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09 सितंबर 2011

शर्मनाक खुलासाः सबसे कमजोर हैं मप्र के बच्चे

भोपाल।मध्यप्रदेश के बच्चे देशभर में वजन में सबसे कम और शारीरिक रूप से भी सबसे कमजोर हैं। केंद्र सरकार द्वारा बीते सप्ताह एनीमिया और कुपोषण पर जारी आंकड़ों से यह शर्मनाक खुलासा हुआ है।

प्रदेश के 60% बच्चे अंडरवेट (सामान्य से कम वजन) बताए गए हैं। इसके बाद झारखंड 56.6 और बिहार 55.9% के साथ क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। दुर्भाग्य यह भी है कि बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामले में भी मप्र देश में पहले पायदान पर है।

केंद्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुपोषण के कारण मप्र के बच्चों में बीमारी से लड़ने का माद्दा बहुत ही कम है। प्रदेश में 1.6% बच्चे टीकाकरण न होने के कारण मर जाते हैं और इसके की क्षमता कुपोषण से। वहीं, एनसीआरबी द्वारा 2009-10 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बच्चों के विरुद्ध हुए अपराधों के 4646 प्रकरण दर्ज हुए थे, जो देश में सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद उप्र (3085) और महाराष्ट्र (2894) का नंबर आता है।

रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान मप्र में 1071 बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुईं। यह देश में हुई इन घटनाओं का 20 प्रतिशत थी। उधर, राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा बाल विवाह भी मप्र में ही होते हैं। इसके अनुसार मप्र में लगभग 70 प्रतिशत बालिकाओं का विवाह 18 वर्ष के पहले हो जाता है। ये सभी आंकड़े मप्र में बच्चों एवं महिलाओं से संबंधित चल रहे विभिन्न कल्याणकारी कार्यो पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। खासतौर से ऐसे समय में जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 5 अक्टूबर से बेटी बचाओ अभियान प्रारंभ करने जा रहे हैं।


अंडरवेट माने क्य

जन्म के समय बच्चा यदि 2.5 किलो से कम है तो वह अंडरवेट कहलाता है।

ये हैं प्रदेश के हाल

> 60% बच्चे सामान्य से कम वजन के

> 1.6% बच्चे टीकाकरण न होने से मर जाते हैं

> 70% बालिकाओं की शादी 18 साल से पहले

> 1071 घटनाएं हुईं बालिकाओं से बलात्कार की

> 4646 बच्चों के विरुद्ध किए गए अपराध के प्रकरण दर्ज (देश में सबसे ज्यादा)।

ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति

23 अगस्त 2011 को महिला एवं बाल विकास मंत्री रंजना बघेल द्वारा जारी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन, हैदराबाद की रिपोर्ट में मप्र के ग्रामीण क्षेत्रों के करीब 82 फीसदी बच्चे कम वजन के पाए गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा सतना में 67 फीसदी और सबसे कम विदिशा में 34 फीसदी बच्चे अंडरवेट हैं।

पदोन्नति में आरक्षण पर एम. नागराजन का फैसला लागू करेगी सरकार

जयपुर.राज्य मंत्रिमंडल की देर रात हुई बैठक में पदोन्नति में आरक्षण के मामले में एम नागराजन का फैसला लागू करने पर सहमति जताई गई। इसके साथ ही पहले से पदोन्नत किए गए किसी भी वर्ग के किसी भी अधिकारी-कर्मचारी को पदावनत नहीं किया जाएगा।

बैठक में निर्णय लिया गया कि राज्य में पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले अब आरक्षित वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं, इसे देखा जाएगा। इसके लिए कार्मिक विभाग की ओर से सभी विभागों में पदों और उनमें आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व का सर्वे किया जा रहा है।

मंत्रिमंडल के इस फैसले का असर राज्य के प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से लेकर सभी वर्गों के करीब छह लाख कर्मियों पर आएगा। उल्लेखनीय है कि पदोन्नति में आरक्षण के मामले में सोमवार को हाईकोर्ट में अवमानना याचिका पर सुनवाई होनी है। बैठक में राज्य में बढ़ाई गई बिजली की दरों पर भी मुहर लगा दी गई है।

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सरकार राज्य में एम नागराजन के मामले में दिए फैसले को लागू करेगी। पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी को आधार मानते हुए निर्णय दिया था।

सूत्रों ने बताया कि कोर्ट के फैसले के अनुसार ही राज्य सरकार ने के.के. भटनागर समिति का गठन किया था। कमेटी को पिछड़ापन, कार्यदक्षता और प्रतिनिधित्व के बारे में रिपोर्ट देनी थी।

कमेटी ने माना कि आरक्षित वर्ग एससी एसटी के है इसलिए पिछड़ापन तो है ही। इनको पदोन्नति एसीआर के आधार पर दी जाती है, इसलिए कार्यदक्षता में कमी नहीं है। पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं इसे देखकर पदोन्नति दी जा सकती है।

सूत्रों ने बताया कि पदोन्नति के समय रोस्टर प्रणाली को देखा जाएगा। इसका मतलब है कि आरक्षित वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो उसे पदोन्नति मिल जाएगी।

वहीं, अगर पर्याप्त प्रधिनिधित्व पहले से है तो उस कार्मिक को पदोन्नति उसका रोस्टर (टर्न) आने पर मिलेगी। सूत्रों का मानना है कि सरकार राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को लागू करेगी और संविधान संशोधन का भी ध्यान रखेगी।

सूत्रों ने यह भी माना है कि राज्य में इसके चलते केडर मैनेजमेंट गड़बड़ाया है और कई लोगों को पदोन्नति से वंचित रहना पड़ा है। अब प्रयास यह होगा कि कटुता नहीं बढ़े।

मंत्रिमंडल के अन्य फैसले

बिजली की दरें बढ़ाने के मंत्रिमंडल की बैठक में मुहर लगा दी गई। सूत्रों का कहना है कि इस साल के लिए राज्य सरकार इस साल कंपनियों को सब्सिडी के रूप में 1000 करोड़ रुपए देगी। अगले साल से 1350 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि अन्य राज्यों में दरें पहले से बढ़ी है, जबकि राजस्थान ने 2005 के बाद अब बढ़ाई है।

