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04 मार्च 2012

नायाब नुस्खा: बढ़ती उम्र का प्रभाव रूक जाएगा...त्वचा रहेगी जवां जवां


माना जाता है कि एंटीआक्सीडेंट्स त्वचा को जवां बनाएं रखते हैं। चिकित्सक के निर्देशन में एंटीआक्सीडेंट्स के सेवन से चेहरे पर चमक आ जाती है और झुर्रिया कम हो जाती है। दरअसल इसका मुख्य कारण यही है कि हमारे शरीर में बढ़ती उम्र के साथ एंटीआक्सीडेंट्स की कमी हो जाती है। प्राकृतिक रूप से आक्सीजन के कारण शरीर में आक्सीडेशन की क्रिया भी होती है। आक्सीजन शरीर में रेडिकल्स को जन्म देती है। ज्यों-ज्यों व्यक्ति की उम्र बढ़ती जाती है, ये एंटीआक्सीडेंट्स भी कम होते जाते हैं।साथ शरीर की भोजन से एंटीआक्सीडेंट्स खींचने की क्षमता भी कम हो जाती है। यही वजह है कि भोजन में एंटीआक्सीडेंट की अधिक मात्रा वाली सामग्री के समावेश की जरूरत पड़ती है।

हमारे खाने-पीने की कुछ चीजों में भी एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है। स्ट्राबेरी एक ऐसा ही फल है जिसे नियमित रूप से खाकर बढ़ती उम्र के प्रभावों को रोका जा सकता है और कैंसर से बचाव हो सकता है।एक रिसर्च के अनुसार यह माना गया है कि स्ट्राबेरी खाने से रक्त में एंटीआक्सीडेंट स्तर बढ़ाने में मदद मिलती है। माना जाता है एंटीआक्सीडेंट खाने से तनाव कम हो जाता है। साथ ही इससे कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग जैसी बीमारियों की आशंका को टाला जा सकता है। दो हफ्ते तक यदि आधा किलो स्ट्राबेरी का सेवन किया जाता है तो रक्त में एंटीआक्सीडेंट का स्तर बढऩे लगता है।

श्रेष्ठ संसार के लिए विश्वबंधुत्व जरूरी


- डॉ. सुंदरलाल कथूरिया


उपनिषद वाक्य है
'संगच्छघ्वं संवदध्वं संवो मनांसि जानताम्‌।'
अर्थात्‌ इकट्ठे चलें, एक जैस बोलें और हम सबके मन एक जैसे हो जावें- यह भावना प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इसलिए यहां राजा और रंक, धनवान और संत सब एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यहां के तत्व चिन्तकों ने बिना किसी भेदभाव के मानव मात्र अथ च प्राणिमात्र के कल्याण की कामना की है।

'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित्‌ दुःखभाग्भवेत॥।'
अर्थात्‌ संसार में सब सुखी रहें, सब नीरोग या स्वस्थ रहें, सब भ्रद देखें और विश्व में कोई दुःखी न हो। 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' एक व्यापक मानव-मूल्य है। व्यक्ति से लेकर विश्व तक इसकी व्याप्ति है-व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, अर्न्राष्ट्र। गरज यह कि संपूर्ण विश्व इसकी परिधि में समाहित है।

यह वैयक्तिक मूल्य भी है और सामाजिक मूल्य भी, राष्ट्रीय मूल्य भी है और अंतरराष्ट्रीय मूल्य भी, राजनीतिक मूल्य भी है और नैतिक मूल्य भी, धार्मिक है और प्रगतिशील मूल्य भी। और यदि इन सबका एक शब्द में समाहार करना चाहें तो हम कह सकते हैं कि यह मानवीय मूल्य है।

इस मूल्य को सच्चे मन से अपनाए बिना मानवता अधूरी है, मनुष्य अधूरा है, धर्म और संस्कृति अधूरे हैं तथा राष्ट्र और विश्व भी अधूरा और पंगु है। यह मनुष्य की, मानव समाज की, राष्ट्र की अनिवार्यता है। यदि हम विश्व को श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं तो हमें विश्वबंधुत्व की भावना को आत्मसात्‌ करना ही होगा।

