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03 फ़रवरी 2012

मुसलमान अमीन खान के खिलाफ, कहा - मंत्रिमंडल से बर्खास्त करें गहलोत!


भीलवाड़ा.अल्पसंख्यक मामलात राज्यमंत्री अमीन खान के अजमेर में दिए बयान के बाद मुस्लिम समाज में विरोध के स्वर मुखर हो उठे हैं। आल इंडिया काजी काउंसिल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य मौलाना हफीजुर्रहमान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से खान को तुरंत मंत्रिमंडल से बाहर करने की मांग की है।

ऐसा नहीं करने पर खान के कार्यक्रमों के बहिष्कार की घोषणा की गई है। मौलाना हफीजुर्रहमान शुक्रवार को जामा मस्जिद में पत्रकारों से बात कर रहे थे। उधर, अल्पसंख्यक विकास मोर्चा ने राज्यपाल शिवराज पाटिल को पत्र भेज कर अमीन खां को तत्काल पद से बर्खास्त करने की मांग की है। शनिवार को आम मुसलमानों की ओर से विरोध भी जताया जाएगा।

मौलाना का कहना है कि खान का बयान शरीयत के खिलाफ है। इससे मुस्लिम समाज आहत हुआ है। खान हमेशा ऐसे बयान देते रहते है जिससे वे खबरों और चर्चा में बने रहे।

खान जब शरीयत के खिलाफ बात कर रहे हैं तो वे कौम और मुल्क के क्या होंगे? एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार अमीन खान को नहीं हटाएगी तो मुस्लिम समाज अपने स्तर बहिष्कार करेगी।

भीलवाड़ा में खान के हर कार्यक्रम का बहिष्कार किया जाएगा। मौलाना ने कहा कि ऐसे में मामले में इमामों को आगे आकर अपनी राय रखनी चाहिए। अजमेर में कई मस्जिदें बंद पड़ी हैं उनकी मरम्मत जरूरी है।

रवि प्रदोष 5 को, जानें इस व्रत की कथा व महत्व


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5 फरवरी को रवि प्रदोष व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से लंबी आयु और बेहतर स्वास्थ्य मिलता है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है-

एक गांव में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्मनिष्ठ पत्नी प्रदोष व्रत करती थी। उनका एक पुत्र था। एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है। बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दु:खी हैं। उनके पास गुप्त धन कहां से आया। चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया। बालक अपनी राह हो लिया।

चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया। तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले। उन्होंने ब्राह्मण बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया। राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारागार में डलवा दिया। उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी। उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा।

सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया। बालक ने राजा को सच्चाई बताई। राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया। उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है। तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं। इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।

कैसे माल्यवान और पुष्पवती को पिशाच योनि से मुक्ति मिली?

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माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया, अजा व भीष्म एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 3 फरवरी, शुक्रवार को है। इस एकादशी के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी, जो इस प्रकार है-

नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक गंधर्व गा रहा था और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी। नृत्य के दौरान ही पुष्पवती माल्यवान पर मोहित हो गई और सभा की मर्यादा को माल्यवान को आकर्षित करने के लिए नृत्य करने लगी। पुष्पवती का नृत्य देखकर माल्यवान सुध-बुध खो बैठा और अपनी सुर-ताल से भटक गया।

यह देखकर इंद्र को बहुत क्रोध आया और उसने उन दोनों को स्वर्ग से वंचित होने व पृथ्वी पर पिशाच योनि में निवास करने का श्राप दे दिया। श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे उस दिन उन्होंने केवल फलाहार किया। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे। ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गए और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया।

इंद्र ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गया और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा? माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप भगवान विष्णु के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए भी आदरणीय है। आप दोनों स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें

छोटे फूल का रामबाण प्रयोग: डायबिटीज और बालों की समस्या को ठीक कर देगा




गुड़हल की कुछ प्रजातियों को उनके सुन्दर फूलों के लिए उगाया जाता है। ये फूल गणेशजी और देवी के प्रिय माने जाते हैं। दक्षिण भारत के मूल निवासी गुड़हल के फूलों का इस्तेमाल बालों की देखभाल के लिए करते हैं। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार सफेद गुड़हल की जड़ों को पीस कर कई दवाएं बनाई जाती हैं। मेक्सिको में गुड़हल के सूखे फूलों को उबालकर बनाया गया पेय एगुआ डे जमाईका अपने रंग और तीखे स्वाद के लिये काफी लोकप्रिय है। आयुर्वेद में इस फूल के कई प्रयोग बताएं गए हैं आज हम भी आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे ही प्रयोग जिन्हें आजमाकर आप भी लाभ उठा सकते हैं।

- गुड़हल का शर्बत हृदय व मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है तथा ज्वर व प्रदर में भी लाभकारी होता है। यह शर्बत बनाने के लिए गुड़हल के सौ फूल लेकर कांच के पात्र में डालकर इसमें 20 नीबू का रस डालें व ढक दें। रात भर बंद रखने के बाद प्रात: इसे हाथ से मसलकर कपड़े से इस रस को छान लें। इसमें 80 ग्राम मिश्री, 20 ग्राम गुले गाजबान का अर्क, 20 ग्राम अनार का रस, 20 ग्राम संतरे का रस मिलाकर मंद आंच पर पका लें। चाशनी शर्बत जैसी हो जाए तो उतारकर दो रत्ती कस्तूरी, थोड़ा अम्बर, और केसर व गुलाब का अर्क मिलाएं।

- मुंह के छाले में गुड़हल के पत्ते चबाने से लाभ होता है।

- मैथीदाना, गुड़हल और बेर की पत्तियां पीसकर पेस्ट बना लें। इसे 15 मिनट तक बालों में लगाएं। इससे आपके बालों की जड़ें मजबूत होंगी और स्वस्थ भी।

- केश काला करने के लिए भृंगराज के पुष्प व गुड़हल के पुष्प भेड़ के दूध में पीसकर लोहे के पात्र में भरना चाहिए। सात दिन बाद इसे निकालकर भृंगराज के पंचाग के रस में मिलाकर गर्म कर रात को बालों पर लगाकर कपड़ा बांधना चाहिए। प्रात: सिर धोने से बाल काले हो जाते हैं।

- सतावरी के कंद का पावडर बनाकर आधा चम्मच दूध के साथ नियमित लें, इससे कैल्शियम की कमी नहीं होगी।

- गुड़हल के लाल फूल की 25 पत्तियां नियमित खाएं। ये डायबिटीज का पक्का इलाज है।

- 100 ग्राम, सतावरी पावडर- 100 ग्राम, शंखपुष्पी पावडर-100 ग्राम, ब्राह्मी पावडर- 50 ग्राम मिलाकर शहद या दूध के साथ लेने से बच्चों की बुद्धि तीव्र होती है।

मालामाल होना है तो सुबह-सुबह ही कर लें ये जरूरी काम, क्योंकि...

