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06 फ़रवरी 2012

गुरु नानक की यह सच्चाई आपको शायद नहीं होगी पता


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पंजाब की भूमि वीर योद्धाओं के शौर्य गाथाओं और मानवता के लिए सर्वस्व त्याग देने वाले लोगों की कहानियों से भरी है। इसी प्रांत में सिख धर्म का उदय हुआ और यह देश- दुनिया तक फैला। इन कहानियों के स्वर्णभंडार से हम आपके लिए कुछ ऐसी कहानियां लेकर आए हैं जो सिख धर्म गुरुओं से संबंधित है। पेश है गुरु नानक के बचपन की कुछ बातें-

गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को हुआ था। उनके पिता मेहता कलियानदास बेदी लाहौर से चालीस मील दूर तलवंडी राय भोए नामक गांव में रहते थे। इस जगह को अब ननकाना साहिब कहते हैं। उनके पिता खजांची का काम करते थे। संभवत: अपनी बड़ी बहन नानकी की तरह नानक अपनी मां तृप्ता के मायके में पैदा हुए थे और इसीलिए अपने नानके के नाम पर उनका नाम नानक रख दिया गया होगा।

नानक एक असाधारण रूप से विकसित शक्तियों वाले बालक थे। पांच साल की उम्र में ही उन्होंने जीवन के लक्ष्य के बारे में प्रश्न पूछने शुरू कर दिए थे। सात साल की उम्र में उन्हें एक पंडित के पास अक्षर-ज्ञान और अंकगणित पढ़ने के लिए भेजा गया और दो साल बाद, एक मुस्लिम मुल्ले के पास फारसी और अरबी पढ़ने के लिए। उन्हें पढ़ने-लिखने में अधिक रुचि नहीं थी। वे अपना समय धार्मिक लोगों के साथ वाद-विवाद में या फिर एकांत में बिताने लगे, अपने हृदय के रहस्यों को बिना किसी को बताए।

बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह बटाला के मूलचंद चोना की बेटी सुलखनी से हो गया। विवाह भी उनका ध्यान सांसारिक बातों की ओर नहीं फेर सका। वे सांसारिक काम तो करने लगे, लेकिन उनका मन उनमें नहीं रमता था। घर-गृहस्थी में वे कोई रुचि नहीं लेते थे। उनके परिवार की शिकायत रहती कि आजकल वे फकीरों के साथ घूमते रहते हैं।

श्रीकृष्ण अचानक खाने लगे मक्खन,सबने कहा-चमत्कारी है गिरधर की लीला

इंदौर। मध्यप्रदेश के इंदौर में आजकल कृष्ण भगवान के एक मंदिर में काफी धूम मची हुई है। भारी संख्या में श्रद्धालु वहां दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। दरअसल, वहां जो कुछ भी हुआ है, वो किसी चमत्कार से कम नहीं है।इंदौर के दस्तूर गार्डन में भगवान् श्रीकृष्ण का एक मंदिर है। मंदिर में में भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्ति अष्टधातु से निर्मित है। वहां के पुजारियों एवं स्थानीय लोगों के अनुसार पिछले छह सालों में श्रीकृष्ण की मूर्ति की ऊंचाई लगभग दस इंच बढ़ गई है। यही नहीं, जो व्यक्ति सच्चे मन से उनकी अराधना करने आता है, भगवान् उसके द्वारा खिलाए जा रहे माखन भी खा रहे हैं।है न, चमत्मकार वाली बात। भारत तो ऐसे भी दैवीय शक्ति के लिए मशहूर है। यही कारण है कि यहां भक्तों का तांता लग गया है। चारों ओर इस चमत्कार की चर्चा हो रही है। जिसे भी पता लग रहा है, वह उस मंदिर में दर्शन को जा रहा है।

आखिर श्रीलंका से कश्मीर क्यों आए थे बजरंग बली?


श्रीनगर से करीब 25किलोमीटर दूर तुलमुला गांव में मां खीर भवानी का पौराणिक मंदिर स्थित है। कश्मीर के मनोहर दृश्यों से युक्त यह स्थान एक पावन धाम रूप में भी विख्यात यहाँ आस पास के क्षेत्रों में अनेक मन्दिर स्थापित हैं। जिन्हें देखकर सभी लोग भक्ति भाव से भर जाते हैं यहाँ के तमाम क्षेत्रों में अनेक हिंदु मंदिर देखे जा सकते हैं, जो सैलानियों और भक्तों सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन मंदिरों की शोभा से यहां का वातावरण और भी ज्यादा पावन हो जाता है।

हिंदु मान्यताओं के मुताबिक, रामायण काल में जब भगवान राम ने श्रीलंका पर चढाई की थी तो उस समय मां राघेन्याश्रीलंका में निवास कर रही थी। यहाँ पर स्थित यह मंदिर पौराणिक महत्व से जुड़ा हुआ है, जिसमें एक कथा अनुसार बहुत प्राचीन समय पहले रामायण काल में भगवान श्री राम जी ने अपनी पत्नी सीता जी को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लंका पर चढाई करने का निश्चय किया।

राम जी ने अपनी सारी सेना के साथ रावण के राज्य लंका पर हमला बोल दिया और युद्ध आरंभ हो गया। कहा जाता है की उस समय देवी राघेन्या जी लंका में निवास कर रही थी। और जब युद्ध आरंभ हुआ तो उन्होंने भगवान हनुमान जी से कहा की अब वह यहाँ पर रह नहीं सकती व उनका समय समाप्त हो चुका है।


उन्होंने ही महावीर हनुमान से आग्रह किया था कि वह उन्हें श्रीलंका से बाहर हिमालय के कश्मीर क्षेत्र में जहां रावण के पिता पुलतस्य मुनी तपस्या कर रहे हैं, ले जाएं। मां राघेन्याने शिला रूप लिया। इसके बाद हनुमान उन्हें अपने कंधे पर उठाकर हिमालय पर्वत श्रृंखला में घूमने लगे। उन्होंने इसी स्थान पर मां राघेन्यादेवी को विश्राम कराया था। बाद में यह स्थान उपेक्षित हो गया। बाद में एक कश्मीरी पंडित को मां राघेन्यादेवी ने नाग रूप में दर्शन दिए और उसे इस स्थान पर लाया। जिस जगह देवी का स्थान है, वह चश्मे के बीचों बीच है। मंदिर में देवी की मूर्ति की स्थापना है। महाराजा प्रताप सिंह ने वर्ष 1912में इस मंदिर और चश्मे का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद महाराजा हरि सिंह ने भी इसका जीर्णोद्धार कराया था।

