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26 जनवरी 2012

मतदाता और सांसद विधायकों के लियें वोट डालने की अनिवार्यता कानून की आवश्यकता

विश्व के सबसे बढ़े लोकतंत्र भारत में इन दिनों भजपा के नेता लालकृष्ण अडवानी ने राजनीति और उम्र के आखरी पढाव में आकर जो समझा वोह यह है के देश में सभी को वोट डालने के लियें पाबंदी का कानून बनना चाहिए ..यह सही है के लाल कृष्ण आडवाणी को सत्ता से लेकर विरोध में रहने के कारण राजनीती के कटु और व्यवहारिक अनुभव है उन्होंने रूपये लेकर सांसदों को वोट डालते देखा है तो ...अडवानी ने एक कडवा सच रूपये लेकर सांसदों और विधायकों को किसी भी बिल के पारित होने और किसी भी सरकार को बचाने के लियें सदन से बिना वोट डाले बाहर जाते देखा है बात सही है देश में सही निर्वाचन और भ्रष्टाचार की समाप्ति के लियें पहला कदम देश में सभी लोगों के लियें वोट डालना जरूरी करना होगा ..विश्व के कई राष्ट्रों में मतदान नहीं करने वाले लोगों को दंड देने का प्रावधान है उन्हें सरकारी सुविधाएँ नहीं दी जाती है ,,हमारे देश में यह व्यवस्था इसलियें भी और ज़रूरी हो जाती है के यहाँ वोटों का प्रतिशत हमेशा कम रहता है और इस कम प्रतिशतता के कारण ही हमारे देश में अन चाहे लोग निर्वाचित होकर आ रहे है जो लोग सरकार को पसंद नहीं करते वोह वोट डालने नहीं जाते और जो वोट डालने जाते है वोह पार्टी या बाहुबलियों से प्रभावित होकर बिना किसी राष्ट्रीय सोच के वोट डाल देते है कथित रूप से निर्दलियों को खड़ा कर वोटों की गणित बिगाड़ कर भी अनचाहे प्र्त्याक्शियों को निर्वाचित किया जाता है और फिर यह अनचाहा निर्वाचित प्रतिनिधि खरीद फरोख्त की राजनीती के बाद उस पार्टी की सरकार बनवा देता है जिसे उसके मतदाता पसंद नहीं करते ...तो जनाब यह तो सही है के मतदान एक लोकतंत्र का ऐसा उत्सव है के इस दिन सभी लोगों को डंडे के बल पर घर से बाहर निकाल कर मतदान स्थल तक बुलाना चाहिए फिर वोह वोट किसे भी डालें वोह प्र्त्याक्शियों को नापसंद करने की टिपण्णी डाले लेकिन उनका वोट जरुर डले ....सही लोकतंत्र इन हालातों में ही जिंदा रह सकेगा .इतना ही नहीं सांसदों और विधायकों..राज्यसभा सदस्यों को भी सदन में आवश्यक रूप से उपथित रहने और हर मामले में वोट डालने की अनिवार्यता का कानून होना चाहिए और इसके उलंग्घन पर उनकी सदस्यता बर्खास्त करने के प्रावधान होने चाहिए ..लेकिन दोस्तों अगर ऐसा कहा तो सांसद लोग गुंडागर्दी पर उतर आयेंगे और अन्ना को दी गयी धमकी की तरह भगा भगा कर घरों में घुस कर मारने पीटने की धमकियां देंगे क्योंकि देश में अभी लोक्न्त्र नहीं गुंडा तन्त्र और भ्रस्ठ तन्त्र ही हावी है ....... ॥ देश में मनमोहन सिंह जी का नाम असम की मतदाता सूचि में है लेकिन उन्हने वोट नहीं डाला अब एक प्रधानमन्त्री और उनकी पत्नी अगर ऐसी उपेक्षा करें तो लोकतंत्र का क्या होगा ..राजस्थान में केन्द्रीय मंत्री सी पी जोशी विधानसभा में एक वोट से हारे थे और यहाँ उनकी पत्नी खुद अपना वोट डालने नहीं गयी थीं अगर वोह वोट डाल देतीं तो शायद सी पी जोशी जो एक वोट से हारे है आज चुनाव जीत जाते और मुख्यमंत्री भी बन जाते लेकिन एक वोट की कीमत इस लोकतंत्र में केसी है यह कई बार जान्ने का अवसर मिला है ........... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

ऐसे परोसें खाना तो नहीं लेनी पड़ेगी पेन-किलर


आयुर्वेद सदियों से भोजन या अन्न को जीवन के लिए श्रेष्ठ मानता रहा है और हमने यह सुना भी है कि निरोगी तन के लिए निरोगी अन्न भी जरूरी है- और यदि यह प्यार से बनाया,परोसा और खिलाया जाय तो क्या कहने, इसलिए हमने अक्सर घर के खाने में ये सभी गुण बताये गए हैं, अब वैज्ञानिकों की मानें तो यदि भोजन प्यार से बनाया और परोसकर खिलाया जाय, तो यह दर्द को भी दूर करने में मददगार होता है। अब वैज्ञानिकों ने ठीक उसी बात को दुहराया है, जिसे सदियों से हमने अपनी दादी-नानी-मां और पत्नी द्वारा रसोई में बनाए गए खाने से प्राप्त किया है। शायद यह हमारी परम्परा और संस्कृति क़ी शोधपरक तकनीक रही है, जिसे हमारे पीछे-पीछे आज के वैज्ञानिक विभिन्न शोधों द्वारा पुष्ट कर रहे हैं, यूं ही नहीं हम एक महान देश की संस्कृति के संवाहक कहे जाते हैं।

यूनिवर्सिटी आफ मेरीलैंड के शोधकर्ताओं क़ी मानें तो दर्द से पीडि़त रोगियों को यदि प्यार से बनाकर भोजन खिलाया जाय ,तो वह उसके दर्द को भी दूर करने में सहायक होता है। वैज्ञानिक कर्ट ग्रे का कहना है, कि हमारी भावनाएं इस दुनिया के भौतिक अनुभवों पर अच्छा या बुरा प्रभाव डालती हैं, चलो देर से ही सही अब वैज्ञानिक आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को घुमा फिराकर ही सही ,मान तो रहे ही हैं । उनका कहना है ,अच्छी भावना दर्द को घटाने,खुशियां बढाने और स्वाद को बढाने में सहायक होती है। यह अध्ययन जर्नल सोशल साइकोलोजिकल एंड पर्सनालिटी साइंस में प्रकाशित हुआ है।

गुप्त नवरात्रिः आयु व बल देती है मां कुष्मांडा

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माघ मास की गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन (27 जनवरी, शुक्रवार) की प्रमुख देवी मां कुष्मांडा हैं। देवी कुष्मांडा रोगों को तुरंत की नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है।

मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कुष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्रजागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
ध्यान मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
अर्थात: देवी कुष्मांडा मां दुर्गा का चौथा स्वरूप है। ऐसी मान्यता है कि इस ब्रह्मांड को मां कुष्मांडा ने मंद मुस्कान से उत्पन्न किया है। इसी वजह से इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। आठ भुजाओं वाली कुष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।

कैद में हैं भगवान, जमा करने होंगे 45 लाख तब होगी जमानत


आरा। देश का कोई वीर सपूत मेरी भी जमानत ले लो। कोई मुझे इस जंजीर से छुटकारा दिला दो। ये पुकार किसी मानव का नहीं यह बंधनों को काटने वाले भगवान हनुमान की हो सकती है, क्योंकि वे अपने मंदिर से निकल कर पुलिस थाने के हाजत में बंद हैं।
आरा शहर से 15 किलोमीटर उत्तर कृष्णगढ़ थाना क्षेत्र के गुंडी ग्राम में स्थित करीब दो सौ वर्ष पुराना श्री रंग जी के मंदिर में अष्टधातु की 17 मूर्ती विरजमान थी। दक्षिण भारतीय शैली से निर्मित इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सूर्य की पहली किरण सीधे मंदिर में प्रवेश कर भगवान के चरणों को स्पर्श करती है। जिसे देखने के लिए देश के कोने-कोने के लोग आते रहे है।
मूर्ती की चोरी
प्राप्त जानकारी के अनुसार सन् 1970 के दशक से इस मंदिर में भगवान की 6 बार मूर्ती चोरी हुई। लेकिन सन् 1994 में जब भगवान हनुमान और बरबर मुनीस्वामी की मूर्ती चोरी हुई तब से भगवान की मूर्ती बरामद होने के बाद आज तक भगवान कृष्णगढ़ थाने के हाजत में ही बंद है।
मंदिर निर्माण के वंशज
करीब 200 वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण कराने वाले गुंडी ग्राम निवासी बाबू विष्णुदेव नारायण सिंह के पाँचवें पिढ़ी के वंशज बबन सिंह ने बताया कि 1994 से पहले मंदिर के सुरक्षा जिला प्रशासन के जिम्मे थी। लेकिन सन् 1994 में मूर्ती चोरी जाने के बाद जिलाप्रशासन ने इसकी जिम्मेवारी लेने से इंकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट के द्वारा जारी आदेश में भगवान की कीमती मूर्ती के जमानत लेने के एवज में 45 लाख रूपये का बांड भरना था। वहीं उन्होंने बताया कि पैसे और सुरक्षा के अभाव में मई 2010 को मंदिर बाबा भगवान राम ट्रस्ट को दान दे दिया। वहीं ट्रस्ट के प्रबंधक बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रशासन यदि सुरक्षा की जिम्मेवारी ले तो ट्रस्ट जमानत करा लेगा।
प्रशासन की दलिल
जिला प्रशासन की ओर से ग्रामीण डीएसपी रविश कुमार ने बताया कि जिले में हर मंदिर के लिए अलग से पुलिस जवान देना संभव नहीं है । वहीं उन्होंने कहा कि ग्रामीण लोग एक कमेटी बनाकर भगवान की सुरक्षा की जिम्मेवारी ले तो प्रशासन की ओर से भरपूर सहयोग किया जायेगा।
जमानत में 45 लाख रूपये देने को तैयार है हनुमान मंदिर
इन सब विवादों के बीच धार्मिक न्यास परिसद के अध्यक्ष किशोर कुणाल ने कहा कि हनुमान मंदिर भगवान की जमानत लेने के लिए 45 लाख रूपये भरने की कोर्ट में अर्जी दे चुका है। लेकिन यह तब संभव है जब मंदिर के ट्रस्टी इसके लिए तैयार हो जाय। वहीं उन्होंने कहा कि मैने राज्य सरकार को इस बारे में कई बार पत्र लिख चुका हूं कि मंदिरों की सुरक्षा के बारे में जल्द कोई ठोस पहल नहीं कि गई तो आने वाले समय में एक भी अष्टधातु की मूर्ती नहीं बचेगी।
आम जनता का रोष
मंदिर में भगवान को नहीं होने से आस-पास के ग्रामीणों में काफी रोष है । 70 वर्षीय ग्रामीण शिवाधार सिंह ने बताय कि हाथ में फुल का डलिया लिए सभी इस आशा में प्रतिदिन मंदिर आते है कि किसी दिन कोई ना कोई मेरे आराध्य भगवान का जमानत जरूर ले लेगा । देखिये वो सौभाग्य इस जीवन में देखने को मिलता है या नहीं

आपके लिए अपशकुन होते होंगे चमगादड़, यहां मिला भगवान का दर्जा!

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वैशाली. आमतौर पर चमगादड़ों का नाम आते ही मन में अशुभ आशंकाएं उभरने लगती हैं लेकिन बिहार के वैशाली जिले के सरसई गांव व ऐतिहासिक वैशाली गढ़ में चमगादड़ों की न केवल पूजा होती है बल्कि लोग मानते हैं कि चमगादड़ उनकी रक्षा भी करते हैं।
ऐतिहासिक स्थल वैशाली गढ़ पर इन चमगादड़ों को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। यहां लोगों की मान्यता है कि चमगादड़ समृद्धि की प्रतीक देवी लक्ष्मी के समान हैं।
'चमगादड़ है तो कभी नहीं होगी धन की कमी'

सरसई गांव के बुजुर्ग कमेश्वर यादव का दावा है कि यह भ्रम है कि चमगादड़ अशुभ हैं। उनका दावा है कि चमगादड़ का जहां वास होता है वहां कभी धन की कमी नहीं होती।
उन्होंने कहा, "आज हमारे गांव में लोग घरों में ताले नहीं लगाते, फिर भी किसी के घर में चोरी नहीं होती। ये चमगादड़ यहां कब से हैं, इसकी सही जानकारी किसी को भी नहीं है।"
इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे छात्र नीरज ने बताया, "मध्यकाल में वैशाली में महामारी फैली थी जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। इसी दौरान बड़ी संख्या में यहां चमगादड़ आए और फिर ये यहीं के होकर रह गए। इसके बाद से यहां किसी प्रकार की महामारी कभी नहीं आई।"
सरसई के पीपलों के पेड़ों पर अपना बसेरा बना चुके इन चमगादड़ों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। गांव के लोग न केवल इनकी पूजा करते हैं बल्कि इन चमगादड़ों की सुरक्षा भी करते हैं। यहां ग्रामीणों का शुभकार्य इन चमगादड़ों की पूजा के बगैर पूरा नहीं माना जाता।
वैज्ञानिकों का भी कहना है कि चमगादड़ों के शरीर से जो गंध निकलती है वह उन विषाणुओं को नष्ट कर देती है जो मनुष्य के शरीर के लिए नुकसानदेह माने जाते हैं।
यहां के ग्रामीण इस बात से खफा हैं कि चमगादड़ों को देखने के लिए यहां सैकड़ों पर्यटक प्रतिदिन आते हैं लेकिन सरकार ने उनकी सुविधा के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
सूख गया था तालाब और मर गए थे 200 चमगादड़
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले वर्ष वैशाली गढ़ पर स्थित एक तालाब सूख गया था जिस कारण 200 से ज्यादा चमगादड़ मर गए, तब क्षेत्र के समाजसेवियों ने यहां के तालाब में पानी भरवाया जिससे चमगादड़ों की जान बच सकी।
पर्यटक जैन धर्मावलम्बी डॉ जे.के. प्रसाद ने बताया कि पीपल के चार पेड़ों पर इतनी बड़ी संख्या में चमगादड़ों का वास न केवल अभूतपूर्व है बल्कि मनमोहक भी है लेकिन यहां साफ -सफाई और सौंदर्यीकरण की जरूरत है।
हाजीपुर के प्रखंड विकास पदाधिकारी कुमार पटेल ने कहा कि इस स्थल की साफ -सफाई और सौंदर्यीकरण के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पत्राचार किया गया है।