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शास्त्रों के अनुसार कई ऐसे दैनिक कार्य बताए गए हैं जिनका सीधा संबंध महालक्ष्मी की कृपा से है। जिस घर में वे कार्य सही तरीके से किए जाते हैं वहां धन का अभाव नहीं रहता है। उस घर में हमेशा धन की देवी महालक्ष्मी का निवास रहता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

प्राचीन काल से ही लोगों को धन का मोह सबसे अधिक रहा है। इसके लिए कठिन परिश्रम किया जाता रहा है। आज भी धन प्राप्ति के लिए सभी कई प्रकार के जतन करते हैं लेकिन कुछ ही लोगों को अपनी मेहनत का पर्याप्त फल प्राप्त हो पाता है। इसके साथ ही घर में यदि पर्याप्त साफ-सफाई न हो तब भी दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन सुबह-सुबह ही पूरे घर की साफ-सफाई हो जाना चाहिए। यदि सुबह देर से झाड़ू लगाई जाती है तो यह शुभ नहीं माना जाता है।

झाड़ू को महालक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है और इससे दरिद्रता रूपी गंदगी को बाहर किया जाता है। जिस घर में सुबह जल्दी साफ-सफाई हो जाती है तो वहां रहने वाले सभी लोगों को उनकी मेहनत का उचित फल अवश्य ही प्राप्त होता है। कार्यों में रुकावट नहीं आती है। घर का वातावरण सकारात्मक बना रहता है। जिससे परिवार के सभी सदस्यों की सोच भी सकारात्मक होती है।

ज्योतिष के अनुसार कई प्रकार के ग्रह दोष बताए गए हैं जिनकी वजह से पैसों की तंगी बनी रहती है। इन अशुभ ग्रहों के प्रभावों को कम किया जा सकता है जिससे पैसों के संबंध में होने वाली परेशानियों भी कम हो जाती है।

दहकते अंगारे पर लगाओ दौड़-भाग जाएगी गंभीर बीमारी

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बांका. मेडिकल साइंस में भले ही आज दुनिया आगे निकल गयी हो, भारत का डंका बज रहा हो लेकिन बिहार के बौंसी प्रखंड के आदिवासियों में अंधविश्वास की जड़ें आज भी गहरी हैं।
पड़ोसी राज्य झारखंड की सीमा पर स्थित सरुआ पंचायत अन्तर्गत भलजोर गांव में दो राज्यों के लगने वाले आदिवासी मेले में बीमारियों को आग के अंगारे पर दौड़ा कर ठीक करने की परंपरा है। बीमारी ठीक हो या नहीं, लेकिन हैरानी की बात है कि आग के अंगारे पर दौड़ने वाले को कुछ भी नहीं होता। इस मेले में बढ़ी संख्या में युवक, प्रौढ़ व महिलाएं भाग लेतीं हैं।

क्या है परंपरा ?

आदिवासी गुरुओं में एक शिवलाल हांसदा के मुतबिक यह परंपरा उनके पुरखों से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि मैदान में दो फीट गड्डा खोद कर उसमें कोयले का दहकता अंगार तैयार किया जाता है। इसके बाद दो फीट लकड़ी के टुकड़े में बाहर निकली हुई नुकीली कील पर से चल कर अंगारों से गुजरना पड़ता है। जो लोग इसे सहजता से पार कर लेते हैं उन्हें कोई बीमारी नहीं होती। इस अंगारे पर गुजरने वालों को कम से कम तीन दिनों तक उपवास पर रहना पड़ता है।

ठीक होती है ये बीमारी

आदिवासी गुरु रसीक लाल हांसदा ने बताया कि खसरा, पीलिया, दमा, खांसी, मिर्गी, लकवा और पेट संबंधी के अलावे बुरी नजरों से भी यह दूर रखता है। उनके मुताबिक साल में कम से कम एक बार अंगारे पर नियमपूर्वक दौड़ने से ही इन बीमारियों को काबू में रखा जा सकता है।

सीएस ने कहा

बांका के सिविल सार्जन डॉ. एनके विद्यार्थी ने इसे पूरी तरह से भ्रामक बताते हुए लोगों को ऐसे अंधविश्वास से बचने की सलाह दी और कहा कि ऐसा नहीं करने पर बीमारी और भी गंभीर हो जाती है। उन्होंने खस तौर पर आदिवासियों से अपील करते हुए कहा कि कोई भी बीमारी हो उसे तुरंत अपने नजदीकी चिकित्सकों को जरुर दिखाये।

शिवरात्रि पर वर्षो बाद दुर्लभ संयोग, होगी सुख- समृद्धि की बरसात

जयपुर.महाशिवरात्रि के पर्व पर इस बार वर्षो बाद गजकेसरी, सर्वार्थसिद्धि व मालव्य योग बन रहा है। संयोग से इस दिन सोमवार भी है। ज्योतिषविदों के मुताबिक 20 फरवरी को आ रहा शिव चौदस का पर्व सुख-समृद्धिदायक रहेगा।

पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा व ज्योतिषाचार्य चंद्रमोहन दाधीच के मुताबिक मालव्य योग का बनना भक्तों के लिए विशेष फलदायी है। इस दिन पूजा करने से राजा के समान धन-धान्य व ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।

वहीं गजकेसरी योग समाज में मान-प्रतिष्ठा, यश और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए विशेष रहेगा। सर्वार्थसिद्धि योग में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।

ज्योतिषविदों की मानें तो सोमवार को शिवरात्रि वर्ष 2009 में आई थी, लेकिन शिवरात्रि पर सोमवार के साथ गजकेसरी, सर्वार्थसिद्धि व मालव्य योग दुर्लभ संयोग ही हैं। सोमवार को शिवजी का वार माना जाता है। शिवजी के वार को ही शिवजी का जन्म आना विशेष है।

जब पुलिस मदद के बजाए आपकी मौत का सामान बांटे तो आप क्या कहेंगे?

जम्मू. पुंछ पुलिस ने आईएसआई के लिए काम कर रहे एक एसपीओ को पकड़ा। उसके कब्जे से तीन पाकिस्तानी सिम कार्ड बरामद हुए हैं। वह पिछले काफी समय से पुंछ के चक्कां दा बाग में तैनात था। यह क्रास एलओसी ट्रेड सेंटर है। जांच में पता चला कि वह आईएसआई के लिए हथियारों की तस्करी से लेकर जाली करेंसी का काम करता था।

उसके अलावा आतंकियों को संदेश भी पहुंचाया करता था। उसके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। पुंछ पुलिस को काफी दिन पहले सूचना मिली थी कि पुलिस का ही एक कर्मचारी आईएसआई के लिए काम कर रहा है। पुलिस छानबीन में लगी थी। शुक्रवार को पुलिस ने एसपीओ मोहम्मद रफी को पकड़ लिया।

जब उसकी तलाशी ली गई तो उसके कब्जे से तीन पाकिस्तानी सिम कार्ड बरामद किए गए। कड़ी पूछताछ के दौरान उसने बताया कि वह काफी समय से आईएसआई के लिए काम कर रहा था। वह कई बार आईएसआई के कहने पर हथियारों तथा जाली करेंसी की सप्लाई कर चुका है। उसे पाकिस्तान से सप्लाई आती थी। वह क्रॉस एलओसी पर तैनात था। एसपी पुंछ युगल मन्हास का कहना है कि पुलिस ने एसपीओ को पकड़ा है। वह आईएसआई का एजेंट था। उसकी पूछताछ चल रही है। पूछताछ में काफी बातों का पत चला है।

