटनीतिकार मैकियावली के डिवीजन और डाउट (बंटवारा और शक पैदा करो) सिद्धांत पर अमल करते हुए अन्ना हजारे और उनकी टीम को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के पिट्ठू के तौर पर प्रचारित किया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि मुस्लिमों, ईसाइयों और दूसरे अल्पसंख्यकों के बीच मौजूद असुरक्षा की भावना से खेलते हुए धार्मिक आधार पर विभाजन किया जा सके। इस पर अल्पसंख्यकों और चिंतित नागरिकों ने सवाल खड़े किए थे। 
गुजरात में ग्राम स्तर पर प्रशासन को लेकर अन्ना हजारे की टिप्पणी को बढ़ा चढ़ाकर सांप्रदायिक राजनीति के समर्थन के तौर पर पेश किया गया और यही नहीं, अन्ना के बयान को गुजरात में दंगों के समर्थन में भी दिखाने की कोशिश की गई। सौभाग्य से टीम अन्ना ने सधे जवाबों से कई तरह के भ्रम तोड़े।   
दलित मीडिया और दलित समाज में यह भ्रम फैलाने की कोशिश की गई कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन संविधान के खिलाफ है। साथ ही यह भी साबित करने की कोशिश हुई कि हजारे बाबा साहब अंबेडकर के खिलाफ हैं। दलित कार्यकर्ताओं की मुंबई में हुए एक बैठक के दौरान अन्ना बनाम बाबा अंबेडकर से ही जुड़े सवाले पूछे गए। लेकिन एक बार पूरी बात समझ लेने के बाद दलित नेताओं ने जन लोकपाल बिल का पूरा समर्थन किया।
फूट डालने के लिए टीम अन्ना और राष्ट्रीय सलाहकार समिति (एनएसी) को आमने-सामने खड़ा किया गया। इससे ज़्यादा अहम बात यह थी कि लोगों के दिमाग में संदेह पैदा करने के लिए एक सुनियोजित अभियान चलाया गया। इसका पहला कदम था लोकपाल बिल की मांग कर रहे लोगों को कठघरे में खड़ा करना। इसके लिए झूठ और आधे सच बोले गए।   
अन्ना हजारे की छवि खराब करने के लिए किए गए शुरुआती हमले बेकार साबित हुए। इसके बाद शांति भूषण और प्रशांत भूषण पर सवाल खड़े किए गए। लेकिन एक खराब छवि वाले राजनेता को इस काम के लिए लगाया गया जो आखिर में बड़ी गलती साबित हुई। 
शुरुआती शक-ओ-शुबह दूर होने के बाद लोगों को यह खेल समझ में आने लगा, इसके चलते ताकतवर और धूर्त पीछे हटने पर मजबूर हो गए।
दूसरा कदम, प्रक्रिया (जन लोकपाल विधेयक को तैयार करने और पास कराने का तरीका) पर सवाल खड़े किए गए। इसे अलोकतांत्रिक, असंसदीय और लोगों का प्रतिनिधित्व न करने वाला बताया गया। मुद्दों पर चर्चा नहीं हुई बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा, सरकार को अपने हाथ में लेने जैसी बातें करके लोगों को डराया गया।
तीसरा कदम, खास मुद्दों पर चर्चा के बजाय सुपरकॉप, फ्रैंकेंस्टाइन मॉन्स्टर, प्रधानमंत्री और न्यायपालिका से ऊपर होने, सांसदों के अधिकार छीनने और अव्यवहारिक होने जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके लोगों के मन में संदेह पैदा करने की कोशिश की गई।
अगर कायदे से देखा जाए तो इनमें से कोई भी आरोप सही नहीं साबित होगा। लेकिन ऐसी कोशिशों के पीछे यही यकीन था, ‘आओ कुछ कीचड़ उछालें, कुछ तो सामने वाले पर लगेगा ही।’
चौथा और सबसे ज़्यादा छलावा भरी कोशिश ऐसे विधेयक को तैयार करके की गई जिससे संदेह पैदा हो। आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि कैबिनेट का ड्राफ्ट बिल बहुत सधे हुए शब्दों में तैयार किया गया होगा ताकि यह लगे की सरकार बहुत व्यवहारिक है और सरकारी बिल जन लोकपाल बिल जैसा ही लगे।    
नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इन्फर्मेशन (एनसीपीआरआई) ने एक मजबूत लोकपाल बिल तैयार किया। लेकिन यह बिल लोकपाल के अधिकारों और काम को पांच अलग-अलग विधेयकों में बांटता है और किसी एक एजेंसी को पूरी शक्ति नहीं देता है। सरकार इस विधेयक के बड़े हिस्से को स्वीकार कर लेगी। यह जन लोकपाल बिल को खत्म करने का समझदारी भरा कदम है।
सरकार की इस नकारात्मक मुहिम में दो और तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया गया है। ये हैं डिस्कनेक्ट (कटा हुआ या अलग-थलग)  और डिनायल (इनकार करना) ।
मुंबई में किए गए एक जनमत संग्रह में यह बात सामने आई कि 95 फीसदी लोगों ने जन लोकपाल बिल को मंजूरी दी है। मीडिया में हुए ओपीनियन पोल में यह देखा गया कि सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा और अन्ना हजारे के लिए बहुत समर्थन है। लेकिन लगता है कि सरकार जनभावना को अनदेखा कर रही है और लोगों से पूरी तरह कटी हुई है। 
इन तरीकों से लड़ने का एक ही तरीका है और वह है सच। सूरज की रोशनी सबसे अच्छा कीटनाशक होती है। यह धीमी प्रक्रिया जरूर है, लेकिन यह निश्चित जरूर है।

