आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

24 फ़रवरी 2012

खाने की कुछ चीजें: ये आपको महफूज रखेंगी दिल की बीमारियों से



कहते हैं संतुलित आहार लेने से शरीर स्वस्थ रहता है और कई तरह की बीमारियां पास नहीं आती हैं। हृदयरोग और हृदयाघात भी ऐसी ही बीमारी है जिससे अपने रोजमर्रा के आहार में कुछ चीजें शामिल करके बचा जा सकता है। हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी ही घरेलू चीजों के विषय में जिनका सही तरीके से नियमित प्रयोग आपको दिल से जुड़े हर खतरे से महफूज रखता है-
1. प्याज- इसका प्रयोग सलाद के रूप में कर सकते हैं। इसके प्रयोग से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है। कमजोर हृदय होने पर जिनको घबराहट होती है या हृदय की धड़कन बढ़ जाती है उनके लिए प्याज बहुत ही लाभदायक है।
2. टमाटर- इसमें विटामिन सी, बीटाकेरोटीन, लाइकोपीन, विटामिन ए व पोटेशियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है जिससे दिल की बीमारी का खतरा कम हो जाता है।
4. लहसुन- भोजन में इसका प्रयोग करें। खाली पेट सुबह के समय दो कलियां पानी के साथ भी निगलने से फायदा मिलता है।
4. गाजर- बढ़ी हुई धड़कन को कम करने के लिए गाजर बहुत ही लाभदायक है। गाजर का रस पीएं, सब्जी खाएं व सलाद के रूप में प्रयोग करें।

सिग्नेचर करते समय ध्यान रखें ये बातें, क्योंकि...


आज अधिकांश लोगों की समस्या होती है कि उनके पास पैसा बचता नहीं। दिन रात मेहनत करके धन तो खूब कमाते हैं परंतु बचत नहीं हो पाती और जब पैसों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तब कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र में हस्ताक्षर के संबंध में कुछ बातें ध्यान रखने योग्य बताई हैं। इन बातों को अपनाने से कुछ ही समय में धन संबंधी परेशानियों को दूर किया जा सकता है।

आप बहुत धन कमाते है और फिर भी बचत नहीं होती है तो यह उपाय करें आप अपने हस्ताक्षर के नीचे पूरी लाईन खीचें तथा उसके नीचे दो बिंदू बना दें, इन बिंदुओं का धन बढऩे के साथ बढ़ाते रहें। याद रखें अधिकतम छ: बिंदू लगाने जा सकते हैं। माता-पिता से नित्य पैर छूकर आशीर्वाद लें। सभी का सम्मान करें।

हस्ताक्षर आपके व्यक्तित्व को प्रदर्शित करते हैं। इसी वजह से इस संबंध में पूरी सावधानी रखनी चाहिए। धन बढ़ाने के लिए ऊपर बताई गई बातों को अपनाएं। कुछ ही समय में आप सकारात्मक परिणाम अवश्य प्राप्त करेंगे।

ऐसे जानें लड़कियों की आंखों में छुपे केरेक्टर और किस्मत के राज

| Email Print Comment

कुछ लड़कियां शादी के बाद पति की किस्मत चमका देती है। ये उनका गॉड गिफ्ट होता है। ऐसी लड़कियों की किस्मत हमेशा अच्छी होती है। लड़कियों की आंखें सिर्फ उनकी किस्मत ही नहीं उनका करेक्टर भी बयां कर देती है। न उसकी आंखें झूठ नहीं बोलती हैं। कहते हैं आंखे किसी व्यक्ति के मनोभावों का आइना होता है। आंखों के भावों के अलावा आंखों की बनावट से भी स्वभाव को जाना जा सकता हैं। ज्योतिष के अनुसार किसी आंखों के भाव ही नहीं बल्कि उसके आकार से भी स्वभाव का पता लगाया जा सकता है।
- ज्योतिष के अनुसार जिस लड़की की आंखें छोटी होती हैं वे शुभ लक्षणों वाली नहीं मानी जाती हैं।
- धंसी हुई आंखों वाली लड़कियां चंचल स्वभाव की होती हैं।
- गोल व बिल्ली जैसी आंखों वाली लड़कियां कुटील स्वभाव की होती हैं।
- जो लड़कियां आंखें फाड़कर देखती हैं वे एडवांस प्लानिंग के साथ काम करती हैं।
- छोटी-छोटी पलकों वाली लड़कियां भाग्यशाली होती हैं।
- जिस लड़की की आंखें हिरनी के समान बड़ी होती हैं उन लड़कियों का पगफेरा अच्छा माना जाता हैं।
- बड़ी और काली आंखों वाली लड़कियां बहुत अच्छी मानी जाती हैं और अच्छी जीवनसंगीनी होती हैं।