सालगिरह पर केक काटा फिर पत्‍नी-बेटे का गला घोंट दिया

नई दिल्‍ली. देश की राजधानी दिल्‍ली में डबल मर्डर से सनसनी मची हुई है। शहर के रोहिणी इलाके में एक शख्‍स पर अपनी बीवी और चार साल के बच्‍चे का कत्‍ल करने का आरोप है। आरोपी ने खुद पुलिस को फोन कर हत्‍या की जानकारी दी। हत्‍या की वजह का अभी तक पता नहीं चल सका है।

नितिन मैनी और श्‍वेता की छह साल पहले दो फरवरी को ही प्रेम विवाह हुआ था। गुरुवार रात करीब साढ़े बजे तक नितिन ने पत्‍नी और बेटे के साथ केक काटकर शादी की सालगिरह का जश्‍न मनाया। नितिन करीब तीन साल पहले एक हादसे का शिकार हुआ था जिसके बाद से वह ह्वील चेयर पर है।

नितिन ने रात करीब डेढ़ बजे पीसीआर को फोन कर बताया कि उसने अपनी बीवी और चार साल के बेटे गर्व की हत्‍या कर दी है। नितिन ने अपनी पत्‍नी के घरवालों को भी फोन कर हत्‍या की जानकारी दी। पुलिस जब नितिन के घर पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद पड़ा था।

आरोपी ने कहा कि वह दरवाजा नहीं खोल सकता ऐसे में पुलिस दरवाजा तोड़कर अंदर घुसी तो देखा कि वहां श्‍वेता और गर्व (फाइल तस्‍वीर) की लाश जमीन पर पड़ी हुई थी और नितिन भी कमरे में बिस्‍तर पर लेटा हुआ था। लेकिन पुलिस आरोपी की बात पर यकीन नहीं कर रही है क्‍योंकि वह अपने पैरों से ठीक से चल नहीं सकता तो आखिरकार वह हत्‍या कैसे कर सकता है।

पुलिस ने आरोपी के खिलाफ हत्‍या का मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। मामले की जांच जारी है। शुरुआती जांच में गला दबाकर हत्‍या करने की बात सामने आ रही है।

