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06 जनवरी 2012

खबरदार! अगर घर-गृहस्थी में घट रही हों ये 6 बातें



शास्त्रों में गृहस्थ जीवन को धर्म पालन का अहम पड़ाव माना गया है। क्योंकि गृहस्थी में भी हर मुखिया कार्य, व्यवहार व आचरण में धर्म भावों जैसे सत्य, अहिंसा, प्रेम, क्षमा या परोपकार को अपनाकर ही परिजनों में भी स्नेह, संवेदना, मेलजोल, सहयोग और एकजुटता की भावना को कायम रख सकता है।

सुख-शांति के ऐसे वातावरण के लिए जरूरी है कि हर मुखिया हर वक्त किसी भी विषय, बात या मसले को लेकर ऐसे निष्पक्ष फैसले लेता रहे, जिससे कोई भी पक्ष आहत न हो और हल भी निकलता रहे। किंतु कार्य, जिम्मेदारियों और वक्त के साथ तालमेल के अभाव में अनेक अवसरों पर गृहस्थी में तनाव, विवाद, अशांति और कटुता के हालात परिवारिक दशा को बिगाडऩे लगते हैं।

शास्त्रों में घर-परिवार की दुर्दशा का कारण बनने वाली वाली 6 ऐसी ही बातों से हर इंसान को सावधान रहने की सीख दी गई है, जो घर में घटते दिखाई दे तो परिवार के हित व रक्षा के लिए हर गृहस्थ को चौकन्ना होकर वक्त रहते जरूरी कदम उठाना चाहिए। जानिए ऐसी ही 6 बातें, लिखा गया है कि -

कुले कलङ्क: कवले कदन्नता सुत: कुबुद्धि: र्भवने दरिद्रता।

रुज: शरीरे कलहप्रिया प्रिया गृहागमे दुर्गतय: षडेते।।

इस श्लोक में सरल शब्दों में घर-गृहस्थी को बदहाल करने वाली 6 बातों की ओर संकेत हैं -

- अगर परिवार या कुल पर कलंक लगाने वाली कोई बात पैदा हो,

- घर में अशुद्ध या अपवित्र भोजन हो,

- घर में दरिद्रता यानी तंगहाली, आलस्य या पैसों का अभाव हो,

- बुद्धिदोष से पुत्र गलत संगत और आचरण करने लगे,

- स्वयं या परिजन बीमारियों से घिरने लगे,

- पत्नी स्वाभाविक कारणों या मनमुटाव से कलह करने लगे।

दुर्लभ घटना: 14 नहीं 16, 17 तारीख को मनाई जाएगी मकर संक्रांति!


आपको पढ़ कर आश्चर्य हो रहा होगा कि ये सूर्य की चाल से मनाया जाने वाला पर्व 14 कि जगह 17 को कब और क्यों मनाया जाएगा? दरअसल सितारो की चाल से संक्रांति पर्व की तारीख बढ़ रही है।

हर सौ साल में आगे बढ़ रहा मकर संक्रांति पर्व, इस साल तो 15 जनवरी को मनाया जाएगा लेकिन 2110 में 16 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी।
कब कब मनाई गई संक्रांति-

17 वीं सदी में मकर संक्रांति 9 जनवरी को मनाई जाती थी, इस साल 2012 में ये पर्व 15 जनवरी को होगा और 2110 में 16 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी। आपको शायद इस जानकारी पर विश्वास न हो क्योंकि मकर संक्रांति अक्सर 14 जनवरी को ही मनाई जाती रही है लेकिन यह सच है। ग्रहों की चाल में अंतर के कारण हर बार करीब 100 साल में मकर संक्रांति की तारीख एक दिन यानी 24 घंटे आगे बढ़ रही है।

ज्योतिषीय गणना से ही मकर संक्रांति पर्व की तारीख तय होती है। मकर संक्रांति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। आम मान्यता यही है कि सूर्य के मकर में प्रवेश करने की तारीख 14 जनवरी है लेकिन 4 साल पहले 2008 में जब यह पर्व 15 जनवरी को आया तो लोग आश्चर्यचकित थे। इस साल भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। ज्योतिष के अनुसार 14 व 15 जनवरी की दरमियानी रात 12.58 बजे सूर्य मकर में प्रवेश करेगा।

क्यों हो रहा है ऐसा-

मकर संक्रांति की तारीख में बदलाव अयनांश (ग्रहों की चाल में अंतर) के कारण होता है। अयनांश की गति करीब 72 साल में 60 कला एक अंश (एक दिन) बढ़ती है। 17 वीं शताब्दी में संक्रांति 9-10 जनवरी को मनती थी। 18वीं सदी में 11-12 जनवरी, 19 वीं सदी में 13-14 जनवरी, 20 वीं सदी में 14-15 जनवरी को संक्रांति मनाई गई और अब 21वीं एवं आने वाली 22वीं सदी में संक्रांति 14, 15, 16 व 17 जनवरी की तारीखों में मनाई जाएगी।

अक्सर ये राज भी खोल देते हैं लड़कियों के बाल



अगर आप लड़कियों के बालों पर गौरकरे या ध्यान से देखे तो आपको बहुत से राज पता चल सकते हैं। लड़कियों के बालों में बहुत से ऐेसे राज छूपे होते हैं जो बहुत कम लोगों को पता होते हैं।

इनके सुंदर बालों से व्यक्तित्व के बारे में भी जान सकते हैं। बालों का रंग, आकार और अंदाज देखकर आप बहुत सी बातें आसानी से जान सकते हैं।

