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31 अक्तूबर 2011

मुझे फिर बुलाती जिंदगी ...........

Life and Times, Nostalgia, Shabda Chitra

कटीले फुल.................




यह है गीता का ज्ञान ..........

[Chapter 10]

कुरान का संदेश सुरे बकर में

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भंवरी का भंवर में भाजपा और आडवाणी की रथ यात्रा के पहिए

जयपुर.भंवरी प्रकरण के भंवर में कांग्रेस ही नहीं, भाजपा भी फंस गई है। वजह है भंवरी को गायब करने या उसकी हत्या करने के जिम्मेदारों में एक समुदाय विशेष के मंत्री का शामिल होना। इस नौ नवंबर से 12 नवंबर तक भाजपा के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी अपनी रथ यात्रा को लेकर राजस्थान में रहेंगे और उस समय भंवरी प्रकरण से कैसे निजात पाई जाए, इसे लेकर भाजपा भारी असमंज में हैं।

सत्तारूढ़ कांग्रेस को घेरने के लिए यह प्रकरण भाजपा के लिए काफी है, लेकिन भाजपा जाट समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती। इस प्रकरण में सरकार से बर्खास्त होने वाले कांग्रेस सरकार के प्रमुख मंत्री महिपाल मदेरणा इसी समुदाय से हैं। वे कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मदेरणा के पुत्र हैं।

भंवरी और भ्रष्टाचार दोनों ही दलों के लिए समस्या बनकर उभर रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी नवंबर में अपनी भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा लेकर राजस्थान आएंगे तो उनके सामने कांग्रेस राज्य में उनकी पिछली सरकार के भ्रष्टाचार के किस्से और इतिहास रखकर पूछेगी कि आप क्या मुंह लेकर आ रहे हैं। भाजपा कांग्रेस को इस सरकार के मौजूदा भ्रष्टाचार पर घेरने की कोशिश करेगी, लेकिन भंवरी पर नहीं।

राजनीतिक प्रेक्षक मानकर चल रहे हैं कि अब दोनों दल और दोनों दलों के नेता तू मेरे भ्रष्टाचार पर मत बोल, मैं तेरे पर नहीं बोलूंगा, वाले अंदाज में आ चुके हैं। भंवरी पर भी करीब-करीब दोनों का स्टैंड साफ है।
महिलाओं के मुद्दों पर अग्रणी रहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अभी तक इस प्रकरण पर अभी तक कांग्रेस पर निशाना नहीं साधा है। उनके खेमे के राजेंद्र सिंह राठौड़ जैसे नेता भी इस सवाल पर चुप ही रहे हैं। दिगंबरसिंह तो मदेरणा के खिलाफ कार्रवाई का खुला विरोध भी कर चुके हैं।

अब रोबो करेंगे शाही शादियों में स्वागत

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जयपुर.शादियों में टेक्नोलॉजी के कई रंग नजर आने लगे हैं। यह सिर्फ डेकोरेशन या फिर लाइट और साउंड तक ही सीमित नहीं हैं। इस वेडिंग सीजन में दूल्हा या दुल्हन के परिवार की जगह आपका स्वागत रोबो करें तो चौंकिएगा नहीं, क्योंकि इवेंट कंपनियां कुछ नया करने के लिए रोबो होस्ट को यूज करने का प्लान कर रही हैं।

यही नहीं वेडिंग कार्डस से लेकर लेडीज संगीत में हाइटेक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें वेडिंग कार्डस के डिजाइन और उसके स्टाइल के कॉन्सेप्ट पर काफी काम किया जा रहा है। इस बारे में वेडिंग प्लानर्स का कहना है कि इस तरह के एक्सपेरिमेंटस् एनआरआई शादियों में ज्यादा किए जाते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा नए कॉन्सेप्ट को तवज्जो देते हैं जिससे शादी का एक-एक लम्हा यादगार बन सके।

घूस लेने के आरोप गिरफ्तार हुआ आरएएस अफसर

पाली.एसीबी ने सोमवार को आरएएस अफसर एवं रोहट उपखंड अधिकारी चूनाराम विश्नोई तथा उनके रीडर (लिपिक) मोहम्मद उमर को 30 हजार रुपए रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

एसीबी का कहना है कि यह रिश्वत एसडीओ ने अपने रीडर के मार्फत हाइवे से सटी जमीन की भूमि रूपांतरण की फाइल निपटाने की एवज में ली है।

एसीबी के डीआईजी संजीव नार्जरी ने बताया कि जोधपुर के जाखण निवासी भंवरसिंह राजपूत ने रोहट-जोधपुर हाइवे के निकट निंबली पटेलान गांव की सरहद में 6 बीघा जमीन ले रखी है।


भूमि रूपांतरण कराने के लिए उसने रोहट उपखंड अधिकारी कार्यालय में डेढ़ डेढ़ बीघा जमीन की चार फाइल पेश की थी। परिवादी भंवरसिंह ने एसीबी में शिकायत की कि चारों फाइलों के निस्तारण की एवज में रोहट उपखंड अधिकारी चूनाराम विश्नोई ने 60 हजार रुपए की डिमांड की।

एडवांस के तौर पर उसने 10 हजार रुपए दे दिए, जबकि सोमवार को 30 हजार रुपए देना तय हुआ था। शिकायत की पुष्टि के बाद सोमवार को सिरोही एसीबी चौकी के डीएसपी जोगाराम की टीम ने परिवादी को 30 हजार रुपए देकर भेजा।

