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15 अगस्त 2011

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उलंग्घन कर अन्ना को गिरफ्तार किया

देश में केंद्र और दिल्ली सरकार को क्या हो रहा है ..उनके लियें ना देश का संविधान ना देश की जनभावना कोई चीज़ है बलके देश के सुप्रीम कोर्ट के आदेश निर्देश भी दिल्ली पुलिस के लियें कोई मायने नहीं रखते .......देश में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं के किसी भी नागरिक को बिना किसी कारण के गिरफ्तार नहीं किया जाएगा अगर किसी को गिरफ्तार किया गया तो उसे गिरफ्तारी का कारण तुरंत बताना होगा उसके नजदीकी को उनकी फर्द गिरफ्तारी की सुचना देना होगा उनके हस्ताक्षर उनकी फर्द गिरफ्तारी पर करना होगा .देश की जनता और देश की सुप्रीम कोर्ट के लियें यह एक चेंलेजिंग बात है के जब पुलिस सरकार अन्ना जेसे गांधीवादी निरपराधी के साथ सुप्रीम कोर्ट का उलंग्घन कर उन्हें गेर कानूनी रूप से गिरफ्तार कर सकती है तो फिर देश की आम जनता के साथ पुलिस का क्या सुलूक होगा फिलहाल तो सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार शुदा व्यक्ति के मामले में पुलिस को जो आवश्यक निर्देश दिए हैं उनकी पालना दिल्ली पुलिस ने नहीं की है और ऐसी स्थिति में दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों की अवमानना की है और सुप्रीम कोर्ट को ऐसे लोगों को डी के बसू बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में जो दिशा निर्देस जारी किये हैं उसके तहत ऐसे पुलिस अधिकारीयों को जेल भेजने का प्रावधान होने के कारण जेल भेजना चाहिए देखना है के सुप्रीम कोर्ट और संविधान के जानकार इस मामले में अब क्या कदम उठाते हैं .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

मंदिर की संपदा का सच?

केरल के श्रीपद्मनाभ मंदिर से अकूत संपदा का प्राप्त होना दुनियाभर के लिए विस्मय का कारण बन गया है। इस संपदा का मूल्य एक लाख करोड़ रुपए आंका गया है, जबकि मंदिर का एक तहखाना खोला जाना अब भी बाकी है। इसके साथ ही श्रीपद्मनाभ मंदिर संपदा के मामले में तिरुपति सहित दुनिया के किसी भी अन्य धर्मस्थल से आगे निकल गया है। यदि कलात्मक महत्व के आधार पर मंदिर की संपदा का आकलन किया जाए तो यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। कुछ पश्चिमियों के दिमाग में इस संपदा ने वैसा ही जादू जगाया है, जैसा कभी गोलकुंडा के खजाने ने जगाया था। इसी खजाने की खोज में क्रिस्टोफर कोलंबस भारत को ढूंढ़ने निकला था, लेकिन भूलवश अमेरिका पहुंच गया था। कुछ अन्य लोगों के लिए यह संपदा एक गुत्थी बन गई है। श्रीपद्मनाभ मंदिर की संपत्ति का आखिर क्या अर्थ निकाला जाए? यह संपत्ति किसकी है? यह मंदिर तक कैसे पहुंची? और अब इसका क्या किया जाना चाहिए?

