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11 फ़रवरी 2012

बच्चों को दिया गया ऐसा प्यार उनके लिए ही खतरा बनता है...



बच्चों के लाड़ प्यार में मां-बाप अक्सर भूल जाते हैं कि उनके बच्चों के लिए क्या सही है और क्या गलत। बच्चों को अच्छी परवरिश देना, उन्हें हर तरह की सहूलियतें देना ठीक है लेकिन इस पर भी विचार किया जाए कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। अक्सर लाड़-प्यार में भविष्य की परेशानियों को अनदेखा कर दिया जाता है। जहां तक बच्चों की शिक्षा और संस्कार देने का सवाल है, इसमें सख्ती बरती जानी चाहिए।

शिक्षा में बरती गई थोड़ी सी लापरवाही भविष्य में संतान और माता-पिता दोनों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है। महाभारत इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है। गुरु द्रौण और उनके पुत्र अश्वत्थामा का रिश्ता ऐसा ही था। द्रौण को अपने पुत्र से बहुत प्यार था। शिक्षा में भी अन्य छात्रों से भेदभाव करते थे। जब उन्हें सभी कौरव और पांडव राजकुमारों को चक्रव्यूह की रचना और उसे तोडऩे के तरीके सिखाने थे, उन्होंने शर्त रख दी कि जो राजकुमार नदी से घड़ा भरकर सबसे पहले पहुंचेगा, उसे ही चक्रव्यूह की रचना सिखाई जाएगी। सभी राजकुमारों को बड़े घड़े दिए जाते लेकिन अश्वत्थामा को छोटा घड़ा देते ताकि वो जल्दी से भरकर पहुंच सके। सिर्फ अर्जुन ही ये बात समझ पाया और अर्जुन भी जल्दी ही घड़ा भरकर पहुंच जाते।

जब ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने की बारी आई तो भी द्रौणाचार्य के पास दो ही लोग पहुंचे। अर्जुन और अश्वत्थामा। अश्वत्थामा ने पूरे मन से इसकी विधि नहीं सीखी। ब्रह्मास्त्र चलाना तो सीख लिया लेकिन लौटाने की विधि नहीं सीखी। उसने सोचा गुरु तो मेरे पिता ही हैं। कभी भी सीख सकता हूं। द्रौणाचार्य ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। जब महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन और अश्वत्थामा ने एक-दूसरे पर ब्रह्मास्त्र चलाया। वेद व्यास के कहने पर अर्जुन ने तो अपना अस्त्र लौटा लिया लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लौटाया क्योंकि उसे इसकी विधि नहीं पता थी। जिसके कारण उसे शाप मिला। उसकी मणि निकाल ली गई और कलयुग के अंत तक उसे धरती पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया।

अगर द्रौणाचार्य अपने पुत्र मोह पर नियंत्रण रखकर उसे शिक्षा देते, उसके और अन्य राजकुमारों के बीच भेदभाव नहीं करते तो शायद अश्वत्थामा को कभी इस तरह सजा नहीं भुगतनी पड़ती।

सावधान! अगले दिन पर न टालें काम, क्योंकि..

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शांत, सुखी, संपन्न व सफल जीवन का एक अहम सूत्र है - वक्त की कद्र करना यानी जीवन से जुड़े अहम लक्ष्यों को बिना वक्त गंवाए सही सोच, योजना व चेष्टा के साथ पाते चले जाना। शास्त्रों में भी मन, वचन और कर्म से किसी भी तरह के आलस्य दरिद्रता माना गया है, जो असफलता व अनचाहे दु:ख का कारण बनती है।

आलसीपन या कर्महीनता में डूबे व्यक्ति को समय का मोल समझाने व जीवन को सफल बनाने के लिए संत कबीरदास ने बहुत ही सीधी नसीहत देकर चेताया है। लिखा गया है कि -

पाव पलक की सुधि नहीं, करै काल का साज।

काल अचानक मारसी, ज्यों तीतर को बाज॥

भाव यही है कि जीवन अनिश्चित है। जिसमें पल भर में क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है। इसलिए किसी भी काम को टालने या अगले दिन करने की सोच या आदत बड़े नुकसान या पछतावे का कारण बन सकती है। क्योंकि मृत्यु भी अटल सत्य है, जो सांसों को अचानक वैसे ही थाम देती है, जैसे बाज, तीतर पर अचानक वार कर उसे ले उड़ता है।

संत कबीर का दर्शन यही है कि जीवन में कर्म, परिश्रम व पुरुषार्थ को महत्व दें व पल-पल का सदुपयोग करें। साथ ही जाने-अनजाने हुए अच्छे-बुरे कामों का मंथन करते रहें।

जानिए, विनाश से कैसे बचाती है मृत्युञ्जय की शक्ति?



शिव को अविनाशी भी पुकारा जाता है। यह शब्द और भाव ही शिव की अनंत शक्तियों, मंगलमयी रूप व नाम की महिमा प्रकट करता है। जब शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ बने, गंगा को सिर पर धारण किया तो गंगाधर। वहीं भूतों के स्वामी होने से भूतभावन भी कहलाते हैं।

इसी कड़ी में शिव का एक अद्भुत स्वरूप हैं - मृत्युंजय। माना गया है कि इस शिव स्वरूप की दिव्य शक्तियों के आगे काल भी पराजित हो जाता है। मृत्यु्ञ्जय का मतलब भी होता है - मृत्यु को जीतने वाला। काल के अलावा यह शिव शक्ति सभी सांसारिक पीड़ा व भय को हर लेती है।

कैसा है मृत्यंञ्जय स्वरूप?