'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' के सूत्र द्वारा भारतीय मनीषियों ने जिस उदार मानवतावाद का सूत्रपात किया उसमें सार्वभौमिक कल्याण की भावना है। यह देश-कालातीत अवधारणा है और पारस्परिक सद्भाव, अन्तः विश्वास एवं एकात्मवाद पर टिकी है। 'स्व' और 'पर' के बीच की खाई को पाटकर यह अवधारणा 'स्व' का 'पर' तक विस्तार कर उनमें अभेद की स्थापना का स्तुत्य प्रयास करत है।

'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' की भावना को राष्ट्रवाद का विरोधी मानने की भूल की जाती रही है। जिस प्रकार उदार मानवतावाद का राष्ट्रवाद से कोई विरोध नहीं है, उसी प्रकार 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' की भावना का भी राष्ट्रवाद से कोई विरोध नहीं है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' की अवधारणा शाश्वत तो है ही, यह व्यापक एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधृत भी है। इसमें किसी प्रकार की संकीर्णता के लिए कोई अवकाश नहीं है। सहिष्णुता इसकी अनिवार्य शर्त है।

निश्चय ही आत्म-प्रसार, 'स्व' का 'पर' तक विस्तार स्वयं को और जग को सुखी बनाने का साधन है। वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप समय और दूरी के कम हो जाने से 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' की भावना के प्रसार की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। किसी देश की छोटी-बड़ी हलचल का प्रभाव आज संसार के सभी देशों पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ता है। फलतः समस्त देश अब यह अनुभव करने लगे हैं कि पारस्परिक सहयोग, स्नेह, सद्भाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भाईचारे के बिना उनका काम न चलेगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना, निर्गुट शिखर सम्मेलन, दक्षेश, जी-15 आदि 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' के ही नामान्तर रूपान्तर हैं।

इन राजनीतिक संगठनों से यह तो प्रमाणित होता ही है कि विश्व के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे राष्ट्र पारस्परिकता और सहअस्तित्व की आवश्यकता अनुभव करते हैं तथा इन अवधारणाओं के बीच 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' में निश्चय ही विद्यमान थे।

व्रत पालन से होती है आत्मज्ञान की प्राप्ति

- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी



मनुष्य जीवन में आत्मरक्षावृत्ति से लेकर समाजवृत्ति तक जो मर्यादाएं निश्चित हैं, उन्हीं के भीतर रहकर ही आत्मविकास करने में सुगमता होती है। व्यक्ति का निजी स्वार्थ भी इसी में सुरक्षित है कि सबके लिए समानव्रत का पालन करे। दूसरों को धोखे में डालकर आत्मकल्याण का मार्ग प्राप्त नहीं किया जा सकता।

आत्म ज्ञान के बिना व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता। इसीलिए ऋषि मुनियों ने व्रत और तपचर्या का संबंध आत्मज्ञान से जोड़ा है। वस्तुतः निजी स्वार्थ के लिए सत्य की उपेक्षा कर देने का तात्पर्य यह हुआ कि उस आचरण में पूर्व निष्ठा नहीं है। इसे ही हम कह सकते हैं कि आप सत्यव्रती नहीं है।

बात अपने हित की हो अथवा दूसरे के हित की, जो शुद्ध और न्यायसंगत हो उसका निष्ठापूर्वक पालन करना व्रत कहलाता है। इस प्रकार आचारण युद्धता को कठिन परिस्थितियों में भी न छोड़ना व्रत है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रसन्न रहकर जीवन व्यतीत करने का अभ्यास भी व्रत है। इससे मनुष्य में श्रेष्ठकर्मों के सम्पादन की योग्यता आती है, कठिनाइयों में आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त होती है, आत्मविश्वास दृढ़ होता है और अनुशासन की भावना विकसित होती है।

आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बिखरी हुई शक्तियों को एकत्र करना और उन्हें मनोयोगपूर्वक कल्याण के कार्यों में लगाना ही व्रत है। नियमितता व्यवस्थित जीवन की आधारशिला है। आत्मशोधन की प्रक्रिया इसी से पूर्ण होती है।

