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26 अक्तूबर 2011

पूजन विधि: इस शुभ मुहूर्त में करें गोवर्धन पूजा

27 अक्टूबर, गुरुवार को गोवर्धन पूजा का पर्व है। इस दिन महिलाएं अपने घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा करती हैं। पूजन विधि इस प्रकार है-
पूजन विधि
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से गोवर्धन बनाएं। गोबर का अन्नकूट बनाकर उसके समीप विराजमान श्रीकृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों, इंद्र, वरुण, अग्नि और बलि का पूजन षोडशोपचार द्वारा करें। विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाकर पहाड़ की आकृति तैयार करें और उनके मध्य श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। पूजन के पश्चात कथा सुनें। प्रसाद रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। फिर पुरोहित को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा से प्रसन्न करें।
शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त गुरुवार सुबह 11: 36 से 12: 10 तक है। इसके अलावा चौघडिय़ा देखकर भी पूजन किया जा सकता है।

27 को करें गोवर्धन पूजा, पाएं ऐश्वर्य व सुख


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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 27 अक्टूबर, गुरुवार को है। आईए जानते हैं गोवर्धन पूजा का माहात्म्य-
हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश गो यानी पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। उल्लेखनीय है कि ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है।
बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गौओं का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फलप्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।

स्वयं श्रीराम ने की थी इस मंदिर की प्रतिष्ठा


कलयुग में अगर कोई हमें बचा सकता है तो वह है भगवान राम का नाम। यह बात अनेक धर्म ग्रंथों में कही गई है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। भगवान राम के समय के कुछ प्रमाण आज भी मौजूद हैं, जो लोगों का आस्था का केंद्र है। ऐसा ही एक मंदिर है उज्जैन में स्थित चिंतामन गणेश का। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी।

धार्मिक मान्यता- कहते हैं कि यह मंदिर रामायण काल में राम वनवास के समय का है। जब राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तभी सीता को बड़ी जोरों की प्यास लगी। राम ने लक्ष्मण से पानी लाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। पहली बार लक्ष्मण द्वारा किसी काम को मना करने से राम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने ध्यान द्वारा समझ लिया कि यह सब यहां की दोष सहित धरती का कमाल है। तब उन्होंने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां गणपति मंदिर की स्थापना की जिसके प्रभाव से बाद में लक्ष्मण ने यहां एक बावड़ी बनाई जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं। यह बावड़ी आज भी यहां देखी जा सकती है।

मंदिर की विशेषता- मंदिर में एक साथ तीन गणपति प्रतिष्ठित हैं। कहा जाता है कि इनकी सच्ची प्रार्थना करने से ये व्यक्ति की सारी चिंताएं हर लेते हैं। बुधवार को यहां श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। चैत्र मास के प्रत्येक बुधवार को यहां जत्रा निकलती है।

कैसे पहुचें- भोपाल-अहमदाबाद रेलवे लाइन पर स्थित उज्जैन एक धार्मिक नगरी है। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर से उज्जैन सिर्फ 55 किलोमीटर दूर है। प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से उज्जैन के लिए बसें आसानी से मिल जाती हैं।

अपना फर्ज कुछ इस तरह से निभाएं...


हम अक्सर इस उलझन में रहते हैं कि हमारा कर्तव्य क्या है। जो किताबी बातें हैं वो कर्तव्य है या जिन परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं, उसमें हमारी भूमिका कर्तव्य है। अधिकतर बार ऐसा होता है कि यह समझने में ही सारा वक्त गुजर जाता है कि हम करें क्या।

क्या करें, क्या न करेें, क्या सही है और क्या गलत है, किस कार्य को करने से धर्म की, नैतिकता की और इंसानियत की मयार्दा का उल्लंघन होता है। यह जानने में कई बार बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि कई बार अपने लाभ या भलाई को ध्यान में रखकर किया गया कार्य धर्म की नजरों में गलत या अनैतिक साबित होता जाता है।

वो कार्य जिसमें स्वयं की और दूसरों की सच्ची भलाई हो वही व्यक्ति का कर्तव्य या फर्ज है। कर्तव्य हर व्यक्ति का उसकी उम्र, स्थिति क्षमता के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। कोई एक कार्य पूरी तरह से ऐसा नहीं है जो हर समय हर किसी के लिये कर्तव्य हो। विद्यार्थी के लिये पढ़ाई-लिखाई, किसान के लिये खेती तो सैनिक के लिये सीमाओं की रक्षा करना ही उसका पहला कर्तव्य है। इन तीनों का कर्तव्य अलग होकर भी धर्म है।

