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22 जनवरी 2012

यहां की भूलभुलैया में घुसते ही रास्ता ढूंढ़ने लगते हैं लोग!

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लखनऊ।भारत के उत्तर प्रदेश राज्‍य की राजधानी, लखनऊ एक आधुनिक शहर है, जिसके साथ भव्‍य ऐतिहासिक स्‍मारक होने का गर्व जुड़ा हुआ है। गंगा नदी की सहायक नदी, गोमती के किनारे बसा लखनऊ शहर अपने उद्यानों, बागीचों और अनोखी वास्‍तुकलात्‍मक इमारतों के लिए जाना जाता है।

नवाबों के शहर के नाम से मशहूर लखनऊ शहर में सांस्‍कृतिक और पाक कला के विभिन्‍न व्‍यंजनों से अपने आकर्षण को बनाए रखा है। इस शहर के लोग अपने विशिष्‍ट आकर्षण, तहजीब और उर्दू भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। लखनऊ शहर एक विशिष्‍ट प्रकार की कढ़ाई, चिकन, से सजे हुए परिधानों और कपड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है।

यह शहर बाड़ा इमामबाड़ा नामक एक ऐतिहासिक द्वार का घर है जहां एक ऐसी अद्भुत वास्‍तुकला दिखाई देती है जो आधुनिक वास्‍तुकार भी देख कर दंग रह जाएं। इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला ने 1784 में कराया था और इसके संकल्‍पना कार थे किफायत-उल्‍ला, जो ताजमहल के वास्‍तुकार के संबंधी कह जाते हैं।

नवाब द्वारा अकाल राहत कार्यक्रम में निर्मित यह किला विशाल और भव्‍य संरचना है जिसे असाफाई इमामबाड़ा भी कहते हैं। इस संरचना में गोथिक प्रभाव के साथ राजपूत और मुगल वास्‍तुकलाओं का मिश्रण दिखाई देता है। बाड़ा इमामबाड़ा एक रोचक भवन है। यह न तो मस्जिद है और न ही मकबरा, किन्‍तु इस विशाल भवन में कई मनोरंजक तत्‍व अंदर निर्मित हैं। कक्षों का निर्माण और वॉल्‍ट के उपयोग में सशक्‍त इस्‍लामी प्रभाव दिखाई देता है।

बाड़ा इमामबाड़ा वास्‍तव में एक विहंगम आंगन के बाद बुना हुआ एक विशाल हॉल है, जहां दो विशाल तिहरे आर्च वाले रास्‍तों से पहुंचा जा सकता है। इमामबाड़े का केन्‍द्रीय कक्ष लगभग 50 मीटर लंबा और 16 मीटर चौड़ा है। स्‍तंभहीन इस कक्ष की छत 15 मीटर से अधिक ऊंची है। यह हॉल लकड़ी, लोहे या पत्‍थर के बीम के बाहरी सहारे के बिना खड़ी विश्‍व की अपने आप में सबसे बड़ी रचना है। इसकी छत को किसी बीम या गर्डर के उपयोग के बिना ईंटों को आपस में जोड़ कर खड़ा किया गया है। अत: इसे वास्‍तुकला की एक अद्भुत उपलब्धि के रूप में देखा जाता है।

इस भवन में तीन विशाल कक्ष हैं, इसकी दीवारों के बीच छुपे हुए लम्‍बे गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट मोटी हैं। यह घनी, गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती है और इसमें केवल तभी जाना चाहिए जब आपका दिल मजबूत हो। इसमें 1000 से अधिक छोटे छोटे रास्‍तों का जाल है जिनमें से कुछ के सिरे बंद हैं और कुछ प्रपाती बूंदों में समाप्‍त होते हैं, जबकि कुछ अन्‍य प्रवेश या बाहर निकलने के बिन्‍दुओं पर समाप्‍त होते हैं। एक अनुमोदित मार्गदर्शक की सहायता लेने की सिफारिश की जाती है, यदि आप इस भूलभुलैया में खोए बिना वापस आना चाहते हैं।

इमामबाड़े की एक और विहित संरचना 5 मंजिला बावड़ी (सीढ़ीदार कुंआ) है, जो पूर्व नवाबी युग की है। शाही हमाम नामक यह बाबड़ी गोमती नदी से जुड़ी है। इसमें पानी से ऊपर केवल दो मंजिलें हैं, शेष तल पानी के अंदर पूरे साल डूबे रहते हैं।


यहां की भूलभुलैया में घुसते ही रास्ता ढूंढ़ने लगते हैं लोग!

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लखनऊ।भारत के उत्तर प्रदेश राज्‍य की राजधानी, लखनऊ एक आधुनिक शहर है, जिसके साथ भव्‍य ऐतिहासिक स्‍मारक होने का गर्व जुड़ा हुआ है। गंगा नदी की सहायक नदी, गोमती के किनारे बसा लखनऊ शहर अपने उद्यानों, बागीचों और अनोखी वास्‍तुकलात्‍मक इमारतों के लिए जाना जाता है।

नवाबों के शहर के नाम से मशहूर लखनऊ शहर में सांस्‍कृतिक और पाक कला के विभिन्‍न व्‍यंजनों से अपने आकर्षण को बनाए रखा है। इस शहर के लोग अपने विशिष्‍ट आकर्षण, तहजीब और उर्दू भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। लखनऊ शहर एक विशिष्‍ट प्रकार की कढ़ाई, चिकन, से सजे हुए परिधानों और कपड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है।

यह शहर बाड़ा इमामबाड़ा नामक एक ऐतिहासिक द्वार का घर है जहां एक ऐसी अद्भुत वास्‍तुकला दिखाई देती है जो आधुनिक वास्‍तुकार भी देख कर दंग रह जाएं। इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला ने 1784 में कराया था और इसके संकल्‍पना कार थे किफायत-उल्‍ला, जो ताजमहल के वास्‍तुकार के संबंधी कह जाते हैं।

नवाब द्वारा अकाल राहत कार्यक्रम में निर्मित यह किला विशाल और भव्‍य संरचना है जिसे असाफाई इमामबाड़ा भी कहते हैं। इस संरचना में गोथिक प्रभाव के साथ राजपूत और मुगल वास्‍तुकलाओं का मिश्रण दिखाई देता है। बाड़ा इमामबाड़ा एक रोचक भवन है। यह न तो मस्जिद है और न ही मकबरा, किन्‍तु इस विशाल भवन में कई मनोरंजक तत्‍व अंदर निर्मित हैं। कक्षों का निर्माण और वॉल्‍ट के उपयोग में सशक्‍त इस्‍लामी प्रभाव दिखाई देता है।

