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04 दिसंबर 2011

कोटा दक्षीण विधायक ओम बिरला का जन्म दिन कल रक्तदान दिवस के रूप में मनाया

जी हाँ दोस्तों कोटा दक्षिण के विधायक ओम बिरला जो अपने निष्पक्ष समाज सेवा कार्यों से आम जनता के बीच हर दिल अज़ीज़ बन गये हैं कल उनका जन्म दिन कोटा के कार्यकर्ताओं ने रक्तदान दिवस के रूप में मनाया । ओम बिरला हाल ही में जयपुर में करंट लगने से बीमार हो गये थे जिन्हें लोगों की दुआओं से पुनर्जीवन मिला है ...... दोस्तों ओम बिरला किसी राजनितिक पार्टी के नेता या कार्यकर्ता का नाम नहीं है यह एक समाज सेवी छवि से जुड़े ऐसे कार्यकर्ता का नाम है जिसके नाम की छाप कोंग्रेसियों के दिलों में भी है और भाजपा का कार्यकर्ता होने के बाद भी मुस्लिम मतदाताओं में भी इनकी अपनी पेठ बनी हुई है ... कारण साफ़ है ओम बिरला ने कभी खुद को राजनितिक नहीं समझा केवल एक समाज सेवा की द्रष्टि से जो ही उनके पास काम लेकर आया उनका काम करते गये और गरीबों पीड़ितों में अपनी पहचान बनाने के लियें उन्होंने पहले सभी के दुक्ख दर्द को समझा और फिर अब अलग अलग माध्यमों से लोगों के दुःख दूर कर रहे हैं॥ भूखों को खाना देने के लियें ओम जी बिरला ने प्रसादी योजना चलाई और हर गली मोहल्लों में भूखों के लियें खाने के शिविर लगवाये ॥ नंगों को कपड़ा पहनाने के लियें इन्होने पड़ा बेंक खोला और सभी को कपड़े पहनाने का अभियान चलाया ॥ स्कूली बच्चों को किताबें कोपियों देने का अभियान चलाया ...बीमार के लियें दवा बेंक बनाया ..... पीड़ितों के लियें रक्तदान शिविर लगवा कर ब्लड बेंक में ब्लड जमा करवाया ....... जरूरत मंद को दानवीर की तरह से आर्थिक मदद दिलवाई और जब जहां जनता को दुःख दर्द में इनकी जरूरत पढ़ी इन्हें वहां अपनी कसोटी पर खुद उपस्थिति देकर सक्रिय भूमिका निभाने पर खरा पाया ...सहकारिता का क्षेत्र हो चाहे चिक्तिसा सेवा का चाहे साक्षरता का हर क्षेत्र में ओम जी बिरला के जिंदाबाद के नारे लगे है ऐसे में जहाँ यह जाते हैं वहां इन्हें एक धुन्धों हजार कार्यकर्ता मिलते हैं इनकी छवि पार्टी से अलग हठ कर खुद की समाज सेवी कार्यों से विशिष्ठ बनी है ऐसे हर दिल अज़ीज़ भाजपा विधायक ओम बिरला को अपने गृह जिले से कोन चुनाव हरा सकेगा यह देखने की बात है ओम जी बिरला को उनके जन्म दिन पर बधाई वोह जनता के दुःख दर्द हरे समाज सेवा कार्यों में लगे रहें इसी उम्मीद के साथ ,............... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

