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02 अक्तूबर 2011

महंगी पड़ी पूछताछ, बदमाशों ने लगा दी पुलिस की पिटाई!

जयपुर.मोती डूंगरी रोड पर रविवार दोपहर उधारी को लेकर दो पक्षों में हुए झगड़े के बाद मौके पर गए लालकोठी थाना प्रभारी और पीसीआर वैन के जवानों से कुछ लोगों ने मारपीट की।

पुलिस ने आरोपियों के घरों पर दबिश दी, लेकिन उनका कोई पता नहीं चला। इस संबंध में दो पुलिसकर्मियों ने राजकार्य में बाधा डालने व मारपीट का मामला दर्ज कराया।

खो नागोरियान निवासी मोहसिन आदर्श नगर के करीम से रविवार दोपहर उधारी के रुपए मांगने मोहसिन एमडी रोड पर आया तो करीम ने मना कर दिया और धमकाया। बाद में करीम ने साथी ऑटो चालकों को बुला मोहसिन से मारपीट की, कपड़े फाड़ दिए तथा बाइक में तोडफ़ोड़ कर दी।

मोहसिन की रिपोर्ट पर थाना प्रभारी हरि चरण मीणा तीन जवानों के साथ एमडी रोड स्थित पेट्रोल पंप के पास गए जहां बदमाश खड़े मिल गए। पूछताछ की तो कुछ युवकों ने उनसे मारपीट कर की।

पीसीआर वैन पहुंची तो सिपाही जसमत, नवाब सिंह, जोरावर सिंह तथा राधेश्याम को भी जमकर पीटा। दोपहर बाद पुलिस ने आरोपी सलीम, रफीक, सफीक, उमर, करीम, मोहम्मद अजीम कुरैशी के एमडी रोड पर मुस्लिम स्कूल के पास स्थित घरों पर दबिश दी, लेकिन कोई पता नहीं चला।

इधर मोहसिन की रिपोर्ट पर भी पुलिस ने आरोपी करीम व उनके साथियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

'मोदीजी के बारे में कुछ कहूंगा तो यहां से वापस नहीं जा पाऊंगा'


सूरत। फिल्म स्टार शाहरुख खान अपनी बहुप्रचारित फिल्म 'रा. वन' के प्रमोशन के सिलसिले में सूरत पहुंचे थे। इसी बीच पत्रकारों ने उन पर सवालों की बौछार कर दी। पत्रकारों द्वारा करीना को लेकर पूछे गए सवाल में शाहरुख का कहना था..'वैसे तो छमकछल्लो शब्द दिल्ली का है किन्तु इसे गांव की गोरियों की प्रशंसा के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। करीना के सौंदर्य के बारे में कोई शंका नहीं कर सकता। वह ही फिल्म इंडस्ट्रीज की छमकछल्लो है। दूसरी किसी अभिनेत्री के लिए भविष्य में यह संबोधन देने के बारे में विचार करना होगा'।

असत्य पर सत्य की जीत 'रावण' फिल्म के बारे में शाहरूख ने कहा कि रामायण की भांति इसमें भी खराब और अच्छे पात्र हैं। असत्य पर सत्य की जीत की यह कहानी है, जिसे कहने में तकनीक का भरपूर प्रयोग किया गया है। हमारे आसपास की दुनिया तकनीक से भरी हुई है। मसलन, मोबाइल, फ्रीज, टीवी, पैनड्राइव आदि। इनमें से रा-वन नामक असत्य का प्रतीक व्यक्ति विश्व पर हुकूमत साबित करना चाहता है जिसे जी-वन (शाहरूख के पात्र का नाम) नामक व्यक्ति चुनौती देता है।

खैर, यह तो रही फिल्मों की बातें, जिनके सवालों के जवाब शाहरुख ने फटाफट दे डाले लेकिन यहां पर एक सवाल ऐसा था, जिसका जवाब वे नहीं दे सके। एक पत्रकार ने शाहरुख से मोदी के बारे में सवाल पूछ लिया कि क्या मोदी प्रधानमंत्री बन सकते हैं?

शाहरुख यह सवाल सुनते ही चौंक गए। एक पल वे सोच में पड़ गए और हंसते हुए बोले...'प्लीज मुझसे राजनीति से जुड़े सवाल न करें'। रही मोदीजी की बात तो उनके बारे में की गई किसी भी टिप्पणी (अच्छी या बुरी) से मैं मुसीबत में फंस जाऊंगा। मैं सूरत से वापस नहीं जा पाऊंगा।

सत्यसाईं के निधन के बाद ‘चमत्कार’ गुम, भक्त नदारद

पुट्टपर्थी.कुलवंत हॉल में होने वाली सुबह की आरती ‘प्रभातम’ में अब सिर्फ आश्रम के विद्यार्थी और गले में नीला दुपट्टा डाले कुछ सौ सेवादार ही नजर आ रहे हैं। पांच महीने पहले जब मैं यहां आया था तब पांच हजार आम श्रद्धालु भी मौजूद रहते थे। यही हाल दोपहर और शाम के रूटीन का है,जिसमें आश्रम के व्यवस्थापक ही दिखाई देते हैं। पहले देश-विदेश और पुट्टपर्थी के आसपास से आने वाले करीब दस हजार श्रद्धालु यहां की होटलों और गेस्ट हाउस में ठहरते थे। अब यह आंकड़ा कुछ सैकड़ों में सिमट गया है।

बीते पांच महीनों में बहुत-कुछ बदल गया है पुट्टपर्थी में। दोपहर में हजारों भक्तों की मौजूदगी में होने वाले भजन कार्यक्रम में बाबा मौजूद रहते थे। भजन अब भी हो रहे हैं। लेकिन न बाबा हैं। और न पहले की तरह भक्त। विद्यार्थी और सेवादार ही भजन गायक हैं, और वही श्रोता। शाम को पहले बाबा दर्शन का कार्यक्रम होता था। पांच हजार लोगों की क्षमता वाला कुलवंत हॉल तो उस दौरान खचाखच भरा ही होता था, हॉल के बाहर भी कतारें लगी रहती थीं। अब उस दौरान दो घंटे के लिए समाधि दर्शन हो रहा है। जिसमें बाहर से आने वाले श्रद्धालु इक्का-दुक्का हैं।

जानकार कहते हैं तीन-चार ऐसे कारण हैं जिनसे प्रशांति निलयम (सांई आश्रम) में भक्त कम हो रहे हैं। यहां सारी आस्था सत्य साईं से जुड़ी थी। एक बड़ा तबका बाबा को साक्षात देखने-सुनने का अभ्यस्त था, वो केवल समाधि से संतुष्ट नहीं है। भक्तों ने बरसों-बरस देखा है, बाबा को भजन गाते,प्रवचन देते और दुख-दर्द दूर करते हुए। उनकी जगह अब एक सफेद चबूतरा भर है। रिटायर्ड बैंक अफसर एस. मणि कहते हैं-मुझे खुद को समझाने में पांच महीने लग गए कि बाबा नहीं हैं। चित्रावती रोड पर एक विदेशी भक्त के निवास के केअर टेकर जनार्दन ने कहा-मैडम घर (विदेश) लौट गई हैं।