परिवादी द्वारा रिश्वत के रुपए कार्यालय के लिपिक कम रीडर मोहम्मद उमर को सौंपते ही एसीबी की टीम ने उसे धर दबोचा। रीडर का कहना था कि यह रकम उपखंड अधिकारी के कहने पर ली गई है, जिसकी पुष्टि होने पर टीम ने आरएएस अधिकारी विश्नोई को भी गिरफ्तार कर लिया।

वकील की जेब में रख दिए नोट

एसीबी की कार्रवाई के दौरान रीडर ने रिश्वत के रूप में लिए 30 हजार रुपए की राशि के नोट कार्यालय में खड़े एक वकील की जेब में रख दिए। उस वकील ने एसीबी के सामने यह खुलासा किया कि उसकी जेब में रखे नोट रीडर ने एसडीओ के कहने पर डाल दिए। इसकी भनक भी उसे नहीं लगी।

एसीबी ने वकील के बयान को सरकारी गवाह के रूप में दर्ज किया है। ट्रेप की यह कार्रवाई देर शाम तक जारी थी। एसीबी सिरोही चौकी के डीएसपी जोगाराम ने बताया कि आरोपी आरएएस व रीडर को मंगलवार को जोधपुर स्थित एसीबी की विशेष कोर्ट में पेश किया जाएगा।

अब भ्रष्टाचार का 'भूत' भगाएंगे 'पानी वाले बाबा'!

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जयपुर. पानी वाले बाबा राजेंद्रसिंह ने कहा है कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक बह रहा है। इसे रोकने के लिए नीचे से सदाचार की जरूरत है और इस सदाचार के लिए गंगा क्रांति शुरू करनी होगी।

इसके लिए 19 नवंबर को राजघाट पर उपवास किया जाएगा और राजघाट से उसी दिन विजय चौक इंडिया गेट तक गंगा क्रांति मार्च होगा। इसके लिए 18 नवंबर को नई दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में बैठक होगी। बैठक में गंगा क्रांति अभियान को लेकर कई अहम फैसले लिए जाएंगे।

गंगा जल बिरादरी के बैनर तले राजेंद्रसिंह ने सोमवार को अन्ना हजारे का नाम लिए बिना यहां बयान जारी कर कहा कि हमारे सदाचार से ही हमारा भ्रष्ट आचार, विचार और व्यवहार बदलेगा। तभी भ्रष्टाचारियों को सदाचारी बना पाएंगे। गंगा का भ्रष्टाचार रोकने के लिए गंगा की स्वच्छता और संरक्षण जरूरी है।

अब तक इसके लिए केंद्र सरकार ने जितना भी धन खर्च किया है, उसकी जांच जरूरी है। यह जांच तय समय सीमा में ही पूरी हो जानी चाहिए ताकि दोषियों को दंडित किया जा सके। राजेंद्रसिंह की मांग है कि राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण की भूमिका को स्पष्ट बनाया जाए और इसकी बैठकें समय पर बुलाई जाएं।

इस जादूगर का दावा, ऐसा करतब दुनिया में किसी ने नहीं किया

फरीदाबाद सेक्टर-17 स्थित माडर्न स्कूल में जादूगरों के महाकुंभ में भाग ले रहे हैदराबाद के जादूगर किशन जगर 2011 में गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में दो बार अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। किशन बिना-हाथ पैर का उपयोग किए 5 मिनट में 61 मोती धागे में पिरोकर माला बना देते हैं। वे अपने इस करतब को गिनीज बुक आफ रिकार्ड ने दर्ज कराना चाहते हैं, लेकिन उन्हें 101 मोती पिरोने का लक्ष्य दिया गया है।

जगलिंग आर्ट में माहिर किशन मूलरूप से हैदराबाद के रहने वाले हैं और इस समय मुंबई में रह रहे हैं। उन्होंने जगलिंग आर्ट जंबो सर्कस के अपने गुरु टी मार्था से सीखा था। आठ वर्ष की उम्र से उन्होंने इसकी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू कर दी थी। उनका जीवन गरीबी में बीता है। अभी भी वे रोजी-रोटी के लिए काफी जद्दोजहद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 15 साल की उम्र तक वह दो तलवार मुंह से पेट में रखकर जगलिंग आर्ट दिखाते थे।

अभी तक आस्ट्रेलियाई जादूगर के नाम 21 तलवारें मुंह से पेट तक ले जाने का रिकार्ड था। किशन के अनुसार उन्होंने 22 तलवारें मुंह से पेट में रख इस वर्ष आस्ट्रेलियाई जादूगर का रिकार्ड तोड़ा। जबकि 17 तलवारें मुंह से पेट में रख हाथों में जगलिंग आर्ट दिखाने का 20 सेकेंड का कारनामा कर उन्होंने दूसरा रिकार्ड भी गिनीज बुक आफ रिकार्ड में दर्ज कराया।

किशन के अनुसार वह अब बिना हाथ-पैर का इस्तेमाल कर धागे में मोती पिरोकर माला बनाने का कारनामा गिनीज बुक आफ रिकार्ड में दर्ज कराना चाहते हैं। किशन का दावा है कि ऐसा करतब दुनिया में अभी तक किसी ने नहीं किया है।

पहले फूलों से लादा, फिर इंदिरा के बारे में यह क्या बोल दिया...