शास्त्रों के मुताबिक शिव का मृत्यंञ्जय स्वरुप अष्टभुजाधारी है। सिर पर बालचन्द्र धारण किए हुए हैं। कमल पर विराजित हैं। ऊपर के हाथों से स्वयं पर अमृत कलश से अमृत धारा अर्पित कर रहें हैं। बीच के दो हाथों में रुद्राक्ष माला व मृगमुद्रा। नीचे के हाथों में अमृत कलश थामें हैं।

कैसे मृत्युञ्जय के आगे काल भी हो जाता है पस्त ?

महामृत्युञ्जय के काल को पराजित करने के पीछे शास्त्रों के मुताबिक दर्शन यह भी है कि असल में यह स्वरुप आनंद, विज्ञान, मन, प्राण व वाक यानी शब्द, वाणी, बोल इन पांच कलाओं का स्वामी है। व्यावहारिक जीवन में भी जो इंसान इन कलाओं से दक्ष और पूर्ण हो जाता है, वह सुखी, निरोगी, पीड़ा और तनाव मुक्त हो लंबी आयु को प्राप्त करता है। यही नहीं माना जाता है कि इन पांच विद्याओं की शक्ति के बूते सृष्टि का चक्र चलता रहता है यानी ये संसार को विनाश से बचाती है।

इस तरह आनंद व प्राण स्वरूप महामृत्युञ्जय शिव की उपासना से जुड़ी ऐसी आस्था और विश्वास के आगे मौत ही मात नहीं खाती, बल्कि निर्भय व निरोगी जीवन भी प्राप्त होता है। जिसके लिए महामृत्युञ्जय मंत्र का स्मरण बेहद असरदार माना गया है।

आज से 20 तक शिव नवरात्रि..शुभ चाहें तो 9 दिन न चूकें ऐसी शिव पूजा



हिन्दू धर्म पंचांग के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (20 फरवरी) महाशिवरात्रि के रूप में प्रसिद्ध है। क्योंकि यह शिव के दिव्य ज्योर्तिंलिंग के प्राकट्य की बड़ी ही शुभ रात्रि के साथ ही प्रकृति व पुरुष के मिलन की प्रतीकात्मक दृष्टि से शिव विवाह का मंगल अवसर भी। शिव भक्ति के इस विशेष काल में शिव भक्ति सभी सांसारिक इच्छाओं का पूरा करने वाली मानी गई है।

यह शिव भक्ति 9 दिन की जाती है। जिसकी शुरुआत फाल्गुन कृष्ण पंचमी (12 फरवरी से) से होती है। खासतौर पर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योर्तिलिङ्ग में इस दौरान शिव के अनेक स्वरूपों के दर्शन होते हैं। यहां यह पुण्य काल शिव नवरात्रि के रूप में भी प्रसिद्ध है।

ऐसे काल में अगर आप भी जीवन में शुभ व मंगल चाहते हैं तो शिव नवरात्रि के हर दिन जल, बिल्वपत्र, दूध व दूध की मिठाई चढ़ा शिव पूजा कर भावना और आस्था के साथ एक विशेष शिव आरती कर जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। यह है गंगाधर की आरती ।

पौराणिक मान्यता है कि पवित्र गंगा जब पृथ्वी पर उतरी तो उसके तेज प्रवाह पर महादेव शिव की जटाओं ने काबू पाया। शिव की जटाओं में गंगा को धारण करना प्रतीकात्मक संदेश देता है कि जीवन की आपाधापी में सफल होने के लिए सोच, विचार और मन को गंगा की भांति पावन यानी साफ रखने के साथ ही महादेव की भांति धैर्य व बड़प्पन के साथ सभी की भलाई के भाव रखे जाएं। ऐसे ही भाव के साथ करें यह आरती -

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥

सौ साल के एक आम के पेड़ से बंधे हैं दो कुनबे!

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रावतभाटा (कोटा).भैंसरोडगढ़ का सौ साल से भी ज्यादा पुराना पेड़ दो परिवारों का रिश्ता बांधे हुए है। इस पेड़ को 90 साल पहले यहां के तत्कालीन जागीरदार राव हिम्मतसिंह ने शंकरलाल चौबे के परिवार को दान किया था।

60 साल पहले जागीरदार ने उस जमीन को एक किसान नबीबख्श को बेच दिया, जिस पर यह आम का पेड़ लगा था। लेकिन इस सौदे में यह शर्त डाल दी कि पेड़ शंकरलाल के परिवार का भी रहेगा। शंकरलाल और नबीबख्श के परिवारों ने इस पेड़ के आम का बंटवारा करना तय किया।

यह आज भी जारी है। नबीबख्श के पुत्र अख्तर हुसैन परमाणु बिजलीघर में नौकरी करते थे। वे कहते हैं आम का यह बंटवारा दोनों परिवारों में मेल-जोल का जरिया भी है। शंकरलाल के पुत्र रमेश दशोरा मानते हैं, कि यह दोनों परिवारों के बीच ऐसी परंपरा बन गई है, जिसे हमारी अगली पीढ़ी भी जारी रखना चाहेगी।

दिल की बात कहने का ये तरीका भी तो आजमाइए जनाब!

