जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में डिग्गी पैलेस में सांस्कृतिक संध्या के दौरान राजस्थानी लोक धुनों पर चरी नृत्य की प्रस्तुति। देर रात तक चले इस आयोजन में राज्य के विभिन्न स्थानों से आए लोक कलाकारों ने राजस्थानी साजों पर अपनी प्रस्तुति दी।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
20 जनवरी 2012
तस्वीरों में देखें जयपुर लिटरेचर के अनछुए लम्हें!...शेतान तो यहाँ भी आ गया दोस्तों
जिस्म में हुक ठोककर हवा में लटका देते हैं लोग उसे...
गांव के लोग उस युवक की छाती, कंधों और पीठ में लकड़ी के नुकीले हुक को घुसाते हैं। उस हुक से रस्सी बंधी होती है जिसका दूसरा सिरा घर के छत में बांधा जाता है।
उस रस्सी के सहारे फिर उस युवक को धीरे-धीरे ऊपर खींचा जाता है। हवा में हुक से टंगे उस युवक के शरीर से खून निकलता है लेकिन इतने दुख के बावजूद वह नहीं चीखता।
हवा में जब वह झूलता है, उसी वक्त उसके बांहों और पैरों में भी हुक ठोका जाता है। मर चुके पूर्वजों की खोपड़ियों को उन हुकों से बांधा जाता है।
खून बहने और इतने टार्चर के बाद जब लोगों को जब विश्वास हो जाता है कि लड़का बेहोश हो गया है तब उसे रस्सी से उतारा जाता है।
जब उसे होश आता है तब वह अपनी बांयी ऊंगली को ईश्वर को बलि चढाने के लिए कटवा देता है। इस बलि से यह माना जाता है कि वह युवक आगे चलकर शक्तिशाली शिकारी बनेगा।
अंत में वह युवक रिंग के अंदर दौड़ता है। उसके बाद गांववाले उसके शरीर पर लगे हुक को निकालते हैं। लेकिन इन हुकों को उस दिशा से निकाला जाता जिधर से उसे ठोका जाता है बल्कि उसे उल्टी दिशा से खींचकर निकाला जाता है।
शरीर पर इतने घाव और दुख दिन भर झेलने के बाद उस युवक को जवान आदमी घोषित किया जाता है।
गौरतलब है कि श्रीलंका में भी हुकों से टांगने की इसी तरह की प्रथा चलन में है।
सर्दी का कहर, अब पाला पड़ने का डर
नई दिल्ली. घने कोहरे व कड़ाके की ठंड से परेशान लोगों को के लिए एक और बुरी खबर है कि अब उन्हें पाला से भी दो चार होना पड़ सकता है। वीकएंड में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी व उत्तरी राजस्थान में पाला पडऩे की आशंका जताई गई है, जिसके चलते किसान खासे परेशान हैं। रबी की फसलों के लिए पाला काफी नुकसानदायक होता है। दूसरी ओर, दिल्ली एनसीआर में कोहरे की आंख मिचौली जारी रहेगी। सोमवार से कोहरे की सघनता कम होने की उम्मीद है, लेकिन 26 जनवरी से कोहरे की फिर वापसी हो सकती है।
दिल्ली में शनिवार को न्यूनतम तापमान सात डिग्री रहा, लेकिन जम्मू-कश्मीर सहित कई इलाकों में लगातार बर्फबारी हो रही है। बर्फबारी के चलते जम्मू-कश्मीर में फंसे पर्यटकों को आज वायु सेना की मदद से निकाला जाएगा।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली सहित पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत में लगातार घना कोहरा छाने व पहाड़ी इलाकों में कई सप्ताह से हो रही भारी बर्फबारी की वजह से सर्दी अपने शबाब पर है। मौसम विभाग ने बताया कि शुक्रवार को भी फिर दर्जनों स्थानों में घना कोहरा छाया रहा। कानपुर, लखनऊ, बरेली, मेरठ, अंबाला, ग्वालियर सहित दिल्ली एनसीआर में कई घंटे तक दृश्यता स्तर 50 मीटर या शून्य तक रहा, जिससे कोहरे का असर दिन के बारह बजे तक देखने को मिला। बादलों का जमावड़ा भी छंट गया है, जिसके चलते न्यूनतम तापमान 4.