चार चम्मच सरसों के तेल का ये उपचार हर चोट के घाव को भर देगा



आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित ग्रंथों में घावों को जल्दी भरने के लिए अनेक प्रयोग बताए गए हैं। लेकिन फिर भी हर तरह के घाव को भरने के लिए घरेलू हल्दी को चमत्कारी औषधि का दर्जा दिया गया है। जिस बात को आयुर्वेद में हजारों साल पहले कह दिया था, उसकी सच्चाई और प्रामाणिकता पर आज विज्ञान जगत भी मुहर लगा रहा है। कैंसर की रोकथाम, दूषित खून की सफाई, डिमेंशिया से छुटकारा, गठिया, हानिकारक बेक्टीरिया और वायरस का सफाया, रोगों से लडऩे की क्षमता में इजाफा ....जैसे कई नायाब गुणों के साथ ही हल्दी में एक अन्य विशेष खूबी भी पाई जाती है। यदि कभी किसी को कोई चोट-मोच या जर्क लग जाए तथा दर्द, जकडऩ और सूजन की तकलीफ हो रही हो तो ऐसे में हल्दी का यह प्रयोग अवश्य करना चाहिये।

प्रयोग: चार चम्मच सरसों के तेल में 1चम्मच पिसी हल्दी लेकर धीमी आंच पर पका लें, इसमें 4-5 कलियां लहसुन की भी डाल दी जाएं तो लाभ और भी जल्दी होता है। थोड़ा ठंडा या गुनगना रहने पर किसी साफ कॉटन के साथ इस तेल में पकी हुई हल्दी को चोट के स्थान पर लगाकर बांध लें। कुछ ही घंटों में चोट और सूजन में काफी लाभ होगा।

फिटकरी- घाव वाले स्थान पर फिटकरी को भूनकर लगाने से भी घाव तेजी से भरने लगता है।

दूध के साथ प्रयोग: दो-तीन दिन लगातार दूध मे 1-चम्मच हल्दी पाउडर डालकर पीने से भी चोट-मोच, दर्द और सूजन में तत्काल राहत मिलती है।

कालीमिर्च का फार्मूला: इससे डेंड्रफ साफ हो जाएगा



बालों में ड्रेंड्रफ एक आम समस्या है। रूसी के कारण अक्सर बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं। डेंड्रफ को दूर करने के लिए वर्तमान में बाजार में कई तरह के एंटीडेंड्रफ शैंपू मौजूद हैं। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि ये एंटी डेंड्रफ शैंपू डेंड्रफ को पूरी तरह से नहीं मिटा पाते हैं। इसीलिए जिद्दी ड्रेंड्रफ को जड़ से साफ करने के लिए घरेलू नुस्खे आजमाना चाहिए। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ घरेलु नुस्खों के बारे में.....

