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16 फ़रवरी 2012

यहां 'कुत्तों' के नाम है 160 बीघा जमीन और करोड़ों की संपत्ति



राजपुरा.पटियाला-चंडीगढ़ रोड पर स्थित गांव खानपुर के लोगों को कुत्तों में न सिर्फ भगवान नजर आता है, बल्कि वे तब तक खाना नहीं खाते जब तक कुत्ते भोग न लगा लें। इस गांव में दशकों से कुत्तों की पूजा की जाती है।ये कोई आम कुत्ते नहीं, बल्कि करोड़ों की जायदाद के मालिक हैं। यहां कुत्तों का ‘डेरा’ है जिसकी लगभग 160 बीघा जमीन कुत्तों के नाम पर है। डेरे के महंत अजय गिरी समेत किसी भी व्यक्ति को दिन के तीन टाइम कुत्तों को भोग लगाने से पहले कुछ भी खाने की इजाजत नहीं है।बाबा आला ने दी थी जमीनडेरे के महंत अजय गिरी के मुताबिक पटियाला के संस्थापक बाबा आला इस डेरे में गद्दीनशीन बाबा भगवान गिर जी के भक्त थे। उन्होंने डेरे के आसपास अपनी कई हजार एकड़ जमीन दान में देनी चाही, लेकिन बाबा ने खुद अपने नाम पर करने की बजाए बेजुबान कुत्तों के नाम करने को कह दिया ताकि बाद में उनकी गद्दी पर बैठने वाले महंतों के मन में जमीन को लेकर कभी लालच न आए। तब से लेकर आज तक यह जमीन कुत्तों के नाम चली आ रही है।स्वादिष्ट व्यंजन चढ़ाए जाते हैंकुत्तों को तीनों टाइम मिस्सी रोट, लस्सी समेत स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। महंत डेरे के चबूतरे पर खड़े होकर ‘आयो.आयो’ की आवाज लगाते हैं और देखते ही देखते दूरदराज बैठे कुत्तों का झुंड वहां इकट्ठा हो जाता है। महंत अपने हाथों से इन्हें भोग लगाते है। इसके बाद श्रद्धालुओं को लंगर बांटा जाता है। सुबह-शाम इनकी आरती की जाती है। आसपास के दर्जनों गांवों के लोग कुत्तों से मन्नत मांगने आते हैं।

दुनिया के सबसे सस्ते शहरों में शामिल हैं भारत के ये दो शहर



मुंबई. महंगाई ने रोजमर्रा के जीवन की मुश्किलें भले ही बढ़ा दी हों लेकिन एक वैश्विक सर्वे में भारत के दो प्रमुख शहरों - मुंबई और नई दिल्ली को दुनिया के चार सबसे सस्ते शहरों में शुमार किया है।

मुंबई के इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) के एक सर्वे में मुंबई को दुनिया का दूसरा सबसे कम खर्चीला शहर और नई दिल्ली को चौथा ऐसा सस्ता शहर बताया गया है। सर्वे के अनुसार पाकिस्तान का कराची दुनिया में सबसे सस्ता शहर है और स्विट्जरलैंड का ज्यूरिख सबसे महंगा। दुनिया के चार सबसे सस्ते शहरों में से तीन भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। ये हैं - कराची, मुंबई, तेहरान और नई दिल्ली।

सर्वे का आधार

ईआईयू के इस सर्वे में करीब 160 उत्पादों और सेवाओं की कीमतों की तुलना की गई। इसमें भोजन, पेय, कपड़े, घरेलू सामान, घर का किराया, निजी जरूरतों की चीजें, परिवहन, निजी स्कूल, घरेलू नौकर और मनोरंजन की लागत जैसी चीजें शामिल हैं।

यह हैं कारण

>पिछले दशक में आउटसोर्सिग, कारोबार दूसरी जगह ले जाने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भारत ने सबको आकर्षित किया है। >भारत और पाकिस्तान में सस्ता श्रम और जमीन की कम कीमतें हैं। >विदेशी निवेशक कम कीमत से पाक में सुरक्षा संबंधी जोखिम लेने तैयार हैं।

दुनिया के 10 सस्ते शहर

1. कराची 2. मुंबई 3. तेहरान 4. नई दिल्ली 5. मस्कट 6. ढाका 7. अल्जीयर्स 8. काठमांडू 9. पनामा सिटी 10. जेद्दा