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। कोहरा छंटने और धूप निकलने पर भी मंद-मंद बर्फीली हवाओं का दौर जारी रहा, जिससे ठिठुरन का दौर जारी रहा। मौसम विभाग ने अंदेशा जताया है कि शनिवार को भी कोहरे का दौर जारी रहेगा, लेकिन शुक्रवार की अपेक्षा सघनता कम रहेगी। साथ ही दिन में धूप भी खिलने की संभावना है। तापमान में भी एक से दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।
आबू जमा मेवाड़ थमा, माउंट में पारा माइनस २.२ डिग्री
राजस्थान में शुक्रवार को ज्यादातर जगहों पर पारा फिर लुढ़क गया। शीतलहर के कारण माउंट आबू में लगातार तीसरे दिन तापमान शून्य से नीचे रहा। मेवाड़ में हाड़कंपाने वाली ठंड ने जनजीवन को थाम कर रख दिया। माउंट आबू की वादियां पारा माइनस 2.2 डिग्री पर पहुंचने के कारण पूरी तरह बर्फानी हो गई। मेवाड़, हाड़ौती, जयपुर सहित कई इलाकों में कोहरा छाया रहने से सुबह तीन तीन घंटे तक रेल, हवाई और सड़क यातायात बाधित रहा। जयपुर में शीतलहर लगातार दूसरे दिन जानलेवा बनी और बालोद्यान में एक अधेड़ मृत मिला। यहां न्यूनतम तापमान 4.6 से गिर कर 4.3 डिग्री पर थमा। अलवर में ठंड बढऩे से पारा 3 से गिरकर 2 डिग्री पर पहुंच गया। माउंट आबू में सुबह के समय नक्की झील पर खड़ी नावों एवं पोलो ग्राउंड में बर्फ की हल्की चादर नजर आई। घरों के बाहर खड़ी कारों के शीशों एवं पानी के बर्तनों में भी बर्फ की परत जम गई।
शिवजी द्वारा सती का त्याग, शिवजी की समाधि दोहा :
बालकाण्ड |
प्रगटि न कहत महेसु कछु हृदयँ अधिक संतापु॥56॥
एहिं तन सतिहि भेंट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥1॥
चलत गगन भै गिरा सुहाई। जय महेस भलि भगति दृढ़ाई॥2॥
सुनि नभगिरा सती उर सोचा। पूछा सिवहि समेत सकोचा॥3॥
जदपि सतीं पूछा बहु भाँती। तदपि न कहेउ त्रिपुर आराती॥4॥
कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य॥57 क॥
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥57 ख॥
कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा॥1॥
निज अघ समुझि न कछु कहि जाई। तपइ अवाँ इव उर अधिकाई॥2॥
बरनत पंथ बिबिध इतिहासा। बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा॥3॥
संकर सहज सरूपु सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा॥4॥
मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं॥58॥
मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनि पतिबचनु मृषा करि जाना॥1॥
अब बिधि अस बूझिअ नहिं तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही॥2॥
जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥3॥
जौं मोरें सिव चरन सनेहू। मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू॥4॥
होइ मरनु जेहिं बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ॥59॥
बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥1॥
जाइ संभु पद बंदनु कीन्हा। सनमुख संकर आसनु दीन्हा॥2॥
देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक॥3॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥4॥
तो क्या ये ठंड हिमयुग के शुरुआत की आहट है?
