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08 दिसंबर 2011

गीता का सार

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)
श्रीभगवानुवाच
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए ध्यान योग में निरन्तर दृढ़ स्थिति (परमात्मा के स्वरूप को तत्त्व से जानने के लिए सच्चिदानन्दघन परमात्मा के स्वरूप में एकी भाव से ध्यान की निरन्तर गाढ़ स्थिति का ही नाम 'ज्ञानयोगव्यवस्थिति' समझना चाहिए) और सात्त्विक दान (गीता अध्याय 17 श्लोक 20 में जिसका विस्तार किया है), इन्द्रियों का दमन, भगवान, देवता और गुरुजनों की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मों का आचरण एवं वेद-शास्त्रों का पठन-पाठन तथा भगवान्‌ के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्टसहन और शरीर तथा इन्द्रियों के सहित अन्तःकरण की सरलता॥1॥
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌॥
भावार्थ : मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण (अन्तःकरण और इन्द्रियों के द्वारा जैसा निश्चय किया हो, वैसे-का-वैसा ही प्रिय शब्दों में कहने का नाम 'सत्यभाषण' है), अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध का न होना, कर्मों में कर्तापन के अभिमान का त्याग, अन्तःकरण की उपरति अर्थात्‌ चित्त की चञ्चलता का अभाव, किसी की भी निन्दादि न करना, सब भूतप्राणियों में हेतुरहित दया, इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें आसक्ति का न होना, कोमलता, लोक और शास्त्र से विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव॥2॥
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥
भावार्थ : तेज (श्रेष्ठ पुरुषों की उस शक्ति का नाम 'तेज' है कि जिसके प्रभाव से उनके सामने विषयासक्त और नीच प्रकृति वाले मनुष्य भी प्रायः अन्यायाचरण से रुककर उनके कथनानुसार श्रेष्ठ कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं), क्षमा, धैर्य, बाहर की शुद्धि (गीता अध्याय 13 श्लोक 7 की टिप्पणी देखनी चाहिए) एवं किसी में भी शत्रुभाव का न होना और अपने में पूज्यता के अभिमान का अभाव- ये सब तो हे अर्जुन! दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं॥3॥
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌॥
भावार्थ : हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं॥4॥
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव॥
भावार्थ : दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गई है। इसलिए हे अर्जुन! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है॥5॥

कुरान का संदेश

दत्त जयंती 10 को, अपने भक्तों की हर समस्या दूर करते हैं भगवान दत्तात्रेय


मार्गशीर्ष(अगहन) मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। दत्तात्रेय भगवान विष्णु के ही अवतार माने गए हैं। इस बार दत्त जयंती का पर्व 10 दिसंबर, शनिवार को है।

भगवान दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि भक्त के स्मरण करते ही भगवान दत्तात्रेय उसकी हर समस्या का निदान कर देते हैं इसलिए इन्हें स्मृतिगामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता कहा जाता है। श्रीमद्भगावत आदि ग्रंथों के अनुसार इन्होंने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ।

गिरनारक्षेत्र श्रीदत्तात्रेय भगवान की सिद्धपीठ है। इनकी गुरुचरणपादुकाएं वाराणसी तथा आबू पर्वत आदि कई स्थानों पर हैं। दक्षिण भारत में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके मंदिर में जाकर दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

बस दूध पीने के तरीके में इतना सा बदलाव कर पाइए सालों पुरानी कब्ज से छुटकारा



तनाव, सही डाइट न लेने, खराब रुटीन, नींद पूरी न होने की वजह से अक्सर कब्ज की शिकायत हो जाती है। इससे शरीर में आलस रहता है और पेट व सिर में भी जोरों का दर्द होता है। इसके अलावा, और भी दूसरी बीमारियां शरीर में घर कर जाती हैं। अगर आप भी सालों पुरानी कब्ज की बीमारी से परेशान हैं तो इससे बचने के लिए इस नीचे लिखा नुस्खा जरूर अपनाएं:

नुस्खा- कब्ज की शिकायत आमतौर पर देखी जाती है। बच्चों से लेकर वृद्ध तक इससे पीडि़त रहते हैं। मार्केट में जो भी कब्ज निवारक मिलते हैं। उनका बार-बार सेवन करना बहुत नुकसान पहुंचाता है। लोग कब्जनाशक चूर्ण खाने की आदत सी बना लेते हैं। रोज चूर्ण खाने वालों की आंते अपनी कार्यक्षमता गवां बैठती हैं। फिर बिना चूर्ण खाए उनका पेट ठीक नहीं रहता।

जो लोग कब्ज से ज्यादा परेशान रहते हैं, जिन्हें लंबे समय से कब्ज बना रहता है। जो बार-बार कब्ज रहने से दुखी हैं, उनके लिए बादाम का तेल बेहतर रहता है। इससे आंत की कार्यक्षमता बढ़ती है। रात के समय गरम दूध में बादाम तेल की 3 ग्राम मात्रा मिलाकर सेवन करें। प्रतिदिन तेल की मात्रा थोड़ी-थोड़ी बढ़ाकर 5-6 ग्राम तक ले जाएं। कुछ दिनों तक इसका सेवन करते रहने से बरसों बरस से परेशान कर रहा कब्ज भी खत्म हो जाता है।


शेषनाग पर सोते हैं भगवान विष्णु क्योंकि...