बाड़ा इमामबाड़ा वास्‍तव में एक विहंगम आंगन के बाद बुना हुआ एक विशाल हॉल है, जहां दो विशाल तिहरे आर्च वाले रास्‍तों से पहुंचा जा सकता है। इमामबाड़े का केन्‍द्रीय कक्ष लगभग 50 मीटर लंबा और 16 मीटर चौड़ा है। स्‍तंभहीन इस कक्ष की छत 15 मीटर से अधिक ऊंची है। यह हॉल लकड़ी, लोहे या पत्‍थर के बीम के बाहरी सहारे के बिना खड़ी विश्‍व की अपने आप में सबसे बड़ी रचना है। इसकी छत को किसी बीम या गर्डर के उपयोग के बिना ईंटों को आपस में जोड़ कर खड़ा किया गया है। अत: इसे वास्‍तुकला की एक अद्भुत उपलब्धि के रूप में देखा जाता है।

इस भवन में तीन विशाल कक्ष हैं, इसकी दीवारों के बीच छुपे हुए लम्‍बे गलियारे हैं, जो लगभग 20 फीट मोटी हैं। यह घनी, गहरी रचना भूलभुलैया कहलाती है और इसमें केवल तभी जाना चाहिए जब आपका दिल मजबूत हो। इसमें 1000 से अधिक छोटे छोटे रास्‍तों का जाल है जिनमें से कुछ के सिरे बंद हैं और कुछ प्रपाती बूंदों में समाप्‍त होते हैं, जबकि कुछ अन्‍य प्रवेश या बाहर निकलने के बिन्‍दुओं पर समाप्‍त होते हैं। एक अनुमोदित मार्गदर्शक की सहायता लेने की सिफारिश की जाती है, यदि आप इस भूलभुलैया में खोए बिना वापस आना चाहते हैं।

इमामबाड़े की एक और विहित संरचना 5 मंजिला बावड़ी (सीढ़ीदार कुंआ) है, जो पूर्व नवाबी युग की है। शाही हमाम नामक यह बाबड़ी गोमती नदी से जुड़ी है। इसमें पानी से ऊपर केवल दो मंजिलें हैं, शेष तल पानी के अंदर पूरे साल डूबे रहते हैं।

कहानी एक साइकिल वाले की, जिस पर बनीं एक नहीं तीन-तीन फिल्में




गुजरात के सबसे बड़े स्मगलर 'सुकुर नारायण बखिया' के संपर्क में आने के बाद 'मस्तान मिर्जा' ने स्मग्लिंग की दुनिया में काफी नाम कमाया और अब मुंबई की काली दुनिया में उसका नाम 'ब्लैंक चेक' बन चुका था. इस नाम की रसीद पर जितने रुपये जिससे चाहे लिए जा सकते थे.


केन्द्रीय मंत्री ने किया अनशन, तब गिरफ्तार हुआ हाजी


जब दिल्ली में सरकार का तख्ता हिला तो इसका असर स्मग्लिंग के काले कारोबार पर भी पड़ा. आपातकाल की कड़ाई ने मस्तान मिर्जा को भी सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि जब एक केन्द्रीय मंत्री ने अनशन किया तब जाकर मस्तान मिर्जा को गिरफ्तार किया जा सका. इस बात से मस्तान मिर्जा के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है.


इस वक़्त तक मस्तान भले ही स्मग्लिंग की दुनिया का बड़ा नाम बन चुका था, लेकिन आम लोगों या मुंबई के गुंडों के लिए अभी भी ये नाम अनजान बना हुआ था. इसका बड़ा कारण था कि मस्तान तमिलनाडु का रहने वाला था और उसे 'हिंदी' बोलना नहीं आता था.


जेल में सीखी आम आदमी की जुबान और बन गया 'हाजी मस्तान'


जेल में बिताए गए उसके 18 महीनों ने उसके जबान में रह गई इस कमी को भी पूरा कर दिया. यहां उसने हिंदी बोलना भी सीख लिया. जेल से निकलने के बाद मस्तान का अंदाज और उसका मकसद बदल चुका था.


इसका कारण जेल की सलाखें थीं या कुछ और, कहना मुश्किल है. यहां से निकलने के बाद वह मक्का की यात्रा पर गया और वहां से लौटने के बाद उसने खुद को 'मस्तान मिर्जा' की जगह 'हाजी मस्तान' कहलाना शुरू कर दिया.


कहते हैं जेल से आने के बाद मस्तान ने अपने सारे काले धंधों से नाता तोड़ लिया और फिल्मी दुनिया में कदम रखा. 'मेरे गरीब नवाज' उसकी पहली फिल्म थी, जिसमे उसने पैसा लगाया. कहते हैं यह फिल्म हाजी मस्तान की जिंदगी का ही फिल्मी रूपांतरण थी.


डॉन ने बदल दिया अपना रास्ता क्योंकि...


अपने रुतबे और पैसे के बल पर जल्द ही वह फिल्मी दुनिया के बड़े-बड़े लोगों के साथ उठने-बैठने लगा. एक ओर जहां वह दिलीप कुमार और शशि कपूर के साथ फिल्मों पर चर्चा करता वहीं दूसरी ओर अंडरवर्ल्ड की दुनिया के दो बड़े दादा (करीम लाला और वरदराजन मुदलियार) उसे अपने साथ मीटिंग करने के लिए बुलाते थे.


जल्द ही 'हाजी मस्तान' का नाम देश के बड़े और सफल फिल्म डिस्ट्रीब्युटर्स में गिना जाने लगा. उस जमाने के सफल फिल्मी सितारों धर्मेन्द्र, फिरोज खान, राज कपूर और संजीव कुमार के साथ उसके काफी नजदीकी सम्बन्ध बन चुके थे. कहा ये भी जाता है कि जब सलीम खान फिल्म 'दीवार' बना रहे थे तो उनका और अमिताभ बच्चन का हाजी के घर अक्सर जाना-आना होता था.


दरअसल, फिल्म दीवार एक माफिया पर केन्द्रित फिल्म थी जिसमे 786 नंबर का बिल्ला पहना हुआ व्यक्ति (अमिताभ बच्चन) तब तक जिन्दा रहता है जब तक बिल्ला उसके साथ होता है. इसके अलावा 'मुकद्दर का सिकंदर' और 'once upon a time in mumbai ' के बारे में भी ये माना जाता है कि ये फिल्में भी हाजी मस्तान की जिंदगी से ही प्रभावित थीं.