ज्येष्ठ माह में शुक्लपक्ष की अष्टमी को यहाँ पर मेले का आयोजन भी होता है इस पूजा के समय दूर दूर से भक्त यहाँ पहुँचते है। अपनी मनोकामनाओं के पूर्ण होने की कामना करते हैं इस अवसर पर देवी पर दूध चढ़ाया जाता है। एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि मंदिर के बाहर बड़ी संख्या में मुस्लिम दूधवाले इकट्ठा होते हैं जिनसे भक्त लोग दूध खरीदते हैं। वास्तव में यह उत्सव हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक भी बन गया है।

कैंसर की लड़ाई में जीतना चाहते हैं, तो ये करेंगे आपकी मदद


इंदौर। वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड (डब्ल्यूसीआरएफ) और द अमेरिकन इंस्टिट्यूट फॉर कैंसर रिसर्च (एआईसीआर) के मुताबिक वानस्पतिक खाद्य पदार्थ कई तरह के कैंसर के खिलाफ सुरक्षात्मक ढाल का काम करते हैं। इनमें भी इसोफैगस, पेट, कोलन, रेक्टम, लिवर, पैंक्रियाज, ओवरी, एंडोमेट्रियम और प्रोस्टेट ग्लैंड के कैंसर प्रमुख हैं। विशेषज्ञों की सलाह है कि कैंसर से जूझ रहे शख्स को अपने भोजन में अच्छी मात्रा में प्रोटीन और कैलोरी देने वाले खाद्य पदार्थ शामिल करने चाहिए।

इसकी वजह यह है कि कैंसर के उपचार में अमल में लाई जाने वाली रेडिएशन, कीमोथैरेपी, हार्मोन थैरेपी और सर्जरी के अनुरूप खान-पान ऐसा होना चाहिए जो न सिर्फ शरीर के ऊर्जा स्तर को बरकरार रखे, बल्कि बीमारी के खिलाफ लड़ाई में प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूती दे। ऐसे में जानते हैं कुछ प्रमुख खाद्य पदार्थो के बारे में, जो कैंसर के खिलाफ लड़ाई में महती भूमिका निभाते हैं।

हरी सब्जियां-

ब्रोकोली, फूलगोभी, बंदगोभी और अंकुरित अनाज में कैंसर से लड़ने वाले एंटी-ऑक्सीडेंट्स की भरमार होती है। इनमें भी ल्युटिन और जिजेंथिन प्रमुख है। ब्रोकोली, बंद गोभी और फूल गोभी में इंडोल-3-कार्बीनॉल नाम का एक रसायन पाया जाता है, जो ब्रेस्ट कैंसर से लड़ाई में महती भूमिका निभाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक खान-पान में हरी सब्जियां और फलों की मात्रा बढ़ाने से कैंसर की आशंका 30 से 40 फीसदी तक कम की जा सकती है।

डाइटरी फाइबर-

फाइबर वेस्ट और टॉक्सिंस को साफ कर उनसे होने वाले रोगों से बचाता है। यह वजन नियंत्रित रखने में भी मदद करता है। मोटापे या ज्यादा वजन से भी कैंसर की आशंका बढ़ती है।

गाजर-

गाजर में फैल्केरीनॉल नाम का एक फैटी अल्कोहल पाया जाता है, जो कैंसर की आशंका कम करता है। यही नहीं, गाजर में मौजूद बीटाकेरोटिन भी कैंसर के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है।

एलियम वेजीटेबल्स-

जर्नल ऑफ द नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक लहसुन, प्याज और हरे प्याज जैसी एलियम सब्जियां प्रोस्टेट कैंसर की आशंका कम करती हैं। इन सब्जियों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एलियम कंपाउंड पाए जाते हैं।

टमाटर-

टमाटर में लायकोपीन नाम का एंटी-ऑक्सीडेंट पाया जाता है, जो अपने कैंसर विरोधी गुणों के तौर पर जाना जाता है। हालिया अध्ययन बताते हैं कि लायकोपीन का अच्छी मात्रा में सेवन ब्रेस्ट, प्रोस्टेट पैंक्रियाज और कोलोरेक्टल कैंसर की आशंका कम करता है।

सोया उत्पाद-

इससे बने खाद्य पदार्थो में कई तरह के फायटोजट्रोजंस पोषक तत्व पाए जाते हैं। ये कैंसर कोशिकाओं को न सिर्फ बढ़ने से रोकते हैं, बल्कि ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की आशंका भी कम करते हैं।

अंगूर-

अंगूर में बायोफ्लेवोलॉयड्स पाया जाता है। यह एक किस्म के ताकतवर एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व होता है, जो कैंसर को रोकने में प्रभावी भूमिका निभाता है। अंगूर रेजवेराट्रोल का भी अच्छा स्रोत है। यह कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने में मदद करने वाले एंजाइम को रोकने में मदद करता है।

ग्रीन और ब्लैक टी-

इन दोनों तरह की चाय में पॉलिफिनॉल्स होता है। यह कैंसर कोशिकाओं को विभाजित होने से रोकने में कारगर है। इनकी ग्रीन और ब्लैक टी में प्रचुरता होती है। यह कई तरह के कैंसर की आशंका कम करता है।

अंत में-

पोषक खान-पान और उसमें कैंसर से लड़ने में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करने वाले उक्त खाद्य पदार्थो को शामिल करने से कैंसर के उपचार को गति मिलती है। इसके साथ ही कैंसर से जूझ रहे शख्स को स्वस्थ जीवनशैली अपनाना भी बेहद जरूरी है।

यहां नहीं आती हैं बहुएं, क्योंकि झाड़ू लगने से मरहूम है यह नगरी

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कोटा.कोटा नगर निगम के वार्ड 22 में आदर्श नगर (साजीदेहड़ा) के 20 परिवारों के बेटे महज इसलिए कुंवारे हैं क्योंकि उनके घरों के बाहर 12 साल से कभी झाडू लगाने वाला नहीं पहुंचा। जिनकी जैसे-तैसे शादियां हुई, किसी की पत्नी मायके जा बैठी तो कोई बुजुर्ग सास-ससुर को छोड़ पति के साथ दूसरी जगह किराए पर रहने लगी।