यह है गीता का ज्ञान

(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)
श्रीभगवानुवाच
ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्‌ ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्‌ ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- आदिपुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले (आदिपुरुष नारायण वासुदेव भगवान ही नित्य और अनन्त तथा सबके आधार होने के कारण और सबसे ऊपर नित्यधाम में सगुणरूप से वास करने के कारण ऊर्ध्व नाम से कहे गए हैं और वे मायापति, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही इस संसाररूप वृक्ष के कारण हैं, इसलिए इस संसार वृक्ष को 'ऊर्ध्वमूलवाला' कहते हैं) और ब्रह्मारूप मुख्य शाखा वाले (उस आदिपुरुष परमेश्वर से उत्पत्ति वाला होने के कारण तथा नित्यधाम से नीचे ब्रह्मलोक में वास करने के कारण, हिरण्यगर्भरूप ब्रह्मा को परमेश्वर की अपेक्षा 'अधः' कहा है और वही इस संसार का विस्तार करने वाला होने से इसकी मुख्य शाखा है, इसलिए इस संसार वृक्ष को 'अधःशाखा वाला' कहते हैं) जिस संसार रूप पीपल वृक्ष को अविनाशी (इस वृक्ष का मूल कारण परमात्मा अविनाशी है तथा अनादिकाल से इसकी परम्परा चली आती है, इसलिए इस संसार वृक्ष को 'अविनाशी' कहते हैं) कहते हैं, तथा वेद जिसके पत्ते (इस वृक्ष की शाखा रूप ब्रह्मा से प्रकट होने वाले और यज्ञादि कर्मों द्वारा इस संसार वृक्ष की रक्षा और वृद्धि करने वाले एवं शोभा को बढ़ाने वाले होने से वेद 'पत्ते' कहे गए हैं) कहे गए हैं, उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूलसहित सत्त्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है। (भगवान्‌ की योगमाया से उत्पन्न हुआ संसार क्षणभंगुर, नाशवान और दुःखरूप है, इसके चिन्तन को त्याग कर केवल परमेश्वर ही नित्य-निरन्तर, अनन्य प्रेम से चिन्तन करना 'वेद के तात्पर्य को जानना' है)॥1॥
अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः ।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके ॥
भावार्थ : उस संसार वृक्ष की तीनों गुणोंरूप जल के द्वारा बढ़ी हुई एवं विषय-भोग रूप कोंपलोंवाली ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध -ये पाँचों स्थूलदेह और इन्द्रियों की अपेक्षा सूक्ष्म होने के कारण उन शाखाओं की 'कोंपलों' के रूप में कहे गए हैं।) देव, मनुष्य और तिर्यक्‌ आदि योनिरूप शाखाएँ (मुख्य शाखा रूप ब्रह्मा से सम्पूर्ण लोकों सहित देव, मनुष्य और तिर्यक्‌ आदि योनियों की उत्पत्ति और विस्तार हुआ है, इसलिए उनका यहाँ 'शाखाओं' के रूप में वर्णन किया है) नीचे और ऊपर सर्वत्र फैली हुई हैं तथा मनुष्य लोक में ( अहंता, ममता और वासनारूप मूलों को केवल मनुष्य योनि में कर्मों के अनुसार बाँधने वाली कहने का कारण यह है कि अन्य सब योनियों में तो केवल पूर्वकृत कर्मों के फल को भोगने का ही अधिकार है और मनुष्य योनि में नवीन कर्मों के करने का भी अधिकार है) कर्मों के अनुसार बाँधने वाली अहंता-ममता और वासना रूप जड़ें भी नीचे और ऊपर सभी लोकों में व्याप्त हो रही हैं। ॥2॥
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च सम्प्रतिष्ठा ।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्‍गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा ॥
भावार्थ : इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता (इस संसार का जैसा स्वरूप शास्त्रों में वर्णन किया गया है और जैसा देखा-सुना जाता है, वैसा तत्त्व ज्ञान होने के पश्चात नहीं पाया जाता, जिस प्रकार आँख खुलने के पश्चात स्वप्न का संसार नहीं पाया जाता) क्योंकि न तो इसका आदि है (इसका आदि नहीं है, यह कहने का प्रयोजन यह है कि इसकी परम्परा कब से चली आ रही है, इसका कोई पता नहीं है) और न अन्त है (इसका अन्त नहीं है, यह कहने का प्रयोजन यह है कि इसकी परम्परा कब तक चलती रहेगी, इसका कोई पता नहीं है) तथा न इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति ही है (इसकी अच्छी प्रकार स्थिति भी नहीं है, यह कहने का प्रयोजन यह है कि वास्तव में यह क्षणभंगुर और नाशवान है) इसलिए इस अहंता, ममता और वासनारूप अति दृढ़ मूलों वाले संसार रूप पीपल के वृक्ष को दृढ़ वैराग्य रूप (ब्रह्मलोक तक के भोग क्षणिक और नाशवान हैं, ऐसा समझकर, इस संसार के समस्त विषयभोगों में सत्ता, सुख, प्रीति और रमणीयता का न भासना ही 'दृढ़ वैराग्यरूप शस्त्र' है) शस्त्र द्वारा काटकर (स्थावर, जंगमरूप यावन्मात्र संसार के चिन्तन का तथा अनादिकाल से अज्ञान द्वारा दृढ़ हुई अहंता, ममता और वासना रूप मूलों का त्याग करना ही संसार वृक्ष का अवान्तर 'मूलों के सहित काटना' है।)॥3॥
ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः ।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी ॥
भावार्थ : उसके पश्चात उस परम-पदरूप परमेश्वर को भलीभाँति खोजना चाहिए, जिसमें गए हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदिपुरुष नारायण के मैं शरण हूँ- इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिए॥4॥
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषाअध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्‌ ॥
भावार्थ : जिनका मान और मोह नष्ट हो गया है, जिन्होंने आसक्ति रूप दोष को जीत लिया है, जिनकी परमात्मा के स्वरूप में नित्य स्थिति है और जिनकी कामनाएँ पूर्ण रूप से नष्ट हो गई हैं- वे सुख-दुःख नामक द्वन्द्वों से विमुक्त ज्ञानीजन उस अविनाशी परम पद को प्राप्त होते हैं॥5॥
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः ।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥
भावार्थ : जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही, वही मेरा परम धाम ('परम धाम' का अर्थ गीता अध्याय 8 श्लोक 21 में देखना चाहिए।) है॥6॥