- काले बाल मानसिक स्वस्थ, कर्मठ, विश्वास एवं उच्चजीवन शक्ति के परिचायक होते हैं तथा सफेद बाल मानसिक कमजोरी के।
- सिर में एक रोमकूप में एक बाल होना ही शुभ होता है। ऐसे बाल ही उत्तम होते हैं लेकिन यदि एक बाल में से कई शाखाएं निकली हों तो जातक की शक्ति कम करते हैं। ऐसे जातक दो विचारधाराओं के मध्य उलझे रहते हैं। किसी निर्णय तक नहीं पहुंच पाते जिससे सफलता नहीं मिलती।
-पतले बाल उत्तम स्वभाव, उदारता, प्रेम, दया, मृदुता, संकोच तथा संवेदनशीलता के प्रतीक होते हैं। इसके विपरीत मोटे एवं कड़े बालों वाले लोगों में उत्तम स्वास्थ्य एवं उच्च जीवनशक्ति होती है।
- सरल सीधे बाल आत्म संरक्षण, सरल स्वभाव, सीधी कार्य प्रणाली एवं स्वष्टवादिता के सूचक हैं। यदि बालों में सरलता की अपेक्षा लहरीलापन हो तो ऐसे जातक में विनम्र, सभ्य, कला, प्रेम, मित्रता एवं दयालुता के गुण होते हैं।
- घने बाल वाले लोग विद्याप्रेमी होते हैं तथा बिना बाल वाले लोगसम्पत्तिवान या फिर बिल्कुल दरिद्र होते हैं।
- काले, चिकने, मृदु आकर्षक तथा सरल बाल स्त्रियों को सौभाग्य, सम्पत्ति तथा स्वास्थ्य प्रदान करते हैं जबकि पीले, लाल, कर्कश, रूखे, छोटे तथा बिखरे बाल वाली स्त्रियां सदैव दु:खी रहती हैं।

जब मेवाड़ की धरती पर 'खिलज़ी' को खानी पड़ी थी मात!



यूं तो मेवाड़ का इतिहास किसी से छुपा नहीं है फिर भी कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिन्होंने मेवाड़ के इतिहास को अद्भुत बना दिया है राजपूताना में ऐसे-ऐसे शूरवीर रहे हैं जिन्होंने अपनी जान तो दे दी लेकिन कभी किसी की दासता स्वीकार ना की| पेश ऐसे ही शूरवीरों की संक्षिप्त और रोचक जानकारी:-

महारानी पद्मिनी

कहा जाता है कि यहां की महारानी पद्मिनी की खूबसूरती और बुद्धि के चर्चे चारों ओर थे, उनकी सुन्दरता की तारीफ जब अलाउद्दीन खिलजी से सुनी तो उसका मन महारानी को देखने का हुआ तब महारानी ने लोटस कुण्ड में अपनी परछाई उसे दिखाई,परछाई में जब उसने महारानी की सुन्दरता देखी तो उसका मन उन्हें वहां से ले जाने का हुआ लेकिन वह ऐसा ना कर सका क्योंकि महारानी और महल की अन्य रानियां एक- एक कर अपने आपको आग के हवाले करती गईं और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली|

राणा सांगा

मेवाड़ की शान राणा सांगा प्रमुख शासकों में से एक थे जिन्होंने इस राज्य पर 1509-27 ई. तक राज किया, ये एक ऐसे वीर थे जिनके शरीर पर 80 घाव होते हुए और एक पांव से अपंग होते हुए भी बाबर के खिलाफ युद्ध में लड़े|

महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप जिनके पराक्रम का आज भी लोग लोहा मानते हैं ये एक ऐसे शासक थे जिन्होंने कभी अकबर की दासता स्वीकार नहीं की और बिना राजघराने के भी राज करते रहे!

एक भंवरी, और ‘भंवर’ में दस परिवार!


जोधपुर.बिलाड़ा क्षेत्र की एएनएम भंवरी जोधपुर जिले के दस परिवारों की बर्बादी का कारण बन गई। भंवरी के अपहरण और उसकी हत्या की आग में मारवाड़ के दो दिग्गज राजनीतिक परिवार बुरी तरह झुलस गए। एक ओर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता परसराम मदेरणा के बेटे महिपाल मदेरणा को मंत्री पद गंवाना पड़ा और जेल जाना पड़ा, वहीं दूसरी ओर दिग्गज कांग्रेसी नेता स्व. रामसिंह विश्नोई के दो बेटे लूणी विधायक मलखान सिंह और परसराम भी सलाखों के पीछे पहुंच गए।

बेटी इंद्रा विश्नोई भी डेढ़ माह से फरार चल रही है, उसका भी गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है। इसी तरह पूर्व उप जिला प्रमुख सहीराम विश्नोई भी साजिश रचने के आरोप में शुक्रवार को जेल पहुंच चुका है। भंवरी और मदेरणा के बीच समझौता कराने की कोशिश में थानेदार लाखाराम को भी बर्खास्त होना पड़ा।

मदेरणा परिवार

मदेरणा परिवार मारवाड़ में पिछले साठ सालों से दबदबा बनाए हुए था। देश और प्रदेश की राजनीति मंे भी वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता परसराम मदेरणा की बड़ी भूमिका रहती थी। महिपाल मदेरणा खुद भी चार बार जिला प्रमुख रहे, वहीं उनकी पत्नी लीला और बेटी दिव्या भी जिला परिषद सदस्य के साथ कई महत्वपूर्ण पदों पर रहीं। महिपाल मंत्री बने तो दिव्या भी विधायक बनने की दौड़ में आगे आने लगी। इस प्रकरण के बाद महिपाल मदेरणा जेल में है और सीबीआई पत्नी लीला की भूमिका की भी जांच कर रही है।

विश्नोई परिवार

रामसिंह विश्नोई का भी मारवाड़ में करीब तीस सालों तक दबदबा रहा। उनके जैसे कद्दावर मंत्री बहुत कम थे। छोटा बेटा परसराम पिता की विरासत संभालने को तैयार हो रहा था कि 9 साल पहले नशीली गोलियांे के मामले में उसके सपने टूट गए। हालांकि परसराम की पत्नी कुसुम बिलाड़ा प्रधान बन कर राजनीति में दखल बनाए हुए हैं।

रामसिंह के निधन के बाद उनके बड़े बेटे मलखान सिंह को लूणी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट मिला और उन्हें विधायक चुना गया। मलखान पहली ही बार विधायक बने थे और भंवरी प्रकरण में अब भाई परसराम के साथ जेल में है।


सहीराम का परिवार

यूं तो सहीराम विश्नोई के परिवार से कोई कभी बड़े पद तक नहीं पहुंचा, मगर गांव के सरपंच का ओहदा काफी समय से संभाला हुआ था। सहीराम भी पांच साल पहले उप जिला प्रमुख बना। राजनीति में महिपाल और मलखान से नजदीकी संबंधों के कारण सहीराम का भविष्य काफी ठीक दिख रहा था, मगर इन दोनों नेताओं की परेशानी मिटाने के लिए उसने अपना भविष्य बर्बाद कर दिया। आज वह भी जेल में है।

