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22 अगस्त 2011

वरना मुश्किल होगा जनता को संभालना



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नई दिल्ली। अन्ना के आंदोलन पर सरकार की चुप्पी माहौल बिगाड़ सकती है। सोमवार को केंद्रीय खुफिया एजेंसी (आईबी) ने सरकार को चेताया है कि आंदोलन को जल्द खत्म करने का रास्ता सुझाए, वरना आमजन करो या मरो की स्थिति पर पहुंच जाएगा। आईबी का मानना है कि अब आंदोलन महात्मा गांधी के अंग्रेजों के खिलाफ 1942 के आंदोलन 'करो या मरो' की तरह पेश किए जाने लगा है। जितना जल्दी हो, मामले को सुलझाया जाए।

पिछले एक महीने से सरकार को हर मोड़ पर आगाह कर रही खुफिया एजेंसी की अघिकांश रिपोर्टे सरकारी हुक्मरान जैसे नजरअंदाज कर रहे हैं, उससे आईबी के अघिकारी न सिर्फ हैरान हैं, बल्कि निराश भी हैं। बावजूद इसके एजेंसी ने सरकार को चेताया कि तबीयत बिगड़ने पर अन्ना को कुछ हो गया तो देश में कानून व्यवस्था की स्थिति संभालना मुश्किल हो जाएगी।

हाथ में झंडा नहीं डंडा होगा :
एजेंसी ने आगाह किया कि अन्ना के साथ किसी अनहोनी पर युवा वर्ग आपा खो सकता है। उनके हाथ में थमे हर झंडे के नीचे एक डंडा (लाठी) है। सरकार को बताया कि आंदोलन हर शहर, गांव तक फैल चुका है। हालांकि न्यूज चैनल्स पर तो अघिक टीआरपी वाले शहरों के ही प्रदर्शन दिखाए जा रहे हैं।

यूं खारिज हुई रिपोर्ट : देशभर से खुफिया एजेंसी के अघिकारी काफी समय से आंदोलन से जुड़ी हर रिपोर्ट दिल्ली मुख्यालय भेज रहे हैं। इसी रिपोर्ट को सरकार के पास भिजवाया जाता है। एजेंसी सूत्रों ने बताया कि अन्ना की गिरफ्तारी से होने वाले नफे नुकसान संबंधी एक खुफिया रिपोर्ट को एक मंत्री ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि डमरू बजाकर तो मदारी भी भीड़ एकत्र कर लेता है। चिंता की कोई बात नहीं है, जबकि एजेंसी की मंशा इसे मदारी का डमरू नहीं, भगवान शिव का डमरू बताने की थी।

अहम किरदार : हजारे के पिछले अनशन को सरकार ने खुफिया एजेंसी के ही चेताने पर खत्म कराया था। एजेंसी ने आंदोलन के बड़ा रूप लेने की बात कही थी, जो इस बार के आंदोलन में दिखाई दे रही है। लेकिन, रामदेव मामले में घिरने पर गृह मंत्रालय ने सारा ठीकरा खुफिया एजेंसी के सिरफोड़ कर पल्ला झाड़ लिया था।

सांसदों की आफत : आईबी को कई राज्यों से खबर मिली कि अन्ना समर्थकों के प्रदर्शन व व्यवहार से कई सांसद नाराज व परेशान हैं। उत्तरप्रदेश के कुछ सांसदों ने स्थानीय पुलिस से नाराजगी जताई कि प्रदर्शनकारी उनसे जन लोकपाल पर राय नहीं ले रहे बल्कि बिल के बारे में मौखिक के बजाय लिखित में समर्थन लेने की जबरन कोशिश कर रहे हैं।

...यह सरकार का फेलियर है-दोभाल
आईबी के पूर्व निदेशक अजित दोभाल ने 'पत्रिका' को बताया कि किसी आंदोलन में जनाक्रोश और उसके मूड के बारे में आईबी सरकार को बताता है। उसी आधार पर निपटने के तरीके खोजे जाते हैं लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के कारण सरकारें आईबी रिपोर्टे नजरअंदाज कर देती हैं।

अन्ना आंदोलन में भी आईबी ने आगाह किया होगा लेकिन जैसे आंदोलन बढ़ रहा है, वह खुफिया एजेंसी का नहीं सरकार का फेलियर है। आईबी सरकार को आकलन करके ही सलाह देता है। निर्णय का अधिकार सरकार का है। आंदोलन खुले में होे रहा है और दिख रहा है। लिहाजा आईबी को किसी सूत्र पर निर्भर नहीं रहना है इसलिए एजेंसी की तमाम सूचनाएं सही होती हैं।

अरविंद शर्मा

मासूम जान पर फिर 'तांबे का खतरा'



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जयपुर। तांबे, पीतल के बर्तन घरों से अब चाहे गायब हो गए हों, लेकिन वर्षो पहले दुर्लभ श्रेणी में जा चुकी 'तांबे की बीमारी' फिर मासूमों की जान पर आफत बन कर लौट आई है। प्रदेश में करीब 15-20 साल के बाद आईसीसी (इंडियन चाइल्डहुड सिर्होसिस) की जानलेवा बीमारी का मामला सामने आया है।

कोटा जिले की तीन साल की एक मासूम बालिका में सामने आई इस बीमारी का इलाज अब जेकेलोन अस्पताल के चिकित्सक कर रहे हैं। वर्ष 1970 तक चिकित्सकों के लिए अनसुलझी रही इस बीमारी में नौ माह से तीन साल तक के बच्चों का लिवर खतरनाक ढंग से संक्रमित होता है। लिवर का आकार और वजन असामान्य तरीके से बढ़ने लगता है और कुछ ही माह में लिवर फेल होने से मृत्यु तक संभव है।

ये हैं कारण
चिकित्सकों के अनुसार तांबे या इससे बने मिश्रघातु के बर्तनों में लम्बे समय तक रखा या उबला दूध पिलाने से बच्चों में यह बीमारी होती है। बच्ची का उपचार कर रहे अस्पताल अधीक्षक डॉ.एस.डी.शर्मा ने बताया कि पहले तो इस बीमारी के लुप्तप्राय होने के कारण चिकित्सकों ने आईसीसी के बारे में सोचा ही नहीं था, लेकिन सामान्य तौर पर लिवर सम्बन्धी बीमारियों के लक्षण नहीं होने पर बायोप्सी कराई गई, जिसमें आईसीसी होने के प्रमाण मिले।

जमा हो जाता है तांबा
बीमारी में तांबा या मिश्रघातु में दूध रखने पर दूध में स्थित कैसीन (प्रोटीन) तांबे के साथ रासायनिक क्रिया कर तांबे के यौगिक बना लेती है। आमाशय के अम्लीय (हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) माध्यम में यह तांबा अलग होकर लिवर में जमा हो जाता है। सामान्य लिवर में जहां तांबे की मात्रा 50 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम (लिवर का कुल वजन) ही होती है। वहीं इस बीमारी में यह मात्रा 1000 माइक्रोग्राम तक पहुंच जाती है।

प्राथमिक अवस्था में इलाज संभव
इस बीमारी में लिवर में सिर्होसिस की प्रक्रिया शुरू होते ही यदि पता चल जाए तो पेनिसिलामिन एजेन्ट की दवा देने से सफल उपचार संभव है। चिकित्सकों के अनुसार यदि प्राथमिक अवस्था में 20 मिली ग्राम प्रति किलोग्राम (शरीर का वजन) के अनुसार दवा दी जाए तो तांबे की मात्रा को सफलतापूर्वक निकाला जा सकता है।

मां का दूध सबसे अच्छा
तांबे, पीतल या कांस्य के बर्तनों में दूध का उपयोग नहीं कर इस बीमारी को टाला जा सकता है। छह माह तक आवश्यक तौर पर बच्चों को मां का दूध ही पिलाने से ऎसी बीमारियों से निजात संभव है। इसीलिए राष्ट्रीय दिशानिर्देशों में भी इसे शामिल किया गया है।'
डॉ.एस.डी.शर्मा, अस्पताल अधीक्षक, जेकेलोन अस्पताल

गहन अघ्ययन से हुआ खुलासा
इस मामले में भी मरीज के परिवार की दिनचर्या तक के गहन अध्ययन के बाद आईसीसी का मामला होने की बात सामने आई। केस स्टडी में परिजनों से तांबे या मिश्रघातु के बर्तनों के उपयोग के बारे में पूछा गया तो इनकार कर दिया। बाद में यह सामने आया कि दूधवाला ऎसे बर्तनों में दूघ बेचने घर आता था। यह दूध रोजाना करीब 6 घंटे तक इस बर्तन में रखने पर घर पहुंचता था। इस खुलासे के बाद चिकित्सकों ने आईसीसी के बारे में सोचना शुरू किया।

पंकज चतुर्वेदी

क्या मनमोहन सिंह उतने ही मासूम हैं जितने दिखते हैं?


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हाल ही में लीक हुई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट बताती है कि मुरली देवरा के नेतृत्व में तेल मंत्रालय और रिलायंस इंडस्ट्रीज की सांठ-गांठ से देश को अरबों रु का नुकसान हुआ. तहलका को मिले दस्तावेज बताते हैं कि इस घोटाले की जानकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तब से ही थी जब इसकी नींव पड़ रही थी. हिमांशु शेखर की रिपोर्ट

हाल ही में लीक हुई कैग की रिपोर्ट से पता चला कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने केजी (कृष्णा-गोदावरी) बेसिन परियोजना में गैस निकालने की लागत को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया और जमकर मुनाफा कमाने का रास्ता साफ किया. इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ. लाखों करोड़ रुपयों के घोटाले के जमाने में एक और बड़े घोटाले का उजागर होना उतना आश्चर्यजनक नहीं है जितना इस बात की जानकारी होते हुए भी 'ईमानदार' प्रधानमंत्री का चुप रह जाना है. तहलका को मिले दस्तावेज बताते हैं कि सीएजी की रिपोर्ट में सरकार और जनता को होने वाले नुकसान की जो बात अब सामने आ रही है इसकी जानकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तब भी थी जब इस नुकसान की नींव रखी जा रही थी.

सवाल यह उठता है कि क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देने और सब कुछ जानते हुए भी उसे रोकने के लिए कदम न उठाना ही वह ईमानदारी है जिसका प्रधानमंत्री की पार्टी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी रात-दिन गुणगान करते रहते हैं. आपका जवाब चाहे जो हो लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ईमानदारी की नयी परिभाषा गढ़ी है. राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले से लेकर स्पेक्ट्रम घोटालों तक हर बार संकेत मिले कि प्रधानमंत्री को अनियमितता और उससे सरकारी खजाने को होने वाले नुकसान के बारे में अंदेशा था. लेकिन प्रधानमंत्री ने अपनी कार्यशैली की पहचान बन चुकी 'चुप्पी' को सबसे कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और चारों ओर से जमकर लूटे जा रहे खजाने को लुटने दिया. अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री या तो आर्थिक नुकसानों को समझ नहीं सके या फिर उन्होंने इस ओर ध्यान देना ही उचित नहीं समझा.

गैस की आड़ में सरकारी खजाने को लूटने का यह खेल तब शुरू हुआ जब कुछ साल पहले देश में तेल और गैस की खोज के लिए केंद्र सरकार ने देश-विदेश की कंपनियों से आवेदन आमंत्रित किए. इसके बाद कुल 162 ब्लॉकों में तेल और गैस खोजने का ठेका कंपनियों को दिया गया जिनमें आरआईएल भी शामिल थी. आरआईएल ने कनाडा की कंपनी
निको रिसोर्सेज लिमिटेड के साथ मिलकर केजी बेसिन के डी-6 ब्लॉक में गैस की खोज करके उत्पादन शुरू कर दिया.

प्रधानमंत्री या तो आर्थिक नुकसानों को समझ नहीं सके या फिर उन्होंने इस ओर ध्यान देना ही उचित नहीं समझा

गैस उत्पादन और इसे बेचने की शर्तों को तय करने के लिए आरआईएल और केंद्र सरकार के बीच एक समझौता भी हुआ. इस समझौते के मुताबिक कंपनी को 2.47 अरब डॉलर की लागत लगाकर डी-6 से 40 एमएमएससीएमडी गैस का उत्पादन करना था. इसी समझौते में एक प्रावधान यह भी था कि गैस बेचने से होने वाली आमदनी में सरकार को तब तक हिस्सा नहीं मिलेगा जब तक आरआईएल इस पर होने वाले खर्च को पूरी तरह वसूल नहीं कर लेगी. इससे एक बात स्पष्ट थी कि आरआईएल की लागत जितनी ज्यादा होगी सरकार की आमदनी उतनी ही कम हो जाएगी. अगर कंपनी अपने खर्चे को कृत्रिम रूप से बढ़ा सकती हो तो सरकार का नुकसान उसका फायदा बन जाएगा. इसके बाद गैस के अकूत भंडार को देखते हुए कंपनी ने साल 2006 में सरकार के पास एक संशोधित प्रस्ताव भेजा. इस प्रस्ताव में उत्पादन को तो सिर्फ दोगुना (80 एमएमएससीएमडी) करने की बात थी लेकिन लागत को बढ़ा कर तकरीबन साढ़े तीन गुना यानी 8.84 अरब डॉलर कर दिया गया था. खर्चे साढ़े तीन गुना बढ़ाने के इस प्रस्ताव पर कोई भी सवाल उठाए बिना सरकार ने इसे दो महीने से भी कम समय में 12 दिसंबर, 2006 को मंजूरी दे दी.

संशोधित प्रस्ताव में लागत बढ़ाकर 8.84 अरब डॉलर करने का मतलब यह हुआ कि आरआईएल-निको पहले डी-6 से इतना रकम कमाएगी और उसके बाद होने वाले मुनाफे में से सरकार को हिस्सेदारी देगी. यदि उत्पादन क्षमता बढ़ने के अनुपात में ही खर्च में भी सिर्फ दोगुने की बढ़ोतरी होती तो आरआईएल को 4.94 अरब डॉलर की कमाई के बाद से ही रॉयल्टी देनी पड़ती. बनावटी तौर पर लागत बढ़ाने से सरकार को हुए आर्थिक नुकसान के बारे में कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'संशोधित प्रस्ताव के जरिए लागत में की गई बढ़ोतरी से सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ है. हालांकि, अब तक उपलब्ध जानकारियों के आधार पर हम नुकसान का आकलन नहीं कर पा रहे हैं. कंपनियों के 2008-09 के आंकड़ों के आधार पर आगे जो ऑडिट होगी उससे नुकसान का अंदाजालग पाएगा.' यानी कैग का इशारा स्पष्ट है कि घोटाला बड़ा है.

आरआईएल-निको द्वारा बनावटी तौर पर लागत में की गई बढ़ोतरी से और भी कई नुकसान हुए. आरआईएल और सरकारी कंपनी एनटीपीसी के बीच 2.34 डॉलर प्रति यूनिट की दर से गैस आपूर्ति का समझौता हुआ था. मगर वैश्विक बाजार में बढ़ी कीमतों और बढ़ी लागत का वास्ता देकर आरआईएल ने ऐसा करने से मना कर दिया. बाद में यह मामला अदालत और अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह तक पहुंचा. आरआईएल की अर्जी पर सुनवाई करते हुए इस समूह ने यह व्यवस्था दी कि कंपनी 4.2 डॉलर प्रति यूनिट की दर पर एनटीपीसी को गैस बेचेगी. इससे एनटीपीसी को बिजली उत्पादन के लिए जरूरी गैस की करीब दोगुनी रकम चुकानी पड़ेगी. इसका नुकसान देश के आम लोगों को भी उठाना पड़ेगा क्योंकि यदि एनटीपीसी के बिजली उत्पादन की लागत बढ़ेगी तो वह उसकी कीमतें भी बढ़ाएगी.

