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08 जनवरी 2012

लहसुन-प्याज का अचूक नुस्खा: दिल और कोलेस्ट्रोल हमेशा रहेंगे कंट्रोल में

वर्तमान समय में गलत खान-पान और टेन्शन भरी जिन्दगी के कारण,हर उम्र के लोगों में दिल की बीमारी और कोलेस्ट्रोल रोगी बढ़ते जा रहे हैं। कोलेस्ट्रोल जब सामान्य स्तर से अधिक हो जाता है तो वह रक्त वाहिनियों में जम जाता है। जिसके कारण हृदय रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है। अगर आपके साथ भी बढ़े हुए कोलेस्ट्रोल या दिल की बीमारी की समस्या है तो नीचे लिखे उपाय बहुत लाभदायक सिद्ध होंगे।

- प्याज कोलेस्ट्रोल के रोगियों के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। रोज सुबह 5 मि. लि. प्याज का रस खाली पेट सेवन करना चाहिये। इससे खून में बढे हुए कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने भी मदद मिलती है।

- दिल के रोगियों के लिए लहसुन बहुत फायदेमंद है। लहसुन में खून को पतला रखने का गुण होता है । इसके नियमित उपयोग से खून की नलियों में कोलेस्टरोल नहीं जमता है। लहसुन की 4 कली चाकू से बारीक काटें,इसे 75 ग्राम दूध में उबालें। मामूली गरम हालत में पी जाएं। भोजन पदार्थों में भी लहसुन प्रचुरता से इस्तेमाल करें।

- एक गिलास मामूली गरम जल में एक नींबू निचोडें,इसमें दो चम्मच शहद भी मिलाएं और पी जाएं। यह प्रयोग सुबह के वक्त करना चाहिये। यह प्रयोग कोलेस्ट्रोल व दिल के रोगियों के लिए बहुत लाभदायक है।

क्यों है मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व?

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भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रृद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। मकर संक्रांति पर्व के संबंध में गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में लिखा है-

माघ मकरगत रबि जब होई।

तीरथपतिहिं आव सब कोई।।

(रा.च.मा. 1/44/3)

ऐसा कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए वहां मकर-संक्रांति पर्व के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है।

उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारे बसे गांवों व नगरों में मेलों का अयोजन होता है। भारत में मकर संक्रांति के पर्व पर सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में गंगासागर में लगता है। गंगासागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी स्वर्ग के उतरकर भगीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई। गंगा के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार श्रापित पुत्रों का उद्धार हुआ था।

यहां सब्जी के भाव पर बिक रहा है 'मुर्गा'


रास्ता बंद होने से जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर मुर्गा काफी सस्ता मिल रहा है। दरअसल, श्रीनगर के लिए हर रोज करीब 20 हजार मुर्गो की सप्लाई होती है। ट्रकों के फंसे होने से मुर्गो के मरने की आशंका बन गई है।

इसलिए ट्रक चालक इन्हें सस्ते दाम पर बेच रहे हैं। 80 से 90 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकने वाला मुर्गा 30 रुपए में बिक रहा है। वहीं भेड़-बकरियां भी सस्ते दामों पर बिक रही हैं। हालांकि फल सब्जियों के ट्रकों पर इसका कोई असर नहीं। इनको ऐसा तापमान मिल रहा है जो सिर्फ फ्रिज में ही मिलता है।

नोटों से भरी रजाई ओढ़ता था एसआई, इतना ही नहीं...!

हनुमानगढ़/संगरिया.एसीबी की टीम ने रविवार को परिवहन विभाग क्रय संग्रह केंद्र रतनपुरा के प्रभारी मोतीलाल ककड़ के मकान में रखी रजाई में करीब 4 लाख रुपए बरामद किए हैं।

बताया जाता है कि किसी को शक न हो इसीलिए सब इंस्पेक्टर ने रजाई को लॉकर बना रखा था और नोटों से भरी रजाई ओढ़ता था।

हालांकि उसका कहना है कि यह राशि विभाग की है, लेकिन इसका अभी तक कोई ब्यौरा नहीं दिया है। इससे यह माना जा रहा है कि बरामद की गई राशि रिश्वत की है। श्रीगंगानगर ब्यूरो के सीआई आनंद स्वामी ने बताया कि रजाई के अंदर से चार लाख रु. बरामद हुए। इसके अलावा कुछ कागजात भी जब्त किए गए हैं।