मंदिर से मिली संपत्ति में लगभग दो हजार वर्ष पुराने रोमन सिक्के, १४वीं और १५वीं सदी के वेनिस के सोने के डच्यूकेट्स, १६वीं सदी के पुर्तगाली सिक्के, १७वीं सदी के डच ईस्ट इंडिया कंपनी के सिक्के और १९वीं सदी के प्रारंभिक दौर के नेपोलियन के सोने के सिक्के भी शामिल हैं। आखिर दुनियाभर की मुद्राएं एक मंदिर के तहखाने तक कैसे पहुंच गईं? हम भूल जाते हैं कि एक समय भारत समुद्री व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। ५ हजार मील लंबी तटरेखा वाले इस महादेश के महत्वाकांक्षी व्यापारी सात समंदर पार से कारोबार करने को हमेशा तत्पर रहते थे। पश्चिम के लोग भारतीय मसालों, सूती कपड़ों और आभूषणों पर आसक्त थे, लेकिन उनके उत्पादों में भारतीयों की इतनी रुचि नहीं थी। लिहाजा, पश्चिमी व्यापारियों को भारतीय मसालों और कपड़ों के लिए सोने और चांदी की मुद्राओं में भुगतान करना पड़ता था। रोमन सीनेटर शिकायत भरे लहजे में कहते थे कि उनकी स्त्रियां भारतीय मसालों और आभूषणों का जरूरत से ज्यादा उपभोग कर रही हैं, नतीजन रोमन साम्राज्य का खजाना खाली होता जा रहा है। वर्ष ७७ में प्लिनी द एल्डर ने भारत को ‘संसार के स्वर्ण भंडार का रसातल’ बताया था। १६वीं सदी में पुर्तगालियों ने नाराज होकर कहा था कि उनके द्वारा दक्षिण अमेरिका से हासिल की गई चांदी हिंदुस्तान में गर्क हो रही है। १७वीं-१८वीं सदी में ब्रिटिश संसद ने इसी मसले पर खासी हायतौबा मचाई थी और उसने ईस्ट इंडिया कंपनी को हुक्म भी दिया था कि वह अंग्रेजी उत्पाद खरीदने वाले भारतीयों से खूब ब्याज वसूले। १९वीं सदी के प्रारंभ में इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के बाद जब भारतीय हैंडलूम चलन से बाहर हो गए, तब जाकर हालात बदले और लैंकशायर के कारखानों का सस्ता और टिकाऊ सूत भारतीयों के मन भाया।

दक्षिण भारत के तटवर्ती नगरों में सोने का भंडार व्यापारिक कारणों से पहुंचा था। लेकिन मूल सवाल बरकरार है : यह संपदा मंदिरों तक कैसे पहुंची? छठी सदी में भक्ति आंदोलन के प्रभाव में दक्षिण भारत के मंदिर धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन के जीवंत केंद्रों के रूप में उभरे थे। सम्राटों, जमींदारों और व्यापारियों ने पुण्य कमाने और सामाजिक वैधता प्राप्त करने के लिए मंदिरों को दिल खोलकर दान दिया। त्रावनकोर के मितव्ययी वर्मन वंशीय राजा ने पद्मनाथ मंदिर को अपनी सारी संपत्ति दे दी थी। श्रीपद्मनाभ भगवान विष्णु का ही एक अन्य नाम है। हालांकि यह मंदिर हजारों साल पहले निर्मित हुआ था, लेकिन १७७१ में त्रावनकोर के राजा मरतड वर्मा द्वारा डचों को कुलाचाई की लड़ाई में परास्त करने के बाद इसका महत्व बढ़ा। राजा ने अपना साम्राज्य भगवान श्रीपद्मनाभ को समर्पित कर दिया था। उसके अनुयायियों ने भी इस परंपरा को कायम रखा। आज भी राजा के वंशज मंदिर के ट्रस्ट का कामकाज संभालते हैं। वे स्वयं को ‘दास’ कहते हैं। इस वर्ष जनवरी में केरल हाईकोर्ट ने मंदिर पर शाही परिवार के दावे को खत्म करते हुए उसके प्रबंधन का जिम्मा राज्य सरकार को सौंपा था। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन देते हुए अंतरिम आदेश पारित किया और विशेष जांच दल को मंदिर की संपत्ति का आकलन करने को कहा। इसी तरह जुलाई में संपदा का सच सामने आया।

इस संपदा पर किसका स्वामित्व है? यह तथ्य वाकई अद्भुत है कि सदियों तक मंदिर की संपदा की रक्षा करने वाले शाही परिवार ने उस पर दावा जताने से इनकार कर दिया। यहां केरल के मुख्यमंत्री ओम्मान चांडी को भी श्रेय दिया जाना चाहिए, जिन्होंने जोर देकर कहा कि मंदिर की संपत्ति राज्य की मिल्कियत नहीं है। अलबत्ता वामपंथियों ने जरूर यह कहा कि संपत्ति का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाना चाहिए। वे गलत हैं। यह संपदा मंदिर के देवता को अर्पित की गई थी और इस पर राज्य का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन यकीनन इस संपदा को पुन: तहखानों में नहीं रखा जा सकता।