डॉन और स्मगलर के साथ-साथ हाजी मस्तान एक रोमांटिक इंसान भी था. हाजी के फिल्मी दुनिया में कदम रखने की बड़ी वजह कुछ ख़ास फिल्मी नायिकाओं के प्रति उसका लगाव भी माना जाता है

24 से गुप्त नवरात्रि, मिलेंगी गुप्त सिद्धियां


हिंदू पंचांग के अनुसार माघ शुक्ल प्रतिपदा (24 जनवरी, मंगलवार) से गुप्त नवरात्रि प्रांरभ हो रही है। इस दौरान माता की आराधना करने से हर बिगड़े काम बन जाते हैं तथा विशेष सिद्धियां भी प्राप्त होती है।

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में चार नवरात्रि का महोत्सव मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

इनमें अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान पूरे देश में गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त व चमत्कारीक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है।

अब तक नाले में बहाने वाला दूध पी रहे थे हम

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जयपुर.हाई कोर्ट के आदेश के बाद जागे रसद विभाग और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की टीमें तीसरे दिन रविवार को भी शहर में दूध के सैंपल लेने के लिए दौड़ती रहीं।

रविवार के अवकाश के बावजूद दो टीमें सुबह से ही शहर के अलग-अलग इलाकों में पहुंचीं, लेकिन कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी। उधर शनिवार को हरमाड़ा थाने में रखे 800 लीटर दूध को कोई लेने नहीं आया तो उसे नाले में बहा दिया गया। खुला दूध बेचने वाले दूधिए भी कार्रवाई के डर से गलियों में रास्ते तलाशते रहे।

रविवार को दिनभर में दोनों टीमों ने 3 व चल प्रयोगशाला ने 44 सैंपल लिए। इनमें में दो कुंडा और एक ईदगाह इलाके से लिया गया। जिला रसद अधिकारी यूडी खान ने बताया कि हरमाड़ा थाने में रखे दूध को एक दिन बाद भी कोई लेने नहीं आया। यह 28 ड्रमों में करीब 800 लीटर दूध था।

दूध मालिक के नहीं आने से इसका नॉन पीएफए में सैंपल लेकर इसे नाले में बहा दिया गया। चल प्रयोगशाला में लिए गए सैंपलों में 22 में पानी की मिलावट पाई गई। इन सैंपलों में 15 से 35 प्रतिशत पानी की मिलावट सामने आई।