..नहीं शुरु हो पाया मूर्तियों को ढकने का काम




चुनाव आयोग के आदेश के एक दिन बाद भी राजधानी लखनऊ में बसपा मुखिया एवं प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती तथा सत्तारुढ़ दल के चुनाव चिन्ह हाथियों की मूर्तियों को परदे में ढकने का काम शुरु नहीं हो पाया है। इस बारे में संबंधित अधिकारियों का दावा है कि उन्हें इस संबंध में आयोग से अभी कोई आदेश नहीं मिला है।

राजधानी लखनऊ में इन मूर्तियों के ढकने का काम इनका रखरखाव करने वाले लखनऊ विकास प्राधिकरण आदि संस्थाओं के जरिए किया जाने वाला है, मगर इसके वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘फिलहाल हमे इस संबंध में कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है और जैसे ही आदेश मिलता है उस पर अमल किया जाएगा।’

इस बीच लखनऊ के जिलाधिकारी एवं जिला निर्वाचन अधिकारी अनिल कुमार सागर ने बताया है कि अभी तक उनके कार्यालय को चुनाव आयोग से इस संबंध में कोई औपचारिक आदेश प्राप्त नहीं हुआ है।

उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश में विधानसभा के चुनाव 4 फरवरी से शुरु होकर सात चरणों में 28 फरवरी तक चलने वाला है। प्रदेश की राजधानी एवं अन्य भागों में लगायी गई बसपा मुखिया मायावती और उनके दल के चुनाव चिह्न हाथी की मूर्तियां लगे होने के बारे में विपक्षी दलों की आपत्तियों को देखते हुए चुनाव आयोग ने चुनाव पूरा हो जाने तक इन मूर्तियों को परदे में ढकने के आदेश दिए है।

इसी बीत मूर्तियों को ढकने को लेकर नई राजनीति शुरु हो गई। कहा जा रहा है कि हाथियों को ढकने के विवाद से सीधे मायावती को लाभ पहुंचेगा क्यों‍कि पूरे उत्तरप्रदेश में हाथी ही इस समय चर्चा का विषय बने हुए हैं।

बसपा ने इस मामले में पलटवार करते हुए कहा कि भविष्य में दिल्ली से लेकर पूरे देश में 'कमल' को भी ढकना होगा क्योंकि यह भाजपा का चुनाव चिन्ह है। इसके बाद आपको सपा की साइकिल पर भी रोक लगानी पड़ेगी क्योंकि यही पार्टी का चुनाव चिन्ह है।

हाथियों और मायावती की मूर्तियों को ढकने के लिए पैसा कौन देगा, इस पर भी अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है।

संविधान में मूल कर्तव्य जिन्हें हम नहीं निभाते हैं

51क. मूल कर्तव्य--भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह--
(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्र्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले;
(]) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।]

1 संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
2 संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, की धारा 4 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अंतःस्थापित किया जाएगा।