आंध्र नहीं, कोटा में भी तिरुपति बालाजी, यहां एक भक्त ने चढ़ाई अनोखी भेंट!


कोटा.रावतभाटा रोड स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में किसी अज्ञात भक्त ने 5 लाख का असली हीरा चढ़ाया है। मंदिर के ट्रस्टी विनोद जैन (सर्राफ) ने हीरे के असली होने की पुष्टि की है। जैन के अनुसार हीरे की जांच करवा ली गई है। उसकी बाजार में कीमत करीब पांच लाख रुपए है। भक्त के आग्रह पर मंदिर ट्रस्ट ने हीरे को बालाजी की ठुड्डी में जड़वा दिया है।
मंदिर मैनेजर सुनील गुप्ता ने बताया कि किसी अज्ञात भक्त ने अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर पुजारी तरुण को हीरा भेंट कर उसे बालाजी की ठुड्डी में लगाने का निवेदन किया था। भक्त के आग्रह को स्वीकार करते हुए हीरा तिरुपति बालाजी की ठुड्डी में जड़वा दिया गया है।
हाड़ौती में श्रद्धा का केंद्र है मंदिर :
मां चर्मण्यवती के पावन तट पर मौजीबाबा की गुफा के पास स्थित भगवान तिरुपति बालाजी का मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। पूर्व में भी यहां पर जिन भक्तों की मनोकामना पूर्ण हुई उन्होंने हजारों-लाखों रुपए बिना नाम बताए ही बालाजी को भेंट किए हैं।
मंदिर का निर्माण 1999 से हुआ था प्रारंभ
इस मंदिर का निर्माण सेठ माणकचंद कैलाशचंद सर्राफ चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा श्री कैलाशचंद सर्राफ ने 1999 में प्रारंभ किया था। जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव सन् 2005 के अप्रैल माह में जूनापीठाधीश्वर महामंडलेश्वर 1008 स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज के निर्देशन में हुई थी।

सबकुछ रहा ठीक तो कोटा का यह मंदिर रच देगा इतिहास!


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कोटा.सबकुछ ठीकठाक रहा तो एजुकेशन सिटी के बाद कोटा की ख्याति धार्मिक पर्यटन के लिए भी होगी। यहां थेकड़ा स्थित शिवपुरी धाम में प्रतिष्ठित 525 शिवलिंग के आधार पर मंदिर प्रबंधन ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के लिए दावा किया गया है।


दावा है कि संख्या के आधार पर इतने शिवलिंग देशभर में यहीं पर हैं। कोटा में शिव भक्तों के आराध्य प्रसिद्ध शिवपुरी धाम थेकड़ा को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्डस में शामिल करवाने के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।

अब इसके भौतिक सत्यापन के लिए गिनीज बुक टीम महाशिवरात्रि पर आएगी। नागा संत सनातनपुरी महाराज दावा है कि विश्व में केवल थेकड़ा ही एकमात्र स्थान है, जहां एक ही कतार में 525 शिवलिंग स्थापित हैं।

प्रोफाइल भेजी, सत्यापन होगा

सनातनपुरी महाराज ने बताया कि वर्ल्ड रिकॉर्ड के दावे के लिए प्रोफाइल तैयार कर गिनीज बुक की वेबसाइट पर आवेदन सबमिट कर दिया है। आवेदन के साथ गिनीज बुक की वेबसाइट पर भेजे गए दस्तावेजों के सत्यता की जांच हो चुकी है, अब केवल भौतिक सत्यापन शेष रहा है। जिसके लिए यहां महाशिवरात्रि पर टीम आएगी।

कैसे होता है चयन

रिकॉर्ड के लिए संबंधित प्रोफाइल व दस्तावेज की प्रामाणिकता सिद्ध होने व दावा सही होने पर भेजने वाले के ई-मेल पर सूचना मिल जाती है। बाद में प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है। दावा पुख्ता नहीं होने पर इसे निरस्त मान लिया जाता है।

दर्ज होने पर क्या मिलता है

गिनीज बुक में संबंधित का दावा सही होने पर स्थान व अन्य सामग्री को विशेष दर्जा दे दिया जाता है। संबंधित रिकॉर्ड की अलग से विश्वस्तरीय पहचान बन जाती है।

हिटलर जैसी संतान के लिए लोग यहां आते हैं !

कश्मीर हम अपने पाठकों के लिए जम्मू-कश्मीर के इतिहास, विवाद, वहां के रीति रिवाज सब कुछ बताने का सीरिज चला रहे हैं। इसके तहत आज हम आपको शुद्ध आर्य रक्त का दुनिया का एक मात्र गांव का दावा करने वाले गांव की सैर कराते हैं ।

शुद्ध रक्त का आग्रह.. यह जिद भीषण नरसंहारों का कारण बनी है। दुनिया को तबाही के रास्ते पर ढकेलने वाले नाजी तानाशाह की भी यही जिद थी कि उसके देश में शुद्ध रक्त के लोग ही रहेंगे। इतिहास हिटलर को कभी भूल नहीं सकता। माफ भी नहीं कर सकता। ‘थर्ड रायख’ से लेकर विभाजित जर्मनी तक दशकों तक दुनिया ने इस तानाशाह की जिद को भोगा है। आखिर ये शुद्ध रक्त है क्या? लेह से लगभग 180 किमी दूर गारकुन गांव में जब मैं पहुंची तो मुझे बताया गया यह शुद्ध आर्य रक्त के लोगों का गांव है। क्षणभर में शुद्ध रक्त के दुराग्रहों का दुर्दात इतिहास मेरे जेहन में कौंध गया।