दुनिया के 10 महंगे शहर

1. ज्यूरिख 2. टोक्यो 3. जिनेवा 4.ओसाका कोबे 5. ओस्लो 6. पेरिस 7. सिडनी 8. मेलबर्न 9. सिंगापुर 10. फ्रैंकफर्ट

कई बीमारियों के लिए रामबाण है यह 'नारियल'


रोहतक.नारियल का इस्तेमाल केवल पूजा-अर्चना में ही नहीं, बल्कि सेहत बनाने में भी होता है। इसका या इसके पानी का सेवन और भोजन में इस्तेमाल करने से विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निजात मिलती है।

आइए जानते हैं इसमें मौजूद पोषक तत्वों और फायदे के बारे में..थायरॉइड ग्रंथि की कार्यप्रणाली में 20 फीसदी सुधार करने में नारियल बहुत लाभकारी साबित होता है। वहीं, इससे मेटाबॉलिज्म भी दुरुस्त रहता है। मेटाबॉलिज्म की गति धीमी होने के कारण ही वजन बढ़ने जैसी समस्याएं भी होती हैं।

इसकी एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल प्रॉपर्टी पेट साफ करने में कारगर है। वहीं, इससे बाहरी संक्रमणों से लड़ने के लिए शारीरिक क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है।

नारियल में लॉरिक एसिड काफी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो सैचुरेटेड फैट का ही एक प्रकार है। लॉरिक एसिड को शरीर बड़ी आसानी से अवशोषित कर लेता है, जिसका इस्तेमाल आवश्यकता पड़ने पर एनर्जी के तौर पर किया जाता है।

इससे हृदय रोगों की आशंका भी काफी कम हो सकती है, क्योंकि यह एलडीएल यानी बुरे कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में सहायक है।

वहीं, नारियल पानी को भी हल्के में न लें। ये कम गुणकारी नहीं है। इसके सेवन से त्वचा हाइड्रेट रहती है और उसका रूखापन दूर होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह त्वचा को नया जीवन दे सकता है। वहीं, इसका सेवन करने से व्यक्ति तरोताजा महसूस करता है।

नारियल मधुमेह के मरीजों के लिए भी बहुत फायदेमंद है, क्योंकि इससे उन्हें थकान नहीं होती है और शारीरिक ऊर्जा बनी रहती है।

पाचन-तंत्र संबंधी गड़बड़ियों को दूर करने में भी नारियल सक्षम है। इसका सेवन करने से पेट अच्छी तरह साफ हो जाता है। डायरिया से पीड़ित व्यक्ति के लिए इसका सेवन करना वरदान साबित हो सकता है।

विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा

विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा
दोहा :
* आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि।
कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि॥209॥
भावार्थ:-सब अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके मुनि प्रभु श्री रामजी को अपने आश्रम में ले आए और उन्हें परम हितू जानकर भक्तिपूर्वक कंद, मूल और फल का भोजन कराया॥209॥
चौपाई :
*प्रात कहा मुनि सन रघुराई। निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई॥
होम करन लागे मुनि झारी। आपु रहे मख कीं रखवारी॥1॥
भावार्थ:-सबेरे श्री रघुनाथजी ने मुनि से कहा- आप जाकर निडर होकर यज्ञ कीजिए। यह सुनकर सब मुनि हवन करने लगे। आप (श्री रामजी) यज्ञ की रखवाली पर रहे॥1॥
* सुनि मारीच निसाचर क्रोही। लै सहाय धावा मुनिद्रोही॥
बिनु फर बान राम तेहि मारा। सत जोजन गा सागर पारा॥2॥
भावार्थ:-यह समाचार सुनकर मुनियों का शत्रु कोरथी राक्षस मारीच अपने सहायकों को लेकर दौड़ा। श्री रामजी ने बिना फल वाला बाण उसको मारा, जिससे वह सौ योजन के विस्तार वाले समुद्र के पार जा गिरा॥2॥
* पावक सर सुबाहु पुनि मारा। अनुज निसाचर कटकु सँघारा॥
मारि असुर द्विज निर्भयकारी। अस्तुति करहिं देव मुनि झारी॥3॥
भावार्थ:-फिर सुबाहु को अग्निबाण मारा। इधर छोटे भाई लक्ष्मणजी ने राक्षसों की सेना का संहार कर डाला। इस प्रकार श्री रामजी ने राक्षसों को मारकर ब्राह्मणों को निर्भय कर दिया। तब सारे देवता और मुनि स्तुति करने लगे॥3॥
* तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया। रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया॥
भगति हेतु बहुत कथा पुराना। कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना॥4॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी ने वहाँ कुछ दिन और रहकर ब्राह्मणों पर दया की। भक्ति के कारण ब्राह्मणों ने उन्हें पुराणों की बहुत सी कथाएँ कहीं, यद्यपि प्रभु सब जानते थे॥4॥
* तब मुनि सादर कहा बुझाई। चरित एक प्रभु देखिअ जाई॥
धनुषजग्य सुनि रघुकुल नाथा। हरषि चले मुनिबर के साथा॥5॥
भावार्थ:-तदन्तर मुनि ने आदरपूर्वक समझाकर कहा- हे प्रभो! चलकर एक चरित्र देखिए। रघुकुल के स्वामी श्री रामचन्द्रजी धनुषयज्ञ (की बात) सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्रजी के साथ प्रसन्न होकर चले॥5॥