नई दिल्ली। भारत में मार्च के महीने से गर्मी शुरू हो जाती है लेकिन मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस साल पूरे मार्च तापमान सामान्य से कम रहने वाला है। मार्च में भी सर्दी रहेगी। इस साल देश में बर्फबारी ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। कश्मीर, हिमाचल या फिर उत्तराखंड के मैदानी इलाके, सभी जगह बर्फ ऐसी पड़ी कि लोग हैरान रह गए।
ठंड से सिर्फ उत्तर भारत ही नहीं ठिठुर रहा दक्षिण में भी ऐसी सर्दी पड़ी जैसी पिछले 100 साल में नहीं पड़ी। कर्नाटक में पारा 5 डिग्री के नीचे चला गया। सभी जगहों पर पारा सामान्य से काफी नीचे है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या ला नीना फैक्टर दरअसल बड़े बदलाव का संकेत तो नहीं। बड़ा बदलाव यानी हिमयुग की आहट।
वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसम में हो रहे बदलाव ग्लोबल कूलिंग की तरफ इशारा कर रहे हैं। अमेरिका हो, यूरोप हो, एशिया में चीन हो या फिर भारत। हर जगह पिछले साल से बर्फबारी ने रिकॉर्ड तोड़ा है। दुबई के रेगिस्तान तक में बर्फ पड़ी, तो चीन के उत्तरी इलाकों में बर्फबारी ने पिछले साल तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस साल अमेरिका के कई इलाकों में भी यही हाल है। तभी तो पिछले ही साल से मौसम वैज्ञानिकों ने हिमयुग के आहट की बात शुरू कर दी। साल 2012 में जिस तरह से बर्फबारी हुई है वो इस बदलते मौसम की ओर इशारा जरूर कर रही हैं। जनवरी की शुरुआत में पहाड़ों को लांघकर बर्फ ने मैदानों को भी सफेद कर दिया और हर तरफ सिहरन फैला दी।
पंजाब तक में बर्फबारी हुई, पठानकोठ में 4 इंच बर्फबारी रिकॉर्ड की गई।- जम्मू के कठुआ और रामबन जैसे इलाकों में भी सालों बाद बर्फबारी हुई।
- हिमाचल के निचले इलाके चिंतपूर्णी, चामुंडा और हमीरपुर जैसी जगहों में 70 साल बाद बर्फबारी देखने को मिली।
- मसूरी में तो बर्फबारी आम है पर इसबार देहरादून जैसे निचले इलाकों तक बर्फ पहुंच गई।
हिमयुग के कारण
हिमयुग यानी वो दौर जब पृथ्वी की सतह और वायुमंडल का तापमान घट जाता है, जिससे हिम की परतों और ग्लेशियरों का विस्तार होता है। आमतौर पर ये माना जाता है कि पिछला हिम युग कोई 25 लाख 80 हजार साल पहले शुरू होकर 11 हजार साल पहले खत्म हुआ। हिमयुग के कई कारण माने जाते हैं।
- वातावरण में मौजूद गैसों के अनुपात में बदलाव।
- पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के रास्ते में बदलाव।
- टेक्टॉनिक प्लेट्स के खिसकने से पृथ्वी की सतह में बदलाव आना जिसकी वजह से समुद्री धाराओं पर असर, ला नीना वगैरह इसी की पैदाइश हैं।
भारत में मौजूदा जबरदस्त ठंड, पारे का सामान्य से ज्यादा लुढ़कना और बर्फबारी की वजह वैज्ञानिक जनवरी में आर्कटिक हवाओं के तरीके में बदलाव को बता रहे हैं। दिसंबर में यूरोप में हुई जबरदस्त बर्फबारी, पारे का असामान्य तरीके से शून्य से 15 डिग्री नीचे जाना। हाल के सालों में दपनियाभर में जरूरत से ज्यादा होती बर्फबारी सब मौसम में बड़े बदलाव की तरह ही इशारा कर रहे हैं
चार साहित्यकारों ने पढ़ दिए सैटेनिक वर्सेस के अंश!..क्या अब इन लोगों को सजा मिलेगी
जयपुर। विवादास्पद पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेस' के लेखक सलमान रश्दी जयपुर में आज से शुरू हुए साहित्य समारोह में भले ही हिस्सा न ले पाए हों, लेकिन प्रतिबंध के बावजूद उनकी किताब के कुछ अंश समारोह में पढ़े गए। रश्दी के समर्थन में एक-दो नहीं बल्कि एक के बाद एक कुल चार साहित्यकारों ने सैटेनिक वर्सेस के अंश पढ़कर सनसनी फैला दी। आयोजकों को उन्हें रोकने में खासी मशक्कत करनी पड़ी और अब ये मामला पुलिस तक भी पहुंच गया है। प्रतिबंधित पुस्तक का उलन्न्घं करने वालों को राजस्थान सरकार क्या सजा देती है यह तो वक्त ही बतायेगा ..