अवतार के हेतु



सोरठा :
* सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल।
कहा भुसुंडि बखानि सुना बिहग नायक गरुड़॥120 ख॥
भावार्थ:-हे पार्वती! निर्मल रामचरितमानस की वह मंगलमयी कथा सुनो जिसे काकभुशुण्डि ने विस्तार से कहा और पक्षियों के राजा गरुड़जी ने सुना था॥120 (ख)॥
* सो संबाद उदार जेहि बिधि भा आगें कहब।
सुनहु राम अवतार चरति परम सुंदर अनघ॥120 ग॥
भावार्थ:-वह श्रेष्ठ संवाद जिस प्रकार हुआ, वह मैं आगे कहूँगा। अभी तुम श्री रामचन्द्रजी के अवतार का परम सुंदर और पवित्र (पापनाशक) चरित्र सुनो॥120(ग)॥
* हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित।
मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु॥120 घ॥
भावार्थ:-श्री हरि के गुण, मान, कथा और रूप सभी अपार, अगणित और असीम हैं। फिर भी हे पार्वती! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहता हूँ, तुम आदरपूर्वक सुनो॥120 (घ)॥
चौपाई :
* सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥
हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥1॥
भावार्थ:-हे पार्वती! सुनो, वेद-शास्त्रों ने श्री हरि के सुंदर, विस्तृत और निर्मल चरित्रों का गान किया है। हरि का अवतार जिस कारण से होता है, वह कारण 'बस यही है' ऐसा नहीं कहा जा सकता (अनेकों कारण हो सकते हैं और ऐसे भी हो सकते हैं, जिन्हें कोई जान ही नहीं सकता)॥1॥
* राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी। मत हमार अस सुनहि सयानी॥
तदपि संत मुनि बेद पुराना। जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना॥2॥
भावार्थ:-हे सयानी! सुनो, हमारा मत तो यह है कि बुद्धि, मन और वाणी से श्री रामचन्द्रजी की तर्कना नहीं की जा सकती। तथापि संत, मुनि, वेद और पुराण अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जैसा कुछ कहते हैं॥2॥
* तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥3॥
भावार्थ:-और जैसा कुछ मेरी समझ में आता है, हे सुमुखि! वही कारण मैं तुमको सुनाता हूँ। जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं॥3॥
चौपाई :
* करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥4॥
भावार्थ:-और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं॥4॥
दोहा :
* असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥121॥
भावार्थ:-वे असुरों को मारकर देवताओं को स्थापित करते हैं, अपने (श्वास रूप) वेदों की मर्यादा की रक्षा करते हैं और जगत में अपना निर्मल यश फैलाते हैं। श्री रामचन्द्रजी के अवतार का यह कारण है॥121॥
चौपाई :
* सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥
राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥1॥
भावार्थ:-उसी यश को गा-गाकर भक्तजन भवसागर से तर जाते हैं। कृपासागर भगवान भक्तों के हित के लिए शरीर धारण करते हैं। श्री रामचन्द्रजी के जन्म लेने के अनेक कारण हैं, जो एक से एक बढ़कर विचित्र हैं॥1॥
* जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी॥
द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ॥2॥
भावार्थ:-हे सुंदर बुद्धि वाली भवानी! मैं उनके दो-एक जन्मों का विस्तार से वर्णन करता हूँ, तुम सावधान होकर सुनो। श्री हरि के जय और विजय दो प्यारे द्वारपाल हैं, जिनको सब कोई जानते हैं॥2॥
* बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥
कनककसिपु अरु हाटकलोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन॥3॥
भावार्थ:-उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इन्द्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत में प्रसिद्ध हुए॥3॥
* बिजई समर बीर बिख्याता। धरि बराह बपु एक निपाता॥
होइ नरहरि दूसर पुनि मारा। जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा॥4॥
भावार्थ:-वे युद्ध में विजय पाने वाले विख्यात वीर थे। इनमें से एक (हिरण्याक्ष) को भगवान ने वराह (सूअर) का शरीर धारण करके मारा, फिर दूसरे (हिरण्यकशिपु) का नरसिंह रूप धारण करके वध किया और अपने भक्त प्रह्लाद का सुंदर यश फैलाया॥4॥
दोहा :
* भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान।
कुंभकरन रावन सुभट सुर बिजई जग जान॥122॥
भावार्थ:-वे ही (दोनों) जाकर देवताओं को जीतने वाले तथा बड़े योद्धा, रावण और कुम्भकर्ण नामक बड़े बलवान और महावीर राक्षस हुए, जिन्हें सारा जगत जानता है॥122॥
चौपाई :
* मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥
एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥1॥
भावार्थ:-भगवान के द्वारा मारे जाने पर भी वे (हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु) इसीलिए मुक्त नहीं हुए कि ब्राह्मण के वचन (शाप) का प्रमाण तीन जन्म के लिए था। अतः एक बार उनके कल्याण के लिए भक्तप्रेमी भगवान ने फिर अवतार लिया॥1॥
* कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥
एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित पवित्र किए संसारा॥2॥
भावार्थ:-वहाँ (उस अवतार में) कश्यप और अदिति उनके माता-पिता हुए, जो दशरथ और कौसल्या के नाम से प्रसिद्ध थे। एक कल्प में इस प्रकार अवतार लेकर उन्होंने संसार में पवित्र लीलाएँ कीं॥2॥
* एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलंधर सन सब हारे॥
संभु कीन्ह संग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥3॥
भावार्थ:-एक कल्प में सब देवताओं को जलन्धर दैत्य से युद्ध में हार जाने के कारण दुःखी देखकर शिवजी ने उसके साथ बड़ा घोर युद्ध किया, पर वह महाबली दैत्य मारे नहीं मरता था॥3॥
* परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी॥4॥
भावार्थ:-उस दैत्यराज की स्त्री परम सती (बड़ी ही पतिव्रता) थी। उसी के प्रताप से त्रिपुरासुर (जैसे अजेय शत्रु) का विनाश करने वाले शिवजी भी उस दैत्य को नहीं जीत सके॥4॥
दोहा :
* छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह।
जब तेहिं जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह॥123॥
भावार्थ:-प्रभु ने छल से उस स्त्री का व्रत भंग कर देवताओं का काम किया। जब उस स्त्री ने यह भेद जाना, तब उसने क्रोध करके भगवान को शाप दिया॥123॥
चौपाई :
* तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना॥
तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ॥1॥
भावार्थ:-लीलाओं के भंडार कृपालु हरि ने उस स्त्री के शाप को प्रामाण्य दिया (स्वीकार किया)। वही जलन्धर उस कल्प में रावण हुआ, जिसे श्री रामचन्द्रजी ने युद्ध में मारकर परमपद दिया॥1॥
* एक जनम कर कारन एहा। जेहि लगि राम धरी नरदेहा॥
प्रति अवतार कथा प्रभु केरी। सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी॥2॥
भावार्थ:-एक जन्म का कारण यह था, जिससे श्री रामचन्द्रजी ने मनुष्य देह धारण किया। हे भरद्वाज मुनि! सुनो, प्रभु के प्रत्येक अवतार की कथा का कवियों ने नाना प्रकार से वर्णन किया है॥2॥
* नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा॥
गिरिजा चकित भईं सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानी॥3॥
भावार्थ:-एक बार नारदजी ने शाप दिया, अतः एक कल्प में उसके लिए अवतार हुआ। यह बात सुनकर पार्वतीजी बड़ी चकित हुईं (और बोलीं कि) नारदजी तो विष्णु भक्त और ज्ञानी हैं॥3॥
* कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा॥
यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी॥4॥
भावार्थ:-मुनि ने भगवान को शाप किस कारण से दिया। लक्ष्मीपति भगवान ने उनका क्या अपराध किया था? हे पुरारि (शंकरजी)! यह कथा मुझसे कहिए। मुनि नारद के मन में मोह होना बड़े आश्चर्य की बात है॥4॥
दोहा :
* बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ॥124 क॥
भावार्थ:-तब महादेवजी ने हँसकर कहा- न कोई ज्ञानी है न मूर्ख। श्री रघुनाथजी जब जिसको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है॥124 (क)॥
सोरठा :
* कहउँ राम गुन गाथ भरद्वाज सादर सुनहु।
भव भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद॥124 ख॥
भावार्थ:-(याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-) हे भरद्वाज! मैं श्री रामचन्द्रजी के गुणों की कथा कहता हूँ, तुम आदर से सुनो। तुलसीदासजी कहते हैं- मान और मद को छोड़कर आवागमन का नाश करने वाले रघुनाथजी को भजो॥124 (ख)॥
चौपाई :
*हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि॥
आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा॥1॥
भावार्थ:-हिमालय पर्वत में एक बड़ी पवित्र गुफा थी। उसके समीप ही सुंदर गंगाजी बहती थीं। वह परम पवित्र सुंदर आश्रम देखने पर नारदजी के मन को बहुत ही सुहावना लगा॥1॥
* निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा। भयउ रमापति पद अनुरागा॥
सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी॥2॥
भावार्थ:-पर्वत, नदी और वन के (सुंदर) विभागों को देखकर नादरजी का लक्ष्मीकांत भगवान के चरणों में प्रेम हो गया। भगवान का स्मरण करते ही उन (नारद मुनि) के शाप की (जो शाप उन्हें दक्ष प्रजापति ने दिया था और जिसके कारण वे एक स्थान पर नहीं ठहर सकते थे) गति रुक गई और मन के स्वाभाविक ही निर्मल होने से उनकी समाधि लग गई॥2॥
* मुनि गति देखि सुरेस डेराना। कामहि बोलि कीन्ह सनमाना॥
सहित सहाय जाहु मम हेतू। चलेउ हरषि हियँ जलचरकेतू॥3॥
भावार्थ:-नारद मुनि की (यह तपोमयी) स्थिति देखकर देवराज इंद्र डर गया। उसने कामदेव को बुलाकर उसका आदर-सत्कार किया (और कहा कि) मेरे (हित के) लिए तुम अपने सहायकों सहित (नारद की समाधि भंग करने को) जाओ। (यह सुनकर) मीनध्वज कामदेव मन में प्रसन्न होकर चला॥3॥
* सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा॥
जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं॥4॥
भावार्थ:-इन्द्र के मन में यह डर हुआ कि देवर्षि नारद मेरी पुरी (अमरावती) का निवास (राज्य) चाहते हैं। जगत में जो कामी और लोभी होते हैं, वे कुटिल कौए की तरह सबसे डरते हैं॥4॥
दोहा :
* सूख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज।
छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज॥125॥
भावार्थ:-जैसे मूर्ख कुत्ता सिंह को देखकर सूखी हड्डी लेकर भागे और वह मूर्ख यह समझे कि कहीं उस हड्डी को सिंह छीन न ले, वैसे ही इन्द्र को (नारदजी मेरा राज्य छीन लेंगे, ऐसा सोचते) लाज नहीं आई॥125॥
चौपाई :
* तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ। निज मायाँ बसंत निरमयऊ॥
कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा। कूजहिं कोकिल गुंजहिं भृंगा॥1॥
भावार्थ:-जब कामदेव उस आश्रम में गया, तब उसने अपनी माया से वहाँ वसन्त ऋतु को उत्पन्न किया। तरह-तरह के वृक्षों पर रंग-बिरंगे फूल खिल गए, उन पर कोयलें कूकने लगीं और भौंरे गुंजार करने लगे॥1॥
* चली सुहावनि त्रिबिध बयारी। काम कृसानु बढ़ावनिहारी॥
रंभादिक सुर नारि नबीना। सकल असमसर कला प्रबीना॥2॥
भावार्थ:-कामाग्नि को भड़काने वाली तीन प्रकार की (शीतल, मंद और सुगंध) सुहावनी हवा चलने लगी। रम्भा आदि नवयुवती देवांगनाएँ, जो सब की सब कामकला में निपुण थीं,॥2॥
* करहिं गान बहु तान तरंगा। बहुबिधि क्रीड़हिं पानि पतंगा॥
देखि सहाय मदन हरषाना। कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना॥3॥
भावार्थ:-वे बहुत प्रकार की तानों की तरंग के साथ गाने लगीं और हाथ में गेंद लेकर नाना प्रकार के खेल खेलने लगीं। कामदेव अपने इन सहायकों को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उसने नाना प्रकार के मायाजाल किए॥3॥
* काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी। निज भयँ डरेउ मनोभव पापी॥
सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासू। बड़ रखवार रमापति जासू॥4॥
भावार्थ:-परन्तु कामदेव की कोई भी कला मुनि पर असर न कर सकी। तब तो पापी कामदेव अपने ही (नाश के) भय से डर गया। लक्ष्मीपति भगवान जिसके बड़े रक्षक हों, भला, उसकी सीमा (मर्यादा) को कोई दबा सकता है? ॥4॥
दोहा :
* सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन।
गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन॥126॥
भावार्थ:-तब अपने सहायकों समेत कामदेव ने बहुत डरकर और अपने मन में हार मानकर बहुत ही आर्त (दीन) वचन कहते हुए मुनि के चरणों को जा पकड़ा॥126॥
चौपाई :
* भयउ न नारद मन कछु रोषा। कहि प्रिय बचन काम परितोषा॥
नाइ चरन सिरु आयसु पाई। गयउ मदन तब सहित सहाई॥1॥
भावार्थ:-नारदजी के मन में कुछ भी क्रोध न आया। उन्होंने प्रिय वचन कहकर कामदेव का समाधान किया। तब मुनि के चरणों में सिर नवाकर और उनकी आज्ञा पाकर कामदेव अपने सहायकों सहित लौट गया॥1॥
दोहा :
* मुनि सुसीलता आपनि करनी। सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी॥
सुनि सब कें मन अचरजु आवा। मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा॥2॥
भावार्थ:-देवराज इन्द्र की सभा में जाकर उसने मुनि की सुशीलता और अपनी करतूत सब कही, जिसे सुनकर सबके मन में आश्चर्य हुआ और उन्होंने मुनि की बड़ाई करके श्री हरि को सिर नवाया॥2॥
* तब नारद गवने सिव पाहीं। जिता काम अहमिति मन माहीं॥
मार चरति संकरहि सुनाए। अतिप्रिय जानि महेस सिखाए॥3॥
भावार्थ:- तब नारदजी शिवजी के पास गए। उनके मन में इस बात का अहंकार हो गया कि हमने कामदेव को जीत लिया। उन्होंने कामदेव के चरित्र शिवजी को सुनाए और महादेवजी ने उन (नारदजी) को अत्यन्त प्रिय जानकर (इस प्रकार) शिक्षा दी-॥3॥
* बार बार बिनवउँ मुनि तोही। जिमि यह कथा सुनायहु मोही॥
तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएहु तबहूँ॥4॥
भावार्थ:-हे मुनि! मैं तुमसे बार-बार विनती करता हूँ कि जिस तरह यह कथा तुमने मुझे सुनाई है, उस तरह भगवान श्री हरि को कभी मत सुनाना। चर्चा भी चले तब भी इसको छिपा जाना॥4॥