नागपुर। वैलेंटाइन-डे का बेसब्री से इंतजार कर रहे कपल्स के लिए बाजार में कई तरह के गिफ्ट्स उपलब्ध हैं। शहर के कपल्स टेडीबियर, ग्रीटिंग्स के अलावा अपने प्यार भरे रिश्ते की निशानी के रूप में एक-दूसरे को ज्वेलरी गिफ्ट करने की भी तैयारी में हैं। कार्डस में जहां हैंडमेड को तवज्जो मिल रही है, वहीं सदाबहार टेडीबियर की भी बाजार में अच्छी-खासी डिमांड है। ज्वेलरी में आर्टिफिशियल के साथ-साथ अमेरिकन डायमंड, पोल्की, कुंदन मिक्स गोल्ड पसंद किए जा रहे हैं।

50 से 2000 रुपए के कार्ड मार्केट में एक बार फिर से ग्रीटिंग कार्डस की वैल्यू बढ़ी नजर आ रही है। हालांकि, बीच में ये Rेज खत्म सा हो गया था। इसे पसंद करने वाले वर्ग में ज्यादातर यूथ ही शामिल हैं, जो अपने दिल की बात कार्ड में लिखकर देने की तमन्ना रखते हैं। इसलिए वे गिफ्ट के साथ-साथ कार्ड भी ले रहे हैं। हालांकि, ग्रीटिंग कार्डस को लेकर यूथ की पसंद में एक बड़ा फर्क आया है, वह हैं हैंडमेड कार्डस। इनके अंदर में अंदर कैलिग्राफी राइटिंग की गई है और साइज थोड़ा बड़ा दिया गया है। साथ-साथ इसमें ऐसी स्याही का इस्तेमाल किया गया है, जो खुशबू दे। ये कार्ड 50 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक की रेंज में उपलब्ध हैं।
आर्टिफिशियल से थोड़ा हटकर इस बार वैलेंटाइन-डे पर गिफ्ट के लिए ज्वेलरी के ट्रेंड में भी चेंज देखने को मिल रहा है। इस बार लोग आर्टिफिशियल ज्वेलरी में अच्छी क्वालिटी ढूंढ़ रहे हैं, वहीं जो जॉब में हैं, वह अमेरिकन डायमंड, पोल्की, कुंदन मिक्स गोल्ड या रियल डायमंड वैलेंटाइन गिफ्ट के तौर पर खरीद रहे हैं। इसके अलावा कपल रिस्ट वॉच, ब्रेसलेट, कपल पैंडल की भी डिमांड है।

टेडीबियर डिमांड में सदाबहार सॉफ्ट टॉयज इस बार भी डिमांड में हैं। गल्र्स के लिए जहां पिंक वहीं, ब्वॉयज के लिए ब्लू टेडी मार्केट में छाए हुए हैं। हार्ट शेप के सॉफ्ट पिलो भी मार्केट में हैं। हालांकि, इसे वही लोग खरीद रहे है, जिनकी शादी या सगाई हो गई हो। इसके अलावा पर्स, डिजाइनर बैग, बैंगल्स, वैलेंटाइन-डे स्लोगन वाली टीशर्ट, काफी मग भी गिफ्ट के लिए पसंद किए जा रहे हैं।

एक्सीडेंट में एक ही परिवार के 5 जनों सहित 6 की मौत


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कोटा. झांसी से बेटी के विवाह समारोह कर लौट रहे कोटा के एक परिवार की सड़क दुर्घटना में 6 जनों की मौत हो गई। इंडिका कार से परिवार कोटा आ रहा था। इसी दौरान ट्रक ने शनिवार दोपहर बबीना (उप्र) के पास कार को सामने टक्कर मार दी।

परिवार के सदस्यों की मौत की सूचना के बाद खुशी के माहौल में एकाएक गम छा गया। कोटा के रिश्तेदार उनके घर के पास एकत्र हो गए और चर्चा करने लगे। सभी फोन लगाकर उनके बारे में जानकारी लेने लगे। कुछ का कहना था कि ट्रेन से जाते तो कम से कम यह हादसा तो नहीं होता। शुक्र है मझली बेटी तो ट्रेन से गई थी।


रिश्तेदार परमजीतसिंह ने बताया कि सिविल लाइन निवासी सीनियर एडवोकेट राजेन्द्रसिंह सलूजा की छोटी बेटी गुरप्रीत कौर का 6 फरवरी को कानपुर में विवाह हुआ था।

राजेन्द्रसिंह सलूजा (50) व उनकी पत्नी जीत कौर (46), सबसे बड़ी बेटी नीमच निवासी रिंकू (30), दामाद गुरजीत वाधवा (32), दोहिता मनन (11) व ड्राइवर रामप्रस इंडिका कार से छोटी बेटी गुरप्रीत के रिसेप्शन में शुक्रवार तड़के कोटा से झांसी के ललितपुर के लिए रवाना हुए थे।

वहां से रिसेप्शन के बाद शनिवार को घर लौट रहे थे। इसी दौरान बबीना के पास ट्रक ने सामने से कार को टक्कर मार दी। भिडंत इतनी जबर्दस्त थी कि दुर्घटना में कार में सवार 6 जनों की मौत हो गई।


कार में शव बुरी तरह से दब गए थे। कार की बॉडी को काटकर शव निकाले गए। शव का पोस्टमार्टम करा दिया गया है। झांसी से रिश्तेदार बबीना पहुंच गए है। कोटा में रविवार दोपहर करीब 3 बजे तक शव पहुंच जाएगा। सभी की हादसे को देखकर आंखें नम हो गई। पड़ोसी गुरदीपसिंह ने बताया कि राजेन्द्र के तीन बेटियां हैं। सभी बेटियों का विवाह कर दिया था। यह सबसे छोटी बेटी का विवाह हुआ था। मझली बेटी निक्की व उनका परिवार ट्रेन से वहां शामिल हुआ था।

वकीलों में गहरा शोक

कोटा बार एसोसिएशन के महासचिव बृजराजसिंह ने बताया कि वरिष्ठ वकील राजेन्द्र सलूजा की मौत से वकीलों में शोक छा गया। उनके अंतिम संस्कार के बाद ही अवकाश की घोषणा की जाएगी। रविवार को अगर उनका दाहसंस्कार होता है तो निर्णय लेकर सोमवार को शोक सभा रखकर न्यायिक कार्य स्थगित किया जाएगा।