आइए भगवान कृष्ण के जीवन में देखते हैं कर्तव्य के सही अर्थ को। वे सर्वशक्तिमान थे, सर्व ज्ञाता थे। उन्होंने धरती पर कहीं भी हो रहे अनैतिक कार्य, अत्याचार और भ्रष्टाचार को मिटाना अपना कर्तव्य समझा। वे इसके लिए समर्थ भी थे। राक्षसों का वध, द्वारिका और इंद्रप्रस्थ जैसे नगरों की स्थापना, महाभारत युद्ध, नरकासुर से लेकर जरासंघ तक असुरों का वध, ऐसे सारे मुश्किल भरे काम श्रीकृष्ण ही कर सकते थे। वे इसके लिए सक्षम भी थे। इसलिए उन्होंने इसकी जिम्मेदारी भी ली।

हमारा भी पहला कर्तव्य है कि हम अपनी क्षमताओं के अनुसार जिम्मेदारी से अपना काम करें। जहां हम लोक हित में आवाज उठा सकते हैं वहां आगे भी आएं

दिवाली पर रौशन हुआ देश, कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक आसमान रंगीन

नई दिल्‍ली. देश भर में रोशनी का पर्व दिवाली पारंपरिक श्रद्धा और हर्षोल्लास से मनाई गई। लोगों ने इस मौके पर गणेश लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घरों को रोशनी से सजाया और पटाखे चलाए। बुधवार शाम से पूरा देश रोशनी से जगमगा उठा। भारत-पाकिस्‍तान सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों ने इस त्यौहार की एक दूसरे को बधाई दी और मिठाइयां खिलाईं। हालांकि दिवाली की रात कई शहरों में छोटे बड़े कुछ हादसे भी हुए। दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद, लखनऊ सहित प्रमुख शहरों में इस अवसर पर सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए।


दिल्ली में दीवाली के मद्देनजर बाजारों और प्रमुख स्थलों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए। सुबह से ही राजधानी के मंदिरों में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। बाजारों में लोगों की काफी चहल-पहल रही और लोगों ने जमकर खरीदारी किया। अन्य दिनों की अपेक्षा बाजार भी आज जल्दी खुल गए। पटाखों एवं मिठाइयों की दुकानों पर लोगों का तांता लगा हुआ है। किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं।


दिल्लीवासियों के लिए महंगाई के इस दौर में हर बार की तरह इस बार भी घर को सजाने के लिए रंगोली सबसे लोकप्रिय माध्यम बनी हुई हैं। इसे बनाने के लिए रंगबिरंगी मोमबत्तियों, रंगीन पाउडर एवं दीयों का प्रयोग किया जाता है। मयूर विहार निवासी पेशे से पेंटर अनुभव चौहान के लिए यह त्योहार अपने घर को सजाने का एक अवसर देता है। वह विभिन्न प्रकार की रंगोलियां तैयार करते हैं और इसमें भगवान गणेश एवं देवी लक्ष्मी की आकृतियां बनाते हैं।

उन्होंने कहा, "प्रत्येक वर्ष मेरे घर की देहरी कैनवास में बदल जाती है और इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में पड़ोसी आते हैं।" अमावस्या के दिन दीवाली मनाई जाती है। इस दिन दीए जलाकर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। रावण के वध के बाद राम के अयोध्या लौटने की खुशी में भी यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। दिल्ली निवासी वरूण मेहता के लिए तो दीवाली का मतलब है 'पटाखा'। दिल्ली के बाजार इन दिनों विभिन्न प्रकार की मिठाइयों, पटाखों एवं दीवाली से जुड़ी सामग्रियों से अटे पड़े हैं।


लोग अंतिम समय तक खरीदारी में व्यस्त हैं। दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित फूल विक्रेता विजय यादव ने कहा, "इस वर्ष व्यवसाय अच्छा है। मैंने सुबह आठ बजे दुकान खोली और कुछ ही घंटों में सारा सामान बिक गया।" विदेशों में रहने वाले भारतीय भी दीवाली धूमधाम से मना रहे हैं। ब्रिटीश प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन ने भारतीय मूल के लोगों की उपस्थिति में प्रकाश पर्व की बधाई देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में यह उनकी दूसरी दीवाली है। अमेरिकी सीनेट ने तो प्रस्ताव पारित कर इस त्योहार की भारतीय मूल के लोगों को हार्दिक बधाई दी है।

अगर डोल्ला ............


Love

में सबसे छोटी ..........

Life and Times, Nostalgia

यह है गीता का ज्ञान ...........

[Chapter 7]

सुरे बकर में कुरान का आदेश ..........