इंदौर। इंदिरा गांधी की प्रतिमा पर मैं पहली बार माल्यार्पण नहीं कर रहा हूं.। हां, प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह जरूर पहली बार है। इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं और उस नाते हर देशवासी उनका सम्मान करता है। हम भी देश की पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देने आए हैं।

उन्होंने 1971 के युद्ध में जो साहस दिखाया, उसकी प्रशंसा भी होती है, लेकिन आपातकाल को लेकर इंदिरा को कभी माफ नहीं किया जा सकता। मालाएं चढ़ाने से वे उस काले अध्याय से मुक्त नहीं हो सकतीं। यह बात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने कही।

वे सुबह पौने 10 बजे एबी रोड स्थित इंदिरा प्रतिमा पर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ माल्यार्पण करने पहुंचे थे। उनके साथ भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष जीतू जिराती ने भी इंदिरा गांधी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाए। झा ने कहा, कांग्रेस के नेता संघ और भाजपा नेताओं को चाहे जितना कोसें यह उनका स्वभाव है।

महात्मा गांधी और अब इंदिरा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके हम कांग्रेस को कोई संदेश भी नहीं देना चाहते हैं। बापू राष्ट्रपिता हैं वे कांग्रेस नहीं समूचे राष्ट्र के हैं। उसी तरह इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, कांग्रेस की नहीं।

झा ने बिजली के मुद्दे पर प्रदेश सरकार के खिलाफ किए जा रहे प्रदर्शन को कांग्रेस की नौटंकी करार दिया। इस दौरान नगर अध्यक्ष शंकर लालवानी भी साथ थे, लेकिन उन्होंने प्रतिमा पर माल्यार्पण नहीं किया।

श्री झा सुबह साढ़े 10 बजे केशव विद्यापीठ पहुंचे। यहां उन्होंने संघ के वामन दृष्टि कार्यक्रम को लेकर आयोजित बैठक में हिस्सा लिया। 11 से 13 नवंबर तक संघ से जुड़े शिशु मंदिरों के 25 वर्ष पूरे होने पर यह आयोजन हो रहा है। एरोड्रम रोड पर हाई लिंक सिटी में इस आयोजन की तैयारियां चल रही है।

संघ ने 11 नगरों का निर्माण किया है। एक आवास (तंबू) में तकरीबन 40 स्वयंसेवक रहेंगे। करीब 11 हजार स्वयंसेवक इस कार्यक्रम में जुटेंगे। उद्घाटन संघ के सर संघचालक मोहन भागवत द्वारा किया जाएगा।

शराब पीने से रोका तो पार्षद की कार को आग लगा दी


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कोटा.गोविंदनगर में एक पार्षद के परिवार को कुछ लोगों को पार्क में शराब पीने से रोका, तो कुछ देर बाद शराब पी रहे लोगों ने गुस्से में पार्षद की कार को आग लगा दी।उद्योगनगर पुलिस ने बताया कि वार्ड 31 की पार्षद राममूर्ति वर्मा के पुत्र महेंद्र ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि घर के नजदीक पार्क में कुछ युवक शराब पी रहे थे।

उन्हें शराब पीने से हमारे द्वारा मना किया गया तो वह गाली गलोच करने लगे। इस पर विवाद हो गया। पुलिस के मौके पर पहुंचने से पहले मामला शांत हो गया था। उसके बाद भी रंजिश रखते हुए रविवार देररात को शंकर पुत्र रमेश व उसके साथियों ने उनकी कार को आग लगा दी

घटना से प्रतीत होता है कि आग लगाने से पूर्व कार के ताले तोड़ने की कोशिश भी की गई थी। कार के टायर फटने की धमाके की आवाज से मोहल्ले के बाशिंदे घरों से बाहर आ गए।

वहां देखा कि कार में आग लगी हुई थी। क्षेत्रवासियों ने आग बुझाने के प्रयास किए। बाद में दमकल ने मौके पर पहुंचकर आग बुझाई। कार पूरी तरह जल चुकी थी। पुलिस ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ धारा 143, 435 आईपीसी में मामला दर्ज कर उनकी तलाश शुरू कर दी गई है।

शराब पीने से रोका तो पार्षद की कार को आग लगा दी


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कोटा.गोविंदनगर में एक पार्षद के परिवार को कुछ लोगों को पार्क में शराब पीने से रोका, तो कुछ देर बाद शराब पी रहे लोगों ने गुस्से में पार्षद की कार को आग लगा दी।उद्योगनगर पुलिस ने बताया कि वार्ड 31 की पार्षद राममूर्ति वर्मा के पुत्र महेंद्र ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि घर के नजदीक पार्क में कुछ युवक शराब पी रहे थे।

उन्हें शराब पीने से हमारे द्वारा मना किया गया तो वह गाली गलोच करने लगे। इस पर विवाद हो गया। पुलिस के मौके पर पहुंचने से पहले मामला शांत हो गया था। उसके बाद भी रंजिश रखते हुए रविवार देररात को शंकर पुत्र रमेश व उसके साथियों ने उनकी कार को आग लगा दी