रिश्तेदार और दोस्त फंसे

मलखान के ममेरे भाई सोहनलाल और बाबूलाल भी फंस गए। सोहनलाल धर्मभाई बन कर भंवरी का पहले ब्लैकमेलिंग में इस्तेमाल करता रहा, बाद में अपहरण का सूत्रधार बन गया। सोहनलाल का बेटा पुखराज और बाबूलाल का बेटा दिनेश भी इस साजिश का हिस्सा बन गए। सोहनलाल ने अपने साथ शहाबुद्दीन और बलदेव को भी शामिल कर लिया। सहीराम ने भंवरी को ठिकाने लगाने के लिए विशनाराम, उसके भाई ओमप्रकाश, साथी कैलाश व अशोक को जिम्मा सौंप दिया। इन लोगों ने भी अपने मुकदमे निपटाने के लिए भंवरी को जला कर राख बहा दी।

इंद्रा को अग्रिम जमानत पर फैसला सुरक्षित

गिरफ्तारी से बचने के लिए इंद्रा विश्नोई के वकील ने अग्रिम जमानत की अर्जी लगा रखी है। शुक्रवार को कोर्ट में सुनवाई हुई तो इंद्रा के वकील सुनील जोशी ने कहा कि सीबीआई हर किसी को पूछताछ के लिए बुला कर प्रताड़ित कर रही है, बच्चों को भी उठा लाती है।

सीबीआई सिर्फ संदेह के आधार पर लोगों को जेल में डाल रही है। इस पर विशिष्ट लोक अभियोजक एसएस यादव ने कहा कि मामला अनुसूचित जाति की महिला की हत्या का है, इसलिए गहन पूछताछ जरूरी है। बहस के बाद महानगर मजिस्ट्रेट ने फैसला सुरक्षित रख दिया।

एसपी राठी को जोधपुर का भी कार्यभार!

भंवरी अपहरण की जांच कर रहे सीबीआई के एसपी राकेश राठी को जोधपुर सीबीआई एसपी का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंप दिया गया है। हालांकि इस संबंध में सीबीआई दिल्ली से आदेश जारी नहीं हुए है, लेकिन डायरेक्टर एपी सिंह के जोधपुर दौरे के समय यह तय किया गया।

जोधपुर सीबीआई में एसएसपी पद पर ओपी गौड़ का कार्यकाल सेवानिवृत्ति के बाद दो साल तक बढ़ाया गया जो गत नवंबर में पूरा हो गया, इसलिए एसपी का पद रिक्त है। रोजमर्रा के कामकाज के लिए राठी को अतिरिक्त कार्यभार दिया जा रहा है ताकि वे चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी भंवरी प्रकरण की पूरी मॉनिटरिंग कर सकें।

भंवरी का परिवार बिखरा

कई परिवारों की बर्बादी का कारण बनी बिलाड़ा क्षेत्र की एएनएम भंवरी देवी का परिवार भी इस आग से नहीं बच पाया। भंवरी तो ब्लैकमेलिंग के कारण जान गंवा बैठी, उसका पति अमरचंद भी लाखों रुपयों के लालच में अपहरण की साजिश में शामिल हो गया।

सीबीआई ने साजिश की परतें खोलनी शुरू की तो अमरचंद बेनकाब होने लगा। आखिर में सीबीआई ने उसे भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। भंवरी की मौत हो गई, अमरचंद जेल चला गया, अब उसके तीन बच्चे और बूढ़ी मां न्याय का इंतजार कर रहे हैं।

दुनिया के सबसे डेडली वेपंसः एक मिनट में उड़ जाते हैं दर्जनों के चीथड़े

अगर दुनिया के सबसे घातक हथियारों की बात की जाए तो इसमें भी दो श्रेणियां हैं, मैकेनिकल हथियार एवं नॉन मैकेनिकल हथियार। यहां हम दुनिया के 10 सबसे घातक हथियारों के बारे में बता रहे हैं।



ये हथियार इतने घातक हैं कि कुछ ही सेकेंड में ये किसी भी इंसान की जान ले सकते हैं। इनके बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का उद्देश्य मात्र आपको इनसे अवगत कराना है।


1o. Heckler-Koch HK MG4 MG 43 Machine Gun जर्मन कंपनी हेक्लर एंड कोच द्वारा डिजाइन की गई लाइट वेट 5.56mm मशीनगन।

9. Accuracy International AS50 Snipe Rifle ब्रिटिश कंपनी एक्यूरेसी इंटरनेशनल द्वारा तैयार की गई AS50 स्नाइप राइफल का वजन 14.1 किलोग्राम है। इसकी निशाना लगाने की शुद्धता 1.5 MOA है।

8. F-2000 Assault rifle एसॉल्ट राइफल F2000 को डिजाइन किया है बेल्जियम की एफएन हर्स्टल कंपनी ने।

7. Heckler & Koch HK 416 Assault Rifle अमेरिकन M4 के इस अपग्रेडेड वर्जन HK 416 को भी हेक्लर एंड कोच द्वारा तैयार किया गया है।

6. XM307 ACSW Advanced Heavy Machine Gun यह XM307 ACSW एडवांस्ड 25mm ग्रेनेड मशीनगन है। 2,000 मीटर की दूरी से किसी इंसान को मारने और हल्के वाहनों, वाटरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर को 1,000 मीटर की दूरी से नष्ट करने की क्षमता। 25mm प्वाइंट डेटोनेटिग एयर बर्स्ट स्टाइल गोलाबारी, 260 राउंड प्रतिमिनट।

5. Kalashnikov AK 47 Assault Rifle from Russia मिखाइल कलाशिनकोव द्वारा सोवियत संघ में तैयार की गई AK-47, 7.6*39mm एसॉल्ट राइफल का द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान प्रयोग शुरू किया गया।

4. MG 3 Machine Gun from Germany 7.62*51mm जर्मन मशीनगन। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अस्तित्व में आई इस मशीनगन को 30 देशों की सेनाओं द्वारा अपनाया गया।

