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08 फ़रवरी 2012

भगवान शिव की पत्नी ने नाग को हरा, हमें दिया कश्मीर के स्वर्ग का तोहफा

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प्राचीनकाल में कश्मीर में हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का बोल बाला रहा है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पत्नी देवी सती यहां रहती थीं। यहां चारो तरफ केवल पानी ही पानी था।

बताया जाता है कि यहां एक राक्षस नाग भी रहता था, जिसे वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर हरा दिया। इसके बाद ज्यादातर पानी वितस्ता (झेलम) नदी के रास्ते बहा दिया। इस तरह इस जगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे अधिक तर्कसंगत प्रसंग यह है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर (अथवा कछुओं की झील) था। इसी से कश्मीर नाम निकला।

कश्मीर का अच्छा-ख़ासा इतिहास कल्हण (और बाद के अन्य लेखकों) के ग्रंथ राजतरंगिणी से मिलता है । प्राचीन काल में यहां हिन्दू आर्य राजाओं का राज था ।

मौर्य सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्क के समय कश्मीर बौद्ध धर्म और संस्कृति का मुख्य केन्द्र बन गया । पूर्व-मध्ययुग में यहां के चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने एक विशाल साम्राज्य क़ायम कर लिया था। कश्मीर संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द्र रहा।

कश्मीर शैवदर्शन भी यहीं पैदा हुआ और पनपा। यहां के महान मनीषीयों में पतञ्जलि, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, कल्हण, क्षेमराज आदि हैं। यह धारणा है कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं योग वासिष्ठ यहीं लिखे गये।

पत्नी के प्यार में बादशाह ने जन्नत में बनाया यादगार निशानी


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शालीमार बाग को मुगल बादशाह जहागीर ने श्रीनगर में बनवाया था। इसे जहांगीर ने अपनी प्रिय एवं बुद्धिमती पत्नी मेहरुन्निसा के लिये बनवाया था, जिसे नूरजहां की उपाधि दी गई थी। इस बाग में कुछ कक्ष बने हैं। अंतिम कक्ष शाही परिवार की स्त्रियों के लिए था।
इसके सामने दोनों ओर सुंदर झरने बने हैं। मुगल उद्यानों के पीछे की ओर जावरान पहाडियां हैं, तो सामने डल झील का विस्तार नजर आता है। इन उद्यानों में चिनार के पेडों के अलावा और भी छायादार वृक्ष हैं। रंग-बिरंगे फूलों की तो इनमें भरमार रहती है। इन उद्यानों के मध्य बनाए गए झरनों से बहता पानी भी सैलानियों को मुग्ध कर देता है। ये सभी बाग वास्तव में शाही आरामगाह के उत्कृष्ट नमूने हैं।
इस बाग में चार स्तर पर उद्यान बने हैं, एवं जलधारा बहती है। इसकी जलापूर्ति निकटवर्ती हरिवन बाग से होती है। उच्चतम स्तर पर उद्यान, जो कि निचले स्तर से दिखाई नहीं देता है, वह हरम की महिलाओं हेतु बना था। यह उद्यान ग्रीष्म एवं पतझड़ में सर्वोत्तम कहलाता है। इस ऋतु में पत्तों का रंग बदलता है, एवं अनेकों फूल खिलते हैं।
यही उद्यान अन्य बागों की प्रेरणा बना, खासकर इसी नाम से लाहौर, पाकिस्तान में जो बाग है। इसके पूर्ण निर्माण होने पर जहाँगीर ने फारसी की वह प्रसिद्ध अभिव्यक्ति कही थी
निशात बाग 1633 में नूरजहां के भाई द्वारा बनवाया गया था। ऊंचाई की ओर बढते इस उद्यान में 12 सोपान हैं।

प्यार के नाम पर यहां भी बनेगा एक 'ताजमहल'!

नागपुर. वैलेंटाइन डे सेलिब्रेशन चॉकलेट के बिना अधूरा है। शहर के युवाओं की पसंद को देखते हुए बेकरी स्टोर्स और कॉफी शॉप्स पर विभिन्न वैरायटीज की चॉकलेट उपलब्ध हैं। चॉकलेट रूम के मैनेजर अमोल बताते हैं शॉप पर वैलेंटाइन वीक के लिए विशेष तैयारियां की गई हैं।

शहरवासियों के टेस्ट को समझते हुए विशेष तौर पर बेल्जियम चॉकलेट्स उपलब्ध करवाई जा रही है। इसके बादाम, काजू, स्ट्रॉबेरी सहित 12 फ्लेवर कस्टमर की पसंद के अनुरूप ही तैयार किए गए हैं। चॉकलेट का ताजमहल भी बनाया जाएगा। वैलेंटाइन पर कपल्स के लिए यहां 20 से ज्यादा फ्लेवर की चॉकलेट्स उपलब्ध रहेंगी।

हार्ट शेप पैंकिंग डिमांड में

सबसे ज्यादा डिमांड में हार्ट शेप चॉकलेट है। वैलेंटाइन डे को दख्ते हुए की मांग अचानक बढ़ गई है। कॉफी और कुकीज का चलन भी बढ़ा है। आजकल लोग चॉकलेट हैम्पर खरीदते हैं और एक दूसरे को गिफ्ट कर रह हैं। यह सस्ता होने की वजह से और भी अच्छा है। वैलेंटाइन डे पर पहले से कई ऑडा भी आए हैं। कई लोगों ने इसकी बुकिंग भी करवा दी है। १क्क् से लेकर ४क्क् रुपये तक चॉकलेट ज्यादा बिक रही है। वैसे तो लोग अपनी पंसद के अनुसार पैकिंग करवा रहे हैं लेकिन हार्ट शेप की ज्यादा मांग है।

विदेशी चॉकलेट ज्यादा मांग में

श्हर की दुकानों में विदेशी चॉकलेट की मांग अन्य दिनों की अपेक्षा बढ़ गई है क्योंकि विभिन्न वैराइटी की चॉकलेट भी मांग में हैं लेकिन यह चॉकलेट ज्यादा मांग में हैं। केक और पेस्ट्री की मांग तो बढ़ ही रही है साथ में कैडबरी के अलावा और भी ब्रांड ज्यादा बिक रहे हैं।