रविवार को नीमच लौटने का था ट्रेन में रिजर्वेशन
राजेन्द्र सलूजा की बड़ी बेटी रिंकी व दामाद गुरजीतसिंह विवाह समारोह में सम्मिलित होने 3 फरवरी से कोटा आए हुए थे। उनका 12 फरवरी का नीमच लौटने का रिजर्वेशन था। इस दौरान झांसी कार में रिसेप्शन में सम्मिलित होने गए थे। राजेन्द्र सात भाइयों में छठे नंबर के थे। गुरमीत आरामशीन का कारोबार संभालता था। उसका इकलौता बेटा मनन भी हादसे में काल का ग्रास बन गया। गुरमीत के बड़े भाई गुरमीतसिंह वाधवा नगर पालिका उपाध्यक्ष और भाजपा के जिलाध्यक्ष के पद पर रहे है। शहर में भाजपा के वरिष्ठ नेता है।

खुर्शीद की होगी छुट्टी? पाटिल ने पीएम को भेजी चिट्ठी



नई दिल्ली. राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के बारे में चुनाव आयोग की ओर से की गई शिकायत की कॉपी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजकर उचित कार्रवाई करने को कहा है। कानून मंत्री ने आयोग को आंख दिखाकर सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया है। विपक्ष के हमले के बाद ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग को चुनौती देने वाले खुर्शीद की छुट्टी हो सकती है।

आयोग ने राष्ट्रपति को पत्र लिख कर कहा था कि अल्पसंख्यक कोटे संबंधी बयान सेंसर करने के बावजूद खुर्शीद बार-बार आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं। आयोग ने इस मामले में ‘फौरन निर्णायक कार्रवाई’ की मांग की है। अब तक के इतिहास में पहली बार चुनाव आयोग ने आचार संहिता तोड़ने के मामले में ऐसा सख्त कदम उठाया है।

दिग्विजय बचाव में

आचार संहिता मामले में चुनाव आयोग के निशाने पर आए कैबिनेट मंत्री सलमान खुर्शीद के बचाव में पार्टी के ही सीनियर नेता दिग्विजय सिंह आए हैं। दिग्विजय ने कहा कि यदि राजनेताओं को अपनी पार्टी के एजेंडे के बारे में नहीं बोलने दिया जाएगा तो पार्टी फेनिफेस्‍टो पर भी पाबंदी लगा देनी चाहिए। कांग्रेस पार्टी के मेनिफेस्‍टो में अल्‍पसंख्‍यकों, पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान है।

आयोग के फैसले पर सवाल

इस मामले में भाजपा, वरिष्ठ वकीलों और पूर्व चुनाव अधिकारियों ने चुनाव आयोग के पत्र पर सवाल उठाए हैं। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कहा कि कानून तोड़ना जुर्म है। खुर्शीद के खिलाफ कोर्ट में शिकायत करनी चाहिए थी। वैसे भी राष्ट्रपति के पास कोई अधिकार नहीं होता। वह केंद्रीय कैबिनेट के फैसले के बिना कोई कार्रवाई नहीं कर सकतीं। जेठमलानी का मानना है कि आयोग को राष्‍ट्रपति को चिट्ठी लिखने के बजाय खुद ही ठोस कार्रवाई करनी चाहिए थी। वहीं सीनियर वकील हरीश साल्‍वे के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस मसले का कोई न कोई हल निकालना ही पड़ेगा।

वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी और पूर्व निर्वाचन अधिकारी केजे राव ने भी कहा कि आयोग को राष्ट्रपति को पत्र लिखने के बजाय कोर्ट जाने का विकल्प आजमाना था। भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, जो लोग चुनावी माहौल को धर्म के नाम पर प्रदूषित कर रहे हैं, उन्हें तत्काल उत्तर प्रदेश से तड़ीपार किया जाए। नकवी ने मांग की है कि खुर्शीद को कैबिनेट मंत्री के पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है।

कश्‍मीर का हिस्‍सा चीन के हवाले करेगा पाकिस्‍तान



अखबार के अनुसार चीन के एक थिंक टैंक ने भी इस कदम को हरी झंडी दे दी है। चीन और पाकिस्तान के थिंक टैंकों ने गिलगिट बाल्टिस्तान को चीन को लीज पर देने पर विचार शुरू कर दिया है।

वाशिंगटन. पाकिस्तान कश्मीर के विवादास्पद गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र को 50 साल के लिए चीन को लीज पर देने पर विचार कर रहा है। अमेरिका के साथ चल रहे तनाव के बीच चीन से अपने रिश्ते और मजबूत करने के लिए वह यह कदम उठा रहा है। अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक टैंक मिडल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है।

रिपोर्ट में ऐसा गिलगिट बाल्टिस्तान के उर्दू अखबार में प्रकाशित खबरों के आधार पर कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, गिलगिट बाल्टिस्तान के लिए पाक-चीन सामरिक कार्यक्रम का यह फैसला संभवत: इस साल जनवरी में सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी की चीन यात्रा के दौरान लिया गया।

उर्दू अखबार 'रोजनामा बंग-ए-सहर' में प्रकाशित खबर में कहा गया कि पाकिस्तान में बिगड़ते हालात और अमेरिका से तनावपूर्ण रिश्तों के चलते गिलगिट बाल्टिस्तान को 50 सालों के लिए चीन को लीज पर देने पर विचार शुरू हो गया है। यह अखबार गिलगिट बाल्टिस्तान में 13 दिसंबर को वितरित हुआ था।

अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा कि पाकिस्तान सेना प्रमुख की पांच दिवसीय चीन यात्रा के मद्देनजर रोजनामा बंग-ए-सहर की यह खबर महत्वपूर्ण हो जाती है। बीजिंग में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के साथ बैठक में जनरल कयानी ने कहा था कि चीन-पाकिस्तान सामरिक साझेदारी दोनों देशों की नीतियों में महत्वपूर्ण है। चीनी प्रधानमंत्री का कहना था कि चीनी सरकार और सेना दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करना और ज्यादा से ज्यादा सैन्य आदान प्रदान जारी रखेगी। थिंक टैंक ने कहा कि पाकिस्तानी और चीनी सेना गिलगिट-बाल्टिस्तान के संयुक्त सैन्य प्रबंधन की दिशा की ओर बढ़ रहे हैं।

विकास परियोजनाओं का करेंगे बहाना

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन विकास परियोजनाओं के नाम पर गिलगिट बाल्टिस्तान में काम शुरू करेगा और फिर धीरे-धीरे इस क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में लेगा। इसके बाद यह क्षेत्र को 50 साल के लिए पूरी तरह अपने कब्जे में ले लेगा और अपने सैनिकों को वहां तैनात करेगा।

रावणादि का जन्म, तपस्या और उनका ऐश्वर्य तथा अत्याचार


दोहा :
* भरद्वाज सुनु जाहि जब होई बिधाता बाम।
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम॥175॥
भावार्थ:-(याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-) हे भरद्वाज! सुनो, विधाता जब जिसके विपरीत होते हैं, तब उसके लिए धूल सुमेरु पर्वत के समान (भारी और कुचल डालने वाली), पिता यम के समान (कालरूप) और रस्सी साँप के समान (काट खाने वाली) हो जाती है॥175॥
चौपाई:
* काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा॥
दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा॥1॥
भावार्थ:-हे मुनि! सुनो, समय पाकर वही राजा परिवार सहित रावण नामक राक्षस हुआ। उसके दस सिर और बीस भुजाएँ थीं और वह बड़ा ही प्रचण्ड शूरवीर था॥1॥
* भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुंभकरन बलधामा॥
सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू॥2॥
भावार्थ:-अरिमर्दन नामक जो राजा का छोटा भाई था, वह बल का धाम कुम्भकर्ण हुआ। उसका जो मंत्री था, जिसका नाम धर्मरुचि था, वह रावण का सौतेला छोटा भाई हुआ ॥2॥
* नाम बिभीषन जेहि जग जाना। बिष्नुभगत बिग्यान निधाना॥
रहे जे सुत सेवक नृप केरे। भए निसाचर घोर घनेरे॥3॥
भावार्थ:-उसका विभीषण नाम था, जिसे सारा जगत जानता है। वह विष्णुभक्त और ज्ञान-विज्ञान का भंडार था और जो राजा के पुत्र और सेवक थे, वे सभी बड़े भयानक राक्षस हुए॥3॥
* कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयंकर बिगत बिबेका॥
कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी॥4॥
भावार्थ:-वे सब अनेकों जाति के, मनमाना रूप धारण करने वाले, दुष्ट, कुटिल, भयंकर, विवेकरहित, निर्दयी, हिंसक, पापी और संसार भर को दुःख देने वाले हुए, उनका वर्णन नहीं हो सकता॥4॥
दोहा :
* उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप।
तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप॥176॥
भावार्थ:-यद्यपि वे पुलस्त्य ऋषि के पवित्र, निर्मल और अनुपम कुल में उत्पन्न हुए, तथापि ब्राह्मणों के शाप के कारण वे सब पाप रूप हुए॥176॥
चौपाई :
* कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई। परम उग्र नहिं बरनि सो जाई॥
गयउ निकट तप देखि बिधाता। मागहु बर प्रसन्न मैं ताता॥1॥
भावार्थ:-तीनों भाइयों ने अनेकों प्रकार की बड़ी ही कठिन तपस्या की, जिसका वर्णन नहीं हो सकता। (उनका उग्र) तप देखकर ब्रह्माजी उनके पास गए और बोले- हे तात! मैं प्रसन्न हूँ, वर माँगो॥1॥
* करि बिनती पद गहि दससीसा। बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा॥
हम काहू के मरहिं न मारें। बानर मनुज जाति दुइ बारें॥2॥
भावार्थ:-रावण ने विनय करके और चरण पकड़कर कहा- हे जगदीश्वर! सुनिए, वानर और मनुष्य- इन दो जातियों को छोड़कर हम और किसी के मारे न मरें। (यह वर दीजिए)॥2॥
* एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा। मैं ब्रह्माँ मिलि तेहि बर दीन्हा॥
पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ॥3॥
भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं कि-) मैंने और ब्रह्मा ने मिलकर उसे वर दिया कि ऐसा ही हो, तुमने बड़ा तप किया है। फिर ब्रह्माजी कुंभकर्ण के पास गए। उसे देखकर उनके मन में बड़ा आश्चर्य हुआ॥3॥
* जौं एहिं खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू॥
सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नीद मास षट केरी॥4॥
भावार्थ:-जो यह दुष्ट नित्य आहार करेगा, तो सारा संसार ही उजाड़ हो जाएगा। (ऐसा विचारकर) ब्रह्माजी ने सरस्वती को प्रेरणा करके उसकी बुद्धि फेर दी। (जिससे) उसने छह महीने की नींद माँगी॥4॥
दोहा :
* गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु।
तेहिं मागेउ भगवंत पद कमल अमल अनुरागु॥177॥
भावार्थ:-फिर ब्रह्माजी विभीषण के पास गए और बोले- हे पुत्र! वर माँगो। उसने भगवान के चरणकमलों में निर्मल (निष्काम और अनन्य) प्रेम माँगा॥177॥
चौपाई :
* तिन्हहि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए॥
मय तनुजा मंदोदरि नामा। परम सुंदरी नारि ललामा॥1॥
भावार्थ:-उनको वर देकर ब्रह्माजी चले गए और वे (तीनों भाई) हर्षित हेकर अपने घर लौट आए। मय दानव की मंदोदरी नाम की कन्या परम सुंदरी और स्त्रियों में शिरोमणि थी॥1॥
* सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी॥
हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बंधु बिआहेसि जाई॥2॥
भावार्थ:-मय ने उसे लाकर रावण को दिया। उसने जान लिया कि यह राक्षसों का राजा होगा। अच्छी स्त्री पाकर रावण प्रसन्न हुआ और फिर उसने जाकर दोनों भाइयों का विवाह कर दिया॥2॥
* गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी। बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी॥
सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा। कनक रचित मनि भवन अपारा॥3॥
भावार्थ:-समुद्र के बीच में त्रिकूट नामक पर्वत पर ब्रह्मा का बनाया हुआ एक बड़ा भारी किला था। (महान मायावी और निपुण कारीगर) मय दानव ने उसको फिर से सजा दिया। उसमें मणियों से जड़े हुए सोने के अनगिनत महल थे॥3॥
* भोगावति जसि अहिकुल बासा। अमरावति जसि सक्रनिवासा॥
तिन्ह तें अधिक रम्य अति बंका। जग बिख्यात नाम तेहि लंका॥4॥
भावार्थ:-जैसी नागकुल के रहने की (पाताल लोक में) भोगावती पुरी है और इन्द्र के रहने की (स्वर्गलोक में) अमरावती पुरी है, उनसे भी अधिक सुंदर और बाँका वह दुर्ग था। जगत में उसका नाम लंका प्रसिद्ध हुआ॥4॥
दोहा :
* खाईं सिंधु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव।
कनक कोट मनि खचित दृढ़ बरनि न जाइ बनाव॥178 क॥
भावार्थ:-उसे चारों ओर से समुद्र की अत्यन्त गहरी खाई घेरे हुए है। उस (दुर्ग) के मणियों से जड़ा हुआ सोने का मजबूत परकोटा है, जिसकी कारीगरी का वर्णन नहीं किया जा सकता॥178 (क)॥
* हरि प्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ।
सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ॥178 ख॥
भावार्थ:-भगवान की प्रेरणा से जिस कल्प में जो राक्षसों का राजा (रावण) होता है, वही शूर, प्रतापी, अतुलित बलवान्‌ अपनी सेना सहित उस पुरी में बसता है॥178 (ख)॥
चौपाई :
* रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर संघारे॥
अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे॥1॥
भावार्थ:-(पहले) वहाँ बड़े-बड़े योद्धा राक्षस रहते थे। देवताओं ने उन सबको युद्द में मार डाला। अब इंद्र की प्रेरणा से वहाँ कुबेर के एक करोड़ रक्षक (यक्ष लोग) रहते हैं॥1॥
*दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई॥
देखि बिकट भट बड़ि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई॥2॥
भावार्थ:-रावण को कहीं ऐसी खबर मिली, तब उसने सेना सजाकर किले को जा घेरा। उस बड़े विकट योद्धा और उसकी बड़ी सेना को देखकर यक्ष अपने प्राण लेकर भाग गए॥2॥
* फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा॥
सुंदर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी॥3॥
भावार्थ:-तब रावण ने घूम-फिरकर सारा नगर देखा। उसकी (स्थान संबंधी) चिन्ता मिट गई और उसे बहुत ही सुख हुआ। उस पुरी को स्वाभाविक ही सुंदर और (बाहर वालों के लिए) दुर्गम अनुमान करके रावण ने वहाँ अपनी राजधानी कायम की॥3॥
* जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हें॥
एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा॥4॥
भावार्थ:-योग्यता के अनुसार घरों को बाँटकर रावण ने सब राक्षसों को सुखी किया। एक बार वह कुबेर पर चढ़ दौड़ा और उससे पुष्पक विमान को जीतकर ले आया॥4॥
दोहा :
* कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ।
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ॥179॥
भावार्थ:-फिर उसने जाकर (एक बार) खिलवाड़ ही में कैलास पर्वत को उठा लिया और मानो अपनी भुजाओं का बल तौलकर, बहुत सुख पाकर वह वहाँ से चला आया॥179॥
चौपाई :
* सुख संपति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बड़ाई॥