बाबा नहीं होने से उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। हालांकि पुट्टपर्थी के पास के रहने वाले सुनील रामा की निष्ठा साक्षात साईं से समाधि तक अटल है। वे कहते हैं 26 साल पहले पिताजी की अंगुली पकड़कर आया था, तब से बाबा का हो गया हूं।

विवादों ने डाला असर

भक्तों के मुंह मोड़ लेने का एक बड़ा कारण वे विवाद भी हैं जो बाबा के अवसान से शुरू हुए थे और आज तक जिंदा हैं। उनकी बीमारी से लेकर निधन की तारीख तक पर सवाल खड़े हुए। बाबा के सेवक सत्यजीत, भतीजे रत्नाकर की भूमिकाओं पर सवाल उठने के बाद भक्तों को लगा कि आश्रम में गड़बड़ है। उसी दौरान करोड़ों रुपया यहां से वहां जाता हुआ पकड़ाया। आश्रम के प्रवक्ता प्रो.अनंत रामन ने स्वीकारा कि विवादों से आश्रम आने वाले भक्तों की संख्या में भारी कमी आई है। हालांकि वे इसे अस्थायी दौर बताते हैं। कहते हैं ट्रस्ट में भी अब सब ठीक चल रहा है।

खजाने में आवक कम

भक्तों की कमी से दान में भी कमी आई है। प्रो.रामन के मुताबिक-हां,ऐसा हुआ है। दान कितना कम हुआ इसका हिसाब देखा नहीं। नाम न छापने के आग्रह पर आश्रम के एक करीबी ने कहा- बाबा की कृपा से आर्थिक समृद्धि इतनी है कि दस-पंद्रह साल तक एक पैसा भी न आए तो सारे अस्पताल,कॉलेज,यूनिवर्सिटी से लेकर दूसरे सेवा कार्य चलते रहेंगे।

चमत्कार खत्म, सपने शुरू

सत्य साईं के जाते ही चमत्कारों की चर्चाओं पर विराम लग गया है। बाबा के द्वारा हवा से अंगूठी,चेन लाना या मुंह से शिवलिंग निकालना जैसे चमत्कार केवल संदर्भो में याद किए जाते हैं। लेकिन बाबा सपने में आकर दर्शन और मार्गदर्शन दे गए ये किस्से यहां अब भी खूब चल रहे हैं।

प्रतिमा की मुद्रा ही तय नहीं

प्रतिमा के रूप में साई कब विराजमान होंगे, यह अनिश्चित है। अभी तो यही तय नहीं हुआ है कि साईर्ं किस मुद्रा में (खड़े, या बैठे हुए )स्थापित हों। इसके लिए अखबारों में इश्तेहार देकर भक्तों,कलाकारों से ही सुझाव मांगे जा रहे हैं।

कारोबार भी ढहने लगा

सत्यसाईं के निधन से पुट्टपर्थी के रियल एस्टेट, होटल, ट्रेवल जैसे बड़े कारोबार से लेकर सायबर, टिकट बुकिंग, मनी एक्सचेंज, कपड़ा तक पर बुरा असर पड़ा है। गिफ्ट आर्टिकल की दुकान चलाने वाले मुस्तफा आरिफ के मुताबिक वे पहले दो से तीन हजार रु. रोज कमाई करते थे। लेकिन पिछले तीन महीनों में उन्होंने 1250 रु.कमाए हैं। पुट्टपर्थी में छोटे-बड़े करीब 50 होटल,इतने ही गेस्ट हाऊस भी हैं। सालाना कारोबार अरबों का। लेकिन पांच महीनों से हालत खराब है।

होटलों के हाल ये हैं कि तीस कमरों वाले इस होटल में बीते एक हफ्ते में ये संवाददाता इकलौता ग्राहक पहुंचा हैं। इस गांव में फ्लैट के भाव 4000-5000 रुपए स्क्वेयर फीट जा पहुंचे थे, जो शायद बंगलुरू के किसी पॉश एरिया से कमतर नहीं। अब इसकी आधी कीमत पर भी सौदे नहीं हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री का यह रौद्र रूप देखकर अवाक रह गए लोग

जयपुर.मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार सुबह प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में उद्योग व्यापार प्रकोष्ठ से जुड़े नेताओं और दूसरे नेताओं को बिजली के मुद्दे पर खरी-खरी सुनाई।

मुख्यमंत्री गांधी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद जैसे ही पीसीसी के हॉल में खड़े हुए उनके चारों ओर नेताओं-कार्यकर्ताओं की भीड़ लग गई।

इस पर मुख्यमंत्री ने कुछ नेताओं की ओर इशारा करते हुए कहा यहां पीसीसी में गांधी जयंती मनाने आते हो और बाहर जाकर सरकार की बुराई करते हो, बिजली नहीं आने के बयान देते हो। व्यापारियों पर लाठीचार्ज करने के बयान दे दिए, जबकि ऐसा कोई गंभीर मामला था ही नहीं।

मुख्यमंत्री इतने पर भी नहीं रुके। उन्होंने कहा, बाहर के प्रदेशों में जाकर देखो, बिजली की क्या स्थिति है? गुजरात जाकर देखो। जब जेनरेटर चलाओगे, तब पता लगेगा।

मुख्यमंत्री का यह रूप देखकर एकबारगी तो वहां मौजूद नेता और कार्यकर्ता अवाक रह गए। पीसीसी में दिनभर मुख्यमंत्री का नेताओं को इस अंदाज में खरी-खरी सुनाना चर्चा का विषय बना रहा।

उल्लेखनीय है कि शनिवार को ही कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डॉ.चंद्रभान ने प्रदेश में बिजली आपूर्ति की स्थिति की खराब बताते हुए सरकार से तुरंत व्यवस्था सुधारने की मांग की थी। अगले ही दिन पीसीसी में बिजली के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया पर राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गईं।

बचाव नींबू’ करेगा भूकंप और सुनामी से बचाव

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जापान भूकंप से सबक सीख गया है। इसी का नतीजा है टोक्यो में कॉस्मोपॉवर कंपनी की ओर से बनाई गई यह मशीन। इसे भूकंप, बाढ़, चक्रवाती तूफान और सुनामी आदि से बचाव के लिए बनाया गया है-नोहा (एक प्रकार का खोल) । इसे ‘बचाव नींबू’ नाम दिया गया है।


‘फाइबरग्लास रिइन्फोसर्ड प्लास्टिक’ से बना यह खोल पानी में तैर सकता है। इसमें 8 लोग बैठ सकते हैं। इसमें सहारा लेने के लिए एक पोल लगा है। एयर डक्ट सांस लेने में मदद करेंगे। इसकी कीमत करीब 20 हजार रुपए है। कंपनी ने 4 साल पहले इसे बनाना शुरू किया था। अब तक इसे 500 पीस बनाने का ऑर्डर मिल चुका है। आजकल इसे लेकर टेस्ट किए जा रहे हैं।

अब आपका कार्यक्रम देखने कौन आएगा सुनते ही सन्न रह गए मंत्री!