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श्री मद भगवदगीता का ज्ञान

[Chapter 6]

कुरान में खुदा का संदेश सुरे अलबकर

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कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक है . क्या येह सच है तो फिर महाराष्ट्र का मुंबई अलग क्यूँ है

कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक है ..देश में एकता और अखंडता होना चाहिए सभी बोलियों सभी भाषाओं का आदर सम्मान होना चाहिए ..तिरंगे का सम्मान और राष्ट्रगान का मान देश में रहना चाहिए यह नारा है उन देशभक्तों का जो खुद को स्वयम्भू बन कर देश भक्त का खिताब देते है लेकिन खुद देखलें क्या यह लोग देश के इस नारे को खुद मान रहे है क्या उन्हीं की भाषा में उन्हें राष्ट्रभक्त देशभक्त कहा जा सकता है एक विचारणीय प्रश्न है जवाब हास्यास्पद है जो दिख रहा है उससे तो स्पष्ट है के ऐसे लोगों को संविधान का उलन्घ्घन कर भाषा और क्षेत्रिता का विवाद फेलाने पर जेल जाना चाहिए लेकिन दोस्तों जब ऐसे लोगों के खिलाफ सरकार का रवय्या देखते हैं ऐसे लोगों को दी जा रही सरकार की रियायतें देखते हैं तो लगता है के देश और राज्यों में सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं है ..हम महाराष्ट्र की बात करें वहां शिवसेना और मनसे जो खुद को राष्ट्रवादिता से जुडी पार्टी कहती है अखंड भारत का सपना देखना चाहती है वही पारियां खुल कर देश में उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम का विवाद भड़का रही हैं ..यह पार्टियों और इनके नेता कानून और देश के संविधान के हिसाब से तो जेल में होना चाहिए और देश के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी कोने में जाकर आज़ाद हवा का अहसास होना चाहिए यह ज़िम्मेदारी सरकार की है लेकिन जेसे विदेश जाने पर पासपोर्ट वीजा और एयरपोर्ट की जान्च से गुजरना पढ़ता है वेसे ही महाराष्ट्र खासकर मुंबई जाने पर अघोषित पासपोर्ट और जांचों के दोर से गुजरना पढ़ता है ताज्जुब तो इस पर है के महाराष्ट्र में यह सब कई वर्षों से हो रहा है और सरकार इस मामले में चाहे राज्य की हो चाहे केंद्र की हो कुछ भी नहीं कर पा रही है देश में क्षेत्रवाद के नाम पर गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गयी है अब देख लो जनाब कोन तो देश भक्त है कोन राष्ट्र भक्त है किसे देश और संविधान का गद्दार कहकर सरे आम गिरफ्तार कर दंडित करना चाहिए और सरकार क्या कर रही है ऐसे में हम और आप क्या कर सकते हैं और क्या करना चाहिए काम से काम चुनाव में एक मर्द कानून की पालना करने वाली सरकार तो हम दे ही सकते हैं जो ऐसे गुंडे बदमाश जो देश के संविधान को ताक में रख कर मारकाट और धमकियों के बल पर समानान्तर भाईगिरी कर सरकार चलाते हैं उन्हें तो सबक मिल ही जाये और देश और राज्य के साथ साथ जनता सुरक्षित हो जाए .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बच्चों को संस्कारवान बनाना है तो अभाव में भी रहना सिखाइए

समाज और देश-दुनिया की महत्वपूर्ण इकाई है परिवार जबकि परिवार की शुरुआत होती है दाम्पत्य से। परिवार की सम्पत्ति होती है संतान। अगर यह कहें कि संतान के बिना समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है तो कोई अचरज नहीं है। अपना परिवार बढ़ाना या संतान का उत्पादन करना सिर्फ व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह कार्य साधारण नहीं बल्कि बड़ा ही महत्वपूर्ण और चुनौती वाला है।

किसी भी युवक या युवति को माता-पिता बनने की जिम्मेदारी क ो उठाने के लिये आगे आने से पहले हर तरह से तैयार हो जाना चाहिए। पति तथा पत्नी दोनों की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति इस लायक हो कि वे संतान और परिवार की जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकें , तभी उन्ंहे इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना चाहिए। स्वयं और परिवार की स्थिति तो ध्याान में रखना ही चाहिये साथ ही देश, समय और परिस्थितियों का भी ध्यान करना ही चाहिए। गलत स्थान, अनुचित समय और विपरीत परिस्थितियों में संतान का जन्म लेना भी समस्याओं को बढ़ावा देता है।

परिवार का भविष्य संतानों के संस्कार और उनकी परवरिश पर ही निर्भर करता है। बच्चों के लालन-पालन के लिए सिर्फ सुख और सुविधाओं की ही आवश्यकता नहीं होती। अभावों में भी बच्चों को अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं। जब संतानें संस्कारवान और सभ्य होंगी तो परिवार सफल होगा। अगर अधिक लाड़-प्यार में संतानों को बिगाड़ दिया जाए तो परिवार को टूटने में देर नहीं लगेगी।

महाभारत में कौरव और पांडवों में क्या फर्क था। कौरव महलों की सुख-सुविधाओं में पले थे और पांडव जंगल में। फिर भी पांडव नायक हुए और कौरव खलनायक। पांडवों को उनकी मां कुंती ने अकेले ही जंगल में पाला। कोई सुख-सुविधा नहीं। जबकि कौरवों को धृतराष्ट्र और गांधारी ने महलों में पाला। फिर भी आप फर्क देखिए। अपने बच्चों को हमेशा हर चीज सुलभ ना कराएं, कभी-कभी अभावों में जीना भी सिखाएं। अभाव हम में किसी वस्तु को पाने की लालसा भरते हैं। उसके लिए परिश्रम करना सिखाते हैं।

