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18 जनवरी 2012

सर्दी की ठिठुरन में स्कुल का वक्त बदलने के आदेश भी ठिठुर गये

दोस्तों कोटा में आज ठंड है कल भी ठंड थी और पिछले दो सप्ताह से ठंड के माहोल के कारण यहाँ बच्चों के स्वास्थ्य को देखते हुए कलेक्टर जी के निर्देश पर स्कूलों का वक्त बदल दिया गया था .....ऐसा कोटा में ही नहीं पुरे देश और राजस्थान में हुआ था ..स्कूलों का वक्त बुधवार तक था ..प्रशासन सरकार के पास मोसम की जानकारी लेने के लिएँ कई साधन है वोह जानते है के कल केसी सर्दी रहेगी और वेसे भी बुधवार की सर्दी के माहोल ने कोटा सहित सारे राज्य को दहला दिया है ..सर्दी की ठिठुरन के बीच स्कूली बच्चों और माँ बाप को इन्तिज़ार था के कलेक्टर जी हमेशा की तरह से बुधवार के इस वक्त को फिर से आगे कुछ दिनों के लियें बढ़ाएंगे लेकिन सुबह अख़बार देखा तो सामने आया के कलेक्टर जी ने स्कूलों के टाइम के मामले में कोई निर्णय नहीं लिया है ..अजीब प्रशासन अजीब सरकार है सर्दी के कहर में भी संवेदनशीलता नहीं है हो भी केसे उन्हें सर्दी का एहसास तो नहीं होता ..घरों में दफ्तरों में तो सरकारी खर्च पर हीटर है और घर से बाहर आने जाने के लियें पेक एयर कंडिशन करे है तो जनाब गरीबों के बच्चे है इससे सरकार या प्रशासन को क्या लेना देना ...... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

फर्क पाकिस्तान और मेरे भारत महान की सेना के अध्यक्षों का

दोस्तों हमारे देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले सेना के अध्यक्ष को खुद के इन्साफ के लियें पहले सरकार का दरवाज़ा खट खटाना पढ़ा और फिर जब सरकार ने उन्हें निराश किया उनके साथ आम आदमी सा राजनितिक व्यवहार क्या तो उन्हें अपने हक की लड़ाई के लियें देश के सर्वोच्च न्यायालय में जाना पढ़ा ..दोस्तों यह है हिंदुस्तान यहाँ सीमा की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को भी उनके हक के लिए इसी तरह से परेशान होना पढ़ता है और दूसरी तरफ दुश्मन देश जहाँ अगर सेना के किसी अधिकारी की मर्जी के खिलाफ कोई भी बात हो जाए तो वहां सेना आँखें दिखने लगती है प्रधानमत्री हो या राष्ट्रपति उन्हें गिरफ्तार कर सत्ता हथ्या लेती है तो दोस्तों यही तो फर्क है एक लोकतांत्रिक मेरे भारत महान और दुश्मन देश के जांबाजों में यहाँ यह जांबाज़ याचक है तो वहां यह जांबाज़ हुक देने वाले है ............ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

षटतिला एकादशी 19 को, जानें महात्म्य व कथा


माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 19 जनवरी, गुरुवार को है। षटतिला एकादशी का महात्मय पुराणों में वर्णित है। इससे संबंधित एक कथा भी है जो इस प्रकार है-

एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी की क्या कथा तथा उसके महत्व के बारे में पूछा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि- प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध तो हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री वैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा लेने गया।

ब्राह्मण की पत्नी से जब मैंने भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली की मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं।

स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

जब किसी को कोसते हैं तो कहते हैं- जा! तेरा पानीपत हो जाए’’




पानीपत की जमीन से मराठों का देश मीलों दूर है। लेकिन यहां बहा पुरखों का खून, उन्हें आज भी भावनात्मक रूप से इस जमीन से जोड़े हुए है। यह भावनाएं कहीं कुर्बानियों की स्मृति के रूप में हैं तो कहीं उस महाविनाश की टीस के रूप में। इस टीस का ही परिणाम है कि मराठा जीवन में ‘पानीपत’ नाश का सूचक हो चुका है। पानीपत के तीनों युद्धों पर आधारित पुस्तक ‘पानीपत के युद्ध’ लिख चुके रमेश चंद्र पुहाल बताते हैं, ‘ मराठे पानीपत को एक अपशकुन के रूप में देखते हैं। वे जब किसी को कोसते हैं तो कहते हैं- जा! तेरा पानीपत हो जाए।’’

१७६१ के युद्ध के बाद उत्तर भारत की राजनीति में मराठों का प्रभाव क्रमश: कम हुआ लेकिन उन्होंने इस समुचे प्रदेश की संस्कृति और लोककलाओं पर गहरी छाप छोड़ी। इस छाप को उत्तर भारत के किसी भी धार्मिक या ऐताहसिक नगर में देखा जा सकता है। पानीपत भी इस प्रभाव से अछुता नहीं है। इस शहर में ऐसे अवशेष मौजूद हैं, जो मराठों और पानीपत के सांस्कृतिक संबंधों का संकेत देते हैं।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व के प्रोफेसर रह चुके एचए फड़के ने एक शोधपत्र में लिखा है,‘‘पानीपत तहसील के पुराने नक्शे में भाऊ या भाऊपुर नामक गांव का जिक्र मिलता है। यह गांव यमुना के किनारे बसा था और यहां एक किले के अवशेष भी मौजूद थे, जिसे भाऊ के किले के नाम से जाना जाता है।’’ हालांकि कई अन्य इतिहासकार इसे लोक किंवदंती भर मानते हैं।