पार्वती का जन्म और तपस्या

बालकाण्ड
*सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा॥
तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई॥3॥
भावार्थ:-सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया॥3॥
*जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि संपति तहँ छाईं॥
जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे॥4॥
भावार्थ:-जब से उमाजी हिमाचल के घर जन्मीं, तबसे वहाँ सारी सिद्धियाँ और सम्पत्तियाँ छा गईं। मुनियों ने जहाँ-तहाँ सुंदर आश्रम बना लिए और हिमाचल ने उनको उचित स्थान दिए॥4॥
दोहा :
* सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति।
प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति॥65॥
भावार्थ:-उस सुंदर पर्वत पर बहुत प्रकार के सब नए-नए वृक्ष सदा पुष्प-फलयुक्त हो गए और वहाँ बहुत तरह की मणियों की खानें प्रकट हो गईं॥65॥
चौपाई :
* सरिता सब पुनीत जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं॥
सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा॥1॥
भावार्थ:-सारी नदियों में पवित्र जल बहता है और पक्षी, पशु, भ्रमर सभी सुखी रहते हैं। सब जीवों ने अपना स्वाभाविक बैर छोड़ दिया और पर्वत पर सभी परस्पर प्रेम करते हैं॥1॥
* सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ॥
नित नूतन मंगल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू॥2॥
भावार्थ:-पार्वतीजी के घर आ जाने से पर्वत ऐसा शोभायमान हो रहा है जैसा रामभक्ति को पाकर भक्त शोभायमान होता है। उस (पर्वतराज) के घर नित्य नए-नए मंगलोत्सव होते हैं, जिसका ब्रह्मादि यश गाते हैं॥2॥
* नारद समाचार सब पाए। कोतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥
सैलराज बड़ आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥3॥
भावार्थ:-जब नारदजी ने ये सब समाचार सुने तो वे कौतुक ही से हिमाचल के घर पधारे। पर्वतराज ने उनका बड़ा आदर किया और चरण धोकर उनको उत्तम आसन दिया॥3॥
* नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिंचावा॥
निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना॥4॥
भावार्थ:-फिर अपनी स्त्री सहित मुनि के चरणों में सिर नवाया और उनके चरणोदक को सारे घर में छिड़काया। हिमाचल ने अपने सौभाग्य का बहुत बखान किया और पुत्री को बुलाकर मुनि के चरणों पर डाल दिया॥4॥
दोहा :
* त्रिकालग्य सर्बग्य तुम्ह गति सर्बत्र तुम्हारि।
कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदयँ बिचारि॥66॥
भावार्थ:-(और कहा-) हे मुनिवर! आप त्रिकालज्ञ और सर्वज्ञ हैं, आपकी सर्वत्र पहुँच है। अतः आप हृदय में विचार कर कन्या के दोष-गुण कहिए॥66॥
चौपाई :
* कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी। सुता तुम्हारि सकल गुन खानी॥
सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी॥1॥
भावार्थ:-नारद मुनि ने हँसकर रहस्ययुक्त कोमल वाणी से कहा- तुम्हारी कन्या सब गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुंदर, सुशील और समझदार है। उमा, अम्बिका और भवानी इसके नाम हैं॥1॥
* सब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी॥
सदा अचल एहि कर अहिवाता। एहि तें जसु पैहहिं पितु माता॥2॥
भावार्थ:-कन्या सब सुलक्षणों से सम्पन्न है, यह अपने पति को सदा प्यारी होगी। इसका सुहाग सदा अचल रहेगा और इससे इसके माता-पिता यश पावेंगे॥2॥
* होइहि पूज्य सकल जग माहीं। एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं॥
एहि कर नामु सुमिरि संसारा। त्रिय चढ़िहहिं पतिब्रत असिधारा॥3॥
भावार्थ:-यह सारे जगत में पूज्य होगी और इसकी सेवा करने से कुछ भी दुर्लभ न होगा। संसार में स्त्रियाँ इसका नाम स्मरण करके पतिव्रता रूपी तलवार की धार पर चढ़ जाएँगी॥3॥
* सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी। सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी॥
अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संसय छीना॥4॥
भावार्थ:-हे पर्वतराज! तुम्हारी कन्या सुलच्छनी है। अब इसमें जो दो-चार अवगुण हैं, उन्हें भी सुन लो। गुणहीन, मानहीन, माता-पिताविहीन, उदासीन, संशयहीन (लापरवाह)॥4॥
दोहा :
* जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष।
अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख॥67॥
भावार्थ:-योगी, जटाधारी, निष्काम हृदय, नंगा और अमंगल वेष वाला, ऐसा पति इसको मिलेगा। इसके हाथ में ऐसी ही रेखा पड़ी है॥67॥
चौपाई :
* सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी॥
नारदहूँ यह भेदु न जाना। दसा एक समुझब बिलगाना॥1॥
भावार्थ:-नारद मुनि की वाणी सुनकर और उसको हृदय में सत्य जानकर पति-पत्नी (हिमवान्‌ और मैना) को दुःख हुआ और पार्वतीजी प्रसन्न हुईं। नारदजी ने भी इस रहस्य को नहीं जाना, क्योंकि सबकी बाहरी दशा एक सी होने पर भी भीतरी समझ भिन्न-भिन्न थी॥1॥
* सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना। पुलक सरीर भरे जल नैना॥
होइ न मृषा देवरिषि भाषा। उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा॥2॥
भावार्थ:-सारी सखियाँ, पार्वती, पर्वतराज हिमवान्‌ और मैना सभी के शरीर पुलकित थे और सभी के नेत्रों में जल भरा था। देवर्षि के वचन असत्य नहीं हो सकते, (यह विचारकर) पार्वती ने उन वचनों को हृदय में धारण कर लिया॥2॥
* उपजेउ सिव पद कमल सनेहू। मिलन कठिन मन भा संदेहू॥
जानि कुअवसरु प्रीति दुराई। सखी उछँग बैठी पुनि जाई॥3॥
भावार्थ:-उन्हें शिवजी के चरण कमलों में स्नेह उत्पन्न हो आया, परन्तु मन में यह संदेह हुआ कि उनका मिलना कठिन है। अवसर ठीक न जानकर उमा ने अपने प्रेम को छिपा लिया और फिर वे सखी की गोद में जाकर बैठ गईं॥3॥
* झूठि न होइ देवरिषि बानी। सोचहिं दंपति सखीं सयानी॥
उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ। कहहु नाथ का करिअ उपाऊ॥4॥
भावार्थ:-देवर्षि की वाणी झूठी न होगी, यह विचार कर हिमवान्‌, मैना और सारी चतुर सखियाँ चिन्ता करने लगीं। फिर हृदय में धीरज धरकर पर्वतराज ने कहा- हे नाथ! कहिए, अब क्या उपाय किया जाए?॥4॥
दोहा :
* कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार॥68॥
भावार्थ:-मुनीश्वर ने कहा- हे हिमवान्‌! सुनो, विधाता ने ललाट पर जो कुछ लिख दिया है, उसको देवता, दानव, मनुष्य, नाग और मुनि कोई भी नहीं मिटा सकते॥68॥
चौपाई :
* तदपि एक मैं कहउँ उपाई। होइ करै जौं दैउ सहाई॥
जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं। मिलिहि उमहि तस संसय नाहीं॥1॥
भावार्थ:-तो भी एक उपाय मैं बताता हूँ। यदि दैव सहायता करें तो वह सिद्ध हो सकता है। उमा को वर तो निःसंदेह वैसा ही मिलेगा, जैसा मैंने तुम्हारे सामने वर्णन किया है॥1॥
* जे जे बर के दोष बखाने। ते सब सिव पहिं मैं अनुमाने॥
जौं बिबाहु संकर सन होई। दोषउ गुन सम कह सबु कोई॥2॥