सलमान रश्दी ने अपनी जान को खतरे की आशंका के मद्देनजर साहित्य सम्मेलन में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया और इस बारे में आयोजकों को पत्र लिखकर सूचित किया। रश्दी का लिखित संदेश आयोजकों ने समारोह में पढ़कर सुनाया। लेकिन समारोह में तब हंगामा खड़ा हो गया जब जाने माने साहित्यकार हरी कुंजरू और अमिताव कुमार ने सबको चौंकाते हुए रश्दी की प्रतिबंधित किताब के कुछ हिस्से समारोह में पढ़ दिए।
बाद में आयोजकों ने इन्हें उपन्यास की लाइनें पढ़ने से मना कर दिया। लेकिन इन साहित्यकारों का कहना था कि ये उनका विरोध करने का तरीका है। मामला तब और बढ़ गया जब दो और साहित्यकारों रुचिर जोशी और जीत तायिल ने भी अपनी बारी आने पर सैटेनिक वर्सेस की लाइनें पढ़ दीं। गौरतलब है कि भारत में इस उपन्यास पर 1988 से ही पाबंदी लगाई हुई है। खबर मिलने पर पुलिस भी मौके पर पहुंच गई। वो समारोह के वीडियो फुटेज देखने के बाद कार्रवाई की बात कह रही है। कई मुस्लिम संगठनों ने मौके पर जाकर विरोध प्रदर्शन किया है।
हमारे देश में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत जिस पुस्तक के विक्रय..पढने या प्रचार पर पाबंदी लगा दी जाती है और फिर उस पुस्तक के अंशों को पढ़ कर उसके प्रचार करने का प्रयास किया जाता है तो ऐसे लोग देश के कानून का उलंग्घन करते है हमारे कोटा के कुछ मुस्लिम समाज से जुड़े पत्रकार इस मामले में मध्य प्रदेश की जेल में सजा भुगत चुके है और अभी भी उनके सर पर तलवार लटकी है क्या राजस्थान में कानून तोड़ने वाले इन साहित्यकारों के नाम पर अपराध की नियत से देश तोड़ने और दंगा फसाद करवाने की साज़िश रचने वाले कथित विदेशी एजेंटों को गिरफ्तार कर सजा दी जायेगी अगर ऐसा नहीं होता है तो राजस्थान सरकार पक्षपात के घेरे में आजायेगी ..................... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
रुश्दी की किताब पढ़ने से रोका गया... कुछ ने कहा रुश्दी आये तो उनका जूतों से स्वागत होगा
जयपुर. यहां चल रहे लिटरेचर फेस्टिवल में सलमान रुश्दी की विवादित किताब पर बवाल हो गया है। दो साहित्यकारों को ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के कुछ अंश पढ़ने से रोका गया है।
जयपुर दरबार हॉल में शाम सवा पांच बजे यह वाकया तब हुआ जब अमिताव कुमार और हरि कुंजरू नामक दो एनआरआई साहित्यकार रुश्दी की विवादित किताब के कुछ अंश पढ़ने शुरू किए।
इन दोनों लेखकों की यह योजना पहले से ही थी। इन्होंने ट्विट कर इसकी जानकारी दी। रुश्दी ने ट्विट कर अमिताव और कुंजरू को धन्यवाद दिया है।
बताया जा रहा है कि ये साहित्यकार रुश्दी की यात्रा के हो रहे विरोध के खिलाफ उनकी यह विवादित किताब पढ़ना चाहते थे। जब इन साहित्यकारों से किताब के कुछ अंश पढ़ने शुरू किए तो कार्यक्रम के आयोजक संजय रॉय ने उन्हें पढ़ने से मना कर दिया। उनका तर्क था कि चूंकि सलमान रुश्दी का जिस तरह भारत में विरोध हो रहा है, उसे देखते हुए विवादित किताब के अंश पढ़ना ठीक नहीं है।
भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक रुश्दी की यह किताब 1987 में छपी थी लेकिन भारत में इस किताब पर 1988 से ही पाबंदी है। जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल शुरू हो गया है। इसमें सलमान रुश्दी आएंगे या नहीं, इसे लेकर आयोजकों ने आखिरकार सस्पेंस खत्म कर दिया है। शुक्रवार दोपहर उनकी ओर से बयान जारी कर कह दिया गया कि रुश्दी नहीं आ रहे हैं। मुस्लिम उनके आने पर विरोध करने पर आमादा थे। एक मुस्लिम संगठन का कहना था कि अगर वह भारत आए तो उनका स्वागत जूतों से किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने रुश्दी प्रकरण में कुछ भी कदम उठाने से इनकार कर दिया है और राज्य सरकार को मौके की नजाकत समझते हुए निर्णय करने को कहा। राज्य और केंद्र सरकार की गुप्तचर एजेंसियों के अधिकारी इस मामले को लेकर सक्रिय रहीं। गुरुवार को राजस्थान के मुख्य सचिव एस. अहमद ने इस मामले में प्रमुख गृह सचिव जीएस संधु और एडीजी कानून और व्यवस्था तथा जयपुर कमिश्नर बीएल सोनी के साथ एहतियाती कदम उठाने के लिए बैठक की।
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशवरात के प्रमुख डॉ. जफारुल इस्लाम खान ने एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में कहा है कि रुदी भारत आए तो उनका स्वागत जूतों से किया जाएगा। उनसे पूछा गया कि तस्लीमा नसरीन पर हैदराबाद में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन के सदस्यों ने हमला बोला था, तो क्या आपकी राय में रुश्दी के साथ भी भारत में वैसा ही सुलूक होगा खान ने जवाब दिया, 'लोगों को अगर रुश्दी मिल जाएं तो वे जूते मार कर उनका विरोध करेंगे। अल्लाह की निंदा करने वालों को ऐसे स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए।' हालांकि रुश्दी को लेकर मुस्लिम संगठनों ने अब जयपुर में विरोध प्रदर्शन नहीं करने का फैसला किया है। रुश्दी के नहीं आने के आश्वासन के बाद ऐसा किया गया। इससे पहले राजस्थान के विभिन्न मुस्लिम फोरम की गुरुवार को दो बार संयुक्त बैठक हुई। इनमें तय किया गया था कि जुमे की नमाज के दौरान रुश्दी के विरोध की रणनीति तय कर विरोध की घोषणा करेंगे।
इसके बाद जयपुर सांसद महेश जोशी संगठन पदाधिकारियों से मिले और समझाइश की। फेस्टिवल आयोजकों ने भी मुस्लिम नेताओं से बात की। मुस्लिम फोरम से जुड़े हबीब गारनेट ने बताया कि पुलिस कमिश्नर बीएल सोनी द्वारा रुश्दी के नहीं आने के बारे में आश्वस्त किए जाने के बाद फैसला किया गया है कि अब किसी प्रकार का विरोध नहीं किया जाएगा।
खानदानी और गेर खानदानी लोगों में शोक जताने का तरीका जो कई लोगों की पोल खोल गया
ऐसी सोच बनाती है साहसी, जुझारू और सफल
हर इंसान के जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब वह हालात से जूझता हुआ दिखाई देता है। कुछ लोग अपनी हिम्मत और जज्बे से समय को बदलकर अपना बना लेते हैं, तो कुछ टूटकर बिखर भी जाते हैं। किंतु जीवन के प्रति सही और सकारात्मक सोच रखी जाए तो हर मुश्किलों से पार पाना संभव है। शास्त्रों में ऐसे ही अनमोल सूत्रों को बताया गया है, जिनसे किसी भी अशांत स्थिति में इंसान अपना संतुलन बनाए रख सकता है।
ऋग्वेद का एक बेहतरीन सूत्र है -
विश्वाउत त्वया वयं धारा उदन्या इव। अति गाहे महि द्विष:।।
जिसका सरल शब्दों में यही संदेश है कि जीवन में अनेक परेशानियां, मुसीबतें और जिम्मेदारियां या शत्रु रुकावटे पैदा करते हैं। किंतु ईश्वर व खुद पर भरोसे के दम पर इन पर काबू पाया जा सकता है। ठीक उसी तरह जैसे तमाम झोंको के बीच नाव से नदी पार की जाती है।