मेरे साथ बैठे विदेशी एजेंसी के फोटोग्राफर की नजर सिर पर फूल-पत्ते और आभूषण सजाए एक महिला पर पड़ी। उसने गाड़ी रोकी और उसका फोटो लेने लगा। लेकिन महिला ने मुंह फेर लिया। शर्म से नहीं, बल्कि जिद से। बोली, पहले पैसे दो..। मैंने 10 रुपए का नोट बढ़ाया। जैसे-तैसे तस्वीरें उतारीं। पास ही एक लड़का खड़ा था। बोला, आपको ऐसे और फोटोजेनिक चेहरे गांव में मिल सकते हैं। वह हमें झाड़ियों के बीच में से एक पगडंडी से होते हुए गांव के भीतर ले गया। चारों ओर सेब, कच्चे अखरोट और खूबानी से लदे दरख्त। पत्थर-गारे से बने दोमंजिला मकान। ताषी नामगियाल का घर यहीं था। कारगिल युद्ध में घुसपैठ की जानकारी उन्हीं ने दी थी। उस दिन ताषी के घर जलसा था। पूरा गांव उन्हीं के घर इकट्ठा हुआ था। एक कमरे में गांव के बुजुर्ग जमा थे और छंब (स्थानीय शराब) का लुत्फ ले रहे थे।


ताषी ने तफसील से बताया कि गारकुन, दारचिक, हनू और डाह, ये चार ऐसे गांव हैं, जहां बसने वाले लोग स्वयं को आर्यो का वंशज मानते हैं। गांव में जाने के लिए बाहरी लोगों को बाकायदा प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। परंपरागत और रूढ़िवादी होने के बावजूद इन गांवों के रहवासी कुछ मायनों में खुले विचारों के भी हैं। प्रेम विवाह होते हैं, लेकिन सिर्फ अपनी नस्ल के लोगों से। ये गांव विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। कहते हैं कुछ साल पहले जर्मन महिलाएं आर्य नस्ल की संतान की ख्वाहिश मन में लिए यहां आई थीं। शायद वे हिटलर जैसी ही कोई संतान जनना चाहती थीं। हालांकि ये लोग अपनी ही नस्ल में वैवाहिक संबंध स्थापित करते हैं। माना जाता है कि दूसरी नस्ल में विवाह संबंध इनके लिए हानिकारक हो सकते हैं। यहां आने वाले विदेशियों में पर्यटक ही नहीं, शोधार्थी भी शामिल हैं। आर्यो के बारे में अनेक शोधें हुई हैं। बहुत सिद्धांत गढ़े गए हैं। दयानंद सरस्वती और लोकमान्य तिलक ने भी आर्यो के बारे में लिखा है।


लेकिन मैं गारकुन को भुला नहीं पाती। दिमाग अब भी शुद्ध रक्त के मिथक में उलझा हुआ है। अनगिनत युद्धों और विप्लवों को जन्म दिया है इस शुद्धतावादी आग्रह ने। आखिर क्या होता है शुद्ध रक्त? कुछ मानवविज्ञानियों और इतिहासकारों का मानना है कि मध्य एशिया में गौरवर्ण, अच्छे-खासे कद, उन्नत भाल और लंबी नाक वाली ऐसी कौम हुई थी, जिसे अपनी जातिगत श्रेष्ठता पर अभिमान था। आर्य शब्द का अर्थ ही होता है श्रेष्ठ। ये आर्य भारत आकर सात नदियों के बीच स्थित प्रदेशों में बसे, जिसे आर्यावर्त कहा गया और आर्य संस्कृति भारतीय संस्कृति का पर्याय बन गई। मध्य एशिया से निकलकर इस नस्ल के लोग भारत के अलावा यूरोप की ओर कूच कर गए थे। हिटलर का मानना था कि आर्य नस्ल जर्मनी आई थी और उनका रक्त सबसे शुद्ध था। उसी हिटलर जैसी संतान की चाह लिए जर्मन महिलाएं आज भी यहां आना चाहती हैं, इतिहास के पन्नों पर दर्ज जिद के इतने भीषण परिणामों के बावजूद।

लोग क्यों करते हैं आत्महत्या, यह है इसके पीछे का 'राज'


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बीते दस साल में 15 से 24 साल के युवाओं में आत्महत्या के मामले 200 प्रतिशत तक बढ़े हैं। इसके तेजी से बढ़ने के पीछे अब तक केवल आर्थिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन कई रिसर्च में खुलासा हुआ कि युवाओं में इसकी बड़ी वजह स्कूल और परिवार का दबाव है।

एजुकेशन हब होने के कारण यहां देशभर के छात्र-छात्राएं शिक्षा लेने आते हैं और इसी वजह से यहां ऐसे प्रकरण ज्यादा सामने आ रहे हैं।

डॉ. एमएल अग्रवाल,कोटा. मैं एमबीएस अस्पताल कोटा के मनोचिकित्सा विभाग का पूर्व विभागाध्यक्ष हूं। कोटा में मुझे आत्महत्या के बड़े कारण मानसिक दबाव, मानसिक रोग व पारिवारिक झगड़े लगते हैं।

मैं अब तक सैकड़ों लोगों के फोन कॉल्स अटेंड कर चुका हूं, जो आत्महत्या करने जा रहे थे। कोई भी आत्महत्या करने वाला रातों रात इसका इरादा नहीं करता। युवा तो इसके लिए पहले प्लानिंग भी करते हैं। यहां तक कि वे कुछ दिन पहले से ही मैं अब शिकायत नहीं करूंगा.., अब नहीं आऊंगा.., मैं चला जाऊंगा.., जैसे संकेत भी देते हैं।

हालांकि यह संकेत उनके साथ रहने वाले मित्रों या परिजनों को पता चलते हैं। कई फोन कॉल्स पर तो यह पता चलता है कि आत्महत्या का कारण इतनी छोटी बात है, जिसे मात्र शेयर करने से हल किया जा सकता है। यदि इन बातों की तरफ ध्यान दिया जाए, तो आत्महत्या का इरादा बदला जा सकता है।

युवाओं का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रहने के कारण भी वे असफल होने पर आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं। माता पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे हर विद्यार्थी को एक ही तराजू में तौलकर न देखें। बच्चे को उसकी रुचि के विपरीत सब्जेक्ट दिलाने का निर्णय भी उसे सुसाइड की ओर ले जा सकता है।

आत्महत्या का भी है मनोविज्ञान

आत्महत्या के मानसिक, सामाजिक, साइकोलॉजिकल, बायोलॉजिकल एवं जेनेटिक कारण होते हैं। जिन परिवारों में पहले भी आत्महत्या हुई है, उनके बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका है। रिसर्च में सामने आया कि जिनमें आत्महत्या के जीन होते हैं, उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं। इससे बच्चे या व्यक्ति का मानसिक संतुलन अव्यवस्थित हो जाता है।

इसके कई कारण होते हैं जैसे तनावपूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग इत्यादि। जिन बच्चों में आत्महत्या के बारे में सोचने की आदत (सुसाइडल फैंटेसी) होती है, वही आत्महत्या ज्यादा करते हैं। निजात के लिए आत्महत्या के कारण उससे ग्रसित मरीज के लक्षण एवं भविष्य में उसकी पुनरावृति न हो, इसका भी ध्यान रखा जाए।

