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02 अगस्त 2011

डॉक्टर के घर में 'करेत

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कोटा। दुनिया में सबसे विषैला माना जाने वाला सांप 'करेत' सोमवार देर रात सिविल लाइंस में एक चिकित्सक के घर में निकला। सूचना मिलने पर सर्प विशेषज्ञ विष्णु शृंगी ने खासी मशक्कत के बाद उसे पकड़ा।
शृंगी  के अनुसार कोटा शहर के अंदर पहली बार उन्होंने इसे पकड़ा है। करेत में इतना जहर होता है कि वह दो सौ ज्यादा लोगों को या 20-22 हाथियों को मौत की नींद सुला सकता है।
एमबीएस अस्पताल के सामने सिविल लाइंस में रहने वाले यूरोलॉजिस्ट डॉ. अरू ण शर्मा के घर के अंदर कूलर में रात करीब डेढ़ बजे सांप नजर आया तो उन्होंने विष्णु शृंगी को फोन कर अपने घर बुलाया। मौके पर पहंुचे श्ृंगी को पहले तो यह पानी का सांप जैसा नजर आया, लेकिन ध्यान से देखने पर वह करेत निकला। करीब एक मीटर लम्बा यह सांप बड़ी मुश्किल से पकड़ा गया।
शृंगी का कहना था कि पिछले 17 साल के अपने कैरियर में उन्होंने कोटा शहर में घर के अंदर पहली बार करेत पकड़ा है। आमतौर पर बारिश का पानी भरने पर यह अपने बिल से बाहर आता है। यह दिन में शिथिल रहता है, लेकिन रात को सक्रिय हो जाता है। यह आमतौर पर जमीन पर सोते हुए व्यक्ति पर हमला करता है। यह मानव की गंध पहचान कर उसके पास आता है और हमला करता है। कोटा जिले और आसपास के कस्बों में इन दिनों करेत के डसने के कई मामले सामने आए हैं।

पुलिया पर दो ट्रक टकराए, एक नदी में गिरा




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 कोटा। चंबल की छोटी पुलिया पर मंगलवार रात को एक ट्रक को ओवरटेक करने के प्रयास में दो ट्रक टकराए और एक ट्रक नदी में गिर गया। ट्रक में सवार चालक और खलासी लापता हो गए, दूसरे ट्रक  का चालक गंभीर घायल हो गया। देर रात तक पुलिस और नगर निगम के दस्ते ने बचाव अभियान चलाया, लेकिन लापता चालक और खलासी का पता नहीं चल सका। पुलिस उपअधीक्षक संजय गुप्ता ने बताया कि एक ट्रक दूसरे को ओवरटेक कर रहा था।
 इस दौरान ही पीछे से आ रहे ट्रक ने आगे चल रहे ट्रक को टक्कर मारी और नदी में जा गिरा। जिस ट्रक को टक्कर मारी, उसके चालक अकलेरा निवासी ओम प्रकाश को चोट लगी है और उसे एमबीएस अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहीं नदी में गिरे ट्रक के चालक-खलासी का पता नहीं चला है। पुलिस ने इस बात की भी संभावना जताई है कि दोनों ही ट्रक में से निकल कर भाग गए।
नदी में तेज बहाव
बैराज के गेट खुले होने से नदी में तेज बहाव था। टक्कर के बाद जैसे ही ट्रक नदी में गिरा, वह बहकर पुलिया के नीचे से होकर दूसरी ओर आ गया। इस दौरान मौके पर पहुंचे अधिकारियों ने उच्चाधिकारियों से बात कर बैराज के गेट बंद कराए। इसके बाद पानी का प्रवाह कम हुआ। नगर निगम के गोताखोरों ने रात को ही नदी में उतर कर चालक और खलासी की तलाश की, लेकिन पानी का बहाव तेज होने और अंधेरा होने पर काम रोककर बुधवार सुबह करने की बात कहकर लोगों को रवाना किया गया। दूसरे ट्रक को क्रेन की मदद से हटाने का प्रयास किया गया।
दोनों तरफ से रोका यातायात
ऊपरी पुल की मरम्मत के बाद वहां से यातायात शुरू  कर दिया था। बावजूद इसके दोनों ट्रक नीचे के पुल से जा रहे थे। दुर्घटना के बाद मौके पर पहुंचे अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक लक्ष्मण गौड़ उपअधीक्षक संजय गुप्ता ने लोगों को वहां से हटाया और दोनों तरफ से यातायात को बंद कराया।

जर्मनी में पहाड़ों पर मिली थी यह रहस्यमयी डिस्क लेकिन इसके बारे में...