कुरान का संदेश


जानें, क्या हैं सफल जीवन के लिए शिव, शम्भु व शंकर नाम के मायने?



पुराणों में शिव महिमा उजागर करती है कि काल पर शिव का नियंत्रण है, न कि शिव काल के वश में। इसलिए शिव महाकाल भी पुकारे जाते हैं। ऐसे शिव स्वरूप में लीन रहकर ही काल पर विजय पाना भी संभव है।

सांसारिक जीवन के नजरिए से शिव व काल के संबंधों से जुड़ा गूढ़ संकेत यही है कि काल यानी वक्त की कद्र करते हुए उसके साथ बेहतर तालमेल व गठजोड़ ही जीवन व मृत्यु दोनों ही स्थिति में सुखद है। जिसके लिए शिव भाव में रम जाना ही अहम है। शिव भाव से जुडऩे के लिए वेदों में आए शिव के अलावा अन्य दो नामों शम्भु व शंकर के मायनों को भी समझना जरूरी है-

वेदों के मुताबिक शम्भु मोक्ष और शांति देने वाले हैं। वहीं शंकर शमन करने वाले और शिव मंगल और कल्याण कर्ता। इस तरह शम्भु नाम यही भाव प्रकट करता है कि शांति की चाहत के लिए अशुभ से परे रहें और शुभ से जुड़े। जिसके लिए क्षमा की तरह अच्छे भाव व कर्मों को अपनाए। जिससे मन दोषरहित होने से भय-रोगों से मुक्त रहेगा और मनचाहे लक्ष्य को पाना संभव होगा।

शंकर का मतलब है शमन करने वाला। यह नाम स्मरण यही भाव जगाता है कि मन को हमेशा शांत, संयमित व संकल्पित रखें, ठीक शंकर के योगी स्वरूप की तरह। संकल्पों से मन को जगाए रखने से ही सारे कलहों का शमन यानी शांति होती रहेगी और सफलता का रास्ता भी साफ दिखाई देगा।