- पिसी हुई मेहंदी एक कप, थोड़ा सा कॉफी पाउडर, 1 चम्मचए दही, 1 चम्मचए नीबू का रस, 1 चम्मचए पिसा कत्था, 1 चम्मच आंवला चूर्ण, 1 चम्मच सूखे पुदीने का चूर्ण। फिर इन सभी को मिलाकर करीब दो घंटे रखें। बालों पर घंटा भर लगाकर धो लें। इसे बाल मुलायम व काले होंगे।

- काली मिट्टी बालों के बहुत अच्छी मानी जाती है, काली मिट्टी को दो घंटे पहले भिगोकर इससे सिर धोएं, इससे बाल मुलायम होते हैं।

- नारियल के तेल में नीबू का रस मिलाकर बालों की जड़ों में लगाने से बालों का असमय पकना और झडऩा रुक जाता है।

- बालों में चमक प्रदान करने के लिए एक अंडे को खूब अच्छी तरह फेंट लें, इसमें एक चम्मच नारियल का तेल, एक चम्मच अरंडी का तेल, एक चम्मच ग्लिसरीन, एक चम्मच सिरका तथा थोड़ा सा शहद मिलाकर बालों को अच्छी तरह लगा लें, दो घंटे बाद कुनकुने पानी से धो लें। बाल इतने चमदार हो जाएंगे जितने किसी भी कंडीशनर से नहीं हो सकते।

- दही में बेसन घोलकर बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे बाद सिर धो लें। इससे बालों की चमक लौट आएगी और बालों की रूसी की समस्या से भी आपको निजात मिलेगी।

- रूसी की शिकायत वाले बालों के लिए दही में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सिर धोए। यह हफ्ते में दो बार अवश्य करें। इससे जहाँ बालों की रूसी खत्म होगी, वहीं बाल मुलायम, काले, लंबे व घने होंगे जो आपकी सुंदरता में चार चाँद लगाएँगे।

मनचलों पर आफत, कॉलेज के सामने नाक रगड़ कहा-सॉरी



पानीपत. खरखौदा.शुक्रवार की सुबह दो मनचलों की मोहल्ले वासियों ने खूब धुनाई की और कालेज के सामने नाक रगड़कर माफी मंगवाई गई। सामूहिक तौर पर माफी मांगने के बाद दोनों मनचलों को छोड़ दिया गया।

खरखौदा कन्या महाविद्यालय जाने वाले मुख्य रास्ते में कई बार मोहल्ले वासियों ने लड़कियों को तंग करने वाले मनचलों की शिकायत पुलिस को दी। पुलिस ने कई मनचलों की छितर परेड कराई और एक पुलिस टीम स्पेशल गठित कर दी।

गुरुवार की शाम को कालेज के सामने मुख्य रास्ते से गुजरते समय दो मनचलों ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ की और फब्तियां कसी। लड़की के विरोध के बाद मोहल्ले वासियों ने बाइक सवार दोनों युवकों को पकड़ने का प्रयास किया। उधर सिविल ड्रेस में पुलिस कर्मियों ने युवकों को दबोचने का प्रयास किया तो वे मौके पर ही बाइक छोड़कर फरार हो गए।

सुबह करीब नौ बजे दोनों जब अपनी बाइक लेने के लिए मोहल्ले में आए तो मोहल्ले वासियों ने पकड़ लिया और पिटाई की। कालेज में आने-जाने वाली छात्राओं से माफी भी मांगी। मोहल्ले वासियों ने युवकों को पुलिस को सौंपने का भी मन बनाया। लेकिन बाद में मोहल्ले वासियों ने कालेज के चौक पर पहुंचकर नाक रगड़वाने के बाद मनचलों को छोड़ दिया। इस मौके पर काफी भीड़ भी जमा हो गई।

जाति पर टिप्पणी करने की हिमाकत, अब पहनाएंगे जूतों की माला!