युवा वर्ग


युवावस्था संक्रमण काल है, जिसमें युवाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर से कॅरियर, जॉब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमेंट, भविष्य की पढ़ाई आदि।

जब वह इस अवस्था में आता है, तो बेरोजगारी का शिकार हो जाता है और भविष्य के प्रति अनिश्चितता बढ़ जाती है। अपरिपक्वता के कारण कई बार परेशानियां आती हैं। जिससे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है।

इन सब परिस्थितियों से वह जैसे तैसे निकलता है तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाता है। फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक व नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीर धीरे आत्महत्या की तरफ प्रेरित करता है।

युवक आत्महत्या के बारे में ज्यादा बात करने लगता है। कई बार आत्महत्या करने की कोशिश करता है और सिगरेट, शराब या अन्य नशा ज्यादा करता है। ऐसा व्यक्ति बहुत ज्यादा दुखी रहने लगता है और अनिद्रा का शिकार हो जाता है।

ऐसे लक्षण होने पर बगैर देर किए डॉक्टर से संपर्क करें। व्यक्ति को अकेला न छोड़ें और उसे हर प्रकार से सहयोग दें। उसके पास दवाइयां न छोडें और कोई धारदार हथियार न रखें। कोई पतली रस्सी या ब्लेड भी यहां वहां न पड़ी रहने दें।

इलाज के बाद भी उनको देखरेख में रखें, क्योंकि वे आत्महत्या का प्रयास दोबारा भी कर सकते हैं। अगर वह काम पर जाना बंद कर दें और बात बात पर चिढ़ने लगें तो उसके दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाने की कोशिश करें। जरूरत पड़े तो स्वयं उसके कार्यालय या स्कूल जाकर बात करें।


डॉ. चंद्रशेखर सुशील,कोटा. मैं मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में मनोचिकित्सा विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हूं। मैं पिछले 21 साल से मनोचिकित्सा क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं। स्कूल की किशोरावस्था में कॉपी केट सुसाइड के केस ज्यादा होते हैं। इस अवस्था में एक साथ ग्रुप में रहने वाले छात्र-छात्राओं में एक साथ आत्महत्या करने के मामले सामने आते हैं।

ऐसे मामलों में पूरे बच्चों के पूरे ग्रुप के अवसाद का एक ही कारण होता है। ऐसे में एक के सुसाइड करने पर अन्य को भी अवसाद की स्थिति से निकलने का वही रास्ता नजर आता है। वहीं ईगोस्टिक सुसाइड में वे युवा आत्महत्या करते हैं, जो किसी ग्रुप में नहीं होते।

एंट्रयूस्टिक सुसाइड में किसी ग्रुप विशेष के लोगों में आत्महत्या करने की घटनाएं होती हैं। वहीं एक कारण ऐसा भी है, जिसमें तलाक, प्यार में नाकामी, परीक्षा में फेल होना जैसे किसी कारण विशेष से प्रभावित होने वाले लोग आत्महत्या करते हैं।

पुरुष अपने तनाव के कारणों को किसी से शेयर नहीं करते, इसलिए उनके सफल आत्महत्या करने के मामले महिलाओं से चार गुना ज्यादा होते हैं, वहीं महिलाएं अपनी बात ज्यादा शेयर करती हैं, जिससे उनके सुसाइड की कोशिश करने पर बचा लिया जाता है।

उनके कोशिश करने के मामले पुरुषों से चार गुना ज्यादा होते हैं। किशोर व युवाओं की मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है।

महत्वपूर्ण तथ्य

> आत्महत्या, दुनिया में मौत का दसवां सबसे बड़ा कारण है।

> टीनएजर और 35 वर्ष से कम आयुवर्ग में आत्महत्या, असमय मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है।

> हर साल दुनिया में एक से दो करोड़ लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी मौत नहीं होती।

> आत्महत्या पर पहली संस्थागत रिसर्च 1958 में लॉस एंजिल्स में हुई थी।

> दुनियाभर में आत्महत्या करने वालों में से 30 फीसदी जहरीले कीटनाशक को चुनते हैं।

> अमरीका में आत्महत्या करने वालों में से 52 फीसदी पिस्टल या रिवॉल्वर का इस्तेमाल करते हैं।

> सैन फ्रांसिस्को गोल्डन गेट, टोरंटो ब्लूर स्ट्रीट वायाडक्ट, जापान का एओकिगाहारा जंगल और इंग्लैंड के बीची हेड इलाके में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है।

1937 में निर्मित गोल्डन गेट से 1200 से अधिक लोग कूदकर आत्महत्या कर चुके हैं।

स्कूल-कोचिंग के छात्रों में यह प्रमुख कारण

> बच्चे का पहली बार माता-पिता से अलग रहना।

> सब्जेक्ट का चुनाव कर पढ़ाई करना।

> बच्चों से परिजनों की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ जाना।

> स्कूल या कोचिंग में समय प्रबंधन का गलत होना।

> बिना नींद के लम्बे समय तक जागना, पढ़ाई करना।

> बच्चों से दूर होने पर माता-पिता होते हैं शिकार।

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आडवाणी ने भी कहा- वोटिंग को करो अनिवार्य


नई दिल्‍ली. भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने गुरुवार को गणतंत्र दिवस पर अनिवार्य मतदान की वकालत कर एक नई बहस छेड़ दी है। आडवाणी ने कहा कि देश में इस लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन नहीं है। उधर, सरकार और दूसरे दलों को आडवाणी का यह 'आइडिया' रास नहीं आया है।

केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है। आडवाणी को अभी इस पर बात नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि किसी से वोट जबरन नहीं डलवाया जा सकता। समाजवादी पार्टी ने कहा कि देश में इससे भी जरूरी कई मुद्दे हैं।

यहां अपने आवास पर झंडारोहण समारोह के मौके पर आडवाणी ने देश के सभी नागरिकों को वोटर के रूप में रजिस्टर्ड करने की चुनाव आयोग की योजना का समर्थन किया। साथ ही उन्‍होंने कहा कि यह भी तय करना होगा कि जो लोग रजिस्टर्ड होते हैं, वे वोट डालने भी आएं। उन्होंने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि वोटिंग का प्रतिशत बढ़ना चाहिए और यदि संभव हो तो यह सौ फीसदी होना चाहिए।

आडवाणी ने कहा, 'मुझे अनिवार्य वोटिंग भारत में कोई नामुमकिन लक्ष्य नहीं लगता। जनता को प्रोत्साहित करना होगा कि उन्हें लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है।' उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार अब मौलिक अधिकार बन गया है। ऐसे में वोटिंग नागरिकों की मौलिक जिम्मेदारी होनी चाहिए ताकि ईमानदार प्रशासन सुनिश्चित किया जा सके।