जोधपुर.उद्योग एवं जिले के प्रभारी मंत्री राजेंद्र पारीक को रविवार को मंडोर सेटेलाइट अस्पताल में उस समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं का विरोध झेलना पड़ा जब वे यहां निशुल्क दवा योजना के काउंटर का उद्घाटन करने के लिए फीता काटने जा रहे थे। पारीक जैसे ही फीता काटने के लिए आगे बढ़े, एकाएक युवक कांग्रेस के सचिव लक्ष्मणसिंह सोलंकी बीच में आ धमके।

सोलंकी ने उद्योग मंत्री से शिकायती लहजे में कहा कि मुख्यमंत्री के प्रयास से जो योजना शुरू होने जा रही है, उसके जिला स्तरीय कार्यक्रम में आम जनता व कार्यकर्ताओं को सूचना तक नहीं दी गई है। सोलंकी ने कहा कि आमजन तो दूर, कलेक्टर व सीएमएचओ से पूछें कि उन्होंने महापौर तक को आमंत्रित नहीं किया।

अब आपका यह कार्यक्रम देखने कौन आएगा। यह सुन प्रभारी मंत्री भी सन्न रहे गए। उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ, लेकिन वे कोई जवाब नहीं दे सके। हालांकि बाद में प्रभारी मंत्री ने निशुल्क दवा केंद्र का फीता काट दिया, लेकिन इस कार्यक्रम के लिए लगाए गए पांडाल में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को छोड़ कर कोई नजर नहीं आया।

कानून मंत्री ने माना, प्रणब-चिदंबरम में थे मतभेद

नई दिल्ली. कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने माना है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और गृहमंत्री पी. चिदंबरम के बीच 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर कामकाजी मतभेद थे। उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए ‘पहले आओ पहले पाओ’ नीति पर चिदंबरम का बचाव करते हुए कहा कि वे अकेले कैबिनेट के फैसले को नहीं बदल सकते थे।

खुर्शीद ने एक टीवी शो में कहा कि जब कैबिनेट ने नीलामी के खिलाफ एक बार फैसला कर लिया तो बाजार निर्धारण का क्या अलग तरीका हो सकता था। जब कैबिनेट के किसी फैसले के संदर्भ में बड़ी संख्या में मंत्रियों और एक मंत्री के बीच रजामंदी नहीं हो या दो मंत्रियों के बीच असहमति हो तो किसी एक बिंदु पर आपको हां कहना होगा।

उन्होंने भाजपा नेता अरुण जेटली के इस दावे का उपहास किया कि भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 13 (11)डी (2) के तहत चिदंबरम लाइसेंस आवंटी को अनुचित आर्थिक लाभ देने के दोषी हैं। उन्होंने कहा, ‘क्या आप विश्लेषण कर सकते हैं कि यह आपराधिक दोष कैसे हुआ। योजना आयोग के दस्तावेज के आधार पर हम वहां धन हासिल करने के लिए नहीं थे।

हम अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करना और लोगों को सस्ती दर पर टेलीफोन सुविधा उपलब्ध कराना चाहते थे।’ खुर्शीद ने कहा, ‘हमने जो किया, सोच समझ कर फैसला किया। राजा या चिदंबरम ने नहीं बल्कि कैबिनेट ने सोच समझ कर 2003 के कैबिनेट फैसले को जारी रखने का फैसला किया। वित्त मंत्रालय के नोट में निष्कर्षो में विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों का नजरिया परिलक्षित नहीं होता।’

जेपीसी की रिपोर्ट बजट सत्र से पहले

कन्नूर. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के प्रमुख पीसी चाको ने कहा कि वे अपनी रिपोर्ट संसद के बजट सत्र से पूर्व सरकार को सौंप देंगे। उन्होंने कहा कि जेपीसी ने वित्त सचिव से पूछताछ करने का निर्णय लिया है।

अभी तक मामले की सिर्फ २५ प्रतिशत ही जांच हो पाई है। प्रक्रिया इतनी लंबी है कि सरकार द्वारा निर्धारित समय के भीतर रिपोर्ट पेश कर पाना मुश्किल है। जेपीसी पूर्व संचार मंत्रियों, ट्राई अध्यक्ष और दूरसंचार सचिव को पूछताछ के लिए बुलाएगी। विशेष स्थितियों में केंद्रीय मंत्रियों से भी पूछताछ करने का अधिकार जेपीसी के पास है।

नहीं की इस्तीफे की पेशकश : प्रणब

कोलकातात्न वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने उन खबरों को खारिज कर दिया है कि 2जी मुद्दे पर अपने मंत्रालय के एक नोट पर उठे विवाद के बाद उन्होंने इस्तीफे की पेशकश की थी। उन्होंने भाजपा के नेता अरुण जेटली के बयान पर भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। जेटली ने विवाद के बाद मुखर्जी और गृहमंत्री पी. चिदंबरम के बीच सुलह को असहज बताया था। इस्तीफे की पेशकश पर उन्होंने शनिवार को यहां कहा कि यह सब बेकार की बात है। अगर आपके पास कोई गंभीर सवाल नहीं है तो रहने दीजिए।

काश अमेरिका भारतीय संस्क्रती समझ लेता तो इतना परेशान ना होता ......

जी हाँ दोस्तों अपना घर छोड़ कर दूसरों के घरों में झाँक झाँक कर वहां का सुक्ख चेन खत्म करने वाला विश्व का सबसे बड़ा आतंकवादी देश अमेरिका जो विश्व के खतरनाक हथियारों का सबसे बढा सोदागर मानवाधिकार हनन जा जीता जागता अपराधी है ...आज वोह भारतीय संस्क्रती के बारे में नहीं समझने के कारण टूट के कगार पर है विश्व के तेल के कुओं पर कब्जा कर विश्व का सबसे बढ़ा तेल लुटेरा अमेरिका आज भीक मांगने के कगार पर है एक छोटा सा देश अमेरिका और चाइना उसे धमकियां दे रहा है .....अमेरिका में ही अमेरिका के लोग जीते जी मर रहे हैं वोह सुकून की साँस भी नहीं ले पा रहे हैं हर पल हर क्षण आतंकवाद घटनाओं के डर से वोह बीमार रहने लगे है यह सब अमेरिका की गलत नीतियों के चलते हुआ है ....सब जानते है रावण का अंत एक दिन निश्चित होता है और अमेरिका विश्व में रावण का दुसरा पर्यायवाची है जिसे खत्म करने के लियें राम जरुर पैदा होता है और खुदा इश्वर के घर देर हैं अंधेर नहीं लाखों बेगुनाहों के हथियारे अमेरिका को एक दिन तो बर्बाद होना ही है और वोह बर्बाद होना शुरू हो गया है विश्व के सभी देशों को लुटने के बाद भी आज उसकी स्थिति कंगाल जेसी है तो जनाब अगर अमेरिका भारतीय संस्क्रती में रावण के अंत को समझ लेता तो शायद वोह विश्व का सबसे बढ़ा रावण नहीं बनता और फिर यूँ ही मरने के कगार पर नहीं होता लेकिन क्या करें अब तो उसकी मत निश्चित है ही .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

साथी शिवराम की स्मृति में ....