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पिछले कुछ सालों में मिली पुरातत्व सामग्री में नेबरा स्काय डिस्क सबसे ज्यादा आकर्षक और विवादित भी है। करीब 1600 ईसापूर्व की यह तांबे की गोल डिस्क है। इसका व्यास 32 सेंटीमीटर और वजन करीब चार पौंड है। हरे-नीले रंग की इस डिस्क पर सुनहरे रंग से एक पतला चांद और एक पूरा गोल चांद बना है।

ये गोला सूरज भी हो सकता है। इसके अलावा छोटे-छोटे गोले बने हैं, जो तारे हो सकते हैं। इसमें किनारे की तरफ दो आर्क और बने हैं। ये मिल्की वे या इंद्रधनुष या फिर आकाशगंगा या फिर कोई और चीज हो सकती है। दूसरी तरफ का सुनहरा गोला इसमें नहीं है।

जर्मनी में नेबरा के पास मिटेलबर्ग पहाड़ पर यह डिस्क मिली थी। इसे कांस्य युग से जोड़ा जाता है। जिस दौर की ये है उस दौर की स्टाइल से ये मेल नहीं खाती, इसलिए इसे फर्जी भी समझा जाता था। फिर भी अब इसे सही मान लिया गया है। डिस्क के अलावा दो तस्वारें और कुछ अन्य सामग्री भी वहां मिली थीं। ये सब सामान पहाड़ पर मिला था, इसलिए यह भी अनुमान लगाया जाता है कि वहां कोई ऑब्जर्वेट्री रही होगी।

डिस्क को लेकर दूसरी थ्योरी भी दी जाती है। कुछ लोगों को लगता है कि साइड आर्क को नीचे रखें तो यह नाव हो सकती है और सुनहरा गोला सूरज। छोटे गोले तारे हैं और बीच में एक साथ बने सात गोले सेवन सिस्टर्स या फिर एम45 कहे जाने वाले तारे हैं। साइड के दोनों आर्क्‍स का एंगल भी साल में दो बार होने वाली खगोलिक घटना समर और विंटर सोल्सटाइस से मेल खाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ बोचुम के प्रोफेसर वुल्फहार्ड ने ये एंगल नापा था। उन्होंने पाया कि मिटेलबर्ग पहाड़ से देखने पर गर्मी और सर्दी में सूरज इसी एंगल से क्षितिज की तरफ जाता है। इसलिए ये डिस्क एस्ट्रॉनॉमी में इस्तेमाल होती होगी।

राज है गहरा

1999 में खजाना तलाश रहे लोगों को जर्मनी में कांस्य युग के कुछ आइटम मिले थे। इसमें से एक थी नेबरा स्काय डिस्क। इसका क्या इस्तेमाल होता होगा ये आज तक समझ से परे है।

इन तस्वीरों को देखकर आप भी कहेंगे 'ओह माई गॉड'


 
 
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हादसों की कुछ ऐसी तस्वीरें जिन्हें देखकर आप भी दांतो तले अंगुलियां दबा लेंगे।
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सांप को मारने के बाद उसके पेट से निकली थी चमत्कारी 'तलवार