भगवान विष्णु को सभी देवताओं में प्रधान माना गया है। विष्णु ही वे भगवान है जिनके सबसे ज्यादा अवतार लिए जाने का वर्णन हमारे धर्मशास्त्रों में मिलता है। भगवान विष्णु के भयानक और कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हुए भी दर्शन किए जा सकते हैं। भगवान विष्णु के इसी स्वरूप के लिए शास्त्रों में लिखा गया है

- शान्ताकारं भुजगशयनं यानि शांतिस्वरूप और भुजंग यानि शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।

साधारण नजरिए से यह अनूठा देव स्वरूप अचंभित करता है कि काल के साये में रहकर भी देवता बिना किसी बैचेनी के शयन करते हैं। किंतु भगवान विष्णु के इस रूप में मानव जीवन से जुड़ा छुपा संदेश है - जिंदगी का हर पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक दायित्व अहम होते हैं। किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ ही अनेक समस्याओं, परेशानियों, कष्ट, मुसीबतों का सिलसिला भी चलता रहता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी और चिन्ताएं पैदा करता है।

जिनसे कईं मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है। भगवान विष्णु का शांत स्वरूप यही कहता है कि ऐसे बुरे वक्त में संयम, धीरज के साथ मजबूत दिल और ठंडा दिमाग रखकर जिंदगी की तमाम मुश्किलों पर काबू पाया जा सकता है। तभी विपरीत समय भी आपके अनुकूल हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति सही मायनों में पुरूषार्थी कहलाएगा। इस तरह विपरीत हालातों में भी शांत, स्थिर, निर्भय व निश्चिंत मन और मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन यानि जिम्मेदारियों को पूरा करना ही विष्णु के भुजंग या शेषनाग पर शयन का प्रतीक है।

यह गीता का ज्ञान

(क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय)
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥
भावार्थ : इस संसार में नाशवान और अविनाशी भी ये दो प्रकार (गीता अध्याय 7 श्लोक 4-5 में जो अपरा और परा प्रकृति के नाम से कहे गए हैं तथा अध्याय 13 श्लोक 1 में जो क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के नाम से कहे गए हैं, उन्हीं दोनों का यहाँ क्षर और अक्षर के नाम से वर्णन किया है) के पुरुष हैं। इनमें सम्पूर्ण भूतप्राणियों के शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है॥16॥
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥
भावार्थ : इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा- इस प्रकार कहा गया है॥17॥
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥
भावार्थ : क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग- क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ॥18॥
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्‌ ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥
भावार्थ : भारत! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है॥19॥
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ ।
एतद्‍बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥
भावार्थ : हे निष्पाप अर्जुन! इस प्रकार यह अति रहस्ययुक्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्त्व से जानकर मनुष्य ज्ञानवान और कृतार्थ हो जाता है॥20॥
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे पुरुषोत्तमयोगो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ॥15॥

कुरान का संदेश ....

इन दो भगवान की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए, क्योंकि...



हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से हमारे सभी पाप अक्षय पुण्य में बदल जाते हैं। फिर भी श्री गणेश और विष्णु की पीठ के दर्शन वर्जित किए गए हैं।
गणेशजी और भगवान विष्णु दोनों ही सभी सुखों को देने वाले माने गए हैं। अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करते हैं और उनकी शत्रुओं से रक्षा करते हैं। इनके नित्य दर्शन से हमारा मन शांत रहता है और सभी कार्य सफल होते हैं।
गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है। इनकी पीठ के दर्शन करना वर्जित किया गया है। गणेशजी के शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं। गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है। गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो जाती है। ऐसा माना जाता है इनकी पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। गणेशजी की पीठ के दर्शन करने वाला व्यक्ति यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव बढ़ जाता है। इसी वजह से इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए। जाने-अनजाने पीठ देख ले तो श्री गणेश से क्षमा याचना कर उनका पूजन करें। तब बुरा प्रभाव नष्ट होगा।
वहीं भगवान विष्णु की पीठ पर अधर्म का वास माना जाता है। शास्त्रों में लिखा है जो व्यक्ति इनकी पीठ के दर्शन करता है उसके पुण्य खत्म होते जाते हैं और धर्म बढ़ता जाता है।
इन्हीं कारणों से श्री गणेश और विष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।


छोटी इलायची के बड़े कमाल: हो जाएंगी ये खतरनाक बीमारियां छू-मंतर


खाने के चीजों को सुगंधित बनाने वाली और उनका स्वाद बदलने के वाली इलाइची का उपयोग हमारे देश में सबसे अधिक किया जाता है। इलायची छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती हैं। बड़ी इलायची हल्की रूखी गर्म है। कफ पित्त, रक्तविकार खुजली, श्चास मूत्राशय के रोगों को दूर करती है। लेकिन ज्यादातर छोटी इलायची का उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है। प्यास, शमन, पाचन आदि में छोटी इलाइची बहुत उपयोगी है।