आरआईएल की लागत जितनी ज्यादा होगी सरकार की आमदनी उतनी ही कम हो जाएगी

लागत में कृत्रिम बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप गैस की कीमतें बढ़ने के कई दूरगामी परिणाम भी हैं. इसका खामियाजा आम बिजली उपभोक्ताओं के साथ-साथ औद्योगिक कंपनियों को भी भुगतना पड़ेगा. ऐसे में बिजली के इस्तेमाल से चलने वाली औद्योगिक गतिविधियों की लागत बढ़ेगी और यहां बनने वाले उत्पाद महंगे होंगे जिसका सीधा असर महंगाई दर पर दिखेगा जिसे नियंत्रण में करने के लिए देश के प्रधानमंत्री पिछले कई महीनों से दिन-रात एक किए हुए हैं.

डी-6 परियोजना में लागत बढ़ाने और इस वजह से गैस कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी भी तय है. कैबिनेट सचिव रहे केएम चंद्रशेखर ने गैस की कीमत तय करने के लिए बनी मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति (जीओएम) को 31 पन्ने की एक रिपोर्ट भेजी थी. यह रिपोर्ट जुलाई, 2007 में सचिवों की समिति से चर्चा के बाद तैयार की गई थी. इसमें कहा गया था कि गैस की कीमतों में प्रति यूनिट एक डॉलर की बढ़ोतरी से सरकार को सब्सिडी के मद में 2,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं. इसके बावजूद सरकार ने लागत में बनावटी बढ़ोतरी के आरआईएल-निको के खेल को नहीं रोका.

कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट तो जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है अभी हाल ही में लीक हुई है. मगर इस मामले की पड़ताल के दौरान 'तहलका' को जो दस्तावेज मिले हैं वे यह साबित करते हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आरआईएल द्वारा सरकारी खजाने को चूना लगाने की तैयारी की जानकारी साल 2007 के मध्य में ही दे दी गई थी. लेकिन उन्होंने इस मामले में कुछ नहीं किया. तेल और प्राकृतिक गैस पर स्थायी संसदीय समिति के सदस्य और माकपा के राज्यसभा सांसद तपन सेन ने 4 जुलाई, 2007 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर यह बताया था कि आरआईएल केजी बेसिन से गैस निकालने की लागत कृत्रिम तौर पर बढ़ा रही है. उन्होंने अपने पत्र में लिखा, 'आरआईएल-निको ने संशोधित प्रस्ताव में कृत्रिम तौर पर लागत बढ़ाई है. गैस की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव के मूल में यही है. इसकी जांच होनी चाहिए.' इसी पत्र में आगे लिखा गया है, 'आरआईएल-निको द्वारा कृत्रिम तौर पर डी-6 परियोजना की लागत बढ़ाने का सीधा असर गैस की कीमतों पर पड़ेगा. आप इस बात से सहमत होंगे कि ऐसा होने से ऊर्जा और उर्वरक क्षेत्र के लिए गैस का इस्तेमाल करना आसान नहीं रहेगा.' सेन ने लिखा, 'मूल प्रस्ताव को 163 दिन में डीजीएच ने मंजूरी दी, जबकि बढ़ी लागत वाले संशोधित प्रस्ताव को डीजीएच ने 53 दिन में ही मंजूरी दे दी. इससे लगता है कि मंजूरी देने में काफी जल्दबाजी की गई.'

यह महत्वपूर्ण है कि सेन महज राज्य सभा सांसद ही नहीं, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य भी हैं. इस आधार पर कहा जा सकता है कि वे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं.
13 जुलाई, 2007 को सेन ने प्रधानमंत्री को भेजे एक और पत्र में लिखा, 'मेरी पिछली चिट्ठी के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव ने मुझे बताया कि मेरे द्वारा उठाए गए मामलों को पेट्रोलियम मंत्रालय के पास भेज दिया गया है. आपको मालूम हो कि 2006 के दिसंबर से ही मैं मंत्रालय के सामने आरआईएल द्वारा लागत में बनावटी बढ़ोतरी का मामला उठाता रहा हूं लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसलिए मैंने आपसे तत्काल हस्तक्षेप का अनुरोध किया था. मेरी मांग है कि इस मामले की स्वतंत्र जांच कराई जाए.' मगर प्रधानमंत्री कार्यालय ने सेन के पत्र को एक बार फिर पेट्रोलियम मंत्रालय के पास भेज दिया.

कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट में पूरी गड़बड़ी के लिए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को दोषी ठहराया गया है. प्रधानमंत्री को पत्र लिखने से पहले सेन ने उस समय के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवरा को पांच पत्र लिखे थे. देवरा ने सेन को दो जवाबी पत्र भी लिखे. इसके बाद सेन के पास हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (डीजीएच) को भेजा गया. सेन बताते हैं, 'डीजीएच की तरफ से परियोजना लागत में बढ़ोतरी को सही ठहराने की भरसक कोशिश की गई. उन्होंने कहा कि डीजल आदि की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हो गई है, इसलिए परियोजना की लागत काफी बढ़ गई है.' सेन और डीजीएच की मुलाकात के बाद देवरा ने एक और पत्र लिखकर सेन को बताया कि डी-6 परियोजना की जांच का काम सक्षम एजेंसी को सौंप दिया गया है. डीजीएच की तरफ से जांच का काम पेट्रोलियम और गैस मामलों के जानकार पी गोपालकृष्णन और इंजीनियरिंग कंसल्टेंट मुस्तांग इंटरनेशनल का सौंपा गया. इन्होंने भी सरकार की हां में हां मिलाते हुए कहा कि डी-6 परियोजना पर होने वाला खर्च वाजिब है.

मूल प्रस्ताव को 163 दिन में डीजीएच ने मंजूरी दी, जबकि बढ़ी लागत वाले संशोधित प्रस्ताव को डीजीएच ने 53 दिन में ही मंजूरी दे दी

12 दिसंबर, 2006 को राज्य सभा में आरआईएल द्वारा खर्च बढ़ाए जाने के मामले को सेन ने सबसे पहले उठाया था. इसके जवाब में केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री दिनशा पटेल का कहना था, 'डी-6 से गैस निकालने वाली कंपनियों के समूह यानी आरआईएल और निको ने सरकार को संशोधित योजना का प्रारूप सौंपा है. इसके मुताबिक उत्पादन क्षमता को दोगुना किया जाना है और लागत 2.47 अरब डॉलर से बढ़कर 8.84 अरब डॉलर होने की बात कही गई है.' आश्चर्यजनक यह है कि जिस दिन सरकार राज्य सभा में लागत बढ़ाने का प्रस्ताव मिलने की बात कह रही थी उसी दिन आरआईएल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कहा कि डी-6 परियोजना के संशोधित प्रस्ताव को डीजीएच ने मंजूरी दे दी है. इससे सरकार का दोहरापन साफ तौर पर झलकता है. क्योंकि मंजूरी देने पर बातचीत तो 12 दिसंबर से पहले से चल रही होगी आैर इसी वजह से संशोधित प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी मिली लेकिन राज्य सभा में सरकार ने मंजूरी की बात नहीं करके सिर्फ संशोधित प्रस्ताव मिलने की बात कही. इससे लगता है कि इस मामले में सरकार की मंशा सही नहीं थी.

21 दिसंबर, 2006 को मुरली देवरा को लिखे पत्र में सेन ने कहा, 'राज्य सभा में मेरे सवाल के जवाब में जो जानकारी दी गई उससे ऐसा लग रहा है कि परियोजना लागत को कृत्रिम रूप से बढ़ाने (गोल्ड प्लेटिंग) का काम चल रहा है. समझौते के मुताबिक कंपनी मुनाफा सरकार के साथ साझा करने से पहले अपनी लागत वसूलेगी.' उन्होंने इसी पत्र में आगे लिखा, 'अगर लागत को कृत्रिम रूप से बढ़ाने की बात सही निकलती है तो इससे सरकार को काफी घाटा होगा. इसलिए इस मामले की जांच करवाई जाए.'

5 जनवरी, 2007 को सेन ने देवरा को फिर से एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने पूछा, 'आखिर बगैर जांच कराए आरआईएल-निको के प्रस्ताव को कैसे मंजूरी मिल गई? मैंने अपने पिछले पत्र में ही संशोधित प्रस्ताव की खामियों की बात उठाई थी. मेरी मांग है कि इस मामले में कोई और फैसला लेने से पहले सरकार मामले की जांच करे और डीजीएच के फैसले पर पुनर्विचार करे.' इसके बाद सेन ने एक के बाद एक तीन पत्र प्रधानमंत्री को लिखे जिनका क्या हश्र हुआ, हम पहले ही जान चुके हैं. ये पत्र उन्हीं मुरली देवरा के पास भेज दिए गए जिनके मंत्रालय के बारे में कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय और डीजीएच ने निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाया.

हाल ही में अखबारों के संपादकों के साथ बातचीत में प्रणब मुखर्जी के दफ्तर की जासूसी कराए जाने के बारे में प्रधानमंत्री का कहना था, 'मुखर्जी की तरफ से मुझे शिकायत मिली थी. इसके बाद मैंने इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) को जांच के लिए कहा था. जांच के बाद आईबी ने बताया कि जासूसी का कोई प्रमाण नहीं है. जांच के आदेश की जानकारी गृहमंत्री को नहीं थी.' अजब बात है. एक तरफ तो वित्त मंत्रालय में जासूसी से जुड़े मामले की जानकारी प्रधानमंत्री जांच करने वाले विभाग के मुखिया यानी गृहमंत्री चिदंबरम तक को नहीं देते हैं. वहीं दूसरी तरफ पेट्रोलियम मंत्रालय की मिलीभगत से लूटे जा रहे खजाने की लगातार खबर देने वाली चिट्ठियों को वे उचित कार्रवाई के लिए उसी मंत्रालय को भेज देते हैं.

जाहिर है, प्रधानमंत्री जी इतने मासूम नहीं हैं. अपनी तमाम शिकायतों का हश्र सेन 'तहलका' को कुछ इस तरह बताते हैं, 'प्रधानमंत्री को मैंने तीन चिट्ठी लिखी. उन्हें पूरी स्थिति से अवगत कराया. पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे.' इससे लगता है कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को आरआईएल द्वारा देश को पहुंचाए जाने वाला आर्थिक नुकसान या तो दिखा नहीं या फिर उन्होंने आंखें मूंद लीं. इसका नतीजा यह हुआ कि लूट जारी रही और शायद आगे भी जारी रहने वाली है.

मुरली देवरा की जवाबदेही तय करने के संदर्भ में सेन कहते हैं, 'सिर्फ देवरा क्यों? मैंने प्रधानमंत्री को तीन पत्र लिखे. उन्होंने भी कुछ नहीं किया. इसलिए गड़बड़ी की जिम्मेदारी तो प्रधानमंत्री को भी लेनी पड़ेगी.' सेन के वक्तव्य के आधार पर एक वाजिब सवाल यह उठता है कि भारतीय कानून के तहत अपराधियों को संरक्षण देने वाले को भी अपराध का दोषी माना जाता है. ऐसे में आरआईएल को भ्रष्टाचार करने देने के लिए मुरली देवरा समेत प्रधानमंत्री को भी क्यों नहीं दोषी माना जाना चाहिए?

कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट को आधार बनाकर सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है

अब अगर इससे थोड़ा पहले जाएं तो जब 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला उजागर हुआ था तब भी पहले तो सरकार ने इसे घोटाला ही मानने से इनकार कर दिया था. बाद में कैग की रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया कि स्पेक्ट्रम आवंटन में दूरसंचार मंत्री रहे ए राजा के फैसलों की वजह से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. काफी हो-हल्ले के बाद प्रधानमंत्री ने मुंह खोला और कहा कि उन्हें इतनी बड़ी गड़बड़ी के बारे में पता नहीं था. पर जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी समेत कुछ और लोगों ने उन पत्रों को सार्वजनिक कर दिया जो प्रधानमंत्री को इस गड़बड़ी के बारे में आगाह करते हुए लिखे गए थे. धीरे-धीरे सार्वजनिक होती सूचनाओं ने यह साबित कर दिया कि स्पेक्ट्रम आवंटन के नाम पर जो लूट हुई उसे प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री समय रहते रोक सकते थे.
स्पेक्ट्रम घोटाला उजागर होने पर सरकार ने कहा कि पहले आओ और पहले पाओ के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटित करके सरकार ने कोई गलती नहीं की. यह नीति तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लागू की थी. हमने तो सिर्फ इस नीति का पालन किया. गैस मामले में भी पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी का कहना है कि जिस नीति के तहत आरआईएल को गैस की खोज और उत्पादन का ठेका मिला वह भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने 1999 में तैयार की थी. जाहिर है, उन नीतियों का पालन करने की बात कहकर सरकार पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है. अगर सरकार को यह लगा कि पुरानी नीति में कोई गड़बड़ी है तो उसके पास उन नीतियों की खामियों को दूर करने का विकल्प था. पर ऐसा नहीं किया गया. साफ है कि मामला नीति में खामी का नहीं बल्कि नीयत में खोट का है.

ए राजा के इस्तीफे के बाद दूरसंचार मंत्रालय संभालने वाले कपिल सिब्बल ने कहा था कि कैग ने अपनी रिपोर्ट में आर्थिक नुकसान की गलत व्याख्या की है और सही मायने में सरकार को स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई नुकसान ही नहीं हुआ. पर जैसे-जैसे मामला उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर आगे बढ़ा, वैसे-वैसे घोटाले की परतें एक-एक कर खुलती गईं. अब केजी बेसिन मामले में भी वही कहानी दोहराई जा रही है. मौजूदा केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी को इस मामले में कोई गड़बड़ी ही नहीं दिख रही. कपिल सिब्बल कैग के औचित्य पर ही सवाल उठा रहे हैं. वहीं प्रधानमंत्री केजी बेसिन मामले में कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर कहते हैं, 'मैंने पूरी रिपोर्ट नहीं पढ़ी है. इससे पहले कभी कैग ने किसी नीतिगत मामले में टिप्पणी नहीं की थी. कैग को संविधान के तहत तय दायरे में ही काम करना चाहिए.' प्रधानमंत्री ने कहा कि निर्णय लेते वक्त हमें बहुत कुछ पता नहीं होता और अगर देश को प्रगति करनी है तो इस बात को संसद, कैग और मीडिया को समझना चाहिए.' क्या इसका मतलब यह है कि प्रगति के लिए लूट जरूरी है और इसके खिलाफ किसी को भी नहीं बोलना चाहिए, चाहे वह कैग ही क्यों न हो.

2जी मामले में प्रधानमंत्री ने गठबंधन की मजबूरियों का हवाला देकर ए राजा की छुट्टी करने में जानते-बूझते की गई देरी को जायज ठहराने की कोशिश की थी. यही बात दयानिधि मारन के बारे में भी कही जा सकती है. लेकिन देवरा के मामले में तो उनके पास यह बहाना भी नहीं था. वे कांग्रेस के ही मंत्री थे. बीते दिनों प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया और नई टीम में देवरा नहीं हैं. जब कैग की रिपोर्ट लीक हुई और इस मामले पर काफी हो-हल्ला हुआ तो देेवरा ने निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा प्रधानमंत्री को सौंप दिया. अब उनकी जगह उनके बेटे मिलिंद देवरा को मंत्री बना दिया गया है.

जानकार मानते हैं कि इस कदम से एक साथ कई निशाने साधे गए हैं. मुरली देवरा के मंत्री रहते सरकार की छवि पर जो एक और दाग लगने की आशंका बन रही थी वह काफी हद तक खत्म हो गई है. दूसरी तरफ बेटे के मंत्री बन जाने की वजह से मुरली देवरा को भी इस्तीफा देने के लिए तैयार करने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी होगी.

