आपका-अख्तर खान

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25 जनवरी 2012

नेता सब चोर ..नेता सब निकम्मे है यही हमारे इस लोकतंत्र की हार है ...

आज पुरे देश में गणतन्त्र का जश्न बनाने की रस्म निभायी जा रही है कल इसी देश में मतदाता दिवस मनाया गया था यहाँ कहने को तो रोज़ किसी न किसी रूप में कोई न कोई त्यौहार कोई न कोई दिवस मनाया जाता है लेकिन देश के दो बढ़े पर्व एक तो स्वतन्त्रता और दूसरा आज का गणतन्त्र महत्वपूर्ण अविस्मरनीय और गोर्व्शाली दिन है ..इन समारोह के चलते देश के लोकतंत्र के रक्षक बन कर निकले अन्ना हजारे ने जब लगातार हो रहे भ्रष्टाचार से तंग आकर कह डाला के भ्रस्टाचार से पीड़ित व्यक्ति के पास अंतिम उपाय भ्रष्टाचारी के थप्पड़ मरना है तो देश भर में हंगामा बरपा हो गया ... अन्ना ने भ्रष्ट लोगों के लियें जो बात कही वह सभी राजनितिक लोग जो खुद को भ्रष्ट समझते है अपने दिल पर लगा बेठे और अन्ना को भगा भगा के देश से निकालने का नारा देने लगे ..यह किसी हिंसावादी पार्टी के लोग नहीं थे यह बजरंग दल और शिवसेना या मनसे के कार्यकर्ता या नेताओं का टुच्चा गली छाप बयान नहीं था यह वोह लोग है जिनके गाँधी की गोडसे ने हत्या की थी और आज यही लोग जब देश में एक गांधी पैदा हुआ है देश में भ्रष्टाचर के खिलाफ लड रहा है उसी व्यक्ति को भगा भगा कर मारने का नारा देकर गोडसे बनना चाहते है इन्हें पता नहीं के यह चाहे कोंग्रेस की पार्टी में होंगे लेकिन इनके अतीत में कहीं ना कहीं गेर कोंग्रेसी होने का इतिहास निकलेगा यह लोग वोह है जो कुर्सी के लिए कोंग्रेस में आये है वरना इनका दिल तो आज भी हिंदुस्तान के खिलाफ है ..जिस बात से राहुल गान्धी ...मनमोहन सिंह .सोनिया गाँधी को कोई फर्क नहीं पढ़ता उसी बात पर कत्थक करने वाले हिंसक कथित कोंग्रेसी संसद वर्मा मध्यप्रदेश की उपज है तो भाजपा के राजनाथ सिंह उत्तरप्रदेश और कुछ लोग बिहार के है ....दोस्तों कल टीवी और मिडिया में इस मामले को लेकर काफी हल्ला मचा ..एक तरफ जब हम मतदाता दिवस मना रहे थे ..दूसरी तरफ जब हम देश के लोकतंत्र देश के संविधान को याद करने के लियें देश के शहीदों को याद करने के लियें टिरेस्थ्वे गणतन्त्र समारोह की त्य्यारियों में जुटे थे तब अचानक यह बवाल और वोह भी राजनितिक पार्टियों की तरफ से शर्मनाक है .इससे लगता है के आज देश का लोकतंत्र तार तार है ..अन्ना द्वारा जब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते लड़ते थकने वालों को भ्रष्टाचारियों पर थप्पड़ मारने के आखरी विकल्प की बात कही थी तब सुरेश कलमाड़ी ..ऐ राजा ... कनिमोझी ..कोड़ा ..नाराज़ होते तो समझ में आता लेकिन कोंग्रेस और भाजपा के लोगों की नाराज़गी इस बात का सबूत है के उनके अंतर्मन से खुद को भी ऐसे लोग जनता के दरबार में चोर और बेईमान मानते है उन्हें पता है के अगर यह लड़ाई लम्बी चली तो भ्रष्ट लोग खुद को ज्यादा दिन नहीं बचा पायेंगे और एक दिन वोह आ जाएगा के इन लोगों के काले धन के खजाने जो स्विस बेंक में पढ़े है देश में वापस आयेंगे इनके मुख पर भारतवासी कालिख पोतेंगे यह लोग जेल में और सिर्फ जेल में होंगे ..शायद इसीलियें यह लोग अन्ना की बात का बुरा मान रहे है अन्ना और उसके समर्थकों का गला दबाने का प्रयास कर रहे है .पहले संसद की अवमानना से डराया ..फिर मुकदमों से डराया ..नहीं डरे तो फिर गुंडागर्दी और धमकाने पर आ गये कहते हैं हम सांसद है अरे भाई तुम सांसद हो तो किसने तुम्हे चुना है अगर जनता ने चुना है तो जनता की आवाज़ सुनो तुम खुद को लोकसेवक कहकर करोड़ों रूपये के भत्ते क्यूँ उठाते हो ..क्यूँ तुम लोग खुद को शासक कहते हो ......शायद यह लोग नहीं जानते के संसद किस के प्रति जवाबदार है ..जनता संसद से बढ़ी है ...कहते है लड़ना है तो चुनाव लडकर आओ अरे आपात स्थिति के बाद के हालात याद करो जब तुम लोगों को बंद करने के लियें जेलें कम पढ़ गयी थीं और भ्रष्टाचार की सुनवाई के लियें अदालतें कम पढ़ गयी थी देश में गेंहू ..चांवल ..आटा ..डाल ..तेल घी सब जीरो मूल्य पर था जनता के लियें वोह राम राज था और तुम्हारे लिए वोह काला शासन लेकिन कहते है चोर चोर मोसेरे भाई होते है इसीलियें आज लोकतंत्र को गिरवी रख कर सभी लोग इतर रहे हैं संसद केसे चलेगी ..संसद और निर्वाचित प्रतिनिधियों के क्या कर्तव्य होंगे ....अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह या फिर बेईमान संसद ..निर्वाचित प्रतिनिधियों को क्या और केसा दंड मिलेगा उनकी सुनवाई कोन करेगा इसे तय करने का अधिकार जनता सिर्फ जनता के पास है एक बार सिर्फ एक बार जनता इसमें कामयाब हो जाये फिर देखते है के यह सांसद जो खुद को सांसद समझ कर इतराने लगते है अगर कर्व्यों से विमुख होते हैं तो उन्हें क्या कुछ भोगना पढ़ सकता है ,,,,यह तो हुई कानून की बात लेकिन दोस्तों आप खुद देख लो हमारे नेताओं ने हमारे सांसद और विधायकों ने नेतिकता कहां खो दी है इनमे देश को बचाने और देश के बारे में सोचने की लायकी नहीं है इसलियें हम इन्हें रिजेक्ट करते है और आज जनता की जो आवाज़ है के नेता सब चोर ..नेता सब निकम्मे है यही हमारे इस लोकतंत्र की हार है ... एक फिल्म में एक नायक के हाथ पर लिखा था के मेरा बाप चोर है लेकिन आज तो कुदरत की सितम ज़रिफी है के विश्व के सबसे बढ़े लोकतंत्र विश्व के सबसे बढ़े संविधान के इस देश में हर वोटर के माथे पर लिखा है के मेरा नेता चोर है मेरा नेता चोर है ....... खुदा इस निजाम इस हालत को बदल दे और एक क्रान्ति के बाद फिर से मेरे इस देश के कानून मेरे इस देश के संविधान को पुनर्जीवित कर दे फिर से मेरे इस देश को आज़ाद कर यहाँ जनता के लियें जनता का शासन स्थापित कर दे ...आमीन सुम्मा आमीन .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