बीजेपी संसदीय दल के अध्यक्ष आडवाणी ने कहा कि चुनाव आयोग का चुनाव सुधार में अहम रोल है, लेकिन राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों को भी इस काम में लगना होगा।

रति को वरदान


दोहा :
* अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87॥
भावार्थ:-हे रति! अब से तेरे स्वामी का नाम अनंग होगा। वह बिना ही शरीर के सबको व्यापेगा। अब तू अपने पति से मिलने की बात सुन॥87॥
चौपाई :
* जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥1॥
भावार्थ:-जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा॥1॥
* रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी॥
देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए॥2॥
भावार्थ:-शिवजी के वचन सुनकर रति चली गई। अब दूसरी कथा बखानकर (विस्तार से) कहता हूँ। ब्रह्मादि देवताओं ने ये सब समाचार सुने तो वे वैकुण्ठ को चले॥2॥
* सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥
पृथक-पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥3॥
भावार्थ:-फिर वहाँ से विष्णु और ब्रह्मा सहित सब देवता वहाँ गए, जहाँ कृपा के धाम शिवजी थे। उन सबने शिवजी की अलग-अलग स्तुति की, तब शशिभूषण शिवजी प्रसन्न हो गए॥3॥
* बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू॥
कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी॥4॥
भावार्थ:-कृपा के समुद्र शिवजी बोले- हे देवताओं! कहिए, आप किसलिए आए हैं? ब्रह्माजी ने कहा- हे प्रभो! आप अन्तर्यामी हैं, तथापि हे स्वामी! भक्तिवश मैं आपसे विनती करता हूँ॥4॥

कुरान का संदेश


एक अद्भुत इंसान, जो दिखता था हाथी जैसा

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जन्म से ही शारीरिक विकृतियों के शिकार जोसेफ मेरिक(1862-1890) को ब्रिटेन में एलीफैंट मेन के नाम से जाना जाता था। उसका शरीर इतना विकृत था कि कमोबेश वह हाथी जैसा दिखता था। वह लेट नहीं पाता था और उसे बैठे-बैठे सोना पड़ता था। लंदन हॉस्पीटल में जब उसका पहला प्रदर्शन किया गया तब वह लंदन में बहुत मशहूर हो गया।



जोसेफ जब 11 वर्ष का था, उसकी मां मर गयी। उसके पिता ने दूसरी शादी की और उसके घरवालों ने उसे त्याग दिया। उसे अपना पेट पालने के लिए रोजगार पाने में काफी परेशानी हुई। एक वर्कहाउस में चार साल काम करने के बाद 1884 में जोसेफ ने एक शोमेन सैम टोर्र से बात किया। सैम ने एक ग्रुप बनाया और जोसेफ का तमाशा लंदन में दिखाया जाने लगा।

एक सर्जन फ्रेडरिक ट्रेव्स की नजर जोसेफ पर पड़ी। उसने जोसेफ को मेडिकल जांच के लिए बुलाया और उसकी तस्वीरे खींची। जोसेफ का शो लंदन में जहां होता था उस दुकान को पुलिस के द्वारा बंद कर दिया गया, तब उसका मैनेजर शो विदेशों में करने लगा।



बेल्जियम में उसके मैनेजर ने उसके साथ धोखा किया। वह उसके पैसे लेकर भाग गया और उसे ब्रुसेल्स में छोड़ दिया। जोसेफ किसी तरह लंदन लौटने में कामयाब रहा लेकिन वह किसी से बात नहीं कर पाता था। पुलिस के हाथ वह लगा और जोसेफ को सर्जन फ्रेडरिक ट्रेव्स को सौंप दिया। फ्रेडरिक उसे लंदन हॉस्पीटल ले गया और बाकी जिंदगी जोसेफ फिर वहीं रहा।



फ्रेडरिक रोज उससे मिलने जाता था और दोनों गहरे दोस्त बन गए। 1890 में जोसेफ की मौत हो गई। जोसेफ मेरिक पर 1980 में एक सिनेमा बना जिसका नाम था, एलीफैंट मेन।

गूगल ने यूजर्स को भेजा फरमान!

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नई दिल्‍ली. दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने अपने उपभोक्‍ताओं को मेल भेजकर अपने सभी उत्पादों की प्राइवेसी सेटिंग में बड़े बदलाव करने की घोषणा कर दी है। इनमें जीमेल, यू-ट्यूब और गूगल सर्च भी शामिल हैं। नई प्राइवेसी सेटिंग 1 मार्च से लागू हो जाएंगी।
गूगल ने संदेश में कहा है, ‘1 मार्च, 2012 से नई गोपनीयता नीति और गूगल सेवा की शर्तें प्रभावी होंगी। ऐसा होने के बाद भी यदि आप गूगल का उपयोग जारी रखना चुनते हैं, तो ऐसा आप नई गोपनीयता नीति और सेवा की शर्तें के अधीन करेंगे।’ गूगल के दुनियाभर में 35 करोड़ एक्टिव यूजर्स हैं।

गूगल ने अपने सभी जीमेल उपभोक्‍ताओं को भेजे मेल में कहा है, ‘हम गूगल की 60 विभिन्‍न गोपनीयता नीतियों को छोड़ने वाले हैं और उन्‍हें एक ऐसी नीति से बदलने जा रहे हैं जो बहुत छोटी और पढ़ने में आसान है। हमारी नई नीति एकाधिक उत्‍पादों और फ़ीचर को कवर करती है, जो संपूर्ण गूगल में एक बहुत सरल और सहज अनुभव बनाने की हमारी इच्‍छा को दर्शाती है। यह सामग्री महत्‍वपूर्ण है इसलिए हमारी अपडेट की गई गूगल गोपनीयता नीति और सेवा की शर्तें अभी पढ़ने के लिए कुछ समय दें।’

कंपनी का कहना है कि इससे हमें उपयोगकर्ताओं की रुचि समझने में मदद मिलेगी। साथ ही उपयोगकर्ताओं को भी उनकी पसंद के विज्ञापन ही देखने को मिलेंगे। यदि कोई व्यक्ति जगुआर शब्द गूगल पर सर्च करता है तो कंपनी समझ सकेगी कि उसे कार देखनी है या जानवर। हालांकि उपभोक्ताओं के वकीलों ने नई प्राइवेसी सेटिंग पर विरोध जताया है।

उनका कहना है कि कोई भी उपभोक्ता कभी नहीं चाहता कि उससे संबंधित जानकारियां विभिन्न वेबसाइटों को दी जाएं। हर उपयोगकर्ता चाहता है कि वह इंटरनेट पर जो खोजे उसे वही मिले और उसकी निजता सुरक्षित रखी जाए। साइबर विशेषज्ञ जेम्स स्टेयर ने कहा कि गूगल को भले ही लगता है कि वह इस प्रयास के जरिए उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधा दे पाएगी लेकिन यह नई प्राइवेसी सेंटिंग डराने और खीझ पैदा करने वाली है।