साथी शिवराम की स्मृति में .... अनवरत पर प्रकाशित भाई दिनेश जी द्विवेदी जी द्वारा लिखित स्म्रति लेख है जो उनकी बगेर इजाज़त मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित है ..भाई द्विवेदी जी जो खुद कोमरेड है भाई शिवराम के पुराने साथी रहे हैं और हर संघर्ष हर साहित्य आन्दोलन में कदम कदम पर उनके साथ रहे हैं .....आज उनकी याद में प्रेस क्लब कोटा में एक श्रद्धांजली कार्यक्रम भी रहा जहां स्वर्गीय शिवराम की अतीत स्म्रतियों में सभी लोग खो गये

ज फिर एक अक्टूबर का दिन है, मेरे लिए और श्रमजीवी वर्ग के बहुत से साथियों के लिए एक काला दिन। पिछले वर्ष इसी दिन ने प्रिय साथी, मार्गदर्शक, नाट्यकार, कवि, आलोचक, सिद्धान्तकार, संगठन कर्ता और नेता शिवराम को असमय छीन लिया। अगले दिन दो अक्टूबर को हमने उन्हें अंतिम विदाई दी। वे एक डिप्लोमा इंजिनियर थे, उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी/अधिकारी के रूप में नौकरी करते हुए उन्होंने अपना सामान्य जीवन जिया, पूरी उम्र में सेवा निवृत्त हुए। तीन पुत्रों और एक पुत्री का विवाह किया और सभी कुशल मंगल से हैं। सामान्य नागरिक इसी तरह जीते हुए उम्र के ढलान पर आराम से जीवन व्यतीत कर सकता है। लेकिन अपनी नौकरी और सामाजिक जीवन के सभी दायित्वों को पूरा करते हुए उन्होंने जो कुछ किया वह मुझे तो अद्वितीय लगता है।

न्हें यह समाज व्यवस्था अमानवीय लगती थी और उसे बदलना चाहते थे। प्रारंभ में वे विवेकानन्द से प्रभावित थे और समाज सेवा के कामों को हाथ में लेते थे। लेकिन उस काम से कुछ व्यक्तियों के जीवन में कुछ परिवर्तित करने का सुख तो मिलता था लेकिन अमानवीय समाज व्यवस्था को परिवर्तित करने का मार्ग वहाँ नहीं दीख पड़ता था। नौकरी के आरंभिक प्रशिक्षण के दौरान ही अपने एक साम्यवादी विचार रखने वाले सहकर्मी से बहस में उलझे और उसे कहा कि तुम्हारा यह मार्क्सवाद खोखला है। साथी ने जब कहा कि तुमने उसे जाने बिना ही खारिज कर दिया? तो वे उसे जानने के प्रयत्न में जुट गए। जब जाना तो फिर उसी साथी से फिर बहस में उलझ गए। अब वे उसे बता रहे थे कि मार्क्सवाद सही है लेकिन तुम उसे जैसे समझ रहे हो वह गलत है।

शिवराम ने जान लिया था कि समाज कैसे बदलता है? उस की दिशा क्या है? वे उस बदलाव की गति को तीव्र करना चाहते थे। परिवर्तन की शक्तियों को मजबूत बनाने में अपना योगदान करना चाहते थे। वे चाहते थे कि ऐसा परिवर्तन जिस से मनुष्य को मुक्ति प्राप्त हो शीघ्र हो। उन्हों ने देखा कि लोगों में जबर्दस्त सांस्कृतिक भूख है तो लोगों तक अपने विचारों को पहुँचाने के लिए उन्हों ने नाटकों का सहारा लिया। जीवन से तथ्य और कहानियाँ उठायीं नाटक रचे और सामान्य लोगों को साथ ले नाट्य प्रस्तुतियाँ करने लगे। कुछ ही प्रस्तुतियों ने अपना असर दिखाया। शोषण से त्रस्त खनिक उन से आ कर मिले पूछने लगे अन्याय से लड़ने के लिए एकता बनाने में मदद करो। जिस ने मार्ग दिखाया हो वह साथ चलने से मना कैसे कर सकता था? लेकिन यह उस के बस का था नहीं। उस ने अपने ही क्षेत्र में श्रमजीवियों के संगठन का काम करने वालों को तलाशा और उन्हें दिशा दी। खनिको के संघर्षशील संगठन ने आकार लिया। खान मालिक तुरंत ही जान गये कि यह नाटकों का असर है। शिकायत हुई और स्थानान्तरण झेलना पड़ा।

फूल जहाँ भी जाता है अपनी गंध बिखेरता जाता है। वे नये स्थान पर पहुँचे तो वहाँ भी कुछ ही दिनों में एक नाटक मंडली खड़ी की। उन के नाटकों के अभिनेता श्रमजीवी वर्ग से आते थे। हम यह भी कह सकते हैं कि वे श्रमजीवी वर्ग से लोगों को चुनते थे और उन्हें अभिनेता बना देते थे। यहीं उन से मेरी भेंट हुई। उन्हों ने मुझे तीन दिनों के एक कार्यक्रम की सूचना दी। बहुत बड़ा कार्यक्रम था। देश भर के अनेक उल्लेखनीय साहित्यकार उस में भाग लेने वाले थे। नाटक और कवि सम्मेलन भी होने थे। मैं दंग था कि मेरे गृह नगर में ऐसा कार्यक्रम हम पूरी ताकत लगा कर भी नहीं कर सकते थे उन्हें छह माह पहले नगर में स्थानांतरित हो कर आया एक डिप्लोमा इंजिनियर अपने दम पर कैसे आयोजित कर रहा है? उन्हों ने मुझे नाटकों की रिहर्सल में बुलाया। कौतुहल का मारा मैं पहुँचा तो एक भूमिका मेरे मत्थे भी मढ़ दी गई। कार्यक्रम बहुत सफल रहा। दो दिन जो वैचारिक गोष्ठियाँ हुईं। उन से बहुत कुछ सीखने को मिला और बहुत से नए प्रश्न खड़े हो गए। कार्यक्रम ने व्यवस्था और तत्कालीन सरकारी निजाम पर बहुत सवाल खड़े किए थे। अंतिम दिन रात्रि को ग्यारह बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ। अगली सुबह जब मैं उठा तो पता लगा देश में आपातकाल लागू हो चुका है। विपक्षी दलों के नेताओं की बड़ी संख्या में गिरफ्तारियाँ हुई हैं, बहुत से सांस्कृतिक कर्मी भी गिरफ्तार हुए हैं। मुझे चिंता लगी कि इन कार्यक्रमों में सम्मिलित आमंत्रित लोगों में से कुछ तो अवश्य जेल पहुँच गए होंगे। पता किया तो जाना कि सब सुरक्षित नगर से निकल गए हैं। नगर के कुछ विपक्षी नेता अवश्य गिरफ्तार किए गए थे। लेकिन उस कार्यक्रम से संबंधित सभी लोग सुरक्षित थे।