इसके दानों को महीन पीस कर से छींके आकर सिर की पीड़ा दूर होती है। केले का अर्जीण दूर करने के लिए एक इलाइची खा लेना काफी है। इसके 20 ग्राम छिलके आधा लीटर पानी में उबाल कर काढ़ा बनाएं। चौथाई जल शेष बचे तब ठंडा कर एक-एक चम्मच विसूचिका के रोगी को पिलाने से आराम मिलता है। नकसीर फूटने पर नाक में से खून गिरता है, इस स्थिति में इलाइची के अर्क की 2-3 बूंदे बताशे में डालकर 2-2 घंटे से खिलाने पर नकसीर ठीक हो जाती है। इलायची के 5 तोला बीज, बादाम और पिस्ता के साथ भिगोकर महीन पीस लें।

इसे दूध में पकाएं जब गाढ़ा हो जाए तो 3 पाव मिश्री मिलाकर धीमी आंच में पकने दें। जब हलवा जैसा हो जाए तो सेवन करें। इससे आंखों की कमजोरी दूर होती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है।ककड़ी के बीज और इलायची के दाने समान मात्रा में मिलाकर 5-10 ग्राम मात्रा लेकर खूब चबाकर खाने या दूध में घोंट छान कर पीने से पथरी व मूत्रदाह में लाभ होता है।इलायची बीज का चूर्ण और इसबगोल की भूसी समभाग में मिलाएं और आंवले के रस में यह मिश्रण डालकर बैर जैसी गोलियां बना लें।

एक-एक गोली सुबह-शाम गाय के दूध से लें। इसके सेवन से स्वप्नदोष की समस्या दूर होती है।छोटी इलायची सुगंध से भरपूर होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल माउथ फ्रेशनर के रूप में किया जाता है।कैफीन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने में यह छोटी इलायची बड़े काम की चीज होती है। यह शरीर के शुध्दीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाला अद्भुत मसाला होती है।यह शरीर में कफ बनने से रोकती है, इसके अलावा यह कफ, वात, पित्त तीनों के दुष्प्रभावों को रोकने में मददगार होती है।शरीर में श्वांस संबंधी रोगों को दूर करने में यह सहायक होती है।

यदि आप अस्थमा या खांसी से परेशान हैं तो थोड़ी सी इलायची का पाउडर शहद के साथ खाएं।छोटी इलायची शरीर में गैस उत्पन्न करने वाले रसायनों के प्रभाव को कम करती है और शरीर में एसिड के स्तर को नियंत्रित करती है।यह मसूड़ों और दांतों संबंधी इंफेक्शन से बचाव करने में भी सहायक होती है।छोटी इलायची से शरीर में होने वाली अशुध्दियों में कमी आती है।यदि आप मूत्र संक्रमण संबंधी समस्याओं से परेशान हैं तो थोड़ी सी छोटी इलायची को आंवला, दही या शहद के साथ मिलाकर खाएं।

एसीडिटी होने पर कच्चे दूध पानी की लस्सी में इलाइची घोंट पीसकर प्रतिदिन पीने से लाभ होता है। गर्मी से सिर चढऩे,दुखने और भारी होने पर इलायची के दाने पानी में पीस कर माथे पर लेप करने और इसका चूर्ण सूंघने से आराम होता है।इलायची का चूर्ण एक माह तक या इसके तेल की 5 बूँद अनार के शर्बत के साथ पीने से जी घबराने और उल्टियाँ होने जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। यह इलाज हैजा में भी लाभकारी है।

शादी के लिए करना होगा इंतजार, मलमास के बाद बजेंगी शहनाइयां

16 दिसंबर, शुक्रवार से मलमास लग रहा है, जो 15 जनवरी, रविवार तक रहेगा। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं होगा। मलमास समाप्त होते ही शादियों के लिए शुभ मुहूर्तों की झड़ी लग जाएगी।

पंडितों के अनुसार अगले माह 5 महीनों में विवाह के 22 मुहूर्त आएंगे। ये सभी मुहूर्त श्रेष्ठ होने से इनमें जमकर शादियां होंगी और खूब शहनाइयां बजेंगी। लग्न के लिए इस महीने में 4 दिसंबर को अंतिम सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होने के बाद अब विवाह के लिए लोगों को मलमास समाप्त होने यानी एक महीने इंतजार करना होगा। मलमास 16 दिसंबर से शुरु होकर 15 जनवरी को समाप्त होगा। शादी के लिए शुभ मुहूर्त की शुरुआत 18 जनवरी से हो जाएगी।



अगले 5 माह में शादी के लिए शुभ मुहूर्त

जनवरी- 18 से 21, 27 से 29

फरवरी- 8 से 10, 17 व 24

मार्च- 1, 2, 6, 7

अप्रैल- 18, 24, 25

जून- 24, 27, 29



इनमें शादी नहीं

- 14 मार्च से मीन संक्रांति का मलमास लगेगा।

- 14 अप्रैल तक विवाह के लिए मुहूर्त नहीं है।

- 3 मई को गुरु अस्त, 18 मई को उदय होंगे।

- 1 जून को शुक्र अस्त, 11 जून को पुन: उदय होंगे।

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