यहां दो बातें साफ हो जाती हैं कि संकट और मुसीबतों से बाहर आने के लिए खुद पर विश्वास और भगवान के प्रति आस्था व श्रद्धा सबसे बड़ी ताकत है। यह शक्ति तभी संभव है जब इंसान शांत चित्त रहने का अभ्यास करें। क्योंकि अशांत मन से पैदा हुए तरह-तरह के दोषों, चिंता और घबराहट से इंसान डगमगा जाता है। इसके उल्टे शांत दिमाग से सोच, ऊर्जा और एकाग्रता के संतुलन द्वारा बुरे वक्त को भी आसानी से बदला जा सकता है।
परदे के पीछे का खेल, कैसे बनी थीं इंदिरा पहली बार पीएम?
अहमदाबाद। स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी, स्वतंत्र भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री। कुशल नेतृत्व, त्वरित फैसले लेने की क्षमता और प्रभावपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। राजनीतिक दुनिया में अब भी वे पहले की तरह ही चर्चित हैं, चाहे राजनीतिक मामलों से हटकर यह बात आपातकाल की ही क्यों न हो?
इंदिरा गांधी पहली बार किस तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंची और इसके पीछे का राजनीतिक खेल क्या था, आईए डालते हैं इस पर एक नजर ..
इंदिरा गांधी गुजरात के लाल और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को हराकर प्रधानमंत्री बनीं थीं। प्रधानमंत्री बनने के लिए इंदिरा को उस समय देश के 16 में से 11 राज्यों का समर्थन प्राप्त था। इन राज्यों के नेताओं ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने का पूर्ण विश्वास भी दिलाया था।
दिलचस्प बात यहां यह थी कि इंदिरा की लड़ाई अपने की पक्ष के नेताओं गुलजारीलाल नंदा और मोरारजी देसाई से थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद कार्यकारी प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा ने प्रधानमंत्री पद की रेस से अपना नाम वापस ले लिया और इस तरह इंदिरा का रास्ता आसान कर दिया।
अब इंदिरा की सीधी लड़ाई गुजराती नेता मोराजी देसाई से बची थी। हालांकि मोरारजी देसाई पर भी अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का बहुत दबाव डाला गया लेकिन मोरारजी टस से मस न हुए। उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली।
इस समय लगभग पूरा देश यही मानता था कि प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा के सामने खड़े मोरारजी देसाई को कांग्रेस के 525 सांसदों में से 100 से भी कम सांसदों का समर्थन मिलेगा। लेकिन जब चुनाव हुआ तो आंकड़े काफी चौंकाने वाले सामने आए। मोरारजी देसाई को इस समय 169 सांसदों के समर्थन मिला। लेकिन यह आंकड़ा उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए बहुत कम था। इस तरह इंदिरा गांधी 19 जनवरी 1966 को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। मोराजी देसाई ने इंदिरा को शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
यह दूसरा मौका था जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर हुए थे। इसके पहले जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनके प्रतिस्पर्धी लाल बहादुर शास्त्री थे, लेकिन इस समय खुद मोरारजी देसाई ने उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लिया था।
इस मंदिर की समृद्धि के बारे में सुन हैरान रह जाएंगे आप!