कुरान का संदेश

रुपचनद जी शास्त्री जी को जन्म दिन पर बधाई

शनिवार, 4 फरवरी 2012
"जन्मदिन है आज मेरा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आज 4 फरवरी है!

जन्मदिन का जश्न है केवल छलावा,
लोग कहते हैं अँधेरे को सवेरा।।
घट गया इक साल मेरी उम्र का,
लोग कहते जन्मदिन है आज मेरा।।

आस का दामन पकड़कर चल रहा हूँ,
ज़िन्दगी की जेल में मैं पल रहा हूँ,
अब धरा की एक ढलती शाम हूँ मैं
क्या पता कब उजड़ जाए ये बसेरा।
लोग कहते जन्मदिन है आज मेरा।।

टिमटिमाता हुआ सा खद्योत हूँ मैं,
सिन्धु में ठहरा हुआ जलपोत हूँ मैं,
सबल लहरों से भला कब तक लड़ूँगा,
तिमिर ने चारों तरफ से आज घेरा।
लोग कहते जन्मदिन है आज मेरा।।

कब तलक लंगर सम्भाले मैं रहूँगा,
कब तलक मैं रोग की पीड़ा सहूँगा,
है सफर की आखिरी मंजिल अज़ल,
चाँदनी के बाद आता है अँधेरा।
लोग कहते जन्मदिन है आज मेरा।।

http://uchcharan.blogspot.in/2012/02/blog-post_04.html

हजरत मुहम्मद लाए थे संपूर्ण धर्म ईद मिलादुन्नबी विशेष



- जावेद आलम


हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म छठी सदी ईसवीं में मक्का में हुआ। उस समय दुनिया भर में औरतों की स्थिति दयनीय थी। खुद अरब में नवजात बेटियों को जिंदा दफ्न करने की परंपरा थी। हजरत मुहम्मद जो धर्म लेकर आए थे, उसे संपूर्ण कहा गया है। संपूर्ण इस मायने में कि इसमें मानव जीवन से जुड़े हर पहलू की बाबत बताया गया है। इन पहलुओं में औरतों से संबंधित आदेश भी हैं।

कुरआन में इस बाबत आया है कि और (इनका हाल यह है कि) जब इनमें किसी को बेटी होने की शुभ-सूचना मिलती है, तो उसके चेहरे पर कलौंस छा जाती है और वह जी ही जी में कुढ़कर रह जाता है। जो शुभ-सूचना उसे दी गई वह ऐसी बुराई की बात हुई कि लोगों से छुपता-फिरता है, सोचता है : अपमान स्वीकार करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। क्या ही बुरा फैसला है जो ये करते हैं। (सूरः नहल : 58-59)

इस घृणित परंपरा को खत्म कराने का सहरा हजरत मुहम्मद के सर बँधता है। यही नहीं आपने विभिन्न अवसरों पर औरतों को उनका पूरा हक देने, उनसे अच्छा बर्ताव करने तथा पूरा खयाल रखने के बारे में हिदायतें दीं। बेटियों के बारे में वे कहते हैं वह औरत बरकत वाली है जो लड़की को पहले जन्म दे। इसी तरह आपने बेटियों को माँ-बाप का दुख बाँटने वाली ठहराते हुए कहा कि बेटियों को नापसंद न करो, बेशक बेटियाँ गमगुसार हैं और अजीज।


लड़का-लड़की के बीच भेदभाव को भी आपने गलत करार दिया। इस बारे में एक घटना का जिक्र करना बेहतर होगा। पैगंबर हजरत मुहम्मद के साथी हजरत अनस बिन मालिक फरमाते हैं कि एक शख्स आपके पास बैठा था कि उसका बेटा आया। उसने बेटे को बोसा दिया और अपनी गोद में बिठा लिया। फिर उसकी बच्ची आई जिसे उसने अपने सामने बिठाया। रसूल ने फरमाया तुमने इन दोनों (बेटे और बेटी) के दरमियान बराबरी से काम क्यों नहीं लिया।

इसी तरह आपने बीवियों के साथ भी बराबरी का सुलूक करने का हुक्म दिया है। हदीस की किताब 'तिरमिजी शरीफ' में दिया गया है तुम में सबसे भले वे लोग हैं जो अपनी बीवियों के लिए भले हों। अपने जीवनसाथी को बराबर का दर्जा देने की बात करते हुए अल्लाह के रसूल फरमाते हैं कि खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने की चीजों में पत्नियों से फर्क न किया जाए।