पातकाल में भी शिवराम के नाटक नहीं रुके। वे गाँव-गाँव चौपालों पर नाटक, कविसम्मेलन और गोष्ठियाँ करते रहे। श्रमजीवी वर्ग की एकता और संघर्ष की चेतना की मशाल जलती रही और नयी मशालों को चेताती रही। पाँच वर्ष बाद फिर स्थानान्तरण हुआ। अब वे कोटा जिला मुख्यालय पर थे और मजदूरों, किसानों, विद्यार्थियों, नौजवानों और सांस्कृतिक कर्मियों के संपर्क में थे। सभी क्षेत्रों में उन्हों ने संगठन की चेतना की मशाल जलाई और जलाए ऱखी। जहाँ वे गए वहाँ काम किया और सभी के प्रिय रहे। उन्हें हर श्रमजीवी से अगाध प्रेम था, उन में से जो भी उन के संपर्क में आया उन से प्रेम करने लगा। वे प्रेम की प्रतिमूर्ति थे। उन के काम का विस्तार हुआ, इतना कि देश भर के लोग उन से आशाएँ रखने लगे। सार्वजनिक क्षेत्र से सेवानिवृत्त हुए तो बहुत काम करने का संकल्प था। वे तुरंत जुट गए। वे अपने समय के एक-एक क्षण का उपयोग करते थे। लेकिन जीवन ने असमय धोखा दिया। वह रूठ गया। वे चले गए, लेकिन जो भी उन के संपर्क में एक बार भी आया उस के अंदर वे सदैव जीवित रहेंगे।

शिवराम के बारे में लिखना बहुत कठिन है, मैं लिखता ही रहूँ तो वह लेखन कभी विराम नहीं ले सकेगा। हम एक और दो अक्टूबर के इन दो काले दिनों को उन की स्मृतियों और प्रेरणा से उजला बनाना चाहते हैं। इस के लिए इस वर्ष उन की बरसी पर कोटा में दो दिनों का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। 1 अक्टूबर 2011 को भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड), राजस्थान ट्रेड यूनियन केन्द्र और अखिल भारतीय जनवादी युवा मोर्चा की ओर से दो सत्रों का कार्यक्रम है। पहले सत्र में 'सर्वहारा वर्ग के निराले साथी शिवराम' विषय से एक श्रद्धांजलि सभा दोपहर एक बजे होगी। तीन बजे उन का सुप्रसिद्ध नाटक "जनता पागल हो गई है" का मंचन 'अभिव्यक्ति नाट्य और कला मंच' के कलाकार प्रस्तुत करेंगे। दूसरे सत्र में 'साथी शिवराम के संकल्पों का भारत' विषय पर संगोष्ठी होगी। 2 अक्टूबर को 'विकल्प' जनसांस्कृतिक मंच, श्रमजीवी विचार मंच और अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच द्वारा दो गोष्ठियाँ आयोजित कर रहे हैं। पहली गोष्ठी का विषय "जन-संस्कृति के युगान्तरकारी सर्जक : साथी शिवराम" तथा दूसरी गोष्ठी का विषय "अभावों से जूझते जन-गण एवं लेखकों कलाकारों की भूमिका" है। दोनों दिनों के कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में श्रमजीवी, लेखक और कलाकार भाग लेंगे।

'जनता पागल हो गई है' नाटक की एक चौराहे पर प्रस्तुति

पहियों पर दौड़ती सरकार



kota news


कोटा। लगता है सूबे की 'हुकूमत' पहियों पर ही चल रही है। जी हां, पहियों पर..., तभी तो हमारे वजीर-ए-आला और उनके मंत्रिमण्डल के तमाम वजीर अपनी सरकारी कारों से हर दिन करीब साढ़े पांच हजार किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं। यानी मंत्रिमण्डल तकरीबन सौ घंटे रोजाना सड़कों पर बिता रहा है।

अब भले ही यह तर्क दें कि वे जनता के बीच जा रहे हैं, लेकिन हकीकत जगजाहिर है। इनसे एक अदद मुलाकात के लिए 'राजधानी' के चक्कर काटते-काटते आमजन 'चक्करघिन्नी' हो जाता है। यह तो वह सफर है, जो सिर्फ सड़क पर किया जा रहा है। हवाई व रेलपथ पर भी 'सरकार' जमकर सफर कर रही है।

गुढ़ा अव्वल, ओला पीछे
उक्त अवधि में आवंटित वाहनों के चलन के हिसाब से राज्यमंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा पहले पायदान पर है। जबकि बृजेन्द्र सिंह ओला का नम्बर अंत में आता है। गुढ़ा के वाहन तो इस अवधि में 2.96 लाख किलोमीटर से ज्यादा दौड़े। जबकि आपदा प्रबंधन देखने वाले राज्यमंत्री ओला के वाहनों ने सिर्फ 96 हजार 741 किलोमीटर सफर किया। मोटर गैराज विभाग के चालक इस बात को कबूलते हैं कि मंत्री इतनी यात्रा नहीं कर पाते, बल्कि उनके वाहन इतनी यात्रा कर रहे हैं। कैसे कर रहे हैं? यह किसी से छुपा नहीं है।

संभव नहीं इतना सफर
हाल ही में राज्य विधानसभा में मोटर गैराज विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 2009 से जुलाई 2011 तक की अवधि में मुख्यमंत्री सहित राज्य मंत्रिमण्डल के 28 सदस्यों की 99 कारों ने 50 लाख 31 हजार 309 किलोमीटर यात्रा की। इस हिसाब से पूरे ढाई साल तक प्रत्येक मंत्री ने रोजाना औसतन करीब दो सौ किलोमीटर यात्रा की। वाहनों की तकनीकी जानकारी रखते वालों की मानें तो ऎसा किसी भी सूरत में संभव नहीं है कि कोई लगातार ढाई साल तक दो सौ किलोमीटर यात्रा कर ले। वीआईपी अंदाज में रहने वाले मंत्रियों के लिए तो क्या, यह तो पेशेवर चालकों के लिए भी संभव नहीं है।

कांग्रेस के बाद अब भाजपा में दिखा अंतर्कलह

कल तक कांग्रेस में अंतर्कलह होने की बात करने वाली खुद भाजपा में शुक्रवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के शुरू होने से पहले ही अंतर्कलह सामने आने लगा। इस अंतर्कलह में मुख्य रूप से नरेन्द्र मोदी का बैठक में शामिल न होना पार्टी से लेकर मीडिया में भी चर्चा का विषय बना रहा। करीब-करीब सभी नेताओं ने एक ही बात कही कि मोदी ने नवरात्र का नौ दिन उपवास रखा है इस कारण वे पार्टी की बैठक में शामिल नहीं हो रहे है।लेकिन बात यही नहीं ख़त्म हो जाती है। सूत्रों के मुताबिक मोदी आडवाणी के जन चेतना यात्रा निकाले जाने के खिलाफ हैं और उन्होंने आडवाणी से इस बारे में अपनी नारजगी भी जता दी है। यही कारण है कि आडवाणी अब रथ यात्रा की शुरुआत गुजरात से करने के बजाए बिहार से कर रहे है। सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंख और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी पार्टी की बैठक में शामिल नहीं हुए। इन दोनों का नहीं आना उनकी नाराजगी को साफ़ दिखता है। भाजपा में प्रधानमंत्री पद को लेकर भी खींचतान चल रही है। अब भाजपा लाख कहे पर कांग्रेस की ही तरह भाजपा में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