बालकाण्ड श्री नाम वंदना और नाम महिमा




चौपाई :
* बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥
भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात्‌ 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥1॥
*महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥2॥
भावार्थ:-जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥2॥
* जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥3॥
भावार्थ:-आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम ('मरा', 'मरा') जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी के इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम सहस्र नाम के समान है, पार्वतीजी सदा अपने पति (श्री शिवजी) के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं॥3॥
* हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥4॥
भावार्थ:-नाम के प्रति पार्वतीजी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर श्री शिवजी हर्षित हो गए और उन्होंने स्त्रियों में भूषण रूप (पतिव्रताओं में शिरोमणि) पार्वतीजी को अपना भूषण बना लिया। (अर्थात्‌ उन्हें अपने अंग में धारण करके अर्धांगिनी बना लिया)। नाम के प्रभाव को श्री शिवजी भलीभाँति जानते हैं, जिस (प्रभाव) के कारण कालकूट जहर ने उनको अमृत का फल दिया॥4॥
दोहा :
* बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥19॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी की भक्ति वर्षा ऋतु है, तुलसीदासजी कहते हैं कि उत्तम सेवकगण धान हैं और 'राम' नाम के दो सुंदर अक्षर सावन-भादो के महीने हैं॥19॥
चौपाई :
* आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥1॥
भावार्थ:-दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं, जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और सुख देने वाले हैं और जो इस लोक में लाभ और परलोक में निर्वाह करते हैं (अर्थात्‌ भगवान के दिव्य धाम में दिव्य देह से सदा भगवत्सेवा में नियुक्त रखते हैं।)॥1॥
* कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके। राम लखन सम प्रिय तुलसी के॥
बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥2॥
भावार्थ:-ये कहने, सुनने और स्मरण करने में बहुत ही अच्छे (सुंदर और मधुर) हैं, तुलसीदास को तो श्री राम-लक्ष्मण के समान प्यारे हैं। इनका ('र' और 'म' का) अलग-अलग वर्णन करने में प्रीति बिलगाती है (अर्थात बीज मंत्र की दृष्टि से इनके उच्चारण, अर्थ और फल में भिन्नता दिख पड़ती है), परन्तु हैं ये जीव और ब्रह्म के समान स्वभाव से ही साथ रहने वाले (सदा एक रूप और एक रस),॥2॥
* नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥
भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥3॥
भावार्थ:-ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुंदर भाई हैं, ये जगत का पालन और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। ये भक्ति रूपिणी सुंदर स्त्री के कानों के सुंदर आभूषण (कर्णफूल) हैं और जगत के हित के लिए निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं॥3॥
* स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥4॥
भावार्थ:-ये सुंदर गति (मोक्ष) रूपी अमृत के स्वाद और तृप्ति के समान हैं, कच्छप और शेषजी के समान पृथ्वी के धारण करने वाले हैं, भक्तों के मन रूपी सुंदर कमल में विहार करने वाले भौंरे के समान हैं और जीभ रूपी यशोदाजी के लिए श्री कृष्ण और बलरामजी के समान (आनंद देने वाले) हैं॥4॥
दोहा :
* एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥20॥
भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं- श्री रघुनाथजी के नाम के दोनों अक्षर बड़ी शोभा देते हैं, जिनमें से एक (रकार) छत्ररूप (रेफ र्) से और दूसरा (मकार) मुकुटमणि (अनुस्वार) रूप से सब अक्षरों के ऊपर है॥20॥
चौपाई :
* समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥1॥
भावार्थ:-समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं, किन्तु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है (अर्थात्‌ नाम और नामी में पूर्ण एकता होने पर भी जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार नाम के पीछे नामी चलते हैं। प्रभु श्री रामजी अपने 'राम' नाम का ही अनुगमन करते हैं (नाम लेते ही वहाँ आ जाते हैं)। नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, ये (भगवान के नाम और रूप) दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और सुंदर (शुद्ध भक्तियुक्त) बुद्धि से ही इनका (दिव्य अविनाशी) स्वरूप जानने में आता है॥1॥
