फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी है। उसके अनुसार-
भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जक हैं और विष्णु पालक। दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? उनका यह विवाद जब बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों देवता निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं। मैं ही आप दोनों को उत्पन्न किया है।
तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। शिवलिंग का आकार दीपक की लौ की तरह लंबाकार है इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 फ़रवरी 2012
ज्योतिर्लिंग के प्रकट होने का पर्व है शिवरात्रि
1000 कारीगरों ने 11 साल में बनाया 'प्रेम मंदिर'!
यह भव्य युगल विहारालय-प्रेम मंदिर 11 साल के श्रम के बाद बनकर तैयार हुआ। इसे सफेद इटालियन संगमरमर से तराशा गया है। चटिकारा मार्ग पर स्थित श्रीवृंदावन धाम का यह अद्वितीय युगलावास प्राचीन भारतीय शिल्पकला की झलक भी दिखाता है।
वृंदावन में 54 एकड़ में निर्मित यह प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लम्बा और 115 फुट चौड़ा है। इसमें खूबसूरत उद्यानों के बीच फव्वारे, श्रीराधा कृष्ण की मनोहर झझंकियां, श्रीगोवर्धन धारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीलाएं सुसज्जित की गई हैं।
प्रेम मंदिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। दिव्य प्रेम का संदेश देने वाले इस मंदिर के द्वार सभी दिशाओं में खुलते हैं। मुख्य प्रवेश द्वारों पर अष्ट मयूरों के नक्काशीदार तोरण बनाए गए हैं। पूरे मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं को शिल्पकारों ने मूर्त रूप दिया गया है।
पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तम्भ हैं, जिसमें किंकिरी व मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के अंदर व बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हुई नक्काशी व पच्चीकारी सभी को मोहित करती है। यहां संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर 'राधा गोविंद गीत' के सरल व सारगर्भित दोहे प्रस्तुत किए गए हैं, जो भक्तियोग से भगवद् प्राप्ति के सरल व वेदसम्मत मार्ग प्रतिपादित करते हैं।
इस मंदिर का निर्माण कृपालु जी महाराज ने करवाया है। 14 जनवरी, 2001 को उन्होंने लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में प्रेम मंदिर का शिलान्यास किया था। उसी दिन से राजस्थान और उत्तर प्रदेश के करीब एक हजार शिल्पकार अपने हजारों श्रमिकों के साथ प्रेम मंदिर को गढ़ने में जुटे थे और 11 साल बाद यह साकार होकर सामने आया।
कृपालु जी महाराज का कहना है कि जब तक विश्व में प्रेम की सत्ता सर्वोच्च स्थान हासिल नहीं करेगी, विश्व का आध्यात्मिक कल्याण सम्भव नहीं है।
ये है महाशिवरात्रि की कथा, ऐसे प्रसन्न हुए थे भोलेनाथ
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत रखा जाता है तथा विशेष पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
किसी समय वाराणसी के वन में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह वन्यप्राणियों का शिकार कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। यह सोचकर वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था।
थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पुछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ेने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिव की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।
इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर वह रातभर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई और शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया, जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल भी भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने सभी हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।