प्रधानमंत्री को सेन ने तीन चिट्ठियां लिखीं, उन्हें पूरी स्थिति बताई. पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे

यह विडंबना ही है कि देश का मुखिया लुटेरों और उनके सहयोगियों के 'ईमानदार' मुखिया में तब्दील हो गया है. तपन सेन कहते हैं, 'इस सरकार को कॉरपोरेट ताकतों ने बंधक बना लिया है और उन्हीं के हितों के पोषण के लिए यह सरकार काम कर रही है. हम इस मसले को संसद के मानसून सत्र में जोर-शोर से उठाने जा रहे हैं. प्राकृतिक संसाधनों की लूट हर हाल में बंद होनी चाहिए.'
इस बीच खबर है कि कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट को आधार बनाकर सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है. कहा जा रहा है कि जल्द ही सीबीआई पूर्व डीजीएच वीके सिब्बल, पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों और इस मामले में संदेह के घेरे में आ रहे लोगों को तलब करने वाली है. जाहिर है कि इसमें आरआईएल के अधिकारी भी शामिल होंगे. सीबीआई से जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक वह इन लोगों को तलब करने से पहले उस जवाब का इंतजार कर रही है जो तेल मंत्रालय द्वारा कैग को दिया जाना है. सीबीआई ने तेल मंत्रालय और डीजीएच से वे सारे दस्तावेज मांगे हैं जिनके आधार पर डी-6 के संशोधित प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. तेल मंत्रालय जवाब देने में जितनी देर लगाएगी उतना ही समय कैग को अंतिम रिपोर्ट तैयार करने में लगेगा.

कहा तो यह भी जा रहा है कि तेल मंत्रालय देरी इसलिए लगा रही है ताकि कैग की अंतिम रिपोर्ट संसद का सत्र चलने के दौरान न आ पाए और सरकार की किरकिरी कम हो. l

कट्टरवाद का उत्साही चेहरा


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हत्या के संदिग्ध और संघ के सिपाही रहे सुनील जोशी के हिंसा के पथ पर बढ़ते कदमों को पुलिस आसानी से रोक सकती थी. आशीष खेतान की रिपोर्ट

सुनील जोशी, हिंदुत्ववादियों की आतंकी साजिश का केंद्र बिंदु था. 2007 में मध्य प्रदेश के देवास जिले में जब उसके घर के बाहर रहस्यमय तरीके से उसकी हत्या कर दी गई तब उसकी उम्र पैंतालीस साल थी. लेकिन तब तक भी वह कट्टरता के गहरे हिंसक निशान छोड़ चुका था. चिंता की बात यह है कि अगर मध्य प्रदेश पुलिस समय रहते अपने काम को ठीक से अंजाम दे देती तो उसे इतना खून-खराबा फैलाने से रोका जा सकता था.

जोशी बेहद गरीब परिवार से था. उसने संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षा प्राप्त की थी. 1999 में वह महू जिले में संघ का जिला प्रचारक बन गया, जहां कुछ ही समय में वह कट्टर हिंदुत्ववादी के रूप में पहचाना जाने लगा. संघ में उसे गुरूजी के नाम से जाना जाता था.जोशी और डांगे ने महू के मंदिरों में कई बार बम धमाके करने की कोशिश की ताकि वहां हिंदू-मुसलिम दंगे भड़काएं जा सकें

2000 में जोशी और संघ के दो अन्य कार्यकर्ता संदीप डांगे और रामचंद्र कालसांगरा गहरे दोस्त बन गए. डांगे शाजापुर में तो कालसांगरा इंदौर में संघ का प्रचारक था. तीनों की यह दोस्ती आगे बड़े घातक गुल खिलाने वाली थी. असीमानंद के इकबालिया बयान में 2006 के बाद हुए लगातार बम धमाकों में जोशी का नाम मुख्य षड्यंत्रकारी के रूप में सामने आया है. लेकिन जोशी का रिश्ता इससे भी पहले अपराधों से जुड़ चुका था. जोशी ने डांगे के साथ मिलकर स्थानीय मुसलिमों को फंसाने और हिंदू-मुसलिम दंगे भड़काने के लिए महू के मंदिरों में कई बार बम धमाके करने की कोशिशें की. यह बात पिछले साल सितंबर में तब सामने आई जब सीबीआई ने महू से संघ के कार्यकर्ता और जोशी के घनिष्ठ मित्र राजेश मिश्रा पर शिकंजा कसा.

मिश्रा महू के पास पीथमपुरा में लोहे के पाइप बनाने की फैक्टरी चलाता है. 2001 में जोशी ने संघ के विशेष कामों के लिए उससे 15 पाइप बनवाए, जिसमें अंदर की ओर खांचे वाली धारियां और बीच में एक छेद बनवाया गया. अप्रैल 2002 में जोशी और डांगे ने महू में हनुमान मंदिर और स्वर्ग मंदिर के पास कम शक्ति वाले बम धमाके किए जिनमें एक व्यक्ति को मामूली चोटें आईं. दिसंबर, 2002 में भोपाल में हुए इज्तीमें (मुसलिमों की एक बड़ी धार्मिक सभा) से करीब आधा दर्जन जिंदा पाइप बम बरामद हुए. मिश्रा ने टीवी पर बमों की तस्वीरें देखीं. ये हूबहू वैसे ही थे जो उसने जोशी को मुहैया करवाए थे. उसने घबराहट में जोशी को फोन किया, लेकिन उसे कहा गया कि घबराने की कोई बात नहीं है.

अगस्त, 2003 में एक विवाद के बाद जोशी और डांगे ने कांग्रेस के आदिवासी नेता प्यारे सिंह निनामा और उनके बेटे दिनेश की हत्या कर दी. परिवारवालों ने एफआरआई में जोशी, मिश्रा और सात अन्य का नाम संदिग्धों के रूप दर्ज कराया. मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन जोशी के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. हालांकि संघ ने उसे निकाल दिया.

मिश्रा ने पुलिस को महू के मंदिरों और भोपाल में बम धमाके करने की नाकाम कोशिशों के पीछे जोशी का हाथ होने की बात बताई. पुलिस ने इस मामले में मिश्रा को तो आरोपित किया लेकिन जोशी का नाम शामिल नहीं किया. जोशी को कानून के शिकंजे से बच निकलने की खुली छूट दे दी गई. इसने उसे बाद में और बम धमाके करने का मौका दिया जिनमें दर्जनों महिलाएं, पुरुष और बच्चे मारे गए.

फरवरी, 2010 में सीबीआई की टीम ने देवास पहुंचकर स्थानीय पुलिस से जोशी की डायरी और उसके द्वारा बनाए रेखाचित्र हासिल किए जो हत्या के बाद उसकी जेब से बरामद हुए थे. सीबीआई को यह भी पता चला कि जोशी का मोबाइल, बंदूक और दूसरी कईं निजी चीजें संघ के नेताओं ने जोशी की हत्या के बाद उसके घर से हटा ली थीं. पुलिस ने जोशी की हत्या की जांच न करने का दबाव होने की बात भी सीबीआई को बताई. जोशी की फोन बुक में संघ के दो वरिष्ठ नेताओं इंद्रेश कुमार और राम माधव के नंबर मिले. इंद्रेश का नंबर इमरजेंसी नंबर के रूप में दर्ज था. स्वामी असीमानंद और भाजपा के तेज-तर्रार सांसद योगी आदित्यनाथ का नंबर भी इसी नाम से था. इसके अलावा संघ के दिल्ली के झंडेवालान स्थित मुख्यालय का नंबर भी था. रेखा चित्र असल में बम का सर्किट था.

जोशी को संघ से निकाले जाने के बाद भी वह संघ के पदाधिकारियों के लगाातार संपर्क में था. इसका खुलासा सीबीआई द्वारा जून से दिसंबर, 2007 के बीच जोशी के कॉल रिकाॅर्ड की जांच करने पर हुआ.कई सवाल हैं जिनके जवाब जोशी की चिता के साथ जल गए हैं. परंतु जिन हिंसक कदमों के निशान वह पीछे छोड़ गया है वे कई और चिंताजनक सवाल खड़े करते हैं.

आज नकद कल फसाद-

आज नकद कल फसाद-1

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आप श्री राम सेना से कभी भी और कहीं भी दंगे करवा सकते हैं बस आपके पास सही कीमत अदा करने की कुव्वत होनी चाहिए. पुष्प शर्मा की तहकीकात. लेखिका संजना

' मंगलौर पब अटैक ' इस वाक्य को यूट्यूब पर टाइप करने पर 133 वीडियो परिणाम मिलते हैं. पहले वीडियो को अब तक तकरीबन तीन लाख लोग देख चुके हैं. यही वाक्य गूगल सर्च पर लिखा जाए तो 69 हजार वेबसाइटों का संदर्भ मिलता है. संबंधित घटना 24 जनवरी, 2009 की है. उस दिन मंगलौर के एक पब में तकरीबन 35-40 लोगों ने जबर्दस्ती घुसकर महिलाओं पर हमला बोल दिया था. मारपीट की इस घटना को एक दक्षिणपंथी संगठन श्री राम सेना, जिसे इससे पहले तक शायद ही कोई जानता हो, के सदस्यों ने अंजाम दिया था. संगठन के कैडरों का कहना था कि सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं का शराब पीना 'असभ्य आचरण' की श्रेणी में आता है और यह 'हिंदू संस्कृति और परंपराओं' का अपमान है. इस घटना के दो दिन बाद ही भारतीय गणतंत्र की साठवीं सालगिरह थी. 26 जनवरी को पूरे दिन राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर पब से निकलकर दौड़ती, गिरती-पड़ती और पिटती महिलाओं का वीडियो फुटेज दिखाया जाता रहा (यह वीडियो फुटेज टीवी चैनलों को सिर्फ इसलिए मिल पाया था कि पब पर हमला करने के आधा घंटा पहले सेना ने खुद ही पत्रकारों को इसकी सूचना दी थी). टीवी चैनलों पर दिखाए जाने के बाद यह घटना हर जगह चर्चा का विषय बन गई. फ्रांस, रूस और जर्मनी तक के पत्रकारों ने इस घटना की रिपोर्टिंग की. इस तरह दो दिनों में ही श्री राम सेना घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया.

" मैं इसमें सीधे शामिल नहीं हो सकता. मेरी एक छवि है, समाज में कुछ प्रतिष्ठा है. लोग मुझे सिद्घांतों वाले व्यक्‍ति के रूप में देखते हैं, एक आदर्शवादी और ‌हिंदुत्ववादी के रूप में देखते हैं "

प्रमोद मुतालिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राम सेना

एक संगठन के रूप में सेना ने हमेशा खुद को एक उग्र हिंदूवादी संगठन साबित करने की कोशिश की है. सेना के नेता यह दावा करते रहे हैं कि वे हिंदू धर्म और संस्कृति के झंडाबरदार हैं और उनके कार्यकर्ता इस काम में लगे हुए कर्मठ सिपाही. उनके खुद के शब्दों में, अपने हिंदूवादी एजेंडे को लागू करने के लिए उन्हें लोगों से मारपीट करने, संपत्तियों और कलाकृतियों को नष्ट करने और धर्म से बाहर जाकर जोड़ी बनाने वालों को अलग करने में कोई झिझक नहीं. कुल मिलाकर इस संगठन का पहचानपत्र हिंसा है, नैतिकता और संस्कृति की आड़ में की जाने वाली हिंसा.

हालांकि इस संगठन और उसकी कारगुजारियों के बारे में तहलका की छह सप्ताह तक चली तहकीकात बताती है कि सेना के संस्कृति और नैतिकता की रक्षा के दावे किस तरह एक पाखंड भर हैं. 'धर्म रक्षा' के लिए तात्कालिक हिंसक प्रतिक्रिया करना श्री राम सेना के कार्यकर्ताओं का सिर्फ एक घृणित चेहरा है. असल में तो यह संगठन सनकी और आवारागर्द लोगों का एक ऐसा झुंड है जिसे पैसे देकर भी अपना काम कराया जा सकता है. 'दंगे के लिए ठेका' लेने वाले इस संगठन की असलियत उजागर करने वाली तहलका की तहकीकात बताती है कि इससे तोड़फोड़ करवाने के लिए बस आपको कुछ कीमत चुकाने के लिए तैयार होना है. श्री राम सेना के इस चेहरे को सामने लाने के लिए एक तहलका संवाददाता ने खुद को कलाकार बताकर श्री राम सेना के अध्यक्ष प्रमोद मुथालिक से मुलाकात की. उसके सामने एक प्रस्ताव और तर्क रखा. तर्क यह था कि नकारात्मक प्रचार भी आखिर प्रचार ही होता है, प्रस्ताव यह था कि श्री राम सेना कलाकार के चित्रों की प्रदर्शनी पर हमला करे जिससे देश-दुनिया में सभी लोगों का ध्यान उसके चित्रों की ओर चला जाए और वह बाद में ऊंचे दामों पर इन्हें बेच सके (मुथालिक को यह भी बताया गया कि ये चित्र हिंदू-मुसलिम सद्भाव से संबंधित हैं और इनमें खासकर हिंदू-मुसलिम शादियों का चित्रण है). बदले में मुथालिक और सेना को वह प्रचार तो मिलता ही जो मंगलौर पब पर हमले के बाद मिला था, साथ ही इस उपद्रव को आयोजित करने का मेहनताना भी मिलता. इस प्रस्ताव पर मुथालिक की प्रतिक्रिया में गुस्सा या डर कतई नहीं था. उसने तुरंत तहलका संवाददाता को सेना के कई सदस्यों के फोन नंबर दे दिए और फिर एक के बाद एक ऐसे कई आपराधिक चेहरे सामने आते गए जो पेशेवराना अंदाज़ में अराजकता फैलाने के उस्ताद थे. इस पूरी कहानी को जानने से पहले शायद श्री राम सेना और इसके संस्थापक के अतीत के बारे में जानना बेहतर रहेगा.

" श्री राम सेना के पास एक बहुत बढ़िया टीम है, जो भी आप करवाना चाहते हैं कर देंगे. हमारे पास हर चीज की सेटिंग है. सिर्फ एक ही प्रॉब्लम है- मनी प्रॉब्लम "

कुमार, मंगलौर में श्री राम सेना का एक सदस्य

श्री राम सेना की शुरुआत 2007 में प्रमोद मुथालिक ने की थी जो अब भी इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष है. उत्तर कर्नाटक के बगलकोट में जन्मे मुथालिक ने अपने शुरुआती दिन हिंदू दक्षिणपंथी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ गुजारे. वह 13 साल की उम्र से ही शाखा जाने लगा था. 1996 में आरएसएस में उसके सीनियरों ने मुथालिक को अपने सहयोगी संगठन बजरंग दल में भेज दिया. दल का दक्षिण भारत का संयोजक बनने में मुथालिक को एक साल से भी कम समय लगा. मुथालिक को जानने वाले उसे महत्वाकांक्षी, समर्पित और तीखा वक्ता कहते हैं. आरएसएस और इसके दूसरे संगठनों के साथ अपने 23 साल के जुड़ाव में मुथालिक का कई बार कानून से आमना-सामना हुआ और अपने ऊपर लगे भड़काऊ भाषण देने के आरोपों के चलते उसे कई बार जेल भी जाना पड़ा.

