प्रयोगशाला में जांच पड़ताल की पुख्ता प्रक्रिया के बाद इसकी गुणधर्मिता प्रमाणित हो चुकी है। पंचगव्य चिकित्सा पद्धति प्राचीनतम एवं शास्त्र आधारित है। इसमें गोमूत्र, गाय की छाछ, दही और घी आदि का उपयोग किया जाता है।
टीलेश्वर महादेव मंदिर भवन में दो दिवसीय गो-विज्ञान प्रशिक्षण शिविर के समापन सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में शिरकत करने आए मानसिंहका गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र नागपुर के समन्वयक होने के साथ ही भारत सरकार के राष्ट्रीय गोवंश आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं।
उन्होंने पत्रकारों को बताया कि 500 डॉक्टर और वैद्य पंचगव्य चिकित्सा पद्धति पर रिसर्च में कार्यरत हैं। गोमूत्र आधारित दवाओं के चार पेटेंट अब तक हो चुके हैं। गोमूत्र अर्क में विशेष गुणधर्मिता होने से कई जटिल रोगों का इलाज संभव है। उन्होंने दावा किया कि अब तक साढ़े तीन हजार कैंसर रोगी इससे ठीक हुए हैं।
किसी भी तरह का कैंसर हो, उस पर गोमूत्र से बनी दवा काबू पाने में सक्षम है। पंचगव्य चिकित्सा आने वाले समय में सर्वमान्य चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित होगी। नागपुर अनुसंधान केंद्र अब तक गोमूत्र एवं गोबर अर्क आधारित 45 विभिन्न दवाएं बना चुका है।
इनमें फसलों को रोग कीट से बचाने के लिए कीट नियंत्रण दवा भी शामिल है। उन्होंने कहा कि देश में गोवंश संवर्धन के लिए पंचगव्य चिकित्सा पद्धति को अपनाने की जरूरत है। इससे गोशालाओं की आमदनी बढ़ने के साथ ही गाय की उपयोगिता में विस्तार होगा।
कोटा में भी इसके लिए टीम तैयार की जा रही है। समापन सत्र के मुख्य अतिथि जीडी पटेल थे। शिविर में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने गायत्री परिवार की बंधा धर्मपुरा गोशाला समेत शहर की अन्य बड़ी गोशालाओं का अवलोकन भी किया।