भावार्थ:-परन्तु मैंने वर के जो-जो दोष बतलाए हैं, मेरे अनुमान से वे सभी शिवजी में हैं। यदि शिवजी के साथ विवाह हो जाए तो दोषों को भी सब लोग गुणों के समान ही कहेंगे॥2॥
* जौं अहि सेज सयन हरि करहीं। बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं॥
भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं। तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं॥3॥
भावार्थ:-जैसे विष्णु भगवान शेषनाग की शय्या पर सोते हैं, तो भी पण्डित लोग उनको कोई दोष नहीं लगाते। सूर्य और अग्निदेव अच्छे-बुरे सभी रसों का भक्षण करते हैं, परन्तु उनको कोई बुरा नहीं कहता॥3॥
*सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई। सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई॥
समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाईं। रबि पावक सुरसरि की नाईं॥4॥
भावार्थ:-गंगाजी में शुभ और अशुभ सभी जल बहता है, पर कोई उन्हें अपवित्र नहीं कहता। सूर्य, अग्नि और गंगाजी की भाँति समर्थ को कुछ दोष नहीं लगता॥4॥
दोहा :
* जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ बिबेक अभिमान।
परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान॥69॥
भावार्थ:-यदि मूर्ख मनुष्य ज्ञान के अभिमान से इस प्रकार होड़ करते हैं, तो वे कल्पभर के लिए नरक में पड़ते हैं। भला कहीं जीव भी ईश्वर के समान (सर्वथा स्वतंत्र) हो सकता है?॥69॥
चौपाई :
* सुरसरि जल कृत बारुनि जाना। कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना॥
सुरसरि मिलें सो पावन जैसें। ईस अनीसहि अंतरु तैसें॥1॥
भावार्थ:-गंगा जल से भी बनाई हुई मदिरा को जानकर संत लोग कभी उसका पान नहीं करते। पर वही गंगाजी में मिल जाने पर जैसे पवित्र हो जाती है, ईश्वर और जीव में भी वैसा ही भेद है॥1॥
* संभु सहज समरथ भगवाना। एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना॥
दुराराध्य पै अहहिं महेसू। आसुतोष पुनि किएँ कलेसू॥2॥
भावार्थ:-शिवजी सहज ही समर्थ हैं, क्योंकि वे भगवान हैं, इसलिए इस विवाह में सब प्रकार कल्याण है, परन्तु महादेवजी की आराधना बड़ी कठिन है, फिर भी क्लेश (तप) करने से वे बहुत जल्द संतुष्ट हो जाते हैं॥2॥
* जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी॥
जद्यपि बर अनेक जग माहीं। एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं॥3॥
भावार्थ:-यदि तुम्हारी कन्या तप करे, तो त्रिपुरारि महादेवजी होनहार को मिटा सकते हैं। यद्यपि संसार में वर अनेक हैं, पर इसके लिए शिवजी को छोड़कर दूसरा वर नहीं है॥3॥
* बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन॥
इच्छित फल बिनु सिव अवराधें। लहिअ न कोटि जोग जप साधें॥4॥
भावार्थ:-शिवजी वर देने वाले, शरणागतों के दुःखों का नाश करने वाले, कृपा के समुद्र और सेवकों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं। शिवजी की आराधना किए बिना करोड़ों योग और जप करने पर भी वांछित फल नहीं मिलता॥4॥
दोहा :
* अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस।
होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस॥70॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर भगवान का स्मरण करके नारदजी ने पार्वती को आशीर्वाद दिया। (और कहा कि-) हे पर्वतराज! तुम संदेह का त्याग कर दो, अब यह कल्याण ही होगा॥70॥
चौपाई :
* कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ। आगिल चरित सुनहु जस भयऊ॥
पतिहि एकांत पाइ कह मैना। नाथ न मैं समुझे मुनि बैना॥1॥
भावार्थ:-यों कहकर नारद मुनि ब्रह्मलोक को चले गए। अब आगे जो चरित्र हुआ उसे सुनो। पति को एकान्त में पाकर मैना ने कहा- हे नाथ! मैंने मुनि के वचनों का अर्थ नहीं समझा॥1॥
* जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा। करिअ बिबाहु सुता अनुरूपा॥
न त कन्या बरु रहउ कुआरी। कंत उमा मम प्रानपिआरी॥2॥
भावार्थ:-जो हमारी कन्या के अनुकूल घर, वर और कुल उत्तम हो तो विवाह कीजिए। नहीं तो लड़की चाहे कुमारी ही रहे (मैं अयोग्य वर के साथ उसका विवाह नहीं करना चाहती), क्योंकि हे स्वामिन्‌! पार्वती मुझको प्राणों के समान प्यारी है॥2॥
* जौं न मिलिहि बरु गिरिजहि जोगू। गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू॥
सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू। जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू॥3॥
भावार्थ:-यदि पार्वती के योग्य वर न मिला तो सब लोग कहेंगे कि पर्वत स्वभाव से ही जड़ (मूर्ख) होते हैं। हे स्वामी! इस बात को विचारकर ही विवाह कीजिएगा, जिसमें फिर पीछे हृदय में सन्ताप न हो॥3॥
* अस कहि परी चरन धरि सीसा। बोले सहित सनेह गिरीसा॥
बरु पावक प्रगटै ससि माहीं। नारद बचनु अन्यथा नाहीं॥4॥
भावार्थ:-इस प्रकार कहकर मैना पति के चरणों पर मस्तक रखकर गिर पड़ीं। तब हिमवान्‌ ने प्रेम से कहा- चाहे चन्द्रमा में अग्नि प्रकट हो जाए, पर नारदजी के वचन झूठे नहीं हो सकते॥4॥
दोहा :
* प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान।
पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान॥71॥
भावार्थ:-हे प्रिये! सब सोच छोड़कर श्री भगवान का स्मरण करो, जिन्होंने पार्वती को रचा है, वे ही कल्याण करेंगे॥71॥
चौपाई :
* अब जौं तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावनु देहू॥
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटिहि कलेसू॥1॥
भावार्थ:-अब यदि तुम्हें कन्या पर प्रेम है, तो जाकर उसे यह शिक्षा दो कि वह ऐसा तप करे, जिससे शिवजी मिल जाएँ। दूसरे उपाय से यह क्लेश नहीं मिटेगा॥1॥
* नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुंदर सब गुन निधि बृषकेतू॥
अस बिचारि तुम्ह तजहु असंका। सबहि भाँति संकरु अकलंका॥2॥
भावार्थ:-नारदजी के वचन रहस्य से युक्त और सकारण हैं और शिवजी समस्त सुंदर गुणों के भण्डार हैं। यह विचारकर तुम (मिथ्या) संदेह को छोड़ दो। शिवजी सभी तरह से निष्कलंक हैं॥2॥
* सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं॥
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी॥3॥
भावार्थ:-पति के वचन सुन मन में प्रसन्न होकर मैना उठकर तुरंत पार्वती के पास गईं। पार्वती को देखकर उनकी आँखों में आँसू भर आए। उसे स्नेह के साथ गोद में बैठा लिया॥3॥
दोहा :
* बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कंठ न कछु कहि जाई॥
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी॥4॥
भावार्थ:-फिर बार-बार उसे हृदय से लगाने लगीं। प्रेम से मैना का गला भर आया, कुछ कहा नहीं जाता। जगज्जननी भवानीजी तो सर्वज्ञ ठहरीं। (माता के मन की दशा को जानकर) वे माता को सुख देने वाली कोमल वाणी से बोलीं-॥4॥
दोहा :
* सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
सुंदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि॥72॥
भावार्थ:-माँ! सुन, मैं तुझे सुनाती हूँ, मैंने ऐसा स्वप्न देखा है कि मुझे एक सुंदर गौरवर्ण श्रेष्ठ ब्राह्मण ने ऐसा उपदेश दिया है-॥72॥