आम धारणा यह है कि सदाशिव राव भाऊ पानीपत के युद्ध में 14 जनवरी 1761 को शहीद हो गए थे। उनका सिर कटा शरीर तीन दिन बाद लाशों के ढेर में मिला था। एक किंवदंती यह भी है कि सदाशिव राव भाऊ ने युद्ध के तुरंत बाद रोहतक के करीब सांघी गांव में शरण ली थी।

मराठा सेनापति ने बनवाया पानीपत का देवी मंदिर : पानीपत शहर में मराठों की स्मृति के रूप मे देवी मंदिर भी मौजूद है। इस मंदिर का निर्माण मराठा सेनापति गणपतिराव पेशवा ने करवाया था। पानीपत शहर की सांस्कृतिक विरासत पर कई शोधपत्र लिख चुके डा. राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी के अनुसार, ‘‘देवी मंदिर पानीपत में मराठों के योगदान का एक प्रमाण है।

इस मंदिर में मौजूद हरहरेश्वर की प्रतिमा उपसना में मराठों के योगदान का महत्वपूर्ण प्रतीक है। ’’ देवी मंदिर में स्थित हरहरेश्वर की प्रतिमा मध्यकालीन भारत में विकसित वास्तु से प्रभावित है। भूरे पत्थर से बनी यह प्रतिमा विष्णु और शिव का संयुक्त रूप है

इस प्रतिमा के दाएं भाग में शिव का रूप है। इसके हाथ में त्रिशूल और अक्षमाला है। प्रतिमा का वाम भाग विष्णु का रूप है। इसके हाथ में शंख और चक्र है। प्रतिमा के दाएं नंदी और बाएं गरुड़ बैठे हैं। पंचरथ पर स्थित प्रतिमा के इर्दगिर्द मध्यकालीन प्रतिमाओं की भांति सेविकाएं बनी हुई हैं। इस मंदिर के पास ही गंगा मंदिर भी है। यहां हिंदू परंपरा के संत महात्मा शिवगिरी की समाधि है। इस समाधि का निर्माण भी गणपतिराव पेशवा ने ही करवाया था। महात्मा शिवगिरी के अध्यात्मिक प्रभाव का वर्णन तजकरा-ए-गौसअलीशाह में भी मिलता है।

मराठों का वंशज है रोड़ समुदाय: हरियाणा की रोड़ जाति आज भी यहां मराठा परंपरा को जीवित रखे हुए है। यह जाति स्वयं को मराठा वंशज मानती है। दरअसल 1761 के युद्ध में अधिकतर मराठे मारे गए थे। जो बचे उनमें से कुछ तो वापस लौटे कुछ यहीं बस गए। जो मराठे यहां बस गए, वे स्वयं का रोड़ मराठा मानते हैं। उनका कहना है कि रोड़ महाराष्ट्र की 96 जातियों में से एक है और इसकी उत्पत्ति महाराजा रोड़ से हुई है।

रोड़ जाति के इतिहास पर काम कर चुके दिलीप सिंह के अनुसार,‘‘रोड़ जाति १३वीं शताब्दी के राजा रोड़ की वंशज है। इनका राज्य आगरा और ग्वालियर के बीच बसे खगरौल इलाके में था।’’

अब कैसे बचेंगे दुश्मन नक्सली इस इजराइली हेरोन से, क्योंकि..

