भारतीय संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा अति प्राचीन है। प्रारंभ से ही माना जाता है कि मस्तस्क पर तिलक लगाने से व्यक्ति का गौरव बढ़ता है। हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है तिलक।
तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। आइए जानते हैं कितनी तरह के होते हैं तिलक। सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।
शैव- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।
शाक्त- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
वैष्णव- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।
विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।
रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।
श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 जनवरी 2012
जानिए, कितनी तरह के तिलक लगाने की है परंपरा...
पुत्रदा एकादशी 5 को, योग्य पुत्र के लिए करें यह व्रत
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व पुराणों में वर्णित है। इस बार यह एकादशी 5 जनवरी, गुरुवार को है। इस व्रत को करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। उसके अनुसार-
इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इस एकादशी पर भगवान नारायण की पूजा की जाती है। पुत्रदा एकादशी के दिन नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा भगवान नारायण का पूजन करें। नारियल के फल, सुपारी, नींबू, अनार, आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से भगवान नारायण की पूजा करें। इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करें।
पुत्रदा एकादशी की रात्रि को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता। जो पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढऩे और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।
जानिए बुधवार को कब-कब है अच्छा और बुरा समय...
जब भी कोई नया या शुभ या मांगलिक कार्य प्रारंभ किया जाए तो उसकी सफलता के भगवान से प्रार्थना करना चाहिए। इसके साथ ही ध्यान रखें कि कार्य का शुभारंभ शुभ चौघडिय़े में ही हो। रोज के कार्यों के लिए जरूरी है चौघडिय़ा देखकर शुभारंभ किया जाए या यात्रा के लिए निकला जाए।
ज्योतिष के अनुसार बताए गए उत्तम चौघडिय़े से हमारे कार्य के पूर्ण होने की संभावनाएं काफी अधिक बढ़ जाती हैं।
जानिए बुधवार को कब-कब है अच्छे चौघडिय़े और कब-कब हैं बुरे चौघडिय़े...
प्रात: 6 बजे से 7.30 तक लाभ
प्रात: 7.30 बजे से 9 बजे तक अमृत
प्रात: 9 बजे से 10.30 बजे तक काल
प्रात: 10.30 बजे से 12 बजे तक शुभ
दोपहर 12 बजे से 1.30 बजे तक रोग
दोप. 1.30 बजे से 3 बजे तक उद्वेग
दोप. 3 बजे से 4.30 बजे तक चर
शाम 4.30 बजे से 6 बजे तक लाभ
शाम 6 बजे से 7.30 तक उद्वेग
शाम 7.30 बजे से 9 बजे तक शुभ
रात 9 बजे से 10.30 बजे तक अमृत
रात 10.30 बजे से 12 बजे तक चर
रात 12 बजे से 1.30 बजे तक रोग
रात 1.30 बजे से 3 बजे तक काल
रात 3 बजे से 4.30 बजे तक लाभ
रात 4.30 बजे से 6 बजे तक उद्वेग
जानिए, कौन से श्रेष्ठ चौघडिय़े और कौन से हैं अशुभ चौघडिय़े...