यहां के रहवासी दहलीज से बाहर फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं। यहां जरा भी ध्यान चूकने पर 4-5 फीट गहरे दलदल में धसने का खतरा रहता है। दुर्गंध भरे माहौल में रहने वाले यहां के लोगों की बारिश के दिनों में परेशानी और भी बढ़ जाती है।

महापौर से लेकर यूआईटी अधिकारियों तक को यहां के पीड़ित कई बार गुहार लगाने के साथ-साथ अदालत का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं, बावजूद स्थाई समाधान नहीं मिल पा रहा। लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

बरसों से जीवन बसर करने वाले इन परिवारों में से कई को तो यूआईटी ने पट्टे भी जारी कर दिए, ऐसे में ये घरों को छोड़ भी नहीं सकते। यहीं की 64 वर्षीय मुन्नीबी ढलती उम्र में चिंतित हैं, आखिर वो दिन कब आएगा, जब उसके घर बेटी देने की आस में आने वाले पावणो समधी बनने में झिझक महसूस नहीं करेंगे।

छोटे बेटे नसीम(23) उर्फ सन्नी को दुल्हन मिल सकेगी और इसी गंदगी से परेशान होकर रूठकर मायके जा बैठी बड़ी बहू घर लौटेगी

प्रशासन नहीं सुन रहा

25 वर्षीय वसीम अहमद ने बताया मेरी शादी 8 महीने पहले हुई, लेकिन थोड़े दिन बाद ही पत्नी दलदल व कीचड़ से परेशान होकर मायके चली गई। ससुराल वाले कहते हैं कि पहले नाले की समस्या का समाधान करवाओ, फिर बेटी भेजेंगे। कई बार महापौर व यूआईटी अधिकारियों को अवगत कराया, लेकिन कुछ भी समाधान नहीं हुआ।

जनाजा भी ठीक से नहीं निकाल सके

राशिदा बताती हैं कि 6 माह पहले उनके अब्बू मोहम्मद रफीक का इंतकाल हुआ। घर से गली के बाहर तक जनाजा भी बड़ी मुश्किल से निकला। हमीदा बेगम(65) ने बताया कि उनके दो बेटे है। बड़े बेटे शफी की शादी हुई तो बहू कुछ दिन बाद बेटे के साथ किराए का मकान लेकर दूसरी जगह रहने लगी। गोपालसिंह(62) ने बताया कि दरुगधभरे माहौल में जीना दूभर है। मकान धसने लगे है।

जनाजा भी ठीक से नहीं निकाल सके

राशिदा बताती हैं कि 6 माह पहले उनके अब्बू मोहम्मद रफीक का इंतकाल हुआ। घर से गली के बाहर तक जनाजा भी बड़ी मुश्किल से निकला। हमीदा बेगम(65) ने बताया कि उनके दो बेटे है। बड़े बेटे शफी की शादी हुई तो बहू कुछ दिन बाद बेटे के साथ किराए का मकान लेकर दूसरी जगह रहने लगी। गोपालसिंह(62) ने बताया कि दरुगधभरे माहौल में जीना दूभर है। मकान धसने लगे है।

अदालत के आदेश भी हवा

मामले में यहीं के सत्यनारायण ने अदालत में 2007 में याचिका भी लगाई। अदालत ने यूआईटी सचिव व महापौर को आदेश दे सरकारी रास्ते की साफ सफाई कर आवागमन योग्य बनाने के आदेश दिए थे। बावजूद इसकी पालना नहीं करवाई जा सकी।

दुबारा नए सिरे से दिखवाते है, समाधान करवाएंगे

मामले में यूआईटी सचिव रामदयाल मीणा ने बताया कि यह मामला पहले भी सामने आया था। दुबारा नए सिरे से इस समस्या को दिखवाकर समाधान करवाया जाएगा। वहीं, महापौर रत्ना जैन ने बताया कि मेरी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं आई है। कल ही मामला दिखवाती हूं।