अजमेर.भाजपा युवा मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी से अनिल नरवाल को निलंबित किए जाने की कार्रवाई के विरोध में वाल्मीकि छात्र संगठन ने प्रदेश अध्यक्ष ऋषि बंसल को जूते की माला पहनाने की घोषणा की है।

समाज के युवाओं ने शुक्रवार को माला बनाने के लिए अजमेर क्लब वाल्मीकि बस्ती से पुराने जूते-चप्पल एकत्र करने की कार्रवाई शुरू की।

वाल्मीकि छात्र संगठन के अध्यक्ष अनिल गोयर ने बताया कि प्रदेश अध्यक्ष बंसल ने जातिसूचक शब्दों से अपमानित कर युवा नेता अनिल गोयर को कार्यकारिणी से हटाया है, इससे समाज के युवाओं में बंसल के खिलाफ रोष व्याप्त है। निर्णय किया गया है कि बंसल के अजमेर आने पर उन्हें 10 मीटर लंबी जूते की माला पहनाई जाएगी।

एक शख्स की मौत लेकिन अंतिम संस्कार दो बार..जानिए आखिर क्यों...


अरविंद गोंडलिया, सूरत। शहर में बुधवार को एक ऐसा वाक्या हुआ, जो पूरे शहर में चर्चा का विषय बना रहा। मामला था इस्लाम धर्म अपनाने वाले एक हिंदु युवक की मौत का।

जिसके अंतिम संस्कार के लिए दोनों परिवार आमने-सामने आ गए। मुस्लिम परिवार युवक को दफनाना चाहता था, जबकि हिंदू परिवार हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार उसका दाह-संस्कार करना चाहता था।

दरअसल हिंदु परिवार में जन्मे भरतभाई ने एक मुस्लिम लड़की से प्रेम विवाह करने के लिए धर्म परिवर्तन कर लिया था। धर्म परिवर्तन के बाद भरत का नाम बदलकर अब शिराज था। मृत्यु के बाद यही विवाद की वजह बन गया।

बीते बुधवार को शिराज की अचानक मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु की खबर पाते ही दोनों परिवार अस्पताल पहुंच गए और यहीं से उसके अंतिम संस्कार को लेकर हंगामा शुरू हो गया। शिराज के ससुराल वाले उसे दफनाना चाहते थे, जबकि उसके माता-पिता उसका दाह संस्कार करना चाहते थे।

आपसी सुलह न हो पाने के कारण मामला पुलिस तक पहुंच गया। पुलिस ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों परिवारों को शांतिपूर्वक समझाया और एक अलग ही रास्ता खोज निकाला।

पुलिस का सुझाव था कि पहले हिंदू माता-पिता अपने बेटे के अंतिम संस्कार की सारी क्रियाएं कर लें और उसके बाद शिराज की मृतदेह उसके मुस्लिम बेटे को सौंप दिया जाए। इस सुझाव पर दोनों परिवार राजी हो गया और इस तरह हिंदू मा-बाप ने शिराज को गंगाजल दिया तो शिराज के बेटे ने उसे मिट्टी दी।