कुरान का संदेश


बनाकर लगाएं: हर दर्द की हमदर्द है लहसुन और अजवाइन की ये दवा




आयुर्वेद में कहा गया है कि लहसुन के नियमित इस्तेमाल से आप बढ़ती उम्र में भी युवापन का एहसास कर सकते हैं। लहसुन को जोड़ों के दर्द की अचूक दवा माना गया है। लहसुन सिर्फ स्वाद बढ़ाने का साधन ही नहीं है बल्कि इसमें ऐसी कई खूबियां होती हैं जो इसे बेजोड़ और बहुत कीमती बनाती हैं। आइए जाने लहसुन के कुछ खास गुण...

- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें। इस गुनगुने गर्म तेल की मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।

- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।

इस 'वेश्या' पर मर-मिटते थे लोग, कुर्बान हो गईं हजारों जिंदगियां!

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अपने सौंदर्य की ताकत से कई साम्राज्य को मिटा देने वाली आम्रपाली के रूप की चर्चा जगत प्रसिद्ध है। उस समय उसकी एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के अनेक राजकुमार उसके महल के चारों ओर अपनी छावनी डाले रहते थे। आम्रपाली नगरवधु थी। इसे गणिका भी कहा जाता था। उस समय गणिका का मुख्य काम होता था गणों का मनोरंजन करना उन्हें सुख पहुंचाना। इसलिए आम्रपाली को नर्तकी और वेश्या दोनों ही रूपों में याद किया जाता है।

अपने जमाने में मशहूर वैशाली की नगरवधू दो प्रसिद्ध गणिकाएं थीं। आम्रपाली औऱ वसंतसेना। आम्रपाली वैशाली की और बसंतसेना उज्जैन की थी। तब उपयोग इनका जासूसी कार्यों में भी किया जाता था। जब जासूसी करती थीं तो विषकन्याएं कहलाई जाती थीं। ये दो तरह के जासूसी कार्यों में प्रयुक्त की जाती थीं। स्थिर औऱ संचारक यानि एक जगह रहकर जासूसी करने वाली औऱ घूमघूमकर जासूसी करने वाली।

चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग द्वारा लिखित दस्तावेजों के मुताबिक, आम्रपाली सौंदर्य की मूर्ति थी। वैशाली गणतंत्र के कानून के अनुसार हजारों सुंदरियों में आम्रपाली का चुनाव कर उसे सर्वश्रेष्ठ सुंदरी घोषित कर जनपद कल्याणी की पदवी दी गई थी।

आम्रपाली को देखकर बुद्ध को अपने शिष्यों से कहना पड़ा कि तुम लोग अपनी आँखें बंद कर लो। वह जानते थे कि आम्रपाली के सौंदर्य को देखकर उनके शिष्यों के लिए संतुलन रखना कठिन हो जाएगा।

पहली मुलाकात में दिल दे बैठा शहंशाह

मगध सम्राट बिंबसार ने आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर जब आक्रमण किया तब संयोगवश उसकी पहली मुलाकात आम्रपाली से ही हुई। आम्रपाली के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध होकर बिंबसार पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठा। माना जाता है कि आम्रपाली से प्रेरित होकर बिंबसार ने अपने राजदरबार में राजनर्तकी के प्रथा की शुरुआत की थी। बिंबसार को आम्रपाली से एक पुत्र भी हुआ जो बाद में बौद्ध भिक्षु बना