3. Uzi Sub-machine Gun मेजर यूज़िअल गल द्वारा इज़राइल में डिजाइन की गई यूजी सबमशीनगन।

2. Thompson M1921 M1928 Submachine Gun/ Tommy Gun वर्ष 1919 में जॉन टी थॉम्पसन द्वारा तैयार की गई M1921 M1928 मशीनगन। इसे टॉमी गन और ट्रेंक ब्रूम के नाम से भी जाना जाता है।

1. DSR-Precision DSR 50 Sniper Rifle जर्मनी में तैयार की गई इस DSR 50 स्नाइपर राइफल में शक्तिशाली 50 कैलिबर राउंड दागने की क्षमता।

तस्वीरें जिन्होंने दुनिया को झकझोरा और फोटोग्राफर ने भी लगाया मौत को गले

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एक तस्वीर हजार शब्दों को बयां करती है, लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी भी होती हैं, जो देखने वाले को झकझोर कर रख देती हैं।



फोटोग्राफरों द्वारा बीते समय में दुनिया के विभिन्न विषयों पर कुछ ऐसी तस्वीरें खींची गई हैं, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर भूख, त्रासदियों और ऐतिहासिक पलों को दुनिया के सामने व्यक्त किया है।



प्रस्तुत है कुछ ऐसी तस्वीरें जिन्होंने दुनिया के हर शख़्स को चौंका दिया और कई गंभीर पहलुओं पर दुनियाभर के देशों का ध्यान आकर्षित किया....

1. बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों के उत्पीड़न के खिलाफ 11 जून 1963 में वियतनाम के एक बौद्ध भिक्षु थिक क्वैंग डक ने सार्वजनिक रूप से खुद को आग लगा ली थी।

2. बुरी तरह जले हुए ट्रक में एक इराकी सैनिक की जली हुई लाश।
3. 2-3 दिसंबर की रात भारत के मध्यप्रदेश में भोपाल में जहरीली गैस लीक होने के कारण हजारों लोगों की मौत हो गई थी और हजारों ही प्रभावित हुए थे। यह हादसा यूनियन कार्बाइड पेस्टीसाइड प्लांट में हुआ था। इस हादसे को दुनिया के सबसे बड़े औद्दोगिक हादसों में गिना जाता है।

4. अफ्रीका के देश सूडान की सामाजिक स्थिति बयां करती यह तस्वीर दुनियाभर में मशहूर है। इस तस्वीर में कुपोषित हालत में एक बच्चा बैठा हुआ है और पास ही बैठा गिद्ध उसकी मौत का इंतज़ार कर रहा है। फोटोग्राफर केविन कार्टर को इस स्तब्ध कर देने वाली तस्वीर के लिए पुलित्जर पुरस्कार मिला था, लेकिन इस तस्वीर को खींचने के तीन महीने बाद ही उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।

परिजन ही करते हैं टुकड़े और परोस देते हैं गिद्धों के सामने

कई वर्षों पहले तक तिब्बत में मृतकों के क्रियाकर्म की अनोखी प्रथा प्रचलन में थी, जिसमें मृत व्यक्ति के शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें गिद्धों के सामने परोस दिया जाता था। शवों के टुकड़ों को गिद्धों के सामने परोसने से पहले उसमें चाय की पत्ती और याक का दूध मिलाया जाता था। इस अनोखी प्रथा में सबसे अधिक चकित करने वाली बात यह थी कि इसे मृतक के परिजन ही अपने हाथों से अंजाम देते थे।
इस अनोखे प्रचलन में कई बार शवों के टुकडों को बिना किसी पारंपरिक प्रक्रिया के ही पक्षियों के सामने डाल दिया जाता था। कई बार गिद्धों द्वारा शवों के टुकड़ों का मांस खा लिया जाता और हड्डियां छोड़ दी जाती, जिसके बाद मृतक के परिजन उन हड्डियों को हथौड़े से कूटकर दुबारा कौवों और बाज को खिलाते थे।
1960 के दशक में चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा इस प्रथा पर रोक लगा दी गई, लेकिन 1980 के दशक में कई जगह ये प्रथा फिर से देखने में आई।

अन्ना के ट्रस्ट पर अनियमितता के आरोप पर सख्त हुआ कोर्ट

मुंबई. बांबे हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे के ट्रस्ट की जांच को लेकर दायर याचिका समाज सेवक हेमंत पाटील ने वापस ले ली है। हाईकोर्ट ने पाटील को ट्रस्ट से जुड़ी शिकायतों को धर्मादाय आयुक्त के सामने रखने का सुझाव दिया है।

न्यायमूर्ति डी.डी. सिन्हा व न्यायमूर्ति वी. के . ताहिलरमानी की खंडपीठ ने साफ किया कि यह याचिका जनहित के दायरे में नहीं आती। इसके बाद पाटील के वकील आर.जी. कछवे ने श्री हजारे के ट्रस्ट के खिलाफ दायर याचिका वापस ले ली।

याचिका में पाटील ने श्री हजारे के हिंद स्वराज्य ट्रस्ट सहित तीन संस्थाओं पर अनियमितताओं का आरोप लगाया था। याचिका के मुताबिक श्री हजारे के ट्रस्ट व तीन संस्थाओं का 2005 से 2007 के बीच ऑडिट नहीं हुआ है। साथ ही इस अवधि के दौरान ट्रस्ट को जिस उद्देश्य के तहत पैसे मिले थे वहां वे पैसे नहीं खर्च किए गए। याचिका में श्री हजारे के ट्रस्ट से जुड़ी अनियमितताओं की जांच धर्मादाय आयुक्त व आयकर विभाग से कराने की मांग की गई थी।

अन्ना आज भी लोकप्रिय : सर्वे

भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने वाले अन्ना हजारे आज भी लोकप्रिय हैं। अण्णा की लोकप्रियता में अचानक तेज गिरावट की चर्चा के बीच एक चैनल के ताजा सर्वे में यह बात सामने आई है। सर्वे में शामिल 52 फीसदी लोगों का मानना है कि अण्णा आज भी लोकप्रिय हैं और उनका जनसमर्थन घटा नहीं है, हालांकि 42 फीसदी लोगों का मानना है कि उनका जनसर्थन घटा है। छह फीसदी लोग कोई साफ राय नहीं दे पाए।