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कूसानागी-नो-सूरूगी जापान की एक प्राचीन और मशहूर तलवार है। इसको लेकर वहां एक पौराणिक कथा मशहूर है। प्राचीन ग्रंथ कोजिकी के अनुसार जापानी देवता सूसानू का सामना धरती के देवताओं के एक दु:खी परिवार कूनित्सूकामी से हुआ। परिवार के मुखिया अशिनाज़ूची कोसी नदी में रहने वाले आठ मुंह के सांप यामाटा-नो-ओरूची से बहुत परेशान थे, क्योंकि सांप उनकी सात बेटियों को खा चुका था और अब आठवीं बेटी कुशिनादा को भी खाने की तैयारी में था।
सूसानू ने मामले की जांच की और सांप से एक संक्षिप्त मुठभेड़ के बाद उसे खत्म करने की योजना बनाई। इसके बदले में उन्होंने अशिनाज़ूची से कुशिनादा का हाथ मांगा। उनकी शर्त मान ली गई। सांप को मारने के बाद उसके पेट से यही तलवार निकली थी। ये तलवार देवी एमाटेरासू को अपना पुराना गम भुलाने के लिए दी गई। कई पीढ़ियों बाद एक योद्धा यामाटो टाकेरू को ये तलवार दी गई।
एक बार यामाटो पर हमला हुआ और इस दौरान उसे पता चला कि ये तलवार हवाओं की दिशा बदल सकती है। वह इस तलवार की वजह से बच गया। वक्त गुजरा और यामाटो की शादी हो गई। फिर एक बार उनका राक्षसों से युद्ध हुआ। पत्नी के कहने पर भी वे ये तलवार लेकर नहीं गए और मारे गए। इस तलवार से जुड़ी और भी कहानियां हैं। फिर भी कोजिकी को इतिहास नहीं माना जाता है, इसलिए दावे से कुछ नहीं कह सकते। कहते हैं ये तलवार अत्सूता मंदिर में रखी है लेकिन लोगों को ये नहीं दिखाई जाती, इसलिए ये एक राज़ ही माना जाता है।
राज़ है गहरा
जापान की पौराणिक कथा कोजिकी में कूसानागी-नो-सूरूगी तलवार की कहानी है। कहते हैं इस तलवार से ही देवता सूसानू ने आठ मुंह वाले सांप को मारा था। फिर भी ये किताब ऐतिहासिक तौर पर प्रमाणित नहीं होने से ये साबित नहीं होता।

महिला को अचानक गायब होता देख भौंचक्के रह गए थे लोग!

 
डॉर्थी अरनॉल्ड का जन्म 1884 में अमेरिका में हुआ था। उनके पिता एक मशहूर परफ्यूम इंपोर्टर थे। वे सफल लेखिका बनने की कोशिश कर रही थीं। 12 दिसंबर 1910 की बात है, डॉर्थी की उम्र 25-26 के बीच रही होगी। वे सुबह घर से ड्रेस खरीदने का कहकर निकलीं और रात में डिनर के समय तक घर नहीं लौट सकीं। इसके बाद फिर उनके बारे में कभी देखा-सुना नहीं गया। उन्हें आखिरी बार एक किताब की दुकान पर देखा गया था।
वहां उन्होंने एक सहेली से सेंट्रल पार्क होते हुए घर जाने की बात कही थी। डॉर्थी के पिता फ्रांसिस अरनॉल्ड को लगा उनकी बेटी इटली के जॉर्ज ग्रिस्कॉम के साथ भाग गई है। समाज में बेइज्जती के डर से उन्होंने करीब एक महीने तक पुलिस को सूचित नहीं किया। वे खुद ही उसे हर जगह तलाशते रहे। इस काम में उन्होंने प्राइवेट जासूसों की भी मदद ली। बाद में पुलिस ने भी काफी कोशिशें की।
ग्रिस्कॉम से भी पूछताछ की लेकिन उन्हें भी कोई जानकारी नहीं थी। कई बार उन्हें देखे जाने के दावे किए गए लेकिन तहकीकात के बाद सभी झूठे साबित हुए। ग्रिस्कॉम ने भी उन्हें तलाशने के लिए बहुत से विज्ञापन छपवाए। डॉर्थी के पिता ने भी करीब एक लाख डॉलर खर्च कर दिए लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ।
राज़ है गहरा
1910 में न्यूयॉर्क की सड़कों से डॉर्थी अरनॉल्ड ऐसे गायब हुईं कि आज तक उनका पता नहीं चला। उनके बारे में हत्या, आत्महत्या जैसे बहुत से अनुमान लगाए गए लेकिन कुछ साबित नहीं किया जा सका। ये असफल लेखिका दुनिया के लिए राज़ बनकर रह गई।

लोहे को सोना बना देता है यह रहस्यमयी 'पारस पत्थर'