रायपुर. दक्षिण बस्तर के घने जंगल वाले दुर्गम इलाकों में छिपे नक्सलियों के खिलाफ सटीक हमले करने के लिए पुलिस को इजराइली मानवरहित विमान (यूएवी) हेरोन के रूप में नया हथियार मिला है। तीन महीने के अंदर पुलिस ने यूएवी हेरोन से मिली लाइव तस्वीरों की मदद से आधा दर्जन बड़े ऑपरेशनों को अंजाम दिया।
नतीजों से उत्साहित राज्य पुलिस ने एक अलग यूएवी की मांग केंद्रीय गृहमंत्रालय से की है। प्रयोग के तौर पर हेरोन का इस्तेमाल पिछले साल अक्टूबर से शुरू किया गया। इसका बेस आंध्रप्रदेश के बेगमपेठ हवाई अड्डे में बनाया गया है। 500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने वाला हेरोन छतीसगढ़ और उड़ीसा सीमा से लगे इलाकों की तस्वीरें लेता चलता है। यहां के नतीजों के आधार पर झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी इसके इस्तेमाल की तैयारी है। सीआरपीएफ के सूत्रों के अनुसार गत शुक्रवार को खुद केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने सीआरपीएफ मुख्यालय दिल्ली में इस पूरी योजना को देखा। उन्होंने झारखंड और छतीसगढ़ की सीमा पर नक्सलियों के मूवमेंट की लाइव फुटेज भी देखीं। हेरोन 15 से 40 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ता है। एक बार में वह 36 घंटे तक उड़ान भर सकता है।
चिदंबरम नक्सलियों के खिलाफ इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन पर जोर दे रहे हैं। ताकि हमलों का नतीजा निकले। बस्तर जैसे इलाकों में सूचनाओं का माध्यम ह्यूमन इंटेलिजेंस या मुखबिरों से मिलने वाली सूचनाएं ही हैं। परेशानी यह है कि इनकी पुष्टि करना मुश्किल होता है और ये सूचनाएं काफी देरी से मिलती हैं। सूचनाओं के आधार पर हमले की तैयारी करने में कम से कम 24 घंटे लगते हैं। इतनी देर में नक्सली उस जगह से 10-12 किमी दूर चले जाते हैं। यूएवी से मिलने वाली लाइव तस्वीरों से हमले की योजना बनाना आसान हो जाता है। हालांकि नक्सली ऑपरेशन के अनुभवी लोगों का कहना है कि इस तरह के हमलों के लिए फोर्स को ट्रेंड करना जरूरी है।
हेरोन की खासियत
हेरोन यूएवी में दिन और रात में देख सकने की क्षमता वाले शक्तिशाली कैमरे लगे हैं।
इंफ्रारेड कैमरा रात में भी हजारों फीट ऊपर से जमीन की साफ तस्वीरें लेता है। इसमें सिंथेटिक अपर्चर रॉडार भी लगा है।
कहां हुआ इस्तेमाल
* इजराइल से मिले हेरोन यूएवी का दिसंबर 2004 में आई सुनामी के दौरान राहत कार्य के लिए जमकर इस्तेमाल किया गया था।
* भारत के पास इस समय करीब 12 हेरोन है। ऐसे 50 और हेरोन खरीदने की योजना है। ञ्चनक्सली ऑपरेशन के लिए प्रयोग किए जा रहे हेरोन यूएवी कुछ एडवांस फीचर्स के साथ हैं।
यूएवी का संचालन सीआरपीएफ कर रहा है। इसके नतीजे अच्छे मिले हैं, ऐसी रिपोर्ट है। राज्य ने अपने लिए अलग से यूएवी मांगा है। इसका बेस जगदलपुर या रायपुर में होगा। कुछ सालों पहले वायुसेना के यूएवी की मदद से भी इसी तरह के आपरेशन किए गए थे।
अनिल एम नवानी, डीजीपी
बस्तर में क्यों जरूरी
* दक्षिण बस्तर के ज्यादातर हिस्सों में घने जंगल वाला दुर्गम इलाका है। ज्यादातर इलाके में पक्की सड़कें हैं ही नहीं।
* अबूझमाड़ में तो मोबाइल फोन तक काम नहीं करते। ऐसे में पुलिस व खुफिया एजेंसियां केवल आम लोगों पर ही निर्भर होती हैं।
* कई बार सूचनाएं मिलने में देरी से कार्रवाई नहीं हो पाती। यूएवी से रियल टाइम पिक्चर मिल रही है। फोर्स और खुफिया जानकारी हो, तो फोर्स एक से तीन घंटे में हमले कर सकती है।

एक साथ एक परिवार के सात लोगों का गला काट कर दी नृशंस हत्या

खूंटी/रांची। खूंटी थानाक्षेत्र में सात लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई। इनके शव बुधवार को खूंटी से छह किलोमीटर दूर खूंटी-तमाड़ रोड पर नदीडीपा टोंगरी गांव में मिले। सभी की गला रेत कर हत्या की गई है, जबकि दो के सिर धड़ से गायब हैं। हत्या के बाद पत्थरों से सिर को बुरी तरह से कूच दिया गया है। इनमें से चार की पहचान हुई है। इनमें मुरहू थानाक्षेत्र के सापरुम गांव निवासी पूर्व राशन डीलर टेकनाथ मुंडा व फागू मुंडा, रूताडीह के पुनय हस्सा और डाउडी (खूंटी) निवासी आकाश हस्सा के रूप में हुई है। तीन मृतकों की अभी तक शिनाख्त नहीं हो पाई है। शवों को देखकर लगता है कि इनकी हत्या एक-दो दिन पहले की गई है। हत्या के पीछे उग्रवादी संगठनों का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है।
क्या है मामला
बुधवार की दोपहर करीब तीन बजे खूंटी पुलिस को सात शव मिलने की सूचना मिली। खबर मिलते ही एसपी एम तमिल वाणन भारी पुलिसबल के साथ मौके पर पहुंचे और शवों को कब्जे में ले लिया। सभी शव 300 मीटर के दायरे में झाड़ियों में पड़े थे। सभी मृतक 20 से 32 वर्ष के बीच के हैं। इनके हाथ पीछे कर रस्सी से बंधे हुए थे और गर्दन तेज धारदार हथियार से रेता हुआ था। वहीं दो के सिर धड़ से गायब थे। सिर को इतनी बुरी तरह से कूच दिया गया था कि उनकी पहचान मुश्किल थी।
चार शवों की शिनाख्त
पुलिस ने हत्यारों की धरपकड़ के लिए खोजी कुत्ते की मदद ली, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। फिर मृतकों की शिनाख्त के लिए आसपास के लोगों को बुलाया गया। इसी दौरान मुरहू के दो परिवारों ने दो शवों की पहचान टेकनाथ मुंडा व फागू मुंडा के रूप में की। देर शाम दो शवों की शिनाख्त हुई।
हॉकी स्टिक व शराब बरामद
घटनास्थल से पुलिस को हॉकी स्टिक, शराब की बोतल और गिलास बरामद हुए हैं। पुलिस को शक है कि हत्यारों ने घटना से पहले शराब पीकर बंधक बनाए गए सातों लोगों को हॉकी स्टिक से पीटा और फिर सभी की गला रेत कर हत्या कर दी । इसके बाद हत्यारों ने मृतकों के सिर पत्थर से कूच दिए ताकि शव की शिनाख्त न हो सके।
15 जनवरी से लापता थे
टेकनाथ मुंडा व फागू मुंडा के परिजनों के मुताबिक ये दोनों 15 जनवरी को टुसू मेला देखने के लिए घर से निकले थे, मगर वापस नहीं लौटे। काफी खोजबीन के बाद भी इनका कोई पता नहीं चल पाया। गौरतलब है कि जहां शव मिले हैं, वहां से कुछ दूरी पर ही टुसू मेले का आयोजन किया गया था।
मेला स्थल से ही उठाया गया था
मकर संक्रांति के दिन यानी 15 जनवरी को नदीडीपा टोंगरी गांव में टुसू मेले का आयोजन किया गया था। चर्चा है कि पुलिस मुखबिरी के आरोप में मेले में घूमने आए सात लोगों को हथियारबंद अपराधियों ने अगवा कर लिया। इसके बाद उसी दिन सभी की हत्या कर दी गई थी। हत्या के पीछे किस संगठन का हाथ है, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि जिस इलाके में वारदात हुई है, वह पीएलएफआई का गढ़ माना जाता है।
कारण स्पष्ट नहीं
इन सात लोगों की हत्या किसने और क्यों की, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। शवों की शिनाख्त के बाद ही मामले का खुलासा हो पाएगा। पुलिस खोजी कुत्ते के सहारे हत्यारों को ढूंढ रही है।
संपत मीणा, डीआईजी, रांची प्रक्षेत्र
शिनाख्त के प्रयास
नरसंहार के पीछे कौन हैं, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। शवों की शिनाख्त के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।
एम तमिल वाणन, एसपी, खूंटी