विश्वमोहिनी का स्वयंवर, शिवगणों तथा भगवान्‌ को शाप और नारद का मोहभंग

बालकाण्ड

दोहा :
* आनि देखाई नारदहि भूपति राजकुमारि।
कहहु नाथ गुन दोष सब एहि के हृदयँ बिचारि॥130॥
भावार्थ:-(फिर) राजा ने राजकुमारी को लाकर नारदजी को दिखलाया (और पूछा कि-) हे नाथ! आप अपने हृदय में विचार कर इसके सब गुण-दोष कहिए॥130॥
चौपाई :
*देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी॥
लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने॥1॥
भावार्थ:-उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको भी भूल गए और हृदय में हर्षित हुए, पर प्रकट रूप में उन लक्षणों को नहीं कहा॥1॥
* जो एहि बरइ अमर सोइ होई। समरभूमि तेहि जीत न कोई॥
सेवहिं सकल चराचर ताही। बरइ सीलनिधि कन्या जाही॥2॥
भावार्थ:-(लक्षणों को सोचकर वे मन में कहने लगे कि) जो इसे ब्याहेगा, वह अमर हो जाएगा और रणभूमि में कोई उसे जीत न सकेगा। यह शीलनिधि की कन्या जिसको वरेगी, सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे॥2॥
* लच्छन सब बिचारि उर राखे। कछुक बनाइ भूप सन भाषे॥
सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं। नारद चले सोच मन माहीं॥3॥
भावार्थ:-सब लक्षणों को विचारकर मुनि ने अपने हृदय में रख लिया और राजा से कुछ अपनी ओर से बनाकर कह दिए। राजा से लड़की के सुलक्षण कहकर नारदजी चल दिए। पर उनके मन में यह चिन्ता थी कि- ॥3॥
* करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी॥
जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला॥4॥
भावार्थ:-मैं जाकर सोच-विचारकर अब वही उपाय करूँ, जिससे यह कन्या मुझे ही वरे। इस समय जप-तप से तो कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता! मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी?॥4॥
दोहा :
* एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल।
जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल॥131॥
भावार्थ:-इस समय तो बड़ी भारी शोभा और विशाल (सुंदर) रूप चाहिए, जिसे देखकर राजकुमारी मुझ पर रीझ जाए और तब जयमाल (मेरे गले में) डाल दे॥131॥
चौपाई :
* हरि सन मागौं सुंदरताई। होइहि जात गहरु अति भाई॥
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥1॥
भावार्थ:-(एक काम करूँ कि) भगवान से सुंदरता माँगूँ, पर भाई! उनके पास जाने में तो बहुत देर हो जाएगी, किन्तु श्री हरि के समान मेरा हितू भी कोई नहीं है, इसलिए इस समय वे ही मेरे सहायक हों॥1॥
* बहुबिधि बिनय कीन्हि तेहि काला। प्रगटेउ प्रभु कौतुकी कृपाला॥
प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने। होइहि काजु हिएँ हरषाने॥2॥
भावार्थ:-उस समय नारदजी ने भगवान की बहुत प्रकार से विनती की। तब लीलामय कृपालु प्रभु (वहीं) प्रकट हो गए। स्वामी को देखकर नारदजी के नेत्र शीतल हो गए और वे मन में बड़े ही हर्षित हुए कि अब तो काम बन ही जाएगा॥2॥
* अति आरति कहि कथा सुनाई। करहु कृपा करि होहु सहाई॥
आपन रूप देहु प्रभु मोहीं। आन भाँति नहिं पावौं ओही॥3॥
भावार्थ:-नारदजी ने बहुत आर्त (दीन) होकर सब कथा कह सुनाई (और प्रार्थना की कि) कृपा कीजिए और कृपा करके मेरे सहायक बनिए। हे प्रभो! आप अपना रूप मुझको दीजिए और किसी प्रकार मैं उस (राजकन्या) को नहीं पा सकता॥3॥
* जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
निज माया बल देखि बिसाला। हियँ हँसि बोले दीनदयाला॥4॥
भावार्थ:-हे नाथ! जिस तरह मेरा हित हो, आप वही शीघ्र कीजिए। मैं आपका दास हूँ। अपनी माया का विशाल बल देख दीनदयालु भगवान मन ही मन हँसकर बोले-॥4॥
दोहा :
* जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार॥132॥
भावार्थ:-हे नारदजी! सुनो, जिस प्रकार आपका परम हित होगा, हम वही करेंगे, दूसरा कुछ नहीं। हमारा वचन असत्य नहीं होता॥132॥
चौपाई :
* कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी। बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी॥
एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ। कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ॥1॥
भावार्थ:-हे योगी मुनि! सुनिए, रोग से व्याकुल रोगी कुपथ्य माँगे तो वैद्य उसे नहीं देता। इसी प्रकार मैंने भी तुम्हारा हित करने की ठान ली है। ऐसा कहकर भगवान अन्तर्धान हो गए॥1॥
* माया बिबस भए मुनि मूढ़ा। समुझी नहिं हरि गिरा निगूढ़ा॥
गवने तुरत तहाँ रिषिराई। जहाँ स्वयंबर भूमि बनाई॥2॥
भावार्थ:-(भगवान की) माया के वशीभूत हुए मुनि ऐसे मूढ़ हो गए कि वे भगवान की अगूढ़ (स्पष्ट) वाणी को भी न समझ सके। ऋषिराज नारदजी तुरंत वहाँ गए जहाँ स्वयंवर की भूमि बनाई गई थी॥2॥
* निज निज आसन बैठे राजा। बहु बनाव करि सहित समाजा॥
मुनि मन हरष रूप अति मोरें। मोहि तजि आनहि बरिहि न भोरें॥3॥
भावार्थ:-राजा लोग खूब सज-धजकर समाज सहित अपने-अपने आसन पर बैठे थे। मुनि (नारद) मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि मेरा रूप बड़ा सुंदर है, मुझे छोड़ कन्या भूलकर भी दूसरे को न वरेगी॥3॥
* मुनि हित कारन कृपानिधाना। दीन्ह कुरूप न जाइ बखाना॥
सो चरित्र लखि काहुँ न पावा। नारद जानि सबहिं सिर नावा॥4॥
भावार्थ:-कृपानिधान भगवान ने मुनि के कल्याण के लिए उन्हें ऐसा कुरूप बना दिया कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता, पर यह चरित कोई भी न जान सका। सबने उन्हें नारद ही जानकर प्रणाम किया॥4॥
दोहा :
* रहे तहाँ दुइ रुद्र गन ते जानहिं सब भेउ।
बिप्रबेष देखत फिरहिं परम कौतुकी तेउ॥133॥
भावार्थ:-वहाँ शिवजी के दो गण भी थे। वे सब भेद जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर सारी लीला देखते-फिरते थे। वे भी बड़े मौजी थे॥133॥
चौपाई :
* जेहिं समाज बैठे मुनि जाई। हृदयँ रूप अहमिति अधिकाई॥
तहँ बैठे महेस गन दोऊ। बिप्रबेष गति लखइ न कोऊ॥1॥
भावार्थ:-नारदजी अपने हृदय में रूप का बड़ा अभिमान लेकर जिस समाज (पंक्ति) में जाकर बैठे थे, ये शिवजी के दोनों गण भी वहीं बैठ गए। ब्राह्मण के वेष में होने के कारण उनकी इस चाल को कोई न जान सका॥1॥
* करहिं कूटि नारदहि सुनाई। नीकि दीन्हि हरि सुंदरताई॥
रीझिहि राजकुअँरि छबि देखी। इन्हहि बरिहि हरि जानि बिसेषी॥2॥
भावार्थ:-वे नारदजी को सुना-सुनाकर, व्यंग्य वचन कहते थे- भगवान ने इनको अच्छी 'सुंदरता' दी है। इनकी शोभा देखकर राजकुमारी रीझ ही जाएगी और 'हरि' (वानर) जानकर इन्हीं को खास तौर से वरेगी॥2॥
* मुनिहि मोह मन हाथ पराएँ। हँसहिं संभु गन अति सचु पाएँ॥
जदपि सुनहिं मुनि अटपटि बानी। समुझि न परइ बुद्धि भ्रम सानी॥3॥
भावार्थ:-नारद मुनि को मोह हो रहा था, क्योंकि उनका मन दूसरे के हाथ (माया के वश) में था। शिवजी के गण बहुत प्रसन्न होकर हँस रहे थे। यद्यपि मुनि उनकी अटपटी बातें सुन रहे थे, पर बुद्धि भ्रम में सनी हुई होने के कारण वे बातें उनकी समझ में नहीं आती थीं (उनकी बातों को वे अपनी प्रशंसा समझ रहे थे)॥3॥