उत्तम चौघडिय़े- अमृत, शुभ, लाभ और चर हैं।
अशुभ चौघडिय़े- उद्वेग, रोग तथा काल हैं।
उत्तम चौघडिय़े में ही कार्य का प्रारंभ करना चाहिए जबकि अशुभ चौघडिय़े में नया कार्य प्रारंभ करने से बचना चाहिए।
कैद में हैं भगवान, छुड़ाने की जमानत राशि है
आरा शहर से 15 किलोमीटर उत्तर कृष्णगढ़ थाना क्षेत्र के गुंडी ग्राम में स्थित करीब दो सौ वर्ष पुराना श्री रंग जी के मंदिर में अष्टधातु की 17 मूर्ती विरजमान थी। दक्षिण भारतीय शैली से निर्मित इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सूर्य की पहली किरण सीधे मंदिर में प्रवेश कर भगवान के चरणों को स्पर्श करती है। जिसे देखने के लिए देश के कोने-कोने के लोग आते रहे है।
मूर्ती की चोरी
प्राप्त जानकारी के अनुसार सन् 1970 के दशक से इस मंदिर में भगवान की 6 बार मूर्ती चोरी हुई। लेकिन सन् 1994 में जब भगवान हनुमान और बरबर मुनीस्वामी की मूर्ती चोरी हुई तब से भगवान की मूर्ती बरामद होने के बाद आज तक भगवान कृष्णगढ़ थाने के हाजत में ही बंद है।
मंदिर निर्माण के वंशज
करीब 200 वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण कराने वाले गुंडी ग्राम निवासी बाबू विष्णुदेव नारायण सिंह के पाँचवें पिढ़ी के वंशज बबन सिंह ने बताया कि 1994 से पहले मंदिर के सुरक्षा जिला प्रशासन के जिम्मे थी। लेकिन सन् 1994 में मूर्ती चोरी जाने के बाद जिलाप्रशासन ने इसकी जिम्मेवारी लेने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट के द्वारा जारी आदेश में भगवान की कीमती मूर्ती के जमानत लेने के एवज में 45 लाख रूपये का बांड भरना था। वहीं उन्होंने बताया कि पैसे और सुरक्षा के अभाव में मई 2010 को मंदिर बाबा भगवान राम ट्रस्ट को दान दे दिया। वहीं ट्रस्ट के प्रबंधक बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रशासन यदि सुरक्षा की जिम्मेवारी ले तो ट्रस्ट जमानत करा लेगा।
प्रशासन की दलिल
जिला प्रशासन की ओर से ग्रामीण डीएसपी रविश कुमार ने बताया कि जिले में हर मंदिर के लिए अलग से पुलिस जवान देना संभव नहीं है । वहीं उन्होंने कहा कि ग्रामीण लोग एक कमेटी बनाकर भगवान की सुरक्षा की जिम्मेवारी ले तो प्रशासन की ओर से भरपूर सहयोग किया जायेगा।
जमानत में 45 लाख रूपये देने को तैयार है हनुमान मंदिर
इन सब विवादों के बीच धार्मिक न्यास परिसद के अध्यक्ष किशोर कुणाल ने कहा कि हनुमान मंदिर भगवान की जमानत लेने के लिए 45 लाख रूपये भरने की कोर्ट में अर्जी दे चुका है। लेकिन यह तब संभव है जब मंदिर के ट्रस्टी इसके लिए तैयार हो जाय। वहीं उन्होंने कहा कि मैने राज्य सरकार को इस बारे में कई बार पत्र लिख चुका हूं कि मंदिरों की सुरक्षा के बारे में जल्द कोई ठोस पहल नहीं कि गई तो आने वाले समय में एक भी अष्टधातु की मूर्ती नहीं बचेगी।
आम जनता का रोष
मंदिर में भगवान को नहीं होने से आस-पास के ग्रामीणों में काफी रोष है । 70 वर्षीय ग्रामीण शिवाधार सिंह ने बताय कि हाथ में फुल का डलिया लिए सभी इस आशा में प्रतिदिन मंदिर आते है कि किसी दिन कोई ना कोई मेरे आराध्य भगवान का जमानत जरूर ले लेगा । देखिये वो सौभाग्य इस जीवन में देखने को मिलता है या नहीं
जर्जर हो गया है 'ताजमहल!' आधुनिक 'लैला मजनुओं' ने किया है ये हाल!
पूर्व सांसद नरेश पुगलिया की अगुवाई वाली आयोजन समिति भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. जिससे शहर ही नहीं बल्कि राज्य की यह अनमोल धरोहर नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई है. इस समाधि स्थल के ठीक सामने खडी रानी हीराई की समाधि भी, आज अपने राजा की समाधि के इस हालात पर सिसकती प्रतीत होती है.