अंदरूनी लड़ाई और सरकार पर संकट देख सोनिया ने सम्भाली कमान



नई दिल्ली.कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ऑपरेशन कराने के दो महीने बाद भी स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं,लेकिन उन्होंने कई संकटों को सुलझाने की जिम्मेदारी सम्भाल ली है। इनमें अंदरूनी लड़ाई और सरकार का संकट शामिल है। गांधी सामने खड़ी चुनावी चुनौतियों के लिए पार्टी में फिर से जान फूंकने की भी कोशिश कर रही है।

गांधी ने अपने करीबी सहयोगियों को हिदायत दे रखी है कि वे 2जी स्पेक्ट्रम और अन्य घोटाले से सम्बंधित अदालती घटनाक्रमों से उन्हें बराबर अवगत कराते रहें।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा,"दशहरे की छुट्टियों के बाद के कुछ सप्ताह महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय और अन्य अदालतें केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के अन्य नेताओं के खिलाफ मामलों की सुनवाई करेंगी। समझा जाता है कि विपरीत फैसले आने की सूरत में राजनीतिक संकट पैदा होने की स्थिति से निपटने के लिए सोनियाजी ने वैकल्पिक योजनाएं बना रखी है।"

उक्त नेता ने कहा,"अदालती फैसलों और जांच एजेंसियों की पड़तालों के कारण हाल में उठे राजनीतिक तूफानों के बाद पार्टी नेतृत्व बहुत सजग है। जैसे कि ए.राजा और दयानिधि मारन जैसे मंत्रियों के इस्तीफे या फिर सुरेश कलमाड़ी, अमर सिंह और अन्य की गिरफ्तारियां।"

एक अन्य कांग्रेसी नेता के अनुसार,सोनिया के भीतर नई दृढ़ता देखने को मिली है। इस नेता ने पिछले सप्ताह गांधी से मुलाकात की थी।

नेता ने कहा,"वह अभी भी स्थिर व शांत हैं,लेकिन बीमारी के बाद वह अधिक दृढ़ और निर्णायक लगती हैं। यह बात (प्रणब) मुखर्जी और चिदम्बरम के बीच सुलह कराने के उनके दृढ़ कदम में भी दिखाई दी।"

सोनिया ने पार्टी का आंशिक कामकाज ऐसे समय में सम्भाला है,जब विपक्ष ने सरकार पर अपने हमले तेज कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आरोप लगाया है कि राजनीति को अस्थिर करने की ताकतें सक्रिय हो गई हैं। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा है कि सरकार अपने विरोधाभासों के बोझ से ही ध्वस्त हो जाएगी।

भ्रष्टाचार से ज़्याद सांप्रदायिकता से खतरा, टीम अन्ना ने जारी की आचार संहिता



नई दिल्ली. टीम अन्ना ने पहली बार सांप्रदायिकता के खिलाफ आधिकारिक तौर पर मोर्चा खोलते हुए इसे भ्रष्टाचार से बड़ा खतरा बताया है। टीम अन्ना की अगुवाई वाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) ने अपने सदस्यों के लिए एक आचार संहिता की घोषणा की है, जिसमें सांप्रदायिकता को भ्रष्टाचार से ज़्यादा खतरनाक बताया गया है।

जानकार मानते हैं कि इस आचार संहिता के जरिए भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना की मुहिम ने सभी पार्टियों से एकसमान दूरी रखने की कोशिश की है। आईएसी ने अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता की घोषणा करते हुए कहा है कि आंदोलन पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। आचार संहिता के मुताबिक, 'सांप्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ी समस्या है। इस देश की समस्याएं तभी खत्म हो सकती हैं, जब सभी धर्मों के लोग एक साथ खड़े हों।' हालांकि, अन्ना हजारे और उनके सहयोगी हमेशा यह कहते रहे हैं कि उनका आंदोलन पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष और गैरराजनैतिक है। लेकिन पहली बार आईएसी ने आधिकारिक तौर पर सांप्रदायिकता की आलोचना की है।

अगस्त में गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता के अनशन के दौरन कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक पार्टियों ने आरोप लगाया था कि आंदोलन के पीछे बीजेपी का हाथ है। टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण ने आचार संहिता पर कहा, 'हमने हमेशा सांप्रदायिकता को बांटने वाला माना है। उन्होंने कहा कि धर्म या जाति के आधार पर किसी तरह का बंटवारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करेगा।' टीम के एक और सदस्य मनीष सिसोदिया का कहना है कि हजारे का आंदोलन हमेशा ही धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों पर आधारित रहा है, लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों ने जानबूझकर आरोप लगाने की कोशिश की है। कुछ दिनों पहले टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सद्भावना उपवास पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि इस आयोजन पर खर्च हुआ पैसा कहां से आया था?

भ्रष्टाचार, महंगाई, आतंकवाद से ऐसे निपटते महात्मा गांधी



भ्रष्टाचार, महंगाई, आतंकवाद... जैसे आज के मुद्दों का महात्मा गांधी के सिद्धांतों में क्या कोई हल है? इसे समझा रहे हैं दो प्रमुख गांधीवादी, दिल्ली से स्वराज पीठ के संस्थापक राजीव वोरा और मुंबई से बापू के पड़पोते व महात्मा गांधी फाउंडेशन के अध्यक्ष तुषार गांधी। मकसद है कि नई पीढ़ी समझ सके बापू के दर्शन को...

2जी घोटाला/भ्रष्‍टाचार
शीर्ष नेतृत्व ध्यान रखे वह चुन किसे रहा है?
आजादी के बाद अकेला महाघोटाला यानी 2जी जिसमें आए दिन हो रहे हैं चौंकाने वाले खुलासे। पूर्व केंद्रीय मंत्री, सांसद, अफसरों और उद्योगपतियों समेत नौ लोग तिहाड़ जेल में हैं। कई शक के दायरे में। मामला सीबीआई की जांच और अदालत में है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए गांधीजी के दो सिद्धांत थे-पहला, राजनीति का शीर्ष नेतृत्व देख परखकर नेताओं को आगे लाए, दूसरा-नेता खुद भी ध्यान रखें कि जनता की निगाह से न गिरें।

1937 का वाकया है। नेहरूजी की मर्जी से कुछ लोग पार्टी में आ गए। उनकी छवि अच्छी नहीं थी। छह राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनीं तो भ्रष्टाचार की शिकायतें आईं। बापू ने पंडितजी को चिट्ठी लिखकर कहा कि ये कैसे लोगों को कांग्रेस में ला रहे हो? ये लोग राजनीति में भ्रष्टाचार की विषबेल साबित होंगे। बापू का मानना था कि शीर्ष नेतृत्व का जिम्मा बड़ा है।

उन्हें देखना चाहिए कि वे किसे आगे ला रहे हैं। श्री वोरा बताते हैं, ‘वे सब कुछ बड़े नेताओं पर ही छोडऩा नहीं चाहते थे। वे चाहते थे कि नेता स्वयं अपनी छवि का ध्यान रखें। बापू आजाद भारत में बिल्कुल अलग राजनीतिक ढांचे के हिमायती थे। उनका विचार था कि सबसे पहले कांग्रेस को खत्म करो। अलग राजनीतिक ढांचा खड़ा हो, जिसमें पंचायत से लेकर संसद तक श्रेष्ठतम नुमाइंदे चुनकर जाएं।’