* काहुँ न लखा सो चरित बिसेषा। सो सरूप नृपकन्याँ देखा॥
मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदयँ क्रोध भा तेही॥4॥
भावार्थ:-इस विशेष चरित को और किसी ने नहीं जाना, केवल राजकन्या ने (नारदजी का) वह रूप देखा। उनका बंदर का सा मुँह और भयंकर शरीर देखते ही कन्या के हृदय में क्रोध उत्पन्न हो गया॥4॥
दोहा :
* सखीं संग लै कुअँरि तब चलि जनु राजमराल।
देखत फिरइ महीप सब कर सरोज जयमाल॥134॥
भावार्थ:-तब राजकुमारी सखियों को साथ लेकर इस तरह चली मानो राजहंसिनी चल रही है। वह अपने कमल जैसे हाथों में जयमाला लिए सब राजाओं को देखती हुई घूमने लगी॥134॥
चौपाई :
* जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिं न बिलोकी भूली॥
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं॥1॥
भावार्थ:-जिस ओर नारदजी (रूप के गर्व में) फूले बैठे थे, उस ओर उसने भूलकर भी नहीं ताका। नारद मुनि बार-बार उचकते और छटपटाते हैं। उनकी दशा देखकर शिवजी के गण मुसकराते हैं॥1॥
* धरि नृपतनु तहँ गयउ कृपाला। कुअँरि हरषि मेलेउ जयमाला॥
दुलहिनि लै गे लच्छिनिवासा। नृपसमाज सब भयउ निरासा॥2॥
भावार्थ:-कृपालु भगवान भी राजा का शरीर धारण कर वहाँ जा पहुँचे। राजकुमारी ने हर्षित होकर उनके गले में जयमाला डाल दी। लक्ष्मीनिवास भगवान दुलहिन को ले गए। सारी राजमंडली निराश हो गई॥2॥
* मुनि अति बिकल मोहँ मति नाठी। मनि गिरि गई छूटि जनु गाँठी॥
तब हर गन बोले मुसुकाई। निज मुख मुकुर बिलोकहु जाई॥3॥
भावार्थ:-मोह के कारण मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी, इससे वे (राजकुमारी को गई देख) बहुत ही विकल हो गए। मानो गाँठ से छूटकर मणि गिर गई हो। तब शिवजी के गणों ने मुसकराकर कहा- जाकर दर्पण में अपना मुँह तो देखिए!॥3॥
* अस कहि दोउ भागे भयँ भारी। बदन दीख मुनि बारि निहारी॥
बेषु बिलोकि क्रोध अति बाढ़ा। तिन्हहि सराप दीन्ह अति गाढ़ा॥4॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर वे दोनों बहुत भयभीत होकर भागे। मुनि ने जल में झाँककर अपना मुँह देखा। अपना रूप देखकर उनका क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने शिवजी के उन गणों को अत्यन्त कठोर शाप दिया-॥4॥
दोहा :
* होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ।
हँसेहु हमहि सो लेहु फल बहुरि हँसेहु मुनि कोउ॥।135॥
भावार्थ:-तुम दोनों कपटी और पापी जाकर राक्षस हो जाओ। तुमने हमारी हँसी की, उसका फल चखो। अब फिर किसी मुनि की हँसी करना।135॥
चौपाई :
* पुनि जल दीख रूप निज पावा। तदपि हृदयँ संतोष न आवा॥
फरकत अधर कोप मन माहीं। सपदि चले कमलापति पाहीं॥1॥
भावार्थ:-मुनि ने फिर जल में देखा, तो उन्हें अपना (असली) रूप प्राप्त हो गया, तब भी उन्हें संतोष नहीं हुआ। उनके होठ फड़क रहे थे और मन में क्रोध (भरा) था। तुरंत ही वे भगवान कमलापति के पास चले॥1॥
* देहउँ श्राप कि मरिहउँ जाई। जगत मोरि उपहास कराई॥
बीचहिं पंथ मिले दनुजारी। संग रमा सोइ राजकुमारी॥2॥
भावार्थ:-(मन में सोचते जाते थे-) जाकर या तो शाप दूँगा या प्राण दे दूँगा। उन्होंने जगत में मेरी हँसी कराई। दैत्यों के शत्रु भगवान हरि उन्हें बीच रास्ते में ही मिल गए। साथ में लक्ष्मीजी और वही राजकुमारी थीं॥2॥
* बोले मधुर बचन सुरसाईं। मुनि कहँ चले बिकल की नाईं॥
सुनत बचन उपजा अति क्रोधा। माया बस न रहा मन बोधा॥3॥
भावार्थ:-देवताओं के स्वामी भगवान ने मीठी वाणी में कहा- हे मुनि! व्याकुल की तरह कहाँ चले? ये शब्द सुनते ही नारद को बड़ा क्रोध आया, माया के वशीभूत होने के कारण मन में चेत नहीं रहा॥3॥
* पर संपदा सकहु नहिं देखी। तुम्हरें इरिषा कपट बिसेषी॥
मथत सिंधु रुद्रहि बौरायहु। सुरन्ह प्रेरि बिष पान करायहु॥4॥
भावार्थ:-(मुनि ने कहा-) तुम दूसरों की सम्पदा नहीं देख सकते, तुम्हारे ईर्ष्या और कपट बहुत है। समुद्र मथते समय तुमने शिवजी को बावला बना दिया और देवताओं को प्रेरित करके उन्हें विषपान कराया॥4॥
दोहा :
* असुर सुरा बिष संकरहि आपु रमा मनि चारु।
स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु॥136॥
भावार्थ:-असुरों को मदिरा और शिवजी को विष देकर तुमने स्वयं लक्ष्मी और सुंदर (कौस्तुभ) मणि ले ली। तुम बड़े धोखेबाज और मतलबी हो। सदा कपट का व्यवहार करते हो॥136॥
चौपाई :
* परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥
भलेहि मंद मंदेहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥1॥
भावार्थ:-तुम परम स्वतंत्र हो, सिर पर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मन को भाता है, (स्वच्छन्दता से) वही करते हो। भले को बुरा और बुरे को भला कर देते हो। हृदय में हर्ष-विषाद कुछ भी नहीं लाते॥1॥
* डहकि डहकि परिचेहु सब काहू। अति असंक मन सदा उछाहू॥
करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा। अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा॥2॥
भावार्थ:-सबको ठग-ठगकर परक गए हो और अत्यन्त निडर हो गए हो, इसी से (ठगने के काम में) मन में सदा उत्साह रहता है। शुभ-अशुभ कर्म तुम्हें बाधा नहीं देते। अब तक तुम को किसी ने ठीक नहीं किया था॥2॥
* भले भवन अब बायन दीन्हा। पावहुगे फल आपन कीन्हा॥
बंचेहु मोहि जवनि धरि देहा। सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा॥3॥
भावार्थ:-अबकी तुमने अच्छे घर बैना दिया है (मेरे जैसे जबर्दस्त आदमी से छेड़खानी की है।) अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर को धारण करके तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है॥3॥
* कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥4॥
भावार्थ:-तुमने हमारा रूप बंदर का सा बना दिया था, इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। (मैं जिस स्त्री को चाहता था, उससे मेरा वियोग कराकर) तुमने मेरा बड़ा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होंगे॥4॥
दोहा :
* श्राप सीस धरि हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि॥
निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि॥137॥
भावार्थ:-शाप को सिर पर चढ़ाकर, हृदय में हर्षित होते हुए प्रभु ने नारदजी से बहुत विनती की और कृपानिधान भगवान ने अपनी माया की प्रबलता खींच ली॥137॥
चौपाई :
* जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी॥
तब मुनि अति सभीत हरि चरना। गहे पाहि प्रनतारति हरना॥1॥
भावार्थ:-जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यन्त भयभीत होकर श्री हरि के चरण पकड़ लिए और कहा- हे शरणागत के दुःखों को हरने वाले! मेरी रक्षा कीजिए॥1॥
* मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला॥
मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे॥2॥
भावार्थ:-हे कृपालु! मेरा शाप मिथ्या हो जाए। तब दीनों पर दया करने वाले भगवान ने कहा कि यह सब मेरी ही इच्छा (से हुआ) है। मुनि ने कहा- मैंने आप को अनेक खोटे वचन कहे हैं। मेरे पाप कैसे मिटेंगे?॥2॥
* जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत बिश्रामा॥
कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें॥3॥
भावार्थ:-(भगवान ने कहा-) जाकर शंकरजी के शतनाम का जप करो, इससे हृदय में तुरंत शांति होगी। शिवजी के समान मुझे कोई प्रिय नहीं है, इस विश्वास को भूलकर भी न छोड़ना॥3॥
*जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी॥
अस उर धरि महि बिचरहु जाई। अब न तुम्हहि माया निअराई॥4॥
भावार्थ:-हे मुनि ! पुरारि (शिवजी) जिस पर कृपा नहीं करते, वह मेरी भक्ति नहीं पाता। हृदय में ऐसा निश्चय करके जाकर पृथ्वी पर विचरो। अब मेरी माया तुम्हारे निकट नहीं आएगी॥4॥
दोहा :
* बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान।
सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान॥138॥
भावार्थ:-बहुत प्रकार से मुनि को समझा-बुझाकर (ढाँढस देकर) तब प्रभु अंतर्द्धान हो गए और नारदजी श्री रामचन्द्रजी के गुणों का गान करते हुए सत्य लोक (ब्रह्मलोक) को चले॥138॥
चौपाई :
* हर गन मुनिहि जात पथ देखी। बिगत मोह मन हरष बिसेषी॥
अति सभीत नारद पहिं आए। गहि पद आरत बचन सुहाए॥1॥
भावार्थ:-शिवजी के गणों ने जब मुनि को मोहरहित और मन में बहुत प्रसन्न होकर मार्ग में जाते हुए देखा तब वे अत्यन्त भयभीत होकर नारदजी के पास आए और उनके चरण पकड़कर दीन वचन बोले-॥1॥
* हर गन हम न बिप्र मुनिराया। बड़ अपराध कीन्ह फल पाया॥
श्राप अनुग्रह करहु कृपाला। बोले नारद दीनदयाला॥2॥
भावार्थ:-हे मुनिराज! हम ब्राह्मण नहीं हैं, शिवजी के गण हैं। हमने बड़ा अपराध किया, जिसका फल हमने पा लिया। हे कृपालु! अब शाप दूर करने की कृपा कीजिए। दीनों पर दया करने वाले नारदजी ने कहा-॥2॥
* निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ। बैभव बिपुल तेज बल होऊ॥
भुज बल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ। धरिहहिं बिष्नु मनुज तनु तहिआ॥3॥
भावार्थ:-तुम दोनों जाकर राक्षस होओ, तुम्हें महान ऐश्वर्य, तेज और बल की प्राप्ति हो। तुम अपनी भुजाओं के बल से जब सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य का शरीर धारण करेंगे॥3॥
* समर मरन हरि हाथ तुम्हारा। होइहहु मुकुत न पुनि संसारा॥
चले जुगल मुनि पद सिर नाई। भए निसाचर कालहि पाई॥4॥
भावार्थ:-युद्ध में श्री हरि के हाथ से तुम्हारी मृत्यु होगी, जिससे तुम मुक्त हो जाओगे और फिर संसार में जन्म नहीं लोगे। वे दोनों मुनि के चरणों में सिर नवाकर चले और समय पाकर राक्षस हुए॥4॥
दोहा :
* एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार।
सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुमि भार॥139॥
भावार्थ:-देवताओं को प्रसन्न करने वाले, सज्जनों को सुख देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने एक कल्प में इसी कारण मनुष्य का अवतार लिया था॥139॥
चौपाई :
* एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुंदर सुखद बिचित्र घनेरे॥
कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं॥1॥
भावार्थ:-इस प्रकार भगवान के अनेक सुंदर, सुखदायक और अलौकिक जन्म और कर्म हैं। प्रत्येक कल्प में जब-जब भगवान अवतार लेते हैं और नाना प्रकार की सुंदर लीलाएँ करते हैं,॥1॥
* तब-तब कथा मुनीसन्ह गाई। परम पुनीत प्रबंध बनाई॥
बिबिध प्रसंग अनूप बखाने। करहिं न सुनि आचरजु सयाने॥2॥
भावार्थ:-तब-तब मुनीश्वरों ने परम पवित्र काव्य रचना करके उनकी कथाओं का गान किया है और भाँति-भाँति के अनुपम प्रसंगों का वर्णन किया है, जिनको सुनकर समझदार (विवेकी) लोग आश्चर्य नहीं करते॥2॥
* हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥3॥
भावार्थ:-श्री हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। श्री रामचन्द्रजी के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते॥3॥
* यह प्रसंग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी॥
प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी। सेवत सुलभ सकल दुखहारी॥4॥
भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं कि) हे पार्वती! मैंने यह बताने के लिए इस प्रसंग को कहा कि ज्ञानी मुनि भी भगवान की माया से मोहित हो जाते हैं। प्रभु कौतुकी (लीलामय) हैं और शरणागत का हित करने वाले हैं। वे सेवा करने में बहुत सुलभ और सब दुःखों के हरने वाले हैं॥4॥
सोरठा :
* सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल।
अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि॥140॥
भावार्थ:-देवता, मनुष्य और मुनियों में ऐसा कोई नहीं है, जिसे भगवान की महान बलवती माया मोहित न कर दे। मन में ऐसा विचारकर उस महामाया के स्वामी (प्रेरक) श्री भगवान का भजन करना चाहिए॥140॥
चौपाई :
*अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी॥
जेहि कारन अज अगुन अरूपा। ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा॥1॥
भावार्थ:-हे गिरिराजकुमारी! अब भगवान के अवतार का वह दूसरा कारण सुनो- मैं उसकी विचित्र कथा विस्तार करके कहता हूँ- जिस कारण से जन्मरहित, निर्गुण और रूपरहित (अव्यक्त सच्चिदानंदघन) ब्रह्म अयोध्यापुरी के राजा हुए॥1॥
* जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा। बंधु समेत धरें मुनिबेषा॥
जासु चरित अवलोकि भवानी। सती सरीर रहिहु बौरानी॥2॥
भावार्थ:-जिन प्रभु श्री रामचन्द्रजी को तुमने भाई लक्ष्मणजी के साथ मुनियों का सा वेष धारण किए वन में फिरते देखा था और हे भवानी! जिनके चरित्र देखकर सती के शरीर में तुम ऐसी बावली हो गई थीं कि- ॥2॥
* अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी। तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी॥
लीला कीन्हि जो तेहिं अवतारा। सो सब कहिहउँ मति अनुसारा॥3॥
भावार्थ:-अब भी तुम्हारे उस बावलेपन की छाया नहीं मिटती, उन्हीं के भ्रम रूपी रोग के हरण करने वाले चरित्र सुनो। उस अवतार में भगवान ने जो-जो लीला की, वह सब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार तुम्हें कहूँगा॥3॥
* भरद्वाज सुनि संकर बानी। सकुचि सप्रेम उमा मुसुकानी॥
लगे बहुरि बरनै बृषकेतू। सो अवतार भयउ जेहि हेतू॥4॥
भावार्थ:-(याज्ञवल्क्यजी ने कहा-) हे भरद्वाज! शंकरजी के वचन सुनकर पार्वतीजी सकुचाकर प्रेमसहित मुस्कुराईं। फिर वृषकेतु शिवजी जिस कारण से भगवान का वह अवतार हुआ था, उसका वर्णन करने लगे॥4॥