आत्मवादी पुरुष का कथन है कि मैं जीवन में उत्तरोत्तर उत्कर्ष प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा रखता हूं। यह कार्य पवित्र आचरण करने से ही पूरा हो सकता है इसीलिए मैं व्रताचरण की प्रतिज्ञा करता हूं। व्रतपालन से आत्मविश्वास के साथ संयम की वृत्ति उत्पन्न होती है। व्रत पालन की नियमितता आत्मज्ञान प्राप्त करने का सरल मार्ग है।

उपेन्द्रनाथ मिश्र के चिंतन के अनुसार मनुष्य जीवन में आत्मरक्षावृत्ति से लेकर समाजवृत्ति तक जो मर्यादाएं निश्चित हैं, उन्हीं के भीतर रहकर ही आत्मविकास करने में सुगमता होती है। व्यक्ति का निजी स्वार्थ भी इसी में सुरक्षित है कि सबके लिए समानव्रत का पालन करे।

दूसरों का धोखे में डालकर आत्मकल्याण का मार्ग प्राप्त नहीं किया जा सकता। साथ-साथ चलकर लक्ष्य तक पहुंचने में जो सुगमता और आनंद है, वह अकेले चलने में नहीं। अनुशासन और नियमपूर्वक चलते रहने से समाज में व्यक्ति के हितों की रक्षा हो जाती है एवं दूसरों की उन्नति का मार्ग अवरूद्ध भी नहीं होता।

सृष्टि का संचालन नियमपूर्वक चल रहा है। सूर्य अपने निर्धारित नियम के अनुसार चलते रहते हैं। चन्द्रमा की कलाओं का घटना बढ़ना सदैव क्रम से होता रहता है। सारे के सारे ग्रह नक्षत्र अपने निर्धारित पथ पर ही चलते रहते हैं। इसी से सारी दुनिया ठीक से चल रही है।

अग्नि, वायु, समुद्र, पृथ्वी आदि अपने-अपने व्रत के पालन में तत्पर हैं। कदाचित नियमों की अवज्ञा करना उन्होंने शुरू कर दिया होता तो सृष्टि संचालन कार्य कभी का रुक गया होता। अपने कर्तव्य का अविचल भाव से पालन करने के कारा ही देवशक्तियां अमृतभोजी कहलाती हैं। इसी प्रकार व्रत नियमों का पालन करते हुए मानव भी अपना लौकिक और पारलौकिक जीवन सुखी एवं समुन्नता बना सकता है।

ऊंचे उठने की आकांक्षा मनुष्य की आध्यात्मिक प्रक्रिया है। पूर्णता प्राप्त करने की कामना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है, किंतु हम जीवन को अस्त व्यस्त बनाकर लक्ष्य विमुख हो जाते हैं।

प्रत्येक कार्य का आरंभ छोटे स्तर से होता है, जिस प्रकार विद्यार्थी छोटी कक्षा से उत्तरोत्तर बड़ी कक्षा में प्रवष्टि होते हैं और लघुता से श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होते हैं। ठीक उसी प्रकार आत्मज्ञान के महान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रारंभिक कक्षा व्रत वालन ही है। व्रताचरण से हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

कुरान का संदेश





राजस्थान में खोमचों ..फेरीवालों के लियें विशेष कानून बनाया लेकिन अफसरों ने अभी तक लागू नहीं किया