टीम अन्‍ना का वार- नेताओं को क्‍यों नहीं आती शर्म


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रालेगण सिद्धि. फिल्‍म अभिनेता अनुपम खेर ने अन्‍ना हजारे के ‘तमाचे’ वाले बयान का समर्थन किया है। अनुपम खेर ने अन्‍ना हजारे को भारत रत्‍न दिए जाने की भी मांग की है। उन्‍होंने कहा है कि फिल्‍मों में भ्रष्‍ट लोगों को तमाचे पड़ते हैं। अनुपम ने कहा, ‘अमिताभ और रजनीकांत ने अपनी कई फिल्‍मों में भ्रष्‍टाचारियों को तमाचे मारे हैं।’
इस बीच, टीम अन्‍ना ने विवादित प्रशासनिक अधिकारी रोनेन सेन को पद्म पुरस्‍कार देने पर सरकार को आड़े हाथ लिया है। टीम अन्‍ना के सदस्‍य संजय सिंह ने कहा, ‘इन नेताओं को शर्म क्‍यों नहीं आती है।’ गौरतलब है कि रोनेन सेन ने भारतीय सांसदों को हेडलेस चिकन (सिरकटे मुर्गे) कह दिया था जिसके बाद काफी बवाल मचा था। अमेरिका में भारत के राजदूत रहे सेन ने भारत अमेरिकी परमाणु समझौते के विरोधियों को 'हेडलेस चिकन' कहा था। सरकार ने रोनेन सेन को इस साल पद्म भूषण दिए जाने की घोषणा की है।

अन्‍ना हजारे के बड़े प्रशंसक माने जाने वाले अनुपम ने रालेगण सिद्धि जाकर सामाजिक कार्यकर्ता का हाल-चाल पूछा। अनुपम ने अन्‍ना को अपनी नई किताब भी भेंट की (तस्‍वीर में)। गणतंत्र दिवस के मौके पर रालेगण सिद्धि में सैकड़ों गांववालों, स्‍कूली बच्‍चों के बीच अन्‍ना हजारे और अनुपम खेर ने राष्‍ट्रध्‍वज फहराया।

कैसे बना, सहेजा गया और किन इम्तिहानों से गुजरा हमारा गणतंत्र



हम, भारत के लोग.....
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से हम बने गणतंत्र। जिन्होंने संविधान बनाया, उनकी सोच स्पष्ट थी- देश यानी हम, भारत के लोग इसके जरिए आगे बढ़ें। इसके लिए संविधान में संशोधन भी किए गए। कई बार परीक्षा की घड़ी से गुजरे और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से इसे सहेजा.. और आज पूरे 62 बरस का हो गया हमारा गणतंत्र। यह हमारे विकास के लिए है और इसके सच्चे प्रहरी भी हैं हम, भारत के लोग..।

जिन्होंने बनाया गणतंत्र
जब संविधान बनाया तो क्या सोचते थे निर्माता

क्या बनाने वालों ने सोचा था, इतने संशोधन होंगे?

जी, हां। आंबेडकर और नेहरू ने तभी कहा था कि जैसे-जैसे समय बदलेगा उसके अनुरूप संविधान में भी बदलाव करने होंगे।

प्रस्तावना को महात्मा गांधी ने सपनों का भारत कहा
- ऐसा भारत जिसमें गरीब से गरीब व्यक्ति भी यह समझेगा कि यह उसका देश है जिसके निर्माण में उसका भी हाथ है। ..वह भारत जिसमें सभी समुदाय पूर्णरस, समरस होकर रहेंगे। ऐसे भारत में अस्पृश्यता के श्राप के लिए या मादक पेय और स्वापक द्रव्यों के लिए कोई स्थान नहीं होगा। स्त्री और पुरुष समान अधिकारों का उपभोग करेंगे। (प्रारूप पर बापू ने यह टिप्पणी 1947 में की थी)
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर ने कहा­
-संविधान सभा में जो चर्चाएं व वाद-विवाद होता है उससे मुझे यह विश्वास मिला है कि ड्राफ्टिंग कमेटी ने जो संविधान बनाया है वह देश की नई शुरुआत के लिए बहुत बेहतर है। यह काम करेगा, यह कठोर है तथा लचीला भी। यह संविधान देश को युद्ध और शांति दोनों वक्त संभाल सकता है।
जवाहरलाल नेहरू ने कहा, संविधान स्थायी नहीं होते
- संविधान स्थायी नहीं होते। इसमें थोड़ा लचीलापन होना चाहिए। यदि इसे कठोर और स्थायी बनाएंगे तो आप राष्ट्र का विकास अवरुद्ध कर देंगे। हम इसे इतना कठोर नहीं बना सकते कि परिवर्तित दशाओं में उसे अनुकूलित न किया जा सके। हम तीव्र गति से होने वाले संक्रमण का अनुभव कर रहे हैं, तो हम जो आज कर रहे हैं वह कल के लिए अनुपयुक्त हो सकता है।
जिन्होंने बढ़ाया गणतंत्र
कमियों को दूर करने और हमारे विकास के लिए किए गए 96 संशोधन, जिनसे समृद्ध हुआ गणतंत्र
क्या बापू की कोई बात भूल गए?
जी, हां। ग्राम स्वराज की बात संविधान में शामिल नहीं थी। महात्मा गांधी ने 1947 में एक जगह लिखा भी, ‘संविधान कैसे कुछ अच्छा कर पाएगा, यदि गांवों को उचित स्थान न मिले? ग्राम पंचायतों की दिशा और विकेंद्रीकरण का जिक्र इसमें नहीं है।’ ...तो 46 साल बाद कैसे याद आया ग्राम स्वराज?
नहीं। याद तो तब भी नहीं आया। राजीव गांधी ने कहा, एक रुपए में से सिर्फ 10 पैसे ही गांव तक पहुंच पाते हैं। यह एक मुहावरा बन गया और बहस शुरू हो गई। आखिर सरकार ने 1993 में 73वां संशोधन किया। पंचायतों को राज दिया और गांवों को सीधे पैसा।
क्या संसद बदल सकती है पूरा संविधान?
जी, नहीं। भले ही संसद को संशोधन का हक है लेकिन संविधान के मूल ढांचे में छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में इसे स्पष्ट भी किया है। ...तो क्या फिर कभी संविधान को बदलने की कवायद हुई?
जी, हां। पूरी तरह तो नहीं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने समीक्षा आयोग बनाया था। उन्होंने कहा, ‘समय आ गया है जब हम संविधान को ‘दूसरे’ नजरिए से देखें।’ आयोग ने 58 संविधान संशोधनों सहित 249 सिफारिशें की थीं। पर कुछ नहीं हुआ।
क्या मतदान की आयु घटाने से कोई प्रभाव पड़ा?
जी, हां। इससे युवा मतदाताओं की संख्या बढ़ गई। राजीव गांधी युवाओं में काफी लोकप्रिय थे। उन्होंने 61वें संशोधन के जरिए मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी। उन्होंने इसकी वजह दुनिया के कई देशों में 18 वर्ष की आयु में मतदान का अधिकार होना बताया। १९८६ में 41 करोड़ मतदाता थे। जो 1989 में बढ़कर 49 करोड़ हो गए। 2011 में 3.83 करोड़ नए मतदाता जुड़े।
जिन्होंने सहेजा गणतंत्र
संविधान को कोर्ट की इन व्याख्याओं ने सहेजा.... क्या आरक्षण देने की कोई सीमा है?
जी, हां। सीमा तो है। केंद्र सरकार नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती। हालांकि तमिलनाडु के लिए यह दायरा बढ़ाया गया है। दरअसल, 1951 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि आरक्षण से भेदभाव पर रोक का उल्लंघन होता है। नेहरू सरकार ने संशोधन किया कि किसी तबके की बेहतरी के लिए विशेष प्रावधान किया जा सकता है। संविधान ने दस साल तक आरक्षण की बात की थी। लेकिन यह आज भी जारी है।
क्या केंद्र किसी राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकता है?
सशर्त है। केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद-356 में यह अधिकार सशर्त दिया गया है। 1977 में जनता पार्टी सरकार ने जल्दी चुनाव कराने के लिए राज्य सरकारों को बर्खास्त किया था। कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले की समीक्षा से इनकार किया था। 1994 में बोम्मई मामले में कोर्ट ने कहा कि बदनीयत से या अप्रासंगिक आधार पर राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति का फैसला भी समीक्षा के दायरे में आया। क्या बिना पक्ष सुने गिरफ्तारी अवैध है?
जी, हां। 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी अवधारणा को आधार बनाकर कहा था, किसी की स्वतंत्रता छीनने के लिए प्रक्रिया ‘निष्पक्ष और उचित’ होना जरूरी है।