* को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
भावार्थ:-इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन देखे जाते हैं, नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता॥2॥
* रूप बिसेष नाम बिनु जानें। करतल गत न परहिं पहिचानें॥
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें। आवत हृदयँ सनेह बिसेषें॥3॥
भावार्थ:-कोई सा विशेष रूप बिना उसका नाम जाने हथेली पर रखा हुआ भी पहचाना नहीं जा सकता और रूप के बिना देखे भी नाम का स्मरण किया जाए तो विशेष प्रेम के साथ वह रूप हृदय में आ जाता है॥3॥
* नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥4॥
भावार्थ:-नाम और रूप की गति की कहानी (विशेषता की कथा) अकथनीय है। वह समझने में सुखदायक है, परन्तु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। निर्गुण और सगुण के बीच में नाम सुंदर साक्षी है और दोनों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला चतुर दुभाषिया है॥4॥
दोहा :
* राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥21॥
भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं, यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि-दीपक को रख॥21॥
चौपाई :
* नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी॥
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा॥1॥
भावार्थ:-ब्रह्मा के बनाए हुए इस प्रपंच (दृश्य जगत) से भलीभाँति छूटे हुए वैराग्यवान्‌ मुक्त योगी पुरुष इस नाम को ही जीभ से जपते हुए (तत्व ज्ञान रूपी दिन में) जागते हैं और नाम तथा रूप से रहित अनुपम, अनिर्वचनीय, अनामय ब्रह्मसुख का अनुभव करते हैं॥1॥
* जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ॥2॥
भावार्थ:-जो परमात्मा के गूढ़ रहस्य को (यथार्थ महिमा को) जानना चाहते हैं, वे (जिज्ञासु) भी नाम को जीभ से जपकर उसे जान लेते हैं। (लौकिक सिद्धियों के चाहने वाले अर्थार्थी) साधक लौ लगाकर नाम का जप करते हैं और अणिमादि (आठों) सिद्धियों को पाकर सिद्ध हो जाते हैं॥2॥
* जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी॥
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥3॥
भावार्थ:-(संकट से घबड़ाए हुए) आर्त भक्त नाम जप करते हैं, तो उनके बड़े भारी बुरे-बुरे संकट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं। जगत में चार प्रकार के (1- अर्थार्थी-धनादि की चाह से भजने वाले, 2-आर्त संकट की निवृत्ति के लिए भजने वाले, 3-जिज्ञासु-भगवान को जानने की इच्छा से भजने वाले, 4-ज्ञानी-भगवान को तत्व से जानकर स्वाभाविक ही प्रेम से भजने वाले) रामभक्त हैं और चारों ही पुण्यात्मा, पापरहित और उदार हैं॥3॥
* चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥4॥
भावार्थ:-चारों ही चतुर भक्तों को नाम का ही आधार है, इनमें ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष रूप से प्रिय हैं। यों तो चारों युगों में और चारों ही वेदों में नाम का प्रभाव है, परन्तु कलियुग में विशेष रूप से है। इसमें तो (नाम को छोड़कर) दूसरा कोई उपाय ही नहीं है॥4॥
दोहा :
* सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियूष ह्रद तिन्हहुँ किए मन मीन॥22॥
भावार्थ:-जो सब प्रकार की (भोग और मोक्ष की भी) कामनाओं से रहित और श्री रामभक्ति के रस में लीन हैं, उन्होंने भी नाम के सुंदर प्रेम रूपी अमृत के सरोवर में अपने मन को मछली बना रखा है (अर्थात्‌ वे नाम रूपी सुधा का निरंतर आस्वादन करते रहते हैं, क्षणभर भी उससे अलग होना नहीं चाहते)॥22॥
चौपाई :
* अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा। अकथ अगाध अनादि अनूपा॥
मोरें मत बड़ नामु दुहू तें। किए जेहिं जुग ‍िनज बस निज बूतें॥1॥
भावार्थ:-निर्गुण और सगुण ब्रह्म के दो स्वरूप हैं। ये दोनों ही अकथनीय, अथाह, अनादि और अनुपम हैं। मेरी सम्मति में नाम इन दोनों से बड़ा है, जिसने अपने बल से दोनों को अपने वश में कर रखा है॥1॥
* प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥2॥
उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन घन आनँद रासी॥3॥
भावार्थ:-सज्जनगण इस बात को मुझ दास की ढिठाई या केवल काव्योक्ति न समझें। मैं अपने मन के विश्वास, प्रेम और रुचि की बात कहता हूँ। (‍िनर्गुण और सगुण) दोनों प्रकार के ब्रह्म का ज्ञान अग्नि के समान है। निर्गुण उस अप्रकट अग्नि के समान है, जो काठ के अंदर है, परन्तु दिखती नहीं और सगुण उस प्रकट अग्नि के समान है, जो प्रत्यक्ष दिखती है।