जननी सुरक्षा योजना में 12, 13 और 14 सितंबर को राज्यभर में कार्यक्रम होंगे। इसके लिए व्यवस्थाएं कर ली गई है और प्रदेश में सभी स्थानों के लिए टैक्सियां भी तय कर ली है, जो प्रसूताओं को लाने ले जाने का काम करेगी।

अगर किसी चिकित्सालय में किसी जांच की व्यवस्था नहीं है तो मेडिकल रिलीफ सोसायटी की तय दरों पर बाहर से जांच करवाने पर सहमति दे दी है।

2 अक्टूबर से शुरू होने वाले निशुल्क दवा वितरण का पूर्वाभ्यास 23 सितंबर को किया जाएगा। इसमें पहले चरण में 250 जैनेरिक दवाएं दी जाएगी और दूसरे चरण में 400 दवाओं पर शामिल किया जाएगा।

नागराजन का फैसला

इस फैसले में कहा गया है कि पदोन्नति में आरक्षण स्वत: नहीं है। सरकारें चाहें तो सरकारी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व, पिछड़ापन और प्रशासनिक दक्षता पर क्वांटीफायेबल आंकड़े एकत्रित कर आरक्षण की व्यवस्था करें।

हाईकोर्ट का निर्णय

बजरंग लाल शर्मा और अन्य के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 5 फरवरी, 2010 को कहा था कि एम. नागराजन के मामले में दिए निर्देशों की पालना पर ही पदोन्नति में आरक्षण दिया जाए।

केंद्र में पीएम, राज्य में सीएम तो मेयर सर्वेसर्वा क्यों नहीं?

जयपुर.ऑल इंडिया मेयर काउंसिल की दो दिवसीय बैठक में शनिवार से जुट रहे देशभर के मेयरों की मांग है कि नगर निगमों को शहरी सरकार का दर्जा दिया जाए।

मेयरों का कहना है कि केंद्र में पीएम, राज्य में सीएम सर्वेसर्वा हैं तो लोकल गवर्नमेंट में मेयरों को पावर क्यों नहीं दिए जा रहे? शहरों में बिजली, पानी वितरण से लेकर ट्रांसपोर्ट, डवलपमेंट अथॉरिटीज जैसी संस्थाएं नगर निगम के अधीन आएं। इससे आपस में तालमेल तो रहेगा ही प्रोजेक्ट भी समय पर पूरे हो सकेंगे।

वे चाहते हैं कि मेयर के वित्तीय व प्रशासनिक अधिकारों में बढ़ोतरी हो। कोलकाता व मुंबई की तर्ज पर सभी निगमों में 74वां संविधान संशोधन लागू हो। बैठक होटल क्लार्क्‍स आमेर में सुबह 10 बजे से होगी।

बोर्ड के अलावा मिले विशेष अधिकार

मेयर इन काउंसिल बन जाए तो मेयरों को उनकी शक्तियां मिल सकती हैं। विशेष अधिकार मिलने चाहिए ताकि मेयर को बोर्डकी बैठक का इंतजार नहीं करना पड़े।मेयर के पास वित्तीय अधिकार अधिक रहेंगे तो वह बोर्ड की बैठक के इंतजार में नहीं रहेगा। सिटी डवलपमेंट से जुड़ी एजेंसियां नगर निगम के अधीन होनी चाहिए।

-बलजीत सिंह, मेयर, भटिंडा

निगम का काम एजेंसिंयों को क्यों?

दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट, वाटर सप्लाई, दिल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के अंडर टेकिंग में हैं। जो काम नगर निगम को करना चाहिए वह अन्य एजेंसियों को नहीं दिया जाना चाहिए। मेयर के अधीन जो अफसर काम करें उसकी एसीआर भरने का अधिकार तो उसे मिलना ही चाहिए।

-योग ध्यान आहूजा, आल इंडिया मेयर काउंसिल के सचिव व पूर्व मेयर दिल्ली।

निगम को मिले शहरी सरकार का दर्जा

बोर्ड के पास तो सभी पॉवर मौजूद हैं लेकिन रोजाना बोर्ड की बैठक नहीं हो सकती। इसलिए मेयर के पास अलग से कुछ वित्तीय अधिकार हों। नगर निगम को शहरी सरकार का दर्जा दिया जाए तभी तो विश्व स्तरीय शहर बनाए जा सकेंगे।

-सुमन श्रृंगी, प्रथम लेडी मेयर राजस्थान।


ये हैं मेयरों के पास अधिकार

75 लाख से 1 करोड़ तक के वित्तीय अधिकार

पीपीपी व बीओटी आधारित प्रोजेक्ट लैंडयूज चेंज करने का अधिकार

कार्यकारिणी समिति में आने वाले मामलों पर निर्णय का अधिकार

मृतक आश्रितों की भर्ती का अधिकार

नियमन, स्ट्रीप आफ लैंड व अभियोजन के मामले व बड़ी नीलामी की नीति निर्धारण का अधिकार

ये अधिकार मांगेंगे

>सीईओ की एसीआर भरने का अधिकार।

>वित्तीय अधिकारों में बढ़ोतरी हो।

>विशेष अधिकार हो ताकि जरूरी प्रस्ताव बोर्ड में जाए बिना ही पास हो।

>निगम सीमा क्षेत्र में जितनी भी संस्थाएं काम कर रहीं हैं वह सभी नगर निगम के अधीन हो।

>केंद्र से आने वाले प्रोजेक्ट व शहर से जुड़े प्रोजेक्ट पर अंतिम निर्णय नगर निगम का हो।

>समितियों के निर्णय के अनुमोदन का अधिकार मेयर को दिया जाए।

यहां हैं ताकतवर मेयर

हावड़ा में निगम ने चलाई मेट्रो

"जैसे-जैसे म्युनिसिपल कॉपरेरेशन का कार्यक्षेत्र बढ़ रहा है, उस हिसाब से मेयर के अधिकारों में बढ़ोतरी होनी चाहिए। कोलकात्ता में मेयर के पास कमिश्नर की एसीआर भरने का अधिकार है। हमने हावड़ा में राजघाट से हावड़ा सिटी तक मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट शुरू किया।"

- ममता जायसवाल, मेयर, हावड़ा (प. बंगाल)