कुरान का संदेश

सामाजिक एकता के प्रतीक संत रविदास की जयंती कल

हमारे देश में समय-समय पर कई महान संत हुए जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया। संत रविदास भी उन्हीं में से एक थे। संत रविदास को ही रैदास के नाम से भी जाना जाता है। इस बार संत रविदास जयंती 7 फरवरी, मंगलवार को है।

संत रविदास ने साधु-सन्तों की संगति से व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा पाई। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। प्रारम्भ से ही रैदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव था।

साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊँच-नीच आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। संत रविदास की भक्ति से प्रभावित भक्तों की एक लंबी श्रृंखला है। संत रविदास के आदर्शों और उपदेशों को मानने वाले 'रैदास पंथी' कहलाते हैं। रविदास के पद, नारद भक्ति सूत्र और रविदास की बानी उनके प्रमुख संग्रह हैं।

जीरे और मिश्री को ऐसे खा लेने से पथरी के हो जाएंगे टुकड़े-टुकड़े

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पथरी एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी को असहनीय पेट दर्द होता है। कई बार पेशाब होना रुक जाता है। मूत्र मार्ग में संक्रमण और पानी कम पीने से गुर्दे में पथरी बनने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा होती हैं। इसके साथ ही रोजमर्रा में कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ भी हैं, जिनका सेवन पथरी बनने का कारण हो सकता है।
उन्हीं के अंशों से स्टोन का रूप धारण करते जाते हैं। धीरे-धीरे इन छोटी पथरियों पर क्रिस्टल जमा होते जाते हैं और बड़ी पथरी का रूप धारण कर लेती है।जैसे खाने के चीजो से पथरी हो सकती है ठीक उसी प्रकार खाने की चीजों से ही पथरी का इलाज भी हो सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं पथरी के इलाज के लिए कुछ ऐसी ही टिप्स....
- तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फंसी पथरी निकल जाती है।
- एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस-बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, उसके बाद मूली को भून लें,उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें। सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे,पथरी और पेशाब वाली बीमारियों में फायदा मिलेगा।
- जीरे को मिश्री की चाशनी बनाकर उसमें या शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
- यदि मूत्र पिंड में पथरी हो और पेशाब रुक रुक कर आना चालू हो गया है तो एक गाजर को नित्य खाना चालू कर देना चाहिये,इससे मूत्रावरोध दूर होगा,और पेशाब खुलकर साफ होगा,पेशाब के साथ ही पथरी घुल कर निकल जायेगी।

