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24 अगस्त 2011

अन्‍ना को लेकर बीजेपी में बगावत! यशवंत सिन्‍हा ने की इस्‍तीफे की पेशकश

नई दिल्ली. बीजेपी की ओर से लोकपाल के मुद्दे पर रुख साफ नहीं करने से नाराज पार्टी सांसद यशवंत सिन्‍हा ने इस्‍तीफे की पेशकश कर सियासी माहौल गरमा दिया है। पार्टी सूत्रों के हवाले से आ रही खबर के मुताबिक सिन्‍हा ने आज पार्टी संसदीय दल की बैठक में सांसद के पद से इस्‍तीफा देने की पेशकश की हालांकि पार्टी ने सिन्‍हा के इस्‍तीफे की पेशकश ठुकरा दी। बीजेपी के युवा सांसद वरुण गांधी सुबह-सुबह रामलीला मैदान पहुंच गए और अन्ना समर्थकों के बीच बैठ गए। कुछ ही देर बाद शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी अपना 'दूत' भेज दिया। उनकी ओर से संजय राउत चिट्ठी लेकर रामलीला मैदान पहुंचे। चिट्ठी में अन्‍ना से अनशन तोड़ने की अपील की गई है। अन्‍ना के अनशन का आज नौवां दिन है।

वरुण गांधी से जब पूछा गया कि आप के रामलीला मैदान में आने का क्या मतलब है, तो उन्होंने कहा कि मैं यहां देश के एक नागरिक के तौर पर आया हूं। मैं अन्ना का समर्थन करना चाहता हूं। जब वरुण से पूछा गया कि वह मंच पर जाएंगे तो उन्होंने कहा कि वे मंच पर नहीं जाएंगे। अन्ना से मुलाकात की बात पर पीलीभीत से बीजेपी के सांसद ने कहा कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है।
वरुण गांधी पहले भी जन लोकपाल बिल को प्राइवेट मेंबर्स बिल के तौर पर पेश करने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। हालांकि उनकी पार्टी ने जन लोकपाल बिल का समर्थन नहीं किया है। बीजेपी ने अन्ना का तो समर्थन किया है, लेकिन उनके बिल पर पार्टी ने अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई राय नहीं दी है।

भाजपा सांसद शत्रुध्‍न सिन्हा ने बुधवार को गांधीवादी अन्ना हजारे और उनकी टीम द्वारा बनाए गए जन लोकपाल विधेयक का खुलकर समर्थन किया। सिन्हा ने कहा कि वह अपनी यह राय एक कलाकार के नाते दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने भी सरकार द्वारा संसद में पेश लोकपाल विधेयक की भी आलोचना यह कहकर की है कि वह सरकारी दफ्तरों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिये कमजोर और अक्षम है। उन्होंने कहा कि पार्टी को कुछ अन्य प्रावधानों पर आपत्तियां हो सकती है पर कुल मिलाकर वह एक मजबूत लोकपाल का समर्थन करती है। पर व्यक्तिगत तौर पर वह सिविल सोसाइटी द्वारा तैयार किए गए जनलोकपाल विधेयक का समर्थन करते हैं।

वहीं बीजेपी शासित गुजरात के एक मंत्री ने यह कहकर सियासी हलचल तेज कर दी है कि कोई भी व्‍यक्ति कानून बनाने के लिए संसद पर दबाव नहीं डाल सकता है। यह बयान गुजरात सरकार में कानून और संसदीय कार्य मंत्री दिलीप संघानी की तरफ से आया है जो सीएम नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते हैं।

आग के दरिया से कम नहीं है प्रेम का खेल

यूं तो प्‍यार का खेल खेलना व्‍यक्ति की फितरत पर निर्भर करती है लेकिन शोध में पता चला है कि प्यार में महिलाएं पुरूषों को भटकाती हैं।

शोध में लगभग एक चौथाई महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन्होंने एक ही समय में एक से ज्यादा पुरूषों से प्यार किया।

वहीं दूसरी ओर सिर्फ 15 प्रतिशत पुरूषों ने ही दो महिलाओं से प्रेम की बात स्वीकारी। इनमें से प्रेम त्रिकोण के 18 प्रतिशत मामले फेसबुक या टि्वटर जैसी सोशल नेटवर्किग वेबसाइट्स पर शुरू होते हैं।

अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ कि ज्यादा आमदनी वाले लोगों में रिश्तों में भटकाव ज्यादा होता है। मनोचिकित्सक का कहना है कि पुरूष रिश्तों के मामले में धोखेबाज, अवसरवादी और भटके हुए हो सकते हैं जबकि महिलाओं का रिश्तों को लेकर दृष्टिकोण काफी जटिल होता है।

यही नहीं त्रिकोन प्‍यार के चक्‍कर में पुरुषों से ज्‍यादा महिलाएं फंसती हैं।

समय पर काम नहीं तो 5000 रु. जुर्माना

जयपुर। सरकारी विभागों में आम लोगों के काम समय नहीं किए तो अफसरों और कर्मचारियों पर 500 से 5,000 रुपए तक की पैनाल्टी लगेगी। ये प्रावधान राज्य सरकार की ओर से विधानसभा के इसी सत्र में पेश किए जाने वाले राजस्थान लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी विधेयक, 2011 में शामिल किया गया है। यह विधेयक इसी सत्र में पारित कराए जाने की पूरी कोशिश होगी। केबिनेट की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में बुधवार को हुई बैठक में इस विधेयक को हरी झंडी दे दी गई।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केबिनेट की बैठक के बाद बताया कि आम लोगों के रोजाना काम पड़ने वाले 15 विभागों की 53 सेवाओं को इसमें शामिल किया गया है। हर काम के लिए समय सीमा तय की गई है, जो कि 24 घंटे से लेकर 60 दिन तक अलग अलग है।

यह सीमा विभागों की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार ही तय की गई है। गहलोत ने कहा कि इससे लोगों के काम समय पर होंगे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। उन्होंने कहा कि लोगों को सरकारी दफ्तरों के अनावश्यक चक्कर लगाने पड़ते हैं, इसे देखकर अच्छा नहीं लगता। इसके लिए पिछले कार्यकाल में नागरिक अधिकार पत्र जारी किए थे, लेकिन सरकार बदली तो प्रयास आगे नहीं बढ़ पाए। उन्होंने कहा कि गुड गवर्नेंस के लिए ई गवर्नेंस जरूरी है, इसी को ध्यान में रखते हुए प्रदेश की 9,177 ग्राम पंचायतों और 249 पंचायत समितियों में राजीव गांधी सेवा केंद्र बनाए गए हैं। इनमें ई गवर्नेंस की सारी सेवाएं मिलेगी, इसके लिए सभी स्थानों पर सोलर पैनल भी लगी दिए गए हैं।

देश में पहली बार

तीन राज्यों में ऐसा कानून पहले से होने के बाद भी प्रदेश में तैयार इस विधेयक में कई प्रावधान पहली बार शामिल किए गए हैं। इसमें कार्मिकों पर पैनाल्टी लगाना, नगरीय विकास, स्वायत्त शासन और आवासन मंडल, टेंडर की राशि समय पर लौटाने का प्रावधान, नामांतरण और रूपांतरण, अफसर ही नहीं कर्मचारियों को भी बराबरी का जिम्मेदार मानना और सभी तरह की एनओसी लाइसेंस और मंजूरियों के लिए समय सीमा का निर्धारण जैसे प्रावधान पहली बार शामिल किए गए हैं।

इन १५ विभागों की 53 सेवाएं शामिल

ऊर्जा, पुलिस, चिकित्सा, चिकित्सा शिक्षा, यातायात, पीएचईडी, राजस्व, स्थानीय निकाय, नगरीय विकास, आवासन, खाद्य, वित्त, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, पीडब्ल्यूडी और जल संसाधन विभाग।

राजस्थान चौथा राज्य

सेवाओं की गारंटी से संबंधित यह विधेयक लाने वाला राजस्थान चौथा राज्य होगा। इससे पहले मध्यप्रदेश, बिहार और पंजाब में यह कानून का रूप ले चुका है। इस विधेयक में इन राज्यों के कानूनों में शामिल प्रावधानों को भी तरजीह दी गई है।

दुधमुंही बेटी को पालनाघर में छोड़ घूमने चले गए मां-बाप

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जोधपुर। मां-बाप अपनी दुधमुंही बच्ची को यहां एक पालनाघर में छोड़ गए। उसके साथ उन्होंने एक पत्र भी छोड़ा, जिसमें लिखा कि ‘हम दो महीने के लिए शहर से बाहर जा रहे हैं, आप हमारी बच्ची का ध्यान रखना। दो या तीन महीने बाद हम इसे वापस ले जाएंगे। आप इसे किसी और को नहीं दें।’ बच्ची रो-रो कर बेहाल हो रही थी, इसलिए उसे पालनाघर से उम्मेद अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।