दानदाताओं और ट्रस्टियों को इस संपदा के बेहतर उपयोग पर ऐतराज नहीं होना चाहिए। इसका विवेकपूर्वक निवेश किया जाना चाहिए और निवेश से प्राप्त आय का निवेश भी विभिन्न रचनात्मक उद्यमों में होना चाहिए। एक विकल्प यह है कि तिरुपति मंदिर की तर्ज पर मंदिर की संपदा का उपयोग जनकल्याण के विभिन्न कार्यो में किया जाए। सर्वोच्च अदालत ने सुझाया है कि संपदा के संरक्षण के लिए एक भव्य और विश्वस्तरीय संग्रहालय का निर्माण किया जाए, जो तिरुवनंतपुरम को विश्व के पर्यटन नक्शे पर ला दे। इससे जहां शहर की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, वहीं दुनियाभर के लोग भी भगवान के आभूषणों के दर्शन कर सकेंगे।

यह उचित ही है कि इस संपदा की खोज भारत में आर्थिक सुधारों की २क्वीं वर्षगांठ पर हुई। स्वतंत्रता के बाद हमारे नेता भारत की महान व्यावसायिक विरासत को भूल गए थे और उन्होंने विदेशी पूंजी के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए थे। नतीजा यह रहा कि हम दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनियाभर की अर्थव्यवस्था में आए जबर्दस्त उछाल का फायदा उठाने से चूक गए। लेकिन १९९१ के बाद हम पुन: अपनी ऐतिहासिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। साभार

बाल यौन उत्पीड़न का घिनौना सच

बीते शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के दो स्कूलों से शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आईं। पहली घटना नोएडा के सेक्टर-33 स्थित एक स्कूल की है, जहां बच्चों ने आरोप लगाया है कि एक शिक्षक उनके कपड़े उतरवाकर अश्लील हरकतें करता था। दूसरा मामला गाजियाबाद के नगर-3 स्थित एक प्ले स्कूल का है, जिसमें एक डांस टीचर द्वारा बच्चों से अश्लील हरकत करने का मामला प्रकाश में आया है। ये दोनों घटनाएं बताती हैं कि हमारे समाज में बच्चों का यौन शोषण कहीं भी हो सकता है और कोई भी यह कर सकता है।

देश के पर्यटन केंद्र बच्चों के शिकार के ठिकाने के तौर पर पहले से मशहूर हो ही रहे थे, अब यह अपराध खुले आकाश से लेकर चारदीवारियों के पीछे हर जगह हो रहा है। यकीन नहीं होता है, लेकिन हकीकत यही है कि देश का हर दूसरा मासूम किसी न किसी यौन उत्पीड़न का शिकार है। महिला और बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में आधे से ज्यादा बच्चे (53.22 फीसदी) यौन उत्पीड़न के शिकार हैं।

देश भर में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले लगातार इसलिए भी बढ़े हैं, क्योंकि इस पर अंकुश लगाने के लिए देश में कोई खास कानून नहीं है। ऐसे मामलों की सुनवाई भारतीय न्याय संहिता (आईपीसी) के तहत होती है, जिसमें महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों पर तो कठोर कार्रवाई की व्यवस्था है, लेकिन बच्चों के साथ यौन अपराध पर ठोस कार्रवाई में यह कारगर नहीं हो पाता, क्योंकि बाल यौन उत्पीड़न के कई रूप हैं और कई तो मौजूदा कानून के तहत अपराध में भी नहीं गिने जाते। खासकर लड़कों के साथ हुए यौन अपराध के मामलों को इस कानून के तहत गंभीरता से नहीं लिया जाता। लेकिन यह देखा गया है कि लड़के और लड़कियों का यौन शोषण लगभग बराबर ही होता है। स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों में यौन शोषण के लगातार बढ़ते मामले और पर्यटन इलाकों में भी ऐसे मामलों के सामने आने से अलग से कानून की मांग रही है। कानून मंत्रालय ने इस पर लगाम कसने के उद्देश्य से एक मसौदा तैयार किया है।