हिंदुत्व के प्रति उसके तथाकथित समर्पण का जब उसे कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला तो 2004 में उसने आरएसएस से अपना नाता तोड़ लिया. उसने दावा किया कि आरएसएस और इससे जुड़े अन्य संगठन पर्याप्त सख्ती न अपनाकर हिंदू हितों से गद्दारी कर रहे हैं. इसके बाद यह अपेक्षित ही था कि 2007 में स्थापना के बाद से ही अत्यंत कट्टर हिंदुत्व की राजनीति श्री राम सेना की पहचान बन गई. मुथालिक कहते हैं कि हिंसा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है. राजनीति के केंद्रीय रंगमंच पर आने की कोशिश में 2008 में मुथालिक ने राष्ट्रीय हिंदुत्व सेना का गठन किया, जो श्री राम सेना का राजनीतिक धड़ा है. लेकिन यह बुरी तरह से नाकाम रही. चुनाव लड़ने वाला इसका कोई भी उम्मीदवार अपनी मौजूदगी तक दर्ज नहीं करा सका. तहलका से बात करते हुए मुथालिक ने कैमरे के सामने यह स्वीकार किया कि उसके उम्मीदवार राज्य चुनाव इसलिए हार गए क्योंकि 'हमें कामयाब होने के लिए पैसा, धर्म और ठगों की जरूरत है. हमें यह पता नहीं था. आज की राजनीतिक स्थिति बदतर हो गई है.'

चुनावी राजनीति में फिर से लौटने की कोशिश के फेर में मुथालिक और सेना ने और अधिक कट्टर रुख अपनाते हुए 'हिंदू' पहचान को मजबूती देने की योजनाओं के एक सिलसिले की शुरुआत की. हालांकि इस संगठन का मजबूत आधार तटीय और उत्तर कर्नाटक के कुछ इलाकों में है, लेकिन इसकी गतिविधियां इन्हीं इलाकों तक सीमित नहीं हैं. 24 अगस्त, 2008 को दिल्ली में श्री राम सेना के कुछ सदस्य सहमत नामक एनजीओ द्वारा आयोजित एक कला प्रदर्शनी में घुस गए और एमएफ हुसैन की अनेक तसवीरों को नष्ट कर दिया. एक माह बाद सितंबर में मंगलौर में एक सार्वजनिक सभा में बोलते हुए मुथालिक ने बंेगलुरु बम धमाकों का जिक्र किया, जो एक हफ्ता पहले हुए थे और यह घोषणा की कि सेना के 700 सदस्य आत्मघाती हमले करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे थे. उसने घोषणा की, 'अब हमारे पास और धैर्य नहीं है. हिंदुत्व को बचाने के लिए जैसे को तैसा का ही एकमात्र मंत्र हमारे पास बचा है. अगर हिंदुओं के धार्मिक महत्व के स्थलों को निशाना बनाया गया तो विरोधियों को कुचल दिया जाएगा. अगर हिंदू लड़कियों का दूसरे धर्म के लड़कों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा तो अन्य धर्मों की दोगुनी लड़कियों को निशाना बनाया जाएगा.'

" मैंने पहले 1996 में आरएसएस में काम किया. फिर बजरंग दल में. मैं उस मुख्य टीम में शामिल था जिसने मंगलौर पब में हमला किया था. मगर पुलिस ने जो मामला दर्ज किया है उसमें मेरा नाम नहीं है. मैं कभी गिरफ्तार नहीं हुआ "

सुधीर पुजारी , मंगलौर में श्री राम सेना का एक सदस्य

कुछ महीनों बाद कर्नाटक पुलिस ने राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान हुबली में हुए धमाकों के संबंध में जनवरी, 2009 में नौ लोगों को गिरफ्तार किया. उनका मुखिया नागराज जंबागी सेना सदस्य और मुथालिक का नजदीकी सहयोगी था- इसे तब खुद मुथालिक ने स्वीकार किया था. जुलाई, 2009 में जंबागी की बगलकोट जेल में ही हत्या हो गई. मंगलौर पब हमले के दौरान अपने कैडरों को उकसाने के लिए गिरफ्तार किए जाने के कुछ मिनट पहले मुथालिक ने पत्रकारों से कहा था कि वे इन हमलों को इतना बड़ा मुद्दा क्यों बना रहे हैं. उसने कहा था- 'हम अपनी हिंदू संस्कृति को बचाने के लिए यह कदम उठा रहे हैं और उन लड़कियों को सजा दे रहे हैं जो पबों में जाकर इस संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रही थीं. जो कोई भी मर्यादा की सीमा से बाहर जाएगा हम उसे बरदाश्त नहीं करेंगे.'

मुथालिक के सुझाए 'मर्यादा' में रहने के ये तौर-तरीके आज भी तटीय कर्नाटक में अनेक प्रकार से लागू किए जा रहे हैं. मंगलौर में सेना के कैडर 15 जुलाई, 2009 को एक हिंदू शादी के समारोह में घुस गए और वहां मौजूद एक मुसलिम मेहमान के साथ मारपीट की. पूरे इलाके में मुसलिम लड़के महज हिंदू लड़कियों से बात करने के लिए ही पीट दिए जाते हैं. लव जिहाद (हिंदू लड़कियों को कथित तौर पर मुसलिम लड़कों द्वारा शादी का प्रस्ताव देकर अपने धर्म में शामिल करने की साजिश) के नाम पर स्थानीय लोगों की भावनाओं को भड़काने की भी जमकर कोशिश की जा रही है.

इस तरह अपनी पड़ताल के लिए तहलका के पत्रकार ने खुद को एक कलाकार के रूप में पेश किया और घोषणा की कि उसकी अगली प्रदर्शनी लव जिहाद की सकारात्मक छवि पर होगी. लेकिन इसके बावजूद मुथालिक या सेना के किसी सदस्य पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता दिखा कि वे जिस चीज़ का सैद्धांतिक रूप से विरोध करने का दावा करते हैं उससे संबंधित चित्रों की बिक्री उनके विरोध से बढ़ जाने वाली है.

पेश है तहलका की मुथालिक से मुलाकात का सिलसिलेवार ब्योरा.

तहलका की मुथालिक से पहली भेंट हुबली स्थित सेना के दफ्तर में हुई. कला प्रदर्शनी पर पूर्वनियोजित तरीके से हमले का प्रस्ताव रखने से पहले यह कहते हुए कि 'हिंदुत्व के लिए हम भी कुछ करें', नकद 10 हजार रुपए दान के रूप में दिए गए. मुथालिक ने झट से पैसे लिए और उन्हें अपनी जेब में रख लिया. उसने मना करने का दिखावा करने तक की जहमत नहीं उठाई.
बातचीत के क्रम में एक ऐसा प्रस्ताव सुझाया गया जो दोनों पक्षों के लिए लाभकारी था. मुथालिक के चेहरे पर हमने किसी तरह की हैरानी या अचंभे का भाव नहीं देखा - तब भी नहीं जब तहलका संवाददाता ने यह सुझाया कि प्रदर्शनी बंेगलुरु के एक मुसलिम बहुल इलाके में होनी चाहिए ताकि हमले का अधिकतम असर हो. इस सुझाव पर मुथालिक की एकमात्र प्रतिक्रिय़ा थी - ‘हां. हम ऐसा कर सकते हैं. मंगलौर में भी कर सकते हैं.’ इस तरह एक दूसरे शहर मंगलौर, जहां हमला किया जा सकता था, पर भी बात पक्की हो गई. अगले पांच मिनटों के भीतर मुथालिक ने इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें दो सेना नेताओं- बेंगलुरु शहर अध्यक्ष वसंतकुमार भवानी और सेना के उपाध्यक्ष प्रसाद अवतार से मिलने का सुझाव दिया जो मंगलौर में रहते हैं.

बेटा: 'पापा...पापा।'

बेटा: 'पापा...पापा।'

बाप: 'मैंने कितनी बार कहा कि खाना खाता वक्त बोलते नहीं।'

खाना खत्म होने के बाद बाप ने बेटे से कहा: 'बोलो क्या कह रहे थे?'

बेटे ने कहा: 'आपकी कढ़ी में मक्खी थी।'

107 साल के बुजुर्ग भी कर रहे हैं अनशन

॥ फर्रुखनगर
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वे उम्र के ऐसे पड़ाव पर हैं, जहां आम आदमी के लिए समाज की ज्यादातर चीजें बेमानी हो जाती हैं फिर भी वे भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं। हरियाणा में फर्रुखनगर के सांवल सिंह की उम्र 107 बरस है। दिल का जुनून उन्हें अन्ना के समर्थन में दिल्ली तक लेकर गया। ऐसे में भीड़ के बीच सांसें चढ़ने लगीं तो मजबूर होकर उन्हें वापस लौटना पड़ा। खास बात यह है कि वह अन्ना के साथ अनशन पर हैं। अन्ना से न मिल पाने का उन्हें गम है पर उनके हौसले बुलंद हैं और वह कहते हैं वह तबियत ठीक होते हैं दोबारा अन्ना से मिलने जाएंगे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजा चुके अन्ना हजारे से मिलने के लिए फर्रुखनगर के फाजिलपुर बादली गांव निवासी 107 वर्षीय किसान सांवल सिंह रविवार को दिल्ली के रामलीला ग्राउंड पहुंचे। भीड़, भीषण गर्मी और बिगड़ते मौसम ने उनके बूढ़े कदमों आगे बढ़ने से रोक दिया। इस कारण उनकी अन्ना से मिलने की ख्वाहिश अधूरी रह गई।

सांवल सिंह से जब यह पूछा गया कि वह अन्ना हजारे के बारे में क्या जानते हैं? तो उनका कहना है कि अन्ना के बारे में वह कुछ नहीं जानते लेकिन उनकी भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए चलाई गई मुहिम काबिल-ए-तारीफ है। उन्होंने बताया कि वह रविवार को भ्रष्टाचार के लिए हो रहे यज्ञ में आहुति डालने के लिए गए थे, लेकिन तबीयत बिगड़ने के कारण वह मंच तक नहीं पहुंच पाए। सांवल सिंह बड़े हौसले के साथ कहते हैं कि वह अन्ना से मिलने फिर दिल्ली जरूर जाएंगे।

उन्होंने कहा कि आज देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। गरीबों के मुंह से निवाला छीना जा रहा है। उन्होंने लोगों से अन्ना के इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लेने की अपील की। भ्रष्टाचार के चलते आज आपसी भाईचारा भी खत्म होता जा रहा है। पहले जहां लोग प्रेम से रहते थे, वहीं आज भाई भी भाई का दुश्मन बना हुआ है लेकिन अन्ना देश के युवाओं के लिए एक नई किरण लेकर आए हैं। अन्ना के समर्थन में खड़े होना देश के हर नागरिक का फर्ज बनता है। उनका कहना है कि वह स्वस्थ होते ही जल्द अन्ना से मिलने दिल्ली जाएंगे।

मुझे कुछ कहना है ब्लॉग की नीलिमा सुखीजा अरोड़ा को उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई


मुझे कुछ कहना है ब्लॉग की नीलिमा सुखीजा अरोड़ा को उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई .जयपुर में रहकर काफी लम्बे वक्त से पत्रकारिता से जुड़ कर महत्वपूर्ण साक्षात्कार ..खुसूसी किस्से नीलिमा जी ब्लोगर्स भाइयों को २००७ से परोस रही हैं आज उनका जन्म दिन है उन्हें बधाई ..उनकी तारीफ़ यूँ कुछ करूं में उन्हीं के अंदाज़ में के खुद आप का भी दिल उनसे मिलने को तडप जाए जी है बहन नीलिमा जी कुछ ऐसी ही बहतरीन लिखिका..पत्रकार और शख्सियत हैं जिन्हें आज उनके जन्म दिन पर हार्दिक बधाई ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान



इन्हें ................


मेरे ब्‍लॉग मैं कौन हूँ, ये प्रशन तो युगों युगों से अनुत्तरित है। बोलना मेरा शौक़ है और लिखना ज़रूरत।

To be or not to be
मुझे कुछ कहना है
neelima
चोखेर बाली
दाल रोटी चावल

India's Lokpal Bill, 2011

The official version of the Lokpal bill defining the role and powers of a Lokpal - an independent institution to check corruption by higher placed officials within government - has been tabled in the Parliament.

A need voiced out by the people to constitute a mechanism to dealing with complaints of corruption against public functionaries in high positions led the central government to constitute a Joint Draft Committee (JDC) on 8th april 2011, to draft the an anti-graft Act.

This Act is called the Lokpal Act,2011 and extends to the whole of India. It also applies to servants outside the country. The Act provides for the establishment of the institution of ‘Lokpal’ to inquire into the allegations of corruption against certain public functionaries and for all other relevant matters..

Lokpal

The Lokpal is to consist of a Chairperson, who is or has been a Chief Justice of India or a judge of the Supreme Court, and eight members out of whom 50% should be judicial members.

The chairperson and the members will be appointed by the President after obtaining the recommendations of a selection committee consisting of the Prime Minister, the Speaker of the House of the People, the Leader of Opposition in the House of the People,the Leader of Opposition in the Council of States, a Union Cabinet Minister nominated by the Prime Minister,one sitting Judge of the Supreme Court nominated by the Chief Justice of India,one eminent Jurist nominated by the central government and one person of eminence in public life who has wide knowledge and experience in anti-corruption policy.

The salary of the chairperson will be the same as that of the chief justice of India and that of the members will be the same as that of judges of the Supreme Court.

The chairperson or any of the members can be removed from his or her office by the order of the President on the grounds of misbehaviour after the Supreme Court, on a reference being made to it by the President, on a petition being made by at least 100 members of the parliament or by the president on the receipt of a petition made by a citizen of India where the president is satisfied that the petition should be referred.

Powers & Functions

As per the bill, the Lokpal shall constitute an Investigation Wing for the purpose of conducting investigation of any offence alleged to have been committed by a public servant punishable under the Prevention of Corruption Act,1988. The institution may, by notification, constitute a prosecution wing and appoint a Director of Prosecution and such other officers to assist the Director of Prosecution in the prosecution of public servants in relation to any complaint by the Lokpal under this act.

The expenses of the Lokpal, including all salaries, allowances and pensions payable to or in respect of the Chairperson, Members or secretary or other officers or staff of the lokpal, has to be charged on the Consolidated Fund of India and any fees taken by the Lokpal is to form a part of that fund.

Subject to the provisions of this Act, the Lokpal will inquire into any matter involved in, or arising from, or connected with, any allegation of corruption made in a complaint in respect of the Prime Minister after he has resigned from office, any other person who is or has been a member of the Union, any person who is or as been a member of either house of Parliament and any group ‘A’ officer in the public services.

A complaint under this Act should only relate to a period during which the public servant is holding or serving in that capacity.

The bill clearly states the procedure of inquiry and investigation. The Lokpal on receipt of a complaint, will either make a preliminary inquiry or direct its Investigation Wing to ascertain whether the matter can be proceeded with or not. Every preliminary investigation is supposed to ordinarily be completed within a period of 30 days and if needed in particular cases, within a further extended deadline of 3 months from the date of receipt of the complaint.

After this the investigating authority shall submit its report to the Lokpal and the Lokpal has to give the public servant a chance of being heard.

The hearing of the case will be made public.

For the purpose of any inquiry, the Lokpal will enjoy all powers of the Civil Court, under the Code of Civil Procedure of 1908 while trying a suit in respect of any of the matters related to summoning and enforcing the attendance of any person and examining him on oath, requiring the discovery and the production of any document, receiving evidence of affidavit, requisitioning any public record or copy thereof from any court or office and issuing commissions for the examination of witnesses or documents.

Special Lokpal courts

The central government shall constitute a number of special courts as recommended by the Lokpal, to hear and decide the cases arising out of the Prevention of Corruption Act, 1988 or under this Act. These special courts are supposed to ensure completion of each trial within an year of the filing of the case.