होमाई की नजर से कुछ यूं थी पहली गणतंत्र परेड

26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में मनाया गया था। तब इसकी चहारदीवारी नहीं बनी थी। पृष्ठभूमि में पुराना किला नजर आता था।

देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद गवर्नमेंट हाउस (आज के राष्ट्रपति भवन) से छह घोड़ों वाली बग्घी में बैठकर दोपहर ढाई बजे समारोह स्थल के लिए रवाना हुए। यहां सिर्फ एक बार ही गणतंत्र दिवस परेड निकली है। यह तस्वीर देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमाई व्यारवाला ने खींची थी। उनका 15 जनवरी 2012 को 98 वर्ष की उम्र में निधन हुआ।

अजमेर की दरगाह शरीफ दीदार गरीब नवाज की मजार का



- श्रुति अग्रवा
दरगाह अजमेर शरीफ...एक ऐसा पाक-शफ्फाक नाम है जिसे सुनने मात्र से ही रूहानी सुकून मिलता है। अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह की मजार की जियारत कर दरूर-ओ-फातेहा पढ़ने की चाहत हर ख्वाजा के चाहने वाले की होती है, लेकिन हर कोई उनके द्वार पर दस्तक नहीं दे पाता ऐसे सभी श्रद्धालुओं के लिए धर्मयात्रा में हमारी यह प्रस्तुति खास तोहफा है।

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दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि ख्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने के बाद उनके जहन में सिर्फ अकीदा ही बाकी रहता हैदरगाह अजमेर डॉट काम चलाने वाले हमीद साहब कहते हैं कि गरीब नवाज का का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि लोग यहाँ खिंचे चले आते हैं। यहाँ आकर लोगों को रूहानी सुकून मिलता है।




भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह।

ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...

तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।

धार्मिसद्‍भाव की मिसाल- धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को गरीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए...ख्वाजा के दर पर हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी जियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है




देग का इतिहास- दरगाह के बरामदे में दो बड़ी देग रखी हुई हैं...इन देगों को बादशाह अकबर और जहाँगीर ने चढ़ाया था। तब से लेकर आज तक इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है।

कामदेव का देवकार्य के लिए जाना और भस्म होना


दोहा :
* सुरन्ह कही निज बिपति सब सुनि मन कीन्ह बिचार।
संभु बिरोध न कुसल मोहि बिहसि कहेउ अस मार॥83॥
भावार्थ:-देवताओं ने कामदेव से अपनी सारी विपत्ति कही। सुनकर कामदेव ने मन में विचार किया और हँसकर देवताओं से यों कहा कि शिवजी के साथ विरोध करने में मेरी कुशल नहीं है॥83॥
चौपाई :
*तदपि करब मैं काजु तुम्हारा। श्रुति कह परम धरम उपकारा॥
पर हित लागि तजइ जो देही। संतत संत प्रसंसहिं तेही॥1॥
भावार्थ:-तथापि मैं तुम्हारा काम तो करूँगा, क्योंकि वेद दूसरे के उपकार को परम धर्म कहते हैं। जो दूसरे के हित के लिए अपना शरीर त्याग देता है, संत सदा उसकी बड़ाई करते हैं॥1॥
* अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई। सुमन धनुष कर सहित सहाई॥
चलत मार अस हृदयँ बिचारा। सिव बिरोध ध्रुब मरनु हमारा॥2॥
भावार्थ:-यों कह और सबको सिर नवाकर कामदेव अपने पुष्प के धनुष को हाथ में लेकर (वसन्तादि) सहायकों के साथ चला। चलते समय कामदेव ने हृदय में ऐसा विचार किया कि शिवजी के साथ विरोध करने से मेरा मरण निश्चित है॥2॥
* तब आपन प्रभाउ बिस्तारा। निज बस कीन्ह सकल संसारा॥
कोपेउ जबहिं बारिचरकेतू। छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू॥3॥
भावार्थ:-तब उसने अपना प्रभाव फैलाया और समस्त संसार को अपने वश में कर लिया। जिस समय उस मछली के चिह्न की ध्वजा वाले कामदेव ने कोप किया, उस समय क्षणभर में ही वेदों की सारी मर्यादा मिट गई॥3॥
* ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना। धीरज धरम ग्यान बिग्याना॥
सदाचार जप जोग बिरागा। सभय बिबेक कटकु सबु भागा॥4॥
भावार्थ:-ब्रह्मचर्य, नियम, नाना प्रकार के संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सदाचार, जप, योग, वैराग्य आदि विवेक की सारी सेना डरकर भाग गई॥4॥
छंद :
* भागेउ बिबेकु सहाय सहित सो सुभट संजुग महि मुरे।
सदग्रंथ पर्बत कंदरन्हि महुँ जाइ तेहि अवसर दुरे॥
होनिहार का करतार को रखवार जग खरभरु परा।
दुइ माथ केहि रतिनाथ जेहि कहुँ कोपि कर धनु सरु धरा॥
भावार्थ:-विवेक अपने सहायकों सहित भाग गया, उसके योद्धा रणभूमि से पीठ दिखा गए। उस समय वे सब सद्ग्रन्थ रूपी पर्वत की कन्दराओं में जा छिपे (अर्थात ज्ञान, वैराग्य, संयम, नियम, सदाचारादि ग्रंथों में ही लिखे रह गए, उनका आचरण छूट गया)। सारे जगत्‌ में खलबली मच गई (और सब कहने लगे) हे विधाता! अब क्या होने वाला है? हमारी रक्षा कौन करेगा? ऐसा दो सिर वाला कौन है, जिसके लिए रति के पति कामदेव ने कोप करके हाथ में धनुष-बाण उठाया है?
दोहा :
*जे सजीव जग अचर चर नारि पुरुष अस नाम।
ते निज निज मरजाद तजि भए सकल बस काम॥84॥
भावार्थ:-जगत में स्त्री-पुरुष संज्ञा वाले जितने चर-अचर प्राणी थे, वे सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश में हो गए॥84॥
चौपाई :
* सब के हृदयँ मदन अभिलाषा। लता निहारि नवहिं तरु साखा॥
नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाईं। संगम करहिं तलाव तलाईं॥1॥
भावार्थ:-सबके हृदय में काम की इच्छा हो गई। लताओं (बेलों) को देखकर वृक्षों की डालियाँ झुकने लगीं। नदियाँ उमड़-उमड़कर समुद्र की ओर दौड़ीं और ताल-तलैयाँ भी आपस में संगम करने (मिलने-जुलने) लगीं॥1॥
* जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी। को कहि सकइ सचेतन करनी॥
पसु पच्छी नभ जल थल चारी। भए काम बस समय बिसारी॥2॥
भावार्थ:-जब जड़ (वृक्ष, नदी आदि) की यह दशा कही गई, तब चेतन जीवों की करनी कौन कह सकता है? आकाश, जल और पृथ्वी पर विचरने वाले सारे पशु-पक्षी (अपने संयोग का) समय भुलाकर काम के वश में हो गए॥2॥
* मदन अंध ब्याकुल सब लोका। निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका॥
देव दनुज नर किंनर ब्याला। प्रेत पिसाच भूत बेताला॥3॥
भावार्थ:-सब लोक कामान्ध होकर व्याकुल हो गए। चकवा-चकवी रात-दिन नहीं देखते। देव, दैत्य, मनुष्य, किन्नर, सर्प, प्रेत, पिशाच, भूत, बेताल-॥3॥
* इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी। सदा काम के चेरे जानी॥
सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी। तेपि कामबस भए बियोगी॥4॥
भावार्थ:-ये तो सदा ही काम के गुलाम हैं, यह समझकर मैंने इनकी दशा का वर्णन नहीं किया। सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महान्‌ योगी भी काम के वश होकर योगरहित या स्त्री के विरही हो गए॥4॥
छंद :
* भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै।
देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे॥
अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं।
दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं॥
भावार्थ:-जब योगीश्वर और तपस्वी भी काम के वश हो गए, तब पामर मनुष्यों की कौन कहे? जो समस्त चराचर जगत को ब्रह्ममय देखते थे, वे अब उसे स्त्रीमय देखने लगे। स्त्रियाँ सारे संसार को पुरुषमय देखने लगीं और पुरुष उसे स्त्रीमय देखने लगे। दो घड़ी तक सारे ब्राह्मण्ड के अंदर कामदेव का रचा हुआ यह कौतुक (तमाशा) रहा।
सोरठा :
* धरी न काहूँ धीर सब के मन मनसिज हरे।
जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ॥85॥
भावार्थ:-किसी ने भी हृदय में धैर्य नहीं धारण किया, कामदेव ने सबके मन हर लिए। श्री रघुनाथजी ने जिनकी रक्षा की, केवल वे ही उस समय बचे रहे॥85॥
चौपाई :
*उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ॥
सिवहि बिलोकि ससंकेउ मारू। भयउ जथाथिति सबु संसारू॥1॥
भावार्थ:-दो घड़ी तक ऐसा तमाशा हुआ, जब तक कामदेव शिवजी के पास पहुँच गया। शिवजी को देखकर कामदेव डर गया, तब सारा संसार फिर जैसा-का तैसा स्थिर हो गया।
*भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे॥
रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना॥2॥
भावार्थ:-तुरंत ही सब जीव वैसे ही सुखी हो गए, जैसे मतवाले (नशा पिए हुए) लोग मद (नशा) उतर जाने पर सुखी होते हैं। दुराधर्ष (जिनको पराजित करना अत्यन्त ही कठिन है) और दुर्गम (जिनका पार पाना कठिन है) भगवान (सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य रूप छह ईश्वरीय गुणों से युक्त) रुद्र (महाभयंकर) शिवजी को देखकर कामदेव भयभीत हो गया॥2॥
* फिरत लाज कछु करि नहिं जाई। मरनु ठानि मन रचेसि उपाई॥
प्रगटेसि तुरत रुचिर रितुराजा। कुसुमित नव तरु राजि बिराजा॥3॥
भावार्थ:-लौट जाने में लज्जा मालूम होती है और करते कुछ बनता नहीं। आखिर मन में मरने का निश्चय करके उसने उपाय रचा। तुरंत ही सुंदर ऋतुराज वसन्त को प्रकट किया। फूले हुए नए-नए वृक्षों की कतारें सुशोभित हो गईं॥3॥
* बन उपबन बापिका तड़ागा। परम सुभग सब दिसा बिभागा॥
जहँ तहँ जनु उमगत अनुरागा। देखि मुएहुँ मन मनसिज जागा॥4॥
भावार्थ:-वन-उपवन, बावली-तालाब और सब दिशाओं के विभाग परम सुंदर हो गए। जहाँ-तहाँ मानो प्रेम उम़ड़ रहा है, जिसे देखकर मरे मनों में भी कामदेव जाग उठा॥4॥
छंद :
* जागइ मनोभव मुएहुँ मन बन सुभगता न परै कही।
सीतल सुगंध सुमंद मारुत मदन अनल सखा सही॥
बिकसे सरन्हि बहु कंज गुंजत पुंज मंजुल मधुकरा।
कलहंस पिक सुक सरस रव करि गान नाचहिं अपछरा
भावार्थ:-मरे हुए मन में भी कामदेव जागने लगा, वन की सुंदरता कही नहीं जा सकती। कामरूपी अग्नि का सच्चा मित्र शीतल-मन्द-सुगंधित पवन चलने लगा। सरोवरों में अनेकों कमल खिल गए, जिन पर सुंदर भौंरों के समूह गुंजार करने लगे। राजहंस, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे और अप्सराएँ गा-गाकर नाचने लगीं॥
दोहा :
* सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥86॥
भावार्थ:-कामदेव अपनी सेना समेत करोड़ों प्रकार की सब कलाएँ (उपाए) करके हार गया, पर शिवजी की अचल समाधि न डिगी। तब कामदेव क्रोधित हो उठा॥86॥
चौपाई :
* देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा॥
सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥1॥
भावार्थ:-आम के वृक्ष की एक सुंदर डाली देखकर मन में क्रोध से भरा हुआ कामदेव उस पर चढ़ गया। उसने पुष्प धनुष पर अपने (पाँचों) बाण चढ़ाए और अत्यन्त क्रोध से (लक्ष्य की ओर) ताककर उन्हें कान तक तान लिया॥1॥
* छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। छूटि समाधि संभु तब जागे॥
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥2॥
भावार्थ:-कामदेव ने तीक्ष्ण पाँच बाण छोड़े, जो शिवजी के हृदय में लगे। तब उनकी समाधि टूट गई और वे जाग गए। ईश्वर (शिवजी) के मन में बहुत क्षोभ हुआ। उन्होंने आँखें खोलकर सब ओर देखा॥2॥
* सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका॥
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥3॥
भावार्थ:-जब आम के पत्तों में (छिपे हुए) कामदेव को देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध हुआ, जिससे तीनों लोक काँप उठे। तब शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला, उनको देखते ही कामदेव जलकर भस्म हो गया॥3॥
* हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
समुझि कामसुख सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी॥4॥
भावार्थ:-जगत में बड़ा हाहाकर मच गया। देवता डर गए, दैत्य सुखी हुए। भोगी लोग कामसुख को याद करके चिन्ता करने लगे और साधक योगी निष्कंटक हो गए॥4॥
छंद :
* जोगी अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई॥
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥
भावार्थ:-योगी निष्कंटक हो गए, कामदेव की स्त्री रति अपने पति की यह दशा सुनते ही मूर्च्छित हो गई। रोती-चिल्लाती और भाँति-भाँति से करुणा करती हुई वह शिवजी के पास गई। अत्यन्त प्रेम के साथ अनेकों प्रकार से विनती करके हाथ जोड़कर सामने खड़ी हो गई। शीघ्र प्रसन्न होने वाले कृपालु शिवजी अबला (असहाय स्त्री) को देखकर सुंदर (उसको सान्त्वना देने वाले) वचन बोले।