श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश


चौपाई :
* सीय स्वयंबरू देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
भावार्थ:-चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बड़ाई का पात्र होगा (धनुष तोड़ने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा)॥1॥
* हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी॥
पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥2॥
भावार्थ:-इस श्रेष्ठ वाणी को सुनकर सब मुनि प्रसन्न हुए। सभी ने सुख मानकर आशीर्वाद दिया। फिर मुनियों के समूह सहित कृपालु श्री रामचन्द्रजी धनुष यज्ञशाला देखने चले॥2॥
* रंगभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥3॥
भावार्थ:-दोनों भाई रंगभूमि में आए हैं, ऐसी खबर जब सब नगर निवासियों ने पाई, तब बालक, जवान, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी घर और काम-काज को भुलाकर चल दिए॥3॥
* देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी॥
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहु सब काहू॥4॥
भावार्थ:-जब जनकजी ने देखा कि बड़ी भीड़ हो गई है, तब उन्होंने सब विश्वासपात्र सेवकों को बुलवा लिया और कहा- तुम लोग तुरंत सब लोगों के पास जाओ और सब किसी को यथायोग्य आसन दो॥4॥
दोहा :
* कहि मृदु बचन बिनीत तिन्ह बैठारे नर नारि।
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि॥240॥
भावार्थ:-उन सेवकों ने कोमल और नम्र वचन कहकर उत्तम, मध्यम, नीच और लघु (सभी श्रेणी के) स्त्री-पुरुषों को अपने-अपने योग्य स्थान पर बैठाया॥240॥
चौपाई :
* राजकुअँर तेहि अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥
गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर स्यामल गौर सरीरा॥1॥
भावार्थ:-उसी समय राजकुमार (राम और लक्ष्मण) वहाँ आए। (वे ऐसे सुंदर हैं) मानो साक्षात मनोहरता ही उनके शरीरों पर छा रही हो। सुंदर साँवला और गोरा उनका शरीर है। वे गुणों के समुद्र, चतुर और उत्तम वीर हैं॥1॥
* राज समाज बिराजत रूरे। उडगन महुँ जनु जुग बिधु पूरे॥
जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥2॥
भावार्थ:-वे राजाओं के समाज में ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, मानो तारागणों के बीच दो पूर्ण चन्द्रमा हों। जिनकी जैसी भावना थी, प्रभु की मूर्ति उन्होंने वैसी ही देखी॥2॥
* देखहिं रूप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धरें सरीरा॥
डरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी। मनहुँ भयानक मूरति भारी॥3॥
भावार्थ:-महान रणधीर (राजा लोग) श्री रामचन्द्रजी के रूप को ऐसा देख रहे हैं, मानो स्वयं वीर रस शरीर धारण किए हुए हों। कुटिल राजा प्रभु को देखकर डर गए, मानो बड़ी भयानक मूर्ति हो॥3॥
* रहे असुर छल छोनिप बेषा। तिन्ह प्रभु प्रगट कालसम देखा।
पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई॥4॥
भावार्थ:-छल से जो राक्षस वहाँ राजाओं के वेष में (बैठे) थे, उन्होंने प्रभु को प्रत्यक्ष काल के समान देखा। नगर निवासियों ने दोनों भाइयों को मनुष्यों के भूषण रूप और नेत्रों को सुख देने वाला देखा॥4॥
दोहा :
* नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज-निज रुचि अनुरूप।
जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप॥241॥