विजया एकादशी 17 को, हर संकट पर विजय दिलाता है ये व्रत



हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। प्रत्येक एकादशी का अपना एक अलग महत्व है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी अपने अपने नाम के अनुसार ही विजय प्रदान करने वाली है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बार विजया एकादशी व्रत 17 फरवरी, शुक्रवार को है।

भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता रखती है। इस एकादशी के संबंध में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण मे अति सुन्दर वर्णन मिलता है । इस एकादशी के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन को बताया था। शास्त्रों के अनुसार जब भगवान राम माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे तभी मार्ग में सागर के आ जाने के कारण समस्या आ खड़ी हुई। तब भगवान राम सहित पूरी सेना ने विजया एकादशी का व्रत किया था। उसी व्रत के फलस्वरूप उन्होंने सागर पर पुल बनाया और रावण का वध किया।

भगवान श्रीराम ने भी किया था विजया एकादशी व्रत


17 फरवरी, शुक्रवार को विजया एकादशी का व्रत है। इस व्रत का वर्णन धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। उसके अनुसार-

त्रेतायुग में जब भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया तब उनकी पत्नी सीता को राक्षसराज रावण उठाकर ले गया। जब राम को पता चला कि सीता लंका में है तो वे वानरों की सेना लेकर लंका जाने लगे। तभी बीच में समुद्र आ जाने के कारण उन्हें रुकना पड़ा। जब उन्हें सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब उन्होंने लक्ष्मण से इस समस्या का हल पूछा तो लक्ष्मण ने बताया कि यहां से आधा योजन दूर परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का निवास हैं हमें उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए।

भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया। मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें। इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे। श्रीराम ने तब अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की। राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया।

हल्दी और शहद को इसके साथ मिलाकर खाएं तो डायबिटीज जल्दी ही ठीक हो जाएगी

आयुर्वेद में हल्दी को कई रोगों की एक रामबाण दवा माना गया है। हल्दी रोगियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। विशेषकर डायबिटीज के रोगियों के लिए हल्दी का उपयोग संजीवनी की तरह काम करता है। आयुर्वेद में यह माना गया है कि हल्दी से मधुमेह का रोग भी ठीक हो जाता है। हल्दी एक फायदेमंद औषधि है।

हल्दी किसी भी उम्र के व्यक्ति को दी जा सकती है चाहे वह बच्चा हो, जवान हो, बूढ़ा हो और यहां तक की गर्भवती महिला ही क्यों न हो। हल्दी में प्रोटीन,वसा खनिज पदार्थ एरेशा, फाइबर, मैंगनीज, पोटेशियम, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम,फास्फोरस, लोहा, ओमेगा, विटामिन ए, बी, सी के स्रोत तथा कैलोरी भी पाई जाती है। माना जाता है कि मधुमेह की रोकथाम के लिए हल्दी सबसे अच्छा इलाज है। रोज आधा चम्मच हल्दी लेकर डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है।

- मधुमेह के रोगियों को रोजाना ताजे आंवले के रस या सूखे आंवले के चूर्ण में हल्दी का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।- मधुमेह में आंवले के रस में हल्दी व शहद मिलाकर सेवन करने से भी मधुमेह रोगी को फायदा मिलता है।

- मधुमेह के रोगी 2 ग्राम हल्दी, 2 ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण, 500 मिलीग्राम कुटकी मिलाकर दिन में चार बार सादे पानीं से खाएं।

कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति तथा ये कितने प्रकार का होता है?



रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर दुनिया के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दु:खी हो गया। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदे गिर गई। इन्हीं आंसू की बूदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ। शिव भगवान हमेशा ही अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। उनकी लीला से ही उनके आंसू ठोस आकार लेकर स्थिर(जड़) हो गए। जनधारणा है कि यदि शिव-पार्वती को प्रसन्न करना हो तो रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

रुद्राक्ष की श्रेणी

रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है-

1- उत्तम श्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।

2- मध्यम श्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।

3- निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।

जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो, या पूरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों। ऐसा रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।

वहीं जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है।

यह बात भी थी महादेव के विष पीने की वजह!