चंडीगढ़ में वाटर सप्लाई निगम के हाथ में

"निगम को मजबूत बनाया जाएगा तभी शहर विश्व स्तरीय बन सकेंगे। चंडीगढ़ नगर निगम के पास प्राइमरी स्कूल, हैल्थ सेंटर, वाटर सप्लाई, हॉर्टिकल्चर व इंफोर्समेंट के कार्य है। राज्य सरकार 74वें संविधान संशोधन को बेहतर तरीके से लागू करें तो मेयर अपने आप ही पॉवरफुल हो जाएंगे।"

-रवींद्रपालसिंह, मेयर, चंडीगढ़

एक्सपर्ट व्यू: सरकार कर रही है पावरलेस

1992 में 74वां संविधान संशोधन लागू हो गया लेकिन राज्य सरकारें संविधान के अनुसार नगर निगमों को अधिकार नहीं दे रहीं। संविधान के अध्याय 9क के तहत मेयर को सर्वाधिकार प्राप्त हैं, जबकि गवर्नमेंट नए नियम व आदेश जारी कर अधिकारियों की शक्तियां बढ़ा रही हैं।मेयर को पावरलेस किए जाने से इनके सीधे चुनाव का औचित्य ही समाप्त हो गया है। सरकार सारी शक्तियां अपने पास रखना चाहती हैं।जेडीए, हाउसिंग बोर्ड, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, वाटर सप्लाई, बिजली सप्लाई तथा हेल्थ व शिक्षण संस्थाएं जो नगर निगम की सीमा में हैं उन्हें नगर निगम के अधीन रखा जाना चाहिए।

-जेपी गर्ग, रिटायर्ड कमिश्नर, जयपुर नगर निगम।

खुल गया एक बेहद दुर्लभ राज़ 'धरती' पर ऐसे आया था 'सोना'

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लंदन.धरती पर मौजूद सोना और प्लेटिनम अंतरिक्ष से आया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि 4 अरब साल पहले विशाल उल्कापिंड की वर्षा के साथ ये कीमती धातु धरती पर आए थे। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के भू-वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि धरती में इतना सोना और प्लेटिनम है कि इसकी पूरी सतह पर इन धातुओं की चार मीटर मोटी सतह बिछाई जा सकती है।

कैसे आए धातु धरती पर:

धरती के निर्माण के वक्त इसपर मौजूद सोना और प्लेटिनम धरती के अंदर चले गए थे। इनके अन्य धातुओं से मिल जाने की वजह से धरती पर ये धातु खत्म हो गए थे। कुछ लाख सालों के बाद प्रलय में हुई उल्कापिंड वर्षा के साथ ये धातु धरती को वापिस मिले। 2000 अरब करोड़ टन धातु की इस दौरान वर्षा हुई थी। इसमें सोना और प्लेटिनम भी शामिल थे।

कैसे किया शोध:

यह शोध वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड की चट्टानों पर किया था। इन चट्टानों पर सदियों में पड़े असर का पता लगाया गया। चट्टानों में टंगस्टन के आइसोटोप-182 डब्ल्यू की भारी मात्रा देखी गई। यह आइसोटोप प्रमाण है कि धरती पर ये चट्टानें उल्कापिंड से आई हैं। साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि धरती पर मौजूद सोना और प्लेटिनम भी अंतरिक्ष से ही आए हैं।

साथियों की आंखों से भी देख सकेंगे सैनिक

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ब्रिटिश सैनिक जल्द ही एक ऐसे हाई-टैक मिलिट्री सिस्टम से लैस होंगे जो उन्हें दूसरों की आंखों से देखने में मदद करेगा यानी युद्ध के मैदान में कोई भी सैनिक वह नजारा देख सकता है जो उसके अन्य साथियों की आंखों के सामने है। यह नई तकनीक उन कम्युनिकेशन एंटीनाज पर आधारित है जो सैनिकों की यूनिफॉर्म के धागों के साथ बुने हुए हैं। इसे बॉडी वेरएबल एंटीनाज (बीडब्ल्यूए) कहा जाता है। इससे फायदा यह होगा कि जवानों को वे रेडियो-विप एंटीनाज लेकर नहीं घूमना होगा जो बोझिल होते हैं।



इतना ही नहीं अब हेलमेट पर लगे कैमरे की मदद से वीडियो, वॉइस कमांड तथा जीपीएस डाटा को यह एंटीना एक साथ ट्रांसमिट कर सकता है। इस सिस्टम को विकसित करने का उद्देश्य पूरी मिलिट्री टीम को एक साथ जागरूक करना है। इसे डिजाइन करने वाली बीएई सिस्टम ने यह जानकारी भी दी कि बीडब्ल्यूए के साथ एक टच स्क्रीन स्मार्टफोन भी होगा, जिससे सैनिक किसी स्पॉट का पूरा मानचित्र अपने साथियों को भेज सकता है।

राहुल v/s वरुण: ये भी गांधी, वो भी गांधी...फिर क्यों फासले

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वे दोनों एक ही राजनीतिक परिवार से हैं, लेकिन उनके स्वर भिन्न हैं। संसद में दो अलग-अलग दिन राहुल गांधी और वरुण गांधी ने भाषण दिए। इनमें न केवल शैली का अंतर था, बल्कि श्रोता तक अपनी बात पहुंचाने की ताकत भी जुदा थी।


दोनों की पार्टी लाइन एक-दूसरे के विपरीत है। एक कांग्रेस से है, जबकि दूसरा भाजपा से है। राहुल ने सख्ती से और दहाड़ते हुए अपनी बात कही। वरुण ने अपेक्षाकृत काफी नरम लहजे में अपनी बात रखी, जिसे एक याचक की भाषा भी कह सकते हैं।
यह थे प्रमुख अंतर

1. राहुल पहले से तैयार सामग्री पढ़ रहे थे, जिसकी आधी भाषा नौकरशाहों की नजर आ रही थी और आधी भाषा गोलमोल थी। अपने छोटे भाई की तुलना में उनकी भाषा ज्यादा यांत्रिक नजर आ रही थी।
2. राहुल ने संदेह जताया कि एक विधेयक भ्रष्टाचार मुफ्त समाज कैसे दे सकता है। वरुण को एक भ्रष्टाचार रोधी कानून में उम्मीद की किरण नजर आई।
3. राहुल को उम्मीद है कि युवाओं को सशक्त कर राजनीतिक तंत्र को खोला जाना चाहिए। संसद और राजनीति में युवाओं की जरूरत है। दूसरी ओर वरुण ने जोर दिया कि युवा बदलाव के सक्रिय वाहक बन सकते हैं। उनकी आवाज को दबाया नहीं जाना चाहिए।
4. साधारण मान्यता यह है कि राहुल के मुकाबले जनता से जुड़ने में वरुण को महारत हासिल है। वे विपक्ष की बेंच से कड़ी भाषा बोलते हैं, जो लोग सुनना चाहते हैं।

