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10 दिसंबर 2011

दिल्ली को ही राजधानी क्यों बनाया गया..यह है कारण

नई दिल्ली. इतिहासकार प्रो. रिजवान कैसर ने बताया कि दिल्ली हमेशा से संस्कृतियों का संगम रही है। यहां देश की ज्यादातर संस्कृतियां साथ रहीं हैं और कभी भी एक संस्कृति एक-दूसरे पर हावी नहीं हुई।

इसके अलावा यह भौगोलिक रूप से भी हमेशा से शासकों की पसंदीदा जगह रही। यमुना नदी और अरावली पहाड़ियों के बीच बसी इस जगह का कई बड़े व्यापारिक शहरों से हमेशा से नाता रहा है।

इस कारण से भी यह क्षेत्र राजधानी के रूप में पसंद किया गया। हालांकि अंग्रेजों द्वारा कलक त्ता से राजधानी को दिल्ली लाने की मूल वजह वह राजनीतिक कारण बताते हैं।

बंगाल विभाजन के निर्णय से बंगालियों के उपद्रव का लगातार निशाना बन रही ब्रिटिश हुकूमत के लिए अपने साम्राज्य को बचाने के लिए भी यह निर्णय लेना जरूरी हो गया था। इसके अलावा मुसलमानों को खुश करने के लिए उन्होंने राजधानी के रूप में दिल्ली को चुना।

आप भी भरते हैं खर्राटे तो हो जाएं सावधान क्योंकि...

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जालंधर. खर्राटे आना गहरी नींद की निशानी नहीं, बल्कि यह एक बीमारी है। इससे पार पाना बेहद जरूरी है। यह जानकारी पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसिज (पिम्स) में शुरू की गई स्लीप लैब के उद्घाटन पर निर्देशक डा. अशोक गुप्ता ने दी।

उन्होंने बताया कि स्लीप लैब में टेस्ट के जरिए इस रोग के बारे में पता लगाकर इलाज संभव है। शूगर, ब्लड प्रेशर और मोटापे से पीड़ित व्यक्ति को जरूर टेस्ट करवाने चाहिए।

इस मौके पर डा. अप्पाराव मुकामला, डा. सुरेश अत्रे, दलविंदर कौर ढेसी, जसपाल ढेसी रेजिडेंट डायरेक्टर राजशेखर, प्रिंसीपल डा. कुलबीर कौर, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डा. एसके बांसल आदि मौजूद थे। पिम्स में टीबी तथा छाती रोग विभाग में लगाए गए मेडिकल जांच कैंप में 102 मरीजों को दवा दी गई।

ये कैसी मजबूरी: एक गांव-180 घर, 175 पर लटके हैं ताले!

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उदयपुर.उदयपुर से 65 किमी दूर स्थित सेमड़ गांव में अब सन्नाटा पसरा रहता है। गांव के कुल 180 घरों में से 175 में ताले लटके हुए हैं। 90 फीसदी लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं। बाकी घरों में सिर्फ बुजुर्ग बचे हैं।

कारण पूछने पर वो लोग बताते हैं कि रोजगार के लिए लोग गांव छोड़कर सूरत, मुंबई व पुणे जैसे शहरों में बस गए हैं। 15-20 साल पहले यहां चहल-पहल रहती थी आज लोग न के बराबर दिखते हैं। गांव में सर्वाधिक मकान जैन समाज के हैं।

सूरत शहर में बस चुके 38 वर्षीय प्रकाश जैन इन दिनों गांव आए हुए हैं। उनका कहना है कि अब यहां केवल 5 परिवार ही रहते हैं। सेमड़ निवासी दीप चंद टेलर ने बताया कि गांव के अधिकांश लोग खास मौकों या फिर गर्मी की छुट्टियां बिताने आते हैं। पहले यहां कच्चे मकान थे। लेकिन लोगों की चहल पहल थी। अब पक्के मकान हैं, लेकिन उनमें रहने वाला कोई नहीं है।

85 वर्षीय मगनी बाई मेहता बताती हैं किसी का निधन होने पर कई बार तो अर्थी को कंधा देने वाले चार लोग नहीं मिलते।