विश्वमोहिनी का स्वयंवर, शिवगणों तथा भगवान्‌ को शाप और नारद का मोहभंग


दोहा :
* आनि देखाई नारदहि भूपति राजकुमारि।
कहहु नाथ गुन दोष सब एहि के हृदयँ बिचारि॥130॥
भावार्थ:-(फिर) राजा ने राजकुमारी को लाकर नारदजी को दिखलाया (और पूछा कि-) हे नाथ! आप अपने हृदय में विचार कर इसके सब गुण-दोष कहिए॥130॥
चौपाई :
*देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी॥
लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने॥1॥
भावार्थ:-उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको भी भूल गए और हृदय में हर्षित हुए, पर प्रकट रूप में उन लक्षणों को नहीं कहा॥1॥
* जो एहि बरइ अमर सोइ होई। समरभूमि तेहि जीत न कोई॥
सेवहिं सकल चराचर ताही। बरइ सीलनिधि कन्या जाही॥2॥
भावार्थ:-(लक्षणों को सोचकर वे मन में कहने लगे कि) जो इसे ब्याहेगा, वह अमर हो जाएगा और रणभूमि में कोई उसे जीत न सकेगा। यह शीलनिधि की कन्या जिसको वरेगी, सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे॥2॥
* लच्छन सब बिचारि उर राखे। कछुक बनाइ भूप सन भाषे॥
सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं। नारद चले सोच मन माहीं॥3॥
भावार्थ:-सब लक्षणों को विचारकर मुनि ने अपने हृदय में रख लिया और राजा से कुछ अपनी ओर से बनाकर कह दिए। राजा से लड़की के सुलक्षण कहकर नारदजी चल दिए। पर उनके मन में यह चिन्ता थी कि- ॥3॥
* करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी॥
जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला॥4॥
भावार्थ:-मैं जाकर सोच-विचारकर अब वही उपाय करूँ, जिससे यह कन्या मुझे ही वरे। इस समय जप-तप से तो कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता! मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी?॥4॥
दोहा :
* एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल।
जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल॥131॥
भावार्थ:-इस समय तो बड़ी भारी शोभा और विशाल (सुंदर) रूप चाहिए, जिसे देखकर राजकुमारी मुझ पर रीझ जाए और तब जयमाल (मेरे गले में) डाल दे॥131॥
चौपाई :
* हरि सन मागौं सुंदरताई। होइहि जात गहरु अति भाई॥
मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ॥1॥
भावार्थ:-(एक काम करूँ कि) भगवान से सुंदरता माँगूँ, पर भाई! उनके पास जाने में तो बहुत देर हो जाएगी, किन्तु श्री हरि के समान मेरा हितू भी कोई नहीं है, इसलिए इस समय वे ही मेरे सहायक हों॥1॥
* बहुबिधि बिनय कीन्हि तेहि काला। प्रगटेउ प्रभु कौतुकी कृपाला॥
प्रभु बिलोकि मुनि नयन जुड़ाने। होइहि काजु हिएँ हरषाने॥2॥
भावार्थ:-उस समय नारदजी ने भगवान की बहुत प्रकार से विनती की। तब लीलामय कृपालु प्रभु (वहीं) प्रकट हो गए। स्वामी को देखकर नारदजी के नेत्र शीतल हो गए और वे मन में बड़े ही हर्षित हुए कि अब तो काम बन ही जाएगा॥2॥
* अति आरति कहि कथा सुनाई। करहु कृपा करि होहु सहाई॥
आपन रूप देहु प्रभु मोहीं। आन भाँति नहिं पावौं ओही॥3॥
भावार्थ:-नारदजी ने बहुत आर्त (दीन) होकर सब कथा कह सुनाई (और प्रार्थना की कि) कृपा कीजिए और कृपा करके मेरे सहायक बनिए। हे प्रभो! आप अपना रूप मुझको दीजिए और किसी प्रकार मैं उस (राजकन्या) को नहीं पा सकता॥3॥
* जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
निज माया बल देखि बिसाला। हियँ हँसि बोले दीनदयाला॥4॥
भावार्थ:-हे नाथ! जिस तरह मेरा हित हो, आप वही शीघ्र कीजिए। मैं आपका दास हूँ। अपनी माया का विशाल बल देख दीनदयालु भगवान मन ही मन हँसकर बोले-॥4॥
दोहा :
* जेहि बिधि होइहि परम हित नारद सुनहु तुम्हार।
सोइ हम करब न आन कछु बचन न मृषा हमार॥132॥
भावार्थ:-हे नारदजी! सुनो, जिस प्रकार आपका परम हित होगा, हम वही करेंगे, दूसरा कुछ नहीं। हमारा वचन असत्य नहीं होता॥132॥
चौपाई :
* कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी। बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी॥
एहि बिधि हित तुम्हार मैं ठयऊ। कहि अस अंतरहित प्रभु भयऊ॥1॥
भावार्थ:-हे योगी मुनि! सुनिए, रोग से व्याकुल रोगी कुपथ्य माँगे तो वैद्य उसे नहीं देता। इसी प्रकार मैंने भी तुम्हारा हित करने की ठान ली है। ऐसा कहकर भगवान अन्तर्धान हो गए॥1॥
* माया बिबस भए मुनि मूढ़ा। समुझी नहिं हरि गिरा निगूढ़ा॥
गवने तुरत तहाँ रिषिराई। जहाँ स्वयंबर भूमि बनाई॥2॥
भावार्थ:-(भगवान की) माया के वशीभूत हुए मुनि ऐसे मूढ़ हो गए कि वे भगवान की अगूढ़ (स्पष्ट) वाणी को भी न समझ सके। ऋषिराज नारदजी तुरंत वहाँ गए जहाँ स्वयंवर की भूमि बनाई गई थी॥2॥
* निज निज आसन बैठे राजा। बहु बनाव करि सहित समाजा॥
मुनि मन हरष रूप अति मोरें। मोहि तजि आनहि बरिहि न भोरें॥3॥
भावार्थ:-राजा लोग खूब सज-धजकर समाज सहित अपने-अपने आसन पर बैठे थे। मुनि (नारद) मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि मेरा रूप बड़ा सुंदर है, मुझे छोड़ कन्या भूलकर भी दूसरे को न वरेगी॥3॥
* मुनि हित कारन कृपानिधाना। दीन्ह कुरूप न जाइ बखाना॥