मिलना चाहिए राइट टू रीकॉल का अधिकार

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नेटवर्क. देश के करोड़ों लोगों के अन्ना हजारे के साथ जुड़ जाने पर सरकार किसी तरह से जनलोकपाल बिल पर चर्चा कराने को तैयार हुई। सरकार को लगा मुसीबत खत्म हो गई।

मगर, अनशन के अंतिम दिन अन्ना ने कहा कि जो राजनेता जनता की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरते हैं, उन्हें बीच में ही हटाने के लिए देशवासियों को ‘राइट टू रीकॉल’ यानी चुने प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार मिलना चाहिए। इससे सरकार की पेशानी पर एक बार फिर से बल पड़ गए हैं। हजारे ने यह भी कहा कि चुनावों की बैलेट शीट में दिए गए नेता में से किसी एक को चुनने के लिए मतदाता बाध्य होता है। यह सही नहीं है।

बैलेट मशीन में एक और विकल्प ‘राइट टू रिजेक्ट’ यानी खारिज करने का अधिकार होना चाहिए। यदि मतदाता को चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं हो तो वह इस विकल्प को चुन सकता है। यदि राइट टू रिजेक्ट का प्रतिशत अधिक होगा तो चुनाव को खारिज कर दिया जाएगा।

क्यों मिलना चाहिए अधिकार

वापस बुलाने का अधिकार जनता को मिलने से चुने गए प्रत्याशी सही से काम करेंगे। अभी एक बार चुन लिए जाने के बाद वे पांच वर्षो तक अपने पद पर रहते हैं। जनता के प्रति जवाबदेही नहीं होने और कुर्सी जाने का खतरा नहीं होने के कारण वे पांच वर्षो तक मनमानी कर सकते हैं। पूरा देश अन्ना के साथ खड़े होकर जनलोकपाल बिल लाने की मांग कर रहा था। अन्ना भूख हड़ताल कर रहे थे और सरकार को उनकी मांगों को मानने में १२ दिन लगे तो वह सिर्फ इसलिए, क्योंकि देश में राइट टू रीकॉल नहीं है। नेताओं को लगा कि अभी तो चुनाव में दो-ढाई साल हैं और इस दौरान सरकार नहीं गिर सकती है। यदि राइट टू रीकॉल होता तो शायद इस अनशन की जरूरत ही नहीं होती।

स्थानीय निकायों में है ये व्यवस्था

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था में चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार है। मगर, यह एमपी और एमएलए पर लागू नहीं होता है। छत्तीसगढ़ में सीधे लोकतंत्र को स्थापित करने की दिशा में तीन शहरी निकायों के चुनावों में राइट टू रीकॉल करने का अधिकार शामिल किया गया। इस राज्य में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जनमत संग्रह और राइट टू रीकॉल महत्वपूर्ण घटक है। रीकॉल इलेक्शन ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए किसी पदाधिकारी को सत्ता से बाहर किया जा सकता है। अलग-अलग देशों या राज्यों में राइट टू रीकॉल के कारण और प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है।

चुनाव आयोग भी समर्थन में

चुनाव आयोग भी मानता है कि इलेक्शन रीफॉर्म होने चाहिए, लेकिन इस दिशा में अंतिम रूप से कदम सरकार को ही उठाने होंगे। भारत में होने वाले चुनावों में राइट टू रीकॉल और राइट टू रिजेक्ट अधिकारों को शामिल करने के लिए लोक प्रतिनिधित्व कानून में व्यापक बदलाव करने होंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी मानते हैं कि चुनाव पत्र में किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का विकल्प भी होना चाहिए। यूपीए सरकार भी चुनाव सुधारों की वकालत करती है, लेकिन इन दोनों मामलों में वह कोई साफ जवाब नहीं देती है।


वसूली भी होना चाहिए


अन्ना के यह दो सुझाव बसपा के विधायक आनंद सेन (शशि हत्याकांड में लिप्त), पुरुषोत्तम द्विवेदी (बांदा रेप केस में लिप्त),शेखर तिवारी (इंजीनियर मनोज गुप्ता हत्याकांड),सांसद ए. राजा (2जी स्पेक्ट्रम घोटाला), दयानिधि मारन (2जी स्पेक्ट्रम घोटाला), लालूप्रसाद यादव (चारा घोटाला), बीएस येदियुरप्पा (अवैध खनन घोटाला) जैसे दागी नेताओं को सबक सिखाने के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं।


अन्ना ने रामलीला मैदान से एक और अहम बात कही थी, वह है वसूली की। अब तक जितने भी घोटाले हुए, उनमें वसूली नहीं हुई। अन्ना का कहना है कि देश में ऐसा नियम लाना चाहिए, जिसके अंतर्गत घोटाला करने वाले अधिकारियों या नेताओं से उतने ही धन की वसूली की जा सके,जितने का उसने गबन किया है। इसके साथ ही ये अधिकार उन सांसदों और विधायकों को सबक सिखाने के लिए मुफीद होंगे जो चुने जाने के बाद नियमित रूप से सदन में नहीं जाते या जो सदन में जाते तो हैं, लेकिन एक भी प्रश्न नहीं पूछते। जनता उन सांसद-विधायकों को सबक सिखा सकती है, जो खुद को सबसे ऊपर समझते हैं और मनमानी करते रहते हैं।


अमेरिका में शुरू हुई प्रथा

चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की प्रथा अमेरिका में शुरू हुई। सबसे पहले लॉस एंजिल्स म्युनिसिपालिटी के चुनावों में १९क्३ में इसका प्रयोग किया गया था। मिशिगन और ओरेगॉन दो पहले ऐसे राज्य थे, जिन्होंने १९क्८ में रीकॉल प्रोसिजर को राज्य के अधिकारियों के लिए लागू किया था।