क्या प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ जोड़ना सही था?
जी, हां। सुप्रीम कोर्ट ने इसके विरोध को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हमारा समाजवाद कम्युनिस्ट नहीं बल्कि आर्थिक व सामाजिक समानता से जुड़ा है। दरअसल, इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया। इसे 42वें संशोधन के तहत प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ के जरिए जोड़ा गया। हालांकि कोर्ट में इसे चुनौती दी गई, जिसे मान्य नहीं किया गया।
क्या संविधान से पहले भी था कोई ‘संविधान’?
प्रस्तावना में कहां से लिया ‘वी, द पीपुल’?
अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत ‘वी, द पीपुल ऑफ अमेरिका’ से हुई है। इसी आधार पर प्रस्तावना की शुरुआत ‘हम, भारत के लोग’ से होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है। संसद उसमें संशोधन कर सकती है। 1858 में ब्रिटिश सम्राट ने कंपनी शासन को खत्म कर दिया। ब्रिटिश संसद ने भारत में शासन चलाने के लिए पहला कानून भारत शासन अधिनियम बनाया। इसमें सभी अधिकार ब्रिटिश क्राउन को ही दिए गए।
इस कानून में भारत की जनता के हक की कोई बात नहीं थी।
कितना पैसा और समय लगा संविधान बनाने में?
6.4 करोड़ रुपए खर्च हुए संविधान बनाने के लिए सभा के सभी 12 अधिवेशनों पर। 165 दिन कार्यवाही चली। 114 दिन बहस हुई। आज संसद की एक घंटे की कार्यवाही पर 25 लाख रुपए खर्च होते हैं। क्या महिलाएं तब भी निर्णयों में शामिल थीं?
389 सदस्य थे संविधान सभा में। इनमें से 12 महिलाएं थीं। देश विभाजन के बाद सदस्य घटकर 299 रह गए थे। सभा में 3.08 प्रतिशत महिलाएं थी। आज लोकसभा में 11.23 प्रतिशत महिलाएं हैं।
जिन परीक्षाओं से गुजरा गणतंत्र

मुश्किल दौर में और आया निखार जनता सर्वोच्च तो कानून क्यों नहीं बना सकती? जनता सर्वोच्च है, लेकिन संविधान के मुताबिक कानून चुने हुए जनप्रतिनिधि ही बना सकते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ पिछले साल जनआंदोलन में यह साबित हुआ। जनलोकपाल लागू करने के लिए लाखों जुटे। सरकार को झुकना पड़ा। जनता के नुमाइंदे कानून बनाने की प्रक्रिया में शामिल भी हुए।
आज इस मामले में जनता अब भी आंदोलन कर रही है। संसद का तर्क रहा कि संविधान के मुताबिक जनता सीधे कानून नहीं बना सकती।
बड़ा कौन, सुप्रीम कोर्ट या संसद?
संसद बड़ी है। शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद ने नया कानून बनाया। शाहबानो को पति से गुजारा भत्ता लेने का हक देते हुए कोर्ट ने कहा कि कानून सबके लिए एक है। राजीव गांधी सरकार ने कानून पास किया।
आज इसी कानून की वजह से मुस्लिम महिलाएं पति से गुजारा नहीं ले सकतीं। यूनिफार्म सिविल कोड आज भी बहस का विषय है।
मौलिक अधिकार बड़े या सरकार?
संविधान कहता है मौलिक अधिकार। इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय संविधान में मिले मौलिक अधिकारों को दबाया था। 42वें संशोधन के जरिए मौलिक अधिकारों पर नीति निर्देशक तत्वों को वरीयता दी गई। दस दायित्व भी जोड़े गए।
अब मौलिक अधिकारों को कोई दबा नहीं सकता। मंत्रिमंडल की लिखित सहमति के बिना राष्ट्रपति आपातकाल घोषित नहीं कर सकेंगे।

ब्रिटिश संसद में हुई कांग्रेस, भारत सरकार की निंदा


लंदन.ब्रिटिश सांसद ने भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की आलोचना की है। हाउस ऑफ कॉमंस में दिए गए भाषण में लेबर पार्टी के ब्रेंट उत्तरी सीट से सांसद बैरी गार्डिनर ने न सिर्फ भारत के अंदरूनी मामलों का जिक्र किया है बल्कि भारतीय दूतावास को भी 'दिशाहीन' करार देते हुए इसके कामकाज की आलोचना की है।

गार्डिनर कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा, 'पार्टी ने भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कदम उठाने से इनकार कर दिया है।' गार्डिनर ने अन्ना के आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा, 'भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाले अन्ना हजारे और उनके समर्थकों पर हमले किए गए और उन्हें सभी पार्टियों के नेताओं ने जानबूझकर परेशान किया गया।'

गार्डिनर ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा, 'अपने भाषण में मैंने भारत की इस बात के लिए आलोचना की है कि यह देश अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार लाने में नाकाम रहा।' माना जा रहा है कि ब्रिटिश सांसद के बयान से भारत और ब्रिटेन के बीच कूटनीतिक संकट खड़ा हो सकता है।

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