चंद्रपुर में गोंडराजाओं ने सैकडों वर्ष तक शासन किया. चंद्रपुर शहर की स्थापना भी गोंड राजा खांडक्या बल्लाड.शाह द्वारा की गई थी. जिसके 500 वर्ष से अधिक होने के उपलक्ष्य में सरकारी तथा नागरिकों के स्तर पर पंचशताब्दी महोत्सव मनाया जा रहा है. लेकिन गोंडराजाओं की इस सबसे अनमोल धरोहर की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया जा रहा है. जिससे यह प्राचीन धरोहर बदहाल हो गई है.अगर अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो इसे जमींदोज होने से शायद ही कोई बचा पाएगा.
प्राचीन गोंड राजाओं के श्मशान घाट परिसर मेंस्थित यह समाधि स्थल फिलहाल प्रेमी जोडों का अड्डा बना हुआ है. आधुनिक 'लैला-मजनुओं ' द्वारा भी अपने प्रेम को अमर बनाने के लिए इस समाधि स्थल की दीवारों पर अपने नाम उकेरने में कोई कसर नहीं छोडी गई है. कई खिडकियां तोड दी गई हैं. देखभाल के अभाव में समाधि स्थल के गुंबद से भी पपडियां उखड.ने लगी हैं.कई जगह की कलाकृतियों को कहीं परिस्थिति ने तो कहीं आधुनिक प्रेमी जोडों ने तबाह कर दिया है. स्मारक के बाहर स्थित दीवारों की स्थिति खराब होती जा रही है.
दीवार पर लगे पत्थरों की हालत भी खस्ता नजर आ रही है. यह सब चीजें दिखाई देने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया जाना सबसे दु:खद पहलू है.उपलब्ध ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार अपने पिता राजा कृष्ण शाह की मौत के बाद 1696 में 20 वर्ष की उम्र में राजा वीर शाह ने चंद्रपुर की राजगद्दी संभाली थी.
लेकिन 8 साल बाद ही 1704 में उसके 'बॉडीगार्ड' हीरामन द्वारा राजा वीर शाह की हत्या कर दी गई. उसके बाद राजा वीर शाह की पत्नी हीराई की ताजपोशी हुई तथा उन्होंने चंद्रपुर की राजगद्दी संभाली. रानी हीराई ने 1704 से 1719 तक चंद्रपुर में राज किया.
रानी हीराई ने इसी कालावधि में अपने पति राजा वीर शाह की याद में यह सुंदर तथा शानदार समाधि स्थल बनवाया था. रानी हीराई की इच्छा के अनुसार ही इसी समाधि स्थल के ठीक सामने रानी हीराई की मृत्यु के बाद उनका भी समाधि स्थल तथा स्मारक बनाया गया. जो आज भी राजा- रानी के अमर प्रेम की गवाही दे रहा है.
इस साल फिर धोखे से हमला करेगा चीन !!!