राजस्थान सरकार ने हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोपियों को सख्त सजा दिलवाने और उनकी सम्पत्ति को जब्त करने को लेकर अभियान तेज़ करते हुए एक नया कानूनी मसोदा तय्यार किया है ..इधर गरीब फुटपाथ पर रोज़गार चलाने वाले फेरीवालों को भी व्यस्थित करने को लेकर सरकार ने एक नया कानून बना डाला है जो राजस्थान में लागु भी कर दिया गया है ....नये कानून के तहत नगर निगम क्षेत्र में गलियों ..चोराहों ..नुक्कड़ों पर फेरीवाले ..खोमचे वाले .ठेले वाले जो अस्थायी दुकाने लगा कर अपना रोज़गार चलाते है उन्हें व्यवस्थित करते हुए नगर निगम में उनका पंजीयन आवश्यक कर दिया है ..इस नये कानून में खाने पीने की वस्तुएं बेचने वालों को भी नगर निगम से लाइसेंस लेना होगा और किस स्थान पर क्या खोमचा या फेरी की दूकान है अंकित करना होगा ..इसका उल्न्न्घन करने पर दंड का प्रावधान भी रखा गया इस मामले में नगर निगम और राजस्थान सरकार एक समिति का गठन भी करेगा जो अभी तक तो नही की गयी है ......राजस्थान में यह कानून पारित तो हो गया है लेकिन नोकरशाहों ने इसे अभी शहरों में लागू नहीं किया है ..यह एक ज्नुप्योगी कानून है जिसे तुरंत लागू करना था लेकिन तीन माह गुजरने पर भी इसे लागू नहीं करना सरकार की इच्छा शक्ति को कमजोर और अधिकारीयों की नाफ्र्मानियों को मजबूत साबित करता है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

कोख में मार दी जाती है 6 लाख बेटियां

नई दिल्ली. तेजी से प्रगति और विकास के बाद भी महिलाओं की स्थिति में भारत में खास सुधार नहीं हो रहा है। लिंग अनुपात के मामले में भारत अपने पड़ोसी देशों व दुनिया के कई बड़े देशों से काफी पीछे है। भारत में हर साल 6 लाख बेटियां पैदा नहीं हो पातीं। देश में 6 साल से कम उम्र के लोगों में लिंग अनुपात महज 914 का है।

अल्टरनेटिव इकोनॉमिक सर्वे के लिए जुटाए गए आंकड़ों में मुताबिक, हर साल ऐसी 6 लाख बच्चियां जन्म नहीं ले पातीं जिन्हें देश के औसत लिंग अनुपात के हिसाब से दुनिया में आना था। 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर 940 महिलाएं हैं।

यह आंकड़ा भी उत्साहवर्धक नहीं है। यूं तो यह सेक्स अनुपात पिछले 20 साल में सबसे बेहतर है लेकिन हमारे पड़ोसी, विकसित या तेजी से विकास कर रहे देशों के मुकाबले बेहद कम है। पड़ोसी देशों की बात करें तो नेपाल में प्रति 1000 पुरुषों पर 1041 महिलाएं हैं।

इंडोनेशिया में 1000 पुरुषों पर 1004 महिलाएं व चीन में यह अनुपात 944 का है। पाकिस्तान भी लिंग अनुपात में 938 के आंकड़े के साथ भारत की बराबर पर पहुंच रहा है। वल्र्डफैक्ट बुक के आंकड़ों के मुताबिक, अधिकांश विकसित देशों में तो महिलाओं की तादाद पुरुषों से अधिक दर्ज की गई है।

वर्ल्ड फैक्ट बुक द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं विश्व में औसतन 1000 पुरुषों पर 990 महिलाएं हैं। ब्राजील, अमेरिका, रूस, जापान, नाईजीरिया, फ्रांस, वियतनाम व इजरायल में भी लिंग अनुपात अधिक है।

अमीरों में होती है ज्यादा भ्रूण हत्या

विशेषज्ञों का मानना है कि कन्या भ्रूण हत्या का प्रचलन अमीरों में ज्यादा है। इसकी एक वजह लिंग की पहचान व उसको नष्ट करने की महंगी प्रक्रिया भी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि संभ्रांत परिवार के लोग ही इसका खर्च उठा पाते हैं। ऐसे में संभ्रांत वर्ग में बेटे की चाहत में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं ज्यादा हैं और इस वर्ग में बाल लिंग अनुपात कम है।

ईसाइयों में सर्वाधिक सिख सबसे पीछे

भारत के मुख्य धार्मिक समुदायों को आधार मान कर गणना करने से मालूम हुआ है कि ईसाई संप्रदाय में लिंग अनुपात सबसे अधिक है। दूसरे नंबर पर मुस्लिम व तीसरे पर हिंदू हैं। बच्चों में लिंग अनुपात (0-6 वर्ष के बच्चों के लिए) के आधार पर ईसाई संप्रदाय में लिंग अनुपात 964 है।
लिंग अनुपात के मामले में मुस्लिम दूसरे नंबर पर हैं और यहां स्थिति राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। पिछली जनगणना के मुताबिक मुस्लिम समुदाय में प्रत्येक 1000 पुरुषों पर 950 महिलाएं हैं। वहीं सिख समुदाय में लिंग अनुपात सबसे कम 786 बताया गया है।