घटना से प्रतीत होता है कि आग लगाने से पूर्व कार के ताले तोड़ने की कोशिश भी की गई थी। कार के टायर फटने की धमाके की आवाज से मोहल्ले के बाशिंदे घरों से बाहर आ गए।

वहां देखा कि कार में आग लगी हुई थी। क्षेत्रवासियों ने आग बुझाने के प्रयास किए। बाद में दमकल ने मौके पर पहुंचकर आग बुझाई। कार पूरी तरह जल चुकी थी। पुलिस ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ धारा 143, 435 आईपीसी में मामला दर्ज कर उनकी तलाश शुरू कर दी गई है।

52 साल की उम्र में महिला के घर में गूंजी तीन किलकारी

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फरीदाबाद.उम्र के 52वें बसंत में एक महिला ने अपनी कोख से तीन शिशुओं को जन्म दिया। सेक्टर-21 स्थित एशियन अस्पताल में गांव अजरौंदा निवासी 52 वर्षीय पिंकी को उनके पति ने सोमवार को अस्पताल में भर्ती कराया।

यहां डॉक्टरों ने महिला की हालत को देखते हुए ऑपरेशन कराने की सलाह दी। डा. अनिल बत्रा व स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. अनीता कांत की टीम ने लगभग पांच घंटे में सफल ऑपरेशन किया। महिला ने तीन बेटों को जन्म दिया है।

डा. कांत के अनुसार डिलीवरी ढाई महीने पहले होने से बच्चों के वजन में काफी अंतर है। जन्म के दौरान पहले बच्चे का वजन 1600 ग्राम, दूसरे का 1400 ग्राम व तीसरे का 1200 ग्राम आंका गया है। यह एक नॉर्मल डिलीवरी में पैदा होने वाले बच्चे के अनुपात में बहुत कम है। बच्चों के पिता ने कहा कि भगवान ने एक साथ उनकी झोली में ढेर सारी खुशियां डाल दी हैं।

मप्र में है विश्वप्रसिद्ध 'प्रेम का मंदिर' जानिए क्यों पड़ा यह नाम...



भोपाल। खजुराहो, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विलक्षण ग्रामीण परिवेश के कारण भारत ही नहीं पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह भारत के ह्दय स्थल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश राज्य का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है। यह मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है।

खजुराहो में स्थित मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यहां स्थित सभी मंदिर पूरी दुनिया को भारत की ओर से प्रेम के अनूठे उपहार हैं, साथ ही एक विकसित और परिपक्व सभ्यता का प्रमाण है। खजुराहो में स्थित मंदिरों का निर्माण काल ईसा के बाद 950 से 1050 के मध्य का माना जाता है। इनका निर्माण चंदेल वंश के शासनकाल में हुआ।

ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में किसी समय खजूर के पेड़ों की भरमार थी। इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ। मध्यकाल में यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का प्रमुख केन्द्र माने जाते थे। वास्तव में यहां 85 मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु कालान्तर में मात्र 22 ही शेष रह गए।

खजुराहो में स्थित सभी मंदिरों का निर्माण लगभग 100 वर्षों की छोटी अवधि में होना रचनात्मकता का अद्भूत प्रमाण है। किंतु चंदेल वंश के पतन के बाद यह मंदिर उपेक्षित हुए और प्राकृतिक दुष्प्रभावों से जीर्ण-शीर्ण हुए। परंतु इस सदी में ही इन मंदिरों को फिर से खोजा गया, उनका संरक्षण किया गया और वास्तुकला के इस सुंदरतम पक्ष को दुनिया के सामने लाया गया।

इन मंदिरों के भित्ति चित्र चंदेल वंश की जीवन शैली और काल को दर्शाने के साथ ही काम कला के उत्सवी पक्ष को प्रस्तुत करते है। मंदिरों पर निर्मित यह भित्ति चित्र चंदेल राजपूतों के असाधारण दर्शन और विकसित विचारों को ही प्रस्तुत नहीं करती वरन वास्तुकला के कलाकारों की कुशलता और विशेषज्ञता का सुंदर नमूना है।

चंदेल शासकों द्वारा निर्मित यह मंदिर अपने काल की वास्तुकला शैली में सर्वश्रेष्ठ थे। इन मंदिरों में जीवन के चार पुरुषार्थों में एक काम कला के विभिन्न मुद्राओं को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रतिमाओं के माध्यम से दर्शाया गया है।

प्राचीन मान्यताएं

खजूराहो के मंदिरों का निर्माण करने वाले चंदेल शासकों को चंद्रवंशी माना जाता है यानि इस वंश की उत्पत्ति चंद्रदेव से माना जाता है। इस वंश की उत्पत्ति के पीछे किवदंती है कि एक ब्राह्मण की कन्या हेमवती को स्नान करते हुए देखकर चंद्रदेव उस पर मोहित हो गए।

हेमवती और चंद्रदेव के मिलन से एक पुत्र चंद्रवर्मन का जन्म हुआ। जिसे मानव और देवता दोनों का अंश माना गया। किंतु बिना विवाह के संतान पैदा होने पर समाज से प्रताडि़त होकर हेमवती ने जंगल में शरण ली। जहां उसने पुत्र चन्दवर्मन के लिए माता और गुरु दोनों ही भूमिका का निर्वहन किया।