बालकाण्ड मानस निर्माण की तिथि




* सादर सिवहि नाइ अब माथा। बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥2॥
भावार्थ:-अब मैं आदरपूर्वक श्री शिवजी को सिर नवाकर श्री रामचन्द्रजी के गुणों की निर्मल कथा कहता हूँ। श्री हरि के चरणों पर सिर रखकर संवत्‌ 1631 में इस कथा का आरंभ करता हूँ॥2॥
* नौमी भौम बार मधुमासा। अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल जहाँ चलि आवहिं॥3॥
भावार्थ:-चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्री अयोध्याजी में यह चरित्र प्रकाशित हुआ। जिस दिन श्री रामजी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन सारे तीर्थ वहाँ (श्री अयोध्याजी में) चले आते हैं॥3॥
* असुर नाग खग नर मुनि देवा। आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना॥4॥
भावार्थ:-असुर-नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजी में आकर श्री रघुनाथजी की सेवा करते हैं। बुद्धिमान लोग जन्म का महोत्सव मनाते हैं और श्री रामजी की सुंदर कीर्ति का गान करते हैं॥4॥
दोहा :
* मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥34॥
भावार्थ:-सज्जनों के बहुत से समूह उस दिन श्री सरयूजी के पवित्र जल में स्नान करते हैं और हृदय में सुंदर श्याम शरीर श्री रघुनाथजी का ध्यान करके उनके नाम का जप करते हैं॥34॥
चौपाई :
* दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारदा बिमल मति॥1॥
भावार्थ:-वेद-पुराण कहते हैं कि श्री सरयूजी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धि वाली सरस्वतीजी भी नहीं कह सकतीं॥1॥
* राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥2॥
भावार्थ:-यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्रजी के परमधाम की देने वाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगत में (अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज) चार खानि (प्रकार) के अनन्त जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्याजी में शरीर छोड़ते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते (जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूटकर भगवान के परमधाम में निवास करते हैं)॥2॥
* सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥3॥
भावार्थ:-इस अयोध्यापुरी को सब प्रकार से मनोहर, सब सिद्धियों की देने वाली और कल्याण की खान समझकर मैंने इस निर्मल कथा का आरंभ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट हो जाते हैं॥3॥
* रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥4॥
भावार्थ:-इसका नाम रामचरित मानस है, जिसके कानों से सुनते ही शांति मिलती है। मन रूपी हाथी विषय रूपी दावानल में जल रहा है, वह यदि इस रामचरित मानस रूपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो जाए॥4॥
* रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥5॥
भावार्थ:-यह रामचरित मानस मुनियों का प्रिय है, इस सुहावने और पवित्र मानस की शिवजी ने रचना की। यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को तथा कलियुग की कुचालों और सब पापों का नाश करने वाला है॥5॥
* रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥
भावार्थ:-श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुंदर 'रामचरित मानस' नाम रखा॥6॥
* कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥7॥
भावार्थ:-मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा को कहता हूँ, हे सज्जनों! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे सुनिए॥7॥

कुरान का संदेश

वक्फ बोर्ड चेयरमेन ने मुख्यमंत्री के गृह जिले जोधपुर के अधिकारीयों को जंव सुनवाई के दोरान लापरवाही के लियें लताड़ पिलाई