सर्वे में शामिल 63 फीसदी लोगों की राय है टीम अण्णा के जनसमर्थन में कमी के पीछे उन पर लग रहे तमाम तरह के आरोप हैं, जबकि 29 फीसदी लोगों ने इससे इत्तेफाक नहीं किया। यानी कहीं ना कहीं लोग ये मानते हैं कि टीम अण्णा पर लग रहे आरोपों की वजह से उनका जनसमर्थन कम हो रहा है।

गौरतलब है कि अण्णा के मुंबई के अनशन खत्म करने के बाद दिसंबर के आखिरी और जनवरी के पहले हफ्ते के बीच चैनल ने ताजा राजनीतिक स्थिति पर देश के 30 शहरों में 8902 लोगों से उनकी राय ली और इसी पर यह सर्वे आधारित है।

संविधान में आम जनता के मुलभुत अधिकार

साधारण

12. परिभाषा--इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ''राज्य'' के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।

13. मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ --(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
(2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
(3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,--
(क) ''विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है ;
(ख) ''प्रवृत्त विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है।
1[(4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।

समता का अधिकार
14. विधि के समक्ष समता--राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
15. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध--(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर--
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
2[(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
16. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता--(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।
(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।

1 संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
2 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गया।

(3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो 1[किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्र्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के संबंध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
2[(4क) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में 3[किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर, पारिणामिक ज्येष्ठता सहित,प्रोन्नति के मामलों मेंआरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
4[(4ख) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं न भरी गई ऐसी रिक्तियों को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन किए गए आरक्षण के लिए किसी उपबंध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों में भरे जाने के लिए पृथक्‌ वर्ग की रिक्तियों के रूप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्‍या के संबंध में पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जाएगा।
(5) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से संबंधित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदाय का ही हो।
17. अस्पृश्यता का अंत -- ''अस्पृश्यता'' का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। ''अस्पृश्यता'' से उपजी किसी निर्योषयता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

18. उपाधियों का अंत--(1) राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
(2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
(3) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
(4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

स्वातंत्र्य-अधिकार
19. वाक्‌-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण--(1) सभी नागरिकों को--
(क) वाक्‌-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ बनाने का,
(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,

1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के या उसके क्षेत्र में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन उस राज्य के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2 संविधान (सतहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
3 संविधान (पचासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995) से कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4 संविधान (इक्यासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतःस्थापित।

(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, 1[और
2 * * * *

(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।

3[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी ।
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(5) उक्त खंड के 5[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया 6[उक्त उपखंड की कोई बात--
(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
जहाँ तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
20. अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण--(1) कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
(2) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा।
(3) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

21. प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण--किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

1 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
2 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप किया गया।
3 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4 संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
5 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) ''उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा कुछ शद्बों के स्थान पर प्रतिस्थापित।

1[21क. शिक्षा का अधिकार--राज्य, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा, अवधारित करे, उपबंध करेगा।

222. कुछ दशाओं में गिरपतारी और निरोध से संरक्षण--(1) किसी व्यक्ति को जो गिरपतार किया गया है, ऐसी गिरफ्‍तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।
(2) प्रत्येक व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्‍तारी से चौबीस घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो--
(क) तत्समय शत्रु अन्यदेशीय है या
(ख) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन गिरपतार या निरुद्ध किया गया है।
(4) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली कोई विधि किसी व्यक्ति का तीन मास से अधिक अवधि के लिए तब तक निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जब तक कि--
(क) ऐसे व्यक्तियों से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित हैं, मिलकर बने सलाहकार बोर्ड ने तीन मास की उक्त अवधि की समाप्ति से पहले यह प्रतिवेदन नहीं दिया है कि उसकी राय में ऐसे निरोध के लिए पर्याप्त कारण हैं :
परंतु इस उपखंड की कोई बात किसी व्यक्ति का उस अधिकतम अवधि से अधिक अवधि के लिए निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जो खंड (7) के उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की गई है ; या
(ख) ऐसे व्यक्ति को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अनुसार निरुद्ध नहीं किया जाता है।
(5) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किए गए आदेश के अनुसरण में जब किसी व्यक्ति को निरुद्ध किया जाता है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशक्य शीघ्र उस व्यक्ति को यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा।
(6) खंड (5) की किसी बात से ऐसा आदेश, जो उस खंड में निर्दिष्ट है, करने वाले प्राधिकारी के लिए ऐसे तनयों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होगा जिन्हें प्रकट करना ऐसा प्राधिकारी लोकहित के विरुद्ध समझता है।
(7) संसद विधि द्वारा विहित कर सकेगी कि--
(क) किन परिस्थितियों के अधीन और किस वर्ग या वर्गों के मामलों में किसी व्यक्ति को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन तीन मास से अधिक अवधि के लिए खंड (4) के उपखंड (क) के उपबंधों के अनुसार सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना निरुद्ध किया जा सकेगा ;
(ख) किसी वर्ग या वर्गों के मामलों में कितनी अधिकतम अवधि के लिए किसी व्यक्ति को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध किया जा सकेगा ; और
(ग) खंड (4) के उपखंड (क) के अधीन की जाने वाली जांच में सलाहकार बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया क्या होगी।

शोषण के विरुद्ध ‍अधिकार

23. मानव के दुर्व्यापार और बलात्‌‌श्रम का प्रतिषेध--(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्‌श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

1 संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 2 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अंतःस्थापित किया जाएगा।
2 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 3 के प्रवर्तित होने पर, अनुच्छेद 22 उस अधिनियम की धारा 3 में निदेशित रूप में संशोधित हो जाएगा। उस अधिनियम की धारा 3 का पाठ परिशिष्ट 3 में देखिए।

24. कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध--चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
25. अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता--(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।

(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो--
(क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करती है;
(ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।
स्पष्टीकरण 1--कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने का अंग समझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण 2--खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।
26. धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता--लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को --
(क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
(ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का,
(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
(घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का, अधिकार होगा।

27. किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता--किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं।
28. कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता--(1) राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
(2) खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
(3) राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
29. अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण--(1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
30. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार--(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्र्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