विश्व में एकमात्र ऐसा शिवलिंग, जिसकी विशेषता है एकदम निराली
ऐसे में भगवान शंकर के विशिष्ट मंदिरों का महत्व और बढ़ जाता है। इसी में एक है - कुंभेश्वरनाथ मंदिर। यह मंदिर मध्यप्रदेश के जबलपुर के रेवा तट पर स्थित है। जबलपुर के रेवा तट पर लम्हेरी ग्राम पंचायत में आने वाले एक ऐसे शिव मंदिर 'कुंभेश्वरनाथ' के रहस्य से आपको परिचित करा रहे है, जो समूचे विश्व में एकमात्र है। ऐसा शास्त्रों और पुराणों का भी मत है। एक जिलहरी में दो शिवलिंग होना अपने आप में बहुत अनोखा है। कुंभेश्वरनाथ में राम, लक्ष्मण से पहले हनुमान ने भगवान शिव की आराधना कर यहां पर प्रकृति का संवर्धन व संरक्षण किया था।
नर्मदा-पुराण व शिव-पुराण के मतानुसार यह शिवलिंग स्वयं नर्मदा के अंदर से प्रकट हुआ था। नर्मदा पुराण के अनुसार कुंभेश्वरनाथ में पहले हनुमान ने तप किया था। मार्कन्डेय ऋषि ने पांडवों को कुंभेश्वरनाथ की कथा सुनाई थी। उन्होंने युधिष्ठिर को बताया था कि सीता माता के धरती में समा जाने के बाद राम अयोध्या में राज कर रहे थे। तब हनुमान को शिव दर्शन की लालसा जागृत हुई तो वे श्रीराम से कहकर कैलाश की ओर चल दिए। कैलाश पहुंचने पर नंदीश्वर ने हनुमान को शिव दर्शन से रोक दिया, तब हनुमान ने पूछा कि - मेरा पाप क्या है, जो मैं शिव के दर्शन नहीं कर सकता। तब नंदीश्वर ने कहा कि तुमने रावण कुल का संहार किया है और रावण की अशोक वाटिका को भी उजाड़ा था। इससे तुम्हें प्रकृति को नष्ट करने का पाप लगा है।
रावण कुल ऋषि पुलत्स्य का कुल है और अत: तुम्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा है। अत: नर्मदा के कुंभेश्वर तीर्थ पर जाकर तप एवं प्रकृति का संवर्धन और संरक्षण कर अपने आपको पाप मुक्त करना होगा। तब हनुमान ने कुंभेश्वर तीर्थ में तप किया। जब ये सारी घटना उन्होंने प्रभु श्रीराम को बताई, तब उन्होंने कहा कि हम भी पाप के भागी है। अब हम भी कुंभेश्वर तीर्थ पर तप करेंगे।
पूरे विश्व में एकमात्र शिवलिंग : वैसे तो सारे संसार में अनगिनत प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शिवलिंग स्थापित हैं, लेकिन कुंभेश्वरनाथ लम्हेटी तट रेवा खंड का एक ऐसा स्थान है, जो विश्व में एकमात्र है। ऐसा शास्त्रों का मत है। एक जिलहरी यानी जलाधारी में शिवलिंग का होना अपने आपमें अनोखा है। ये शिवलिंग रामेश्वरम्- लक्ष्मणेश्वरम् के नाम से जाना जाता है।
57 साल बाद महाशिवरात्रि पर महासंयोग
रायपुर.माह फाल्गुन, पक्ष कृष्ण, तिथि चतुर्दशी, नक्षत्र श्रवण और योग अमृत उस पर दिन सोमवार। महाशिवरात्रि पर ऐसा संयोग बना है 1955 के बाद पहली बार। वैसे 10 साल बाद महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रवण नक्षत्र और अमृत सिद्धि योग बना है।
तीन साल बाद सोमवार को महाशिवरात्रि पड़ रही है। इन सभी संयोगों की वजह से इस बार की महाशिवरात्रि का महत्व बढ़ गया है। पं. प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि 20 फरवरी को सुबह 3.31 मिनट से चतुर्दशी तिथि शुरू हो जाएगी।
यह 21 फरवरी की सुबह 3.05 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या तिथि शुरू होगी। नियमानुसार रात में पड़ने वाली चतुर्दशी और अमावस्या को महाशिवरात्रि मनाने का विधान है। इसका उपवास त्रयोदशी से शुरू होता है। महाशिवरात्रि में इस बार दिन सोमवार, श्रवण नक्षत्र, अमृत और सिद्धि योग बन रहा है।
इसकी वजह से महाशिवरात्रि दुर्लभ संयोग लेकर आ रही है। उन्होंने कहा कि साधक एक दिन पहले एक समय का भोजन करे। दूसरे दिन सुबह शिव मंदिर में उत्तर दिशा की ओर मुंह कर भगवान शिव के पूजन का संकल्प ले। रात में भगवान शिव का उनके परिवार सहित पूजन करने से सभी कष्टों का निवारण होगा। सकल मनोरथ सिद्ध होंगे और भगवान शिव की कृपा बनी रहेगी।
इसलिए मनाई जाती है महाशिवरात्रि