जोधपुर सम्भाग जो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह जिला है उस जिले में भी कई ऐसे अधिकारी लगे हैं जो सरकार में बेठे लोगों की नहीं सुनते ..इस मामले में आज जोधपुर में आयोजित जन सुनवाई कार्यक्रम में राजस्थान वक्फ बोर्ड के चेर्में पूर्व आई जी पुलिस लियाकत अली खान ने जोधपुर के अधिकारीयों को मुख्यमंत्री महोदय द्वारा जारी आदेशों की पालना नहीं करने को लेकर काफी नाराज़गी जताई ...लियाक़त अली ने आज वही अपने पुलिसिया अंदाज़ में अधिकारीयों का सावचेत करते हुए कहा के मंत्री ..मुख्यमंत्री और दुसरे चेयरमेन जनप्रतिनिधियों द्वारा जो भी निर्देश दिए जाते है उनकी परवाह अधिकारी नहीं करते है और लोगों के जनहित के काम वेसे ही पढ़े रह जाते है इससे सरकार और जनप्रतिनिधियों का अपमान तो होता ही है साथ ही जनता के बीच उनकी छवि भी बिगडती है ..आज जनसुनवाई कार्यक्रम में लियाकत अली का यह रोद्र रूप देख कर अधिकारीयों में हडकम्प मच गया कुछ का कहना था के अधिकारी इस लताड़ के बाद कुछ काम करेंगे कुछ का कहना था के अधिकारी इतनी मोटी चमड़ी के हो गये है के वोह इस लताड़ को भी गम्भीरता से नहीं लेंगे लेकिन जिस अंदाज़ में लियाकत अली ने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति लापरवाह अधिकारीयों के कान उमेठे है उससे लगता है के अगर अब जनता के मामलों की सुनवाई नहीं हुई तो जनप्रतिनिधि गम्भीर रहेंगे और अधिकारीयों पर इस लापरवाही मामले में कभी भी गाज गिर सकती है खेर देखते है संवेदन शील और जवाबदेही प्रशासन आगे केसे चलता है और जनता को लापरवाह अधिकारीयों से केसे न्याय दिलवाता है ....... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

हिरण के पेट से क्यों लिया एक ऋषि ने जन्म?


महाभारत के अनुसार एक बार युधिष्ठिर नन्दा और अपरनन्दा नाम की नदियों पर गए जो हर प्रकार से पाप और भय को नष्ट करने वाली थी। तब लोमेशजी ने युधिष्ठिर से कहा राजन- इस नदी में स्नान करने वाला हर तरह के पाप से मुक्त हो जाता है। यह सुनकर युधिष्ठिर ने अपने भाइयों के साथ उस नदी में स्नान किया।

उसके बाद वे लोग कौशिक नदी के किनारे गए। वहां जाकर लोमेशजी ने युधिष्ठिर से कहा- इस नदी के किनारे आपको जो आश्रम दिखाई दे रहा है। वह कश्यप मुनि का है। महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋषिश्रृंग का आश्रम भी यहीं है। उन्होंने एक बार अपने तप के प्रभाव से वर्षा को रोक दिया था। वे परमतेजस्वी हैं। उन्होंने विभाण्डकमुनि और मृगी के उदर से जन्म लिया है।

तब युधिष्ठिर ने कहा लेकिन पशुजाति के साथ योनी संसर्ग होना तो शास्त्रों की दृष्टी से गलत है। तब लोमेशजी बोले महर्षि विभाण्डक बड़े ही साधुस्वभाव और प्रजापति के समान तेजस्वी थे। उनका वीर्य अमोघ था। तपस्या के कारण अंत:करण शुद्ध हो गया। एक बार वे एक सरोवर पर स्नान करने लगे। वहां उर्वशी अप्सरा को देखकर जल में ही उनका वीर्य स्खलित को गया।इतने में ही वहां एक प्यासी मृगी आई वह जल के साथ वीर्य भी पी गई। इससे उसका गर्भ ठहर गया। वास्तव में वह एक देवकन्या थी। इसे शाप देते हुए कहा था कि तू मृगजाति में जन्म लेकर एक मुनि पुत्र को उत्पन्न करेगी। तब शाप से छूट जाएगी। विधि का विधान अटल है। इसी से महामुनि ऋषिश्रृंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके सिर पर एक सींग था। इसलिए उनके मन में हमेशा ब्रम्हचर्य रहता था।

14 बच्चों के पिता ने आज तक नहीं किया सेक्स

ट्रेंट आर्सेनॉल्ट 14 बच्चों के पिता हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक सेक्स का आनंद नहीं उठाया है।

जी हां, 36 वर्षीय आर्सेनाल्ट 14 एक ऐसे शख़्स हैं, जो 14 बच्चों के पिता होने के बावजूद आज तक वर्जिन हैं।

बकौल हफिंगटन पोस्ट अमेरिका के उत्तरी कैलिफोर्निया में रहने वाले कंप्यूटर सिक्योरिटी स्पेशलिस्ट आर्सेनॉल्ट बताते हैं कि वे अपने वीर्य को उन लोगों को दान कर देते हैं, जो किन्हीं वजह से बच्चे पैदा करने में असमर्थ होते हैं।

न्यूज़र डॉट कॉम को दिए एक इंटरव्यू में आर्सेनॉल्ट ने बताया "मैंने अपनी सारी सेक्सुअल ऊर्जा को वीर्य के उत्पादन में लगा दिया है, ताकि अधिक से अधिक जोड़े, मां-बाप बन सकें।"

गौरतलब है कि आर्सेनॉल्ट स्वेच्छा से वीर्य दान करते हैं और इसके लिए किसी भी तरह का शुल्क नहीं लेते।