कुरान का संदेश

आज धरती तक पहुंचेगी सूरज की आंधी



वाशिंगटन. सूरज पर चल रही आंधी का असर धरती तक पहुंचने का अंदेशा है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इससे पैदा हुई लपटें बुधवार को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकरा सकती हैं। इससे विमानों की आवाजाही, बिजली और उपग्रह सेवा प्रभावित होने के आसार हैं।


अमेरिकी अंतरिक्ष केंद्र नासा के मुताबिक, इस घटना में सूर्य से दो हजार किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से सौर लपटें निकलेंगी। यह आमतौर पर सूर्य से निकलने वाली लपटों की रफ्तार से पांच गुना ज्यादा होंगी। रविवार को सूरज पर आई आंधी की वजह से यह सब होगा। नासा के भौतिक विज्ञानी आंती पुल्ककिनन के अनुसार, ‘जब सौर तूफान से निकलने वाले कण पृथ्वी से टकराते हैं तो वे उसके चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं। इससे इस क्षेत्र में जबरदस्त उतार-चढ़ाव होता है।’

उन्होंने बताया, ‘सौर तूफान से निकली ऊर्जा एअर लाइनों की रेडियो संचार प्रणाली को बाधित कर सकती है।

खून से सने इस गणतन्त्र को बचा लो यारों

आज २६ जनवरी यानी गणतन्त्र यानी जनता दिवस लोकतंत्र दिवस है ...दोस्तों इस दिन के लियें वेसे तो आप सभी भाइयों और बहनों को बधाई ..हम और आप क्या ,सारा देश और सारा देश ही क्या, सारा विश्व जानता है के भारत के दो राष्ट्रीय पर्व पन्द्राह अगस्त और छब्बीस जनवरी है जो गोरव दिवस के रूप में मनाये जाते है ..दोस्तों पहले गणतन्त्रऔर आज के गणतन्त्र में ज़मीं आसमां का फर्क है आज हम खुद को ठगा सा महसूस करते है ..आप सब जानते है के भारत आज़ाद होने के बाद यहाँ के नेता इस देश के आज़ादी के सपने को सच करने के लियें एक कानून बनाना चाहते थे और सभी नेताओं ने एक राय होकर भीमराव आंबेडकर डोक्टर राजेन्द्र प्रसाद सहित कई लोगों की मदद से एक विधान तय्यार किया जिसकी प्रस्तावना २६ नोवेम्बर १९४९ को तय्यार हुई और इस विधान को संविधान के रूप में २६ जनवरी १९५० यानि पुरे दो माह बाद देश को समर्पित क्या गया ..हमारा यह दिन हमारे देश और देशवासियों के लियें गोरव का दिन था ..इस दिन देश भी हमारा था और देश में संचालित होने वाला कानून भी हमारा था इस संविधान में देश को संचालित करने के लियें कार्यपालिका ..न्यायपालिका ..विधायिका ..की व्यवस्था थी तो इसी विधान में आम जनता को आज़ादी दी गयी थी ..लेकिन ऐसी आज़ादी जो एक अनुशासित ....सेल्फ डिसिप्लिन आज़ादी थी जिसमें अपनी हदों में रहकर देश में स्वतंत्र विचरण ..स्वतंत्र व्यापार स्वतंत्र बोलने चालने की स्वतन्त्रता दी गयी थी ..हमारा यह विधान हमे अपने निर्वाचन के लियें निर्वाचन आयोग के गठन और एक स्वतंत्र मतदान के बाद निष्पक्ष देशभक्त सरकार के लियें ज़िम्मेदार बनाता है ..इस विधान में जिसे देश के संचालन के लियें देश की रूह ..देश की आत्मा कहा क्या है ..जिसे देश की रीड की हड्डी कहा गया है उसमे जनता को माई बाप का दर्जा दिया गया है मंत्रियों और अधिकारीयों कर्मचारियों को जनता का सेवक यानी लोकसेवक कहा गया है ..जनता द्वारा जनता की सरकार के निर्वाचने के बाद यह सभी लोग जनता के नोकर कहे जाने लगे ..लेकिन कुछ दिनों तक यह सपना क्रियान्वित हुआ फिर आँख खुली और सभी आज़ादी ..सभी नियम कायदे कानून खत्म ..केवल किताबों में ही कानून अछ्छा लगने लगा ..देश में आज जिसकी लाठी उसी की भेंस है ..देश में आज हिन्दू है ..मुसलमान है ..सिक्ख है इसाई है ..अमीर है गरीब है ..दलित है ..स्वर्ण है ..लेकिन ना तो भारतीयता है और ना ही इंसान है देश में आज विधान है लेकिन इसकी पालना करवाने वाले बंद कमरों में डंडे और बहकावे के बल सरकार बनाते है और फिर पुरे पांच साल जनता पर गुर्राते है ......