मां महामाया मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला ने बताया कि शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। दोनों ने इस दिन गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया था। इसी अवसर पर यह पर्व मनाया जाता है।
राहू और कालसर्प से निवारण
संस्कृत महाविद्यालय के वेद विभाग के अध्यक्ष पं. रामकिशोर मिश्रा ने बताया कि कालसर्प योग, राहू काल से पीड़ित, कैरियर में बाधा और संतानहीन लोगों को महाशिवरात्रि के दिन कांसे के पात्र में तिल भरकर उसमें चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा रखकर दान करना चाहिए। इससे सभी तरह के कष्टों का निवारण होता है।
पूजन के मुहूर्त
महाशिवरात्रि के दौरान किसी भी समय भगवान का अभिषेक किया जा सकता है। किंतु गोधुली बेला यानी शाम 6.15 बजे, रात 10, मध्यरात्रि में 12.30 से एक बजे तक और दूसरे दिन सुबह 4 बजे चार प्रहर में पूजा का मुहूर्त है।
क्या करें
शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए।
ओम नम: शिवाय का जाप करते हुए रात्रि जागरण करें।
आंक के फूल, धतूरे और भांग, बेलपत्र, केसर युक्त चंदन आदि से शिवलिंग की पूजा कर मेवे का भोग लगाएं।
4 प्रहर की पूजा करनी चाहिए। मध्यरात्रि का विशेष महत्व।
उज्जैन में शिवरात्रि महापर्व पर भगवान महाकाल के श्रद्धालुओं को 44 घंटे तक दिव्य दर्शन देंगे। रविवार-सोमवार की मध्य रात 2.30 बजे महाकाल मंदिर गर्भगृह के पट खुले। अब 21 फरवरी की रात 11 बजे तक बाबा महाकाल लाखों श्रद्धालुओं को निरंतर दर्शन देंगे।
पुजारियों ने परंपरा अनुसार प्रथम घंटी बजाकर भगवान को जगाया। हरिओम जल, पंचामृत अभिषेक, पूजन के पश्चात अल सुबह 3 बजे भस्मारती शुरू हुई। सोमवार सुबह 6 बजे से आम लोगों के लिए दर्शन शुरू करा दिया गया है। ज्योतिषाचार्य पं. श्यामनारायण व्यास ने कहा कि सालों बाद शिवरात्रि श्रवण नक्षत्र में आई है। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग है, जो पूजन व खरीदी के लिए शुभ है।
महाशिवरात्रि आज: भगवान शिव की पूजन विधि तथा शुभ मुहूर्त
महाशिवरात्रि(इस बार 20 फरवरी, सोमवार) के दिन भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल मिलता है। जो व्यक्ति इस दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत रखता है उसे अक्षय पुण्य मिलता है। धर्म शास्त्रों में महाशिवरात्रि व्रत के संबंध में विस्तृत उल्लेख है। उसके अनुसार महाशिवरात्रि का व्रत इस प्रकार करें-
शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन व्रती(व्रत करने वाला) को सुबह जल्दी उठकर स्नान संध्या करके मस्तक पर भस्म का त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर श्वि मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।
यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक पढ़ें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
रात्रिपूजा
व्रती दिनभर शिवमंत्र (ऊँ नम: शिवाय) का जप करे तथा पूरा दिन निराहार रहे। (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।) धर्मग्रंथों में रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान है। सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घर पर ही (यदि नर्मदेश्वर या अन्य कोई उत्तम शिवलिंग हो) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये
व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिव को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर(नम: शिवाय) मंत्र का जप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम और ईशान, इन आठ नामों से पुष्प अर्पित कर भगवान की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।
अगले दिन सुबह पुन: स्नानकर भगवान शंकर की पूजा करके पश्चात व्रत खोलना चाहिए।
शुभ मुहूर्त
अमृत- सुबह 06:20 से 07:30 बजे तक
शुभ- सुबह 09:20 से 10:50 बजे तक
चर- दोपहर 01:50 से 03:20 बजे तक
लाभ- शाम 03:20 से 04:50 बजे तक
अमृत- सायं 04:50 से 06:20 बजे तक
चल- सायं 06:20 से 07:50 बजे तक(सिंह लग्न)