प्रस्तावित विधेयक में बाल यौन अपराध की संगीनता को देखते हुए इसे पांच स्तरों में बांटा गया है, जिसमें मौखिक छींटाकशी से लेकर अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न तक को शामिल किया गया है। इसके तहत तीन साल से लेकर उम्रकैद की सजा के प्रावधान किए गए हैं। शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। प्रस्तावित विधेयक में बाल यौन अपराध लिंग भेदभाव से परे है। इसमें इस बात का पूरा खयाल रखा गया है कि पीड़ितों की पहचान गोपनीय रहे और उन्हें जल्द से जल्द न्याय मिले। कानून के लागू होने की सूरत में देश के प्रत्येक जिले में विशेष अदालत और अभियोजन पक्ष का होना सुनिश्चित किया जाएगा। इसके तहत पीड़ितों से एक महीने के अंदर सारे सबूतों का संज्ञान लिया जाएगा और हर हाल में एक साल के अंदर सुनवाई पूरी होगी।

इतना ही नहीं, आजकल जिस तरह से इंटरनेट पर बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं, उसे भी मसौदे में शामिल किया गया है। पिछले दिनों मुंबई में एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले प्रत्येक 10 में 7 बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार बन सकते हैं। जिस तरह से इंटरनेट का उपयोग देशभर में बढ़ रहा है, उसे देखते हुए इसकी चपेट में आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ेगी। प्रस्तावित कानून के तहत बाल यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई करने वाली विशेष अदालतों में ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के तहत आने वाले बाल यौन उत्पीड़न मामलों की सुनवाई होगी।

प्रस्तावित मसौदे में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को अपराध माना जाएगा, हालांकि इसमें इसका प्रावधान भी है कि 16 साल से अधिक उम्र का बच्चा आपसी सहमति से किसी से भी वैध शारीरिक संबंध बना सकता है। बाल यौन उत्पीड़न के ज्यादातर मामलों में अपराधी निकट संबंधी, परिचित और जान पहचान वाले लोग होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि माता-पिता में बाल यौन उत्पीड़न को लेकर जागरूकता हो और वे अपने बच्चों को मानसिक तौर पर इसका विरोध करना सिखाएं।मसौदे के मुताबिक बाल यौन उत्पीड़न के आरोपियों को खुद के निदरेष होने का सबूत देना होगा। इस लिहाज से यह कानून एक कारगर कदम हो सकता है।

अब नहीं होगा कोई अस्‍थमा का मरीज



अस्‍थमा आज एक कॉमन बीमारी बन गई है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने संभवत अस्थमा का इलाज खोज निकाला है।

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि अस्थमा इसलिए होती है क्योंकि अलर्जन हवा की नली में संवेदी तंत्रिकाओं को उत्तेजित कर देता है। इसके बाद यह तंत्रिकाएं एक श्रृखला प्रतिक्रिया शुरू कर देती हैं जिससे न्यूरोट्रांसमिटर ऎसटाइकोलीन का स्त्राव होता है जो हवा की नलिकाओं को संकुचित कर देता है।

लंदन की इंपीरियल कॉलेज की एक टीम ने चूहों पर शोधकर पाया है कि अस्थमा के दौरे को एक सेंसरी अस्थमा प्रतिक्र्रिया को विलंबित कर दबाया जा सकता है।

अब यह टेक्‍नोलॉजी अस्थमा के रोगियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