चौपाई :
* करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी॥
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा॥1॥
भावार्थ:-हे पार्वती! नारदजी ने जो कहा है, उसे सत्य समझकर तू जाकर तप कर। फिर यह बात तेरे माता-पिता को भी अच्छी लगी है। तप सुख देने वाला और दुःख-दोष का नाश करने वाला है॥1॥
* तपबल रचइ प्रपंचु बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
तपबल संभु करहिं संघारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा॥2॥
भावार्थ:-तप के बल से ही ब्रह्मा संसार को रचते हैं और तप के बल से ही बिष्णु सारे जगत का पालन करते हैं। तप के बल से ही शम्भु (रुद्र रूप से) जगत का संहार करते हैं और तप के बल से ही शेषजी पृथ्वी का भार धारण करते हैं॥2॥
* तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी॥
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी॥3॥
भावार्थ:-हे भवानी! सारी सृष्टि तप के ही आधार पर है। ऐसा जी में जानकर तू जाकर तप कर। यह बात सुनकर माता को बड़ा अचरज हुआ और उसने हिमवान्‌ को बुलाकर वह स्वप्न सुनाया॥3॥
दोहा :
* मातु पितहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई॥
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता॥4॥
भावार्थ:-माता-पिता को बहुत तरह से समझाकर बड़े हर्ष के साथ पार्वतीजी तप करने के लिए चलीं। प्यारे कुटुम्बी, पिता और माता सब व्याकुल हो गए। किसी के मुँह से बात नहीं निकलती॥4॥
दोहा :
*बेदसिरा मुनि आइ तब सबहि कहा समुझाइ।
पारबती महिमा सुनत रहे प्रबोधहि पाइ॥73॥
भावार्थ:-तब वेदशिरा मुनि ने आकर सबको समझाकर कहा। पार्वतीजी की महिमा सुनकर सबको समाधान हो गया॥73॥
चौपाई :
* उर धरि उमा प्रानपति चरना। जाइ बिपिन लागीं तपु करना॥
अति सुकुमार न तनु तप जोगू। पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू॥1॥
भावार्थ:-प्राणपति (शिवजी) के चरणों को हृदय में धारण करके पार्वतीजी वन में जाकर तप करने लगीं। पार्वतीजी का अत्यन्त सुकुमार शरीर तप के योग्य नहीं था, तो भी पति के चरणों का स्मरण करके उन्होंने सब भोगों को तज दिया॥1॥
* नित नव चरन उपज अनुरागा। बिसरी देह तपहिं मनु लागा॥
संबत सहस मूल फल खाए। सागु खाइ सत बरष गवाँए॥2॥
भावार्थ:-स्वामी के चरणों में नित्य नया अनुराग उत्पन्न होने लगा और तप में ऐसा मन लगा कि शरीर की सारी सुध बिसर गई। एक हजार वर्ष तक उन्होंने मूल और फल खाए, फिर सौ वर्ष साग खाकर बिताए॥2॥
* कछु दिन भोजनु बारि बतासा। किए कठिन कछु दिन उपबासा॥
बेल पाती महि परइ सुखाई। तीनि सहस संबत सोइ खाई॥3॥
भावार्थ:-कुछ दिन जल और वायु का भोजन किया और फिर कुछ दिन कठोर उपवास किए, जो बेल पत्र सूखकर पृथ्वी पर गिरते थे, तीन हजार वर्ष तक उन्हीं को खाया॥3॥
* पुनि परिहरे सुखानेउ परना। उमहि नामु तब भयउ अपरना॥
देखि उमहि तप खीन सरीरा। ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा॥4॥
भावार्थ:-फिर सूखे पर्ण (पत्ते) भी छोड़ दिए, तभी पार्वती का नाम 'अपर्णा' हुआ। तप से उमा का शरीर क्षीण देखकर आकाश से गंभीर ब्रह्मवाणी हुई-॥4॥
दोहा :
* भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिराजकुमारि।
परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि॥74॥
भावार्थ:-हे पर्वतराज की कुमारी! सुन, तेरा मनोरथ सफल हुआ। तू अब सारे असह्य क्लेशों को (कठिन तप को) त्याग दे। अब तुझे शिवजी मिलेंगे॥74॥
चौपाई :
* अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी। भए अनेक धीर मुनि ग्यानी॥
अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी। सत्य सदा संतत सुचि जानी॥1॥
भावार्थ:-हे भवानी! धीर, मुनि और ज्ञानी बहुत हुए हैं, पर ऐसा (कठोर) तप किसी ने नहीं किया। अब तू इस श्रेष्ठ ब्रह्मा की वाणी को सदा सत्य और निरंतर पवित्र जानकर अपने हृदय में धारण कर॥1॥
* आवै पिता बोलावन जबहीं। हठ परिहरि घर जाएहु तबहीं॥
मिलहिं तुम्हहि जब सप्त रिषीसा। जानेहु तब प्रमान बागीसा॥2॥
भावार्थ:-जब तेरे पिता बुलाने को आवें, तब हठ छोड़कर घर चली जाना और जब तुम्हें सप्तर्षि मिलें तब इस वाणी को ठीक समझना॥2॥
* सुनत गिरा बिधि गगन बखानी। पुलक गात गिरिजा हरषानी॥
उमा चरित सुंदर मैं गावा। सुनहु संभु कर चरित सुहावा॥3॥
भावार्थ:-(इस प्रकार) आकाश से कही हुई ब्रह्मा की वाणी को सुनते ही पार्वतीजी प्रसन्न हो गईं और (हर्ष के मारे) उनका शरीर पुलकित हो गया। (याज्ञवल्क्यजी भरद्वाजजी से बोले कि-) मैंने पार्वती का सुंदर चरित्र सुनाया, अब शिवजी का सुहावना चरित्र सुनो॥3॥
* जब तें सतीं जाइ तनु त्यागा। तब तें सिव मन भयउ बिरागा॥
जपहिं सदा रघुनायक नामा। जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा॥4॥
भावार्थ:-जब से सती ने जाकर शरीर त्याग किया, तब से शिवजी के मन में वैराग्य हो गया। वे सदा श्री रघुनाथजी का नाम जपने लगे और जहाँ-तहाँ श्री रामचन्द्रजी के गुणों की कथाएँ सुनने लगे॥4॥
दोहा :
* चिदानंद सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम॥75॥
भावार्थ:-चिदानन्द, सुख के धाम, मोह, मद और काम से रहित शिवजी सम्पूर्ण लोकों को आनंद देने वाले भगवान श्री हरि (श्री रामचन्द्रजी) को हृदय में धारण कर (भगवान के ध्यान में मस्त हुए) पृथ्वी पर विचरने लगे॥75॥
चौपाई :
* कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥
जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना॥1॥
भावार्थ:-वे कहीं मुनियों को ज्ञान का उपदेश करते और कहीं श्री रामचन्द्रजी के गुणों का वर्णन करते थे। यद्यपि सुजान शिवजी निष्काम हैं, तो भी वे भगवान अपने भक्त (सती) के वियोग के दुःख से दुःखी हैं॥1॥
* एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती॥
नेमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा॥2॥
भावार्थ:-इस प्रकार बहुत समय बीत गया। श्री रामचन्द्रजी के चरणों में नित नई प्रीति हो रही है। शिवजी के (कठोर) नियम, (अनन्य) प्रेम और उनके हृदय में भक्ति की अटल टेक को (जब श्री रामचन्द्रजी ने) देखा॥2॥
* प्रगटे रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला॥
बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा॥3॥
भावार्थ:-तब कृतज्ञ (उपकार मानने वाले), कृपालु, रूप और शील के भण्डार, महान्‌ तेजपुंज भगवान श्री रामचन्द्रजी प्रकट हुए। उन्होंने बहुत तरह से शिवजी की सराहना की और कहा कि आपके बिना ऐसा (कठिन) व्रत कौन निबाह सकता है॥3॥
* बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा॥
अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी॥4॥
भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी ने बहुत प्रकार से शिवजी को समझाया और पार्वतीजी का जन्म सुनाया। कृपानिधान श्री रामचन्द्रजी ने विस्तारपूर्वक पार्वतीजी की अत्यन्त पवित्र करनी का वर्णन किया॥4॥