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दुनिया में सदियों से लोहे को सोना बनाने वाले फिलॉस्फर स्टोन (पारस पत्थर) की बातें कही और सुनी जाती रही हैं। कहते हैं कि इस पत्थर को छूने से आदमी भी अमर हो जाता था। हमेशा से अलकेमिस्ट लोग इसकी तलाश में रहे हैं और इसे बनाने की कोशिशें भी करते रहे हैं।
कुछ अलकेमिस्ट्स के अनुसार ये पत्थर चंद्रमा या किसी दूसरे गृह पर बना था, जो धरती पर गिरा था। वहीं, कुछ को लगता है कि ये किसी अंडे के भीतर सही मटेरियल मिलने पर बनता है। सदियों से इसकी खोज होती रही है, फिर भी ये क्या चीज है और ऐसा कुछ होता भी है या नहीं, ये आज भी राज ही है।
सर आइज़ैक न्यूटन ने भी फिलॉस्फर स्टोन के बारे में समझाया था। कुछ अलकेमिस्ट कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता, ये सिर्फ ज्ञान का एक सिस्टम होता है। इस तरह ये एक आध्यात्मिक वस्तु बन गया है। पारस पत्थर के बारे में 300 ईस्वी से लिखित दस्तावेज मिलते हैं।
1620 में इलिआस अशमोले ने लिखा था कि इसका इतिहास आदम से शुरू होता है। आदम को इसकी जानकारी थी और उन्होंने अपने वंशज को ये ज्ञान दिया था। हिंदू, बौद्ध और ईसाई धर्म में भी इसके बारे में लिखा गया है। ये पत्थर कैसा नजर आता है, इस बारे में भी अलग-अलग जानकारी मिलती है। किसी में इसे लाल, किसी में जामुनी किसी में पारदर्शी बताया गया है।
राज है गहरा
हर दौर में लोहे को सोना बनाने वाले पत्थर की खोज होती रही है। इतिहास में 300 ईस्वी से इसकी जानकारी मिलती है। फिर भी ऐसा कुछ होता है या नहीं ये आज भी राज है।

थोड़ा सा हंस भी लें यार

संता टीचर बन गया, उसने एग्जाम के लिए प्रश्नपत्र बनाया। पेपर देखते ही सारे बच्चे बेहोश हो गए। प्रश्न थे- (1) चाइना किस देश में है। (2) 15 अगस्त किस डेट को आता है। (3) ग्रीन रंग किस कलर का होता है। (4) टमाटर को हिंदी में क्या बोलते हैं। (5) और मुमताज की कब्र में कौन दफन है? 

मनुष्य का मस्तिष्क अपनी बुद्धिमत्ता के चरम पर पहुंच चुका है

 
 
 
लंदन.मनुष्य का मस्तिष्क अपनी बुद्धिमत्ता के चरम पर पहुंच चुका है। एक शोध में दावा किया गया है कि मनुष्य के दिमाग में जितनी चतुराई और चालाकी अब है, पहले कभी नहीं थी। अध्ययन के मुताबिक चालाक से चालाक व्यक्ति के दिमाग में भी अब और ज्यादा विकास नहीं होगा क्योंकि मनुष्य के दिमाग के प्रमुख हिस्से ग्रे मैटर का विकास पूरी तरह हो चुका है।

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दिमाग की संरचना और उसके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ऊर्जा पर प्रमुख जोर दिया। उन्होंने पाया कि दिमाग में कोशिकाएं पूरी तरह विकसित हो चुकी हैं। अब वहां नई कोशिकाओं के बनने की जगह नहीं है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस व्यक्ति के दिमाग में कोशिकाएं अच्छे ढंग से एक-दूसरे से संबंधित रहती हैं, उसका आई क्यू अन्य लोगों से बेहतर होता है।

अध्ययन के एक भाग में दिमाग की कोशिकाओं द्वारा खर्च की जाने वाली ऊर्जा के बारे में बताया गया है। इसके मुताबिक दिमाग शरीर के कुल वजन का मात्र दो फीसदी होता है, लेकिन शारीरिक ऊर्जा का 20 फीसदी भाग दिमागी गतिविधियों में ही खर्च हो जाता है।

आखिर कब तक उड़ता रहेगा यह ‘लापरवाही का पक्षी’

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जयपुर। जयपुर एयरपोर्ट पर रनवे पर कभी भी पक्षियों को मंडराते देखा जा सकता है। भास्कर ने जब एक सप्ताह तक रनवे पर नजर डाली तो ऐसा नजारा रोज ही दिखाई दिया।

ये पक्षी जयपुर एयरपोर्ट प्रशासन की लापरवाही से विमानों से टकराकर हादसे का कारण बनते रहे हैं। जयपुर एयरपोर्ट से संचालित विमानों में पिछले एक साल में अब तक बर्ड हिट के 8 हादसे हो चुके हैं। इन हादसों के पीछे एयरलाइंस कंपनियां जितनी दोषी हैं, उतना ही एयरपोर्ट प्रशासन। एयरपोर्ट के आसपास गंदगी और कचरे का ढेर रनवे के ऊपर पक्षियों को हर समय मंडराने पर मजबूर कर रहा है।

विमान से पक्षी टकराना खतरनाक क्यों?