पेट्रोल के बढ़ते दाम/महंगाई
किसी पर आश्रित न रहें, खुद ईंधन बचाएं
बढ़ते-बढ़ते पेट्रोल के दाम 70 रुपए लीटर पार हुए। डेढ़ साल में नौ बार कीमतों में इजाफा हुआ। जरूरी चीजें भी महंगी हुईं। कीमतों पर लगाम नहीं। आम आदमी का जीना मुहाल। देखें, महंगाई के मसले पर बापू क्या सोचते थे? वे खर्चों में किफायत बरतने और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के महारती थे। यही उनका दर्शन था।

1947 का खाद्यान्न और फल-सब्जियों का संकट इसकी मिसाल है। तब इन चीजों के दाम बढ़ गए थे। बापू ने जोरदार अपील की-‘जिसके घर में थोड़ी सी भी खाली जमीन हो, वह घास, फूल, पत्ती की बजाए साग-भाजी और फल उगाए। अपने लिए जरूरी उपज खुद ले।’ उन्होंने दिल्ली के बिरला हाउस के पीछे गार्डन को खेत में तब्दील कर दिया। नेहरूजी ने भी प्रधानमंत्री आवास में यही किया।

दिल्ली के सरकारी बंगलों में फसलें हरियाने लगीं। बापू परंपरागत साधनों के पक्षधर यूं ही नहीं थे। उनकी फिलासफी के मुताबिक कुछ उपायों पर अमल किया जा सकता है। सौर व पवन ऊर्जा, गोबर गैस, बायोडीजल जैसे ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दें। सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करें। जहां जरूरी हो, साइकलों का इस्तेमाल करें। जहां तक संभव हो, जरूरत की चीजों पर स्थानीय आत्मनिर्भरता हो ताकि परिवहन का बोझ कम हो।

दिल्‍ली हाईकोर्ट ब्‍लास्‍ट/आतंकवाद
दुश्मन को बताएं अहिंसा व सहिष्णुता की भी हद होती है
दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर दो बार विस्फोट। मुंबई समेत कई शहरों में आतंकी हमलों का लंबा सिलसिला। अनगिनत मौतें। संसद व मुंबई हमले गुनहगार अफजल गुरु और आमिर अजमल कसाब फांसी की सजा के बावजूद जेलों में महफूज। हर हमले के बाद सरकार के एक जैसे बयान। कोई कार्रवाई नहीं। अहिंसा के पुजारी बापू इस मसले पर क्या सोचते थे?

उनके तीन सिद्धांत थे-एक, हिंसा के हिमायतियों से संवाद करें, उन्हें समझाकर सही रास्ते पर लाएं। दूसरे, दुश्मन को बताएं कि हमारी अहिंसा और सहिष्णुता की भी सीमा है। तीसरा-जनता का भरोसा हर हाल में कायम रखें। कलकत्ता को याद कीजिए। अगस्त-सितंबर 1947 की बात है। शहर हिंसा की आग में झुलस रहा था। चार दिन में दस हजार लोग मारे गए। बापू ने सरकारी हिफाजत में दूर बैठकर हमदर्दी के बयान जारी नहीं किए। जान की परवाह न कर निहत्थे ही दंगाग्रस्त इलाके में आम लोगों के बीच जा डटे।

तब दिल्ली में स्वाधीनता समारोह की धूम थी। नेहरू और पटेल का एक दूत गांधीजी के पास चिट्ठी लेकर आया। दोनों नेताओं ने बापू को आजादी के जलसे में आशीर्वाद के लिए बुलाया था। बापू नहीं माने। वे तब तक वहां से हिले नहीं, जब तक उग्र पक्षों ने उनके सामने शांति से रहने की सौगंध नहीं ली। बंटवारे के वक्त सिंध और पंजाब के परेशानहाल विस्थापितों ने दिल्ली आकर बापू को सरहद पार अपनी बरबादी की दास्तानें सुनाईं। अङ्क्षहंसा के पुजारी बापू ने तब प्रार्थना सभाओं में पाकिस्तान को स त लहजे में चेताया। कहा कि अहिंसा और सहिष्णुता की हद होती है। इसका ध्यान रखा जाए। राजीव वोरा कहते हैं कि अहिंसा और दया की नीति उनकी कमजोरी नहीं, ताकत थी।

आरक्षण/सामाजिक समता
सिर्फ नौकरियों में आरक्षण समस्या का स्थाई हल नहीं
उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारी है। अचानक मुख्‍यमंत्री मायावती ने मुसलमानों को आरक्षण का लाभ देने की मांग की है। आरक्षण के दायरे में आने के लिए राजस्थान में गुर्जर और जाटों के उग्र आंदोलन हो चुके हैं। क्या इस विषय में बापू के कोई विचार थे, जो आज प्रासंगिक हों? उनके तीन विचार एकदम साफ थे-दलितों का उद्धार जरूरी है, महज फायदे के लिए कोई दलित न कहलाए और आरक्षण तो समस्या का स्थाई हल है ही नहीं।

आरक्षण पर 1932 में कानपुर के स्थानीय चुनाव बापू के दर्शन का बढिय़ा उदाहरण हैं। इसमें सारे सवर्ण उ मीदवार जीते। एक भी दलित नहीं जीत पाया। तब गांधीजी ने स्वामी श्रद्धानंद को लिखे पत्र में कहा कि उन्हें अब डॉ. आंबेडकर की बात का वजन समझ में आ रहा है। सवर्ण तो दलितों का हक देना ही नहीं चाहते। इसलिए आरक्षण जरूरी है। लेकिन यह स्थाई हल नहीं है।

दूसरा उदाहरण 1947 का है। एक ईसाई दलित विद्यार्थी दलित छात्रावास में फीस माफी चाहता था। हरिजन सेवक संघ में सवाल उठा कि फीस माफ होनी चाहिए या नहीं। बापू ने साफ कहा कि धर्म परिवर्तन के बाद यह फायदा नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि दलित के दायरे से बाहर आने के लिए ही तो धर्म बदला। इसलिए दोहरा फायदा गलत है।

बापू मानते थे कि दलितों को हमेशा दलित बनाए रखना ठीक नहीं है। तुषार गांधी बताते हैं, ‘बापू का दर्शन था कि दलितों को आर्थिक बराबरी पर लाना सिर्फ सरकारों के बूते की बात नहीं है। न ही सबको नौकरियां देना संभव है। इसलिए गांवों में ही रोजगार, स्कूल व अस्पताल दें। स्थानीय शिल्प और कारीगरी को बेहतर दाम और बाजार मुहैया कराएं। छोटे रोजगार के लिए आसान कर्ज दें। इससे स्थाई अवसर मुमकिन होंगे।’



विदेशी निवेश
विदेशी मदद भी गुलामी है खुद को मजबूत बनाओ
सरकार मल्टीनेशनल कंपनियों को रिटेल मार्केट में 51 फीसदी विदेशी निवेश की तैयारी में है। ऐसा हुआ तो भारत के छोटे कारोबारियों के धंधे चौपट होने की कगार पर हैं। देश के कई कारोबारी संगठन इसके विरोध में हैं। मामला विदेशी निवेश का है और बापू तो हर विदेशी चीज के खुलकर खिलाफ ही थे। उनका एक ही दृढ़ विचार था-आत्मनिर्भरता। वे हर तरह की निर्भरता को गुलामी ही मानते थे।