सो चरित्र लखि काहुँ न पावा। नारद जानि सबहिं सिर नावा॥4॥
भावार्थ:-कृपानिधान भगवान ने मुनि के कल्याण के लिए उन्हें ऐसा कुरूप बना दिया कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता, पर यह चरित कोई भी न जान सका। सबने उन्हें नारद ही जानकर प्रणाम किया॥4॥
दोहा :
* रहे तहाँ दुइ रुद्र गन ते जानहिं सब भेउ।
बिप्रबेष देखत फिरहिं परम कौतुकी तेउ॥133॥
भावार्थ:-वहाँ शिवजी के दो गण भी थे। वे सब भेद जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर सारी लीला देखते-फिरते थे। वे भी बड़े मौजी थे॥133॥
चौपाई :
* जेहिं समाज बैठे मुनि जाई। हृदयँ रूप अहमिति अधिकाई॥
तहँ बैठे महेस गन दोऊ। बिप्रबेष गति लखइ न कोऊ॥1॥
भावार्थ:-नारदजी अपने हृदय में रूप का बड़ा अभिमान लेकर जिस समाज (पंक्ति) में जाकर बैठे थे, ये शिवजी के दोनों गण भी वहीं बैठ गए। ब्राह्मण के वेष में होने के कारण उनकी इस चाल को कोई न जान सका॥1॥
* करहिं कूटि नारदहि सुनाई। नीकि दीन्हि हरि सुंदरताई॥
रीझिहि राजकुअँरि छबि देखी। इन्हहि बरिहि हरि जानि बिसेषी॥2॥
भावार्थ:-वे नारदजी को सुना-सुनाकर, व्यंग्य वचन कहते थे- भगवान ने इनको अच्छी 'सुंदरता' दी है। इनकी शोभा देखकर राजकुमारी रीझ ही जाएगी और 'हरि' (वानर) जानकर इन्हीं को खास तौर से वरेगी॥2॥
* मुनिहि मोह मन हाथ पराएँ। हँसहिं संभु गन अति सचु पाएँ॥
जदपि सुनहिं मुनि अटपटि बानी। समुझि न परइ बुद्धि भ्रम सानी॥3॥
भावार्थ:-नारद मुनि को मोह हो रहा था, क्योंकि उनका मन दूसरे के हाथ (माया के वश) में था। शिवजी के गण बहुत प्रसन्न होकर हँस रहे थे। यद्यपि मुनि उनकी अटपटी बातें सुन रहे थे, पर बुद्धि भ्रम में सनी हुई होने के कारण वे बातें उनकी समझ में नहीं आती थीं (उनकी बातों को वे अपनी प्रशंसा समझ रहे थे)॥3॥
* काहुँ न लखा सो चरित बिसेषा। सो सरूप नृपकन्याँ देखा॥
मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदयँ क्रोध भा तेही॥4॥
भावार्थ:-इस विशेष चरित को और किसी ने नहीं जाना, केवल राजकन्या ने (नारदजी का) वह रूप देखा। उनका बंदर का सा मुँह और भयंकर शरीर देखते ही कन्या के हृदय में क्रोध उत्पन्न हो गया॥4॥
दोहा :
* सखीं संग लै कुअँरि तब चलि जनु राजमराल।
देखत फिरइ महीप सब कर सरोज जयमाल॥134॥
भावार्थ:-तब राजकुमारी सखियों को साथ लेकर इस तरह चली मानो राजहंसिनी चल रही है। वह अपने कमल जैसे हाथों में जयमाला लिए सब राजाओं को देखती हुई घूमने लगी॥134॥
चौपाई :
* जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिं न बिलोकी भूली॥
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं॥1॥
भावार्थ:-जिस ओर नारदजी (रूप के गर्व में) फूले बैठे थे, उस ओर उसने भूलकर भी नहीं ताका। नारद मुनि बार-बार उचकते और छटपटाते हैं। उनकी दशा देखकर शिवजी के गण मुसकराते हैं॥1॥
* धरि नृपतनु तहँ गयउ कृपाला। कुअँरि हरषि मेलेउ जयमाला॥
दुलहिनि लै गे लच्छिनिवासा। नृपसमाज सब भयउ निरासा॥2॥
भावार्थ:-कृपालु भगवान भी राजा का शरीर धारण कर वहाँ जा पहुँचे। राजकुमारी ने हर्षित होकर उनके गले में जयमाला डाल दी। लक्ष्मीनिवास भगवान दुलहिन को ले गए। सारी राजमंडली निराश हो गई॥2॥
* मुनि अति बिकल मोहँ मति नाठी। मनि गिरि गई छूटि जनु गाँठी॥
तब हर गन बोले मुसुकाई। निज मुख मुकुर बिलोकहु जाई॥3॥
भावार्थ:-मोह के कारण मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी, इससे वे (राजकुमारी को गई देख) बहुत ही विकल हो गए। मानो गाँठ से छूटकर मणि गिर गई हो। तब शिवजी के गणों ने मुसकराकर कहा- जाकर दर्पण में अपना मुँह तो देखिए!॥3॥
* अस कहि दोउ भागे भयँ भारी। बदन दीख मुनि बारि निहारी॥
बेषु बिलोकि क्रोध अति बाढ़ा। तिन्हहि सराप दीन्ह अति गाढ़ा॥4॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर वे दोनों बहुत भयभीत होकर भागे। मुनि ने जल में झाँककर अपना मुँह देखा। अपना रूप देखकर उनका क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने शिवजी के उन गणों को अत्यन्त कठोर शाप दिया-॥4॥
दोहा :
* होहु निसाचर जाइ तुम्ह कपटी पापी दोउ।
हँसेहु हमहि सो लेहु फल बहुरि हँसेहु मुनि कोउ॥।135॥
भावार्थ:-तुम दोनों कपटी और पापी जाकर राक्षस हो जाओ। तुमने हमारी हँसी की, उसका फल चखो। अब फिर किसी मुनि की हँसी करना।135॥
चौपाई :
* पुनि जल दीख रूप निज पावा। तदपि हृदयँ संतोष न आवा॥
फरकत अधर कोप मन माहीं। सपदि चले कमलापति पाहीं॥1॥
भावार्थ:-मुनि ने फिर जल में देखा, तो उन्हें अपना (असली) रूप प्राप्त हो गया, तब भी उन्हें संतोष नहीं हुआ। उनके होठ फड़क रहे थे और मन में क्रोध (भरा) था। तुरंत ही वे भगवान कमलापति के पास चले॥1॥
* देहउँ श्राप कि मरिहउँ जाई। जगत मोरि उपहास कराई॥
बीचहिं पंथ मिले दनुजारी। संग रमा सोइ राजकुमारी॥2॥
भावार्थ:-(मन में सोचते जाते थे-) जाकर या तो शाप दूँगा या प्राण दे दूँगा। उन्होंने जगत में मेरी हँसी कराई। दैत्यों के शत्रु भगवान हरि उन्हें बीच रास्ते में ही मिल गए। साथ में लक्ष्मीजी और वही राजकुमारी थीं॥2॥