पक्षी के विमान से टकराने की तकरीबन 65 फीसदी घटनाएं सामान्य होती हैं जिनमें जान-माल का कोई नुकसान नहीं होता। नुकसान तब ज्यादा होता है जब पक्षी विमान की विंड स्क्रीन से या इंजन से टकरा कर उसमें चला गया हो। हालांकि नुकसान की गंभीरता पक्षी के वजन और यान की गति पर निर्भर करती है।

पक्षी के इंजन से टकराने पर उसमें तेजी से घूम रहे पंखे की ब्लेड टूटकर मुड़ जाती है जो एक के बाद एक सभी ब्लेडों को तोड़कर इंजन को ठप कर देती है, जो एयर क्रैश का कारण भी बन सकते हैं। टेकऑफ करते वक्त नुकसान ज्यादा हो सकता है, क्योंकि जमीन से ऊपर उठते वक्त इंजन के पंखों की गति सबसे तेज होती है। विंडशील्ड टूटने से भी काफी नुकसान हो सकता है क्योंकि हवा में 5 किलो के पक्षी का टकराना उतना ही असर डालता है जितना कि 100 किलो वजन के 15 मीटर की ऊंचाई से गिराने से पड़ता है।

ये हुई घटनाएं

* 6 जुलाई 2010, कंपनी स्पाइसजेट, अहमदाबाद से जयपुर आ रही थी, लैंड करते समय पक्षी विमान की पंखुड़ियों से टकराया। इसमें 133 यात्री थे। * 22 अगस्त 2010, कंपनी स्पाइसजेट, अहमदाबाद से 4 घंटे देरी से आई फ्लाइट। कंपनी ने कहा, अहमदाबाद में उड़ान भरते समय पक्षी टकरा गया। * आधा दर्जन घटनाएं जयपुर एयरपोर्ट पर ही हुई हैं। देश के अन्य एयरपोर्ट पर पक्षी टकराने की घटनाएं इतनी नियमित नहीं होती

दान देना है, फिर भी 16 साल से लगा रहे हैं चक्कर

 

 
 
जयपुर। गांव में मातृ शिशु कल्याण केंद्र खोलने का मां से किया वादा पूरा करने के लिए थानागाजी तहसील के गढ़ी मामोड़ निवासी 68 वर्षीय किशोरीलाल स्वामी पिछले सोलह साल से चिकित्सा विभाग के अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। उन्होंने केंद्र खुलवाने के लिए न केवल जमीन खरीदी, बल्कि उस पर भवन भी तैयार करा लिया। सीएमएचओ ने भवन को केंद्र के लिए उपयुक्त मानने की रिपोर्ट देने के बावजूद सरकार ने यहां अब तक केंद्र स्वीकृत नहीं किया है। भवन 1995 में बनवाया गया था।

यह रहा पत्र व्यवहार का सिलसिला

14.9.1997 : किशोरीलाल ने स्थानीय विधायक व तत्कालीन खेल राज्यमंत्री रोहिताश्व शर्मा को लिखा।
28.6.1996 : संयुक्त निदेशक ने सीएमएचओ को भवन की रिपोर्ट भेजने के लिए कहा।
15.11.1997 : सीएमएचओ ने संयुक्त निदेशक को रिपोर्ट में भवन को केंद्र के लिए उपयुक्त माना।
26.1.98 : किशोरी लाल ने ग्राम पंचायत को पत्र लिखा
12.1.2001 : किशोरी लाल ने सीएमएचओ अलवर को पत्र लिखा।
9.8.2001 : किशोरी लाल ने सरपंच को पत्र लिखा।
2010 व 2011 में : वर्तमान चिकित्सा मंत्री दुरुमियां, सांसद लालचंद कटारिया को दान लेने के लिए पत्र लिखा। इसके अलावा प्रशासन गांवों के संग अभियान में भी इसके लिए अधिकारियों को ज्ञापन दिया।