शंभु व शंकर के साथ शिव नाम का अर्थ व भाव है - मंगल या कल्याणकारी। इसके पीछे कर्म, भाव व व्यवहार में पावनता का संदेश है। जिसके लिए जीवन में हर तरह से पवित्रता, आनन्द, ज्ञान, मंगल, कुशल व क्षेम को अपनाएं ताकि स्वयं के साथ दूसरों का भी शुभ हो। क्योंकि शिव नाम के साथ मंगल भावों से जुडऩे से मन की अनेक बाधाएं, विकार, कामनाएं और विकल्प नष्ट हो जाते हैं।

इस तरह शिव, शंभु हो या शंकर नाम हमेशा जीवन में निर्मलता, सफलता और महामंगल ही लाने वाले हैं।

जानिए, क्यों निकाले जाते हैं ताजिए

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मुहर्रम मुस्लिम कैलेण्डर का पहला महीना है। यह पर्व मूलत: इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। सऊदी अरब में मक्का में कर्बला की घटना की याद में यह पर्व मनाया जाता है जिसमें अल्लाह के देवदूत मोहम्मद साहब की पुत्री फातिमा के दूसरे बेटे इमाम हुसैन का निर्दयतापूर्वक कत्ल कर दिया गया था।

यजीद की सेना के विरुद्ध जंग लड़ते हुए इमाम हुसैन के पिता हजरत अली का संपूर्ण परिवार मौत के घाट उतार दिया गया था और मुहर्रम के दसवे दिन इमाम हुसैन भी इस युद्ध में शहीद हो गए थे। मुहर्रम के दसवें दिन ही मुस्लिम संप्रदाय द्वारा ताजिए निकाले जाते हैं। लकड़ी, बांस व रंग-बिरंगे कागज से सुसज्जित ये ताजिए हजरत इमाम हुसैन के मकबरे के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं।

इसी जुलूस में इमाम हुसैन के सैन्य बल के प्रतीकस्वरूप अनेक शस्त्रों के साथ युद्ध की कलाबाजियां दिखाते हुए चलते हैं। मुहर्रम के जुलूस में लोग इमाम हुसैन के प्रति अपनी संवेदना दर्शाने के लिए बाजों पर शोक-धुन बजाते हैं और शोक गीत(मर्शिया) गाते हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोग शोकाकुल होकर विलाप करते हैं और अपनी छाती पीटते हैं। इस प्रकार इमाम हुसैन की शहादत की याद में यह पर्व मनाया जाता है।

कड़वा काढ़ा नहीं घर का ये टेस्टी शर्बत करेगा सर्दी-खांसी,एसीडिटी का इलाज


बदलते मौसम के कारण सर्दी-खांसी, पेट खराब होना, एसीडिटी होना एक आम समस्या होती है। जिसका इलाज करने के लिए अधिकतर लोग घरेलु काढ़ा या कड़वी दवाईयां लेते हैं। अगर आप भी इन समस्याओं का इलाज करने के लिए कड़वी दवाईयां लेकर थक चूके हैं तो अपनाइए नीचे लिखा ये टेस्टी इलाज।

तुलसी की पत्तियों और गुड़, नीबू के साथ मिलकर स्वादिष्ट पेय तुलसी सुधा बनाया जाता है। यह स्वादिष्ट होने के साथ साथ जुकाम, खांसी, सिरदर्द और पेट के गैस और एसीडिटी रोगों को खत्म करता है, पाचन के लिये अच्छा होता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढा़ता है।

सामग्री- तुलसी की पत्तियां आधा कप,गुड़ - 3/4 कप, नीबू - 5 नीबू का रस (मध्यम आकार के)छोटी इलाइची 10, पानी 10 कप।

विधि - तुलसी की पत्तियों व नीबू का रस निकाल लीजिए। तुलसी की पत्तियां और इलाइची को नीबू के रस के साथ बारीक पीस लीजिये। पानी को गुड़ डालकर उबलने रख दीजिये, पानी में उबाल आने और गुड़ घुलने के बाद गैस बन्द बन्द कर दीजिये। पानी जब थोड़ा गरम रह जाय, तब गुड़ घुले पानी में तुलसी और इलाइची का पेस्ट जो नीबू के रस के साथ बानाया है, मिला कर 2 घंटे के लिये ढक कर रख दीजिये।