नित नूतन सब बाढ़त जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥1॥
भावार्थ:-सुख, सम्पत्ति, पुत्र, सेना, सहायक, जय, प्रताप, बल, बुद्धि और बड़ाई- ये सब उसके नित्य नए (वैसे ही) बढ़ते जाते थे, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है॥1॥
* अतिबल कुंभकरन अस भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता॥
करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहूँ पुर त्रासा॥2॥
भावार्थ:-अत्यन्त बलवान्‌ कुम्भकर्ण सा उसका भाई था, जिसके जोड़ का योद्धा जगत में पैदा ही नहीं हुआ। वह मदिरा पीकर छह महीने सोया करता था। उसके जागते ही तीनों लोकों में तहलका मच जाता था॥2॥
* जौं दिन प्रति अहार कर सोई। बिस्व बेगि सब चौपट होई॥
समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना॥3॥
भावार्थ:-यदि वह प्रतिदिन भोजन करता, तब तो सम्पूर्ण विश्व शीघ्र ही चौपट (खाली) हो जाता। रणधीर ऐसा था कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। (लंका में) उसके ऐसे असंख्य बलवान वीर थे॥3॥
* बारिदनाद जेठ सुत तासू। भट महुँ प्रथम लीक जग जासू॥
जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई॥4॥
भावार्थ:- मेघनाद रावण का बड़ा लड़का था, जिसका जगत के योद्धाओं में पहला नंबर था। रण में कोई भी उसका सामना नहीं कर सकता था। स्वर्ग में तो (उसके भय से) नित्य भगदड़ मची रहती थी॥4॥
दोहा :
* कुमुख अकंपन कुलिसरद धूमकेतु अतिकाय।
एक एक जग जीति सक ऐसे सुभट निकाय॥180॥
भावार्थ:-(इनके अतिरिक्त) दुर्मुख, अकम्पन, वज्रदन्त, धूमकेतु और अतिकाय आदि ऐसे अनेक योद्धा थे, जो अकेले ही सारे जगत को जीत सकते थे॥180॥
चौपाई :
* कामरूप जानहिं सब माया। सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया॥
दसमुख बैठ सभाँ एक बारा। देखि अमित आपन परिवारा॥1॥
भावार्थ:-सभी राक्षस मनमाना रूप बना सकते थे और (आसुरी) माया जानते थे। उनके दया-धर्म स्वप्न में भी नहीं था। एक बार सभा में बैठे हुए रावण ने अपने अगणित परिवार को देखा-॥1॥
* सुत समूह जन परिजन नाती। गनै को पार निसाचर जाती॥
सेन बिलोकि सहज अभिमानी। बोला बचन क्रोध मद सानी॥2॥
भावार्थ:-पुत्र-पौत्र, कुटुम्बी और सेवक ढेर-के-ढेर थे। (सारी) राक्षसों की जातियों को तो गिन ही कौन सकता था! अपनी सेना को देखकर स्वभाव से ही अभिमानी रावण क्रोध और गर्व में सनी हुई वाणी बोला-॥2॥
* सुनहु सकल रजनीचर जूथा। हमरे बैरी बिबुध बरूथा॥
ते सनमुख नहिं करहिं लराई। देखि सबल रिपु जाहिं पराई॥3॥
भावार्थ:-हे समस्त राक्षसों के दलों! सुनो, देवतागण हमारे शत्रु हैं। वे सामने आकर युद्ध नहीं करते। बलवान शत्रु को देखकर भाग जाते हैं॥3॥
* तेन्ह कर मरन एक बिधि होई। कहउँ बुझाइ सुनहु अब सोई॥
द्विजभोजन मख होम सराधा। सब कै जाइ करहु तुम्ह बाधा॥4॥
भावार्थ:-उनका मरण एक ही उपाय से हो सकता है, मैं समझाकर कहता हूँ। अब उसे सुनो। (उनके बल को बढ़ाने वाले) ब्राह्मण भोजन, यज्ञ, हवन और श्राद्ध- इन सबमें जाकर तुम बाधा डालो॥4॥
दोहा :
* छुधा छीन बलहीन सुर सहजेहिं मिलिहहिं आइ।
तब मारिहउँ कि छाड़िहउँ भली भाँति अपनाइ॥181॥
भावार्थ:-भूख से दुर्बल और बलहीन होकर देवता सहज ही में आ मिलेंगे। तब उनको मैं मार डालूँगा अथवा भलीभाँति अपने अधीन करके (सर्वथा पराधीन करके) छोड़ दूँगा॥181॥
चौपाई :
* मेघनाद कहूँ पुनि हँकरावा। दीन्हीं सिख बलु बयरु बढ़ावा॥
जे सुर समर धीर बलवाना। जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना॥1॥
भावार्थ:-फिर उसने मेघनाद को बुलवाया और सिखा-पढ़ाकर उसके बल और देवताओं के प्रति बैरभाव को उत्तेजना दी। (फिर कहा-) हे पुत्र ! जो देवता रण में धीर और बलवान्‌ हैं और जिन्हें लड़ने का अभिमान है॥1॥
* तिन्हहि जीति रन आनेसु बाँधी। उठि सुत पितु अनुसासन काँघी॥
एहि बिधि सबही अग्या दीन्हीं। आपुनु चलेउ गदा कर लीन्ही॥2॥
भावार्थ:-उन्हें युद्ध में जीतकर बाँध लाना। बेटे ने उठकर पिता की आज्ञा को शिरोधार्य किया। इसी तरह उसने सबको आज्ञा दी और आप भी हाथ में गदा लेकर चल दिया॥2॥
* चलत दसानन डोलति अवनी। गर्जत गर्भ स्रवहिं सुर रवनी॥
रावन आवत सुनेउ सकोहा। देवन्ह तके मेरु गिरि खोहा॥3॥
भावार्थ:-रावण के चलने से पृथ्वी डगमगाने लगी और उसकी गर्जना से देवरमणियों के गर्भ गिरने लगे। रावण को क्रोध सहित आते हुए सुनकर देवताओं ने सुमेरु पर्वत की गुफाएँ तकीं (भागकर सुमेरु की गुफाओं का आश्रय लिया)॥3॥
* दिगपालन्ह के लोक सुहाए। सूने सकल दसानन पाए॥
पुनि पुनि सिंघनाद करि भारी। देइ देवतन्ह गारि पचारी॥4॥