इस वेबसाइट के मुताबिक, विश्लेषकों का मानना है कि चीन भारत पर इस साल अचानक सैन्य आक्रमण कर सकता है। आज भारत और चीन के बीच संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद अहम मुद्दा बन गया है। यही कारण है कि जब संयुक्त ऊर्जा परियोजना के तहत भारत ने वियतनाम के साथ दक्षिण चीन सागर में गतिविधि शुरू की तो चीन ने कड़ा ऐतराज जताया था।
भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार
हाल ही में एक भारतीय अधिकारी के साथ चीनीओं ने दुर्व्यवहार किया। राजनायिक बालचंद्रन चीनी कोर्ट रूम में छह घंटे तक फंसे रहे, पर चीनी लोगों ने उन्हें न तो भोजन करने दिया और न ही दवा खाने दी। डायबिटीज के मरीज बालचंद्रन ने कई बार खाने की मांग की, लेकिन उन्हें खाना नहीं मिला। बालचंद्रन जब बाहर निकले तो उनका सामना गुस्साए चीनियों और डरे हुए भारतीय व्यापारियों से हुआ। वे बेहोश होकर गिर गए और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा था।
उधर, चीनी कारोबारियों ने भारतीय कारोबारियों को बंधक बना अमानवीय यातनाएं दी। दीपक रहेजा और श्यामसुंदर अग्रवाल नाम के दोनों कारोबारियों का दावा है कि जब वे चीनी कारोबारियों के बंधक थे, उस समय उन्हें यूरीन पीने और मानव मल खाने को मजबूर किया गया।
नहीं छोड़ा कब्जे वाला भारतीय क्षेत्र
बताते चलें कि चीन ने 1962 जिस भारतीय क्षेत्र पर कब्जा किया था, उसे आज भी नहीं छोड़ा है। सीमा पर लगातार सैन्य गतिविधियां रखने वाला चीन समय समय पर भारत को धमकाता भी रहता है। विश्लेषकों के मुताबिक, चीन दावा करता है कि भारत-चीन सीमा की लंबाई 2,000 किलोमीटर है, जबकि भारत का दावा है कि यह 4000 किलोमीटर है। चीन अपनी सीमा सिक्किम से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर तक मानता है।
अरुणाचल सीमा पर जारी हैं सैन्य गतिविधियां
दक्षिण-एशिया मामलों के जानकार भास्कर राव के मुताबिक, "सीमा मुद्दा चीन की स्थायी चाल है। भारत ने अक्साई चीन पर दावा छोड़ कर अरुणाचल प्रदेश को चीन की महत्वाकांक्षा से मुक्त कराना चाहता था। पर चीन ने अरुणाचल प्रदेश से जुड़ी सीमा पर अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा कर बता दिया है कि वह इस प्रदेश पर अपना दावा नहीं छोड़ेगा।
राव बताते हैं कि, "सन् 1963 में पाकिस्तान ने अवैध रूप से चीन को पाक अधिकृत कश्मीर के 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक हिस्सा सौंप दिया था। चीन इसका इस्तेमाल अरब सागर और खाड़ी क्षेत्र में पहुंचने के लिए कर रहा है।"
इस मंदिर का तहखाना खोलते ही दंग रह गए थे लोग!
एक अनुमान के मुताबिक मंदिर के एक ही तहखाने से करीब 50 हजार करोड़ रुपये मूल्य का खजाना मिला था। इस दौलत के दम पर पद्मनाभा स्वामी मंदिर ट्रस्ट तिरुपति बालाजी ट्रस्ट को दौलत के मामले में पीछे छोड़कर देश का सबसे धनवान ट्रस्ट का खिताब हासिल कर सकता है। गौरतलब है कि तिरुपति बालाजी ट्रस्ट के पास करीब 50 हजार करोड़ की संपत्ति बताई जाती है।
18 वीं शताब्दी में तत्कालीन त्रावणकोर राज्य के राजा मार्तंड वर्मा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। अब इस मंदिर की देखभाल ट्रस्ट करता है। ट्रस्ट का कामकाज शाही खानदान के लोग देखते हैं।
मंदिर को इसकी भव्य स्थापत्य कला और ग्रेनाइट के स्तंभों की लंबी श्रृंखला के साथ हजार सिर वाले शेष नाग पर लेटी हुई भगवान विष्णु की प्रतिमा के लिए जाना जाता है। पद्मानाभास्वामी (विष्णु) मंदिर के चार में से दो तहखानों को पिछले 130 वर्षों से खोला नहीं गया था।
लोकगाथाओं में जिक्र है कि मंदिर की दीवारों और तहखानों में राजाओं ने खासे हीरे- जवाहरात छिपा दिए थे। स्वतंत्रता के बाद त्रावणकोर राजघराने के लोगों के नेतृत्व में एक ट्रस्ट मंदिर का कामकाज देखती है। इस राजघराने के मौजूदा उत्तराधिकारी उथ्थरादान थिरूनाल मार्तंड वर्मा इस ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी हैं।