The Lokpal is not meant to inquire into any complaint made against the Chairperson or any member and any complaint against the Chairperson or a member shall be made by an application by the party aggrieved, to the president. If on trial a public servant is seen to have been involved in some corrupt practice, then he or she will be liable of making up for the loss to the exchequer if any.

Whoever makes a false or frivolous complaint under this Act shall, on conviction, be punished with imprisonment for at least two. The term of imprisonment can extend to 5 years and with a fine not less than 25 thousand which can be raised to 2 lakhs.

जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2



इस विधेयक का मसविदा केन्द्र में लोकपाल नामक संस्था की स्थापना के लिए तैयार किया गया है. लेकिन इस विधेयक के प्रावधान इस तरह के होंगे ताकि प्रत्येक राज्य में इसी तरह की लोकायुक्त संस्था स्थापित की जा सके.


जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2



एक अधिनियम, जो केन्द्र में ऐसी प्रभावशाली भ्रष्टाचाररोधी और शिकायत निवारण प्रणाली तैयार करेगा, ताकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रभावी तन्त्र तैयार हो सके और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराई जा सके.



1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ-

(1) इस अधिनियम को जन लोकपाल अधिनियम, 2010 कहा जा सकता है.

(2) अपने अधिनियमन के 120वें दिन यह प्रभावी हो जाएगा.


2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(1) `कार्रवाई´ का अर्थ है किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने कर्र्तव्य के निर्वहन के लिए की गई कोई कार्रवाई और जिसमें निर्णय, संस्तुति या निष्कर्ष अथवा अन्य किसी प्रकार की कार्रवाई सम्मिलित है, इसमें जानबूझकर विफलता, चूक या इसी तरह की अभिव्यक्ति करने वाली कार्रवाई भी शामिल होगी

(2) `आरोप´ में किसी लोकसेवक के सम्बन्ध में निम्नलिखित में, से किसी भी बात की पुष्टि शामिल है-
क. वह सरकारी कर्मचारी है और कदाचार में लिप्त है
ख. भ्रष्टाचार में लिप्त है.

(3) `परिवाद´ में सम्मिलित है, कोई शिकायत या आरोप अथवा भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्ति द्वारा सुरक्षा एवं उचित कार्रवाई के लिए किया गया अनुरोध.

(4) `भ्रष्टाचार´ के अन्तर्गत वे सभी कृत्य सम्मिलित है, जो भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 9 अथवा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत दण्डनीय तय किए गए हैं.
साथ ही यदि किसी व्यक्ति ने किसी कानून या नियम का उल्लंघन करते हुए सरकार से कोई लाभ लिया हो, वह व्यक्ति और उसके साथ ही वे लोक सेवक जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ लेने में उस व्यक्ति की सहायता की हो, भ्रष्टाचार में लिप्त माने जाएंगे.

(5) `सरकार´ अथवा `केन्द्र सरकार´ से आशय है 'भारत सरकार'.

(6) शासकीय कर्मचारी´ से आशय है कोई व्यक्ति, जिसकी नियुक्ति किसी भी समय लोक सेवा अथवा केन्द्र सरकार या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय से सम्बन्धित किसी पद के लिए, प्रतिनियुक्ति अथवा स्थायी, अस्थायी या अनुबन्ध के आधार पर हुई है या हुई थी, लेकिन इसमें न्यायाधीश शामिल नहीं होंगे.

(7) `शिकायत´ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा यह दावा कि उसे सिटीजन्स चार्टर के अनुसार और उस विभाग के जन शिकायत अधिकारी से सम्पर्क के बाद भी सन्तोषजनक समाधान नहीं मिल पाया.

(8) `लोकपाल´ से आशय है -
क. इस अधिनियम के अधीन एवं इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत निर्धारित कार्य के पालन हेतु गठित पीठें, अथवा
ख. इस अधिनियम के अन्तर्गत, या इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत बनाये गये विभिन्न नियमों, विनियमों या आदेशों के अन्तर्गत नियत, तरीके और सीमा में, अपनी शक्तियों का उपयोग करने वाला और अपने कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाला कोई अधिकारी या कर्मचारी
ग. अन्य सभी प्रयोजनों के लिए, संस्था के तौर पर संयुक्त रूप से कार्यरत अध्यक्ष एवं सदस्य;

(9) `अल्प दण्ड´ और `प्रमुख दण्ड´ से आशय वही होगा जो केन्द्रीय लोक सेवा आचरण नियमों में परिभाषित है.

(10) `कदाचार´ का अर्थ है वही होगा जैसा कि केन्द्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम में परिभाषित है और जिसमें सतर्कता का दृष्टिकोण हो

(11) `लोक प्राधिकरण´ में सम्मिलित है कोई प्राधिकरण अथवा निकाय अथवा स्वशासी संस्था जिसकी स्थापना या गठन-
क. संविधान द्वारा अथवा संविधान के अन्तर्गत हुआ हो
ख. संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा हुआ हो;
ग. सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अथवा आदेश, और सरकारी स्वामित्व, नियन्त्रित अथवा पर्याप्त अंश से वित्तपोषित संस्था

(12) `लोक सेवक´ का अर्थ है, वह व्यक्ति जो किसी भी समय था अथवा है,-
क. प्रधानमन्त्री;
ख. मन्त्री;
ग. संसद सदस्य;
घ. उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश;
ङ. सरकारी कर्मचारी;
च. अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष (यथा नाम) अथवा स्थानीय प्राधिकरण का कोई सदस्य, जो कि केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण में हो अथवा एक सांविधिक निकाय अथवा निगम जिसका गठन भारतीय संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अन्तर्गत हुआ हो, जिसमें सहकारी समिति भी सम्मिलित है, अथवा ऐसी सरकारी कम्पनी, जो कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 617 के अन्तर्गत अर्थ रखती हो, और सरकार द्वारा स्थापित कोई भी सांविधिक अथवा गैर सांविधिक समिति अथवा परिषद के सदस्य;
छ. इसमें वे सभी सम्मिलित हैं, जो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा 2 (सी) में `लोकसेवक´ घोषित हैं.
ज. ऐसे अन्य प्राधिकारी, जो केन्द्र सरकार की अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर उल्लिखित किए जाएं

(13) `सतर्कता दृष्टिकोण´ में सम्मिलित है-
क. भ्रष्टाचार की सभी गतिविधियां
ख. घोर लापरवाही अथवा जानबूझकर की गई लापरवाही, निर्णय लेने में कोताही, प्रणालियों और प्रकियाओं का घोर उल्लंघन, ऐसे मामलों में स्वविवेक अधिकार का अतिरेक जहां कोई प्रकट/सार्वजनिक हित स्पष्ट नहीं है, नियन्त्रणकर्ता अथवा वरिष्ठ अधिकारी को समय पर सूचित करने में चूक
ग. अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा कार्यालय के दुरुपयोग की शिकायत मिलने पर भी कार्रवाई में असफलता/विलम्ब, यदि कानून के अन्तर्गत किसी अधिकारी का ऐसा दायित्व बनता है तो,
घ. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी के आचरण के माध्यम से भेदभाव में संलिप्तता.
ङ. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों का उत्पीड़न
च. मामले के निस्तारण में किसी तरह का असंगत/अनुचित विलम्ब, सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद, मामले में सतर्कता दृष्टिकोण की उपस्थिति निष्कर्ष को और सुदृढ़ता प्रदान करेगी.
छ. किसी से अनुचित पूछताछ या जांच, भ्रष्टाचार के दोषी को अनावश्यक मदद पहुंचाने अथवा निर्दोष को फंसाने के लिए.
ज. लोकपाल द्वारा समय-समय पर अधिसूचित कोई अन्य विषय सामग्री
(14) `भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाला´ व्यक्ति वह है, जो किसी खतरे का सामना करता है -
क. पेशेगत नुकसान, जिसमें गैरकानूनी स्थानान्तरण, प्रोन्नति से इंकार, उपयुक्त अनुलाभ से इंकार, विभागीय कार्यवाही, भेदभाव सम्मिलित है पर सीमित नहीं अथवा
ख. शारीरिक क्षति अथवा
ग. वास्तव में इस तरह की क्षति;
जो कि या तो इस अधिनियम के अन्तर्गत लोकपाल से शिकायत करने, अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत याचिका दाखिल करने के कारण से सम्बन्धित है अथवा भ्रष्टाचार अथवा कुशासन को उजागर करने अथवा रोकने के उद्देश्य से की गई कोई अन्य विधिक कार्रवाई.

3. लोकपाल संस्था की स्थापना और लोकपाल की नियुक्ति:
(1) लोकपाल नामक एक संस्था होगी, जिसमें अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के सहित एक अध्यक्ष और दस सदस्य होंगे.
(2) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चुनाव उसी तरह होगा, जैसा कि इस अधिनियम में बताया गया है.
(3) लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर नियुक्त व्यक्ति को, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, निर्धारित प्रारूप में राष्ट्रपति के समक्ष शपथ अथवा प्रतिज्ञान लेना होगा.
(4) इस अधिनियम के लागू होने के छ: माह के अन्दर सरकार पहले पहले लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति सरकार करेगी, और सभी प्रचालन तन्त्र एवं परिसम्पत्तियों के साथ संस्था का गठन हो जाएगा.
(5) सरकार -
क. सेवानिवृत्ति, सदस्य अथवा अध्यक्ष की सेवानिवृत्ति के तीन माह पूर्व, अथवा
ख. किसी अन्य अनपेक्षित कारण से इस तरह की रिक्ति उत्पन्न होने के एक माह के भीतर. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति करेगी

4. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यगण कुछ विशेष कार्यालयों से सबन्द्ध नहीं रहेंगे-लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण संसद या किसी राज्य की विधायिका के मौजूदा सदस्य नहीं होंगे या किसी पद या लाभ के न्यास में (अध्यक्ष या सदस्य के पद के अलावा) नहीं रहेंगे या किसी अन्य व्यवसाय या पेशे में नहीं होंगे, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य चुना गया व्यक्ति -
(1) यदि वह किसी न्यास अथवा लाभ के पद पर है, उस पद से त्यागपत्र दे देगा, या
(2) यदि वह कोई व्यवसाय कर रहा है, उस व्यवसाय के कार्य व्यवहार अथवा प्रबन्धन से अपना सम्बन्ध समाप्त कर लेगा; या
(3) यदि वह किसी पेशे में है तो उस पेशे को स्थगित करना होगा
(4) यदि वह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी अन्य गतिविधि से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से लोकपाल में उसके दायित्वों के प्रदर्शन में हितों का टकराव सम्भव है, उसे उस गतिविधि से अपना जुड़ाव खत्म कर देना होगा.
उपबन्ध किया गया है कि यदि उस काम के छोड़ देने के बाद भी, उस गतिविधि से जिससे वह पूर्व में जुड़ा था, से लोकपाल में उसके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, वह व्यक्ति लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकेगा.

5. लोकपाल का कार्यकाल एवं अन्य सेवा शर्तें-
(1) लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से पांच साल या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, होगा.
आगे यह भी उपबन्ध है कि
क. लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य, राष्ट्रपति को सम्बोधित हस्तलिखित पत्र के जरिए पद त्याग सकता है;
ख. अध्यक्ष अथवा सदस्य को इस अधिनियम में निहित तरीके से पद से हटाया जा सकता है.
(2) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य को प्रति माह क्रमश: भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन मिलेगा.
(3) अध्यक्ष अथवा सदस्य के लिए देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें वहीं होंगी, जैसा निर्धारित किया जाए.
परन्तु अध्यक्ष अथवा सदस्य को देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें उसकी नियुक्ति के बाद उसके लिए बदली नहीं जाएंगी.
(4) लोकपाल कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसमें देय वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, अथवा उस कार्यालय में कार्य कर रहे व्यक्तियों के सम्बन्ध में, भारत की संचित निधि पर भारित होगा.
(5) `लोकपाल निधि´ के नाम से एक अलग निधि होगी, जिसमें लोकपाल द्वारा लगाए गए दण्ड/जुर्माने जमा होंगे और जिसमें इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत वसूले गए सार्वजनिक धन के नुकसान का 10 फीसदी भी सरकार द्वारा जमा किया जाएगा. इस निधि का निस्तारण पूरी तरह लोकपाल के विवेक पर होगा और इस निधि का प्रयोग लोकपाल को बढ़ाने/उन्नयन/बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के लिए ही किया जाएगा.
(6) लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण भारत सरकार या किसी राज्य सरकार अथवा ऐसे किसी निकाय, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हो, में किसी भी पद पर नियुक्ति या संसद, राज्यों की विधायिका अथवा स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने के पात्र नहीं होंगे, यदि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे देने के बाद अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर किसी भी अवधि के लिए कोई पद ग्रहण किया है. किसी सदस्य को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते सदस्य और अध्यक्ष के तौर पर उसका कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक न हो और कोई भी सदस्य अथवा अध्यक्ष पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति या सेवा विस्तार का पात्र नहीं होगा.

6. अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति
(1) अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की संस्तुति पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
(2) निम्नलिखित लोग लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
क. कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है.
ख. कोई व्यक्ति जिसे भारतीय दण्ड संहिता, अपराध संहिता अथवा किसी अन्य अधिनियम के तहत आरोपित किया गया हो अथवा सीसीएस आचरण नियमों के तहत दण्डित किया गया हो.
ग. कोई व्यक्ति जिसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो.
घ. कोई व्यक्ति जो किसी भी सरकार की सेवा में था और पिछले दो वर्षों के भीतर कार्यालय छोड़ दिया था, या तो त्यागपत्र अथवा सेवानिवृत्ति के माध्यम से.
(3) लोकपाल के कम से कम चार सदस्य विधिक पृष्ठभूमि के होंगे. अध्यक्ष सहित दो से अधिक सदस्य पूर्व नौकरशाह नहीं होंगे.
स्पष्टीकरण: कानूनी पृष्ठभूमिका तात्पर्य है कि वह व्यक्ति भारत में कम से कम दस सालों तक न्यायिक सेवा में पद सम्भाल चुका हो अथवा उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में कम से कम 15 साल तक अधिवक्ता रहा हो.
(4) सदस्यों और अध्यक्ष की निष्ठा असन्दिग्ध हो और पूर्व में उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने के संकल्प का प्रदर्शन किया हो.
(5) चयन समिति में निम्नलिखित लोग होंगे
क. भारत के प्रधानमन्त्री
ख. लोकसभा में नेता विपक्ष
ग. उच्चतम न्यायालय के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
घ. उच्च न्यायालयों के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
ङ. भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक
च. मुख्य निर्वाचन आयुक्त
छ. प्रथम चयन प्रक्रिया के बाद से लोकपाल के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त होने वाले सदस्य,
(6) प्रधानमन्त्री चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा.
(7) चयन समिति के विचारार्थ योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करने हेतु एक खोज कमेटी होगी, जिसमें दस सदस्य होंगे
(8) खोज समिति के सदस्यों का चयन निम्नलिखित तरीके से होगा;
क. चयन समिति भारत के पूर्व नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षकों और भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्तों में से खोज समिति के पांच सदस्यों का चयन करेगी.
परन्तु निम्नलिखित लोग खोज समिति के सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
(i) कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध विधिवत (सारभूत) भ्रष्टाचार का आरोप लग चुका हो.
(ii) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो गया हो अथवा किसी राजनीतिक दल से उसका गहरा जुड़ाव रहा हो.
(iii) कोई व्यक्ति जो किसी भी रूप में सरकार की सेवा कर रहा हो.
(iv) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकारी कार्य कर रहा हो, उन कार्यों को छोड़कर जो कि उस पद के लिए आरक्षित हैं, जिससे वह सेवानिवृत्त हुआ हो.
ख. चयनित उपरोक्त पांच सदस्य, नागरिक समाज से पांच सदस्यों को मनोनीत करेंगे.