जगमगाते दीपों के उत्सव को शास्त्रों में उत्तम यज्ञ भी कहा गया है

डबोक.संत आसाराम ने साधकों से दीपावली के आध्यात्मिक अर्थ समझने तथा समझाने की सीख दी है। उन्होंने दीपावली पर घर बाजार में प्रकाश के साथ ही जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाने की जरूरत भी बताई। दीपावली को पर्वो का पुंज बताते हुए संत ने कहा कि जगमगाते दीपों के उत्सव को शास्त्रों में उत्तम यज्ञ भी कहा गया है।

वे सोमवार को डबोक आश्रम में धनतेरस तथा दीपावली पर्व को लेकर साधकों को प्रवचन दे रहे थे। संत ने दीपावली पर मुख्यतया चार प्रकार के काम करने की जरूरत बताई। पहला घर की सफाई, दूसरा नए वस्त्र पहनना, बर्तन आदि खरीदना, तीसरा मिठाई खाना और खिलाना तथा चौथा दीपक जलाकर जग में प्रकाश फैलाना। इनमें चार कार्य और जोड़ दें तो असली दीपावली मनेगी।

उन्होंने दीपावली के चारों कार्यो का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए अपने अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष की सफाई कर बुरे दुर्गुणों को बाहर निकालने की सीख दी और इसे ही सच्ची सफाई बताया।

नए वस्त्र, वस्तु खरीदने का अर्थ है कि अपने जीवन में कुछ नया सद्गुण विकसित करें और बुराइयों को छोड़कर जीवन में नए सत्कर्म, सेवा, साधना का संकल्प लें। मिठाई खाना और खिलाने का अर्थ है कि आप स्वयं आनंद में रहें और दूसरों को आनंद की प्राप्ति में मदद करें। प्रकाश फैलाने का आध्यात्मिक अर्थ यह है कि बाह्य प्रकाश के साथ ज्ञान का प्रकाश भी फैलाएं।

अपने कर्मो को ज्ञान के प्रकाश में देखें। उन्होंने कहा कि हम अपने जीवन के परम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति करें यही ज्ञान का प्रकाश है। उन्होंने भगवान नाम जप की महिमा भी बताई। इससे पूर्व संत का महाराणा प्रताप डबोक हवाई अड्डे पर साधकों ने स्वागत किया। डबोक आश्रम में श्री योग वेदांत सेवा समिति, बाल संस्कार केंद्र, युवा सेवा संघ के कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया।

निरुपम झुकने को तैयार नहीं, कभी भी हो सकता है उन पर हमला, सुरक्षा बढ़ाई

मुंबई. कांग्रेस सांसद संजय निरुपम पर शिवसैनिकों द्वारा हमले की आशंका के चलते पुलिस ने उनके अंधेरी स्थित घर की सुरक्षा बढ़ा दी है। इस बीच निरुपम ने कहा है कि उन्होंने नागपुर में जो कुछ भी कहा था, वह वे पिछले 10 वर्षो से बोलते आ रहे हैं और आने वाले एक दशक तक बोलते रहेंगे।
शिवसेना कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे द्वारा दांत तोड़ देने के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया में निरुपम ने कहा कि वे जिस भाषा में बोल रहे हैं वैसी भाषा वे भी बोल सकते हैं। लेकिन उनकी संस्कृति ऐसी नहीं है।
गौरतलब है कि निरुपम ने रविवार को नागपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि यदि उत्तर भारतीयों ने ठानी, तो वे मुंबई बंद कर सकते हैं। उनके इस बयान के बाद शिवसेना और मनसे आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं।

गद्दाफी को बेहद 'गुप्त' जगह दफनाया,फिर खिलाई कुरान की कसम...


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मिसरातालीबिया में चार दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाले तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी को आखिरकार मंगलवार सुबह रेगिस्तान में कहीं गुप्त रूप से दफना दिया गया।

समाचार चैनल अल जजीरा ने स्थानीय सैन्य प्रवक्ता इब्राहिम बेत-अल माल के हवाले से बताया कि गद्दाफी की कब्र के पास ही उसके बेटे मोतस्सिम और उसके सेना प्रमुख अबू वक्र यूनुस जब्र को भी दफनाया गया है। इब्राहिम ने कहा, ‘गद्दाफी को दफनाए जाने के दौरान ङ्क्षहसा की आशंका के मद्देनजर इस काम को गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया है।

लीबिया की अंतरिम सरकार (एनटीसी) को आशंका है कि गद्दाफी के समर्थक उनकी कब्र को इबादतगाह बना सकते हैं। इसी वजह से इस बात का खास खयाल रखा गया है कि उनकी कब्र के बारे में किसी को पता नहीं चले।’