नवजीवन संस्थान पालनाघर के प्रभारी भगवान सिंह परिहार ने बताया कि मंगलवार रात करीब साढ़े आठ बजे पालने से जुड़ी घंटी बजी। कर्मचारी बाहर गए तो पालने में करीब 9-10 महीने की बच्ची दिखी। बच्ची को पालने से उठाने लगे तो उसके पास थैली मिली। इसमें अंग्रेजी में लिखे पत्र के साथ एक पर्स, एक चेन, दूध की एक बोतल और कुछ कपड़े रखे थे। पर्स में 850 रुपए थे।

परिहार ने कहा कि बच्चे के साथ पत्र छोड़ने का यह पहला मामला है, जिसमें बच्ची को वापस ले जाने की बात लिखी है। लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ कि कोई बच्चे को छोड़ने के बाद वापस ले गया हो।

बच्ची वापस चाहिए तो समर्पण नामा दें :

कानूनन पालनाघर में रखे जाने वाले बच्चों को वापस लेने के लिए समर्पण नामा देना जरूरी है। ऐसे में संस्थान ने अपील की है कि जिस किसी ने भी बच्ची को छोड़ा है, वे समर्पण नामा दे जाएं। इसके अभाव में बच्ची को वापस देना संभव नहीं होगा। संस्थान प्रभारी ने बताया कि समय पर बच्ची को वापस नहीं ले जाने पर कानूनी प्रक्रिया के तहत गोद दे दिया जाएगा।

ये है दुनिया की सबसे अमीर जोड़ी, इनपर होती है पैसों की बरसात...



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न्यूयॉर्क.ब्राजील की सुपरमॉडल गिसले बुंडचेन और उनके पति टॉम ब्रेडी का नाम विश्व की सबसे धनी सेलिब्रिटी जोड़ी में शुमार किया गया है। टॉम ब्रेडी फुटबॉल खिलाड़ी हैं। ‘फ़ोर्ब्स मेगजीन’ के मुताबिक, ब्रेडी के साथ शादी रचाने वाली 31 वर्षीय सुपरमॉडल ने पिछले साल 4.5 करोड़ डॉलर अर्जित किए जबकि ब्रेडी ने 3.1 करोड़ डॉलर कमाए। दोनों के धन को संयुक्त रूप से जोड़ा जाए तो यह 7.6 करोड़ डॉलर बनते हैं।

इस सूची में दूसरे स्थान पर हॉलीवुड की सुपरस्टार जोड़ी ब्रेड पिट और एंजेलिना जोली का नाम शामिल है। इस जोड़ी की संयुक्त रूप से आय पांच करोड़ डॉलर है। 4.4 करोड़ डॉलर के साथ डेविड और विक्टोरिया बेकहम की जोड़ी का नाम चौथे स्थान पर शुमार है। सूची में ‘ट्वीलाइट’ से चर्चित स्टार राबर्ट पेटिंसन और क्रिस्टन स्टीवर्ट की जोड़ी चार करोड़ डॉलर के साथ पांचवे स्थान पर

14 साल की उम्र में बन गई 4 बच्चों की मां!



समस्तीपुर. उम्र 14 साल और चार बच्चों की मां! चौंकिए मत। यह सच है। समस्तीपुर जिले के उजियारपुर प्रखंड की पतैली पूर्वी पंचायत के महादलित टोला में रहने वाली विभा की उम्र महज 14 साल है। लेकिन, उसके नाजुक कन्धों पर अपने साथ-साथ चार बच्चों की भी जिम्मेदारी है। पढ़ने व खेलने की उम्र में विभा एक मां की तरह अपने चार भाई व बहनों की देखभाल कर रही है। ऐसा इसलिए कि इनके मां-पिताजी का निधन हो चुका है। परिवार में कोई अन्य हैं भी नहीं जो मदद कर सकें। ऐसे में विभा कठिनतम परिस्थितियों से गुजर रही है। वो दिनभर मजदूरी करती है और अपने परिवार का भरण-पोषण करती है।


