तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 फ़रवरी 2012
जंगल में वायलिन वादन और एक बहरा तेंदुआ
इस वजह से उसमें अहंकार आ गया था। उसे लगता था कि इस पृथ्वी पर उससे बढ़कर कोई वायलिन नहीं बजा सकता। एक दिन इसी अहंकार की झोंक में उसके दिमाग में एक विचित्र विचार आया कि अपने संगीत का प्रयोग जंगली जानवरों पर किया जाए। उसे सभी ने समझाया, किंतु वह नहीं माना। उसने अपनी बात को आजमाने के लिए घने जंगल में पहुंचकर वायलिन बजानी शुरू कर दी। कुछ ही देर में एक भयानक शेर, एक खूंखार भेड़िया और एक विशालकाय भालू उसके पास आकर बैठ गए और संगीत सुनने में मस्त हो गए।
अचानक कहीं से एक तेंदुआ आया और वायलिन वादक पर आक्रमण कर उसे मार डाला। यह देखकर शेर ने तेंदुए को डांटते हुए कहा - ‘तुमने इसे क्यों मार डाला? इतना अच्छा संगीत अब हमें कभी सुनने को नहीं मिलेगा।’ तेंदुआ शेर की ओर मुंह करके बोला - महाराज! क्या आपने मुझसे कुछ कहा?’ शेर समझ गया कि यह तेंदुआ ऊंचा सुनता है और वायलिन वादक का संगीत सुने बिना उसे एक शिकार के बतौर इसने मार दिया। कथा का निहितार्थ यह है कि नैसर्गिक शत्रुओं पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि किसी भी प्राणी की मूल प्रकृति कभी नहीं बदलती।
मासूम दिखाती है हैरतअंगेज करतब, उड़ जाते हैं लोगों के होश!
दिलचस्प है कि यह सब बच्चे का शौक नहीं बल्कि गरीबी के कारण अपने और परिवारों का पेट पालने के लिए मजबूरन ऐसा करते हैं। बंजारा जैसी घूम-घूम कर जीवनयापन करने वाले उमेश कुमार मूलत: छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उनके साथ उनकी पत्नी तथा दो बच्चों दीपक और मनीषा के साथ अपनी जान जोखिम डाल कर लोगों को मनोरंजन करते है। इससे होने वाली आमदनी से ही इनके आय का जरिया है।
कैसे करते हैं करतब
ढाई वर्षीय दीपक एक छोटे से लोहे की रिंग में प्रवेश कर अपने पूरे शरीर को रिंग को पार कर लेता है। फिर लोहे का एक जलता हुआ एक बड़ा रिंग के बीच पार होता है। यह दृश्य देख उपस्थित भीड़ तालियों से उसका हौसला अफजाई करते हैं। उसी प्रकार छह बर्षीय मनीषा भी करतब दिखाने में महारत हासिल कर ली है।
वह दो बासों के बीच पलती डोर पर बगैर किसी सहारे सरफट दौड़ लगा लेती है। संतुलन बनाने के लिए हाथों में एक डंडा जरुर रखती है। मनीषा को ना गिरने का डर और ना ही मन किसी प्रकार का खौफ। भीड़ यह देखकर हैरत में पड़ जाते हैं। मनीषा और दीपक के कई कारनामें को देख भीड़ द्वारा दिये गये रुपया-दो रुपया से ही परिवार चलता है।
हो जाती है कमाई
उमेश बताते हैं कि खुले मैदान, सड़क, मेले, ग्रामीण हाट-बजारों आदि जगहों पर करीब घंटे भर तक करबत दिखाने पर सौ से ढेड़ सौ रुपया तक की कमाई हो जाती है। दिन भर में चार-पांच बार कर पाते हैं। उमेश की मानें तो रोजी-रोटी के चक्कर में कई सालों तक अपने घर भी नहीं जा पाते। जहां शाम हुई वहीं बसेरा डाल लेते हैं।
देख लो देश में कहने को तो कानून है के य्हना बच्चों को पढने की उम्र में कोई काम नहीं करवाना चाहिए साथ ही जोखिम भरे काम करवाना तो अपराध है और इस अपराध को देश की पुलिस अदालतें और मंत्री वगेरा सब देख कर खामोश हैं तो फिर पत्रकारों को तो क्या कहिये ...अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
इस अद्भुत किले को अंग्रेजों ने जैसे ही देखा, मुंह से निकला 'वॉव'!