शवों की रखवाली कर रहे एक सुरक्षा गार्ड ने बताया कि उन सभी के शवों को सोमवार रात कोल्ड स्टोरेज से निकाल लिया गया था। हालांकि शवों को कहां दफनाया गया है इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है। वहीं एनटीसी के एक अधिकारी ने कहा, ‘पिछले पांच दिनों से कोल्ड स्टोरेज में रखा गद्दाफी का शव तेजी से सड़ रहा था। उसे वहां और नहीं रखा नहीं जा सकता था। इसलिए उसे रेगिस्तान में ही कहीं दफना दिया गया। यह सब शेखों की मौजूदगी में गोपनीय तरीके से किया गया।’ इन लोगों को गद्दाफी को दफन करने वाली जगह का कभी भी खुलासा न करने के लिए कुरान की शपथ दिलाई जाएगी।

दिवाली पर बोले बाल ठाकरे, कांग्रेसी असुर का वध करो

मुंबई. दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए भी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे कांग्रेस पर जमकर बरसे। बाल ठाकरे ने दिवाली की बधाई देते हुए लोगों से कहा कि इस बार कांग्रेसी नरकासुर का वध कर अंधेरे को दूर करके दिवाली मनाएं।

बाल ठाकरे ने कहा कि चाहे अवसर जो भी शुभकामनाएं देना Bकर्तव्य बन गया है, आम आदमी किसी तरह महंगाई से लड़ते हुए अपना वक्त काट रहा है। बाल ठाकरे ने कहा गणपति विसर्जन, नवरात्रि, दशहरे के बाद दिवाली आ गई और आम आदमी जैसे तैसे महंगाई से लड़ते हुए खरीदारी कर रहा है। यह दिखाता है कि कांग्रेस की असहनीय सरकार के वाबजूद भी आम आदमी जी रहा है।

ठाकरे ने अपने समर्थकों से आह्वान करते हुए कहा कि इस बार कांग्रेसी नरकासुर का वध करके ही दिवाली मनाएं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब शिवसेना प्रमुख ने कांग्रेस के खिलाफ आग उगली हो। वो पहले भी कई बार यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी पर बयानबाजी करते रहे हैं।

मलबे के ढेर के बीच चौंधियाई आंखें...और तुर्की में हुआ एक चमत्कार !

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तुर्की में रविवार को आए भीषण भूकंप में धराशायी हुई एक इमारत के मलबे से 14 दिन की बच्ची जीवित मिली है। वह 48 घंटे मलबे में दबी रही। खास बात यह है कि जिस एरसिस शहर में यह बच्ची मिली वहां 2 डिग्री तापमान है।

बच्ची के तन पर कोई कपड़ा नहीं था, लेकिन उसने मौत को हर मोर्चे पर मात दे दी। जब यह बच्ची जीवित निकाली गई तो भूकंप से परेशान एरसिस शहर के लोगों और राहतकर्मियों के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी।

इस बच्ची का नाम है ‘अजरा’। जिसका मतलब होता है ‘मदद’। जब यह बच्ची निकाली गई तब यह अपनी मां सेनिहा की गोद में थी। सेनिहा ने जैसे ही राहत एवं बचावकर्मियों को देखा उसने रोते हुए अपनी बच्ची को वहां से ले जाने को कहा। अजरा को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां वह स्वस्थ और सुरक्षित है।

उसकी मां और दादी को बाद में मलबे से निकाला गया। दोनों को ज्यादा चोटें नहीं आई हैं पर भूख और प्यास की वजह से कमजोर हो गई हैं। अजरा के पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

सिर्फ कुंवारी कन्याएं ही पकड़ सकतीं है इस रहस्यमयी घोडे को क्यूंकि...

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यूरोप की प्राचीन कथाओं में एक सफेद रंग के घोड़े ‘यूनिकॉर्न’ के किस्से सदियों से मशहूर हैं। इस घोड़े के सिर पर एक सींग होता है। प्राचीन ग्रीक कथाओं और मध्यकालीन युग में यूनिकॉर्न को शुद्धता और शान का प्रतीक माना जाता था। जंगलों में रहने वाले इस रहस्यमयी जानवर को सिर्फ कुंवारी कन्याएं ही पकड़ सकती थीं।

उसके सींग से जादुई पानी निकलता था, जिससे बीमार ठीक हो जाते थे। उन्नीसवीं सदी तक सभी इतिहासकार, हकीम, लेखक, कवि, प्रकृति शास्त्री और डॉक्टर्स भी इनके होने पर विश्वास करते थे। एशिया और अफ्रीका में भी इसके किस्से सुने जा सकते हैं। यूनिकॉर्न को देखने के बहुत कम लोग ही चश्मदीद हैं। इसलिए ये एक काल्पनिक चरित्र ज्यादा लगता है।