चन्द्रवर्मन ने युवा होने पर चंदेल वंश की स्थापना की। चन्द्रवर्मन ने राजा बनने पर अपनी माता के उस सपने का पूरा किया, जिसके अनुसार ऐसे मंदिरों का निर्माण करना था जो मानव की सभी भावनाओं, छुपी इच्छाओं, वासनाओं और कामनाओं को उजागर करे। तब चंद्रवर्मन ने खजुराहों के पहले मंदिर का निर्माण किया और बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने शेष मंदिरों का निर्माण किया।

एक अवधारणा यह भी है कि खजुराहो के मंदिरों में काम कला को प्रदर्शित करती मूर्तियां और मंदिरों के पीछे की विशेष उद्देश्य था। उस काल में हिन्दू मान्यताओं के अनुरुप बालक ब्रह्मचारी बनकर ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन करता था। तब इस अवस्था में उस बालक के लिए वयस्क होने पर गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों और लौकिक जीवन में अपनी भूमिका को जानने के लिए यह मूर्तियां और भित्तिचित्र ही श्रेष्ठ माध्यम थे।

खजुराहों में स्थित मंदिर में का निर्माण ऊंचे चबूतरे पर किया गया है। मंदिरों का निर्माण इस तरह से किया गया है, सभी सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित रहें। हर मंदिर में अद्र्धमंडप, मंडप और गर्भगृह बना है। सभी मंदिर तीन दिशाओं पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में समूहों में स्थित है। अनेक मंदिरों में गर्भगृह के बाहर तथा दीवारों पर मूर्तियों की पक्तियां हैं। जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियां, आलिंगन करते नर-नारी, नाग, शार्दूल और शाल-भंजिका पशु-पक्षियों की सुंदरतम पाषाण प्रतिमाएं उकेरी गई है।

यह प्रतिमाएं मानव जीवन से जुडें सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दु:ख, नृत्य, संगीत और उनकी मुद्राओं को दर्शाती है। यह शिल्पकला का जीवंत उदाहरण है। कुशल शिल्पियों द्वारा पाषाण में उकेरी गई प्रतिमाओं में अप्सराओं, सुंदरियों को खजुराहों में निर्मित मंदिरों के प्राण माना जाता है। क्योंकि शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं। जिनको देखने पर मन में कहीं भी अश्लील भाव पैदा नहीं होता, बल्कि यह तो कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर और कोमल पक्ष को दर्शाती है।

शिल्पकारों ने पाषाण प्रतिमाओं के चेहरे पर शिल्प कला से ऐसे भाव पैदा किए कि यह पाषाण प्रतिमाएं होते हुए भी जीवंत प्रतीत होती हैं। खजुराहो में मंदिर अद़भुत और मोहित करने वाली पाषाण प्रतिमाओं के केन्द्र होने के साथ ही देव स्थान भी है। इनमें कंडारिया मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, चौंसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, चतुर्भूज मंदिर, पाश्र्वनाथ मंदिर और आदिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस प्रकार यह मंदिर अध्यात्म अनुभव के साथ-साथ लौकिक जीवन से जुड़ा ज्ञान पाने का भी संगम स्थल है।

पहुंच के संसाधन

वायु मार्ग -हवाई मार्ग से सीधे खजुराहो पहुंचा जा सकता है। खजुराहो का हवाई अड्डा देश के प्रमुख और बड़े शहरों दिल्ली, आगरा और वाराणसी से नियमित उड़ाने उपलब्ध हैं। खजुराहो, काठमाण्डू से भी सीधे वायु सेवाओं से जुड़ा है।

रेलमार्ग -खजुराहो से सबसे निकटतम रेल्वे स्टेशन महोबा, जो यहां से लगभग 64 किलोमीटर दूर स्थित है और हरपालपुर रेल्वे स्टेशन, जिसकी खजुराहो से दूरी लगभग 94 किलोमीटर है। दिल्ली, वाराणसी, आगरा, चेन्नई, मुंबई और कोलकाता से आने वाले पर्यटकों के लिए खजुराहों पहुंचने के लिए सतना प्रमुख रेल्वे स्टेशन है। जो लगभग 117 किलोमीटर दूर स्थित है।

सड़क मार्ग -खजुराहो से नियमित बस सेवाएं नजदीक शहरों महोबा, हरपालपुर, सतना, झांसी, ग्वालियर और आगरा से जोड़ती हैं।

जयपुर और आगरा सड़क की दोनों सुरंगे हुईं आर-पार

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घाट की गुणी टनल प्रोजेक्ट की दूसरी सुरंग भी सोमवार को आरपार हो गई। जवाहर नगर बाईपास बस डिपो की साइड पर शाम करीब 5:40 बजे विस्फोट की सहायता से सुरंग के मुहाने की तीन मीटर मोटी चट्टान को भेदा गया। दो दिन पहले ही जयपुर से आगरा रोड की ओर पहली सुरंग खुली थी।

दोनों सुरंगों के छोर के आसपास की चट्टानों को हटाने में दो-तीन दिन लग जाएंगे। एक जयपुर से आगरा जाने और दूसरी आगरा से जयपुर आने वाले वाहनों के काम आएगी। सुरंगों में प्रत्येक 300 मीटर के बीच में इंटरकनेक्ट भी किया जाएगा ताकि जरूरत पड़ने पर वाहनों को एक से दूसरी सुरंग में ले जाया जा सके।