भावार्थ:-स्त्रियाँ हृदय में हर्षित होकर अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उन्हें देख रही हैं। मानो श्रृंगार रस ही परम अनुपम मूर्ति धारण किए सुशोभित हो रहा हो॥241॥
चौपाई :
* बिदुषन्ह प्रभु बिराटमय दीसा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥
जनक जाति अवलोकहिं कैसें। सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें॥1॥
भावार्थ:-विद्वानों को प्रभु विराट रूप में दिखाई दिए, जिसके बहुत से मुँह, हाथ, पैर, नेत्र और सिर हैं। जनकजी के सजातीय (कुटुम्बी) प्रभु को किस तरह (कैसे प्रिय रूप में) देख रहे हैं, जैसे सगे सजन (संबंधी) प्रिय लगते हैं॥1॥
* सहित बिदेह बिलोकहिं रानी। सिसु सम प्रीति न जाति बखानी॥
जोगिन्ह परम तत्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा॥2॥
भावार्थ:-जनक समेत रानियाँ उन्हें अपने बच्चे के समान देख रही हैं, उनकी प्रीति का वर्णन नहीं किया जा सकता। योगियों को वे शांत, शुद्ध, सम और स्वतः प्रकाश परम तत्व के रूप में दिखे॥2॥
* हरिभगतन्ह देखे दोउ भ्राता। इष्टदेव इव सब सुख दाता॥
रामहि चितव भायँ जेहि सीया। सो सनेहु सुखु नहिं कथनीया॥3॥
भावार्थ:-हरि भक्तों ने दोनों भाइयों को सब सुखों के देने वाले इष्ट देव के समान देखा। सीताजी जिस भाव से श्री रामचन्द्रजी को देख रही हैं, वह स्नेह और सुख तो कहने में ही नहीं आता॥3॥
* उर अनुभवति न कहि सक सोऊ। कवन प्रकार कहै कबि कोऊ॥
एहि बिधि रहा जाहि जस भाऊ। तेहिं तस देखेउ कोसलराऊ॥4॥
भावार्थ:-उस (स्नेह और सुख) का वे हृदय में अनुभव कर रही हैं, पर वे भी उसे कह नहीं सकतीं। फिर कोई कवि उसे किस प्रकार कह सकता है। इस प्रकार जिसका जैसा भाव था, उसने कोसलाधीश श्री रामचन्द्रजी को वैसा ही देखा॥4॥
दोहा :
* राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर।
सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥242॥
भावार्थ:-सुंदर साँवले और गोरे शरीर वाले तथा विश्वभर के नेत्रों को चुराने वाले कोसलाधीश के कुमार राज समाज में (इस प्रकार) सुशोभित हो रहे हैं॥242॥
चौपाई :
* सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1॥
भावार्थ:-दोनों मूर्तियाँ स्वभाव से ही (बिना किसी बनाव-श्रृंगार के) मन को हरने वाली हैं। करोड़ों कामदेवों की उपमा भी उनके लिए तुच्छ है। उनके सुंदर मुख शरद् (पूर्णिमा) के चन्द्रमा की भी निंदा करने वाले (उसे नीचा दिखाने वाले) हैं और कमल के समान नेत्र मन को बहुत ही भाते हैं॥1॥
* चितवनि चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहिं बरनी॥
कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला॥2॥
भावार्थ:-सुंदर चितवन (सारे संसार के मन को हरने वाले) कामदेव के भी मन को हरने वाली है। वह हृदय को बहुत ही प्यारी लगती है, पर उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। सुंदर गाल हैं, कानों में चंचल (झूमते हुए) कुंडल हैं। ठोड़ और अधर (होठ) सुंदर हैं, कोमल वाणी है॥2॥
* कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा॥
भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं॥3॥
भावार्थ:-हँसी, चन्द्रमा की किरणों का तिरस्कार करने वाली है। भौंहें टेढ़ी और नासिका मनोहर है। (ऊँचे) चौड़े ललाट पर तिलक झलक रहे हैं (दीप्तिमान हो रहे हैं)। (काले घुँघराले) बालों को देखकर भौंरों की पंक्तियाँ भी लजा जाती हैं॥3॥
* पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाईं। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं॥
रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ॥4॥
भावार्थ:-पीली चौकोनी टोपियाँ सिरों पर सुशोभित हैं, जिनके बीच-बीच में फूलों की कलियाँ बनाई (काढ़ी) हुई हैं। शंख के समान सुंदर (गोल) गले में मनोहर तीन रेखाएँ हैं, जो मानो तीनों लोकों की सुंदरता की सीमा (को बता रही) हैं॥4॥
दोहा :
* कुंजर मनि कंठा कलित उरन्हि तुलसिका माल।
बृषभ कंध केहरि ठवनि बल निधि बाहु बिसाल॥243॥
भावार्थ:-हृदयों पर गजमुक्ताओं के सुंदर कंठे और तुलसी की मालाएँ सुशोभित हैं। उनके कंधे बैलों के कंधे की तरह (ऊँचे तथा पुष्ट) हैं, ऐंड़ (खड़े होने की शान) सिंह की सी है और भुजाएँ विशाल एवं बल की भंडार हैं॥243॥
चौपाई :
* कटि तूनीर पीत पट बाँधें। कर सर धनुष बाम बर काँधें॥
पीत जग्य उपबीत सुहाए। नख सिख मंजु महाछबि छाए॥1॥
भावार्थ:-कमर में तरकस और पीताम्बर बाँधे हैं। (दाहिने) हाथों में बाण और बाएँ सुंदर कंधों पर धनुष तथा पीले यज्ञोपवीत (जनेऊ) सुशोभित हैं। नख से लेकर शिखा तक सब अंग सुंदर हैं, उन पर महान शोभा छाई हुई है॥1॥
* देखि लोग सब भए सुखारे। एकटक लोचन चलत न तारे॥
हरषे जनकु देखि दोउ भाई। मुनि पद कमल गहे तब जाई॥2॥
भावार्थ:-उन्हें देखकर सब लोग सुखी हुए। नेत्र एकटक (निमेष शून्य) हैं और तारे (पुतलियाँ) भी नहीं चलते। जनकजी दोनों भाइयों को देखकर हर्षित हुए। तब उन्होंने जाकर मुनि के चरण कमल पकड़ लिए॥2॥
* करि बिनती निज कथा सुनाई। रंग अवनि सब मुनिहि देखाई॥
जहँ जहँ जाहिं कुअँर बर दोऊ। तहँ तहँ चकित चितव सबु कोऊ॥3॥
भावार्थ:-विनती करके अपनी कथा सुनाई और मुनि को सारी रंगभूमि (यज्ञशाला) दिखलाई। (मुनि के साथ) दोनों श्रेष्ठ राजकुमार जहाँ-जहाँ जाते हैं, वहाँ-वहाँ सब कोई आश्चर्यचकित हो देखने लगते हैं॥3॥
* निज निज रुख रामहि सबु देखा। कोउ न जान कछु मरमु बिसेषा॥
भलि रचना मुनि नृप सन कहेऊ। राजाँ मुदित महासुख लहेऊ॥4॥
भावार्थ:-सबने रामजी को अपनी-अपनी ओर ही मुख किए हुए देखा, परन्तु इसका कुछ भी विशेष रहस्य कोई नहीं जान सका। मुनि ने राजा से कहा- रंगभूमि की रचना बड़ी सुंदर है (विश्वामित्र- जैसे निःस्पृह, विरक्त और ज्ञानी मुनि से रचना की प्रशंसा सुनकर) राजा प्रसन्न हुए और उन्हें बड़ा सुख मिला॥4॥
दोहा :
* सब मंचन्ह तें मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल।
मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल॥244॥
भावार्थ:-सब मंचों से एक मंच अधिक सुंदर, उज्ज्वल और विशाल था। (स्वयं) राजा ने मुनि सहित दोनों भाइयों को उस पर बैठाया॥244॥
चौपाई :
* प्रभुहि देखि सब नृप हियँ हारे। जनु राकेश उदय भएँ तारे॥
असि प्रतीति सब के मन माहीं। राम चाप तोरब सक नाहीं॥1॥
भावार्थ:- प्रभु को देखकर सब राजा हृदय में ऐसे हार गए (निराश एवं उत्साहहीन हो गए) जैसे पूर्ण चन्द्रमा के उदय होने पर तारे प्रकाशहीन हो जाते हैं। (उनके तेज को देखकर) सबके मन में ऐसा विश्वास हो गया कि रामचन्द्रजी ही धनुष को तोड़ेंगे, इसमें संदेह नहीं॥1॥
* बिनु भंजेहुँ भव धनुषु बिसाला। मेलिहि सीय राम उर माला॥
अस बिचारि गवनहु घर भाई। जसु प्रतापु बलु तेजु गवाँई॥2॥