सबसे पहले पांचवीं सदी ईसापूर्व में एक यूनानी डॉक्टर ने इसकी चर्चा की थी। वे पर्शिया के दौरे पर गए थे और वहां उन्हें पता चला था कि भारत में इस तरह का जानवर होता है। पहली सदी ईसापूर्व में जूलियस सीजर ने लिखा था कि ऐसा एक जानवर दक्षिण जर्मनी के एर्कागेबिर्गे में रहता है। कहा जाता है कि एडवर्ड चतुर्थ, स्कॉटलैंड के जेम्स तृतीय, पीएट्रो डे मेडिसी, सातवें पोप क्लेमेंट, पोप जूलियस तृतीय और स्पेन के फिलिप द्वितीय के पास भी यूनिकॉर्न थे। 20 सितंबर 1483 में कुछ तीर्थ यात्रियों ने मिस्र के माउंट सिनाई के पास ऐसा ही एक जानवर देखा था।

लोडोविको डे वार्थेमा ने भी 1503 में सुना था कि साउदी अरब के मक्का शहर में दो यूनिकॉर्न हैं। एक घोड़े के बराबर था और उसका सींग 4.6 फीट का था। छोटे का सींग 16 इंच का था। ये यूनिकॉर्न इथोपिया के राजा ने मक्का के सुल्तान को भेंट किए थे। सोमालिया में भी ऐसा जानवर देखे जाने के किस्से हैं। 1630 के आसपास इथोपिया के जीसूट जेरोनिमो ने भी ऐसा जानवर देखने का दावा किया। 1669 में पुर्तगाल के सैनिकों ने भी इथोपिया में यूनिकॉर्न देखा। 1673 में ऑल्फ र्ट डापेर ने लिखा है कि ये कनाडा की सीमा पर पाए जाते हैं। इसके अलावा और भी कई लेखकों ने इनके बारे में अलग-अलग विवरण दिए हैं।

राज है गहरा

ईसापूर्व से लेकर उन्नीसवीं सदी तक कई देशों में एक सींग वाले घोड़े जैसे जानवर यूनिकॉर्न के किस्से लिखे गए, लेकिन आज तक कोई भी इनका वजूद साबित नहीं कर सका है।

यहां दिवाली ऐसी हैः सूर्योदय से पहले ही पूजन, रोशनी और पटाखे

यहां दिवाली ऐसी हैः सूर्योदय से पहले ही पूजन, रोशनी और पटाखे

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पं. वैद्य कहते हैं, ‘राम ने यहीं घोषणा की थी कि शिव के समान दूसरा कोई उन्हें प्रिय नहीं है और गंगाजल से यहां शिव का अभिषेक करने वाले जीवन-मरण से मुक्ति के अधिकारी होंगे। दिवाली पर राम के आदेश का पालन यहां सबसे पहले होता है। लक्ष्मी पूजन से ज्यादा इसी का महत्व है।दिवाली के लिए हरिद्वार से आया गंगाजऔर अब रामसेतु की ओर। रामेश्वरम् से 20 किमी दूर। देश के नक्शे पर सबसे नीचे श्रीलंका की ओर फैले टापुओं में। धनुष के आकार के टापुओं का आखिरी कोना। धनुषकोडि। तमिल में कोडि का अर्थ-अंतिम। रामसेतु का रास्ता यहीं से होकर है, जहां विभीषण का इकलौता मंदिर है। मान्यता है कि समुद्र के इसी किनारे विभीषण ने राम की शरण ली थी। नारियल के झाड़ों से लदे किनारों पर मछुआरों के घासफूस के घर। टीलों में दफन अंग्रेजों का बनाया भव्य नगर, जो 1964 के तूफान में उजड़ गया।मां-बेटे की इस जिज्ञासु जोड़ी केसाथ ही हम रामनाथ स्वामी मंदिर में दाखिल हुए। 16 एकड़ में फैला करीब डेढ़ हजार साल पुराना विशाल देवालय। लंका प्रस्थान से पहले भगवान राम ने यहींं शिवलिंग की स्थापना का संकल्प पूरा किया था। राम की सेना के प्रमुख सेनापतियों, सहायकों और भारत के तीर्थों के नाम पर इसी प्रांगण में हैं 22 पवित्र कुंड। लैरेमेंस आनंदित होकर कहती हैं कि हमने मंदिर के सभी 22 कुंडों के स्नान किए। दिवाली के बारे में यहां आकर ही पता चला। इस अवसर पर यहां होना मेरे जीवन का स्मरणीय अनुभव है

दक्षिण के इस कोने में रोशनी के त्योहार की रंगत उत्तर भारत से बिल्कुल अलग है। लक्ष्मी पूजन परंपरा में नहीं। शिव की आराधना सर्वोपरि। दिवाली की रोशनी, पूजन और पटाखे सूर्योदय के पहले। रातों की रौनक नदारद। मौसम बरसात का। आसमान में घटाएं। कभी बूंदाबांदी। कभी चटखती धूप। इस समय तेज झड़ी।