जेडीए के जोनल इंजीनियर संजीव जैन का कहना है कि एक सप्ताह के भीतर दोनों तरफ की खुदाई पूरी हो जाएगी और अगले साल जून तक वाहनों की आवाजाही शुरू हो जाएगी। सुरंग के अंदर नालियां व फुटपाथ बनाए जाएंगे, वेंटिलेशन की व्यवस्था करनी होगी। अग्निशमन उपकरण लगाने, लाइटिंग करने, दो जगह इंटरकनेक्ट करने व मीडियन बनाने का काम होगा। अंदर सीमेंट कंकरीट की रोड बनाई जाएगी।

नजर आई अजीब बीमारी, समूचा गांव जोड़ों के दर्द से पीड़ित

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ग्वालियर। शहर से 17 किमी दूर निरावली गांव में लगभग पांच सौ लोग रहस्यमय बीमारी से पीड़ित हैं। इन्हें जोड़ों के दर्द की शिकायत है। लगभग एक सप्ताह पहले यह बीमारी शुरू हुई और अब पूरा गांव इसकी चपेट में है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सोमवार को हरकत में आए और गांव में कैंप लगाकर लोगों का इलाज शुरू किया। डॉक्टरों के अनुसार, पीड़ितों का परीक्षण करने के साथ ही उनकी स्लाइड बनाई गई है, रिपोर्ट आने के बाद ही बीमारी के बारे में पता चल सकेगा।

स्वास्थ्य विभाग की टीम ने सुबह गांव पहुंच कर कैं प शुरू कर दिया। देर शाम तक 150 लोगों का परीक्षण किया जा चुका था, इनमें 90 बीमार मिले। टीम में बीएमएचओ डॉ प्रभात कौशल, डॉ.एमएस चौहान, डॉ. डीके वाजपेयी और डॉ. केके गुप्ता शामिल थे। फिलहाल दो हजार की आबादी वाले इस गांव में लगभग पांच सौ लोग इस बीमारी से पीड़ित बताए गए हैं।

गांव की एएनएम कमलेश कुशवाह का कहना है कि गांव में 15-20 लोग ऐसे हैं, जिन्हें शाम को बुखार आता है और जोड़ों में दर्द रहता है। 25 अक्टूबर को विभाग की टीम आई थी तब 13 लोगों की स्लाइड बनाई गई थी, जिसमें एक को फेल्सीपेरम मलेरिया निकला था, जिसे दवा दे दी गई थी।

हर घर में कोई न कोई बीमार

दैनिक भास्कर टीम को गांव के बाहर अशोक रावत दो युवकों मनीष रावत और सोनू के साथ उपचार के लिए शहर जाते मिले। उनका कहना था कि हर घर में कोई न कोई बीमार है। गांव में चबूतरे पर बैठे जगदीश सिंह, नारायणी, चिरौंजी ने बताया कि गांव की आबादी दो हजार है और 450 से अधिक लोग जोड़ों में दर्द से पीड़ित हैं, कई लोगों को बुखार की शिकायत है।

ग्रामीणों का कहना था कि आधा दर्जन लोग निजी अस्पतालों में भर्ती भी रह चुके हैं। दो लोग अब भी रिलीव नहीं हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग के डाक्टरों का कहना था कि 25 अक्टूबर को भी विभाग की टीम यहां आई थी, उस समय 13 लोग ही कैंप में दिखाने आए थे, जबकि ग्रामीणों का कहना है कि कैंप में दवाएं ही नहीं थीं तो दिखाने से क्या फायदा? डाक्टरों के अनुसार, जोड़ों में दर्द चिकनगुनिया के कारण भी होते हैं, इसलिए इसकी भी जांच कराई जा रही है।

जगह-जगह गंदगी

गांव में जगह-जगह गंदगी है, कच्ची सड़कों पर गंदा पानी भरा है, इसी गंदगी के पास स्थित हैंडपंप लगा है। ग्रामीणों का कहना है कि वे सरपंच से गंदगी साफ कराने के बारे में कई बार कह चुके हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। दो साल पहले निरावली के समीप स्थित जिगसौली गांव में अज्ञात बीमारी फैली थी, जिससे करीब आधा दर्जन लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद भी निरावली में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव नहीं कराया गया है। निरावली में गर्मी के दौरान कई मोरों की मौत भी हो चुकी थी।

नहीं मना पाए दीपावली

रमेश सिंह राठौर के परिवार में पांच लोग जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं। उनका कहना है कि छोटी दीपावली से उन्हें दर्द शुरू हुआ और अभी तक पीड़ा दूर नहीं हुई। दर्द के कारण दीपावली नहीं मना पाए। निजी चिकित्सकों से इलाज करा रहे हैं।

इलाज में लगा दिया खाद का पैसा

बीएमएचओ डॉ. प्रभात कौशल डॉक्टरों व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की टीम लेकर निरावली गांव पहुंचे तो उनसे ग्रामीणों ने तुरंत पूछा, ‘अब आए हैं जन स्वास्थ्य रक्षक, जब गांव के हर घर में लोग बीमार पड़े हैं। बीज, खाद का पैसा घरवालों के इलाज में खर्च कर चुके हैं। मीडिया वाले आ गए हैं, इस कारण दिखाई दे रहे हो वरना कहां दिखाई देते हो।’ स्वास्थ्य अधिकारियों ने उन्हें समझाया कि यह वक्त इलाज कराने का है, गुस्सा करने का नहीं।

ये मिले मरीज

अशोक रावत, मनीष, सोनू, जगदीश सिंह, नारायणी, चिरौंजी, लल्लू, लक्ष्मी, ममता, रामहेती, गुटई रावत, बालकिशन, रामदुलारी, संपत बाई, अजय सिंह, तमन सिंह, शांति बाई, रमेश सिंह, गीता, हरिओम, हेमलता, रिंकू, भूरीबाई, कला बाई, वरीक्षा, अजय, अजीत, विमला आदि।

जब भारत के इस ब्रिगेडियर ने पाक को पिला दिया था पानी!