इस मंदिर में बेशकीमती और दुर्लभ आभूषण मौजूद हैं। मंदिर में आयोजित होने वाले चिथ्थीराई महोत्सव के आठवें दिन देवी को हीरे एवं सोने के आभूषण चढाए जाते हैं। देवी को इस दौरान पहनाए जाने वाले हीरे के मुकुट को रायार कहा जाता है।
करीब 500 वर्ष पूर्व राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल के दौरान देवी को रायार भेंट किया गया था जिसे 197 किलो सोने, 332 मोतियों, 920 रबी पत्थर, 78 हीरे, 11 पन्ना, सात नीलम और आठ पुखराज पत्थरों के उपयोग से तैयार किया गया था।
इसके अलावा मीनाक्षी मंदिर में मुगलों के जमाने में तैयार किया गया कीमती मुकुट भी मौजूद है जिसे 164 किलो सोने, 332 मोतियों, 474 लाल पत्थर, 27 पन्ना और दुर्लभतम 158 पलच्छा हीरों के उपयोग से बनाया गया था। वर्ष 1963 में भी एक दानवीर ने मंदिर में 3345 हीरों, 4100 लाल पत्थरों और रबी पत्थर से सुसज्जित 3500 ग्राम वजन का मुकुट भेंट किया था।
ऐसी अद्भुत महिमा है शुक्र प्रदोष व्रत की
धर्म ग्रंथों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से भगवान शंकर अति प्रसन्न करते हैं तथा भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं। 20 जनवरी, शुक्रवार को शुक्र प्रदोष व्रत है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
एक नगर में तीन मित्र रहते थे- एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण और तीसरा वैश्य। राजकुमार व ब्राह्मण का विवाह हो चुका था। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, किन्तु गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। अपने मित्रों की बात सुनकर धनिक पुत्र ने भी अपनी पत्नी को लाने का निश्चय किया। माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्रदेवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू को लाना शुभ नहीं। किन्तु धनिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा। दामाद का हठ देखकर ससुराल वालों ने भी कन्या की विदाई कर दी।
पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया। दोनों को काफी चोटें आईं फिर भी वे आगे बढ़ते रहे। कुछ दूर आगे जाने पर उन्हें डाकुओं ने लूट लिया। दोनों जैसे-तैसे घर पहुंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलवाया। वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि यह तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार मिला तो वह आया।
उसने धनिक पुत्र के माता-पिता को शुक्रप्रदोष व्रत करने को कहा। और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है। यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा। धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी। उसने वैसा ही किया। ससुराल पहुंचते ही धनिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई और शुक्र प्रदोष के प्रभाव से सभी कष्ट टल गए।
सेना प्रमुख उम्र विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की अर्जी
नई दिल्ली. रोहतक की ग्रेनेडियर एसोसिएशन की ओर से दाखिल जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी गई है। एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उम्र विवाद में सेना प्रमुख का समर्थन किया था और सरकार को जन्म तिथि बदलने के निर्देश देने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि इस मामले में किसी तीसरे पक्ष की अर्जी पर सुनवाई की जरूरत नहीं है।
जनरल सिंह ने भी अपनी जन्मतिथि 10 मई 1951 के स्थान पर 10 मई 1950 करने के रक्षा मंत्रालय के फैसले को चुनौती दे रखी है। कोर्ट ने एसोसिएशन की पीआईएल खारिज करते हुए कहा कि इस पर कोई निर्देश देने से जनरल सिंह की याचिका पर भी असर पड़ेगा।