अच्छी तरह ठंडा होने के बाद तुलसी का शर्बत छान लीजिये, स्वादिष्ट तुलसी सुधा तैयार है। गर्मी के मौसम में ठंडा या नार्मल तापमान पर तुलसी सुधा पीजिये और सर्दियों में गरम गरम चाय की तरह से तुलसी सुधा पीजिये। तुलसी सुधा पेय को आप फ्रिज में रखकर 15 दिन तक पी सकते हैं।

ये है बिना दवाई, जवान रहने का अनोखा और कमाल का आसान तरीका,

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अगर आप बिना दवाई के हमेशा जवान बनें रहना चाहते है तो आपके लिए सबसे आसान और बिना खर्च का तरीका बताया जा रहा है। इस अनोखे तरीके से आप हमेशा जवान बने रहेंगे। ये आयुर्वेद का खास तरीका है। इसे करने में आपको परेशानी भी नहीं होगी न ही किसी प्रकार का कोई खर्च आपको करना पड़ेगा। इस प्रयोग से आपके चहरे पर हमेशा जवानी की चमक बनी रहेगी।



इस अनोखे तरीके में आपको सीत्कार का शब्द करते हुए सांस लेना है। इस अनोखे तरीके में आपको नाक से सांस नहीं लेना है बल्कि मुंह और होठों को गोलाकार बनाना है। जीभ के दाएं और बाएं के दोनों किनारों को इस प्रकार मोडऩा है कि जीभ का आकार गोलाकार हो जाए। इस गोलाकार जीभ को गोल किए गए होठों से मिलाकर इसके कोने को तालू से लगाना है। अब सीत्कार के समान आवाज करते हुए मुंह से सांस लें। फिर सांस रोक के नाक के दोनों छेदों से सांस छोड़ें । बार बार इस क्रिया को दोहराएं। इसे बैठकर या खड़े होकर भी किया जा सकता है। इस तरीके को आयुर्वेद में सीत्कारी प्राणायाम कहा जाता है।

क्या फायदा होता है इससे : इस अनोखे तरीके से आपके चेहरे पर चमक उत्पन्न हो जाती है। दिनभर स्फूर्ति और उत्साह बना रहता है। इसके नियमित अभ्यास से अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। नींद न आना, आलस और भूख-प्यास की समस्या खत्म हो जाती है। चेहरे की झुर्रियां समाप्त होकर त्वचा सुंदर बन जाती है।

शायद इसी को कहते हैं जाको रखे साईयां मार सके ना कोये!

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जयपुर.सोढ़ाला सब्जी मंडी में होलसेल दुकानदार बबलू सैनी की कार स्वेज फार्म नाले किनारे स्थित वेद विला कॉलोनीमें घर के बाहर खड़ी थी। ढलान के कारण अचानक वह लुढ़कने लगी और दो फुट ऊंची दीवार तोड़ती हुई नाले के पास ढलान में मकान के चबूतरे पर जा टिकी। क्रेन की सहायता से कार को निकाला गया।

यूं बची कार

कार का अगला हिस्सा चबूतरे पर टिक गया और ड्राइवर साइड का टायर हवा में लटक गया, जबकि दूसरी तरफ का टायर दीवार पर टिका रह गया। पिछला हिस्सा सीढ़ियों पर टिकने से वह पचास फुट गहरे नाले में जाने से बच गई।

दोबारा कार देखकर चिल्लाने लगा

कार जहां गिरी, वहीं चार साल का आयूष खेल रहा था और बड़ी बहन नेहा कपड़े सुखा रही थी। कार गिरती देख नेहा नाले में कूद गई। पत्थर गिरने से आयुष के पैर पर हल्की चोट आई। बाद में आयुष को बहन कार के पास ले आई तो वह चिल्लाने लगा। पहले वह आराम से खेल रहा था।