मां-पिता का निधन क्या हुआ, विपत्ति कहर बन टूट पड़ी


वर्ष 2007 में ही विभा की मां आशा देवी का निधन हो गया था। इसके कुछ ही माह बाद पिता भोला राम भी चल बसे। इसके बाद पांचों बच्चों पर कहर बन विपत्ति टूट पड़ी। विभा से छोटा सूरज (12) और नीरज (10) दिनभर खेत में बकरी चराते हैं। रूबी (08) और आभा (05) जैसे-तैसे दिन गुजार रही है। इनको देखने वाला कोई नहीं है। सरकार व स्थानीय प्रशासन भी कुछ नहीं कर रहा।

मौत' के ख़ौफ से 'मौत की सेज' पर ही जा बैठी वो


जब जान पर बन आती है तो कोई कुछ भी कर गुजर सकता है। कुछ ऐसा ही हुआ जब एक बिल्ली अपनी जान बचाने के लिए शेर से बचकर कैक्टर्स के पेड़ पर चढ़ बैठी।



हुआ यूं कि इस बिल्ली पर जब शेर ने हमला किया तो वह जान बचाते हुए 50 फीट ऊंचे सागुरो कैक्टर्स पर चढ़ गई। एरीजोना के गोल्ड कैन्यन में हुई इस घटना को फोटोग्राफर कर्ट फोंगर ने कैमरे में कैद कर लिया।



सहमी हुई बिल्ली लगभग लगभग कई घण्टों तक कंटीले कैक्टर्स की चोटी पर बैठी रही।

इस दमन को आने वाली पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी

यह दैत्याकार धक्का है। सरकार ने दिया है। कल लगा वह अन्ना हजारे का मान रखेगी। लगा क्यों? सरकार ने खुद कहा था। देर रात करोड़ों जन के मान मर्दन पर उतरे से दीखे मंत्री। राष्ट्र को दिया दंभपूर्ण उत्तर : ‘अन्ना का अनशन उनकी समस्या है। हमें पता नहीं।’ तो किसे पता है? ऐसे दमन को कौन माफ करेगा?
क्यों अचानक बदल गए सरकारी तेवर?

कल तक सरकार को शक था कि वह अकेली है। अब सभी पार्टियों को बुलाकर बात की तो ‘धक्क’ से रह गए। सारे नेता, दलगत राजनीति से तत्काल ऊपर उठकर एक स्वर में एकजुट होते नजर आए। एक भी नहीं बोला कि अन्ना वाला जन लोकपाल बिल लाओ। हां, चूंकि विरोधी दल हैं- संसद में सरकारी बिल को कोस चुके हैं- सो फिर से कोस दिया। लेकिन अन्ना को लेकर सिर्फ एक बात : अनशन समाप्त करवाना जरूरी। किसी भी तरीके से। यानी छल से या बल से। बस, इसी विपक्षी एकता से बल मिला सरकार को। और उसकी आवाज इतनी खुरदुरी हो गई, यकीन न हुआ। वार्ता में शामिल किरण बेदी के शब्दों में ‘प्रणव मुखर्जी तो ऐसा बर्ताव कर रहे थे कि हम उनसे बात करने पहुंचे ही क्यों हैं।’ हल ढूंढना तो दूर, अन्ना के साथियों को फटकार तक लगाई सरकार ने। हालांकि देर रात, जैसा कि होना ही था, मुखर्जी इससे पलट गए। जन भावनाओं से ऐसे खिलवाड़ को क्या संवेदनशील लोग माफ करेंगे?
क्यों हो गए सारे विपक्षी दल एकमत?

ज्यादा गहराई में उतरने की जरूरत ही नहीं है। सर्वदलीय बैठक से ठीक पहले संसद के दोनों सदनों में सांसदों ने खुद ही सब साफ कर दिया। सांसद मानो बरस रहे थे। भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध में सक्रिय लोगों पर। हम सब पर। चीख रहे थे कि क्या लोकपाल भगवान के यहां से आएगा? फ्लैशबैक देखें तो यही भाषा सरकार की थी, कपिल सिब्बल शब्दश : यही बोले थे। सरकार, वो भी ऐसी सरकार जिसके एक के बाद एक मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नजर आ रहे हों, जेल जा रहे हों,- उनकी हूबहू नकल विपक्षी करें, यह बिरला अवसर ही तो है। वो भी आवाज, अंदाज और मकसद सभी में। विरोधी दल इसलिए ऐसा कर रहे हैं क्योंकि उन्हीं के शब्दों में ‘कुछ लोग लोकसभा को खत्म करने के षड्च्यंत्र में जुटे हैं, राज्यसभा दिखलाई ही नहीं देगी, अगर ये सफल हो गए।’ ऐसा इसलिए क्योंकि अन्ना के अनुयाइयों ने सांसदों को घेरना शुरू कर दिया है। घिरने से बिफरे विरोधी दल इसलिए भ्रष्टाचार पर सरकार के साथ हो लिए। क्या मतदाता ऐसे विरोधी दलों को माफ करेगा?
क्यों भरोसा करेगा अब देश सरकार पर?