सेना प्रमुख वीके सिंह से चल रहे उम्र विवाद में फजीहत से बचने के लिए सरकार ने उन्हें मनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। मामला वापस लेने के लिए मनाने की पूरी कोशिश की जा रही है। इस सिलसिले में गुरुवार को रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा ने जनरल वीके सिंह से मुलाकात की। रक्षा सचिव ने उनके सामने सरकार का सुलह का नया प्रस्ताव रखा।
सरकार की ओर से यह कदम बुधवार को विधि मंत्री सलमान खुर्शीद और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन की सिंह से मुलाकात के बाद आया है। शर्मा ने जनरल सिंह से मुलाकात कर जो प्रस्ताव रखा, उसके मुताबिक सरकार सेना प्रमुख की जन्मतिथि पर उनकी बात मान लेगी। यानी 10 मई 1951 की तारीख को उनकी जन्मतिथि स्वीकार कर लेगी। लेकिन बदले में सेना प्रमुख को इसी साल 31 मई को सेवा छोडऩे की बात माननी होगी।
हालांकि सेना मुख्यालय के सूत्रों के मुताबिक, जनरल सिंह के सरकार के इस प्रस्ताव को मानने की संभावना बेहद कम है। शर्मा के बाद, रक्षा राज्य मंत्री पल्लमराजू ने भी सेना प्रमुख से मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने विधि मंत्री सलमान खुर्शीद से 21 जनवरी तक दिल्ली में ही रहने को कहा है। खुर्शीद उत्तर प्रदेश चुनाव में प्रचार करना चाहते थे, लेकिन अब वह इस मुद्दे पर सरकार की कानूनी स्थिति और रुख पर नजर रख रहे हैं।
गौरतलब है कि आर्मी चीफ वीके सिंह की याचिका के मुताबिक अगर अदालत उनके पक्ष में फैसला सुनाती है तो सभी सेवा नियम 1951 की जन्मतिथि के हिसाब से लागू होंगे। इस तरह सिंह एक साल और सैन्य प्रमुख बने रहेंगे।
इस बीच, सिंह के करीबी सूत्रों ने रक्षा मंत्रालय के इस दावे से भी इंकार किया है कि उनके अदालत जाने के कदम की जानकारी उसे नहीं थी। सूत्रों के मुताबिक, रक्षा मंत्री को इस बारे में पता था। हालांकि, मंत्रालय ने इस बात से इनकार किया है।
प्रधानमंत्री का विवाद पर टिप्पणी से इनकार
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आयु विवाद को लेकर थलसेना प्रमुख जनरल वीके सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। मामले को संवेदनशील करार देते हुए डा. सिंह ने गुरुवार शाम कहा कि वे इस पर कुछ भी नहीं कहना चाहते। यहां विज्ञान भवन में एक समारोह में शिरकत करने आए प्रधानमंत्री से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने मामले पर चुप्पी साधकर विवाद को किसी भी तरह की हवा देने से गुरेज किया।
इससे पहले थलसेना प्रमुख जनरल विजय कुमार सिंह ने गुरुवार को रक्षा राज्य मंत्री डा. एमएम पल्लमराजू से मुलाकात की। हालांकि मुलाकात के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है लेकिन भेंट को पल्लमराजू द्वारा बुधवार को इस मामले पर दिए गए बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। रक्षा राज्य मंत्री ने वीके सिंह के सुप्रीम कोर्ट जाने को सेना व रक्षा मंत्रालय दोनों के लिए खतरनाक संकेत करार देते हुए इसे अशुभ संकेत बताया था। उन्होंने मामले को रक्षा मंत्रालय व सेना के लिए खराब उदाहरण भी बताया था।
सूत्रों के मुताबिक, मुलाकात के दौरान वीके सिंह ने राजू को उन हालात से अवगत कराया कि जिनके कारण उन्हें कोर्ट जाने को बाध्य होना पड़ा। मामले को लेकर गुरुवार को संभावित केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति (सीसीएस) की बैठक भी नहीं हो पाई।
इस बीच सरकार बनाम सेना प्रमुख विवाद में दोनों पक्ष अंदरखाने अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। संकेत मिले हैं कि केंद्र सरकार व रक्षा मंत्रालय ने अब इस मामले में किसी भी तरह की कोई पहल करने की बजाय कोर्ट में ही जवाब देने की रणनीति बनाई है।