मेनचेस्टर में बने कपड़ों की होली जलाने वाले बापू तो कभी यह बर्दाश्त कर ही नहीं सकते थे। जब उन्होंने विदेशी कपड़ों का विरोध किया तो चरखे की तलाश देश भर में की। लेकिन मनचाहा चरखा कहीं मिला नहीं। 1917 में भड़ौच की शिक्षा परिषद में उनकी मुलाकात एक उत्साही कार्यकर्ता गंगाबहन से हुई। उन्होंने गंगाबहन को चरखे की खोज में लगाया, जिसे बीजापुर में बड़े और भारीभरकम चरखे मिले। बापू ने साबरमती आश्रम में बीजापुर के चरखे जुटाए, उड़ीसा से कारीगर बुलाए।

पांच साल की तकनीकी कोशिशों से पोर्टेबल चरखे तैयार करा दिए। वे खुद चरखे पर काती हुई खादी ही धारण करते। कहते थे, जब तक हम अपने हाथ से कातेंगे नहीं, हमारी गुलामी बनी रहेगी। कांग्रेस के हर अधिवेशन में बापू ने ग्रामोद्योग पर आधारित प्रदर्शनियां लगानी शुरू कीं। उनका संदेश था-आत्मनिर्भर बनो, गुलाम नहीं।

विदेशी मदद भी गुलामी ही है। गांधी दर्शन के मुताबिक ही कुछ कारोबारी संगठन विरोध के साथ विकल्प भी खड़े कर रहे हैं। जैसे-छोटे कारोबारियों को सक्षम, उनकी सेवाओं को आधुनिक व आकर्षक बनाने की कोशिश। उपभोक्ताओं से स मानजनक व्यवहार के लिए प्रशिक्षण, प्रोडक्ट्स की रेंज की जानकारी देना।

आतंक के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका का साथ नहीं देगा पाकिस्तान, पास हुआ प्रस्ताव


इस्लामाबाद. पाकिस्तान अब आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई में उसका साथ नहीं देगा। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक हाल ही में सर्वदलीय बैठक में इस बाबत एक प्रस्ताव पारित हुआ है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने दस साल तक अपनी ज़मीन पर अमेरिका को लड़ाई लड़ने दी है। लेकिन अब अमेरिका को यह लड़ाई अपने दम पर लड़नी होगी। इस प्रस्ताव के पास होने की पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार हामिद मीर ने पुष्टि की है।
माना जा रहा इस प्रस्ताव के पास होने के बाद अब पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रिश्ते खत्म हो सकते हैं।

दूसरी तरफ, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की मौत को लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ठन गई है। अफगानिस्तान ने सीधे तौर पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस एजेंसी की रब्बानी की मौत में अहम भूमिका रही है।

अफगानिस्तान के गृह मंत्री ने इस बाबत सुबूत अफगानी संसद में पेश करते हुए जानकारी दी है कि इस हत्या की साजिश रचने वाले हमीदुल्ला अखोंडजादा को गिरफ्तार कर लिया गया है। अफगानी खुफिया एजेंसियों का कहना है कि उन्होंने रब्बानी की मौत की साजिश पाकिस्तानी जमीन पर रची गई है और इससे जुड़े सुबूत पाकिस्तान को सौंप दिए गए हैं। लेकिन पाकिस्तान ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी ने इन आरोपों के सामने आने के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई से फोन पर बात की। मुल्तान में एक जनसभा में गिलानी ने इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा कि रब्बानी की हत्या के मामले में करजई को पाकिस्तान पर शक नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम अफगानिस्तान से हर मुद्दे पर सहयोग करेंगे।

गिलानी ने कहा, 'हामिद करजई को अगर किसी तरह की गलतफहमी है तो उन्हें हमसे बात करनी चाहिए। लेकिन हम उन्हें अपने अंदरूनी मसलों पर दखल नहीं देने देंगे। कुछ लोग करजई को भ्रमित कर रहे हैं। दुनिया जान ले कि पाकिस्तान अपने मुल्क की सुरक्षा के मामले में पूरी तरह एकजुट और अपनी रक्षा करने में सक्षम है।'

अमेरिका में बगावत? सड़कों पर उतरी जनता, 700 गिरफ्तार | Email Print Comment



न्यूयॉर्क. आर्थिक संकटों का सामना कर रहे अमेरिका में जनता बगावत पर उतर आई है। कॉरपोरेट जगत में फैले लालच और भ्रष्टाचार, ग्लोबल वॉर्मिंग और सामाजिक गैरबराबरी के खिलाफ सैकड़ों लोग न्यूयॉर्क की सड़कों पर उतर चुके हैं। गुस्साई जनता ने ब्रुकलीन ब्रिज पर एक तरफ के ट्रैफिक को रोक दिया। इस बीच पुलिस से जनता की झड़प भी हुई। विरोध कर रहे लोग सड़कों पर उतर गए, जिससे पुल पर ट्रैफिक ठप हो गया। पुलिस ने 700 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिसकर्मियों ने ब्रुकलिन पुल को यातायात के खोल दिया।

ऑकुपाई वॉल स्ट्रीट मूवमेंट (वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो अभियान) नाम का यह प्रदर्शन न्यूयॉर्क में पिछले एक हफ्ते से हो रहा है। चश्मदीदों का कहना है कि ब्रुकलिन ब्रिज पर पुलिसकर्मियों ने जब प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करना शुरू किया तो कुछ प्रदर्शनकारियों ने इसका विरोध किया, जिससे वहां अफरातफरी मच गई। विरोध प्रदर्शन मार्च मैनहेटन के पास से शुरू होकर ब्रुकलिन ब्रिज पर पहुंचा था।

शनिवार को गुस्साए लोग जब ब्रुकलिन ब्रिज पर पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें फुटपाथ पर चलने को कहा। लेकिन प्रदर्शनकारी सड़क पर उतर गए जबकि कुछ सड़क पर ही बैठ गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को फुटपाथ पर ही रहने की कई बार हिदायत दी थी। न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट के प्रवक्ता पॉल ब्राउन ने बताया कि चेतावनी के बावजूद वे सड़क पर उतरे, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार किया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनका लक्ष्य करीब २० हजार लोगों को इस आंदोलन में शामिल करके वॉल स्ट्रीट पर बिस्तर, किचन और बैरीकेड लगाकर कॉरपोरेट जगत में फैले भ्रष्टाचार और लालच का विरोध करना है।
विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि वे वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करना चाहते हैं। लेकिन पुलिस इन प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निपटने से भी गुरेज नहीं कर रही है। एक वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि न्यूयॉर्क पुलिस का एक जवान एक प्रदर्शनकारी को घूंसा मारकर ज़मीन पर गिरा देता है और उसे पकड़कर गाड़ी में बैठा देता है। गौरतलब है कि वॉल स्ट्रीट न्यूयॉर्क का कारोबारी इलाका है। यहां शेयर बाज़ार समेत कई नामी कंपनियों के दफ्तर हैं।

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