हमारे देश का शीर्ष जम्मू कश्मीर है तो सही लेकिन विधान में नहीं है देश के हर कानून को जम्मू कश्मीर के अलावा लागू करना लिखा गया है ..यहाँ या तो बोलने और लिखने की इतनी आज़ादी है के कोई भी किसी को चाहे जो लिख दे चाहे जो कह दे किसी भी धर्म की आलोचना कर दे किसी के भी भगवान का मजाक उढ़ा दे और हम इस अराजकता इस अमानवीय कृत्य को आज़ादी का नाम अभिव्यक्ति की स्वत्न्र्ता का नाम देने लगे ..सडकों पर नंगे घूमना .महिलाओं का बाज़ार सजाना ..स्मेक चरस शराब बीडी सिगरेटें बेचना हम अपना व्यापार कहने लगे ..नेता लोग शराब पिलाकर ..लोगों को डरा धमका कर अपनी सरकार बनाना अधिकार समझने लगे और सरकार में आने के बाद जनता से झूंठे वायदे करना ..जनता को धोखा देना और बेईमानी से रूपये कमा कर स्विस बेंक में जमा करना नेताओं न अपना कानून बना लिया ..यह देश जहाँ हमारा अपना शासन है एक नेता अपने कार्यकर्ता का काम नहीं करता ..सिपाही से लेकर मंत्री तक लोग रिश्वत लेते है ..दूध से लेकर घी मक्खन में मिलावट है दवाओं के नामा पर जहर बेचा जा रहा है ..ओरतों की अस्मत खतरे में है गरीबों को न्याय नहीं मिल रहा सारी योजनायें बंद है ....बच्चे मजदूरी में लगे है ओरतों से जिस्म फरोशी करवाई जा रही है ..थानों में बलात्कार हो रहे है ..गरीब की रिपोर्ट नहीं लिखी जाती कलेक्टर और एस पी जनता के लोगों से पर्ची लेकर उन्हें घंटों बाहर बताने के बाद भी उनकी नहीं सुनते है शायद यही आज का विधान बन गया है ..लोकसभा और विधानसभा में सांसद या तो सोते है या फिर रूपये लेकर सवाल जवाब करते है रिश्वत लेकर वोटिंग कर सरकारें बचाते है और किसी भी मुद्दे पर शोर शराबा या फिर मेच फिक्सिंग कर बिना वोटिंग के सदन से वाक् आउट कर अनचाहे फेसले करवाते है शायद यही आज का लोक्त्न्र है दोस्तों यह खून के आंसू रोने वाला लोक्न्त्र आज जब मनाया जाता है तो पार्टियों के कार्यालय सुने रहते है कोंग्रेस हो या भाजपा केवल और केवल रस्म के तोर पर इस दें केवल तिरंगा फेहराया जाता है सरकारी कार्यकमों के हालत यह है के यहाँ कार्यक्रम ऐसे नीरस और मजबूरी के हो गये है के जनता का मोह सरकारी गणतन्त्र कार्यक्रमों से भंग हो गया है ..तो दोस्तों अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है हमारी आज़ादी को हमे अ एक लड़ाई लड़कर फिर से जितना होगा ..हमारे संविधान हमारे कानून को हमे फिर से देश में लागु करवाना होगा ..हमारे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी का नारा एक देकर मूल निवासी ..जाती ..धर्म ..आरक्षण और भाषा के विवाद को हमे हटाना होगा ...मुंबई से जब बिहारियों को भगाते है तो हमारा विधान रोता है ..राष्ट्रिय संवेधानिक भाषा राष्ट्र भाषा हिंदी का जब बेल्लोरी में मजाक उडाया जाता है hiनदी बोलने वालों को ज़िंदा जलाया आजाता है तो हम सिहर जाते है सलमान रुश्दी जेसे धर्म मजहब को गाली बकने और गाली लिखने वाले को जब अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर हीरो बनाना चाहते है तो देश खून के आंसू रोता है ..हम जब वोटों के लियें कत्ले आम करते है जातियों को धर्मों को लडाते है तो यह लोकतंत्र लहूलुहान हो जाता है आओ इसे सुधारे इसे रामराज की परिकल्पना मन में लेकर फिर से आज़ाद भारत के जय जवान जय किसान जय हिंदुस्तान ..मेरा भारत महान का नारा देकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली बना डाले अगर ऐसा करने का हम संकल्प ले सकते है तभी हमे कहने का हक है गणतंत्र दिवस मुबारक हो ...... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