(9) खोज समिति ऐसे वर्ग के लोगों अथवा ऐसे व्यक्तियों से संस्तुति अमन्त्रित करेगी, जिन्हें वह इसके लिए उचित समझती हो. इस संस्तुति में अन्य विषयों के साथ-साथ अधोलिखित विवरण होने अनिवार्य हैं.
क. जिस प्रत्याशी की संस्तुति की गई है, उसका व्यक्तिगत विवरण.
ख. प्रत्याशी ने अतीत में अगर किसी कानूनी आरोप या नैतिक भ्रष्टाचार के आरोप का सामना किया है तो उसका पूरा विवरण.
ग. भ्रष्टाचार के खिलाफ अतीत में उसके द्वारा किए गए प्रयासों का लिखित प्रमाण.
घ. अतीत का ऐसा विवरण जो यह दर्शाता हो कि वह अपने विवेक से निर्णय करता है और किसी भी तरह उसे प्रभावित नहीं किया जा सकता, यदि कोई हो तो.
ङ. कोई अन्य सामग्री, जिसका निर्णय खोज समिति करे.
(10) चयन के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा -
क. प्रत्याशियों की सूची उनके समूचे विवरण के साथ, जो उन्होंने उपरोक्त प्रारूप में दिया हो, उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा.
ख. इन नामों पर जनता की प्रतिक्रिया मांगी जाएगी.
ग. खोज समिति इन प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि और पहले किए गए कार्यों से सम्बन्धित सूचनाएं जुटाने के लिए कोई भी माध्यम इस्तेमाल कर सकती है.
घ. प्रत्याशियों के बारे में एकत्रित सभी सामग्री खोज समिति के हर सदस्य को अग्रिम तौर पर उपलब्ध कराई जाएगी. समिति के सदस्य हर प्रत्याशी का अपनी ओर से आंकलन करेंगे.
ङ. समिति मिलकर हरेक उम्मीदवार के बारे में प्राप्त सामग्रियों पर चर्चा करेगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा.
परन्तु जांच समिति के तीन या अधिक सदस्य अगर लिखित कारणों के आधार पर किसी सदस्य के चयन पर आपत्ति करते हैं तो उसका चयन नहीं किया जाएगा.
च. खोज समिति कुल रिक्तियों की तीन गुना संख्या के बराबर नामों की सूची बनाकर चयन समिति के विराचार्थ प्रस्तुत करेगी
छ. चयन समिति, रिक्तियों की संख्या के बराबर संख्या में प्रत्याशियों का चयन कर प्रधानमन्त्री को देगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा.
परन्तु अगर चयन समिति के तीन या अधिक सदस्य किसी सदस्य के चयन का विरोध लिखित रूप में देते हैं, तो उस व्यक्ति का चयन नहीं होगा.
ज. खोज समिति की सभी बैठकें और सभी चयन की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी और इसे सार्वजनिक किया जाएगा.
(11) चयन समिति द्वारा तय किए गए नामों की अनुशंसा प्रधानमन्त्री तत्काल राष्ट्रपति से करेंगे, जो इस अनुशंसा प्राप्ति के एक महीने के भीतर नियुक्ति का आदेश जारी करेंगे.
(12) अगर चयन समिति का कोई सदस्य चयन प्रक्रिया के जारी रहने के दौरान ही सेवानिवृत हो जाता है तो उस स्थिति में वह सदस्य चयन समिति में तब तक बना रहेगा, जब तक कि चयन प्रक्रिया पूरी न हो जाए.

7. अध्यक्ष अथवा सदस्यों को हटाना -
(1) अध्यक्ष या किसी सदस्य को केवल राष्ट्रपति के आदेश से तभी उसके पद से हटाया जा सकता है जबकि निम्न में से कोई एक या अधिक आधार हो -
क. कदाचार प्रमाणित होने पर
ख. पेशागत, मानसिक या शारीरिक अक्षमता
ग. दिवालिया
घ. नैतिक भ्रष्टाचार से सम्बद्ध आरोप लगने पर
ङ. पद पर रहते हुए किसी दूसरे वैतनिक कार्यों में लिप्त पाए जाने पर
च. ऐसे आर्थिक लाभ या अन्य लाभ हासिल करने पर जो उस व्यक्ति के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में कार्य को प्रभावित कर सकता है.
छ. अपने पास विचाराधीन मामले में, किसी का पक्ष लेने के उद्देश्य से अथवा किसी को फंसाने के उद्देश्य से, बाहरी प्रभाव द्वारा निर्देशित/संचालित होने पर
ज. किसी सरकारी अधिकारी को अनुचित रूप से प्रभावित करने या प्रभावित करने का प्रयास करने पर.
झ. ऐसी कोई चूक या ऐसा कोई कार्य करने पर, जो भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत दण्डनीय है, या किसी कदाचार में लिप्त पाए जाने पर.
ञ. यदि कोई सदस्य या अध्यक्ष किसी भी तरीके से, भारत सरकार अथवा किसी प्रदेश सरकार द्वारा या उसके किसी अधिकारी या उसके प्रतिनिधि द्वारा स्थापित अनुबन्ध या समझौते में रुचि रखता हो या उससे सम्बद्ध हो, या उससे होने वाले लाभों से अथवा उससे होने वाली किसी तरह की आय से सदस्य के अलावा किसी और तरह से सम्बन्ध रखता हो, या किसी निगमित कम्पनी से सम्बद्ध हो, उसे कदाचार का दोषी समझा जाएगा.
(2) लोकपाल के किसी सदस्य या अध्यक्ष को निष्कासित करने के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना होगा.
क. कोई भी व्यक्ति लोकपाल के एक या अधिक सदस्यों या अध्यक्ष के खिलाफ ठोस सबूत पेश करते हुए उसके निष्कासन की याचिका पेश कर सकता है.
ख. ऐसी याचिका प्राप्त होने पर सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई करेगा और अधोलिखित में से एक या एक से अधिक कदम उठा सकता है:
(i) सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल को जांच का आदेश, यदि प्रथम दृष्टया इसकी आवश्यकता महसूस होती है और अगर सम्बन्धित पक्षों द्वारा दायर हलफनामों से इसका निर्णय करना सम्भव न हो सके. विशेष जांच दल तीन महीने के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा.
(ii) विशेष जांच दल द्वारा उपबन्ध (1) के तहत जांच लम्बित होने पर, उस सदस्य से आंशिक अथवा पूरा काम वापस ले लेने का आदेश देना
(iii) कोई मामला न बनने की स्थिति में याचिका रद्द करना
(iv) आधारों की पुष्टि होने पर, सम्बन्धित सदस्य अथवा अध्यक्ष को हटाने की अनुशंसा राष्ट्रपति के पास भेजना
(v) यदि प्रथमदृष्टया भ्रष्टाचार निरोधी कानून या किसी अन्य कानून के तहत किसी दण्डनीय अपराध का मामला बनता हो तो समुचित एजेंसी को केस दर्ज करने और जांच का निर्देश देना

ग. सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायधीशों के पैनल की पीठ बनेगी. परन्तु अगर इन न्यायाधीशों में से कोई भी कभी चयन समिति का सदस्य रहा हो या जिसके खिलाफ कोई मामला लोकपाल के समक्ष लम्बित हो, वह उस पीठ का सदस्य नहीं हो सकेगा.
घ. सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाओं को इस आधार पर ख़ारिज नहीं कर सकता कि उसके खिलाफ पहले से ऐसा ही मामला विचाराधीन है.
ङ. अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि याचिका नुकसान पहुंचाने की मंशा या बुरी नीयत से दायर की गई है तो अदालत शिकायतकर्ता पर जुर्माना लगा सकती है या उसे एक साल तक कैद की सजा सुना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट से उपयुर्क्त उपबन्ध (ख)(iv) में अनुशंसा मिलने की स्थिति में प्रधानमन्त्री, सदस्य या सदस्यों अथवा लोकपाल के अध्यक्ष को तत्काल हटाए जाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से करनी होगी जो उस सदस्य या सदस्यों अथवा अध्यक्ष को अनुंशसा प्राप्त होने के एक महीने के भीतर हटाने का आदेश जारी करेंगे.



लोकपाल की शक्तियां एवं कार्य



8. लोकपाल के कार्य:

(1) लोकपाल ऐसी शिकायतों की प्राप्तियों के लिए उत्तरदायी होगा जिनमें-

क. जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन चूक के आरोप हों या दण्डनीय कृत्य के आरोप लगाए गए हों,

ख. जहां सरकारी सेवक पर दुर्व्यवहार के आरोप हों,

ग. शिकायत

घ. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से मिली शिकायतें,
ङ. लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें

(1क) अपने कर्मचारियों की अखण्डता सुनिश्चित करना, चाहे वह स्थाई हों अथवा अन्य, लोकपाल का मुख्य कर्र्तव्य होगा. लोकपाल इसे यह सुनिश्चित करने के लिए पूर्णत सक्षम एवं सशक्त होगा.

(2) लोकपाल, जांच एवं पूछताछ के बाद, जैसा वह उचित समझे, निम्नलिखित कार्यों में से एक या एकाधिक कार्रवाई कर सकता है:
क. अगर प्रथम दृष्टया शिकायत नहीं बनती है तो मामला बन्द करना, अथवा
ख. सरकारी कर्मचारी और साथ ही साथ उस व्यक्ति, जो इस कृत्य में पक्षकार है, के खिलाफ आरोप- पत्र दाखिल करना
ग. अगर सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन अन्तत: दोषी पाया जाता है तो सुसंगत आचार संहिता के तहत उस पर युक्तियुक्त दण्ड आरोपित करने की अनुशंसा करना और उस सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी की भी सुनिश्चित सिफारिश करना
घ. जांच के अधीन विषयगत यदि किसी लाइसेंस या पट्टा या स्वीकृति या ठेका या समझौते को रद्द करने अथवा संशोधित करने का आदेश दे सकता है
ङ. अगर भ्रष्टाचार के कृत्य में सम्बन्धित प्रतिष्ठान या कम्पनी या ठेकेदार या किसी अन्य को शामिल पाया जाता है तो उसे प्रतिबन्धित सूची में डालने का आदेश देना
च. इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, समुचित अधिकारियों को शिकायतों के निवारण के लिए उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना
छ. अगर लोकपाल के आदेश का विधिवत अनुपालन नहीं होता है, तो उन आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए इस अधिनियम के तहत आदेश जारी करना
ज. इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी कार्रवाई करना

(3) अगर किसी भी मामले में लोकपाल को किसी स्रोत से जानकारी हो है, तो वह इस अधिनियम के अन्तर्गत, अगर इस तरह का कोई मामला उपबन्ध (1) की धारा (क), (ख), (ग) या (घ) में उल्लेखित है, स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई कर सकता है.

(4) समय-समय पर जरूरत पड़ने पर समुचित अधिकारी को उनके कामकाज, प्रशासन एवं अन्य व्यवस्था में परिवर्तन के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सकता है, ताकि भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, जन शिकायत एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की प्रताड़ना की गुंजाइश और सम्भावना कम हो सके

(5) इस धारा की उपधारा (2) (ग) के अन्तर्गत लोकपाल द्वारा जारी किए गए आदेश सरकार के लिए बाध्यकारी होंगे और आदेश मिलने के एक सप्ताह के अन्दर उसका कार्यान्वयन जरूरी होगा.

(6) भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 19 को समाप्त कर दिया जाएगा. इस अधिनियम के कार्यान्वयन में दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापना अधिनियम की धारा 6-क लागू नहीं होगी.

(7) इस अधिनियम की किसी भी कार्यवाही में अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 लागू नहीं होगी. किसी भी कानून के तहत लोकपाल से एक बार स्वीकृति मिल जाने के बाद, ऐसी सभी स्वीकृतियां, जो आरम्भिक जांच के लिए जरूरी हैं, प्रदत्त मानी जाएंगी.

9. सर्च वारण्ट जारी होना आदि-
(1) जहां लोकपाल, अपने पास उपलब्ध सूचना के आधार पर
क. अगर यह यकीन करने का कोई कारण देखता है, कि कोई व्यक्ति-
(i) जिसे इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्मन या नोटिस जारी किया गया है या जारी किया जा सकता है, जो किसी जांच के लिए ज़रूरी या उपयोगी कोई सम्पत्ति दस्तावेज या अन्य कोई वस्तु प्रस्तुत नहीं करेगा, या नहीं कर पाएगा, या प्रस्तुत नहीं करने की वजह होगा,
(ii) जिसके कब्जे में मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें या वस्तुएं हैं और ऐसी मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें हैं जिनकी घोषणा, सम्पत्ति की घोशणा करने सम्बन्धी किसी भी प्रभावी कानून के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकार के समक्ष, अंशत: या पूर्णत: नहीं की गई है
. विचार करता हो कि उसके द्वारा आरम्भ की गई किसी भी जांच या अन्य कार्रवाई का उद्देश्य, सामान्य खोज या निरीक्षण द्वारा पूरा होगा,
सर्च वारण्ट के ज़रिए किसी ऐसे पुलिस अधिकारी को, जिसका ओहदा पुलिस इंस्पेक्टर से नीचे नहीं होगा, तलाशी लेने, निरीक्षण करने के लिए तदानुसार अधिकृत करेगा, और ऐसा करने के लिए वह अधिकारी-
(i) किसी भी इमारत या स्थान, जहां उसे ऐसी किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु के रखे जाने के सन्देह का कारण हो, वह प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा.
(ii) किसी ऐसे व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जिस पर कि स्वयं को छिपाने या किसी वस्तु को छिपाने का सन्देह हो.
(iii) वह उप नियम-(i) के अन्तर्गत प्राप्त शक्तियों के तहत ऐसा कोई भी दरवाजा, बक्सा, लॉकर, सेफ, आलमारी या अन्य पात्र धारक का ताला तोड़ सकेगा जिसकी चाबी उपलब्ध नहीं है.
(iv) ऐसी तलाशी में प्राप्त किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य कीमती चीजों जब्त करे
(v) किसी भी सम्पत्ति या दस्तावेज पर पहचान के चिन्ह बनाए ताकि कोई उसे निकाल न सके अथवा उसकी नकल न कर सकें.
(vi) ऐसी किसी भी सम्पत्ति, दस्तावेज, पैसे, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तुओं या चीजों को सूचीबद्ध कर दर्ज किया जाएगा.

(2) उपधारा (1) के तहत तलाशी एवं जब्ती में, यथासम्भव, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 के सम्बन्धित प्रावधान लागू होंगे

(3) उपधारा (1) के अधीन सभी उद्देश्यों के लिए जारी सभी वारण्ट, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 93 के अधीन अदालत द्वारा जारी वारण्ट समझा जाएगा.

10. साक्ष्य-
(1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत किसी भी जांच के उद्देश्य से, (अगर कोई प्रारम्भिक जांच है, सहित) लोकपाल किसी भी सरकारी कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो उनकी राय में किसी जांच के लिए प्रासंगिक सूचना उपलब्ध कराने या दस्तावेज देने में सक्षम है, सूचना देने अथवा दस्तावेज़ प्रस्तुत कराने के लिए तलब कर सकेगा.