भावार्थ:-(इधर उनके रूप को देखकर सबके मन में यह निश्चय हो गया कि) शिवजी के विशाल धनुष को (जो संभव है न टूट सके) बिना तोड़े भी सीताजी श्री रामचन्द्रजी के ही गले में जयमाला डालेंगी (अर्थात दोनों तरह से ही हमारी हार होगी और विजय रामचन्द्रजी के हाथ रहेगी)। (यों सोचकर वे कहने लगे) हे भाई! ऐसा विचारकर यश, प्रताप, बल और तेज गँवाकर अपने-अपने घर चलो॥2॥
* बिहसे अपर भूप सुनि बानी। जे अबिबेक अंध अभिमानी॥
तोरेहुँ धनुषु ब्याहु अवगाहा। बिनु तोरें को कुअँरि बिआहा॥3॥
भावार्थ:-दूसरे राजा, जो अविवेक से अंधे हो रहे थे और अभिमानी थे, यह बात सुनकर बहुत हँसे। (उन्होंने कहा) धनुष तोड़ने पर भी विवाह होना कठिन है (अर्थात सहज ही में हम जानकी को हाथ से जाने नहीं देंगे), फिर बिना तोड़े तो राजकुमारी को ब्याह ही कौन सकता है॥3॥
* एक बार कालउ किन होऊ। सिय हित समर जितब हम सोऊ॥
यह सुनि अवर महिप मुसुकाने। धरमसील हरिभगत सयाने॥4॥
भावार्थ:-काल ही क्यों न हो, एक बार तो सीता के लिए उसे भी हम युद्ध में जीत लेंगे। यह घमंड की बात सुनकर दूसरे राजा, जो धर्मात्मा, हरिभक्त और सयाने थे, मुस्कुराए॥4॥
सोरठा :
* सीय बिआहबि राम गरब दूरि करि नृपन्ह के।
जीति को सक संग्राम दसरथ के रन बाँकुरे॥245॥
भावार्थ:-(उन्होंने कहा-) राजाओं के गर्व दूर करके (जो धनुष किसी से नहीं टूट सकेगा उसे तोड़कर) श्री रामचन्द्रजी सीताजी को ब्याहेंगे। (रही युद्ध की बात, सो) महाराज दशरथ के रण में बाँके पुत्रों को युद्ध में तो जीत ही कौन सकता है॥245॥
चौपाई :
* ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई। मन मोदकन्हि कि भूख बुताई॥
सिख हमारि सुनि परम पुनीता। जगदंबा जानहु जियँ सीता॥1॥
भावार्थ:-गाल बजाकर व्यर्थ ही मत मरो। मन के लड्डुओं से भी कहीं भूख बुझती है? हमारी परम पवित्र (निष्कपट) सीख को सुनकर सीताजी को अपने जी में साक्षात जगज्जननी समझो (उन्हें पत्नी रूप में पाने की आशा एवं लालसा छोड़ दो),॥1॥
* जगत पिता रघुपतिहि बिचारी। भरि लोचन छबि लेहु निहारी॥
सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी॥2॥
भावार्थ:-और श्री रघुनाथजी को जगत का पिता (परमेश्वर) विचार कर, नेत्र भरकर उनकी छबि देख लो (ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलेगा)। सुंदर, सुख देने वाले और समस्त गुणों की राशि ये दोनों भाई शिवजी के हृदय में बसने वाले हैं (स्वयं शिवजी भी जिन्हें सदा हृदय में छिपाए रखते हैं, वे तुम्हारे नेत्रों के सामने आ गए हैं)॥2॥
* सुधा समुद्र समीप बिहाई। मृगजलु निरखि मरहु कत धाई॥
करहु जाइ जा कहुँ जोइ भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा॥3॥
भावार्थ:-समीप आए हुए (भगवत्‍दर्शन रूप) अमृत के समुद्र को छोड़कर तुम (जगज्जननी जानकी को पत्नी रूप में पाने की दुराशा रूप मिथ्या) मृगजल को देखकर दौड़कर क्यों मरते हो? फिर (भाई!) जिसको जो अच्छा लगे, वही जाकर करो। हमने तो (श्री रामचन्द्रजी के दर्शन करके) आज जन्म लेने का फल पा लिया (जीवन और जन्म को सफल कर लिया)॥3॥
* अस कहि भले भूप अनुरागे। रूप अनूप बिलोकन लागे॥
देखहिं सुर नभ चढ़े बिमाना। बरषहिं सुमन करहिं कल गाना॥4॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर अच्छे राजा प्रेम मग्न होकर श्री रामजी का अनुपम रूप देखने लगे। (मनुष्यों की तो बात ही क्या) देवता लोग भी आकाश से विमानों पर चढ़े हुए दर्शन कर रहे हैं और सुंदर गान करते हुए फूल बरसा रहे हैं॥4॥

कुरान का संदेश

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...