ग्वालियर। ओ माय गॉड.. सो नाइस क्लाइमेट.., वॉव! ब्यूटीफुल फोर्ट.. कुछ इस प्रकार की चर्चाएं इंग्लैंड से आए एम्पलफोर्थ कॉलेज के अठारह सदस्यीय दल में आपस में चल रही थीं। इंग्लैंड का यह दल सिंधिया स्कूल फोर्ट में क्रिकेट मैच खेलने के लिए तीन दिवसीय दौरे के लिए भारत आया हुआ है। दल में शामिल सदस्यों ने शुक्रवार को सिंधिया स्कूल का भ्रमण किया, साथ ही यहां उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। दल में कक्षा ग्यारहवीं और बारहवीं के 14 विद्यार्थियों के साथ स्कूल टीचर और अभिभावक मौजूद थे।
तीन दिवसीय दौरे के लिए इंग्लैंड का यह दल गुरुवार को शहर में पहुंचा। इस दौरान सभी विदेशी मेहमानों को सिंधिया स्कूल में ही ठहरने की व्यवस्था की गई है। पहले दिन सिंधिया स्कूल और इंग्लैंड की टीम ने स्कूल परिसर के क्रिकेट मैदान में 35 ओवर का एक मैत्रीपूर्ण क्रिकेट मैच खेला। इस मैच में इंग्लैंड की टीम के खिलाड़ियों से स्कूल के प्राचार्य शमीक घोष और स्पोर्ट्स डीन जीएस बक्षी ने परिचय प्राप्त किया। वहीं विद्यार्थियों के साथ आए अभिभावकों ने फोर्ट स्थित मानसिंह पैलेस, सास बहू मंदिर, गूजरी महल और कर्ण महल को देखा।
ये हैं इंग्लैंड दल में शामिल दल में ग्रोफ थ्रोमन, फोरगस ब्लैक , डेबिड थापम, जोशुआ रेड, मैथ्यू विलिंस, टॉबी, जोडिन टॉच, बेन नॉक, एलिस्टर बिलल, जैकब, जॉय और एडवर्ड आदि शामिल हैं।
19 को रवि प्रदोष, जानें व्रत की कथा व महत्व
19 फरवरी को रवि प्रदोष व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से लंबी आयु और बेहतर स्वास्थ्य मिलता है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
एक गांव में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्मनिष्ठ पत्नी प्रदोष व्रत करती थी। उनका एक पुत्र था। एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है। बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दु:खी हैं। उनके पास गुप्त धन कहां से आया। चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया। बालक अपनी राह हो लिया।
चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया। तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले। उन्होंने ब्राह्मण बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया। राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारागार में डलवा दिया। उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी। उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा।
सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया। बालक ने राजा को सच्चाई बताई। राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया। उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है। तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं। इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।
पढ़ें यह दिलचस्प किस्सा! शिव का एक अनोखा रूप जानकर रह जाएंगे दंग
हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवताओं में शिव साकार और निराकार दोनों ही रूप में पूजनीय है। शिव को अनादि, अनंत भी माना गया है। पंचदेवों के रूप में शिव जहां कल्याणकारी देवता माने गए हैं तो वहीं त्रिदेव शक्तियों में वह दुष्ट वृत्तियों के विनाशक के रूप में भी पूजनीय है।
खासतौर पर शिव के निराकार स्वरूप शिवलिंग पूजा समस्त सांसारिक कामनाओं को पूरा करने और दु:ख-संताप का अंत करने वाली बताई गई है। यही नहीं शिवलिंग के दर्शन मात्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला बताया गया है।
शिव पुराण में शिवलिंग प्राकट्य के प्रसंग भी निराकार स्वरूप शिवलिंग की शक्तियों और उपासना का महत्व ही उजागर नहीं करते, बल्कि घट-घट में बसे शिव स्वरूप की अपार महिमा बताते हैं। इसी कारण शिव ही नहीं उनके अनेक अवतार भी धर्म परंपराओं में संकटमोचक माने गए हैं। जिनमें हनुमान, भैरव लोक प्रसिद्ध है।
शिवलिंग की ऐसी ही महिमा बताते हुए एक रोचक प्रसंग शिव पुराण में आया है। जिसमें शिव के एक अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का रहस्य भी है। जानते हैं यह दिलचस्प प्रसंग -
एक बार दो असुरों विदल और उत्पल ने तप कर ब्रह्मदेव से यह वर पाया कि उनकी किसी पुरुष के हाथों मृत्यु न होगी। इसके बाद दोनों असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर बुरी तरह से हरा दिया। पराजित देवगणों ने ब्रह्मदेव के सामने अपना दु:ख प्रगट किया। तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं को यह बताया कि शिवलीला से दोनों असुरो का देवी के हाथों अंत होगा।
इसी शिवलीला के चलते नारद ने दोनों दैत्यों के आगे पार्वती की सुंदरता का बखान किया। यह सुनकर दोनों उस स्थान पर पहुंचे जहां माता पार्वती गेंद से खेल रही थी। उनके रूप से मोहित दोनों दुष्ट दैत्य वेश बदलकर देवी के करीब पहुंचे। किंतु महादेव ने उनकी आंखों को देखकर यह जान लिया कि वह दैत्य हैं। शिव ने देवी की ओर संकेत किया।
देवी शिव का इशारा समझ गई और उन्होनें बिना देरी किए अपनी गेंद से दोनों राक्षसों पर घातक प्रहार किया। जिससे चोट खाकर विदल और उत्पल नामक दैत्य धराशायी होकर मृत्यु को प्राप्त हुए और उस गेंद ने शिवलिंग रूप ले लिया।
शिवपुराण के मुताबिक यही शिवलिंग गेंद यानी कन्दुक के नाम से कन्दुकेश्वर लिंग के रूप में काशी में स्थित है, जो सभी बुरी वृत्तियों का नाशक व समस्त सांसारिक सुख और मोक्ष देने वाला माना गया है।