इस वजह से लुढक सकती है कार

एक्सपर्ट का मानना है कि ढलान में खड़ी कार हैंड ब्रेक नहीं लगाने या हैंड ब्रेक सही नहीं लगने से लुढ़क सकती है। इसके लिए कार को ढलान में खड़ी करने से पहले यह अच्छी तरह से जांच लें कि हैंड ब्रेक सही तरीके से लगे हैं या नहीं।

क्या आपको लकवा है? यह टोटके करके देखें

वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में कब कोई इंसान किस बीमारी की चपेट में आ जाए, कहना मुश्किल है। लकवा ऐसी ही एक बीमारी है जो अचानक ही किसी हंसते-खेलते व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेती है। मेडिकल साइंस के इस दौर में लकवा का ईलाज भी संभव है। यदि ईलाज करवाने के साथ-साथ नीचे लिखे कुछ टोटके भी करें तो संभव है लकवा से पीडि़त व्यक्ति और भी जल्दी ठीक हो जाए।

टोटके

- एक काले कपड़े में पीपल की सूखी जड़ को बांधकर लकवा से पीडि़त व्यक्ति के सिर के नीचे रखें तो कुछ ही दिनों में इसका असर दिखने लगेगा।

- प्रत्येक शनिवार के दिन एक नुकीली कील द्वारा लकवा पीडि़त अंग को आठ बार उसारकर शनिदेव का स्मरण करते हुए पीपल के वृक्ष की मिट्टी में गाड़ दें। साथ ही यह निवेदन करें कि जिस दिन अमुक रोग दूर हो जाएगा, उस दिन कील निकाल लेंगे। जब लकवा ठीक हो जाए तब शनिदेव व पीपल को धन्यवाद देते हुए वह कील निकालकर नदी में प्रवाहित कर दें।

- लकवे से पीडि़त व्यक्ति को लोहे की अंगूठी में नीलम एवं तांबे की अंगूठी में लहसुनिया जड़वाकर क्रमश: मध्यमा और कनिष्ठा अंगुली में पहना दें। इससे भी लकवा रोग में काफी लाभ होगा।

गीता जयंती 6 को, मानव जाति की अनमोल धरोहर है यह ग्रंथ

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विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती। हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं श्रीभगवान के श्रीमुख से हुआ है-

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।

श्रीगीताजी का जन्म धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को हुआ था। यह तिथि मोक्षदा एकादशी के नाम से विख्यात है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल, धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है।

इसलिए इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है। इसके छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में इतना सत्य, ज्ञान व गंभीर उपदेश भरे हैं जो मनुष्यमात्र को नीची से नीची दशा से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठाने की शक्ति रखते हैं।

सूअर ने आश्यचर्यजनक रूप से अपने अगले पैरों पर चलना सीख लिया

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शारीरिक रूप से अक्षम पैदा हुए एक सूअर ने आश्यचर्यजनक रूप से अपने अगले पैरों पर चलना सीख लिया है।

पूर्वी चीन के अन्हुल प्रांत में जुलाई माह में पैदा हुए इस सूअर के पिछले दो पैर नहीं हैं। इसके मालिक के अनुसार जन्म के बाद कुछ दिनों तक इसे चलने में काफी तकलीफ हुई।

सूअर के मालिक और किसान गे जिपिंग ने इसकी तकलीफ को देखते हुए शुरूआती कुछ दिनों अगले पैरों पर चलने में इसकी मदद की, लेकिन कुछ ही दिनों में यह इसमें इतना कुशल हो गया कि बिना किसी सहारे के अगले दो पैरों पर चलने में सक्षम हो गया है। फिलहाल यह सूअर स्वस्थ है और इसका वजन 30 किलोग्राम है।

गौरतलब है कि यह पहला मामला नहीं है जब लोगों के सामने ऐसा मामला आया है। पिछले वर्ष भी हेनान प्रांत में एक दो पैरों वाला सूअर पैदा हुआ था, जो सामान्य रूप से अपना जीवन जी रहा है और दो पैरों पर ही चलता है।
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