1[(1क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए।
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है।
2 * * *
31. [संपत्ति का अनिवार्य अर्जन। --संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित।
3[कुछ विधियों की व्यावृत्ति
4[31क. संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति -- 5[(1) अनुच्छेद
13 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,--
(क) किसी संपदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
(ख) किसी संपत्ति का प्रबंध लोकहित में या उस संपत्ति का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परिसीमित अवधि के लिए राज्य द्वारा ले लिए जाने के लिए, या
(ग) दो या अधिक निगमों को लोकहित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समामेलित करने के लिए, या
(घ) निगमों के प्रबंध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों, निदेशकों या प्रबंधकों के किन्हीं अधिकारों या उनके शेयरधारकों के मत देने के किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
(ङ) किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर प्रोद्‌भूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के लिए,

उपबंध करने वाली विधि इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह 6[अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है :
परंतु जहाँ ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि है वहाँ इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।

7[परंतु यह और कि जहाँ किसी विधि में किसी संपदा के राज्य द्वारा अर्जन के लिए कोई उपबंध किया गया है और जहाँ उसमें समाविष्ट कोई भूमि किसी व्यक्ति की अपनी जोत में है वहाँ राज्य के लिए ऐसी भूमि के ऐसे भाग को, जो किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन उसको लागू अधिकतम सीमा के भीतर है, या उस पर निर्मित या उससे अनुलग्न किसी भवन या संरचना को आक्ष्जत करना उस दशा के सिवाय विधिपूर्ण नहीं होगा जिस दशा में ऐसी भूमि, भवन या संरचना के अर्जन से संबंधित विधि उस दर से प्रतिकर के संदाय के लिए उपबंध करती है जो उसके बाजार-मूल्य से कम नहीं होगी।

(2) इस अनुच्छेद में, --
8[(क) ''संपदा'' पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू-धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत –

1 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
2 संविधान (चवासीलवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीर्षक ''संपत्ति का अधिकार '' का लोप किया गया।
3 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
4 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित।
5 संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
7 संविधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
8 संविधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) उपखंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

(i) कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा वैसा ही अन्य अनुदान और 1तमिलनाडु और केरल राज्यों में कोई जन्मअधिकार भी होगा;
(ii) रैयतबाड़ी, बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी;
(ii) कृषि के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए धृत या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि, चरागाह या भूमि के कृषकों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभाग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल हैं ;
(ख) ''अधिकार'' पद के अंतर्गत, किसी संपदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उप-स्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारक, 2[रैयत, अवर रैयत या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषाधिकार होंगे।

3[31ख. कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण--अनुच्छेद 31क में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, नवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों और विनियमों में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शून्य या कभी शून्य हुआ नहीं समझा जाएगा कि वह अधिनियम, विनियम या उपबंध इस भाग के किन्हीं उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनता है या न्यून करता है और किसी न्यायालय या अधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी, उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, प्रवृत्त बना रहेगा।

4[31ग. कुछ निदेशक तत्त्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति--अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो 5[भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह 6[अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है 7और कोई विधि, जिसमें यह घोषणा है कि वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए है, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है :

परंतु जहाँ ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहाँ इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।

831घ. [राष्ट्र विरोधी क्रियाकलाप के संबंध में विधियों की व्यावृत्ति। --संविधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) ‍अधिनियम, 1977 की धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) निरसित।

सांविधानिक उपचारों का अधिकार

32. इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार--(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।
(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।
(3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी।
(4) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा।

1 मद्रास राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) ''मद्रास'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2 संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित।
3 संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।
4 संविधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्थापित।
5 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) ''अनुच्छेद 39 के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट सिद्धांतों'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, मिनर्वा मिल्स लि. और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस.सी.सी. 591 में अधिमान्य घोषित कर दिया गया।
6 संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
7 उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) अनुपूरक एस.सी.आर. 1 में कोष्ठक में दिए गए उपबंध को अधिमान्य घोषित कर दिया है।
8 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।

132क. [राज्य विधियों की सांविधानिक वैधता पर अनुच्छेद 32 के अधीन कार्यवाहियों में विचार न किया जाना। --संविधान (तैंतालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1977 की धारा 3 द्वारा (13-4-1978 से) निरसित।
2[33. इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति--संसद, विधि द्वारा, अवधारण कर सकेगी कि इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से कोई,--

(क) सशस्त्र बलों के सदस्यों को, या
(ख) लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बलों के सदस्यों को, या
(ग) आसूचना या प्रति आसूचना के प्रयोजनों के लिए राज्य द्वारा स्थापित किसी ब्यूरो या अन्य संगठन में नियोजित व्यक्तियों को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी बल, ब्यूरो या संगठन के प्रयोजनों के लिए स्थापित दूरसंचार प्रणाली में या उसके संबंध में नियोजित व्यक्तियों को,
लागू होने में, किस विस्तार तक निर्बन्धित या निराकृत किया जाए जिससे उनके कर्तव्यों का उचित पालन और उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित रहे।
34. जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन-- इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद विधि द्वारा संघ या किसी राज्य की सेवा में किसी व्यक्ति की या किसी अन्य व्यक्ति की किसी ऐसे कार्य के संबध में क्षतिपूर्ति कर सकेगी जो उसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी ऐसे क्षेत्र में, जहाँ सेना विधि प्रवृत्त थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पुनःस्थापन के संबंध में किया है या ऐसे क्षेत्र में सेना विधि के अधीन पारित दंडादेश, दिए गए दंड, आदि समपहरण या किए गए अन्य कार्य को विधिमान्य कर सकेगी।
35. इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान-- इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-- 143
(क) संसद को शक्ति होगी और किसी राज्य के विधान-मंडल को शक्ति नहीं होगी कि वह--
(i) जिन विषयों के लिए अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3), अनुच्छेद 33 और अनुच्छेद 34 के अधीन संसद विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी उनमें से किसी के लिए, और
(ii) ऐसे कार्यों के लिए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोषित किए गए हैं, दंड विहित करने के लिए,