दिल्ली एक शहर के रूप में सात बार बसी और फिर उजड़ी

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इतिहासकारों की मानें तो दिल्ली एक शहर के रूप में सात बार बसी और फिर उजड़ी। यह सिलसिला 1191 से शुरू हुआ जब तोमर वंश से कुतुबुद्दीन एबक ने किला राय पिथौरा पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। वर्तमान में यह स्थान दिल्ली के अधचीनी गांव के पास है जहां आज भी किले की दीवारों के कुछ अवशेष मौजूद हैं। दूसरे प्रयास में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस स्थान को चुना। एएसआई के पुरातत्वविद मोहम्मद केके के अनुसार, पश्चिम एशिया में मंगोल के लगातार हो रहे हमले के कारण पश्चिम और मध्य एशिया में सलजुकों का साम्राज्य छिन्न भिन्न हो रहा था, जिस वजह से वहां के कई वास्तुकारों ने दिल्ली में शरण ली और अपने साथ सलजुकी वास्तुकला की परंपरा भी ले आए। यही किले के वस्तु शिल्प में भी नजर आती है। यह किला भी आज खंडहर में तब्दील हो गया है।

तीसरी बार 1321 में गयासुद्दीन तुगलक ने यहां शासन किया। तुगलकाबाद दिल्ली के सात शहरों में से तीसरा शहर था। लाल बलुआई पत्थर से बने इस किले के अवशेष कुतुबमीनार से करीब 8 किलोमीटर पूर्व आज भी नजर आते हैं। इसकी दीवारें ही अवशेष के रूप में मौजूद हैं। इसके बाद सन् 1325 में मुहम्मद बिन तुगलक ने इस शहर को फिर से बसाने का प्रयास किया और यहां 1351 तक शासन किया। पांचवीं दिल्ली के रूप में फिरोजशाह तुगलक ने इसे 1351 में चुना। कहा जाता है कि 1388 तक यहां एक बार भी महामारी और बाहरी आक्रमण नहीं हुए। इसके बावजूद यह फिर उजड़ी। इंद्रप्रस्थ काल के ढांचा वाले पुराना किले को 1538 में शेरशाह सुरी ने अपने हाथों में लिया और यहां दीनपनाह नाम से इस स्थान की नींव रखी। अंत में शाहजहानाबाद के रूप में 1638 में दिल्ली एक शहर के रूप में स्थापित होती दिखी। इसी शहर में आज का चांदनी चौक और लालकिला आता है। एएसआई के अनुसार शाहजहानाबाद को घेरने वाली प्राचीर और शहर का प्रारूप 1650 में तैयार हुआ जो 1857 तक अपने मूल रूप में रहा। इसके बाद ब्रिटिश शासन काल में यह फिर से राजधानी के रूप में अपनाई गई। जो आज एक खूबसूरत बसी राजधानी के रूप में हमारे सामने मौजूद है।

'विचलित' कर सकती है यह तस्वीर लेकिन उन्हें न आई 'शर्म'!

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जालंधर. हद हो गई! होशियारपुर डीएमयू पर चढ़ने के क्रम में दोनों टांगें कटने के बाद एक शख्स प्लेटफार्म नंबर 5 पर 50 मिनट तक तड़पता रहा। सिटी रेलवे स्टेशन पर रेल कर्मियों की निर्ममता एक बार फिर सामने आई है।

हां, इस बार यात्रियों ने मानवता का परिचय देते हुए 108 नंबर पर फोन कर एंबुलेंस बुलाई। इससे पहले जीआरपी के जवान स्ट्रेचर का ‘इंतजाम’ ही कर रहे थे। शनिवार की शाम 8.25 बजे होशियारपुर डीएमयू खुलते ही उस पर चढ़ने के क्रम में होशियारपुर का रवि नीचे गिर पड़ा। पहिये के नीचे आने से उसकी दोनों टांगें कट गईं।

ट्रेन गुजरने के बाद तड़पते रवि को कुछ यात्रियों ने ट्रैक से उठाकर प्लेटफार्म पर लिटा दिया। घायल शख्स मदद की गुहार लगाता रहा मगर कोई रेलकर्मी उसे अस्पताल पहुंचाने के लिए आगे नहीं आया। यात्रियों के द्वारा रेलकर्मियों को सूचना दे दी गई। जीआरपी के जवान मौके पर आए, मगर स्ट्रेचर तलाशने की बात कहकर फिर लौट गए। इस बीच किसी यात्री ने 108 पर फोन कर दिया। 9.15 बजे एंबुलेंस आई तो उसे सिविल अस्पताल ले जाया गया।