मिन्निसोटा सबसे हाल का (1996) उदाहरण है। राइट टू रीकॉल स्टेट ऑफिशियल्स की जगह स्थानीय निकायों पर अधिक सफल हुआ है। अमेरिकी इतिहास में अब तक दो राज्यपालों को सफलतापूर्वक रीकॉल किया जा चुका है। उत्तरी डाकोटा के लिन जे फ्रेजर इसके पहले शिकार बने थे। उन्हें 1921 में सरकारी उद्योगों पर हुए विवाद के बाद रीकॉल किया गया था। दूसरे कैलिफोर्निया के गवर्नर ग्रे डेविस थे। उन्हें 2003 में राज्य के बजट का कुप्रबंधन करने पर वापस बुला लिया गया था।

2003 में किए गए 22 रीकॉल

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में रीप्रेजेंटेटिव रीकॉल लॉ यानी चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का कानून 1995 में अधिनियमित किया गया। कोलंबिया प्रांत के मतदाता सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री सहित पदासीन किसी प्रतिनिधि को उसके पद से हटाने के लिए याचिका ला सकते हैं। यदि पर्याप्त पंजीकृत मतदाता याचिका पर हस्ताक्षर कर देते हैं तो विधायिका के अध्यक्ष सदन के सामने सदस्य को रीकॉल करने और उसकी जगह नए सदस्य को चुनने के लिए जल्द से जल्द उपचुनाव करने की घोषणा करते हैं। जनवरी 2003 में रिकॉर्ड 22 रीकॉल किए गए थे, हालांकि तकनीकी रूप से किसी को भी रीकॉल नहीं किया गया।

राष्ट्रपति को हटना पड़ा

वेनेजुएला के 1999 में बने संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार का प्रयोग वेनेजुएला में 2004 में रीकॉल जनमत संग्रह के दौरान किया गया था। इसके बाद राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा था।

रीकॉल करने के कारण

रीकॉल प्रक्रिया को लाने के कारण अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकते हैं। सिर्फ अमेरिका के सात राज्यों में विशेष आधारों पर ऐसा किया जा सकता है। इन कारणों में प्रतिनिधि के अक्षम होने, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ न होने, कार्यो को नजरअंदाज करने,भ्रष्टाचार,कार्यालय में र्दुव्‍यवहार या ली गई शपथ का उल्लंघन करना शामिल है। पदाधिकारियों को यह तय करना होता है कि वे जो भी काम करने जा रहे हैं, उसमें से जनता के लिए क्या सही है या जनता को उस कार्य से क्या लाभ मिलेगा। इससे दीर्घकालिक योजनाएं बनाते समय अल्पकालिक विचारों को भी उन्हें ध्यान में रखना होता है। जाहिर है आम लोगों के हित की सरकारी नीतियां बनेंगी। बड़े वित्तीय संस्थान इस कमी का फायदा उठाकर अपने पक्ष के लिए नीति बनाने का दबाव बना सकते हैं। ऐसे में यह लोकतांत्रिक टूल स्थाई सरकार के लिए खतरा बन सकता है।

ऐसे होती है यह प्रक्रिया

जब कभी मतदाता निर्वाचित प्रतिनिधि के प्रदर्शन से असंतुष्ट हों, वे इसका प्रयोग कर सकते हैं। जो लोग किसी अधिकारी को उसके पद से हटाना चाहते हैं उन्हें एक याचिका पर हस्ताक्षर करने होंगे। यदि पिछले चुनावों में वोट देने वाले मतदाताओं का अधिक प्रतिशत उसे हटाने के लिए हस्ताक्षर कर देता है तो उसे पद से हटना होगा। हस्ताक्षर की जरूरतें एक फॉमरूले पर आधारित होती हैं, जो हर राज्य में अलग-अलग होती है। ये योग्य मतदाताओं की संख्या या अन्य घटकों के आधार पर बना होता है। इसके बाद नए उम्मीदवार का चुनाव होता है।

इस तरह से निर्वाचित व्यक्ति के लिए यह एक मौलिक कर्तव्यों की रूपरेखा बनाता है, जिसमें वह मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होता है। हालांकि, यह अन्य प्रावधानों से अलग होता है, महाभियोग की प्रक्रिया। रीकॉल एक राजनीतिक प्रक्रिया है,जबकि महाभियोग एक कानूनी प्रक्रिया होती है। रीकॉल प्रक्रिया को शुरू करने के लिए जनमत संग्रह भी किया जा सकता है, जो प्रभाव में कानूनी तौर पर बाध्यकारी होगा।

थम गई शिक्षा सुधारों की रफ्तार, एजेंडा रह गया धरा

नई दिल्ली. मानसून सत्र में शिक्षा सुधारों की रफ्तार फिर थमी रह गई। शिक्षा से जुड़े करीब एक दर्जन विधेयक कतार में ही रह गए। नीतिगत मसलों से जुड़े विधेयक तो सदन में आए ही नहीं। भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, आई आईआईटी सहित कुछ विधेयकों को मानव संसाधन मंत्री छात्रों के भविष्य का वास्ता देकर आगे बढ़ाना चाहते थे, उन पर भी सांसदों का दिल नहीं पसीजा।

दरअसल मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद जब सिब्बल मनमोहन कैबिनेट में मजबूत बनकर उभरे थे तो शिक्षा सुधारों को लेकर उम्मीद बंधी थी। लेकिन अन्ना प्रकरण के बाद वे एक बार फिर पटरी से उतरते नजर आए। सिब्बल को उम्मीद थी कि अगर मानसून सत्र में उनके शिक्षा सुधार का एजेंडा आगे बढ़ा तो उनकी छवि फिर से मजबूत होगी।

मंत्रालय के कुछ विधेयक सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का हिस्सा बनाकर सत्ता पक्ष के तरकश में रखे गए थे। प्रॉहिबिटेशन ऑफ अनफेयर प्रेक्टिसेज इन एजुकेशन विधेयक इनमें से एक था। इस पर संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट आ चुकी है,फिर इस सत्र में बात नहीं बनी। एजुकेशन ट्रिब्यूनल बिल सिब्बल के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था।

संसदीय समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद इस विधेयक को मानसून सत्र में पारित कराने को लेकर सरकार आश्वस्त थी। राज्यसभा में कई बार यह विधेयक एजेंडे पर आया,लेकिन इस पर चर्चा तक नहीं कराई जा सकी। यह विधेयक पिछले सत्र में कांग्रेस सांसद केशव राव के तीखे विरोध के चलते अटका था। नेशनल एक्रिडिएशन रेगुलेटरी अथारिटी फॉर हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन बिल के लिए भी अब शीतकालीन सत्र का इंतजार करना होगा।