मंगलवार तक सरकारी दफ्तर, स्कूल, कॉलेज खुले रहे। हम स्कूल टीचर गायत्री विश्वनाथ के घर पहुंचे, जो घर आते-आते भीग गई हैं। उन्हें रसोई में अधिरासम बनाने की जल्दी है। यह चावल व गुड़ की एक मिठाई है। वे कहती हैं, ‘दिवाली की सुबह हम घरों में संक्षिप्त पूजा के बाद मंदिर में शिव की आराधना करेंगे।



नैवेद्य के लिए हाथ का बना कुछ तो होना चाहिए।’ उनके पति वी.सी. विश्वनाथ संस्कृत पढ़ाते हैं। कई साल वाराणसी में रह चुके विश्वनाथ ने बताया कि यहां महाशिवरात्रि और श्रावण मास के विशेष पर्वों की महत्ता उत्तर भारत में दिवाली जैसी है। बेल्जियम से आईं स्प्रिचुअल थेरेपिस्ट बीइके लैरेमेंस और उनके भारतीय मूल के दत्तक पुत्र नूर मोहम्मद से मेेरी मुलाकात विश्व प्रसिद्ध रामनाथ स्वामी मंदिर के सामने हुई। दूसरी बार भारत आईं 60 वर्षीय लैरेमेंस 13 साल से स्प्रिचुअल एनर्जी पर शोध कर रही हैं।



समुद्र में क्षितिज को देखते हुए वे कहती हैं, ‘यहां आकर महसूस किया कि रामेश्वरम् का ऊर्जा क्षेत्र अद्भुत है।’ 25 साल के नूर मोहम्मद पुट्टपर्थी के हैं। इन दिनों जर्मनी में आसन क्रिया एकेडमी से जुड़े हैं। वे कहते हैं कि प्रचलित धर्मों की बजाए प्रयोग में मेरा भरोसा है। रामेश्वरम् जैसे तीर्थ और दिवाली जैसे पर्व प्रयोगों के ही ऊर्जावान प्रतीक हैं। मानवीय शक्ति को जागृत करने के विराट प्रयोग

रेत से झांकतीं पुरानी रेल लाइनें, रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस, गो-डाउन की इमारतें। हमारे साथ है एस. मुरुगेशन, जो एक शिपिंग कंपनी में काम कर चुका है। वह किनारे-किनारे हमें सात किलोमीटर और आगे उस आखिरी कोने तक ले जाता है, जहां से श्रीलंका की दूरी बचती है-सिर्फ 18 किलोमीटर। अथाह समुद्र के पार एकवायरलैस टॉवर दूर क्षितिज पर दिखाई देता है। मुरुगेशन उस तरफ संकेत करके बताता है कि वह टॉवर श्रीलंका की भूमि पर है। वह कई बार वहां गया है। धनुषकोडि से करीब दो किलोमीटर आगे समुद्र में कठोर पत्थर की वे सरंचनाएं अब भी साफ नजर आती हैं, जिन्हें राम सेतु के नाम से दुनिया जानती है।




वेनिस का मशहूर समुद्री यात्री मार्को पोलो (1254-1324) भी यहां से गुजरा था। यात्रा अनुभवों में उसने ‘द मिलियन’ में इस जगह को सेतुबंध रामेश्वर लिखा। इन दिनों करीब ढाई हजार करोड़ रुपए लागत की सेतु समुद्रम परियोजना के कारण यह जगह 2005 में विवाद का विषय बनी है। समुद्री परिवहन के लिए प्राचीन सेतु के कुछ हिस्सों को खत्म करने का प्रोजेक्ट। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से काम रुका है। भारत के इस छोर पर मुझे रामचरित मानस में लंका कांड का प्रसंग याद आ रहा है-बांधि सेतु अति सुदृढ़ बनावा। देख कृपा निधि के मन भावा।। चली सेन कछु बरनि न जाई।

रामनाथ स्वामी मंदिर में तमिल ब्राह्मणों को नहीं, बल्कि पीढिय़ों से महाराष्ट्रियन ब्राह्मणों को पूजा-अनुष्ठानअधिकार है। तमिल पुरोहितों का काम उन्हें सिर्फ निर्देशित करना है। गणेश वैद्य और गणपतिराम शर्मा का समूह हरिद्वार से आए गंगाजल को सहेज रहा है। दिवाली पर विशेष अभिषेक के लिए, जब शहर के लोग यहां सूर्याेदय से पहले इकट्ठा होंगे

घरों से ज्यादा रौनक सिनेमाघरों मे

रामनाथपुरम् से रामेश्वरम् जाते हुए मैं यह देखकर चौंका कि घरों से ज्यादा रौनक सिनेमाघरों में है। हर कहीं दिवाली के दिन रिलीज होने वाली फिल्मों की चर्चा। रजनीकांत के अलावा तीन सितारों का जबर्दस्त क्रेज। ये हैं-विजय, सूर्या और विक्रम। इन तीनों की फिल्में रिलीज होने का उत्साह अद्भुत है। सुबह का पहला स्पेशल शो हर जगह हाउस फुल है।