नेचुरल तरीका: दस मिनट में हाइब्लडप्रेशर और टेंशन हो दूर

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अधिकांशत: बीमारियों के उपचार के लिए लोग नियमित रूप से दवाईयों का सेवन करते हैं। लेकिन ब्लडप्रेशर और तनाव दोनों ही ऐसी बीमारियां हैं जिन्हें दवाईयों से जड़ से मिटाना थोड़ा मुश्किल है। कहते हैं जिन रोगों को सिर्फ औषधीयों से नहीं मिटा जा सकता है उनका उपचार योग व ध्यान से संभव है। इसीलिए कान्स्टीपेशन, तनाव या हाई ब्लडप्रेशर को जड़ से मिटाने के लिए सिर्फ रोज दस मिनट के लिए नीचे लिखी विधि से ध्यान करें।

ध्यान विधि- शरीर को ढीला छोड़ दीजिए, ध्यान रहे कमर झुकनी नहीं चाहिए।

- बंद आंखों से अपना पूरा ध्यान मूलाधार क्षेत्र में ले आइए
- पूरा ध्यान बंद आंखों से वहीं एक जगह पर केन्द्रित करिए, गुदा द्वार को ढीला छोड़ दीजिए।
- लिंगमूल को ढीला छोड़ दीजिए।
- इससे सांस की गति अचनाक गहरी और तीव्र हो जाएगी।
- अपने सांस पर ध्यान दीजिए।
- अब अपना पूरा ध्यान नासिका पर ले आइए।
- इसके बाद अपनी सांस को गौर से देखिए।
- कम से कम 30 सांस तक आप इसी अवस्था में रहें।
- अब देखिए ध्यान में जाने से पहले और अब में कितना फर्क पड़ा है।