इन गांवों को मिलेगा फायदा : सरकार यहां यह कल्याण केंद्र खोल दें तो अजबपुरा, खरवड़ी, चांदपुरी, मुंडावरा, कोलाहेडा सहित कई गांवों के निवासियों को फायदा मिल सकता है।

इस घटना ने दुखाया था मां का दिल : किशोरीलाल ने बताया कि 1983 में परिवार की एक महिला को प्रसव के लिए मेरी मां नारायणपुर लेकर जा रही थी। तब इतने साधन नहीं होते थे। केवल एक बस चला करती थी। मां उसे लेकर बस में सवाल हुई और करीब 5 किमी दूर ही गए थे कि गाड़ी में ही प्रसव हो गया। इससे मां इतनी दुखी हुई कि उसने गांव में मातृ शिशु कल्याण केंद्र खुलवाने का संकल्प लिया। मां का देहांत घटना के करीब दो साल बाद हो गया। लेकिन अंतिम घड़ी में भी मां ने मुझसे यह वचन लिया था कि मैं यहां ऐसा केंद्र खोलू।

महिलाओं का ताना, और मेयर ने नापी कीचड़ भरी राह

 


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कोटा। महापौर डॉ. रत्ना जैन मंगलवार को धाकडख़ेड़ी गांव की समस्याएं देखने पहुंची। उन्होंने समस्याएं ही नहीं देखी बल्कि वहां मौजूद महिलाओं के ताना देने पर कीचड़ में भी उतर गई।

धाकडख़ेड़ी के नागरिक सोमवार को अपनी समस्याओं को लेकर महापौर से मिले थे। उन्होंने मंगलवार को गांव का निरीक्षण करने का आश्वासन दिया था। मंगलवार सुबह वहां जाने से पहले महापौर ने एक जेसीबी व डंपर गांव में भेजा, जो गांव के बाहर पड़े कचरे को उठाकर लौट गया। इसके बाद वे यहां सुभाष कॉलोनी में पहुंची और वहां कीचड़ की समस्या को देखते हुए उन्होंने सीसी रोड बनाने का आश्वासन दिया। बावजूद इसके गांव की महिलाएं नहीं मानी। वे अड़ गई कि हम यहां किस तरह परेशान होते हैं, महापौर एक बार खुद इस कीचड़ में चलकर देखे तो सही।

महिलाओं की जिद को देखते हुए महापौर कीचड़ में उतर तो गईं लेकिन उनसे चला नहीं गया। महापौर ने कीचड़ में पांव रखकर सड़क पार करने की कोशिश की। बड़ी मुश्किल से वे दूसरी तरफ पहुंची। इसके बाद उन्होंने वहां की गलियां देखी। यहीं मिली एक बुजुर्ग महिला शांति बाई को बीपीएल की सुविधा दिलाने आश्वासन भी दिया। सुभाष कॉलोनी में महावीर सुमन आदि ने अतिक्रमण हटाकर पुलिया बनाने की मांग की।

लोगों ने रोका, गार्ड की कहासुनी

महापौर यहां से धाकडख़ेड़ी चौराहे पर आकर कोटा आने लगी तो कुछ स्थानीय युवक जगदीश कुमार, भीमराज कुशवाह सहित अन्य उनकी गाड़ी के आगे आ खड़े हुए। उन्होंने गांव की समस्याएं भी देखने की जिद की। महापौर ने कहा कि उन्होंने हालात देख लिए हैं और वे समस्याएं दूर करने का प्रयास करेंगी लेकिन, युवक नहीं माने। उनके गार्ड ने समझाने की कोशिश की तो ग्रामीण उनसे भी उलझ गए। ग्रामीणों ने कह दिया कि नहीं आएंगी तो क्या हुआ, दूसरा महापौर आएगा। चुनाव के समय तो खूब पैदल घूमीं, आज इंकार कर रही हैं। इस पर महापौर ने उनसे बात की। लोगों ने सड़क पर कीचड़ की समस्या बताई तो मेयर ने सड़क बनाने का भरोसा दिलाया। महापौर के साथ उपमहापौर राकेश सोरल, पार्षद नरेन्द्र खींची, दीपक बंशीवाल सहित अन्य सदस्य मौजूद थे
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