एक से निकले तो दूसरे में अटके

एनआईटी अमेंडमेंट बिल और आई आईआईटी कांचीपुरम लोकसभा में पास हुआ तो राज्यसभा में इन पर मुहर नहीं लग पाई। कांचीपुरम के लिए तो अब सरकार को आर्डिनेंस लाने को मजबूर होना पड़ेगा। सरकार इस संस्थान को तीन साल से कोई दर्जा नहीं दे पाई है जिससे छात्रों को डिग्री भी नहीं दी जा सकती। पहले इसे डीम्ड बनाने का प्रयास हुआ लेकिन नियम बदलने की वजह से मामला अटक गया। फिर इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल इम्पॉर्टेंस बनाने की कोशिश हुई तो मामला कानूनी पेंच में उलझा है।

सेंट्रल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन,रिजर्वेशन इन एडमिशन,संशोधन विधेयक,आर्किटेक्ट संशोधन विधेयक भी कतार से आगे नहीं बढ़े। एनसीएचईआर बिल,इनोवेशन युनिवर्सिटी बिल को भी पारित कराने की योजना बनाई गई थी। लेकिन इसे एजेंडे में भी नहीं लाया जा सका। फारेन यूनिवर्सिटी बिल को लेकर खुद प्रधानमंत्री की रुचि जाहिर है लेकिन इसके लिए भी इंतजार ही हाथ आया।

भ्रष्टाचार की बलि चढ़ेंगे एक और मुख्यमंत्री

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नई दिल्ली. कर्नाटक के बाद अब भाजपा-शासित उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की बारी है। लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के विकल्प की तलाश शुरू हो गई है। गुरुवार देर शाम भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में यह महसूस किया गया कि चुनाव से पहले प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलना पार्टी की जरूरत हो गई है।

फिलहाल नए नेता की दौर में पूर्व मुख्यमंत्री बी.सी. खंडूरी सबसे आगे बताए जा रहे हैं। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी को प्रदेश संगठन की कमान की कमान सौंपी जा सकती है। आला सूत्रों के मुताबिक संसदीय बोर्ड में उत्तराखंड के हालात पर विस्तार से चर्चा हुई।

ज्यादातर नेता मुख्यमंत्री को हटाने के पक्ष में बताए जा रहे हैं, लेकिन एक पूर्व अध्यक्ष समेत कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री को हटाने से होने वाली मुसीबतों का भी मामला उठाया। लंबी चर्चा के बाद पार्टी ने फिलहाल कोई भी औपचारिक ऐलान से परहेज किया है। मगर विशिष्ट सूत्रों के मुताबिक निशंक से इस्तीफा लेने पर गंभीरता से विचार हुआ है, मुमकिन है पार्टी जल्द देहरादून में विधायक दल की बैठक करके नए नेता के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करेगी।

सूत्रों का कहना था कि विधायक दल की बैठक 11 सितंबर को संभव है हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। हालांकि यह पहला मौका नहीं जब आलाकमान को सीएम के खिलाफ असंतोष से दो-चार होना पड़ा हो।

जून के महीने में भी प्रदेश कोर ग्रुप की केंद्रीय नेताओं से मैराथन बैठक हुई थी जिसमें प्रदेश के दोनों दिग्गज, बीसी खंडूरी और भगत सिंह कोश्यारी ने निशंक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इन नेताओं की नाराजगी को देखते हुए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री के पर कतरते हुए एलान किया था कि आगामी विधानसभा चुनाव तीनों नेताओं के सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। संकेत साफ था कि निशंक चुनावों में पार्टी का चेहरा नहीं होंगे।

निशंक के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के अलावा मनमानी की शिकायतें भी मिली हैं। इसके साथ ही विधायकों ने आलाकमान से अलग-अलग मुलाकातों में यह भी आशंका जताई है कि निशंक के नेतृत्व में चुनाव जीतना मुमकिन नहीं है। पिछली कोर ग्रुप बैठक के जरिए आलाकमान ने सभी को साथ लेने का संदेश देकर प्रदेश इकाई में बढ़ते असंतोष को काबू करने की कोशिश की थी मगर मामला उल्टा पड़ गया।

कैग की रिपोर्ट को लेकर वरुण गांधी ने अपनी ही पार्टी, भाजपा को लपेटा

नई दिल्ली. अक्सर अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले भाजपा सांसद वरुण गांधी ने एक बार फिर अपनी पार्टी के लिए अटपटी स्थिति पैदा कर दी है। माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर के जरिए वरुण ने केजी बेसिन मामले में कैग की रिपोर्ट का मामला उठाया है।

पीलीभीत के युवा सांसद ने रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि किस तरह प्रतिस्पर्धा की नीति की धज्जियां उड़ाते हुए केजी बेसिन में ठेके दिए गए। सरकार को पूरी जानकारी दिए बगैर ही तेल व गैस की खोज हुई। वरुण ने कैग रिपोर्ट के हवाले से यह मुद्दा गरमाया है कि रिलायंस को जान-बूझकर तमाम नियम ताक पर रखकर फायदा पहुंचाया गया और अनाप-शनाप कीमत पर ठेका मिला। इसके आगे वह लिखते हैं कि उन्हें हैरानी है कि इतने बड़े घोटाले पर सरकार और विपक्ष दोनों खामोश कैसे बैठे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि इन दिनों वरुण गांधी कई अहम मुद्दों पर पार्टी से एक कदम आगे चलने का संकेत दे रहे हैं। इससे पहले अन्ना हजारे के आंदोलन में उन्होंने अपनी ओर से जन लोकपाल बिल का समर्थन कर दिया और उसे संसद में पेश करने का एलान कर दिया। उसके बाद वह रामलीला मैदान जाकर आंदोलन में बाकायदा शरीक भी हुए।

अलवर से दो गिरफ्तार: धमाके के बाद ईमेल भेजने का पाकिस्‍तान से आया था हुक्‍म?