विधि बनाए और संसद इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात्‌ यथाशक्य शीघ्र ऐसे कार्यों के लिए, जो उपखंड (iii) में निर्दिष्ट हैं, दंड विहित करने के लिए विधि बनाएगी;
(ख) खंड (क) के उपखंड (i) में निर्दिष्ट विषयों में से किसी से संबंधित या उस खंड के उपखंड (ii) में निर्दिष्ट किसी कार्य के लिए दंड का उपबंध करने वाली कोई प्रवृत्त विधि, जो भारत के राज्यक्षेत्र में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रवृत्त थी, उसके निबंधनों के और अनुच्छेद 372 के अधीन उसमें किए गए किन्हीं अनुकूलनों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए तब तक प्रवृत्त रहेगी जब तक उसका संसद द्वारा परिवर्तन या निरसन या संशोधन नहीं कर दिया जाता है। स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद में, ''प्रवृत्त विधि'' पद का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 372 है।

1 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 6 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्थापित।
2 संविधान (पचासवाँ संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनुच्छेद 33 के स्थान पर प्रतिस्थापित।

बालकाण्ड वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदि की वंदना सोरठा

बालकाण्ड
वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदि की वंदना
सोरठा :
* बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥
भावार्थ:-मैं उन वाल्मीकि मुनि के चरण कमलों की वंदना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है, जो खर (राक्षस) सहित होने पर भी (खर (कठोर) से विपरीत) बड़ी कोमल और सुंदर है तथा जो दूषण (राक्षस) सहित होने पर भी दूषण अर्थात्‌ दोष से रहित है॥14 (घ)॥
* बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु॥14 ङ॥
भावार्थ:-मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ, जो संसार समुद्र के पार होने के लिए जहाज के समान हैं तथा जिन्हें श्री रघुनाथजी का निर्मल यश वर्णन करते स्वप्न में भी खेद (थकावट) नहीं होता॥14 (ङ)॥
* बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥14च॥
भावार्थ:-मैं ब्रह्माजी के चरण रज की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने भवसागर बनाया है, जहाँ से एक ओर संतरूपी अमृत, चन्द्रमा और कामधेनु निकले और दूसरी ओर दुष्ट मनुष्य रूपी विष और मदिरा उत्पन्न हुए॥14 (च)॥
दोहा :
* बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥14 छ॥
भावार्थ:-देवता, ब्राह्मण, पंडित, ग्रह- इन सबके चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप प्रसन्न होकर मेरे सारे सुंदर मनोरथों को पूरा करें॥14 (छ)॥
चौपाई :
* पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥1॥
भावार्थ:-फिर मैं सरस्वती और देवनदी गंगाजी की वंदना करता हूँ। दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं। एक (गंगाजी) स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती है और दूसरी (सरस्वतीजी) गुण और यश कहने और सुनने से अज्ञान का नाश कर देती है॥1॥
* गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥
सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥2॥
भावार्थ:-श्री महेश और पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जो मेरे गुरु और माता-पिता हैं, जो दीनबन्धु और नित्य दान करने वाले हैं, जो सीतापति श्री रामचन्द्रजी के सेवक, स्वामी और सखा हैं तथा मुझ तुलसीदास का सब प्रकार से कपटरहित (सच्चा) हित करने वाले हैं॥2॥
* कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा। साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा॥
अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू॥3॥
भावार्थ:-जिन शिव-पार्वती ने कलियुग को देखकर, जगत के हित के लिए, शाबर मन्त्र समूह की रचना की, जिन मंत्रों के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ होता है और न जप ही होता है, तथापि श्री शिवजी के प्रताप से जिनका प्रभाव प्रत्यक्ष है॥3॥
* सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥
सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बस्नउँ रामचरित चित चाऊ॥4॥
भावार्थ:-वे उमापति शिवजी मुझ पर प्रसन्न होकर (श्री रामजी की) इस कथा को आनन्द और मंगल की मूल (उत्पन्न करने वाली) बनाएँगे। इस प्रकार पार्वतीजी और शिवजी दोनों का स्मरण करके और उनका प्रसाद पाकर मैं चाव भरे चित्त से श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥4॥
* भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥5॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥6॥
भावार्थ:-मेरी कविता श्री शिवजी की कृपा से ऐसी सुशोभित होगी, जैसी तारागणों के सहित चन्द्रमा के साथ रात्रि शोभित होती है, जो इस कथा को प्रेम सहित एवं सावधानी के साथ समझ-बूझकर कहें-सुनेंगे, वे कलियुग के पापों से रहित और सुंदर कल्याण के भागी होकर श्री रामचन्द्रजी के चरणों के प्रेमी बन जाएँगे॥5-6॥
दोहा :
* सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ॥15॥
भावार्थ:-यदि मु्‌झ पर श्री शिवजी और पार्वतीजी की स्वप्न में भी सचमुच प्रसन्नता हो, तो मैंने इस भाषा कविता का जो प्रभाव कहा है, वह सब सच हो॥15॥

कुरान का संदेश ......

मोढ़ेरा का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर









माघ मास 10 से, पापों से मुक्ति दिलाता है यह महीना

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भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास व दसवां सौरमास माघ कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। धार्मिक दृष्टिकोण से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस बार माघ मास का प्रारंभ 10 जनवरी, मंगलवार से हो रहा है। इस मास में पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में स्थान पाता है-

माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।।

माघ मास में प्रयाग में स्नान, दान, भगवान विष्णु के पूजन व हरिकीर्तन के महत्व का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा है-

माघ मकरगत रबि जब होई। तीरतपतिहिं आव सब कोई।।

देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।

पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।

पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में माघमास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है-

व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:।

माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:।।

प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये।

माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानव:।।

अर्थात व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नानमात्र से होती है, इसलिए स्वर्गलाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान अवश्य करना चाहिए।

करोड़ों में बिकी मछली

टोक्यो.मछली और वो भी करीब 3.5 करोड़ रुपए की। जी हां, नए साल में जापान में एक ट्यूना मछली सवा सात लाख अमेरिकी डॉलर में नीलाम हुई।

पूर्वोत्तर जापान में पकड़ में आई इस 269 किलोग्राम की समुद्री मछली को गुरुवार को टोक्यो के सुकीजी मछली बाजार में साल की पहली नीलामी में रिकॉर्ड 5.64 करोड़ येन यानी करीब 7.36 लाख अमेरिकी डॉलर में बेचा गया।