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कश्मीर. विवाद ने जम्मू-कश्मीर ही नहीं पूरे देश के लोगों को काफी नुकसान पहुंचाया है। आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सभी तरह से देश और जम्मू-कश्मीर के अवाम को इस विवाद ने बर्बाद कर दिया है। हम अपने पाठकों के लिए जम्मू-कश्मीर के इतिहास, विवाद, वहां के रीति रिवाज सब कुछ बताने का सीरिज चला रहे हैं। इसके तहत आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे चला गया कश्मीर का इतना भू-भाग

22 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना के साथ कबाइलियों ने मुजफ्फराबाद की ओर कूच किया। लेकिन कश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचन्द्र महाजन के बार-बार सहायता के अनुरोध पर भी भारत सरकार उदासीन रही। भारत सरकार के गुप्तचर विभाग ने भी इस सन्दर्भ में कोई पूर्व जानकारी नहीं दी थी।

कश्मीर के ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने बिना वर्दी के 250 जवानों के साथ पाकिस्तान की सेना को रोकने की कोशिश की और वे सभी वीरगति को प्राप्त हुए। आखिर 24 अक्तूबर को माउंटबेटन ने "सुरक्षा कमेटी"की बैठक की। परन्तु बैठक में महाराजा को किसी भी प्रकार की सहायता देने का निर्णय नहीं किया गया। 26 अक्तूबर को पुन: कमेटी की बैठक हुई। अध्यक्ष माउन्टबेटन अब भी महाराजा के हस्ताक्षर सहित विलय प्राप्त न होने तक किसी सहायता के पक्ष में नहीं थे।

आखिरकार 26 अक्तूबर को सरदार पटेल ने अपने सचिव वी.पी. मेनन को महाराजा के हस्ताक्षर युक्त विलय दस्तावेज लाने को कहा। सरदार पटेल स्वयं वापसी में वी.पी. मेनन से मिलने हवाई अड्डे पहुंचे। विलय पत्र मिलने के बाद 26 अक्तूबर को हवाई जहाज द्वारा श्रीनगर में भारतीय सेना भेजी गई। 'दूसरे, जब भारत की विजय-वाहिनी सेनाएं कबाइलियों को खदेड़ रही थीं।

सात नवम्बर को बारहमूला कबाइलियों से खाली करा लिया गया था परन्तु पं. नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की सलाह पर तुरंत युद्ध विराम कर दिया। परिणामस्वरूप कश्मीर का एक तिहाई भाग जिसमें मुजफ्फराबाद, पुंछ, मीरपुर, गिलागित आदि क्षेत्र आते हैं, पाकिस्तान के पास रह गए, जो आज भी "आजाद कश्मीर"के नाम से पुकारे जाते हैं। तीसरे, माउन्टबेटन की सलाह पर पं. नेहरू एक जनवरी, 1948 को कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में ले गए। सम्भवत: इसके द्वारा वे विश्व के सामने अपनी ईमानदारी छवि का प्रदर्शन करना चाहते थे तथा विश्वव्यापी प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहते थे। पर यह प्रश्न विश्व पंचायत में युद्ध का मुद्दा बन गया।

500 साल जीने वाले 'चमत्कारी' बाबा

आगरा।मथुरा में यमुना तीरे रहने वाले देवराहा बाबा को एक चमत्कारी और अवतारी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि जून सन् 1990 में समाधि पर जाने से पहले इस सिद्ध बाबा ने 500 साल तक अपना जीवन जीया था। उनका संभावित जन्म सन् 1477 में हुआ था। इनसे पहले केवल तुलसीदास ने 500 साल तक अपना जीवन जीया था। पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लड़की लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे।
बाबा देवराहा खुद को भी एक अवतारी व्यक्त कहते थे। उनका कहना था कि वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। कुंभ के समय बाबा नदी किनारे प्रवास करते थे। वहां अपने भक्तों के सर पर पैर रख कर आशिर्वाद दिया करते थे।
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि उनके पिता जब बच्चे थे तो बाबा के चरणों में पूजा करते थे। उस समय भी बाबा की उम्र काफी अधिक थी। बाबा के भक्तों में राजीव गांधी का नाम भी शुमार था। यमुना के किनारे वृन्दावन में निवास करने वाले बाबा देवराहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

क्या आपको पता है, कब से हुई छठ पूजा की शुरुआत

नागपुर. छठ पर्व के प्रति लोगों की आस्था ने उपराजधानी में रहने वाले लोगों को भी प्रभावित किया है, जिससे यहां के लोग भी बड़ी संख्या में इस पर्व को मनाने लगे हैं।