नई दिल्‍ली. दिल्‍ली हाईकोर्ट के बाहर हुए धमाके की जांच कर रही एजेंसियों के हाथ अभी तक खाली हैं। इस बीच राजस्‍थान में पुलिस ने शुक्रवार मध्यरात्रि किशनगढ़बास कस्बे (अलवर) में धर्मशाला की तलाश में घूम रहे जिन दो कश्मीरी युवकों को गिरफ्तार किया था, उनके बारे में पुलिस का कहना है कि पहली नज़र में इनका आतंकवाद से कोई रिश्ता नहीं लग रहा है। अलवर पुलिस ने अनंतनाग पुलिस से देर रात संपर्क किया और दोनों युवकों--अब्दुल गनी माजरे और मियां अहमद खटाना के बारे में पता चला कि इनका कोई दागी इतिहास नहीं रहा है। अलवर पुलिस का कहना है कि ये मधुमक्खी पालन के सिलसिले में यहां आए हुए हैं। दोनों के पास से ट्रेन की टिकट और पहचान पत्र भी मिला है। हालांकि, पुलिस एहतियातन इन्हें हिरासत में रखे हुए है।

उधर, खबर है कि दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर बुधवार की सुबह हुए ब्लास्ट के कुछ घंटों बाद दिल्ली के कुछ मीडिया संगठनों को ईमेल भेजने के आरोपी शोएब अहमद शेख ने कथित तौर पर जांचकर्ताओं को बताया है कि उसे सीमापार से ईमेल भेजने का आदेश मिला था। शेख ने किश्तवाड़ के साइबर कैफे से यह ईमेल भेजा था।
शेख की पहचान ग्लोबल साइबर कैफे के मालिक द्वारा बताए गए हुलिए के आधार पर की गई। किश्तवाड़ के कॉलेज में पहले साल के विद्यार्थी शेख से एनआईए की एक टीम, हैदराबाद के फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जम्मू पुलिस पूछताछ कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक शेख ने जांचकर्ताओं को बताया है कि सीमा पार से उसे निर्देश मिला था कि पहले वह दिल्ली ब्लास्ट की खबर ब्रेक होने दे और उसके बाद टीवी चैनलों को ईमेल भेजे। इससे पता चलता है कि ईमेल लिखने वाले को यह नहीं पता था कि बम कहां और कब फटेगा।
सूत्रों के मुताबिक शेख ने जांच टीम को यह भी बताया है कि ब्लास्ट वाले दिन यानी बुधवार को उसके मोबाइल पर दो इंटरनेशनल कॉल आई थीं। इनमें से एक कॉल पाकिस्तान से दूसरी सऊदी अरब से आई थी। मेल में सिर्फ हरकत उल जेहादी लिखा हुआ था। जांच एजेंसियां इस बात पर माथापच्ची कर रही हैं कि क्या हरकत उल जेहादी इस्लामी (हूजी) के ही दिमाग के उपज तो नहीं है। सूत्र इस बात को भी मान रहे हैं कि किश्तवाड़ के बाद आए ईमेल भटकाने की कोशिश हो सकते हैं। इन ईमेलों का मकसद यह भ्रम बनाना हो सकता है कि ब्लास्ट में सीमापार की साजिश नहीं है।
बुधवार को दिल्‍ली हाईकोर्ट के बाहर गेट नंबर 5 पर हुए धमाके की जांच अब तक भी किसी ठोस दिशा में नहीं पहुंची है। जांच एजेंसियां बस ईमेल और फोन कॉल खंगालने तक ही सीमित हैं और इसमें भी उन्‍हें कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लग सका है। हालांकि, स्केच के आधार पर गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी है। दिल्ली पुलिस की तरफ से जारी स्केच से मेल खाते दो लोगों को राजस्थान के अलवर जिले के किशनगढ़ में पकड़ा गया है। ये जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के रहने वाले हैं।
जांच एजेंसियां बीते छह महीने के ईमेल और फोन कॉल रिकॉर्ड खंगाल रही हैं। धमाके के बाद से इसकी जिम्‍मेदारी लेने और नए धमाके की धमकी देने वाले चार मेल आ चुके हैं, जो जांच एजेंसियों की परेशानी बढ़ा रही हैं। हो सकता है ये ईमेल इनकी मुश्किल बढ़ाने के लिए ही भेजी गई हों।
एक विशेष टीम बांग्‍लादेश, नेपाल और पाकिस्‍तान में किए गए 350 से भी ज्‍यादा फोन कॉल के रिकॉर्ड खंगाल चुकी है। पर इससे कोई सुराग हाथ नहीं लगा। जांच टीम का कहना है कि उनकी नजर सोशल वेबसाइट्स पर भी है। टेलीफोन ऑपरेटर कंपनियों से मदद मांगी गई है। पुराने धमाकों से जुड़ी फाइलें भी खंगाली जा रही हैं।
धमाके के बाद से आए चार मेल
पहला मेल
कब: 7 सितंबर 2011 को हमले के कुछ देर बाद।
कहां से : किश्तवाड़ (जम्मू-कश्मीर)
क्या था : हूजी ने ली हमले की जिम्मेदारी। कहा- संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी पर दोबारा विचार करो। वरना अन्य हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट पर भी हमला होगा।
नतीजा : किश्तवाड़ में बीए प्रथम वर्ष के छात्र के अलावा साइबर कैफे मालिक एवं चार अन्य हिरासत में। पूछताछ जारी।

दूसरा मेल
कब : 8 सितंबर 2011 को दोपहर 12:37 बजे।
कहां से : पश्चिम बंगाल
क्या था : छोटू नामक शख्स के जी-मेल आईडी से आए ई-मेल में आईएम ने ली जिम्मेदारी। कहा- बुधवार को जनहित याचिकाओं पर सुनवाई होती है। भीड़ ज्यादा रहती है। इसलिए हाईकोर्ट को निशाना बनाया गया। एक शॉपिंग मॉल में भी किया जाएगा धमाका।
नतीजा : कोई ठोस सुराग नहीं।

तीसरा मेल
कब : 9 सितंबर 2011 को तड़के।
कहां से : मास्को
क्या था : किलइंडियन के याहू आईडी से आए ई-मेल में आईएम ने ली जिम्मेदारी। कहा- अगला धमाका ‘अहमदाबाद’ में होगा। वह और ज्यादा क्रूर होगा। दशकों तक याद रहेगा।
नतीजा : कोई सुराग नहीं।