फिलहाल किसी को किसी पर भरोसा न तो बचा है, न ही जरूरत है। ऐसे माहौल में लोगों को किसी मंत्री, नेता, किसी इंसान पर भरोसा करना ही नहीं चाहिए। सिर्फ कागजात पर भरोसा करना चाहिए। जुझारू बुजुर्ग गांधीवादी को अपने लिए लड़ते देख एक कृतज्ञ देश और उसकी पीढ़ियां क्या ऐसी कृतघ्न सरकार को माफ कर पाएंगी?

झोपड़ी की लकड़ी और टायरों से जलाई पति की लाश

छतरपुर/भोपाल। अंतिम संस्कार के लिए चंदा किया.. लकड़ी कम पड़ गई तो मृतक की झोपड़ी के पिछवाड़े से ही कुछ और लकड़ियां जुटाई गईं.. फिर भी बात नहीं बनी तो पुराने टायरों का सहारा लिया गया.. पर बदनसीबी.. लाश फिर भी अधजली रह गई।

दूसरे दिन फिर कुछ लोग सक्रिय हुए और जैसे-तैसे लाश जलाई गई।उधर, कलेक्टर से लेकर मंत्री तक नियम-कायदे, कार्यक्षेत्र, जांच और व्यवस्था की दुहाई देते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते रहे। जिंदगी तो जिंदगी, इस गरीब की मौत भी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी मढ़ने और सिस्टम के फेर में उलझकर रह गई। संवेदनाओं की ये चिता जली छतरपुर में। सोमवार को नारायण बाग पहाड़ी में रहने वाले बुजुर्ग नरपतसिंह यादव का नौगांव के टीबी अस्पताल में निधन हो गया। उनका शव घर लाया गया, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए उनके घर और कोई पुरुष सदस्य नहीं था।

बेहद गरीबी में रहे नरपतसिंह के परिवार में सिर्फ उनकी 68 वर्षीय पत्नी सावित्री देवी हैं। उनके पास भी अंतिम संस्कार के लिए रुपए नहीं थे। ऐसे में मोहल्ले के लोगों ने चंदा जमा कर कुछ लकड़ियां जुटाईं, लेकिन वे कम पड़ गईं। ऐसे में लोगों ने पुराने टायरों को चिता में डाल दिया। इतना ही नहीं वे बुजुर्ग की झोपड़ी से ही लकड़ियां निकाल लाए।

अधजली रह गई लाश

नरपत सिंह की चिता को जलाकर लोग वापस आ गए। दूसरे दिन मंगलवार की सुबह जब कुछ लोग श्मशान गए तो उन्हें अधजली लाश नजर आई। सूचना पर सिघाड़ी नदी बचाओ समिति के जिलाध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल वहां पहुंच गए और उन्होंने नगर पालिका में फोन लगाया। इसके बाद पार्षद बृजेश राय, बाबीराजा और नपा के स्वीपर की मदद से शव को जलाया गया। "मुझे सुबह सिघाड़ी नदी बचाओ समिति के जिलाध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल ने फोन कर बुजुर्ग के बारे में सूचना दी थी। मैंने तुरंत नपा के कर्मचारी को वहा भेजा। उनकी पत्नी सावित्री देवी की पूरी मदद की जाएगी।"

अर्चना सिंह, नपा अध्यक्ष, छतरपुर

"मुझे किसी अनजान नंबर से रात में सूचना मिली थी। शासन की ओर से लावारिश शवों को दफनाने का प्रावधान है। हमने सूचना देने वाले को को निजी तौर पर आर्थिक मदद देने को कहा था। सुबह अधजली लाश की सूचना मिली तो तत्काल मानवीय आधार पर वहां जलाने की व्यवस्था कराई गई। यह व्यवस्था भी हमने अपने स्तर पर कराई है।"

डीडी तिवारी, सीएमओ

योजना पर होगा विचार"अभी तक अंतिम संस्कार में मदद देने के लिए कोई योजना नहीं है। अब मांग उठी है तो योजना बनाने पर विचार करेंगे।"