अब अन्‍ना-सरकार में जंग? भाजपा साथ, दिग्‍वि‍जय का वार

अब अन्‍ना-सरकार में जंग? भाजपा साथ, दिग्‍वि‍जय का वार

 
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नई दिल्‍ली. मजबूत लोकपाल की मांग को लेकर 16 अगस्‍त से जंतर-मंतर पर अनशन की तैयारियों में जुटे अन्‍ना हजार को दिल्‍ली पुलिस ने तगड़ा झटका दिया है। दिल्‍ली पुलिस ने अन्‍ना को साफ कह दि‍या है  कि‍ वह जंतर-मंतर पर बेमियादी अनशन नहीं कर सकते। पुलि‍स ने उनसे कहा कि‍ या तो वह अपने आंदोलन के लि‍ए दि‍ल्‍ली के बाहर कोई जगह चुन लें या फि‍र पहले से कार्यक्रम बता कर आंदोलन के लि‍ए इजाजत मांगें।  संसद के मॉनसून सत्र के दौरान सदन के आसपास अन्‍ना धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकें, इसके लि‍ए धारा 144 लागू करने के आदेश भी दिए गए हैं। लेकि‍न अन्‍ना का कहना है कि शांति‍पूर्वक प्रदर्शन करना उनका हक है और वह मनाही के बावजूद अनशन करेंगे।

टीम अन्‍ना ने जंतर-मंतर पर अनशन की इजाजत नहीं मिलने पर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आंदोलन में अन्‍ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि निषेधाज्ञा के बावजूद अन्‍ना हजारे का शांतिपूर्वक अनशन होगा।

उन्‍होंने पत्रकारों से कहा कि संविधान के तहत देश के नागरिकों को हासिल मूल अधिकारों में भी शांतिपूर्वक सभा करने का प्रावधान है। यदि सरकार हमें अनशन पर बैठने से रोकती है तो यह संविधान की हत्‍या है।

बीजेपी ने भी टीम अन्‍ना को जंतर-मंतर पर अनशन की इजाजत नहीं देने पर सरकार को आड़े हाथ लिया है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस हर उस शख्‍स को कुचलने में जुटी है जो भ्रष्‍टाचार का विरोध करता है।  लेकि‍न कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने टीम अन्‍ना को एक तरह से चुनौती देते हुए कहा है कि सरकार किसी के अनशन से नहीं डरती है।
दिल्‍ली पुलिस ने अन्‍ना को जंतर-मंतर पर अनशन से मना करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 2009 में दिए गए एक आदेश का हवाला दिया है। दिल्‍ली पुलिस का कहना है कि वो कोर्ट के आदेश के मुताबिक दिल्‍ली में किसी भी स्‍थान पर बेमियादी धरना की इजाजत नहीं दे सकती। पुलिस का कहना है कि चूंकि उस वक्‍त संसद का सत्र चल रहा होगा, ऐसे में किसी को जंतर-मंतर पर पूरा जगह घेरने की इजाजत नहीं दी जा सकती है क्‍योंकि उस वक्‍त कई अन्‍य संगठन भी विरोध प्रदर्शन के लिए वहां जुट सकते हैं।
जंतर-मंतर पर धरने की इजाजत के लिए टीम अन्‍ना की ओर से लिखे खत के जवाब में दिल्‍ली पुलिस ने कहा है कि टीम अन्‍ना चाहे तो अनशन स्‍थल दिल्‍ली के बाहरी इलाकों में शिफ्ट कर सकती है या फिर एक निश्चित समय-सीमा दे जिस दौरान उन्‍हें धरना-प्रदर्शन की इजाजत दी जा सके।
इससे पहले सरकार ने लोकपाल बिल के लिए तैयार किए गए ड्राफ्ट को मंजूरी देकर टीम अन्‍ना को झटका दिया। सरकार के मसौदे में मौजूदा पीएम और न्‍यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है जबकि टीम अन्‍ना मौजूदा पीएम को भी लोकपाल के दायरे में रखना चाहती थी। (पूरी खबर पढ़ने के लिए पहली रिलेटेड खबर पर क्लिक करें)
केंद्रीय कैबिनेट ने सरकार के प्रतिनिधियों की तरफ से पेश किए गए ड्राफ्ट को कुछ बदलावों के साथ गुरूवार को हरी झंडी दिखा दी, लेकिन गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना के ड्राफ्ट को दरकिनार कर दिया। कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए बिल को संसद की मंजूरी के लिए 1 अगस्त से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा। सरकार के एकतरफा फैसले से नाराज अन्‍ना और उनके समर्थकों ने 9 अगस्‍त को सरकारी बिल की प्रतियां जलाने का फैसला किया है।
आपकी बात
पहले टीम अन्‍ना के ड्राफ्ट की अनदेखी और अब जंतर-मंतर पर धरने की राह में रोड़ा। सरकार के इस कदम को आप किस रूप में देखते हैं? क्‍या सरकार अन्‍ना के साथ भी वही हश्र करने की फिराक में है, जैसा रामदेव के साथ हुआ था? अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्‍स में लिखकर दुनियाभर के पाठकों से शेयर करें।
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