- प्याज पथरी के इलाज के लिए औषधीय गुण पाए जाते हैं। अगर आप सही ढंग से इस घरेलू उपचार का पालन करेंगे तो आपको इसका हैरान कर देने वाला परिणाम मिलेगा। आपको इसका रस पीना है लेकिन पके हुए प्याज का। इसके लिए आप दो मध्यम आकर के प्याज लेकर उन्हें अच्छी तरह से छिल लें। फिर एक बर्तन में एक ग्लास पानी डालें और दोनों प्याज को मध्यम आंच पर उसमें पका लें। जब वे अच्छी तरह से पक जाये तो उन्हें ठंडा होने दें फिर उन्हें ब्लेंडर में डालकर अच्छी तरह से ब्लेंड कर लें। उसके बाद उनके रस को छान लें एवं इस रस का तीन दिनों तक लगातार सेवन करते रहे। यह घरेलू उपाय रामबाण का काम करता है।

तीन तलाक़ एक साथ देने वाले की पीठ पर कोड़े बरसाते थे इस्लामी ख़लीफ़ा


आवारगी को औरत की आजादी का नाम न दें : आलिम-ए-खवातीन
आवारगी को औरत की आजादी का नाम न दें : आलिम-ए-खवातीन
भोपाल। ताजुल मसाजिद परिसर में आयोजित दो दिनी 12वें खवातीन इज्तिमा (औरतों का सम्मेलन) का रविवार को समापन हो गया। लगभग 20 हजार खवातीन के मजमे के बीच आलिम-ए-खवातीन ने दीन पर चलने और अल्लाह के हुक्म को मानने की नसीहत देते हुए कहा कि औरतों को शरीअत और इस्लाम के साये में ही जिंदगी बसर करना चाहिए। इसमें ही उनकी भलाई है।
आखिरी और दूसरे दिन का आगाज मोहतरमा अकीका साहिबा के दर्से कुरआन से हुआ। इसके बाद मोहतरमा निदा साहिबा ने ‘आजादी और निस्बा फरेब और नारा’ पर कहा कि आवारगी को औरत की आजादी का नाम दिया जा रहा है। आजादी का ये अर्थ किसी भी तरह से कुबूल नहीं किया जा सकता कि औरत बेबाकी से मर्दो के साथ घुल मिल जाये। व्यावासायिक कारोबार के लिए उसके हुस्नों जमाल को इस्तेमाल किया जाये। आर्थिक उन्नति के नाम पर शैक्षणिक संस्थाओं में बेहयाई और सेक्स को बढ़ावा दिया जाये। मोहतरमा अनीसा साहिबा ने कहा कि इस्लामिक शिक्षा की रोशनी में औरत का लिबास ऐसा होना चाहिए कि उसका बदन पूरी तरह ढंका रहे। घर से बाहर निकलें तो अपनी ‘जीनत’ जेबर, कपड़े और चेहरा आदि को छुपा लेना चाहिए।

निकाह और तलाक का हक पर कनाडा से आए इकबाल मसूद नदवी ने कहा कि इस्लाम में निकाह के लिये जो हुक्म दिये हैं उनका उद्देश्य समाज में रिश्ते-नाते वजूद में लाना है। शरीके हयात के चुनाव में भी यह नसीहत दी गई है कि पैसा और खूबसूरती से ज्यादा सलाहित और चरित्र को महत्व दिया जाये। शादी के बाद पति-पत्नी में निभती नहीं है तो इस्लामिक तलाक का विकल्प खुला हुआ है, ताकि जिंदगी बोझ न बने, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि तलाक देने के जो तरीके शरीयत में बताये गये हैं यदि तमाम कोशिशें नाकाम हो जाती हैं तो आखिरी फैसला तलाक का है। तलाक के बाद दूसरी शादी को इस्लाम मान्यता देता है। हैदराबाद से तशरीफ लाईं नासिरा खानम ने शाम को नेकी पर कायम रहने और शरीयत और इस्लाम के हिसाब से जिंदगी गुजर करने की दुआ करते हुए मौजूद ख्वातीन हजरात को नसीहत दी। इस इज्तिमा में तकरीबन 20 हजार महिलाएं शामिल हुईं।
पूरी रिपोर्ट इस लिंक पर देखें-

आवारगी को औरत की आजादी का नाम न दें : आलिम-ए-खवातीन

एक मुश्त तीन तलाक़ देना ‘बिदअत‘ है, गुनाह है, तलाक़ का मिसयूज़ है। यह कमी मुस्लिम समाज की है न कि इस्लाम की। अल्लाह की नज़र में जायज़ चीज़ों में सबसे ज़्यादा नापसंद तलाक़ है। जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं, बहुत से अलग-अलग मिज़ाजों के लोगों के सामने बहुत तरह की समस्याएं आती हैं। जब दोनों का साथ रहना मुमकिन हो और दोनों तरफ़ के लोगों के समझाने के बाद भी वे साथ रहने के लिए तैयार न हों तो फिर समाज के लिए एक सेफ़्टी वाल्व की तरह है तलाक़। तलाक़ का आदर्श तरीक़ा कुरआन में है। कुरआन की 65 वीं सूरह का नाम ही ‘सूरा ए तलाक़‘ है। तलाक़ का उससे अच्छा तरीक़ा दुनिया में किसी समाज के पास नहीं है। हिन्दू समाज में तलाक़ का कॉन्सेप्ट ही नहीं था। उसने इस्लाम से लिया है तलाक़ और पुनर्विवाह का सिद्धांत। इस्लाम को अंश रूप में स्वीकारने वाले समाज से हम यही कहते हैं कि इसे आप पूर्णरूपेण ग्रहण कीजिए। आपका मूल धर्म भी यही है।
तलाक़ का सही तरीक़ा क़ुरआन की सूरा ए तलाक़ में बता दिया गया है। एक साथ तीन तलाक़ देना क़ुरआन का तरीक़ा नहीं है। इस तरीक़े को पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. ने सख्त नापसंद फ़रमाया है और जो आदमी एक साथ तीन तलाक़ दिया करता था, इस्लामी ख़लीफ़ा इसे इस्लामी शरीअत के साथ खिलवाड़ मानते थे और इसे औरत का हक़ मारना समझते थे। ऐसे आदमी की पीठ पर कोड़े बरसाए जाते थे। लिहाज़ा इस्लामी ख़लीफ़ाओं के काल में तीन तलाक़ एक साथ देने की हिम्मत कोई न करता था। आज भी ऐसे लोगों की पीठ पर कोड़े बरसाए जाएं तो औरत के जज़्बात के साथ खिलवाड़ तुरंत रूक जाएगा।
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