(2) लोकपाल को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत कोई याचिका दायर करते हुए, निम्नलिखित मामलों में, ऐसी किसी भी जांच के उद्देश्य से (आरम्भिक जांच सहित) वे सारी शक्तियां प्राप्त होंगी जो नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत किसी प्रकार का निपटारा करते हुए दीवानी न्यायालय को प्राप्त हैं -
क. किसी भी व्यक्ति को उपस्थित रहने के लिए बाध्य करने और उसे सम्मन जारी करने और उससे शपथ लेना;
ख. किसी भी दस्तावेज की खोज एवं उसे प्रस्तुत करना;
ग. हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करना;
घ. किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक रिकार्ड या उसकी प्रतिलिपि हासिल करना;
ङ. दस्तावेज या गवाह की जांच के के लिए आदेश जारी करना;
च. गलत या अफसोसनाक दावा या रक्षा के आलोक में क्षतिपूर्ति भुगतान का आदेश;
छ. देरी के लिए हर्जाने का आदेश
ज. ऐसे अन्य मामले, जिन्हें निर्धारित किया जा सकता है

(3) लोकपाल के सम्मुख कोई भी कार्रवाई भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 के अर्थ में एक न्यायिक कार्रवाई समझी जाएगी.

11. लोकपाल की रिपोर्ट इत्यादि-
(1) लोकपाल के अध्यक्ष, प्रतिवर्ष, राष्ट्रपति को अपने कार्य निष्पादन पर, निर्धारित प्रारूप में प्रतिवेदन पेश करेंगे.

(2) राष्ट्रपति, प्रतिवेदन की प्रति, व्याख्यात्मक ज्ञापन देते हुए संसद के दोनों सदनों में रखवाएंगे.

(3) लोकपाल हरेक महीने अपनी वेबसाइट पर ऐसे मामलों की एक सूची, संक्षिप्त विवरण, परिणाम एवं कृत अथवा प्रस्तावित कार्रवाई के विवरण के साथ प्रकाशित करेगा, इस वेबसाइट पर पिछले एक महीने में लोकपाल द्वारा प्राप्त मामलों की सूची, निपटाए गए, और लम्बित पड़े मामलों की सूची भी भी प्रकाशित की जाएगी.

12. लोकपाल एक मान्य पुलिस अधिकारी होगा
(1) अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 36 के उद्देश्य के लिए, लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्य और इसकी जांच शाखा के अधिकारियों को पुलिस अधिकारी माना जाएगा.

(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी अपराध की छानबीन करते हुए वे उस मामले में किसी दूसरे कानून के अन्तर्गत किसी अपराध की जांच के लिए भी सक्षम होंगे.
13. आदेशों की अवज्ञा में लोकपाल की शक्ति-
(1) लोकपाल के प्रत्येक आदेश में उन अधिकारियों का नाम पूरी तरह स्पष्ट किया जाएगा, जो उसे अमल में लाएंगे, आदेश के अमल में लाने की प्रक्रिया और उसके अनुपालन की समय सीमा का विवरण भी स्पष्ट दिया जाएगा.

(2) अगर लोकपाल के आदेश का क्रियान्वयन निर्धारित प्रक्रिया और समय सीमा के भीतर नहीं होता है तो लोकपाल अवमानना के दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का निर्णय ले सकता है.

(3) सम्बन्धित विभाग के आरेखण और संवितरण अधिकारी को, उपधारा (2) के तहत जारी आदेश में उल्लेखित, जुर्माना अधिकारियों के वेतन में से काटने का निर्देश दिया जाएगा.
परन्तु जिन अधिकारियों पर जुर्माना लगेगा, उन्हें सुनवाई का एक मौका दिए बिना उनका वेतन नहीं कटेगा. यह भी कि अगर आरेखण और संवितरण अधिकारी इन अधिकारियों का वेतन काटने में असमर्थ होता है तो वह स्वंय ही इस दण्ड के लिए उत्तरदायी होगा.

(4) अपने आदेश की अनुपालना कराने के लिए, लोकपाल के पास वे सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियां एवं अधिकार होंगे जोकि उच्च न्यायालय के पास हैं, और लोकपाल अपनी अवमानना के सम्बन्ध में इनका प्रयोग कर सकेगा, और इस उद्देश्य के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम १९७१ (1971 का केन्द्रीय अधिनियम 70) को संशोधित करते उच्च न्यायालय के लिए निहित सन्दर्भ में लोकपाल की अवमानना को भी शामिल किया जाता है.

13क. भ्रष्टाचार अधिनियम की निवारण धारा 4 के तहत विशेष न्यायाधीश
(1) वार्षिक आधार पर, लोकपाल विशेष भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम 1988 की धारा 4 के तहत हर क्षेत्र में न्यायाधीशों की संख्या का आंकलन करेगा और सिफारिश के तीन महीने के भीतर ही सरकार उतनी ही संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी.
परन्तु यह भी कि लोकपाल विशेष न्यायाधीशों की उतनी ही संख्या की सिफारिश करेगा जितनी कि इस अधिनियम के तहत प्रत्येक मामले का निपटारा एक वर्ष के भीतर होने के लिए आवश्यक होंगी.

(2) कोई नई नियुक्ति करने से पहले, सरकार, उम्मीदवारों की निष्ठा सुनिश्चित करने हेतु, चयन प्रक्रिया पर लोकपाल से परामर्श करेगी. सरकार उन सिफारिशों को लागू भी करेगी.

13ख. अनुरोध पत्र जारी करना: लोकपाल की खण्डपीठ को लोकपाल में लम्बित किसी मामले में अनुरोध पत्र (एक न्यायाधीश को दूसरे न्यायाधीश द्वारा जारी किए जाना वाला) जारी करने का अधिकार होगा.

13ग. भारतीय तार अधिनियम के तहत अधिकार: लोकपाल की खण्डपीठ, भारतीय तार अधिनियम की धारा 5 के तहत पदनामित प्राधिकरण मान्य होगी. इस पीठ को टेलीफोन, इण्टरनेट अथवा भारतीय तार अधिनियम तथा, सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 तथा भारतीय तार अधिनियम 1885 के तहत जारी नियमावली के सहित, दायरे में आने वाले अन्य माध्यम इत्यादि पर संचरित सन्देशों, आकड़ों और आवाजों पर निगरानी रखने या उन्हें रोककर सुनने का अधिकार होगा.

लोकपाल की कार्यप्रणाली
14. लोकपाल की कार्यप्रणाली:
(1) अध्यक्ष लोकपाल की संस्था के समग्र प्रशासन और पर्यवेक्षण के लिए उत्तरदायी होगा.


(2) नीति-नियम निर्धारण सहित लोकपाल के कामकाज के लिए आन्तरिक प्रणाली विकसित करने, लोकपाल में विभिन्न अधिकारियों को कार्य देने, लोकपाल में विभिन्न पदाधिकारियों को अधिकार देने जैसे कार्य लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा एक संस्था के तौर पर सामूहिक रूप से किए जाएंगे.

(3) लोकपाल के अध्यक्ष की प्रधानमन्त्री के साथ वित्त और कर्मचारियों की जरूरत के आकलन के लिए वार्षिक बैठक होगी. इस बैठक में हुए निर्धारण के आधार पर सरकार द्वारा लोकपाल को संसाधन प्रदान कराए जाएंगे.

(3क) निर्धारित व्यय भारत के समेकित निधि से दिया जाएगा.

(3ख) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अपने कर्मचारियों की अखण्डता और सभी तरह की पूछताछ और जांच की अखण्डता सुनिश्चित करने के लिए हर सम्भव कदम उठाएंगे. इस उद्देश्य के लिए वे अयोग्य अथवा भ्रष्ट कर्मियों को त्वरित सज़ा देने हेतु नियम बनाने, काम का मानदण्ड निर्धारित करने, प्रक्रिया निर्धारित करने अथवा अन्य कोई कदम उठाने के लिए सक्षम होंगे.

(3ग) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अधिनियम द्वारा सुनिश्चित समय सीमा का कड़ाई से पालन कराने के लिए ज़िम्मेदार होंगे और समुचित कदम उठाने के लिए सक्षम होगें.

(3घ) लोकपाल पूरी तरह से प्रशासनिक, वित्तीय और कार्यात्मक सहित सभी मामलों में सरकार के हस्तक्षेप से स्वतन्त्र होगा.

(4) लोकपाल तीन या अधिक सदस्यों की पीठ में कार्य करेगा. इस पीठ का गठन क्रमिक तरीके से होगा और उन्हें मामले कम्प्यूटर के द्वारा क्रमिक तरीके से सौंपे जाएंगे. प्रत्येक पीठ में कम से कम एक सदस्य विधिक पृष्ठभूमि वाला होगा.

(5) इन पीठों का दायित्व होगा :
क. कुछ विशिष्ट श्रेणी के मामलों में अभियोजन आरम्भ करने की अनुमति देना
ख. अपने कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत सुनना
ग. लोकपाल के अधिकारियों द्वारा जांच अथवा सतर्कता के बन्द कर दिए मामले या लोकपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित की गई श्रेणी के, मामलों में अपील
घ. ऐसे अन्य आदेशों के लिए, जिनका निर्णय समय-समय पर लोकपाल द्वारा लिया जा सकता है.
परन्तु लोकपाल कि पूरी पीठ मापदण्ड बनाएगी कि किस तरह के मामले सदस्यों की पीठ देखेगी और कौन से मामलों का निर्णय मुख्य सतर्कता अधिकारी या सतर्कता अधिकारियों के स्तर पर होगा. ये मापदण्ड सरकार को हुए घाटे और/या जनता पर उसके असर और/या दोषी की स्थिति पर आधारित हो सकते हैं.
लोकपाल स्वत: जांच-पड़ताल करने का निर्णय ले सकता है.

(6) कैबिनेट के किसी भी सदस्य के खिलाफ लोकपाल की पूरी पीठ जांच-पड़ताल या अभियोग शुरू कर सकती है.

(7) इस अधिनियम के प्रावधान के अन्तर्गत कुछ मुद्दों पर लोकपाल की पूरी पीठ निर्णय लेगी. उस पीठ में कम से कम सात सदस्य होंगे.

(8) लोकपाल की बैठक के कार्य विवरण और दस्तावेज सार्वजनिक होंगे.

15. लोकपाल के पास शिकायत दर्ज कराना:
(1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, कोई भी व्यक्ति लोकपाल को इस अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करा सकता हैं.
बशर्ते इस शिकायत के मामले में, यदि व्यक्ति मर चुका है या किसी भी कारण से वह खुद यह कार्य करने में असमर्थ है, तो यह उस व्यक्ति के वैधानिक प्रतिनिधि या उसके द्वारा लिखित रूप से अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और यदि शिकायत हो चुकी है तो लिखित तौर अधिकृत प्रतिनिधि के द्वारा शिकायत को जारी रखा जा सकता हैं.
यह भी कि नागरिक अपनी शिकायत देश में कहीं भी लोकपाल के किसी भी कार्यालय में दर्ज करा सकते हैं. लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह अपने तहत किसी युक्तियुक्त लोकपाल अधिकारी को शिकायत पत्र हस्तान्तरित कर दे.
(2) शिकायत किसी सादे कागज पर भी लिखकर दर्ज कराई जा सकती है परन्तु उसमें लोकपाल द्वारा निर्धारित सभी विवरण शामिल होने चाहिए.
(2क) अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने के बाद, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ऐसे सभी मामलों को लोकपाल को अग्रेशित करेंगे, जो इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप निर्धारित करते हैं और लोकपाल उन पर इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप ही कार्य करेगा.
(3) शिकायत प्राप्त होने पर, लोकपाल यह फैसला करेगा कि यह आरोप है या शिकायत या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के लिए अनुरोध है या दोनों का मिश्रण है या इससे कुछ अधिक है.
(4) लोकपाल को हर शिकायत अनिवार्य तौर पर निपटानी होगी.
परन्तु शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी शिकायत को बन्द नहीं किया जाएगा.

16. लोकपाल द्वारा जिन मामलों की जांच की जा सकती है- इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन लोकपाल किसी ऐसे कार्य की जांच कर सकता है जो किसी लोकसेवक के द्वारा किया गया हो, अथवा उसकी सामान्य या विशिष्ट स्वीकृति से किया गया हो, जिसकी शिकायत की रिपोर्ट की गई हो अथवा ऐसे कार्य के बारे में कोई आरोप लगाया गया हो.
परन्तु लोकपाल इस तरह के कार्य की स्वत: अथवा सरकार द्धारा कहे जाने पर भी जांच कर सकता है, यदि उसकी लिखित राय में ऐसे काम में कोई शिकायत या आरोप हो या होने की सम्भावना हो.

17. वे मामले जो जांच के दायरे से बाहर होंगे
(1) लोकपाल, अधिनियम के अन्तर्गत निम्न कार्रवाई के सम्बन्ध में शिकायत के मामले में, कोई जांछ नहीं करेगा -
क. यदि शिकायतकर्ता के पास किसी अन्य कानून द्वारा प्रदत्त किसी प्राधिकरण के सामने अपील, पुनरीक्षण, समीक्षा या किसी अन्य माध्यम से कोई निवारण है, या था और उसने उसका उपयोग नहीं किया है.
ख. न्यायिक व अर्द्ध न्यायिक निकायों द्वारा लिए गए निर्णय जब तक कि शिकायतकर्ता दुर्भावनापूर्ण होने का आरोप न लगाए.
ग. यदि पूरी शिकायत तात्विक रूप में किसी न्यायालय या सक्षम न्याय अधिकार क्षेत्र की अर्ध- न्याययिक संस्था के समक्ष लम्बित है
घ. ऐसी कोई शिकायत जहां इसे निपटान करने में अत्यधिक एवं अबोध्य विलम्ब हो.
(2) इस अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है कि लोकपाल संसद के किसी सदन के पीठासीन अधिकारी की स्वीकृति लेने के बाद ही किसी कार्रवाई की जांच करेगा.
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात लोकपाल को कदाचार या भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से नहीं रोक सकती है.

18. शिकायत और जांच से सम्बन्धित प्रावधान-
(1) क. लोकपाल, किसी शिकायत, आरोप के रूप में प्राप्त किसी शिकायत अथवा दोनों, या स्वत: संज्ञान से उठाए गए किसी मामले में, दस्तावेज़ों को देखते हुए, जांच या पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय ले सकता है, या जांच और पूछताछ की प्रक्रिया की सुनवाई के पहले प्रारम्भिक जांच का निर्णय ले सकता है या किसी दूसरे व्यक्ति को प्रारम्भिक जांच करने का निर्देश दे सकता है ताकि किसी जांच के लिए उचित आधार है या नहीं यह तय किया जा सकें. प्राथमिक जांच के परिणाम आते ही इसकी जानकारी, और यदि मामले को बन्द करने का निर्णय लिया जाता है तो जांच के दौरान एकत्र की गई समस्त सामग्री शिकायकर्ता को उपलब्ध कराई जाएगी.
साथ ही यह भी कि यदि, किसी मामले को बन्द किया जाता है तो उससे सम्बन्धित सभी दस्तावेज सार्वजिनक माने जाएंगे. हर महीने, बन्द किए गए ऐसे मामलों की सूची, मामले को बन्द किए जाने के कारण सहित, वेबसाइट पर डाली जाएगी. इस तरह बन्द किए गए मामलों से सम्बन्धित सारी सामग्री सूचना के अधिकार के कानून के तहत, जानकारी मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को, उपलब्ध कराई जाएगी
परन्तु साथ ही यह भी कि किसी भी शिकायत या आरोप को, शिकायतकर्ता के उद्देश्य अथवा प्रेरणा के आधार पर खारिज़ नहीं किया जा सकेगा.
साथ ही यह भी कि, लोकपाल के समक्ष की गई सभी सुनवाइयों की वीडियो रिकार्डिंग होगी और किसी भी व्यक्ति को, प्रतियां बनाने के मूल्य अदा करने पर, उपलब्ध कराई जाएगी.