विजयेंद्र सरस्वती एजूकेशन सेंटर के प्रमुख आर. मुथुकुमार ने बताया, ‘दिवाली के दिन अधिकतर तमिल युवा मित्रों, पड़ोसियों और परिजनों के साथ सिनेमाघरों में नजर आएंगे। यह हमेशा का रिवाज है। फिल्में हमारे लिए उत्सव से कम नहीं हैं। कई फिल्में पांच महीने तक परदे से उतरती नहीं हंै।’

मान्यता इतनी है कि दिल्ली में रह रहे यहां के लोग भी आपसे हनुमानगढ़ी का प्रसाद लाने के लिए आग्रह करेंगे। संभवतया यही कारण है कि छोटी दीवाली के रोज हनुमान जी का जन्म दिन इतने भव्य तरीके से मनाया जाता है कि शहर के सारे आयोजन फीके पड़ जाते हैं। इस बार हमने देखा कि रात 11 बजे से 12 बजे तक होने वाली पूजा में तो तो मंदिर परिसर में पांव रखने तक की जगह नहीं थी। इस एक घंटे जोरदार आतिशबाजियों से मानो पूरी अयोध्या नगरी ही जगमगा उठती हैं। हनुमानढ़ी के एक महंत ज्ञानदास यहीं मिले। बोले अयोध्या की दीपावली सबसे श्रेष्ठ हैं। मुख्य उत्स यही स्थान है। विजय का प्रतीक ही नहीं ऊर्जा की प्रतीक भी है अयोध्या की दीपावली।

सत्य का बोध हुआ तो मनाया भव्य दीपोत्सव


मौर्य वंश के राज बिंदुसार की मौत के बाद २७३ ईसा पूर्व में अशोक ने राज्य की बागडोर संभाली। अशोक का साम्राज्य वर्तमान अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश और दक्षिण भारत में केरल तक फैला हुआ था। आठ साल तक मगध पर शासन करने के बाद वह अपने दादा चंद्रगुप्त की भांति महाविजय पर निकले। उन्होंने कलिंग (वर्तमान में ओडिशा) पर कब्जा करने की योजना बनाई। 265-64 ईसा पूर्व दया नदी के किनारे धौली पहाड़ियों पर अशोक और कलिंग राज्य की सेनाओं में युद्ध हुआ। अशोक की सेना में ६क् हजार पैदल, एक हजार घुड़सवार और सात सौ हाथी सवार सैनिक थे। शाहबाद गढ़ी में मौजूद अभिलेखों के मुताबिक इस युद्ध में एक लाख लोग मारे गए। इतने बड़े पैमाने पर हिंसा देखकर अशोक का मन पश्चाताप से भर गया। उनके लिए यह प्रकाशोत्कर्ष का समय था। उन्हें सच का बोध हो गया। तब उन्होंने कभी युद्ध या हिंसा न करने की शपथ ली और यही नीति बनाई। इसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकारा। राजधानी लौटने पर अशोक ने प्रजा को दीप बांटे और भव्य दीपोत्सव मनाया।

दिवाली पर जरा संभलकर, दिल्ली में रॉकेट ने घर खाक किया, देखें तस्वीरें


नई दिल्ली.दिवाली पर पटाखे जरा संभलकर जलाए। बेहतर होगा कि पटाखे न ही जलाएं। दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में दिवाली के रॉकेट ने घर खाक कर दिया।

दरअसल सुबह ९.३० बजे बच्चे गली में बोतल में रॉकेट रखकर जला रहे थे। बच्चों द्वारा छोड़ा गया एक रॉकेट 31/491 घर के प्रथम तल में घुस गया। कमरे में कई चक्कर काटने के बाद रॉकेट रजाई में घुस गया और आग भड़क गई। घर वाले आग बुझती न देख नीचे आ गए। जान की तो हानि नहीं हुई लेकिन कमरे में रखा माल खाक हो गया।

गृहस्वामिनी तारा के मुताबिक फॉयर ब्रिगेड को कॉल करने के ४५ मिनट बाद ब्रिगेड की गाड़ी पहुंची और आग पर काबू किया। तब तक घर में रखा सब सामान स्वाहा हो चुका था।
खोखला साबित हुआ फॉयर ब्रिगेड का दावा
अग्निशनम सेवा के चीफ फॉयर ऑफिसर आरसी शर्मा ने घोषणा की थी कि दिवाली पर होने वाली वारदातों से निपटने के लिए दिल्ली में १२ अतिरिक्त अस्थाई फायर स्टेशन खोले गए हैं ताकि आगजनी की किसी भी कॉल के पांच मिनट के भीतर फॉयर ब्रिगेड घटनास्थल तक पहुंच सके। लेकिन त्रिलोकपुरी में आगजनी की घटना का शिकार बनी तारा का कहना है कि वो लगातार कॉल करती रहीं फिर भी फॉयर ब्रिगेड ४५ मिनट बाद पहुंची। यदि अग्निशमन दल थोड़ा पहले पहुंच जाता तो शायद नुकसान थोड़ा कम होता।




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