भावार्थ:-दिक्पालों के सारे सुंदर लोकों को रावण ने सूना पाया। वह बार-बार भारी सिंहगर्जना करके देवताओं को ललकार-ललकारकर गालियाँ देता था॥4॥
* रन मद मत्त फिरइ गज धावा। प्रतिभट खोजत कतहुँ न पावा॥
रबि ससि पवन बरुन धनधारी। अगिनि काल जम सब अधिकारी॥5॥
भावार्थ:-रण के मद में मतवाला होकर वह अपनी जोड़ी का योद्धा खोजता हुआ जगत भर में दौड़ता फिरा, परन्तु उसे ऐसा योद्धा कहीं नहीं मिला। सूर्य, चन्द्रमा, वायु, वरुण, कुबेर, अग्नि, काल और यम आदि सब अधिकारी,॥5॥
* किंनर सिद्ध मनुज सुर नागा। हठि सबही के पंथहिं लागा॥
ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी। दसमुख बसबर्ती नर नारी॥6॥
भावार्थ:-किन्नर, सिद्ध, मनुष्य, देवता और नाग- सभी के पीछे वह हठपूर्वक पड़ गया (किसी को भी उसने शांतिपूर्वक नहीं बैठने दिया)। ब्रह्माजी की सृष्टि में जहाँ तक शरीरधारी स्त्री-पुरुष थे, सभी रावण के अधीन हो गए॥6॥
* आयसु करहिं सकल भयभीता। नवहिं आइ नित चरन बिनीता॥7॥
भावार्थ:-डर के मारे सभी उसकी आज्ञा का पालन करते थे और नित्य आकर नम्रतापूर्वक उसके चरणों में सिर नवाते थे॥7॥
दोहा :
* भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र।
मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र॥182 क॥
भावार्थ:-उसने भुजाओं के बल से सारे विश्व को वश में कर लिया, किसी को स्वतंत्र नहीं रहने दिया। (इस प्रकार) मंडलीक राजाओं का शिरोमणि (सार्वभौम सम्राट) रावण अपनी इच्छानुसार राज्य करने लगा॥182 (क)॥
* देव जच्छ गंधर्ब नर किंनर नाग कुमारि।
जीति बरीं निज बाहु बल बहु सुंदर बर नारि॥182 ख॥
भावार्थ:-देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य, किन्नर और नागों की कन्याओं तथा बहुत सी अन्य सुंदरी और उत्तम स्त्रियों को उसने अपनी भुजाओं के बल से जीतकर ब्याह लिया॥182 (ख)॥
चौपाई :
* इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ। सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ॥
प्रथमहिं जिन्ह कहुँ आयसु दीन्हा। तिन्ह कर चरित सुनहु जो कीन्हा॥1॥
भावार्थ:-मेघनाद से उसने जो कुछ कहा, उसे उसने (मेघनाद ने) मानो पहले से ही कर रखा था (अर्थात्‌ रावण के कहने भर की देर थी, उसने आज्ञापालन में तनिक भी देर नहीं की।) जिनको (रावण ने मेघनाद से) पहले ही आज्ञा दे रखी थी, उन्होंने जो करतूतें की उन्हें सुनो॥1॥
* देखत भीमरूप सब पापी। निसिचर निकर देव परितापी॥
करहिं उपद्रव असुर निकाया। नाना रूप धरहिं करि माया॥2॥
भावार्थ:-सब राक्षसों के समूह देखने में बड़े भयानक, पापी और देवताओं को दुःख देने वाले थे। वे असुरों के समूह उपद्रव करते थे और माया से अनेकों प्रकार के रूप धरते थे॥2॥
* जेहि बिधि होइ धर्म निर्मूला। सो सब करहिं बेद प्रतिकूला॥
जेहिं जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं। नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं॥3॥
भावार्थ:-जिस प्रकार धर्म की जड़ कटे, वे वही सब वेदविरुद्ध काम करते थे। जिस-जिस स्थान में वे गो और ब्राह्मणों को पाते थे, उसी नगर, गाँव और पुरवे में आग लगा देते थे॥3॥
* सुभ आचरन कतहुँ नहिं होई। देव बिप्र गुरु मान न कोई॥
नहिं हरिभगति जग्य तप ग्याना। सपनेहु सुनिअ न बेद पुराना॥4॥
भावार्थ:-(उनके डर से) कहीं भी शुभ आचरण (ब्राह्मण भोजन, यज्ञ, श्राद्ध आदि) नहीं होते थे। देवता, ब्राह्मण और गुरु को कोई नहीं मानता था। न हरिभक्ति थी, न यज्ञ, तप और ज्ञान था। वेद और पुराण तो स्वप्न में भी सुनने को नहीं मिलते थे॥4॥
छन्द :
* जप जोग बिरागा तप मख भागा श्रवन सुनइ दससीसा।
आपुनु उठि धावइ रहै न पावइ धरि सब घालइ खीसा॥
अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा धर्म सुनिअ नहिं काना।
तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ जो कह बेद पुराना॥
भावार्थ:-जप, योग, वैराग्य, तप तथा यज्ञ में (देवताओं के) भाग पाने की बात रावण कहीं कानों से सुन पाता, तो (उसी समय) स्वयं उठ दौड़ता। कुछ भी रहने नहीं पाता, वह सबको पकड़कर विध्वंस कर डालता था। संसार में ऐसा भ्रष्ट आचरण फैल गया कि धर्म तो कानों में सुनने में नहीं आता था, जो कोई वेद और पुराण कहता, उसको बहुत तरह से त्रास देता और देश से निकाल देता था।
सोरठा :
* बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं।
हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति॥183॥
भावार्थ:-राक्षस लोग जो घोर अत्याचार करते थे, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। हिंसा पर ही जिनकी प्रीति है, उनके पापों का क्या ठिकाना॥183॥

कुरान का संदेश

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