क. किसी शिकायत की प्रारम्भिक जांच के लिए प्रक्रिया लोकपाल द्वारा मामले की परिस्थियों के आधार पर तय की जाएगी और यदि आवश्यक प्रतीत होता है तो लोकपाल सम्बन्धित लोक सेवक से टिप्पणी भी आमन्त्रित कर सकता है.
परन्तु यह भी कि, प्राथमिक जांच पूरी करने और मुकदमे को बन्द करने या जांच के लिए आगे बढ़ाने का निर्णय शिकायत प्राओत करने के एक माह के अन्दर और निश्चित तौर पर तीन माह के अन्दर ले लिया जाएगा. यदि एक महीने में जांच पूरी नहीं हो पाती वहां जांच पूरी होने पर विलम्ब का कारण लिखित तौर पर दर्ज कर के सार्वजनिक किया जाएगा.

ख. इस अधिनियम के तहत कोई भी शिकायत गुमनाम स्वीकार नहीं की जाएगी. शिकायतकर्ता को लोकपाल के पास अपनी पहचान ज़ाहिर करनी होगी. तथापि यदि शिकायकर्ता चाहता है तो लोकपाल द्वारा उसकी पहचान गोपनीय रखी जाएगी.

(2) जहां लोकपाल सीधे सीधे या प्रारम्भिक जांच के बाद इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच प्रस्तावित करता है, तो-
क. जरुरी समझने पर जांच से सम्बन्धित दस्तावेजों को सुरक्षित स्थान पर रखने का निर्देश दे सकता है.
ख. जांच के उचित चरण पर या खत्म होने पर, जांच रिपोर्ट की प्रति, उसके निष्कर्ष एवं निष्कर्ष से सम्बन्धित आधार सामिग्री की प्रति सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को अग्रेशित की जाएगी.
ग. सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को टिप्पणी और सुनवाई का मौका दिया जाएगा.
साथ ही यह भी कि अति विशिष्ट परिस्थितियों को छोड़ कर ऐसी सुनवाई सार्वजनिक रूप से की जाएगी, और उसे लिखित तौर पर रिकार्ड किया जाएगा, जहां यह सार्वजनिक हित में नहीं है, न्याय के हित के लिए इसे कैमरे में रिकार्ड कर सार्वजनिक किया जाएगा.
(3) इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी कार्रवाई के सम्बन्ध में लोक सेवक के खिलाफ जांच करना उस कार्रवाई को, या जांच के अधीन किसी मामले के सम्बन्ध में आगे कोई कार्रवाई करने के लिए किसी अन्य लोक सेवक की शक्ति को प्रभावित नहीं करेगा.
(4) यदि इस अधिनियम के तहत प्रारम्भिक जांच के दौरान, लोकपाल प्रथम दृष्टया सन्तुष्ट है कि आरोपों या शिकायतों के परिप्रेक्ष्य में पूरी या आंशिक तौर पर किसी भी तरह की कार्रवाई की सम्भावना है तो वह एक अन्तरिम आदेश के माध्यम से, लोक प्राधिकरण को निर्णय या कार्रवाई के क्रियान्वयन या अमलीकरण पर रोक लगाने की सिफारिश कर सकता है, या ऐसे नियम व शर्तों पर वह बाध्यकारी या निवारक कार्रवाई कर सकता है, जो और ज्यादा नुकसान से रोकने के वह अपने आदेश में उल्लेखित करे. लोक प्राधिकरण इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के अन्दर लोकपाल की सिफारिशों पर या तो अमल करेगा या उन्हें नामंजुर करेगा. लोकपाल यदि आवश्यक समझे तो, लोक प्राधिकरण को उपयुक्त निर्देश देने की मांग करते हुए सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है.
(5) लोकपाल, यदि जांच के दौरान सन्तुष्ट होता है कि किसी मामले में अभियोग शुरू होने की सम्भावना है, या जांच की समाप्ति पर अभिय्ग शुरू करते समय, मामले में सभी आरोपियों की चल अचल सम्पित्ति की सूची बनाएगा और उसे अधिसूचित करेगा. अधिसूचना के पश्चात इस सम्पत्ति के हस्तान्तरण की अनुमति नहीं होगी. अन्तिम सजा की स्थिति में अदालत, अन्य उपायों के अलावा, इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत, इस सम्पत्ति से भ्रष्टाचार के चलते हुई क्षति की वसूली कर सकता है.
(6) यदि शिकायतों की जांच और पूछताछ के दौरान, लोकपाल को लगता है कि सरकारी सेवक के पद पर बने रहना जांच या पूछताछ को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर सकता है या वह सरकारी सेवक सबूतों को नष्ट या छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, तो लोकपाल उस सरकारी सेवक के स्थानान्तरण या निलम्बन की उपयुक्त सिफारिश जारी कर सकता है. लोक प्राधिकरण लोकपाल द्वारा की गई सिफारिश के मिलने के 15 दिन के भीतर इसे उप धारा के अन्तर्गत इसे मान भी सकता है या मना कर सकता है. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण मानता है तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(7) लोकपाल, इस अधिनियम के अन्तर्गत पूछताछ अथवा जांच के किसी भी चरण में, अन्तरिम आदेश के ज़रिए, सक्षम प्राधिकारों को आवश्यक कार्रवाई करने, पूछताछ या जांच रोकने का निर्देश दे सकता है-
क. लोक सेवक के प्रशासनिक कार्य से सार्वजनिक राजस्व अपव्यय को रोकने या सार्वजनिक सम्पत्ति की क्षति के लिए
ख. सरकारी सेवक के कार्यों में कदाचार को रोकने के लिए
ग. सरकारी सेवक द्वारा भ्रष्ट तरीके से अर्जित सम्पत्ति को छिपाने से रोकने के लिए,
इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत लोक प्राधिकरण आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के भीतर इस पर अमल करेगा अन्यथा नामंजूर करेगा. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण समझे तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(8) जहां, शिकायत पर जांच के बाद, लोकपाल यह पाता है कि, मन्त्रियों, संसद सदस्यों एवं न्यायधीशों के अतिरिक्त, किसी लोक सेवक के खिलाफ शिकायत में शामिल आरोप की पुष्टि होती है और सम्बन्धित लोक सेवक को अपने पद पर कायम नहीं रहना चाहिए तो वह इस हेतु आदेश जारी कर सकता है, यदि लोकसेवक मन्त्री है तो लोकपाल राष्ट्रपति को ऐसी शिकायत करेगा. राष्ट्रपति द्वारा सिफारिश प्राओत करने के एक माह के अन्दर, उसे स्वीकार करने या नामंजूर करने का निर्णय लिया जाएगा.
परन्तु यह भी कि इस अनुच्छेद के प्रावधान प्रधानमन्त्री पर लागू नहीं होंगे.
(9) लोकपाल के सभी रिकार्ड और सूचनाएं सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक किए जाएंगे. और यहां तक कि जांच व पूछताछ की स्थिति भी, जब तक कि उस सूचना के जारी करने से किसी जांच व पूछताछ की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो, उपलब्ध कराए जाएंगे.


भ्रष्टचार के चलते सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई और दण्ड

19. सरकार को होने वाले नुकसान की वसूली: भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 19 के तहत जब कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तब परीक्षण न्यायालय, सरकार को हुए नुकसान और दोषी द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से अर्जित लाभ की गणना कर, इस तरह की कुल राशि को विभिन्न दोषियों के ऊपर आरोपित किया जाएगा और उनकी सम्पत्ति के ज़रिए वसूला जाएगा.

19क. अपराध के लिए सज़ा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की उपधारा 2 (4) और उपधारा 28ए के अध्याय iii में विर्णत अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा होगी और इसे उम्रकैद के तक भी बढ़ाया जा सकता है.
दोषी व्यक्ति के सरकार में उच्च पद पर आसीन होने की स्थिति में यह सज़ा और भी कठोर हो सकती है.
इसके अतिरिक्त, बशर्तें कि, अपराध इस अधिनियम की उपधारा 2(4) के तहत विर्णत है और लाभार्थी एक व्यावसायिक इकाई है तो, इस अधिनियम में वर्णित एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत अन्य सजा के अलावा जनता को हुए नुकसान का की पांच गुना राशि दोषी से जुर्माने के रूप में वसूली जाएगी, अगर दोषी की सम्पत्ति अपर्याप्त है तो यह वसूली व्यावसायिक ईकाई और उसके निदेशकों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूली जा सकती है.

उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों के खिलाफ शिकायतों का निपटान
19ख. हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतों की प्राप्ति व निपटाना:
(1) हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ किसी भी शिकायत को केवल लोकपाल अध्यक्ष ही देखे.
(2) इस तरह की प्रत्येक शिकायत की प्रारम्भिक जांच होगी, जो प्रथम दृष्टया यह आकलन करेगी कि क्या भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत पर्याप्त सबूत हैं. यह जांच लोकपाल के किसी एक सदस्य द्वारा की जाएगी, जो लोकपाल की पूर्ण पीठ के समक्ष इसे प्रस्तुत करेगा. परन्तु यह पूर्ण पीठ, विधिक पृष्टभूमि के कम से कम तीन कानूनी सदस्यों की होगी.
(3) कोई भी मामला विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के अनुमोदन के बगैर पंजीकृत नहीं किया जाएगा.
(4) इस तरह के मामलों की जांच एक विशेष टीम द्वारा होगी, जिसका नेतृत्व कम से कम पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी करेगा.
(5) अभियोजन आरम्भ करने अथवा न करने का निर्णय भी, लोकपाल की विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के द्वारा ही लिया जाएगा.


भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:

20. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:
(1) भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई व्यक्ति, यदि उसका व्यावसायिक या शारीरिक उत्पीड़न हो रहा हो या ऐसी धमकी दी गई हो तो लोकपाल से सुरक्षा मांग सकता है,
(2) इस तरह की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल निम्न कदम उठाएगा:
क. व्यावसायिक उत्पीड़न: उपयुक्त जांच के बाद अगर लोकपाल महसूस करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज वाले को वास्तव में खतरा है तो वह यथाशीघ्र , लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, सक्षम अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कदम उठाने का आदेश देगा.
ख. अगर भष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वाला शिकायत करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद उसका व्यावसायिक उत्पीड़न हुआ है अथवा उसे पेशेगत रूप से नुकसान पहुंचाया गया है और जांच के बाद लोकपाल की यह राय बनती है कि सूचनादाता को वास्तव में नुकसान पहुंचाया गया है तो यथाशीघ्र, लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, युक्तियुक्त अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश देगा.
प्रावधान (क) के तहत लोकपाल धमकी देने वाले या नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी अधिकारी के विरुद्ध सुसंगत नियमों के तहत उचित दण्ड का आदेश निर्गत कर सकता है लेकिन प्रावधान (ख) के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
परन्तु प्रभावित सरकारी सेवक को अपना पक्ष रखने का एक अवसर उपलब्ध कराए बिना दंड़ का निर्धारण नहीं किया जा सकेगा.
ग. शारीरिक नुकसान की धमकी: लोकपाल, युक्तियुक्त जांच कराएगा और अगर उसे लगे कि वास्तव में धमकी दी गई है और यह धमकी इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने के वजह से दी गई है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद लोकपाल अधिकतम एक सप्ताह के अन्दर उपयुक्त अधिकारी के साथ पुलिस को उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने के साथ, धमकी देने वालों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देगा.
अगर धमकी गम्भीर एवं सिन्नकट है तो लोकपाल तत्काल कार्रवाई करते हुए, कुछ घण्टों के अन्दर उक्त व्यक्ति को शारीरिक हमले से बचाने का उपाय करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.
ग. यदि कोई व्यक्ति शिकायत करता है कि इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप लगाने की वजह से उस पर शारीरिक हमला हुआ है और लोकपाल जांच के बाद इस बात से आश्वस्त होता है कि उस व्यक्ति पर इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने की वजह से हमला हुआ है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद, लोकपाल ,यथाशीघ्र लेकिन अधिक से अधिक 24 घण्टे के अन्दर सम्बन्धित अधिकारियों को - उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने, हमलावरों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कराने के साथ साथ यह भी सुनिश्चित करने कि उस व्यक्ति के साथ दोबारा इस तरह की घटना न हो, के आदेश जारी करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.
(घ क) अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला कोई व्यक्ति आरोप लगाता है कि इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार अधिनियम के इस्तेमाल की वजह से उसके खिलाफ पुलिस या किसी प्राधिकारी ने मामला दर्ज कराया है या मामला दर्ज कराने का उपक्रम किया जा रहा है तो लोकपाल जांच के आधार पर उपयुक्त अधिकारियों को ऐसा मामला वापस लेने का आदेश निर्गत कर सकता है.
(घ ख) शारीरिक नुकसान की धमकी के मामले में या कोई ऐसा व्यक्ति जिस पर हमला हुआ है, देश में कहीं भी लोकपाल के कार्यालय में शिकायत कर सकता है और लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह उस शिकायत को तत्काल लोकपाल के उपयुक्त अधिकारी तक पहुंचा दे.
(घ ग) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को सुरक्षा प्रदान करने का उत्तरदायित्व अपने अधीन किसी सतर्कता अधिकारी को सौंप सकता है और इस मामले में उस अधिकारी को यह अधिकार होगा कि वह उपयुक्त प्राधिकारी जिसमें पुलिस भी शामिल होगी, को उक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकता है.
(घ घ) अगर लोकपाल के पास शिकायत के बाद किसी व्यक्ति पर हमला किया जाता है तो लोकपाल के सम्बन्धित अधिकारी को कर्र्तव्य का निर्वहन न कर पाने या मिलीभगत या दोनों का दोषी ठहराया जाएगा, जब तक वह इसकी पुष्टि नहीं कर देता कि उसने अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
घ. अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय किसी कृत्या का आरोप लगाता है तो लोकपाल प्रावधान (ग) के मामले के तहत आरोपों की जांच के लिए एक विशेष दल का गठन कर सकता है जो प्राथमिकता के आधार पर एक महीने के भीतर मामले की जांच पूरा करेगा और प्रावधान (घ) के मामलों के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
ङ. अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई ऐसा आरोप लगाता है जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से अलग किसी अन्य कानून के तहत दण्डनीय है, तो प्रावधान (ग) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल उस ऐजेंसी, जिसके पास उस कानून को लागू करने का अधिकार है, को सूचनादाता के अरोपों की जांच के लिए विशेष दल बनाने और प्राथमिकता के आधार पर लोकपाल द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दे सकता है और प्रावधान (घ) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
च. उपनियम (छ) के अधीन आने वाले मामलों में लोकपाल को उपयुक्त ऐजेंसी को इस तरह की जांच की निगरानी करने और अगर जरूरी हुआ तो लोकपाल के निर्देश के अनुरूप ऐजेंसी को खुद जांच करने का निर्देश जारी करने का अधिकार होगा.
छ. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला, जिसे शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दी गई है या उसे वास्तविक रूप से नुकसान पहुंचाया गया है, सीधे लोकपाल के अध्यक्ष से मिल सकता है और अध्यक्ष 24 घण्टे के भीतर उससे मिलेंगे और अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक उचित कर्रवाई करेंगे.
(3) अगर कोई शिकायतकर्ता अनुरोध करता है कि उसकी पहचान गुप्त रखी जाए तो लोकपाल ऐसा सुनिश्चित करेगा. लोकपाल इस बारे में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करेगा कि इस तरह की शिकायतों को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा.
(4) लोकपाल जुल्म की पुनरावृत्ति रोकने के लिए लोक प्राधिकारियों को नीतियों और प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन का आदेश निर्गत करेगा.
(5) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से शिकायत की प्राप्ति और निपटान के लिए उपयुक्त नियम बनाएगा.

जन लोकपाल कानून (भाग-2) पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
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