पिछले साल एक नीलामी में 246 किलोग्राम की एक ट्यूना 3.24 करोड़ येन में बिकी थी। सुकीजी बाजार के एक अधिकारी ने बताया कि नीलामी के बाद मछली प्रति किलोग्राम 2,10,000 येन की हो गई है।

आरुषि केस: सुप्रीम कोर्ट पर भड़के राजेश तलवार


नई दिल्‍ली. आरुषि हत्याकांड में तलवार दंपती की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस फैसले के बाद गाजियाबाद कोर्ट में इनके खिलाफ मुकदमे का रास्ता साफ हो गया है। तलवार दंपती की अपील थी कि उन्‍हें आरोपी नहीं, गवाह के तौर पर देखा जाए। कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी। अब अगर सुबूत मिले तो आरुषि के माता-पिता राजेश और नुपुर तलवार आरुषि और हेमराज के कत्‍ल के दोषी भी ठहराए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राजेश तलवार ने एक निजी चैनल से बातचीत में कहा है कि इस देश में इंसाफ नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद यह केस एक बार फिर जिंदा हो गया है। निचली अदालत के आदेश पर तलवार दंपती को इस मामले में आरोपी बनाया गया था। इस आदेश को राजेश और नुपूर ने चुनौती दी थी। इस दौरान सुनवाई रुकी हुई थी। लेकिन अब एक बार फिर तलवार दंपती को मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तलवार परिवार के पूर्व नौकर और इस मामले में आरोपी राजकुमार के वकील नरेश यादव ने स्वागत किया है। नरेश यादव ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि उनके मुवक्किल को इंसाफ मिलेगा।

गौरतलब है कि गाजियाबाद की अदालत में सीबीआई ने दिसंबर, 2010 में क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। गाजियाबाद कोर्ट ने इसी क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर चार्जशीट रिपोर्ट तैयार करने को कहा था। 9 फरवरी, 2011 को सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को गाजियाबाद की अदालत ने खारिज करते हुए 28 फरवरी को तलवार दंपती को कोर्ट में आरोपी के तौर पर पेश होने का आदेश दिया था। लेकिन गाजियाबाद कोर्ट के फैसले के खिलाफ तलवार दंपती ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहां भी राहत न मिलने पर नूपुर और राजेश सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, जहां आज कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

आरुषि तलवार की 16 मई, 2008 की रात नोएडा के जलवायु विहार के एक फ्लैट में रहस्मय ढंग से हत्या कर दी गई थी। आरुषि के साथ तलवार परिवार के नौकर हेमराज की भी हत्या हुई थी।

मिली भंवरी की चुनरी! अब घड़ी की तलाश



जोधपुर. भंवरी देवी के कथित कत्ल के मामले में सीबीआई के हाथ कई अहम सुराग हाथ लगे हैं। सीबीआई 30 गोताखोरों की मदद से जोधपुर से 100 किलोमीटर दूर जलोड़ा गांव के पास राजीव गांधी नहर में सुबूतों की तलाश करवा रही है, जिसके पास भंवरी को जलाए जाने की बात कही जा रही है।

राजस्थान पुलिस के गोताखोरों को शुक्रवार को अहम कामयाबी तब मिली जब तलाशी के दौरान उनके हाथ एक बोरी लगी। इस बोरी में ही चुनरी और खोपड़ी के अवशेष के साथ बैट व दो कट्टे मिले हैं। सीएफएसएल के वैज्ञानिकों ने सभी सुबूतों की सीलबंद कर दिया है। सीबीआई ने उस गड्ढे की मिट्टी का भी सैंपल लिया है, जहां कथित तौर पर भंवरी को जलाया गया था। इन सभी सुबूतों और नमूनों को जांच के लिए फॉरेंसिक लेबोरेटरी भेजा गया है।

गोताखोरों के हाथ लगा बल्ला कंटीले तारों से लपेटा हुआ है। जानकारों का मानना है कि ऐसा कातिलों ने यह सोचकर किया होगा कि इससे सिर कुचलने में मदद तो मिलेगी ही साथ ही इससे बल्ला नहर के तल में समा जाएगा। यह बल्ला महिपाल मदेरणा और मलखान सिंह के खिलाफ एक अहम सुबूत साबित हो सकता है। बताया जा रहा है कि इस बल्‍ले का इस्‍तेमाल भंवरी का सिर कुचलने के लिए किया गया हो सकता है।
अब सीबीआई की कोशिश भंवरी की घड़ी तलाश करने की है। इसके लिए फिलहाल 'ऑपरेशन वॉच' चलाया जा रहा है। यह घड़ी पिछले साल सितंबर से लापता है। सीबीआई के एक अफसर ने बताया, 'हम भंवरी देवी की घड़ी की तलाश के लिए नजदीकी नहर का पानी निकाल रहे हैं। एक आरोपी ने दावा किया था कि उसने भंवरी के शरीर के अवशेषों के साथ उस घड़ी को भी वहीं फेंक दिया था।'

सूत्रों के मुताबिक भंवरी को ठिकाने लगाने वाली विशनाराम के गैंग ने 1 सितंबर की पूरी रात भंवरी के शव को कथित तौर पर मुरड़ के खड्ढे में जलाया। सुबह तक पूरी तरह शव जलाने के बाद राख नहर में फेंक दी। दूसरी रात जले हुए स्थान की मिट्टी भी खोदकर नहर में बहा दी और आरोपियों ने भंवरी को मारने वाले हथियार भी इसी नहर में फेंक दिए।

सीबीआई भंवरी की हत्या के आरोपी गैंग के दो सदस्यों को नहर के पास ले गई, जहां भंवरी देवी को कथित रूप से जलाया गया था। सूत्रों के मुताबिक उन दोनों ने सीबीआई को बताया कि भंवरी देवी के सिर पर बल्ले से वार करने के बाद उन लोगों ने बल्ले को नहर में फेंक दिया था।
बीते साल एक सितंबर को भंवरी देवी के गायब होने के करीब चार महीने बाद सीबीआई ने बीते बुधवार को उस जगह की पहचान की थी, जहां नर्स को अगवा करके कथित तौर पर जलाया गया था।

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