और माँ के बारे में तो आप सल्ल. ने जो फरमाया वह दिखाता है कि इस्लाम ने माँ को क्या मुकाम दिया है। कुछ ताज्जुब नहीं कि इस मजहब में माँ को बाप से बड़ा दर्जा दिया गया है। इस बाबत एक घटना बहुत मशहूर है। एक शख्स ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर पूछा कि या रसूलुल्लाह सबसे ज्यादा मेरे अच्छे व्यवहार का हकदार कौन है। आपने फरमाया तेरी माँ। पूछा फिर कौन? फरमाया तेरी माँ। उसने अर्ज किया फिर कौन। फरमाया तेरी माँ। तीन दफा आपने यही जवाब दिया। चौथी दफा पूछने पर कहा तेरा बाप। (बुखारी शरीफ, किताबुल्अदब)

औरतों और इस्लाम को लेकर आज बहस छिड़ी हुई है। हजरत मुहम्मद सल्ल. के इस जन्मदिन पर क्या यह बेहतर न होगा कि इस्लाम ने औरतों को जो अधिकार दिए हैं, उनका विस्तार से अध्ययन किया जाए तथा उनमें से अच्छे निर्देशों को अपनाया जाए।

पैगम्बर मोहम्मद : गरीबों के सच्चे सेवक ईद-ए-मिलादुन्नबी



- डॉ. इकबाल मोद


मिलादुन्नबी यानी इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्मदिन रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मनाया जाता है। हजरत मोहम्मद साहब का जन्म मक्का (सऊदी अरब) में हुआ था। उनके वालिद साहब का नाम अबदुल्ला बिन अब्दुल मुतलिब था और वालेदा का नाम आमेना था। उनके पिता का स्वर्गवास उनके जन्म के दो माह बाद हो गया था। उनका लालन-पालन उनके चाचा अबू तालिब ने किया।

हजरत मोहम्मद साहब को अल्लाह ने एक अवतार के रूप में पृथ्वी पर भेजा था, क्योंकि उस समय अरब के लोगों के हालात बहुत खराब हो गए थे। लोगों में शराबखोरी, जुआखोरी, लूटमार, वेश्यावृत्ति और पिछड़ापन भयंकर रूप से फैला हुआ था। कई लोग नास्तिक थे। ऐसे माहौल में मोहम्मद साहब ने जन्म लेकर लोगों को ईश्वर का संदेश दिया।

वे बचपन से ही अल्लाह की इबादत में लीन रहते थे। वे कई-कई दिनों तक मक्का की एक पहाड़ी पर, जिसे अबलुन नूर कहते हैं, इबादत किया करते थे। चालीस वर्ष की अवस्था में उन्हें अल्लाह की ओर से संदेश प्राप्त हुआ। अल्लाह ने फरमाया- 'ये सब संसार सूर्य, चाँद, सितारे मैंने पैदा किए हैं। मुझे हमेशा याद करो। मैं केवल एक हूँ। मेरा कोई मानी-सानी नहीं है। लोगों को समझाओ।'

हजरत मोहम्मद साहब ने ऐसा करने का अल्लाह को वचन दिया। तभी से उन्हें नुबुवत प्राप्त हुई। हजरत मोहम्मद साहब ने खुदा के हुक्म से जिस धर्म को चलाया, वह इस्लाम कहलाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- 'खुदा के हुक्म पर झुकना।'


इस्लाम का मूल मंत्र है- 'ला ईलाहा ईल्लला मोहम्मदन-रसूलल्लाह' जो कलमा कहलाता हैं। इसका अर्थ है- 'अल्लाह सिर्फ एक है, दूसरा कोई नहीं। मोहम्मद साहब उसके सच्चे रसूल हैं।'

इस्लाम धर्म के कुछ प्रमुख आधार हैं, जो इस प्रकार हैं- खुदा को मानना, उसको सजदा करना।

तहारत यानी पवित्रता- इसी पर सभी उसूलों का आधार है। इसमें शरीर की पवित्रता, कपड़ों की पवित्रता आदि से लेकर मन की पवित्रता तक शामिल है।

नमाज- फजर, जोहर, असर, मगरिब और ईशा के वक्त पर पाँच बार नमाज यानी खुदा की इबादत करना। अपनी इंद्रियों को काबू में रखना। गलत काम से दूर रहना।

हज यानी वह तीर्थयात्रा- जिसमें दुनिया के सभी मुसलमान बिना भेदभाव के भाग लेते हैं।

जकात- उन सभी व्यक्तियों पर यह वाजिब है जो धर्मदा दान कर सकते हैं। यह दान गरीबों, बेसहारों आदि के लिए व्यय किया जाता है। यह 2.50 पैसे प्रति सैकड़ा प्रतिवर्ष के हिसाब से देना होता है।

रोजा यानी व्रत- यह आत्मा की शुद्धि के लिए रखा जाता है। रमजान महीने में 30 दिन तक रोजे रखे जाते हैं। पूरा माह अल्लाह की इबादत में लगाना होता है।


हजरत मोहम्मद साहब को लोगों को इस्लाम धर्म समझाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दुश्मनों के जुल्मो-सितम को सहन करना पड़ा। वे जरूरतमंदों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। वे दीन-दुखियों के सच्चे सेवक थे। उनके जन्म के समय अरब में महिलाओं की बड़ी दुर्दशा थी। उन्हें बाजार की पूँजी समझा जाता था। लोग उन्हें खरीदते-बेचते थे और भोग- विलास का साधन मानते थे। लड़की का जन्म अशुभ माना जाता था और लड़की पैदा होते ही उसका गला दबाकर मार दिया जाता था।

इस महापुरुष ने जब यह बात देखी तो उन्होंने औरतों की कद्र करना लोगों को समझाया। उन्हें समानता का दर्जा देने को कहा। साम्यवाद की बात भी सर्वप्रथम हजरत मोहम्मद साहब ने लोगों के सामने रखी थी।

एक बार मस्जिद तामीर हो रही थी। वे भी मजदूरों में शामिल होकर काम करने लगे। लोगों ने कहा- 'हुजूर, आप यह काम अंजाम न दें।'

इस पर पैगम्बर साहब ने फरमाया- 'खुदा के नेक काम में सब बराबरी के साथ हाथ बँटाते हैं।' उनका कहना था कि लोगों को नसीहत तब दो, जब आप खुद उसका कड़ाई से पालन कर रहे हों। हजरत मोहम्मद साहब पर जो खुदा की पवित्र किताब उतारी गई है, वह है कुरआन। जिबराईल इस पवित्र कुरआन को लेकर मोहम्मद साहब के दर पर आए। पैगम्बर साहब 28 सफर हिजरी सन्‌ 11 को 63 वर्ष की उम्र में वफात हुए। उनकी मजार-शरीफ मदीना मुनव्वरा में है।

पैगम्बर का जीवन ही संदेश

- मोहम्मद इब्राहीम कुरैशी



एक अमेरिकी ईसाई लेखक ने अपनी पुस्तक में दुनिया के 100 महापुरुषों का उल्लेख किया है। इस वैज्ञानिक लेखक माइकल एच. हार्ट ने सबसे पहला स्थान हजरत मुहम्मद (सल्ल.) को दिया है। लेखक ने पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद के गुणों को स्वीकारते हुए यह लिखा है।

He was the only man in history who was supremely succesful on both the religious and secular levels.