बेटी के ब्रेस्ट पर थूककर विदा करता है बाप उसे शादी के बाद

केन्या और तंजानिया के मसाई आदिवासियों में एक अद्भुत परंपरा है। इस परंपरा में थूकने का विशेष महत्व है। एक-दूसरे के ऊपर थूककर यहां प्यार और सम्मान जताया जाता है।
बेटी की शादी के बाद बाप अपनी बेटी के ब्रेस्ट और माथे पर थूककर उसे उसके पति के साथ विदा करता है।
मसाई आदिवासी कबीलों में जब दोस्त आपस में मिलते हैं तो एक-दूसरे पर थूककर स्वागत करते हैं।
इस कबीले में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तब उस पर सभी थूकते हैं और थूक-थूक कर उस बच्चे को कोसते हैं। मसाईयों का मानना है कि बच्चे को बुरा कहने से उसका भविष्य अच्छा होता है जबकि अगर वे बच्चे की प्रशंसा करेंगे तो उसका जीवन बुरा होगा।
जब कोई मसाई अपने से बड़े से मिलता है तो हाथ मिलाने से पहले उसकी हथेली पर थूकता है। इस प्रकार थूककर मसाई अपने से बड़े का सम्मान करते हैं।

अनेक रोगों की एक दवा:घी के साथ खसखस का योग कर देगा कमाल



कुछ बीमारियां ऐसी होती है, जो लगातार दवाएं लेने के बाद भी ठीक नहीं होती है। ऐसी बीमारियों को दूर करने के लिए आयुर्वेद में कुछ योग बताएं गए हैं। गंभीर बीमारियों में ये नुस्खे एक मात्र उम्मीद होते हैं। वाकई में ये नुस्खे काम भी करते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में रासायन कहा जाता है। ऐसा ही एक योग है अमृत संजीवनी रासायन योग जिसे आप घर पर ही बनाकर कई जानलेवा बीमारियों का इलाज कर सकते हैं।

बनाने की विधि और सामग्री - अमृता, खस, नीम की छाल, मछेली, अडूसा, गोबर मुदपर्णी, सेमल, मूसली, शतावर, सभी को अलग-अलग कर एक किलो लेकर जौकुट करके आठ गुने पानी में पकाएं। जब पानी 4 भाग शेष रह जाएं। तब एक किलो गुड़ (बिना मसाले का) अडूसा, शतावरी, आंवला, मछेली का कल्क प्रत्येक 160-160 ग्राम-काली गाय के घी में धीमी आंच पर पकाएं।

घी मात्र जब शेष रह जाए तो छानकर खस, चंदन, त्रिजातक, त्रिकुटा, त्रिफला, त्रिकेशर ( नागकेशर, कमल केशर) वंश लोचन, चोरक, सफेद मुसली, असगंध, पाषाण भेद, धनिया, अडूसा, अनारदाना, खजूर, मुलैठी, दाख, निलोफर, कपूर, शीलाजीत, गंधक सभी दस-दस ग्राम लेकर कपड़छन करके उपरोक्त घी में मिला दें।

मात्रा-सुबह खाली पेट 10 ग्राम घृत गौ- दूध में डालकर सेवन करें और एक घंटे तक कुछ भी ना खाएं।

गुण-सभी प्रकार के कैंसर में प्रथम व द्वितीय अवस्था तक के अलग-अलग अनुपान से, पुराना गठिया, घुटनो में सुजन व दर्द, साइटिका, अमाशय में पितरोग, नामर्दी, शुक्राणु का अभाव, शीघ्र पतन, पागलपन, अवसाद, बिगड़ी हुई खांसी, गलगंड, पीलिया, वात रोग, रक्तरोग, रसायन, वाजीकरण, श्वास रोग, गले के रोग, हृदय रोग, पिताशय की पथरी में लाभकारी। जो स्त्री रजोदोष से पीडि़त हो, जिस स्त्री के रजनोप्रवृति प्रारंभ ही न हुई हो, जो कष्ट पीडि़त हो तथा जिन स्त्रियों को बार-बार संतान होकर मर जाती हो, उन सभी को राहत मिलेगी। मासिक धर्म शुरू होकर बीच में ही बंद हो गया हो और अनेकों औषधी व मंत्रों के प्रयोग से संतान उत्पन्न न हुई हो उन्हें निश्चित ही संतान होगी।

भागवत में लिखा है, कलयुग आएगा तो ऐसे मिलेंगे संकेत...

. प्रियतम प्रभु हर दम अभिमुख बना रहे। उसकी रासलीला चौबीसों घण्टे चलती रहे तथा भक्त उसके आनन्द तथा मधुरता में ही डूबा रहे, यही परम-प्रेम-रूपा भक्ति का स्वरूप है अब आगे...., जगत के विषयों में दु:ख की भावना, ईश्वर के प्रति प्रेम का आश्रय ग्रहण कर सकता है।


यदुवंश के मृत व्यक्तियों का श्राद्ध अर्जुन ने विधिपूर्वक करवाया। भगवान के न रहने पर समुद्र ने एकमात्र भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थान छोड़कर एक ही क्षण में सारी द्वारिका डुबो दी।पिण्डदान के पश्चात स्त्रियों, बच्चों और बूढ़ों को लेकर अर्जुन इन्द्रप्रस्थ आए। वहां सबको यथायोग्य बसाकर अनिरुद्ध के पुत्र वज्र का राज्याभिषेक कर दिया। हे परीक्षित्! तुम्हारे दादा युधिष्ठिर आदि पाण्डवों को अर्जुन से ही यह बात मालूम हुई कि यदुवंशियों का संहार हो गया है। तब उन्होंने अपने वंशधर तुम्हें राज्यपद पर अभिषिक्त करके हिमालय की वीरयात्रा की।