शिव चरित्र और स्वरूप में छिपा ज्ञान उम्र के बंधन से परे हर इंसान के जीवन से जुड़े सारे भ्रम, संशय दूर करने वाला है। दरअसल, जीवन में अनेक ऐसे मौके आते हैं, जहां हमारे गुण, चरित्र, व्यक्तित्व की परख होती है। जिसमें सही और गलत के बीच फर्क समझ जीवन की सही दिशा और दशा तय करना हमारे ही हाथों में होता है। इसमें की गई चूक यश और अपयश का कारण भी बन सकती है।

इसी कड़ी में वक्त के मुताबिक मन, बुद्धि, बल, ज्ञान, वचन, समय व अनुभव का सही उपयोग कैसे यशस्वी और सफल बना सकता है? ऐसा ही सूत्र सिखाता है- शिव का नीलकंठ स्वरूप।

पौराणिक कथा है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल यानी जहर का असर देव-दानव सहित पूरा जगत सहन नहीं कर पाया। तब सभी ने भगवान शंकर को पुकारा। भगवान शंकर ने पूरे जगत की रक्षा और कल्याण के लिए उस जहर को पीना स्वीकार किया। विष पीकर शंकर नीलकंठ कहलाए।

यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर ने विष पान से हुई दाह की शांति के लिए समुद्र मंथन से ही निकले चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया।

बहरहाल, नीलकंठ नाम से जुड़ा यह प्रसंग मात्र नहीं है, बल्कि महादेव ने ऐसा कर वाणी, मन, बुद्धि संतुलन का एक खास सबक भी दिया। जिसके मुताबिक भगवान शंकर द्वारा विष पीकर कंठ में रखना और उससे हुई दाह की शांति के लिए चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करना इस बात की ओर संकेत है इंसान को अपनी वाणी व मन पर संयम रखना चाहिए।

खासतौर पर कठोर वचन से बचना चाहिए, जो कंठ से ही बाहर आते हैं और व्यावहारिक जीवन पर बुरा असर डालते हैं। किंतु कटु वचनों पर काबू तभी हो सकता है, जब व्यक्ति मन-मस्तिष्क पर भी काबू रखे। चंद्रमा मन और विवेक का प्रतीक है और उसे भगवान शंकर ने उसी स्थान पर रखा है, जहां विचार केन्द्र मस्तिष्क होता है।

महाकाल को भेजें अर्जियां, हर मनोकामना होगी पूरी


इस बार 20 फरवरी, सोमवार को महाशिवरात्रि का पर्व है। इस पर्व पर जीवन मंत्र आपके लिए एक यादगार सौगात लेकर आया है। अगर आप लंबे समय से उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन की योजना बना रहे हैं लेकिन किसी कारण से नहीं आ पा रहे हैं तो आप निराश न हों क्योंकि दैनिक भास्कर डॉट कॉम पर जीवन मंत्र के माध्यम से अब आप अपनी मन्नतें और अर्जियां आसानी से भगवान महाकालेश्वर तक भेज सकते हैं। महाशिवरात्रि यानी 20 फरवरी को आपकी ये अर्जियां जीवन मंत्र टीम भगवान महाकालेश्वर को अर्पित करेगी।

ऐसी मान्यता है कि सृष्टि में पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही सबसे बड़े ज्योतिर्लिंग हैं। भगवान भोलेनाथ से जो मांगा जाता है वो मिल जाता है। देश-दुनिया से श्रद्धालु आते हैं। जो मांगते हैं, मिल जाता है। जीवन मंत्र टीम आपकी अर्जियां भगवान तक पहुंचाएगा। आप भगवान महाकाल से जो भी मांगना या कहना चाहते हैं उसे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में लिख दें। महाशिवरात्रि पर हम आपकी अर्जियां भगवान को पूरी पूजन विधि के साथ अर्पित करेंगे।

इसकी सूचना भी आप तक भेजी जाएगी कि हमने आपकी अर्जियां भगवान तक भेज दी हैं। यह एक सुनहरा मौका है भगवान तक अपनी बात, अपनी इच्छा, अपनी मन्नत पहुंचाने का। आप इस खबर के नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी अर्जियां 20 फरवरी को शाम 5 बजे तक दे सकते हैं। आपकी अर्जियों का प्रिंट करके भगवान को अर्पित किया जाएगा

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