आप इतिहास के एकमात्र व्यक्ति हैं, जो उच्चतम सीमा तक सफल रहे। धार्मिक स्तर पर भी और दुनियावी स्तर पर भी।

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्ल. 22 अप्रैल ईस्वी 571 को अरब में पैदा हुए। 8 जून 632 ईस्वी को आपकी वफात हुई। होनहार बिरवा के चिकने चिकने पात। बचपन में ही आपको देखकर लोग कहते, यह बच्चा एक महान आदमी बनेगा। इसी तरह अँगरेज इतिहासकार टॉम्स कारलाइल ने आप सल्ल को ईशदूतों का हीरो कहा है। वे क्या गुण हैं जिनके कारण आपको इतना ऊँचा स्थान दिया जाता है। आइए देखते हैं :-

आप सल्ल. ने सबसे पहले इंसान के मन में यह विश्वास जगाया कि सृष्टि की व्यवस्था वास्तविक रूप से जिस सिद्धांत पर कायम है, इंसान की जीवन व्यवस्था भी उसके अनुकूल हो, क्योंकि इंसान इस ब्रह्मांड का एक अंश है और अंश का कुल के विरुद्ध होना ही खराबी की जड़ है। दूसरे लफ्जों में खराबी की असल जड़ इंसान की अपने प्रभु से बगावत है।


आपने बताया कि अल्लाह पर ईमान केवल एक दार्शनिक सिद्धांत नहीं बल्कि यही वह बीज है, जो इंसान के मन की जमीन में जब बोया जाता है तो इससे पूरी जिंदगी में ईमान की बहार आ जाती है। जिस मन में ईमान है, वह यदि एक जज होगा तो ईमानदार होगा।

एक पुलिसमैन है तो कानून का रखवाला होगा एक व्यापारी है तो ईमानदार व्यापारी होगा। सामूहिक रूप से कोई राष्ट्र खुदापरस्त होगा तो उसके नागरिक जीवन में, उसकी राजनीतिक व्यवस्था में, उसकी विदेश राजनीति, उसकी संधि और जंग में खुदापरस्ताना अखलाक व किरदार की शान होगी। यदि यह नहीं है तो फिर खुदापरस्ती का कोई अर्थ नहीं। आइए, हम देखें कि आपकी शिक्षाएँ समाज के प्रति क्या हैं।

'जिस व्यक्ति ने खराब चीज बेची और खरीददार को उसकी खराबी नहीं बताई, उस पर ईश्वर का प्रकोप भड़कता है और फरिश्ते उस पर धिक्कार करते हैं।' 'ईमान की सर्वश्रेष्ठ हालत यह है कि तेरी दोस्ती और दुश्मनी अल्लाह के लिए हो।

तेरी जीभ पर ईश्वर का नाम हो और तू दूसरों के लिए वही कुछ पसंद करे, जो अपने लिए पसंद करता हो और उनके लिए वही कुछ नापसंद करे जो अपने लिए नापसंद करता हो।' 'ईमान वालों में सबसे कामिल ईमान उस व्यक्ति का है जिसके अखलाक सबसे अच्छे हैं और जो अपने घर वालों के साथ अच्छे व्यवहार में सबसे बड़ा है।'

'असली मुजाहिद वह है, जो खुदा के आज्ञापालन में स्वयं अपने नफ्स (अंतरआत्मा) से लड़े और असली मुहाजिर (अल्लाह की राह में देश त्यागने वाला) वह है, जो उन कामों को छोड़ दे जिन्हें खुदा ने मना किया है।'

* 'मोमिन सब कुछ हो सकता है, मगर झूठा और विश्वासघात करने वाला नहीं हो सकता।' 'जो व्यक्ति खुद पेटभर खाए और उसके पड़ोस में उसका पड़ोसी भूखा रह जाए, वह ईमान नहीं रखता।' जिसने लोगों को दिखाने के लिए नमाज पढ़ी उसने शिर्क किया, जिसने लोगों को दिखाने के लिए रोजा रखा उसने शिर्क किया और जिसने लोगों को दिखाने के लिए खैरात की उसने शिर्क किया।'

* 'जानते हो कयामत के दिन खुदा के साए में सबसे पहले जगह पाने वाले कौन लोग हैं। आपके साथियों ने कहा कि अल्लाह और उसका रसूल ज्यादा जानते हैं। आपने फरमाया कि उनके समक्ष सत्य पेश किया गया तो उन्होंने मान लिया और जब भी उनसे हक माँगा गया तो उन्होंने खुले मन से दिया और दूसरों के मामले में उन्होंने वही फैसला किया, जो स्वयं अपने लिए चाहते थे।'

* 'जन्नत में वह गोश्त नहीं जा सकता, जो हराम के निवालों से बना हो। हराम माल खाने से पहले पले हुए जिस्म के लिए तो आग ही ज्यादा बेहतर है।'

* 'चार अवगुण ऐसे हैं कि जो यदि किसी व्यक्ति में पाए जाएँ तो वह कपटाचारी- अमानत मैं विश्वासघात करे, बोले तो झूठ बोले, वादा करे तो तोड़ दे और लड़े तो शराफत की हद से गिर जाए।' जो व्यक्ति अपना गुस्सा निकालने की ताकत रखता है और फिर बर्दाश्त कर जाए उसके मन को खुदा ईमान से भर देता है।

मोहम्मद, जिसने इंसान को इंसान बनाया पैगम्बर मोहम्मद : मोहब्बत के फरिश्ते



- सहबा जाफरी
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ईश्वर ने इंसान पर अनगिनत उपकार, अनुगृह एवं कृपाएँ की। उसने जगत के प्राणियों में इंसान को सर्वश्रेष्ठ बनाया और उसे सोच-विचार एवं समझ-बूझ की क्षमता प्रदान की। इंसान ने समन्दरों पर फतह पाई। आसमानों को जीत लिया और जमीं के जर्रे-जर्रे पर अपने जोश-ओ-गुरूर की दास्तान लिख डाली।

कहीं ऊँचे- ऊँचे महल तामीर किए, कहीं खामोश गोशे में फूलों की क्यारियाँ सजा उसे बगीचे की शक्ल दे डाली। कहीं महलों-मीनारों का निर्माण कराया तो कहीं कालजयी भवन बनवा कर वक्त की पेशानी पर अपनी जीत नक्श कर डाली। सब कुछ था, फिर क्या कमी थी? हाँ! कहीं कोईं कमी जरूर थी! इस कमी का ही परिणाम था कि मानव मन ने एक दिन अचानक सोचा, 'वह कौन है? कहाँ से आया है? और उसे कहाँ लौट जाना है?'