(तत्त्वतः दोनों एक ही हैं, केवल प्रकट-अप्रकट के भेद से भिन्न मालूम होती हैं। इसी प्रकार निर्गुण और सगुण तत्त्वतः एक ही हैं। इतना होने पर भी) दोनों ही जानने में बड़े कठिन हैं, परन्तु नाम से दोनों सुगम हो जाते हैं। इसी से मैंने नाम को (निर्गुण) ब्रह्म से और (सगुण) राम से बड़ा कहा है, ब्रह्म व्यापक है, एक है, अविनाशी है, सत्ता, चैतन्य और आनन्द की घन राशि है॥2-3॥
* अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी॥
नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥4॥
भावार्थ:-ऐसे विकाररहित प्रभु के हृदय में रहते भी जगत के सब जीव दीन और दुःखी हैं। नाम का निरूपण करके (नाम के यथार्थ स्वरूप, महिमा, रहस्य और प्रभाव को जानकर) नाम का जतन करने से (श्रद्धापूर्वक नाम जप रूपी साधन करने से) वही ब्रह्म ऐसे प्रकट हो जाता है, जैसे रत्न के जानने से उसका मूल्य॥4॥
दोहा :
* निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥23॥
भावार्थ:-इस प्रकार निर्गुण से नाम का प्रभाव अत्यंत बड़ा है। अब अपने विचार के अनुसार कहता हूँ, कि नाम (सगुण) राम से भी बड़ा है॥23॥
चौपाई :
* राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥1॥
भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी ने भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके स्वयं कष्ट सहकर साधुओं को सुखी किया, परन्तु भक्तगण प्रेम के साथ नाम का जप करते हुए सहज ही में आनन्द और कल्याण के घर हो जाते हैं॥1॥।
* राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥2॥
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू॥3॥
भावार्थ:-श्री रामजी ने एक तपस्वी की स्त्री (अहिल्या) को ही तारा, परन्तु नाम ने करोड़ों दुष्टों की बिगड़ी बुद्धि को सुधार दिया। श्री रामजी ने ऋषि विश्वामिश्र के हित के लिए एक सुकेतु यक्ष की कन्या ताड़का की सेना और पुत्र (सुबाहु) सहित समाप्ति की, परन्तु नाम अपने भक्तों के दोष, दुःख और दुराशाओं का इस तरह नाश कर देता है जैसे सूर्य रात्रि का। श्री रामजी ने तो स्वयं शिवजी के धनुष को तोड़ा, परन्तु नाम का प्रताप ही संसार के सब भयों का नाश करने वाला है॥2-3॥
* दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥
निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥4॥
भावार्थ:-प्रभु श्री रामजी ने (भयानक) दण्डक वन को सुहावना बनाया, परन्तु नाम ने असंख्य मनुष्यों के मनों को पवित्र कर दिया। श्री रघुनाथजी ने राक्षसों के समूह को मारा, परन्तु नाम तो कलियुग के सारे पापों की जड़ उखाड़ने वाला है॥4॥
दोहा :
* सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥24॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी ने तो शबरी, जटायु आदि उत्तम सेवकों को ही मुक्ति दी, परन्तु नाम ने अगनित दुष्टों का उद्धार किया। नाम के गुणों की कथा वेदों में प्रसिद्ध है॥24॥
चौपाई :
* राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ ॥
नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥1॥
भावार्थ:-श्री रामजी ने सुग्रीव और विभीषण दोनों को ही अपनी शरण में रखा, यह सब कोई जानते हैं, परन्तु नाम ने अनेक गरीबों पर कृपा की है। नाम का यह सुंदर विरद लोक और वेद में विशेष रूप से प्रकाशित है॥1॥
* राम भालु कपि कटुक बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥
नामु लेत भवसिन्धु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥2॥
भावार्थ:-श्री रामजी ने तो भालू और बंदरों की सेना बटोरी और समुद्र पर पुल बाँधने के लिए थोड़ा परिश्रम नहीं किया, परन्तु नाम लेते ही संसार समुद्र सूख जाता है। सज्जनगण! मन में विचार कीजिए (कि दोनों में कौन बड़ा है)॥2॥
* राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥3॥
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥4॥
भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी ने कुटुम्ब सहित रावण को युद्ध में मारा, तब सीता सहित उन्होंने अपने नगर (अयोध्या) में प्रवेश किया। राम राजा हुए, अवध उनकी राजधानी हुई, देवता और मुनि सुंदर वाणी से जिनके गुण गाते हैं, परन्तु सेवक (भक्त) प्रेमपूर्वक नाम के स्मरण मात्र से बिना परिश्रम मोह की प्रबल सेना को जीतकर प्रेम में मग्न हुए अपने ही सुख में विचरते हैं, नाम के प्रसाद से उन्हें सपने में भी कोई चिन्ता नहीं सताती॥3-4॥
दोहा :
* ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥25॥
भावार्थ:-इस प्रकार नाम (निर्गुण) ब्रह्म और (सगुण) राम दोनों से बड़ा है। यह वरदान देने वालों को भी वर देने वाला है। श्री शिवजी ने अपने हृदय में यह जानकर ही सौ करोड़ राम चरित्र में से इस 'राम' नाम को (साररूप से चुनकर) ग्रहण किया है॥25॥