बीमार' अन्‍ना नहीं आएंगे दिल्‍ली



रालेगण सिद्धि. भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत लोकपाल कानून की मांग कर रहे समाजसेवी अन्ना हजारे अब दिल्‍ली नहीं आएंगे। खराब स्‍वास्‍थ्‍य के चलते अन्‍ना हजारे का दौरा रद्द हुआ है। लेकिन सूत्रों के हवाले से आ रही खबर के मुताबिक टीम अन्‍ना के सदस्‍य अरविंद केजरीवाल रालेगण सिद्धि जाएंगे। वह अन्‍ना को दिल्‍ली आने और चुनाव प्रचार में हिस्‍सा लेने के लिए मनाने की कोशिश करेंगे।

अन्‍ना का ताज़ा बयान विवादों में घिरता दिख रहा है। अपने गांव रालेगण सिद्धि में जल्द रिलीज होने वाली फिल्म 'गली गली में चोर है' को देखने के बाद फिल्म के कलाकारों से मुलाकात के दौरान अन्ना ने कहा, ' जब व्यक्ति की सहन की ताकत खत्म हो जाती है तो आपके सामने जो भी भ्रष्टाचारी हो, उसे तमाचा (थप्पड़) जड़ दिया जाए तो दिमाग ठिकाने आ जाता है। अब यही एक मात्र रास्ता बच गया है।'

खुद को गांधीवादी विचारधारा का अनुयायी मानने वाले अन्ना ने हमेशा ही अहिंसा में यकीन रखने की बात की है। लेकिन अन्ना के ताज़ा बयान ने उनके विरोधियों को उनकी आलोचना का नया हथियार दे दिया है।

अन्‍ना के बयान पर सपा नेता मोहन सिंह ने कहा कि इसका सबसे ज्‍यादा असर टीम अन्‍ना पर ही होगा और उन्‍हें ही सबसे ज्‍यादा थप्‍पड़ पड़ेंगे। सबसे अधिक जूते और चप्‍पल अन्‍ना के सहयोगियों पर फेंके गए हैं लेकिन इससे भी उन्‍होंने सबक नहीं लिया। वहीं, सपा नेता आजम खान ने कहा है कि अन्‍ना का लोकतंत्र में भरोसा नहीं है। उन्‍होंने कहा कि जब कमांडर ही हिंसा की बात करता है तो टीम क्‍या करेगी।

भाजपा ने अन्‍ना के बयान को अलोकतांत्रिक करार दिया है। भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने कहा, 'मैं इससे सहमत नहीं हूं। एक स्‍वस्‍थ लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में मर्यादाओं का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अन्‍ना के आंदोलन का समर्थन करता हूं लेकिन आंदोलन में मर्यादाओं का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।'

अन्‍ना की मुहिम में उनका साथ देने वाले योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा, ‘थप्‍पड़ से नहीं, वोट की मार से भ्रष्‍टाचारियों का बहिष्‍कार करना चाहिए।’
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘गांधीवादी के तौर पर अन्‍ना की छवि धूमिल हो गई है और ऐसा उनके बीजेपी-आरएसएस के साथ संबंधों की वजह से हुआ है। मीडिया ने अन्‍ना को खड़ा किया और अब उसी से अन्‍ना को नीचे भी गिराया। अन्‍ना का चुनावों पर कोई असर नहीं है।’ दिग्विजय ने कहा, ‘मैं अन्‍ना को गांधीवादी मानता था। मैं उन्‍हें अहिंसा का पुजारी मानता था। मेरे मन में उनके प्रति काफी प्रतिष्‍ठा थी लेकिन जब से उन्‍होंने ऐसा बयान दिया है, मेरे मन में उनके प्रति इज्‍जत कम हुई है। संगत का असर बुरा होता है। अन्‍ना जब से संघ और बीजेपी के साथ आए हैं तब से उनके विचार बदल गए हैं। संघ और बीजेपी हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ावा देते रहे हैं। अन्‍ना भी अब वैसा ही सोचने लगे हैं।’

कांग्रेस प्रवक्‍ता शकील अहमद ने कहा कि अन्‍ना सबसे पहले अपने सहयोगियों अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी को थप्‍पड़ मारें। गौरतलब है कि केजरीवाल और बेदी के दामन पर भी भ्रष्‍टाचार के छींटे पड़े। केजरीवाल पर आरोप लगे कि सरकारी सेवा में रहते हुए वह राजनीति करते रहे और एनजीओ के लिए पैसा बटोरते रहे। केजरीवाल पर गैर सरकारी संगठन इंडिया अंगेस्ट करप्शन (आईएसी) से सम्बंधित 70 से 80 लाख रूपए गलत तरीके से निकालने का आरोप लगा। बेदी पर आरोप लगा कि वह सेमीनार में हिस्‍सा लेने के लिए संस्थानों और एनजीओ से अपनी हवाई यात्रा का पूरा किराया वसूलती थीं जबकि वीरता पदक हासिल करने के चलते उन्हें खुद का टिकट कम कीमत पर मुहैया होता था।

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