* बोले मधुर बचन सुरसाईं। मुनि कहँ चले बिकल की नाईं॥
सुनत बचन उपजा अति क्रोधा। माया बस न रहा मन बोधा॥3॥
भावार्थ:-देवताओं के स्वामी भगवान ने मीठी वाणी में कहा- हे मुनि! व्याकुल की तरह कहाँ चले? ये शब्द सुनते ही नारद को बड़ा क्रोध आया, माया के वशीभूत होने के कारण मन में चेत नहीं रहा॥3॥
* पर संपदा सकहु नहिं देखी। तुम्हरें इरिषा कपट बिसेषी॥
मथत सिंधु रुद्रहि बौरायहु। सुरन्ह प्रेरि बिष पान करायहु॥4॥
भावार्थ:-(मुनि ने कहा-) तुम दूसरों की सम्पदा नहीं देख सकते, तुम्हारे ईर्ष्या और कपट बहुत है। समुद्र मथते समय तुमने शिवजी को बावला बना दिया और देवताओं को प्रेरित करके उन्हें विषपान कराया॥4॥
दोहा :
* असुर सुरा बिष संकरहि आपु रमा मनि चारु।
स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु॥136॥
भावार्थ:-असुरों को मदिरा और शिवजी को विष देकर तुमने स्वयं लक्ष्मी और सुंदर (कौस्तुभ) मणि ले ली। तुम बड़े धोखेबाज और मतलबी हो। सदा कपट का व्यवहार करते हो॥136॥
चौपाई :
* परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥
भलेहि मंद मंदेहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥1॥
भावार्थ:-तुम परम स्वतंत्र हो, सिर पर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मन को भाता है, (स्वच्छन्दता से) वही करते हो। भले को बुरा और बुरे को भला कर देते हो। हृदय में हर्ष-विषाद कुछ भी नहीं लाते॥1॥
* डहकि डहकि परिचेहु सब काहू। अति असंक मन सदा उछाहू॥
करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा। अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा॥2॥
भावार्थ:-सबको ठग-ठगकर परक गए हो और अत्यन्त निडर हो गए हो, इसी से (ठगने के काम में) मन में सदा उत्साह रहता है। शुभ-अशुभ कर्म तुम्हें बाधा नहीं देते। अब तक तुम को किसी ने ठीक नहीं किया था॥2॥
* भले भवन अब बायन दीन्हा। पावहुगे फल आपन कीन्हा॥
बंचेहु मोहि जवनि धरि देहा। सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा॥3॥
भावार्थ:-अबकी तुमने अच्छे घर बैना दिया है (मेरे जैसे जबर्दस्त आदमी से छेड़खानी की है।) अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर को धारण करके तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है॥3॥
* कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥4॥
भावार्थ:-तुमने हमारा रूप बंदर का सा बना दिया था, इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। (मैं जिस स्त्री को चाहता था, उससे मेरा वियोग कराकर) तुमने मेरा बड़ा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होंगे॥4॥
दोहा :
* श्राप सीस धरि हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि॥
निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि॥137॥
भावार्थ:-शाप को सिर पर चढ़ाकर, हृदय में हर्षित होते हुए प्रभु ने नारदजी से बहुत विनती की और कृपानिधान भगवान ने अपनी माया की प्रबलता खींच ली॥137॥
चौपाई :
* जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी॥
तब मुनि अति सभीत हरि चरना। गहे पाहि प्रनतारति हरना॥1॥
भावार्थ:-जब भगवान ने अपनी माया को हटा लिया, तब वहाँ न लक्ष्मी ही रह गईं, न राजकुमारी ही। तब मुनि ने अत्यन्त भयभीत होकर श्री हरि के चरण पकड़ लिए और कहा- हे शरणागत के दुःखों को हरने वाले! मेरी रक्षा कीजिए॥1॥
* मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला॥
मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे॥2॥
भावार्थ:-हे कृपालु! मेरा शाप मिथ्या हो जाए। तब दीनों पर दया करने वाले भगवान ने कहा कि यह सब मेरी ही इच्छा (से हुआ) है। मुनि ने कहा- मैंने आप को अनेक खोटे वचन कहे हैं। मेरे पाप कैसे मिटेंगे?॥2॥
* जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत बिश्रामा॥
कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें॥3॥
भावार्थ:-(भगवान ने कहा-) जाकर शंकरजी के शतनाम का जप करो, इससे हृदय में तुरंत शांति होगी। शिवजी के समान मुझे कोई प्रिय नहीं है, इस विश्वास को भूलकर भी न छोड़ना॥3॥
*जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी॥
अस उर धरि महि बिचरहु जाई। अब न तुम्हहि माया निअराई॥4॥
भावार्थ:-हे मुनि ! पुरारि (शिवजी) जिस पर कृपा नहीं करते, वह मेरी भक्ति नहीं पाता। हृदय में ऐसा निश्चय करके जाकर पृथ्वी पर विचरो। अब मेरी माया तुम्हारे निकट नहीं आएगी॥4॥
दोहा :
* बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान।
सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान॥138॥
भावार्थ:-बहुत प्रकार से मुनि को समझा-बुझाकर (ढाँढस देकर) तब प्रभु अंतर्द्धान हो गए और नारदजी श्री रामचन्द्रजी के गुणों का गान करते हुए सत्य लोक (ब्रह्मलोक) को चले॥138॥
चौपाई :
* हर गन मुनिहि जात पथ देखी। बिगत मोह मन हरष बिसेषी॥
अति सभीत नारद पहिं आए। गहि पद आरत बचन सुहाए॥1॥