कुरान का संदेश

दूध में मिलावट की जांच के आदेश ने सरकार को नंगा किया

देश में किसी भी स्वास्थ्य के लियें दूध और वोह भी शुद्ध दूध जरूरी है ..और देश के हर इंसान को शुद्ध दूध मिले इसीलियें देश में दूध में मिलावट कर दूध बेचने वाले को सख्त सजा का प्रावधान रखा गया देश में वोटों की राजनीती चली फिर धंधे व्यापार में राजनितिक लोग शामिल हो गये नतीजा यही निकला के देश में दूध के भाव तो आसमान पर हो गये लेकिन दूध की शुद्धता जीरो हो गयी सरकारी डेरियों ने दूधियों के दूध पर कब्जा कर लिया और खुद सरकार ही अलग अलग कीमतों में दूध बेचने लगी यानी बात साफ़ थी सरकार भी दूध में मिलावट कर बेच रही थी फिर खुले दूधिये और निजी डेरियों ने तो कमाल ही कर दिया ..राजस्थान का हाल तो इतना बुरा था के दूध पीने का मतलब बीमारी मोल लेना हो गया ..यहाँ दूध में मिलावट करने वालों को सजा देने वाला कानून था लेकिन सरकार जन हित और जनता के स्वास्थ हित में बने इस कानून के तहत कार्यवाही नहीं करना चाहती थी ..अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने फिर फ़ूड सेफ्टी एक्ट बनाया ..सरकारों ने ध्यान नहीं दिया सरकार के लियें जनता के स्वास्थ्य और बच्चों के कुपोषण की कोई कीमत नहीं थी ..दूधिये आन्दोलन में कहते है के सरकार में अगर हिम्मर है तो हमारे सेम्पल लेकर बताये हम सरकार के अधिकारीयों की टाँगे तोड़ देंगे .....कुपोषण और मिलावट के इस माहोल में राजस्थान हाईकोर्ट इस मामले में मसीहा बन कर उभरी और हाईकोर्ट ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिए के प्रतिदिन दूध के प्रत्येक जिले में सो सेम्पल पन्द्रह दिनों तक लिए जाए और फिर सरकार हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश करे सरकार हक्का बक्का थी ..दूधियों से सरकार की सांठ गांठ की पोल खुलने लगी थी अधिकारी बेबस हो गये और हाईकोर्ट के निदेशों के तहत सो सेम्पल प्रतिदिन के टार्गेट के तहत कोटा में भी सेम्पल लिए गये लेकिन दर्जन सेम्पल के बाद ही अधिकारी घर बेठ गये और सेम्पल नहीं लिए जा सके तो जनाब हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी सरकार और उसके कारिंदे जनता को शुद्ध दूध और दुसरे सामान खिलने के पक्ष में नहीं है आप ऐसी सरकार के राज में जनता का तो अल्लाह ही मालिक है ॥ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

हम हिंदुओं ने पढ़ लिया कलमा हुसैन का..

पटना। ‘हम हिंदुओं ने पढ़ लिया कलमा हुसैन का, गाती है नाम गंगा और जमुना हुसैन का’। मुहर्रम के 40वें दिन हुसैन की चालीसी मनाने बलदेव प्रसाद के नेतृत्व में पटना सिटी पहुंचे ‘हिंदू ब्रदर्स’ की टीम ने यह नौहा गाया। यह मौका सिया मुसलमान भाइयों की ओर से आयोजित ‘शाब-ए-दारी’ का था।

पहले विद्वानों ने सभा को संबोधित किया। इसके बाद जुलूस निकला गया जिसमें बलदेव का साथ रामलाल शर्मा, राम लखन प्रसाद और विनोद कुमार ने दिया। अपने गीत में उन्होंने करबला में यजीदी व हुसैन के बीच हुए धर्म-युद्ध का बखान किया। उनलोगों ने यजीद को रावण और हुसैन को भगवान की संज्ञा दे डाली।

हिन्दुओं ने भी मनाया मातम

हुसैन की चालीसी पर सिया मुसलमानों के जुलूस में हिन्दू मातमी अंजुमन-ए-हुसैनी हिन्दू ब्रदर्स की टीम ने मातम मनाया। मुस्लिम महिलाओं ने भी मातम में हिस्सा लिया। जुलूस सैयद मुबारक अली साहब के इमामबाड़े से निकली और गलियों में घूम कर वापस इमामबाड़े पर समाप्त हुई।

'पीएम बताएं कि क्‍या यही मजबूत लोकपाल है'

भ्रष्‍टाचार के खिलाफ देशव्‍यापी मुहिम चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हजारे ने प्रधानमंत्री मनमोहन‍ सिंह को चिट्ठी लिखी है। अन्‍ना हजारे ने पूछा है, 'पीएम बताएं कि क्‍या यही मजबूत लोकपाल है, जिसे सरकार ने पारित किया है।'

अन्‍ना ने पीएम पर देश के साथ धोखा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि संसद इस वक्‍त सरकार के शिकंजे में है। उन्‍होंने कहा, ‘आप 80 साल के हो गए हैं। देश ने आपको बहुत कुछ दिया है। अब समय आ गया है कि आप देश को कुछ दीजिए। मजबूत लोकपाल बिल लाइए, देश आपको याद रखेगा।’

इधर, टीम अन्‍ना ने ने राहुल गांधी, मायावती, मुलायम सिंह यादव और नितिन गडकरी को खत लिखकर सख्‍त लोकपाल बिल की मांग की है।
गौरतलब है कि कल पीएम ने मजबूत लोकपाल का दावा किया था।