मासपारायण, पहला विश्राम
चौपाई :
* नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥
भावार्थ:-नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेष वाले होने पर भी मंगल की राशि हैं। शुकदेवजी और सनकादि सिद्ध, मुनि, योगी गण नाम के ही प्रसाद से ब्रह्मानन्द को भोगते हैं॥1॥
*नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥2॥
भावार्थ:-नारदजी ने नाम के प्रताप को जाना है। हरि सारे संसार को प्यारे हैं, (हरि को हर प्यारे हैं) और आप (श्री नारदजी) हरि और हर दोनों को प्रिय हैं। नाम के जपने से प्रभु ने कृपा की, जिससे प्रह्लाद, भक्त शिरोमणि हो गए॥2॥
* ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥3॥
भावार्थ:-ध्रुवजी ने ग्लानि से (विमाता के वचनों से दुःखी होकर सकाम भाव से) हरि नाम को जपा और उसके प्रताप से अचल अनुपम स्थान (ध्रुवलोक) प्राप्त किया। हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है॥3॥
* अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥4॥
भावार्थ:-नीच अजामिल, गज और गणिका (वेश्या) भी श्री हरि के नाम के प्रभाव से मुक्त हो गए। मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक कहूँ, राम भी नाम के गुणों को नहीं गा सकते॥4॥
दोहा :
* नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥26॥
भावार्थ:-कलियुग में राम का नाम कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) है, जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास तुलसी के समान (पवित्र) हो गया॥26॥
चौपाई :
* चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥1॥
भावार्थ:-(केवल कलियुग की ही बात नहीं है,) चारों युगों में, तीनों काल में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोकरहित हुए हैं। वेद, पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल श्री रामजी में (या राम नाम में) प्रेम होना है॥1॥
* ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥2॥
भावार्थ:-पहले (सत्य) युग में ध्यान से, दूसरे (त्रेता) युग में यज्ञ से और द्वापर में पूजन से भगवान प्रसन्न होते हैं, परन्तु कलियुग केवल पाप की जड़ और मलिन है, इसमें मनुष्यों का मन पाप रूपी समुद्र में मछली बना हुआ है (अर्थात पाप से कभी अलग होना ही नहीं चाहता, इससे ध्यान, यज्ञ और पूजन नहीं बन सकते)॥2॥
* नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥3॥
भावार्थ:-ऐसे कराल (कलियुग के) काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है। कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है (अर्थात परलोक में भगवान का परमधाम देता है और इस लोक में माता-पिता के समान सब प्रकार से पालन और रक्षण करता है।)॥3॥
* नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥4॥
भावार्थ:-कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है। कपट की खान कलियुग रूपी कालनेमि के (मारने के) लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमान्‌जी हैं॥4॥
दोहा :
* राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥27॥
भावार्थ:-राम नाम श्री नृसिंह भगवान है, कलियुग हिरण्यकशिपु है और जप करने वाले जन प्रह्लाद के समान हैं, यह राम नाम देवताओं के शत्रु (कलियुग रूपी दैत्य) को मारकर जप करने वालों की रक्षा करेगा॥27॥
चौपाई :
* भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥1॥॥
भावार्थ:-अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है। उसी (परम कल्याणकारी) राम नाम का स्मरण करके और श्री रघुनाथजी को मस्तक नवाकर मैं रामजी के गुणों का वर्णन करता हूँ॥1॥