भावार्थ:-शिवजी के गणों ने जब मुनि को मोहरहित और मन में बहुत प्रसन्न होकर मार्ग में जाते हुए देखा तब वे अत्यन्त भयभीत होकर नारदजी के पास आए और उनके चरण पकड़कर दीन वचन बोले-॥1॥
* हर गन हम न बिप्र मुनिराया। बड़ अपराध कीन्ह फल पाया॥
श्राप अनुग्रह करहु कृपाला। बोले नारद दीनदयाला॥2॥
भावार्थ:-हे मुनिराज! हम ब्राह्मण नहीं हैं, शिवजी के गण हैं। हमने बड़ा अपराध किया, जिसका फल हमने पा लिया। हे कृपालु! अब शाप दूर करने की कृपा कीजिए। दीनों पर दया करने वाले नारदजी ने कहा-॥2॥
* निसिचर जाइ होहु तुम्ह दोऊ। बैभव बिपुल तेज बल होऊ॥
भुज बल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ। धरिहहिं बिष्नु मनुज तनु तहिआ॥3॥
भावार्थ:-तुम दोनों जाकर राक्षस होओ, तुम्हें महान ऐश्वर्य, तेज और बल की प्राप्ति हो। तुम अपनी भुजाओं के बल से जब सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य का शरीर धारण करेंगे॥3॥
* समर मरन हरि हाथ तुम्हारा। होइहहु मुकुत न पुनि संसारा॥
चले जुगल मुनि पद सिर नाई। भए निसाचर कालहि पाई॥4॥
भावार्थ:-युद्ध में श्री हरि के हाथ से तुम्हारी मृत्यु होगी, जिससे तुम मुक्त हो जाओगे और फिर संसार में जन्म नहीं लोगे। वे दोनों मुनि के चरणों में सिर नवाकर चले और समय पाकर राक्षस हुए॥4॥
दोहा :
* एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार।
सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुमि भार॥139॥
भावार्थ:-देवताओं को प्रसन्न करने वाले, सज्जनों को सुख देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने एक कल्प में इसी कारण मनुष्य का अवतार लिया था॥139॥
चौपाई :
* एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुंदर सुखद बिचित्र घनेरे॥
कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं॥1॥
भावार्थ:-इस प्रकार भगवान के अनेक सुंदर, सुखदायक और अलौकिक जन्म और कर्म हैं। प्रत्येक कल्प में जब-जब भगवान अवतार लेते हैं और नाना प्रकार की सुंदर लीलाएँ करते हैं,॥1॥
* तब-तब कथा मुनीसन्ह गाई। परम पुनीत प्रबंध बनाई॥
बिबिध प्रसंग अनूप बखाने। करहिं न सुनि आचरजु सयाने॥2॥
भावार्थ:-तब-तब मुनीश्वरों ने परम पवित्र काव्य रचना करके उनकी कथाओं का गान किया है और भाँति-भाँति के अनुपम प्रसंगों का वर्णन किया है, जिनको सुनकर समझदार (विवेकी) लोग आश्चर्य नहीं करते॥2॥
* हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥3॥
भावार्थ:-श्री हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। श्री रामचन्द्रजी के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते॥3॥
* यह प्रसंग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी॥
प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी। सेवत सुलभ सकल दुखहारी॥4॥
भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं कि) हे पार्वती! मैंने यह बताने के लिए इस प्रसंग को कहा कि ज्ञानी मुनि भी भगवान की माया से मोहित हो जाते हैं। प्रभु कौतुकी (लीलामय) हैं और शरणागत का हित करने वाले हैं। वे सेवा करने में बहुत सुलभ और सब दुःखों के हरने वाले हैं॥4॥
सोरठा :
* सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल।
अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि॥140॥
भावार्थ:-देवता, मनुष्य और मुनियों में ऐसा कोई नहीं है, जिसे भगवान की महान बलवती माया मोहित न कर दे। मन में ऐसा विचारकर उस महामाया के स्वामी (प्रेरक) श्री भगवान का भजन करना चाहिए॥140॥
चौपाई :
*अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी॥
जेहि कारन अज अगुन अरूपा। ब्रह्म भयउ कोसलपुर भूपा॥1॥
भावार्थ:-हे गिरिराजकुमारी! अब भगवान के अवतार का वह दूसरा कारण सुनो- मैं उसकी विचित्र कथा विस्तार करके कहता हूँ- जिस कारण से जन्मरहित, निर्गुण और रूपरहित (अव्यक्त सच्चिदानंदघन) ब्रह्म अयोध्यापुरी के राजा हुए॥1॥
* जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा। बंधु समेत धरें मुनिबेषा॥
जासु चरित अवलोकि भवानी। सती सरीर रहिहु बौरानी॥2॥
भावार्थ:-जिन प्रभु श्री रामचन्द्रजी को तुमने भाई लक्ष्मणजी के साथ मुनियों का सा वेष धारण किए वन में फिरते देखा था और हे भवानी! जिनके चरित्र देखकर सती के शरीर में तुम ऐसी बावली हो गई थीं कि- ॥2॥
* अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी। तासु चरित सुनु भ्रम रुज हारी॥
लीला कीन्हि जो तेहिं अवतारा। सो सब कहिहउँ मति अनुसारा॥3॥
भावार्थ:-अब भी तुम्हारे उस बावलेपन की छाया नहीं मिटती, उन्हीं के भ्रम रूपी रोग के हरण करने वाले चरित्र सुनो। उस अवतार में भगवान ने जो-जो लीला की, वह सब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार तुम्हें कहूँगा॥3॥
* भरद्वाज सुनि संकर बानी। सकुचि सप्रेम उमा मुसुकानी॥
लगे बहुरि बरनै बृषकेतू। सो अवतार भयउ जेहि हेतू॥4॥
भावार्थ:-(याज्ञवल्क्यजी ने कहा-) हे भरद्वाज! शंकरजी के वचन सुनकर पार्वतीजी सकुचाकर प्रेमसहित मुस्कुराईं। फिर वृषकेतु शिवजी जिस कारण से भगवान का वह अवतार हुआ था, उसका वर्णन करने लगे॥4॥