सुख-दुखः का साक्षी बना 145 साल का यह अनोखा 'हाल'

नई दिल्ली. टाउन हाल दिल्ली के अनेक ऐतिहासिक पलों को अपने में समेटे हुए है। करीब 145 साल पहले राजधानी के स्थानीय निकाय के रूप में इसको विकसित किया गया था। आज इसको ऐतिहासिक धरोहर बनकर इसके विकल्प के रूप में डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविक सेंटर को विकसित किया जा चुका है।

एमसीडी का इतिहास केन्द्र व दिल्ली सरकार से भी पुराना है और अपने लंबे इतिहास में इसने कई बार उथल-पुथल देखी है। टाउन हाल के गठन के समय जनता से जुड़े लगभग सभी विभाग इसके तहत आते थे।

वर्ष 1881 में इसमें 21 सदस्य थे। 1912 में सदस्यों की संख्या 25 हुई, जो कि 21 में बढ़कर 36 हो गई। आजादी के बाद वर्ष 1951 में सदस्यों की संख्या 63 हो गई, लेकिन समय के करवट लेने और दिल्ली की जनसंख्या बढ़ने के साथ ही सदस्यों की संख्या भी सैकड़ा पार कर गई। वर्तमान में एमसीडी में सदस्यों की संख्या 272 हो गई।

एक लाख 86 हजार में बना टाउन हाल

वर्ष 1866 में टाउन हाल का निर्माण लगभग एक लाख 86 हजार रुपए में हुआ था। पहले इसे इंस्टीट्यूट बिल्डिंग कहा जाता था। 1864 से 1869 के बीच घंटाघर का निर्माण किया गया। इसके निर्माण पर महज 22134 रुपए खर्च किए गए थे।

600करोड़ है सिविक सेंटर की लागत

टाउन हाल के अत्यधिक पुराना होने के बाद इस साल निगम का मुख्यालय सिविक सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया। लगभग 600 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित 28 मंजिला सिविक सेंटर पूरी तरह से एयर कंडिशनयुक्त है।

इमारत का निर्माण ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट के आधार पर किया गया है। यहां पर सौर ऊर्जा व्यवस्था के अलावा रेन वाटर हार्वेस्टिंग, सीवरेज ट्रीटमेंट सिस्टम सहित अनेक सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। इमारत में लगभग 300 निगम पार्षदों के बैठने के लिए संसद की तर्ज पर एक बड़े हाल का निर्माण भी किया गया है। इमारत के ऊपरी तल से पूरी राजधानी का दीदार किया जा सकता है।

अब भी आम आदमी पुलिस की मदद लेने से कतराता है


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जयपुर/जोधपुर.मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि समय बदल चुका है, फिर भी आम आदमी पुलिस की मदद लेने से कतराता है। अंग्रेजों के समय में पुलिस की दमनात्मक भूमिका के इतिहास और नकारात्मक प्रचार के कारण पुलिस और आमजन के बीच बढ़ी दूरी को पाटने की आवश्यकता है।

ऐसे में पुलिस की छवि को सही तरीके से पेश नहीं करने के कारण भी कई बार पुलिस के सकारात्मक काम आमजन के सामने नहीं आ पाते। प्रशिक्षु बैच के अफसर फील्ड में पूरी मुस्तैदी और सकारात्मक सोच के साथ आमजन में पुलिस की संवेदनशील, मददगार और मानवीय छवि पेश करें।

गहलोत शनिवार को राजस्थान पुलिस अकादमी के ग्राउंड में राजस्थान पुलिस सेवा के 44वें प्रशिक्षु बैच के दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे। पुलिस बल में प्रशिक्षण की अहम भूमिका है।

अपराधों पर नियंत्रण के लिए यहां दिया गया आधुनिक प्रशिक्षण वास्तव में पुलिस विभाग की रीढ़ है। राज्य सरकार पुलिस विभाग को प्रशिक्षण देने और उनकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। यही कारण है कि 13वें वित्त आयोग में प्रशिक्षण के लिए 100 करोड़ रुपए दिए गए।