जेपी पार्क में धारा 144 लगी, सैंकड़ों अन्ना समर्थक गिरफ्तार

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नई दिल्ली. अन्ना समर्थकों की गिरफ्तारी। सरकार ने अन्ना समर्थकों पर शिकजां कसना शुरू कर दिया है।
जेपी पार्क में धारा 144 लगाए जाने की औपचारिक घोषणा के बाद पार्क में इकट्ठा हो रहे सैंकड़ों अन्ना समर्थकों को सोमवार करीब रात 11 बजे पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस जब उन्हें गिरफ्तार करने पहुंची वे खाता खा रहे थे। गिरफ्तार समर्थकों को आईपी एस्टेट पुलिस दो बसों में भरकर छत्रशाल स्टेडियम ले गई है।
छत्रशाल स्टेडियम को बनाया गया है अस्थाई जेल

दिल्ली पुलिस ने अन्ना समर्थकों को गिरफ्तार करने की तैयारी पूरी कर ली है। इस क्रम में छत्रशाल स्टेडियम को अस्थाई जेल में बदल दिया गया है। पुलिस ने भारी संख्या में डीटीसी की बसों को हायर किया है ताकि अनशनकारियों को छत्रशाल स्टेडियम पहुंचाया जा सके। पुलिस को दिल्ली में जहां भी अन्ना समर्थक दिखेंगे उन्हें हिरासत में लेकर छत्रशाल स्टेडियम पहुंचा दिया जाएगा।
इससे पहले भ्रष्टाचार मिटाने के लिए मजबूत लोकपाल बिल संसद में पेश कराने को लेकर 16 अगस्त की सुबह से जेपी पार्क में आमरण अनशन शुरु करने जा रहे अन्ना हजारे का समर्थन अभी से दिखने लगा है। अन्ना के आह्वान पर जहां देश भर के कई हिस्सों में रात आठ से नौ के बीच बत्ती बुझाई गई। वहीं दिल्ली के जेपी पार्क में धारा 144 लागू होने के बावजूद भी प्रदर्शनकारी पहुंच रहे हैं। रात 11.00 बजे तक ही दिल्ली और देशभर से सैंकडो लोग पार्क में पहुंच चुके थे। हालांकि पुलिस अधिकारी धारा 144 का हवाला देकर लोगों को संगठित होने से रोकने का प्रयास भी कर रहे थे। बावजूद इसके लोगों ने अन्ना हजारे के समर्थन में नारेबाजी जारी रखी।अनशनकारियों ने अपनी हथेली पर दिए जला रहे हैं और शपथ लेकर नारे लगा रहे हैं कि अन्ना तुम संघर्ष करों हम तुम्हारे साथ हैं। करोल बाग से आए मनमोहन सिंह वालिया का कहना है कि चाहें जो हो जाए हम यहां से हटेंगे नहीं, सरकार हमें जेल में भेजेगी तो हम अन्ना के साथ जेल में ही अनशन करेंगे।
कोटला से आयी 90 वर्षीय शकुंतला भी काफी उत्साहित हैं और अनशन से पीछे हटने को तैयार नहीं है। सरकार पर बिफरते हुए कहती हैं कि केंद्र सरकार अन्ना से डरी हुई है, इसीलिए अन्ना के अनशन में अड़चन डाल रही है। लेकिन हम अनशन से पीछे नहीं हट सकते हैं चाहे हमें जेल में ही क्यों न अनशन करना पड़े।
उधर प्रीत विहार दिल्ली से आयीं मोहनी भी केंद्र सरकार को कोसते हुए कहती हैं कि अन्ना हजारे को भी सरकार रामदेव की तरह डराने की कोशिश में जुटी हुई है।उत्तराखंड से आए शिवशंकर भाटी का कहना है कि हम सड़क पर रहे या जेल में रहे, जहां भी रहेंगे हमारा अनशन जारी रहेगा। हम अन्ना के साथ हैं।दिल्ली के ही आरके पुरम से आई यमुना चंद्रा कहती हैं कि जब तक शरीर में प्राण हैं तब तक अनशन जारी रहेगा।गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से भी विष्णू पटेल, विजय पटेल, मन्नू राजपूत और नरेंद्र पटेल भी अनशन में शामिल होने के लिए जेपी पार्क पहुंचे हैं। अप्रवासी भारतीय मन्नू अनशन में शामिल होने के लिए उगांडा से आए हैं। वहीं होंडा कंपनी में मैनेजर पद पर कार्यरत नरेंद्र पटेल ने जहां दफ्तर से छुट्टी ली है वहीं दूध व्यावसाई विष्णू पटेल और कैमिकल फैक्ट्री के मालिक विजय पटेल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए अपना काम ही छोड़ दिया है।
इन चारों का कहना है कि वो अन्ना के अनशन में शामिल होने के लिए आए हैं और जिन हालात का सामना अन्ना हजारे को करना पड़ेगा उसी माहौल का सामना हम भी करेंगे।रात दसे बजे के आसपास जेपी पार्क का माहौल लगभग सामान्य है। अनशनकारी आपस में बात कर रहे हैं और पुलिस भी सामान्य तौर पर पेश आ रही है।