कुरान का संदेश ...


विश्व के दबंग', अन्ना के गांव आकर हैं दंग

कैलिफोर्निया से अन्ना हजारे के गांव आकर तीन युवक दंग हैं। टिकाऊ विकास क्या होता है यह उन्हें समझ में आ रहा है। विकास ही नहीं लीडरशिप, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण जैसे विषयों पर रोज उन्हें सीखने को मिल रहा है। जॉय ऑफ गिविंग क्या होता है यह उन्होंने रालेगण सिद्धि के लोगों से ही जाना।

लोकपाल आंदोलन के बाद चर्चा में आए इस गांव के बारे में जानने के लिए कैलिफोर्निया (अमेरिका) के क्लेयरमोंट मैककेना कॉलेज के छात्र शांतनु गर्ग भारत आ रहे थे। तो उनके साथ बेन फेल्डमैन और एंडी विलिस भी हो लिए हैं। शांतनु मूल रूप से भोपाल के हैं।

शांतनु के पश्चिमी दोस्तों को आते ही तब आश्चर्य हुआ, जब उन के गाइड ने गांव में उनका रहना सुखद बनाने के लिए अपना स्टीरियो देने की पेशकश की। जिसे उसने उसी दिन खरीदा था। शांतनु बताते हैं, अमेरिका में शेयरिंग की भावना कम है। वहां मेरी चीज मेरी है और आपकी चीज आपकी। सम्मान करेंगे पर शेयर नहीं।

इसलिए बेन व एंड्रयू को गाइड की सदाशयता पर अचरज हुआ। बेन अन्ना के वॉटरशेड प्लान से चकित है। वे कहते हैं उन्होंने इसे लंबी अवधि तक चलाने के लिए फंड भी बनाए हैं। इसका फायदा लेने वाले हर किसान से फंड के लिए नियमित पैसा लिया जाता है। अभी फंड इतना बड़ा है कि अगले सौ साल तक वॉटरशेड की देखभाल हो सके।

बेन के मुताबिक पश्चिम में लीडर के पास फॉर्मल अथॉरिटी होती है। मतलब उसके पास पद होता है, जिससे उसे लोगों को नियंत्रण करने के अधिकार मिलते हैं। अन्ना के पास कोई फार्मल अथॉरिटी नहीं है। उनके पास मॉरल अथॉरिटी है, जो नि:स्वार्थ काम करने से आई है।

फेल विद्यार्थियों का स्कूल

बेन व एंड्रयू को रालेगण सिद्धि में फेल विद्यार्थियों का स्कूल देखकर ताज्जूब हुआ। वहां तीन-तीन बार फेल हुए विद्यार्थी पढ़कर एक ही बार में पास हो जाते हैं। 1985 से चल रहे स्कूल का रिजल्ट 99 फीसदी रहता है। पाठ्यक्रम में किताबी ज्ञान के साथ नैतिक शिक्षा, बॉडी बिल्डिंग, देशभक्ति, मानसिक व शारीरिक सेहत के गुर भी दिए जाते हैं।

गले की फांस बने कुशवाहा, भाजपा ने किया किनारा


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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में घोटाले के आरोपी पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को पार्टी में प्रवेश देने के लिए चौतरफा आलोचना का सामना कर रही भारतीय जनता पार्टी ने रविवार को कहा कि उनकी सदस्यता निलम्बित कर दी गई है।

पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने बताया कि कुशवाहा ने ग्रामीण स्वास्थ्य घोटाले में निर्दोष साबित होने तक अपनी सदस्यता निलम्बित करने का निवेदन किया था। कुशवाहा के निवेदन को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने स्वीकार कर लिया।

हुसैन ने कहा, "कुशवाहा जी ने पार्टी अध्यक्ष को पत्र लिखकर निर्दोष सिद्ध होने तक सदस्यता निलम्बित करने का निवेदन किया था। अध्यक्ष ने इसे स्वीकार कर लिया।" मायावती सरकार में परिवार कल्याण मंत्री रहे कुशवाहा पिछड़े समुदाय से सम्बंधित हैं उन्हें उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों को ध्यान में रखकर मंगलवार को भाजपा में शामिल किया गया था।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में कथित संलिप्तता को लेकर कुशवाहा के भाजपा में शामिल होने के बाद से पार्टी को अंदर विरोध के स्वर मुखर हो गए। सूत्रों के अनुसार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस की आलोचना कर रहे लाल कृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेता कुशवाहा का विरोध कर रहे थे।

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