कुरान का संदेश

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राजस्थान अल्प संख्यक आयोग के चेयरमेन माहिर आज़ाद अगले सप्ताह हाडोती दोरे पर आ रहे है

राजस्थान अल्प संख्यक आयोग के चेयरमेन माहिर आज़ाद अगले सप्ताह हाडोती दोरे पर आ रहे है ..आज़ाद कोटा बूंदी और बार जिलों में अल्प संख्यकों की जनसुनवाई कर उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे ..सरकारी कार्यक्रम के तहत माहिर आज़ाद बारह फरवरी को दिन में कोटा पहुंचेंगे नयापुरा में उनका स्थानीय लोग स्वागत करेंगे ..माहिर आज़ाद चार बजे प्रेस कोंफ्रेंस को संबोधित करेंगे ..इसके बाद वोह कोंग्रेस के नेता नईमुद्दीन गुड्डू के निवास पर भोजन पर आमंत्रित है ..माहिर आज़ाद तेराह फरवरी को केथुन में बैठक लेंगे इसी दिन कोटा प्रेस क्लब में अल्प संख्यक मामलात फ्रंट की तरफ से अल्पसंख्यक कोंफ्रेस में उनका स्वागत होगा वोह इसी दिन प्रशासनिक बैठक को भी संबोधित करेंगे ..माहिर आज़ाद रात्रि विश्राम कर १४ फरवरी को बार और फिर १५ फरवरी को झालावाड का दोरा कर जयपुर के लियें प्रस्थान कर जायेंगे .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

राजस्थान सरकार के दिग्गज मंत्री और हाडोती के लाल कहे जाने वाले शान्ति कुमार धारीवाल कोटा के मुसलमानों पर महरबान हुए

राजस्थान सरकार के दिग्गज मंत्री और हाडोती के लाल कहे जाने वाले शान्ति कुमार धारीवाल इन दिनों कोटा के मुसलमानों पर महरबान होकर जिला वक्फ कमेटी की संपत्तियों पर बहतरीन सोंद्र्य्करण और उपयोगी सेवाओं की योजनाये तय्यार कर रहे है ..कई योजनाओं को उन्होंने अपने अधीनस्थों को निर्देश देकर अंतिम रूप दे दिया है ..कोटा में पिछले दिनों शांति कुमार धारीवाल जब शहर काजी अनवर अहमद के पास ओपचारिक भेंट के लियें गए थे तब उन्हें शहर क़ाज़ी साहब ने मुस्लिमों की समस्याओं के मामले में एक सुचना पात्र दिया था जिस पर विचार विमर्श कर शांति धारीवाल ने सकारात्मक रुख अपनाते हुए अपने अधीनस्थों को विशेष दिशा निर्देश दिए है अगर उक्त प्रस्तावित सभी योजनायें पूरी हो जाती है तो कोटा के मुसलमानों को शांति धारीवाल की तरफ से यह बहतरीन तोहफा होगा ..इस मामले में आज शहर काजी अनवर अहमद ..जिला वक्फ कमेटी के चेयरमेन अज़ीज़ अंसारी ...जिला वक्फ कमेटी के वाइस चेयरमेन और कानूनी सलाहकार अख्तर खान अकेला ..कोंग्रेस के प्रदेश सचिव डोक्टर ज़फर मोहम्मद ने नगर विकास न्यास कोटा में सभी योजनाओं पर नगर विकास न्यास के चेयरमेन रविन्द्र त्यागी ,,सचिव आर डी मीणा से विस्त्रत चर्चा की ...चर्चा के दोरान स्टेशन क्षेत्र में कब्रिस्तान की समस्या के मामले में वहां अतिरिक्त भूमि पर करीब छ हजार वर्ग फिट का कब्रिस्तान नया आवंटन करने और उसमे सभी सुविधाएँ उपलब्ध करने की स्वीकारती हुई ......नयापुरा ..अनंत पूरा ...घंटाघर ..जंगली शाह बाबा के कब्रिस्तानों में मिटटी डलवाने और सुविधाएँ उपलब्ध करवाने पर अंतिम योजना बनाई गयी ////आधार शिला क्षेत्र में जिस भूमि पर प्लांट बनेगा उसके स्थान पर छात्रावास के लियें भूखंड दिए जाने और अतिरिक्त भूमि को समतलीकरण कराकर वहन चार दिवारी करवाने और पूर्ण रूप से पानी मुक्त करा कर वक्फ संपत्ति का बोर्ड लगाने की सहमती बनी ..रंगबाड़ी क्षेत्र में पचास बीघा का कब्रिस्तान वक्फ के खाते में दर्ज करवाकर वक्फ की सुपुर्दगी में देने और महावीर नगर नाले वाले बाबा क्षेत्र के कब्रिस्तान की चार दिवारी करने पर सहमती बनायी गयी इसी तरह छावनी कब्रिस्तान में मिटटी डलवाने और विकास कार्य करवाने की बात भी मंजूर की गयी ..कोटडी तालाब के पास स्थित बरकत उद्ध्यां क्षेत्र में सोंद्र्य्करण के निर्देश दिए गए ..महिला छात्रावास बनवाने और खासकर जन्ग्लिशाह बाबा क्षेत्र में महफिल खाने के ऊपर एक और मंजिल बनाने और कमरे बनाने पर आम सहमती बनाई गयी और भी कई योजनाये ऐसी थी जो आम मुलमानों के लियें उपयोगी है उन पर भी चर्चा हुई ॥ शांति धारीवाल के पिच्छले कार्यकाल में भी आधारशिला गार्डेन का सोंद्र्य्करण ...जंगली शाह बाबा क्षेत्र में निर्माण कार्य ..मोलाना आज़ाद सामुदायिक भवन का निर्माण सहित कई बस्तियों में सामुदायिक भवनों के निर्माण करवाए गए थे ...वक्फ संपत्तियों पर इसी सत्र में अगर यह सभी कार्य पुरे किये जाते है तो निश्चित तोर पर शांति धारीवाल और नगर विकास न्यास कोटा के चेयरमेन रविन्द्र त्यागी का यह कोटा के मुसलमानों को तोहफा होगा ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