आज़ादी के जश्न के बीच भ्रष्टाचार के गुलामों की तानाशाही

दोस्तों देश आज अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद होने का जश्न मना रहा है .देश का हर शख्स आज खुद को आज़ाद मानने की भूल कर एक दुसरे को आज़ादी की मुबारकबाद दे रहा है लेकिन आज़ादी के जश्न के बीच भ्रष्टाचार के गुलामों ने अपना तानाशाही रवय्या बताकर देश के आज़ादी के दीवानों को सकते और सदमे में डाल दिया है ................देश में भ्रष्टाचार को रोकने भ्रष्ट लोगों को सजा देने के लियें अह्निसक प्रदर्शन ..अनशन की इजाज़त मांगने पर भी अड़ंगे लगाकर इंकार करना देश की आज़ादी को शर्मसार करने वाली है .पूरा देश जानता है कोंग्रेस हो चाहे हो भाजपा चाहे कोई भी राजनितिक पार्टी हो जब चाहती है रास्ता जाम कर देती है ..हंगामे और प्रदर्शन करती है ..बंद का आह्वान कर जनता को तकलीफ देती है ..गुर्जर आरक्षण के नाम पर राजस्थान की जनता को एक माह से भी अधिक वक्त तक नज़र बंद कर देती है ..तोड़फोड़ और पटरियों को नुकसान पहुंचाया जाता है चोकिया जलाई जाती है हथियार लूटे जाते हैं तब सरकार को कभी भी कानून व्यवस्था के बारे में याद नहीं आया ....देश जलता रहा पुलिस और सरकारें तमाशा देखती रही सुप्रीम कोर्ट ने दर्जनों बार सरकारों को लताड़ पिलाई लेकिन सरकार के कान पर जू तक नहीं रेंगी .पहली बार देश में एक गेर राजनितिक मंच द्वारा केवल और कवल अहिंसा और अनशन के बल पर अपनी मांगों के समर्थन में संवेधानिक विरोध की शुरुआत की है तो बस सरकार को कानून ..जनहित याद आ गया ..देश के आन्दोलन करने वाले लोगों की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को सरकार के हाथों का पुलिस हथियार बन कर छीन रही है ..बड़े शर्म की बात है के देश के अधिकारी देश के पुलिस कर्मी आज भी तानाशाह सरकार का साथ दे रहे हैं उन्हें जरा तो राष्ट्रभक्त बनना होगा और सरकार के गेर कानूनी आदेशों को मानने से इंकार कर सरकार को आयना दिखाना होगा देखते हैं भ्रस्टाचार के गुलाम सरकारी लोग और सरकार गांधीवादियों की क्या दुर्गति करती है ..अन्ना को अपहरण करवाकर अज्ञातवास में ले जाती है या फिर मुकदमा बनाकर पिंजरे में डालती है .लेकिन एक बात सच है अगर अन्ना बाबा रामदेव की तरह रणछोड़ दास साबित नहीं हुए .पुलिस और अनशन से नहीं घबराए और अपने गाँधीवादी अनशन का उदाहरण पेश किया तो अन्ना चाहे जेल में हो चाहे अस्पताल में चाहे सड़क पर हो जनता तो उनके साथ रहेगी और सरकार तो गई ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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