बाबूलाल गौर, नगरीय प्रशासन मंत्री

एसडीएम ने नहीं सुनी गुहार

सोमवार को नपा उपाध्यक्ष अशोक मिश्रा ने एसडीएम केपी महेश्वरी से मदद की गुहार लगाई। उपाध्यक्ष ने बताया कि उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह उनके कार्यक्षेत्र का मामला नहीं है। अब एसडीएम का कहना है कि मुझे सूचना दी गई थी। मैंने सक्षम अधिकारी नपा सीएमओ को सूचना दी थी।

नगरपालिका की जिम्मेदारी

"शासन की ओर से कर्मकार मंडल में पंजीकृत होने पर पीड़ित परिवार को अंत्येष्टि के लिए मदद का प्रावधान है। नगर पालिका को अपनी ओर से मृतक का अंतिम संस्कार कराना चाहिए था। मैं अभी बाहर हूं। मामले की जांच कराऊंगा।"

राहुल जैन, कलेक्टर, छतरपुर

सांसदों को अपराधी-बेईमान बताना ठीक नहीं,रोक लगे नहीं तो संग्राम हो जाएगा

नई दिल्ली. भ्रष्टाचार के विरोध में अभियान चला रहे अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों के तौर-तरीकों पर बुधवार को लोकसभा में आपत्ति उठाई गई और सरकार को आगाह किया गया कि वह ऐसा कोई कानून नहीं बनाए जिससे संसद पर किसी तरह की आंच आए।

जनता दल (यू) के शरद यादव ने भ्रष्टाचार की बढ़ती घटनाओं पर विशेष चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि संसद ने हमेशा भ्रष्टाचारियों की पोल खोलने का काम किया है और विपक्षी दलों के दवाब के कारण ही आज कई राजनीतिक नेता जेल की हवा खा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिविल सोसाइटी के सदस्य इस लड़ाई में शामिल हुए हैं।हम उनका स्वागत करते हैं लेकिन यह काम निर्वाचित प्रतिनिधियों को बदनाम करके नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1991 में उदारीकरण की नीति लागू होने के बाद से राजनीतिक लोगों को बदनाम करने का अभियान शुरू हो गया है और सिविल सोसाइटी के आंदोलन से इसमें और तेजी आई। सिविल सोसाइटी के लोग सांसदों के घरों के सामने प्रदर्शन कर उन्हें अपनी टोपी पहनाने का काम कर रहे हैं जो सही नहीं है।

उन्होंने कहा कि जिस तरह से निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपराधी और बेईमान बताया जा रहा है वह ठीक नहीं है। यदि इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो संग्राम हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि सरकार जांच कराकर यह स्पष्ट करे कि सदन के कितने सदस्य अपराधी हैं और कितने के विरुद्ध राजनीतिक मामले चल रहे हैं। यादव ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार कड़ा से कड़ा कानून बनाए लेकिन इससे संविधान के ढांचे के अंदर होना चाहिए उन्होंने कहा कि सिविल सोसाइटी के लोग जो मांगे उठा रहे हैं। बिहार में बनाए गए कानून में वह सभी बातें शामिल हैं।

अनशन' का अनोखा अंदाज देख दंग रह जाएंगे आप



कोट्टायम। करप्शन के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन के लिए जहां एक ऐक्ट्रेस ने न्यूड होने का एलान कर डाला है, वहीं केरल में एक शख्स नारियल के पेड़ पर चढ़ बैठा है। 60 साल का यह अन्ना समर्थक अनोखे अंदाज में नारियल के पेड़ पर अनशन कर रहा है।
राजेंद्रन नाम के इस व्यक्ति को नारियल के पेड़ पर चढ़कर अनशन करते देखकर अन्य ग्रामीण भी उसका समर्थन करते हुए पेड़ के नीचे बैठ गए। राजेंद्रन 24 फुट ऊंचे पेड़ पर बनाए गए प्लेटफॉर्म पर बैठकर अनशन कर रहा है। वह सुबह आठ बजे पेड़ पर चढ़ता है और शाम को पांच बजे उतर जाता है।
उसने कहा, मैं तब तक अपना अनशन जारी रखूंगा, जब तक अन्ना जी अपना अनशन नहीं तोड़ देते अथवा सरकार मजबूत लोकपाल की मांग मान नहीं लेती।

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