साइकिल पर ले गया बारात और अब साइकिल पर हनीमून

पंचकूला. हंगरी से एक दंपती हनीमून के लिए भारत आया हुआ है। इन्होंने जितने अलग तरीके से शादी की, उतने ही अलग तरीके से हनीमून भी मना रहे हैं। दूल्हा अरपी (28) साइकिल पर बारात लेकर गया।

बाराती भी साइकिल पर आए और साइकिल पर ही दुल्हन जीटा (26) को लेकर गए। अब यह जोड़ा साइकिल पर हनीमून मनाने के लिए निकला है। इसके लिए दोनों ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी। दुनिया के 13 से भी ज्यादा देशों में घूमने के बाद रविवार रात यह दंपती साइकिल पर ही पंचकूला पहुंचा है।
4 जून को हुई थी शादी: अरपी बताते हैं, ‘हमारी शादी 4 जून 2011 को हंगरी में हुई। 11 जून को हमने हनीमून के लिए साइकिल पर अलग-अलग देशों पर जाने का मन बनाया।’ हंगरी से शुरुआत करते हुए यह जोड़ा रोमानिया, सर्बिया, बुल्गारिया, टर्की, जॉर्जिया, अरमानिया, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान, पाकिस्तान, चीन सहित अन्य देशों से होते हुए भारत पहुंचा है। यहां ये दोनों चार महीने तक रुकेंगे।
7700 किलोमीटर सफर किया तय: यह जोड़ा आठ महीने के अपने सफर में अब तक 7700 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका है। पाकिस्तान से भारत आते हुए वे सबसे पहले गोल्डन टैंपल में माथा टेकने गए। इसके बाद होशियारपुर और वहां से पंचकूला आए। पंचकूला में ये सेक्टर 20 में रहने वाले सतीश बंसल के घर रुके हैं।
भारत लगा सबसे अच्छा: अरपी और जीटा का कहना है कि भारत में उन्हें सबसे अच्छा लग रहा है। यहां बच्चे अपने मां-बाप के साथ लंबे समय तक रहते हैं। यूरोप में बच्चे 20 साल के बाद मां-बाप का साथ छोड़ देते हैं। काश यूरोप में भी बच्चों और माता-पिता के बीच भारतीयों जैसे संबंध होते। पाकिस्तान में भी उन्हें बहुत प्यार मिला।
साइकिल है खास
अरपी और जीटा बताते हैं, ‘हमने हनीमून के लिए खास तरह की साइकिल को चुना। जर्मनी में बनी यह साइकिल हैंडमेड है। इसे लेटकर भी चलाया जा सकता है। इसकी मरम्मत के लिए पार्ट्स और औजार भी साथ रखे हुए हैं। साइकिल में रिचार्जेबल बैट्री से जलने वाली लाइटें लगी हुई हैं। बरसात से बचने के लिए बरसाती भी है।

अगर मौसम ज्यादा खराब हो तो टैंट का बंदोबस्त भी है। हमारे पास फोल्डिंग टैंट है। 13 किलो की इस साइकिल पर इन्होंने 60 किलो वजन लादा हुआ है। इसमें साइकिल के पार्ट्स, लैपटॉप, कैमरा, इंटरनेट, मोबाइल व कपड़ों सहित अन्य सामान शामिल है।

छोटी अंगुली का चमत्कारी प्रयोग बिना डाइटिंग वजन कम हो जाएगा

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योग हस्त मुद्राओं को भी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। हस्तमुद्राओं में सबसे कारगर मुद्रा सूर्य मुद्रा को माना जाता है। ये मुद्रा अनामिका अंगुली जिसे सूर्य की अंगुली या रिंग फिंगर भी कहते हैं व अंगूठे से करते हैं। इस अंगुली का संबंध सूर्य और यूरेनस ग्रह से है। सूर्य ऊर्जा स्वास्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है और यूरेनस कामुकता, अंर्तज्ञान और बदलाव का प्रतीक है।

विधि-

सूर्य की अंगुली को हथेली की ओर मोड़कर उसे अंगूठे से दबाएं। बाकी बची तीनों अंगुलियों को सीधा रखें। इसे सूर्य मुद्रा कहते हैं।

लाभ-

- इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है।

- वजन कम करने के लिए यह असान क्रिया चमत्कारी रूप से कारगर पाई गई है।

- पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा बहुत लाभदायक है।

- यह जठराग्रि को संतुलित करके पाचन संबंधी तमाम समस्याओं से छुटकारा दिलाती है।

- इसे नियमित करने से बेचैनी और चिंता कम होकर दिमाग शांत बना रहता है।

- यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हल्का और चुस्त-दुरुस्त बनाती है।