परीक्षित ने शापित होने के कारण शुकदेवजी से जो कथा सुनी थी उसके नायक भगवान श्रीकृष्ण थे। नायक अपनी लीला समेट कर जा चुके हैं और परीक्षित के मन में अनेक छोटे-बड़े प्रश्न पुन: तैयार हो गए हैं। शुकदेवजी परीक्षित को समझा चुके हैं कि मैंने विस्तार से कृष्ण चरित्र सुनाया है और तुम जान गए होंगे कि धर्म क्या है? जीवन का आरंभ, मध्य और समापन कैसे होता है? इस प्रकार ग्यारहवें स्कंध का समापन होता है।

आइए, इसी के साथ भागवत की कथा अब बारहवें स्कंध में प्रवेश कर रही है। यहां कलयुग का वर्णन आएगा। शुकदेवजी ने जिस बारीकी से और विस्तार के साथ कलयुग का वर्णन किया है हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। अब जो चित्रण आएगा उससे हम अच्छी तरह से परिचित हैं, लेकिन हमें अब उससे सीखना है कि कलयुग की घटनाएं हमारे भीतर न जन्म लेने लगे। बाहर के दुनियादारी के जीवन में कलयुग का होना स्वाभाविक है। बारहवें स्कंध से हम यह सीखें कि हमारे भीतर कलयुग की स्थिति न बन जाए।

कलयुग तो प्रतीक्षा ही कर रहा था कि भगवान जाएं और मैं आऊं। जब-जब जीवन से भगवान गए, कलयुग आया। भगवान कह रहे हैं अब मैं जा रहा हूं, आप कलयुग को पहचानिए, जानिए। द्वादश स्कंध के आरंभ में शुकदेवजी कलयुग के बारे में जानकारी दे रहे हैं। कलयुग आएगा तो हमको दिखेगा जीवन का विपरीत घट रहा है। कलयुग में वो लोग जो नीचे बैठे हुए, ऊपर नजर आएंगे। कलयुग जब आएगा तो पापी व्यक्ति जो हैं वे पूजे जाएंगे। कलयुग जब आएगा तो अयोग्य लोग समर्थों पर राज करेंगे। कलयुग जब आएगा तो जो चोर होगा वह साहूकार के रूप में पूजा जाने लगेगा। जो जोर से बोलेगा उसकी बात सुनी जाएगी। भगवान कलयुग का लम्बा-चौड़ा वर्णन करते हैं और हम तो कलयुग को अच्छी तरह से परिचित हैं।

'समय-समय की बात है और समय-समय का योग, लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग।कलयुग में ऐसा होता है। जो पतीत है, जो चरित्र से गिरा है वह ऊपर चला जाता है। 'गिरने वाला तो छू गया बुलंदी आसमान की और जो संभलकर चल रहे थे वो रेंगते नजर आए इसका नाम कलयुग है। कलयुग में कौन किसकी मदद कर रहा है यह पता ही नहीं लगता। आपको जो सहयोगी दिख रहा है वह पीछे षडयंत्र कर रहा होगा। कलयुग में कौन आपसे प्रेम से बात कर रहा है यह ज्ञात ही नहीं होता। कलयुग में आपका शत्रु है या मित्र है यह भान ही नहीं होता। कलयुग में मनुष्य प्रेम प्रदर्शन के, एक-दूसरे से हिसाब-किताब चुकाने के नए-नए तरीके ढूंढ लेता है।

इन दो समय में कुछ देर चुप रहना चाहिए, क्योंकि...


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हिंदू संस्कृति में कई ऐसे नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने पर हमें स्वास्थ्य लाभ होता है साथ ही धर्म लाभ भी प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार बताए गए इन कार्यों को दिनचर्या में शामिल करने वाले व्यक्ति को जीवन में कई परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।

हमारी काफी ऊर्जा बोलने में नष्ट हो जाती है, इस ऊर्जा को बचाने के लिए प्रतिदिन कुछ समय मौन रहना चाहिए। वैदिक काल से ही ऋषिमुनियों और विद्वानों द्वारा मौन रहने के फायदे बताए गए हैं। सुबह और शाम को कुछ समय मौन रहने से हमारा मानसिक तनाव तो कम होता है साथ ही स्वास्थ्य को भी लाभ प्राप्त होता है।

शास्त्रों के अनुसार प्रात:काल और सायंकाल व्यक्ति को जितनी देर संभव हो सके मौन रहना चाहिए। दिनभर के कई जरूरी काम मौन रहकर भी किए जा सकते हैं। मन शांत मिलती है जिससे ध्यान, पूजा, स्वाध्याय आदि से मानसिक शक्ति मिलती है। सुबह-सुबह मौन रहने से हमारा मन एकाग्र रहता है और प्रतिदिन के खास कार्यों को हम ठीक से कर पाते हैं। इसके बाद शाम के समय मौन रहने से दिनभर के कार्य से जो मानसिक तनाव उत्पन्न होता से उससे मुक्ति मिलती है। जिससे पारिवारिक जीवन पर बाहरी तनाव का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। इसी वजह से प्रतिदिन सुबह और शाम के समय कुछ समय मौन रहकर मन को एकाग्र करना चाहिए।