मौनी अमावस्या 23 को, स्नान, दान व श्राद्ध करें

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माघ मास की अमावस्या को माघी तथा मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस पवित्र तिथि पर मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरणपूर्वक स्नान-दान करने तथा व्रत रखने का विशेष महत्व है। इस बार यह व्रत 23 जनवरी, सोमवार को है।

इस दिन मौनी अमावस्या का व्रत सोमवार को होने के कारण इसका महत्व और भी अधिक हो गया है। मौनी अमावस्या को यदि रविवार, व्यतीपात योग व श्रवण नक्षत्र का योग हो तो अर्धोदय योग होता है। इस योग में सभी स्थानों का जल गंगा के समान हो जाता है और सभी ब्राह्मण ब्रह्मसंनिभ शुद्धात्मा हो जाते हैं।

मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी अथवा गंगातट पर स्नान-दान करने की अपार महिमा है। मौनी अमावस्या के दिन नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नान करके तिल, तिल के लड्डू, आंवला तथा कंबल आदि का दान करना चाहिए। साथ ही साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करना चाहिए-

तैलमामलकाश्चैव तीर्थे देयास्तु नित्यश:।

तत: प्रज्वालयेद्वह्निं सेवनार्थे द्विजन्मनाम्।।

कंबलाजिनरत्नानि वासांसि विविधानि च।

चोलकानि च देयानि प्रच्छादपटास्तथा।।

इस दिन गुड़ में काला तिल मिलाकर लड्डू बनाना चाहिए तथा उसे लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए। स्नान-दान के अलावा इस दिन पितृ-श्राद्धादि करने का भी विधान है।

हींग और गुड़ का असरदार ये प्रयोग कर देगा गैस और एसीडिटी की छुट्टी



कहते हैं अगर हींग का सही तरीके से उपयोग किया जाए तो यह कई बीमारियों की दुश्मन है। वैद्यों का मानना है कि हींग को हमेशा भूनकर उपयोग में लाना चाहिए।
- एक कप गर्म पानी में एक चम्मच हींग का पाउडर घोलें। इस घोल में सूती कपड़े को भिगोकर पेट के उस हिस्से की सिकाई करें जहां दर्द हो रहा है। थोड़ी ही देर में दर्द से राहत मिलेगी।

- हींग में जरा सा कपूर मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लगाने से दांत दर्द बंद हो जाता है ।
- भुनी हुई हींग , काली मिर्च ,पीपल काला नमक समान मात्रा में लेकर पीस लें। रोजाना चौथाई चम्मच यह चूर्ण गर्म पानी से सेवन करें। पेट से जुड़ी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।
- एक ग्राम हींग ,पीसी हुई दस काली मिर्च ,दस ग्राम गुड में सबको मिलाकर सुबह शाम खाएं।
- पांच ग्राम भुनी हुई हींग, चार चम्मच अजवाइन, दस मुनक्का, थोड़ा काला नमक सबको कूट पीसकर चौथाई चममच तीन बार नित्य लेने से ,उल्टी होना ,जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
- अदरक की गांठ में छेद करके इसमें जरा सा हींग डालकर काला नमक भर कर ,खाने वाले पान के पत्ते में लपेटकर धागा बांध कर गीली मिटटी का लेप कर दें। इसे आग में डाल कर जला लें ,जल जाने पर पीसकर मूंगफली के दाने के बराबर आकार की गोलियां बना लें। एक एक गोली दिन में चार बार चूसें। पेट की प्राब्लम्स में जल्द ही आराम मिलेगा।
- पैर फटने पर नीम के तेल में हींग डालकर लगाने से आराम मिलता है
- थोड़ी सी हींग को गुड़ में लपेटकर गरम पानी से लें। गैस व एसीडिटी का पेट दर्द ठीक हो जायेगा।
- दांत दर्द में अफीम और हींग का फाहा रखें तो आराम मिलता है।
- हींग को पानी में घोलकर लेप बनाकर उस पर लगाने से चर्म रोग में आराम मिलता है।


हींग और गुड़ का असरदार ये प्रयोग कर देगा गैस और एसीडिटी की छुट्टी



कहते हैं अगर हींग का सही तरीके से उपयोग किया जाए तो यह कई बीमारियों की दुश्मन है। वैद्यों का मानना है कि हींग को हमेशा भूनकर उपयोग में लाना चाहिए।
- एक कप गर्म पानी में एक चम्मच हींग का पाउडर घोलें। इस घोल में सूती कपड़े को भिगोकर पेट के उस हिस्से की सिकाई करें जहां दर्द हो रहा है। थोड़ी ही देर में दर्द से राहत मिलेगी।

- हींग में जरा सा कपूर मिलाकर दर्द वाले स्थान पर लगाने से दांत दर्द बंद हो जाता है ।
- भुनी हुई हींग , काली मिर्च ,पीपल काला नमक समान मात्रा में लेकर पीस लें। रोजाना चौथाई चम्मच यह चूर्ण गर्म पानी से सेवन करें। पेट से जुड़ी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।
- एक ग्राम हींग ,पीसी हुई दस काली मिर्च ,दस ग्राम गुड में सबको मिलाकर सुबह शाम खाएं।
- पांच ग्राम भुनी हुई हींग, चार चम्मच अजवाइन, दस मुनक्का, थोड़ा काला नमक सबको कूट पीसकर चौथाई चममच तीन बार नित्य लेने से ,उल्टी होना ,जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
- अदरक की गांठ में छेद करके इसमें जरा सा हींग डालकर काला नमक भर कर ,खाने वाले पान के पत्ते में लपेटकर धागा बांध कर गीली मिटटी का लेप कर दें। इसे आग में डाल कर जला लें ,जल जाने पर पीसकर मूंगफली के दाने के बराबर आकार की गोलियां बना लें। एक एक गोली दिन में चार बार चूसें। पेट की प्राब्लम्स में जल्द ही आराम मिलेगा।
- पैर फटने पर नीम के तेल में हींग डालकर लगाने से आराम मिलता है
- थोड़ी सी हींग को गुड़ में लपेटकर गरम पानी से लें। गैस व एसीडिटी का पेट दर्द ठीक हो जायेगा।
- दांत दर्द में अफीम और हींग का फाहा रखें तो आराम मिलता है।
- हींग को पानी में घोलकर लेप बनाकर उस पर लगाने से चर्म रोग में आराम मिलता है।


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