साइबर अपराध कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं, ऐसे में उन पर कड़ाई से काबू पाने की जरूरत है। समारोह में गृह राज्य मंत्री वीरेंद्र बेनीवाल, प्रमुख गृह सचिव जीएस संधु, डीजीपी हरीश चंद मीना सहित कई आला पुलिस अफसर मौजूद थे।

नई घोषणाएं:

मुख्यमंत्री ने राजस्थान पुलिस सेवा (प्रशिक्षु) ऑल राउंड बेस्ट के लिए मुख्यमंत्री गोल्ड मैडल और 10 हजार रुपए नकद इनाम देने के साथ पुलिस अकादमी कैंपस में स्थित डिस्पेंसरी को अस्पताल में क्रमोन्नत करने और अकादमी स्थित शहीद स्मारक का विकास करने की भी घोषणा की।

चार लाइन की खबर से आया राज्य में आरटीआई कानून

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रिंट मीडिया की अपनी विश्वसनीयता है। आरटीआई पर कानून बनाने का विचार चार लाइन की खबर पढ़कर आया था। अरुणा राय ने ब्यावर में आरटीआई कानून बनाने की मांग को लेकर धरना दिया हुआ था, जब इस धरने की खबर देखी तो आरटीआई का विचार नया लगा। तब कांग्रेस विपक्ष में थी, मैं ब्यावर उस धरने में गया और अरुणा राय से बात की। तब आरटीआई का महत्व समझ में आया।

इसके बाद जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो हमने आरटीआई का कानून लागू किया। गहलोत शनिवार को आरपीए के सभागार में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग की ओर से ‘मानवाधिकारों के संरक्षण में मीडिया और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका’ विषय पर हुई समूह चर्चा में बोल रहे थे।


उन्होंने कहा कि मानवाधिकार की अवधारणा पश्चिमी देशों की देन नहीं है। सदियों पुरानी हमारी संस्कृति, संस्कार, परंपराओं, मान्यताओं, वेदों और पुराणों में मानव मूल्यों की रक्षा का भाव सदैव से ही रहा है। ऐसा माहौल बने कि प्रदेश में मानवाधिकारों का किसी भी रूप में हनन न हो। राज्य में मानवाधिकार आयोग ने गठन के बाद से अब तक 37 हजार परिवादों का निस्तारण किया,जो अच्छा संकेत है।

प्रदेश में पंजीकृत एक लाख एनजीओ, मीडिया प्रतिनिधि और मानवाधिकार कार्यकर्ता मानवाधिकार संरक्षण के लिए वातावरण बनाएं। इस मौके पर राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधिपति राजेश बालिया और आयोग के सदस्य एम.के. देवराजन ने भी विचार व्यक्त किए।

आई लव यू” का आविष्कार

शिक्षक: बताओ “आई लव यू” का आविष्कार किस देश में हुआ? छात्र : चाइना में. शिक्षक: वो कैसे? छात्र : इसमें सारे चाइनीज गुण हैं सर। ना कोई गारंटी, ना कोई वारंटी। चले तो चांद तक, ना चले तो शाम तक।

यह है गीता का ज्ञान

(शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा)
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌॥
भावार्थ : काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार ( सर्व अनर्थों के मूल और नरक की प्राप्ति में हेतु होने से यहाँ काम, क्रोध और लोभ को 'नरक के द्वार' कहा है) आत्मा का नाश करने वाले अर्थात्‌ उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिए॥21॥
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्‌॥
भावार्थ : हे अर्जुन! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है (अपने उद्धार के लिए भगवदाज्ञानुसार बरतना ही 'अपने कल्याण का आचरण करना' है), इससे वह परमगति को जाता है अर्थात्‌ मुझको प्राप्त हो जाता है॥22॥
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्‌॥
भावार्थ : जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही॥23॥
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि॥
भावार्थ : इससे तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है। ऐसा जानकर तू शास्त्र विधि से नियत कर्म ही करने योग्य है॥24॥
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्नीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन दैवासुरसम्पद्विभागयोगो नाम षोडशोऽध्यायः ॥16॥

कुरान का संदेश

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