चौथा मेल
कब : 9 सितंबर 2011 को शाम 6:39 बजे।
कहां से : पश्चिम बंगाल
क्या था : छोटू का फिर आया ई-मेल। दिल्ली और मुंबई के मीडिया संस्थानों से कहा, तीसरा मेल ही ‘सही और अपडेटेड’।
नतीजा : कोई सुराग नहीं।
अब तक की जांच
> किश्तवाड़ से ई-मेल भेजने वाला संदिग्ध किशोर पकड़ा गया, एनआईए टीम भी पहुंची, पूछताछ जारी
> दिल्ली पुलिस ने डीसीपी (क्राइम) अशोक चांद और डीसीपी (स्पेशल सेल) अरुण कंपानी के नेतृत्व में 200 पुलिसकर्मियों की तीन टीमें गठित की
> 20 सदस्यीय एनआईए जांच दल से भी दिल्ली पुलिस की ये टीमें करेंगी समन्वय > महाराष्ट्र एटीएस ने 10 से ज्यादा संदिग्धों को समन जारी किए
> तीसरा स्केच भी जारी होगा, दिल्ली पुलिस जारी कर चुकी है दो स्केच

निकाह के बाद घर में इंतजार करती रही दुल्हन लेकिन..

झुंझुनूं/सीकर। दहेज के लिए दूल्हा निकाह के बाद दुल्हन को छोड़ गया। मामला मोहल्ला फतेहपुरियान का है। खाने-पीने के बाद आधी रात को दूल्हा पक्ष बिना दुल्हन के सीकर लौट गया।

शहर की चोपदारान मस्जिद के पास रहने वाले मो. साबीर की पुत्री शमां बानो का सात सितंबर का निकाह हुआ। सीकर के व्यापारियान मोहल्ला से मोहम्मद आसिफ पुत्र मोहम्मद मुमताज शाम छह बजे बारात लेकर आए। दुल्हन पक्ष ने जमकर खातिरदारी की। शाम आठ बजे शहर काजी सफी उल्लाह ने निकाह कराई। शादी में दुल्हन पक्ष ने काफी सामान भी दिया।

विदाई के समय दुल्हा मो. आसिफ, उसकी मां मैमुना, बहन रुबीना व भाई मो. सलीम दहेज में बाइक, सोने-चांदी के गहने व एक लाख रुपए नकद देने की मांग पर अड़ गए। मांग पूरी ना करने पर आरोपी गाली-गलौच करने लगे तथा दुल्हन व उसके परिजनों को भला-बुरा कहा। बिरादरी के लोगों ने समझाइश की लेकिन दूल्हा पक्ष ने किसी की नहीं मानी। करीब तीन घंटे तक नाटक चलता रहा।

रात पौने बारह बजे के करीब दूल्हा व बाराती गाड़ियों में बैठकर चले गए। निकाह के बाद दुल्हन शमां बानो घर पर ही बैठी रह गई। दुल्हन के पिता ने कोतवाली थाने में आरोपियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया है।

अपराधियों का काल बनकर आया था वो 'रहस्यमयी' सुपर हीरो.

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फिल्म तथा उपन्यासों में हम ऐसे जासूसों को देखते और सुनते रहे हैं जो अपराधियों को पकडऩे में पुलिस की मदद करते हैं, लेकिन ब्रिटेन के समरसेट की पुलिस के लिए यह सिर्फ कहानी नहीं। यहां एक शख्स न केवल पुलिस को आपराधिक गतिविधियों तथा अपराधियों की जानकारी देता था बल्कि यह सुझाव भी देता था कि इन्हें कैसे और कब पकड़ा जा सकता है।

2008 में इस शख्स ने अधिकारियों को 200 से ज्यादा पत्र भेजे, जिनमें स्थानीय अपराध से जुड़ी ऐसी जानकारियां थीं जो पुलिस विभाग या खूफिया तंत्र भी नहीं जानता था।

बताया जाता है जब पहली बार विभाग को ऐसा पत्र मिला तब इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि अधिकारियों ने उन अपराधियों की जानकारी जुटाने के आदेश दे दिए जिनका जिक्र पत्र में था। जानकारियां जुटाने में विभाग को समय तो लगा लेकिन पत्र से मिली सूचनाएं 100 प्रतिशत सही निकलीं।

इसके बाद अधिकारियों को जब-जब ऐसे पत्र मिले उन पर तुरंत अमल किया गया। इनसे विभाग को अपराधियों के खिलाफ इतने सबूत मिल जाते थे, जितने वॉरंट निकालने के लिए काफी होते हैं। महीनों तक चले इस सिलसिले के दौरान कई ड्रग माफिया पुलिस के हाथ लगे। इतना ही नहीं उन लोगों को भी सजा भुगतना पड़ी जो टैक्स या टीवी लाइसेंस फीस की चोरी करते थे।

इस तरह पुलिस को शहर में बढ़ रहे अपराधों को नियंत्रित करने में बड़ी सफलता मिली, लेकिन अब तक कोई यह नहीं जान सका कि शहर को अपराध से बचाने वाला यह मसीहा कौन था?

यहां तक कि एवन तथा समरसेट के पुलिस प्रमुखों ने अखबार में विज्ञापन छपवाकर इस शख्स से सामने आने की अपील की और वादा किया कि उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी, लेकिन ये पत्र रहस्य बनकर ही रह गए। हालांकि मीडिया ने इस शख्स को ‘मिस्ट्री क्राइमफाइटर’ के नाम से मशहूर कर दिया।

इसे कहते हैं किस्मत ! 38 करोड़ के घर का मालिक है यह कुत्ता...

लॉस एंजिलस। मॉडल, फैशन डिजाइनर और सोशेलाइट पेट्रा एक्लस्टोन ने अपने पालतू कुत्तों के लिए लॉस एंजिलस में 52 मिलियन पाउंड यानी 38 करोड़ 37 लाख रु . का घर खरीदा है। पिछले दिनों ही पेट्रा ने प्रेमी जेम्स स्टंट से शादी की थी और यह दुनिया की सबसे महंगी शादी थी।

पेट्रा ब्रिटिश बिजनेसमैन बर्नी एक्लस्टोन की छोटी बेटी हैं। पेट्रा का कहना है कि उनके कुत्तों को रहने के लिए खुली जगह की जरूरत थी। इस नए घर के सामने एक बड़ा गार्डन और पिछले हिस्से में एक स्विमिंग पूल है। पेट्रा के पास रहने के लिए पहले से ही चेल्सी स्थित 56 मिलियन पाउंड का छह मंजिला महल है। यह जानकारी डेली मेल ने दी।

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