अदरक है काम की चीज: ऐसे खाएंगे तो सुंदरता और सेहत दोनों बन जाएगी

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अदरक सिर्फ खाने और चाय का स्वाद ही नहीं बढ़ाता बल्कि आयुर्वेद के अनुसार ये सेहत का साथी है। अदरक में अनेकों ऐसे गुण है जिन्हें आयुर्वेद में बहुत उपयोगी माना गया है। अदरक सर्दियों में सेहत की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अदरक पाचनतंत्र के लिए लाभकारी होता है। कब्ज और डायरिया जैसी बीमारियों से भी बचाव करता है।
-अपनी गर्म तासीर की वजह से अदरक हमेशा से सर्दी-जुकाम की बेहतरीन दवाई मानी गई है। अगर आपको सर्दी या जुकाम की प्रॉब्लम है, तो आप इसे चाय में उबालकर या फि र सीधे शहद के साथ ले सकते हैं। साथ ही, इससे हार्ट बर्न की परेशानी भी दूर करता है।
- रोज सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ अदरक का एक टुकड़ा खाएं। इससे खूबसूरती बढ़ती है।
- अदरक का एक छोटा टुकड़ा छीले बिना (छिलकेसहित) आग में गर्म करके छिलका उतार दें। इसे मुंह में रख कर आहिस्ता-आहिस्ता चबाते चूसते रहने से अन्दर जमा और रुका हुआ बलगम निकल जाता है और सर्दी-खांसी ठीक हो जाती है।
-बहुत कम लोग जानते हैं कि अदरक एक नेचरल पेन किलर है, इसलिए इसे आर्थराइटिस और दूसरी बीमारियों में उपचार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
-अदरक कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल करता है। दरअसल, यह कोलेस्ट्रॉल को बॉडी में एब्जॉर्व होने से रोकता है।
-कैंसर में भी अदरक बेहतरीन दवाई मानी गई है। खासतौर पर ओवेरियन कैंसर में यह काफी असरदार है।
-यह हमारे पाचन तंत्र को फिट रखता है और अपच दूर करता है।
-अदरक के इस्तेमाल से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है।
-अदरक खाने से मुंह के हानिकारक बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।
- अदरक और शहद का रस बराबर मात्रा में लेने से आराम मिलता है ।

फाल्गुन माह आज से, प्रकृति की सौगात है यह महीना

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प्रकृति ने मनुष्य को कई सौगातें दी हैं उन्हीं में मौसम भी एक हैं। प्रत्येक मौसम हमें प्रकृति के अनेक रूप दिखाता है और हमें नए संदेश भी देता है। वैसे तो हर मौसम अपने आप में विशेष होता है लेकिन उन सभी में वसंत के मौसम का अपना एक अलहदा अदांज होता है। फाल्गुन का महीना और वसंत का मौसम जब साथ होते हैं तो धरती की तुलना सजी-धजी दुल्हन से की जाने लगती है। इस बार फाल्गुन का महीना 8 फरवरी, बुधवार से शुरु हो रहा है।

मीलों तक फैले पीली सरसों के खेत देख ऐसा लगता है कि जैसे धरती ने पीली चुनर ओढ़ रखी है। पीले रंग से सजी संवरी यह दुल्हन रुपी वसंत रूपी अपने पति के आगमन की सूचना देती है। फाल्गुन के महीने में बौराए आमों की मदमस्त गंध और पलाश के पेड़ों के साथ तन-मन बौरा जाता है। हर वर्ष फाल्गुन का महीना आते ही सारा वातावरण जैसे रंगीन हो जाता है और हो भी क्यों न, खेतों में पीली सरसों लहलहाती है, पेड़ों पर पत्तों की हरी कौपलें और पलाश के केसरिया फूल। इन सब को देखकर मन भी अनायास ही रंगीन हो जाता है। ऐसा होता है फाल्गुन का खुमार।

इस दौरान हिंदू धर्मावलंबी फाग महोत्सव भी मनाते हैं। जो इस मास की महिमा और बढ़ा देता है। रंगों का त्योहार होली भी फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रंग, उत्साह, मस्ती और उल्लास का त्योहार मनाया जाता है। वसंत की हवा के झोंके, फाल्गुन की मस्ती और रंगों का सुरूर जीवन को उत्साहित कर देता है। ऐसा लगता है कि प्रकृति भी हमारे साथ-साथ फाल्गुन का मजा ले रही हो। फाल्गुन का यही उत्सवी माहौल इसे अन्य महीनों से जुदा बनाता है और खास भी।

उत्तर प्रदेश में कोंग्रेस तो जिंदाबाद होती जा रही है

उत्तरप्रदेश कोंग्रेस आगामी चुनावों में दिन बा दिन अपनी ताक़त बढ़ा रही है..... केवल दो दर्जन सीटों के सर्वे से शुरू हुई कोंग्रेस की ताक़त राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के जादू से एक आंधी की तरह बढती जा रही है स्थिति यह है के बीस से तीस ..तीस से पचास और पचास से सो तक कोंग्रेस की सीटों की ताकत पहुंच गयी है ..कोंग्रेस की निरंतर बढ़ रही ताकत से सभी राजनितिक विश्लेषक हेरान है चुनावी समीकरण गडबडा रहे है ..हालात यह है के जेसे जेसे कोंग्रेस की सीटें बढ़ रही है वेसे ही वेसे दूसरी पार्टियों की सीटें कम होने लगी है और हार जीत का समीकरण गड़बड़ाने लगा है भाजपा की नीति थी के जब उत्तरप्रदेश में धर्म निरपेक्ष वोट सपा ..बसपा ..कोंग्रेस और दूसरी पार्टियों में बंट रहे है तो फिर कट्टरपंथी वोटों को एक तरफ कर उत्तरप्रदेश में सरकार बना ली जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका और भाजपा अभी भी सरकार बनाने की कोशिशों में काफी दूर है और कोंगर्स एक ताक़त के रूप में उभर रही है यह सब राहुल और प्रियंका सोनिया फेक्टर से ही सम्भव हो रहा है इसीलियें तो कहते है के गांधी परिवार में कुछ तो जादू है .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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