बस जीवन के प्रति इस नन्ही-सी चिंता ने ही तो जन्मा अरब इतिहास के एक कालजयी विचारक को, जिसने विराट सत्ता के सापेक्ष, मनुष्य के अस्तित्व का आकलन कर उसके लिए जीने की आसान राह स्पष्ट की। जी हाँ! दुनिया उस महान चिन्तक को 'मोहम्मद' के नाम से जानती है। यह वही 'मोहम्मद' थे जिसने इंसान को बताया :-

'जब सूरज लपेट दिया जाएगा
सारे तारे झड़ जाएँगे
जाने जिस्मों से जोड़ दी जाएँगी
समंदर उबल पड़ेंगे
आसमान खींच लिया जाएगा
तब हर जान समझ लेगी
कि वह
(अपने ईश्वर के समक्ष)
क्या लाई है?'


20 अप्रैल 571 ईस्वी. मोहम्मद की पैदाईश का दिन। अपने पिता 'अब्दुल्लाह' के इस दुनिया से कूच कर जाने के बाद जन्मे इस नन्हे से बालक के बारे में किसने कल्पना की थी कि यह विलासिता के शीर्ष पर मंडराती, शराब-ओ शबाब में खोई, बर्बरता में अग्रणी रही, और भोग-विलास को अपना धर्म समझने वाली कबीलाई अरब सभ्यता का भविष्य बदलने वाला देवदूत होगा!

मोहम्मद की पैदाईश, अरब की सरजमी पर उस समय की घटना है जब इंसानियत कराह रही थी। बाप अपनी बच्ची को (उसकी हिफाजत के डर से) जिंदा जला देते थे। औरत नुमाइश, भोग एवं विलास की वस्तु थी। अनावश्यक तौर पर अरब कबीले एक-दूसरे से भयानक जंगे कर लिया करते थे। समूचा अरब बस लहू का प्यासा था।

जहालत का असली मसला यह था कि पूरी जिंदगी की चूल अपने स्थान से हट गई थी। इंसान, इंसान नहीं रहा था। इंसानियत का मुकद्दमा अपने अंतिम छोर पर लटका, ईश्वर की अदालत में पेश था। इंसानियत स्वयं के खिलाफ ही गवाही दे चुकी थी। ऐसे समय मोहम्मद की पैदाइश 'यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतं' का साकार रूप ही जान पड़ती थी।

न तो मसीह (ईसा) की तरह मोहम्मद को जन्म से ही अपने नबी होने का अंदाजा था न ही वे मूसा की तरह बेशुमार चमत्कारों के धनी थे। वे जागीर या सल्तनत देकर भी जमीं पर भेजे नहीं गए थे, फिर भी लोगो में मकबूल थे। लोग प्रेम से इन्हें 'सादिक' (सच्चा) या 'अमीन' (अमानतदार) कह कर बुलाते थे।

निर्जन रेगिस्तान के प्रतिकूल एवं अभावग्रस्त जीवन में भी इनका चेहरा एक अपूर्व तेज से दमकता रहता था। आँखों में बाँध लेने वाली कशिश थी। वह रिश्तों का सम्मान करते, लोगों का बोझ हल्का करते, उनकी जरूरतें पूरी करते, आतिथ्य सत्कार करते। अच्छे कामों में लोगों की मदद करते एवं मामूली एवं जरूरत भर के खाने पर संतोष करते थे। सही मायनों में आप उदारता एवं पवित्रता के प्रतीक थे।

मोहम्मद को अपने दोस्तों का साथ बिलकुल नहीं भाता था। अपने खाली वक्त में वह 'गारे-हीरा' में जाकर 'ईश-चिंतन' में लीन हो जाते थे। वे चाहते तो काबे के अंधविश्वासों से जीवन यापन कर सकते थे। किन्तु आपने व्यापार को आजीविका का साधन बनाया। 25 वर्ष की अल्पायु में 40 वर्ष की महिला 'हजरत-खदीजा' से विवाह कर उनके तिजारती सफर को अंजाम देते रहे।

एकबार गार में बैठे-बैठे आपके कानों में स्वर गूँजे :

'पढ़ो ऐ मोहम्मद!
अपने रब के नाम से
जिसने इंसान को खून की नाजुक बूँद से बनाया
जिसने इंसान को
वह सिखाया
जिसने इंसान को वह सिखलाया जो वह नहीं जानता था...'

यह वही फरिश्ता था जिसने ईश्वर का सन्देश ला कर, ईसा, और इससे पहले मूसा को सुना, मानव जाति के लिए नए व साफ-सुथरे रास्ते मुहैय्या करवाए थे। बस अपने रब के कलाम को सुनकर, उसके पैगाम को सुनाते ही 'मोहम्मद' अब पैगम्बर हो गए थे।

'ईश्वर के तरफ से फरिश्ते का आना' भले ही आज के दौर में हमें एक अविश्वसनीय बात लग सकती है, किन्तु उस समय यह पैगम्बर साहब के लिए बड़ी कड़ी परीक्षा की घड़ी होती थी। पैगम्बरों के पास फरिश्तों का आना एक कठिन शारीरिक एवं मानसिक स्थिति की अवस्था होती थी। मानव जाति के कल्याण के लिए ऐसी घड़ियाँ आपने अपने जीवन के 23 सालों तक भोगी। साथ में इनका संकलन कुरान के रूप में कर मानवता के विकास का बेहतरीन दस्तावेज संजोया।

उनके पास ना तो कोई दौलत थी और न सरमाया। ना सोने-चाँदी के खजाने थे न ही लाल व जवाहारात के ढेर। न तो सुन्दर बाग बगीचे थे, न ही शाही महल। लेकिन उस फिक्रो-फाका में उनको जहन का सुकून एवं आत्मा की शांति हासिल थी। उनकी गरीबी और तंगी को देख कर मक्का के कर्म विरोधी लोग अक्सर उनका मजाक उड़ाया करते थे, वे कहते थे-

'ये कैसा नबी है-
जो रहता है टूटे हुए हुजरे में
बैठता है खजूर की चटाई पर
पहनता है फटी हुई चादर
और दावा करता है सारे कायनात के नबी होने का'

यह वही नबी थे, जिनके आने के पहले इंसानियत अंधी थी, अखलाक बहरा था, और इंसान का किरदार मैला हो गया था। इनके बाद इंसान, इंसान से मोहब्बत करने लग गया था। जुल्म व सितम की जगह अदल व इंसाफ ने ले ली थी। तलवार के कब्जे पर रखे हाथ अब तालीमे अखलाक के लिए मैदान में निकल आए थे। एक मुख्तसर से अरसे से छाई वहशत अब रहमत में बदले लगी थी। फूल काँटे बन गए थे, और मानवता मुस्कुराने लगी थी।
खुश्बू अब फैल रही थी-

'निकल के सहने गुलिस्तान से दूर-दूर गई!
यह बू-ए-गुल कहीं कैद रहने वाली है।'

भीष्म द्वादशी 4 को, पापों का नाश करता है यह व्रत

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माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इस दिन व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत 4 फरवरी, शनिवार को है। इसका महत्व इस प्रकार है-

धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है। भीष्म द्वादशी व्रत सब प्रकार का सुख वैभव देने वाला होता है। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस व्रत में ब्राह्मण को दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि करने से अमोघ फल प्राप्त होता है।

माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के ठीक दूसरे दिन भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को भगवान श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामाह को बताया था और उन्होंने इस व्रत का पालन किया जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी पड़ा। इस व्रत में ऊँ नमो नारायणाय नम: आदि नामों से भगवान नारायण की पूजा अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

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