इस पर्व में षष्ठी तिथि के दिन नदी या तालाब में खड़े होकर लोग डूबते सूर्य को अघ्र्य देते हैं तथा सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं। इसके साथ ही यह पर्व सम्पन्न होता है। इस पर्व में नदी या तालाब में जाकर सूर्य की पूजा क्यों होती है? यह सूर्य षष्ठी से सम्बन्धित कथाओं से जाना जा सकता है।

भगवान राम की सूर्य पूजा

इस पर्व में कमर तक जल में उतरकर सूर्य को अघ्र्य देने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार भगवान श्री रामचन्द्र जी जब चौदह वर्ष के बनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने सीता माता के साथ सरयू नदी में जाकर अपने कुल देवता सूर्य की पूजा की थी तथा भांति-भांति के पकवानों से उन्हें अघ्र्य दिया था। तभी से इस परम्परा की शुरुआत हुई।

कर्ण की सूर्य पूजा

दूसरी कथा के अनुसार सूर्य षष्ठी पूजा की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। कर्ण को मित्र बनाने के बाद दुयरेधन ने कर्ण को अंग देश का राजा बना दिया। बिहार स्थित मुंगेर ही प्राचीन काल में अंग देश के नाम से जाना जाता था।

कर्ण को शास्त्रों में सूर्यदेव का पुत्र कहा गया है। यह नियमित गंगा नदी में कमर तक डूबकर सूर्य देव की पूजा किया करता था। कर्ण के कहने पर यहां के लोग कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को नदी के तट पर जाकर सूर्य देव की पूजा करने लगे।

जल में रहती हैं षष्ठी देवी

लोक मान्यता के अनुसार षष्ठी देवी जल में निवास करती हैं। यह भगवान सूर्य की बहन हैं। षष्ठी देवी संतान सुख देने वाली देवी हैं। मान्यता है कि छोटे बच्चे जब तक अपने पैर के अंगूठे को मुंह में नहीं डालते हैं तब तक यह देवी बच्चे की रक्षा करती हैं।

जब बच्चा पैर का अंगूठा मुंह में डाल लेता है तब देवी बच्चे के पास से चली जाती हैं।षष्ठी तिथि के दिन जल में प्रवेश करके सूर्य को जल देने से षष्ठी देवी और सूर्य दोनों को ही एक साथ उनका प्रसाद मिल जाता है।

अल्लाह के नाम से सजा बकरा, देखने के लिए आएंगे आमिर खान

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नागपुर. बकरा ईद के नजदीक आते ही उपराजधानी में बकरा व्यवसाय में भारी तेजी आ जाती है। खूबियों से भरे बकरे लोगों की नजर खींचने लगते हैं। सोमवार को कीमत व वजन के लिहाज से इस साल का अब तक का सबसे अव्वल बकरा गीतांजलि चौक पर लोगों की निगाहें अपनी तरफ खींचता रहा। छिंदवाड़ा से लाए गए इस तोतापरी बकरे की कीमत 3 लाख 786 रुपए रखी गई है।

इसका वजन 110 किलोग्राम है। सबसे खास बात यह है कि इसके शरीर पर कुदरती तौर पर अल्लाह उकेरा हुआ है। इसी खूबी की वजह से यह छिंदवाड़ा के लालबाग में भी चर्चित रहा है। बकरा पालन में खास रुचि रखने वाले तथा आमिर खान फैन्स क्लब के सचिव नदीम खान अब्बुमियां ने कहा कि पिछले साल आमिर खान की ओर से नागपुर से बकरे लेने में दिलचस्पी दिखाई गई थी।

लिहाजा इस विशिष्ट बकरे के बारे में उनके निजी सचिव को सूचना दी गई है। आमिर भाई को बकरा दिखाने इसे मुंबई बुलाया गया है। श्री खान के मुताबिक बकरे पर अल्लाह नाम उकेरा हुआ है, इसीलिए यह अनमोल है। इसके लिए हदिया मांगा जाएगा।

नागपुर का पहला हक

बकरे के मालिक अब्दुल शमीम ने कहा कि नागपुर शहर से मेरे रिश्ते काफी पुराने और मजबूत हैं। बड़े प्यार-मोहब्बत से पाले हुए बकरों पर मैं पहला हक नागपुर का ही समझता हूं। इसकी कई वजहें हैं। उन्होंने बताया कि बकरे के खाने पीने का ख्याल बड़ा बेटा रमीज रखता है। बकरा रोज 2 किलो गेंहू, 1 किलो मक्का, सप्ताह में कुछ दिन काजू, किशमिश, बादाम तथा दूध पीता है।

तोतापरी है बकरा

दुनिया में सिर्फ अलवर में तोतापरी नस्ल के बकरे होते हैं। अब्दुल शमीम का बकरा तोतापरी व जमनापारी की संकर नस्ल का बकरा है। नदीम खान ने बताया कि तोतापरी नस्ल के हर बकरे में 6 रंग होते हैं।

अ. शमीम का बकरा तोतापरी व जमनापारी ऊंची नस्ल की संकर नस्ल है। मुंबई में अलवर के उद्धव सिंह का इसी नस्ल का बकरा 280 किलो वजन का है, जिसकी कीमत 5 लाख 80 हजार रखी गई है। इसका मुंह तोतापरी बकरे का ही होता है। इसकी नाक तोते की तरह होती है तथा परी की तरह लंबे बालों का बिखराव होने से इसे तोतापरी के नाम से जाना जाता है।
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