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09 जनवरी 2012

आग के अक्षर उगलने वाले स्वतन्त्रता सेनानी राष्ट्रिय कवि पत्रकार भाई अजीत मधुकर आज मोन हो गये

आग के अक्षर उगलने वाले स्वतन्त्रता सेनानी राष्ट्रिय कवि पत्रकार भाई अजीत मधुकर आज मोन हो गये उनके आग के अक्षर उनके शरीर के साथ पंच तत्व में विलीन हो गये लेकिन जो अक्षर उन्होंने कोटा के लोगों के दिल और दिमाग पर छाप दिए हैं वोह यादों के पटल पर आज भी जीवंत साँसें ले रहे है .......दोस्तों अजीत मधुकर कोटा के पत्रकार और स्वतन्त्रता सेनानी की तरह एक अपनी सादगी की पहचान रखते थे कभी उन्होंने झुकना नहीं सिक्ख बिकना तो दूर की बात वोह रोज़ सुबह एक थेला लियें सडकों पर पैदल या फिर अपनी चिर परिचित साइकल से निकल पढ़ते थे उनके ठेले में उनके खुद की कलम से लिखा अख़बार आग के अक्षर होता था जो सरकार की काली करतूतों को उजागर करने का काम कर रहा था .....वोह एक ऐसे कवि थे जिनके हर अलफ़ाज़ में दिल की धडकन थी ..कोटा प्रेस क्लब के सदस्य बाही अजित सिंह मधुकर की बुलंद आवाज़ निर्भीकता और सच्चाई के सभी कायल रहे है एक अकेला अख़बार जो आज़ादी की लड़ाई में शामिल रहा ..और देश के आज़ाद होने के बाद भी उस अख़बार ने कभी सरकार से कोई मान्यता नहीं ली कभी सरकार से कोई विज्ञापन नहीं लिया बस सरकार को सूधारने सरकार की गलतियाँ पकड़ कर सरकार के कान उमेठने का काम उन्होंने किया है ..हाल ही में उनकी एक पुस्तक जिसमे जीवंत कविताएँ थीं उनका विमोचन करवाने के लियें प्रेस क्लब कोटा में निमन्त्रण दिया गया था लेकिन अचानक उनकी तबियत खराब हुई उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया और कल रात्रि काल के इन क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया .आज कोटा छावनी स्थित श्मशान में सभी पत्रकारों साहित्यकारों ने उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई दी ....सच की लड़ाई में खुद को हवन करने वाले इस योद्धा की आखरी विदाई ने लोगों को सच की लड़ाई से तोबा तो करवा दी हे लेकिन एक सबक भी दिया है के बेदाग़ न्रिभिकता का जीवन अगर जिया जाए तो ऐसे शख्स को कभी किसी के आगे नतमस्तक नहीं होना पढ़ता वोह शेर की तरह से दहाड़ता है और शेर की तरह से ही अकेले सडक पर मदमस्त होकर चलता है जमाना उससे होता है वोह जमाने से नहीं ............ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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