जब ना लगे कोई दवा तो गैस की दिक्कत के लिए अपनाएं ये रामबाण

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कब्ज और गैस की समस्या ऐसी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। बच्चे से लेकर बड़े तक किसी भी आयु वर्ग वाले को इस समस्या से जूझना पड़ सकता है। गैस्ट्रिक ट्रबल तो परेशानी का कारण होता ही है साथ ही इससे पीडि़त व्यक्ति को सिरदर्द, कमरदर्द, पेटदर्द,सीने में दर्द जैसी कई समस्याएं हो सकती है। अगर आप भी गैस से परेशान हैं और इसे जड़ से मिटाना चाहते हैं तो नियमित रूप से मंडूकासन करें। इस आसन में हमारे शरीर की आकृति मेंढक के समान हो जाती है इसलिए इसे मंडूकासन कहा जाता है।
मंडूकासन की विधि-
मंडूकासन के लिए पहले नीचे चटाई बिछाकर बैठ जाएं। इसके बाद दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पीछे की ओर ले जाएं और एडिय़ों को फैलाकर दोनों पंजों को मिलाकर उस पर बैठ जाएं। दोनों हाथों के अंगूठों को अंदर करके मुटठी बांध लें और मुटठी को एक-दूसरे से सटाकर नाभि के पास रखें। अब सांस अंदर खींचकर शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। सांस को छोड़ते हुए शरीर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाते हुए छाती को घुटनों से लगाएं। इसके बाद सांस लेते हुए शरीर को वापिस पहले वाली स्थिति में ले आएं। फिर कुछ देर रुककर सांस को छोड़ते हुए फिर से छाती को घुटनों से लगाएं। इस क्रिया को 3 बार करें।
आसन से रोगो में लाभ-
इस आसन से पेट की सभी मांसपेशियों की मालिश होती है, जिससे पेट के अधिकतर रोग खत्म हो जाते हैं। यह आसन पेट को बाहर निकलने से रोकता है अर्थात चर्बी को बढऩे से रोकता है। यह सांस की तेज गति को सामान्य करता है इसलिए जिन व्यक्तियों की सांस फूलती हो उनके लिए यह आसन बहुत लाभकारी होता है। यह आसन अपच (भोजन का न पचना) व गैस का अधिक बनना कम करता है। इससे घुटनों, पिण्डलियों तथा टखनों का दर्द दूर होता है। इस आसन से पंजो को बल मिलता है, जिससे पैरों में उछलने की शक्ति बढ़ती है। यह आसन ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप), वायु विकार को खत्म करने के लिए अधिक लाभकारी है। यह आसन शरीर में ऊपर की वायु को ऊपर से तथा नीचे की वायु को नीचे से निकाल देता है। खाने को लेकर असावधानी रखने वाले लोगों के लिए यह आसन काफी फायदेमंद है। प्रतिदिन मंडूकासन करने पर पेट की कई छोटी-बड़ी समस्याएं आपसे सदैव दूर ही रहेगी।

सैयदना साहब के बेटे की जियारत में उमड़े अनुयायी


अहमदाबाद। दाउदी बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉ. सैयदना साहब बुरहानुद्दीन साहब के चौथे बेटे शहजादा सैयदी होजेफा भाई साहब मोइनुद्दीन की जियारत में मंगलवार को 20 हजार से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए।

इसमें शामिल होने के लिए बांग्लादेश, श्रीलंका, कुवैत, इंग्लैंड, कतर, शारजाह, ओमान और फ्रांस से भी लोग यहां पहुंचे थे। इसके अलावा पूरे विश्व में भी सभी जगहों पर दाउदी बोहरा समाज के सदस्यों ने होजेफा भाई साहब को श्रद्धां

लोकायुक्‍त की लड़ाई: कोर्ट से झटका, राज्‍यपाल का समर्थन


अहमदाबाद। कर्नाटक के राज्‍यपाल हंसराज भारद्वाज ने गुजरात के राज्‍यपाल कमला बेनीवाल के उलट मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया है। भारद्वाज ने कहा है कि राज्‍यपाल को लोकायुक्‍त की नियुक्ति करने से पहले मुख्‍यमंत्री से सलाह-मशविरा करना चाहिए।

कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और कानून मंत्री रह चुके भारद्वाज का बयान ऐसे समय आया है जब गुजरात उच्च न्यायालय ने बेनीवाल द्वारा लोकायुक्त के रूप में आर. ए. मेहता की नियुक्ति को बरकरार रखने का फैसला किया। कांग्रेस इसे नरेंद्र मोदी के लिए झटके के रूप में देख रही है। हालांकि राज्‍य सरकार के पास हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्‍प है।

दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने पिछले साल अक्टूबर में मेहता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर अलग-अलग फैसला सुनाया था। न्यायमूर्ति अकील कुरैशी ने जहां मेहता की नियुक्ति को बरकरार रखा था, वहीं न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी ने इससे असहमति जताई थी। इसके बाद यह मामला तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी. एन. सहाय के पास भेज दिया गया था, जिन्होंने मामले की सुनवाई 29 दिसम्बर, 2011 को पूरी की और बुधवार को इस पर फैसला दिया।
याचिकाकर्ता आनंद याज्ञनिक ने कहा, "दो न्यायाधीशों की खंडपीठ के मत में भिन्नता थी। आज तीसरे न्यायाधीश का निर्णय आया है और उन्होंने न्यामूर्ति कुरैशी के विचार से सहमति जताई है।"
राज्य सरकार ने मेहता की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी थी कि राज्यपाल ने इस पर उससे परामर्श नहीं लिया। लोकायुक्त के रूप में मेहता की नियुक्ति 26 अगस्त, 2011 को की गई थी। राज्य में पिछले सात साल से कोई लोकायुक्त नहीं था।
हालांकि भाजपा नेता अरुण जेटली ने हाई कोर्ट के फैसले के बाद यूपीए को निशाने पर लिया है। उन्‍होंने आरोप लगाया कि यूपीए की सरकार देश के संघीय ढांचे को नेस्‍तनाबूद करने में लगी है।

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