जैन संप्रदाय में यह अनुपात 870 है। देश की 80.5 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है और यहां लिंग अनुपात 925 है। साफ है कि देश की बहुसंख्य आबादी में लिंग अनुपात राष्ट्रीय औसत से कम है।

- मनोरंजक भंग-तरंग राशिफल...



8 मार्च को होली है... होली है रंगों का त्यौहार, होली है मजाक-मस्ती का त्यौहार... होली है हुड़दंग का त्यौहार, होली है खुशी और धूम का त्यौहार... इसलिए हम भी आपके लिए हैं एक मनोरंजक भंग-तरंग राशिफल... बुरा ना मानो होली है...
मेष राशि
इस होली से अगली होली तक इस राशि के लोगों को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बार भी ये कोई पहाड़ नहीं तोड़ पाएंगे। हमेशा की तरह फालतु की बातों में केवल समय ही बर्बाद करेंगे। घर-परिवार में बेइज्जती हो सकती है, एक काम ठीक से नहीं कर पाएंगे। जो लोग शादीशुदा है वे आस-पड़ोस की महिलाओं को देख कर ही थोड़ी देर के लिए खुश होंगे क्योंकि पीछे से इनकी बीवी इन पर नजर रखे हुए रहेगी। इनकी ऐसी ही हरकतों के कारण बीवी के हाथों पिटाई होने के प्रबल योग बन रहे हैं। इस राशि अविवाहित युवा जिस लड़की को पसंद करते हैं उसे इनके दोस्त ही होली पर रंग लगाएंगे और ये कुछ नहीं कर पाएंगे। इन लोगों को मंदिर में जाकर सौ-सौ बैठक लगानी चाहिए जिससे जीवन में सुख और खुशियां आएगी, जिसकी कोई संभावना नहीं है।


- मनोरंजक भंग-तरंग राशिफल...


8 मार्च को होली है... होली है रंगों का त्यौहार, होली है मजाक-मस्ती का त्यौहार... होली है हुड़दंग का त्यौहार, होली है खुशी और धूम का त्यौहार... इसलिए हम भी आपके लिए हैं एक मनोरंजक भंग-तरंग राशिफल... बुरा ना मानो होली है...
मेष राशि
इस होली से अगली होली तक इस राशि के लोगों को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बार भी ये कोई पहाड़ नहीं तोड़ पाएंगे। हमेशा की तरह फालतु की बातों में केवल समय ही बर्बाद करेंगे। घर-परिवार में बेइज्जती हो सकती है, एक काम ठीक से नहीं कर पाएंगे। जो लोग शादीशुदा है वे आस-पड़ोस की महिलाओं को देख कर ही थोड़ी देर के लिए खुश होंगे क्योंकि पीछे से इनकी बीवी इन पर नजर रखे हुए रहेगी। इनकी ऐसी ही हरकतों के कारण बीवी के हाथों पिटाई होने के प्रबल योग बन रहे हैं। इस राशि अविवाहित युवा जिस लड़की को पसंद करते हैं उसे इनके दोस्त ही होली पर रंग लगाएंगे और ये कुछ नहीं कर पाएंगे। इन लोगों को मंदिर में जाकर सौ-सौ बैठक लगानी चाहिए जिससे जीवन में सुख और खुशियां आएगी, जिसकी कोई संभावना नहीं है।

वृष राशि
इस राशि के विवाहित लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा जब एक लड़की इन्हें प्रपोज मारेगी लेकिन ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं क्योंकि वह आपको बकरा बनाएगी। अगली होली तक बहुत से ख्याली पुलाव पकाएंगे लेकिन कोई तीर नहीं मार पाएंगे। लोगों के सामने इम्प्रेशन झाड़ेंगे लेकिन पीठ पीछे वे ही आपका मजाक बनाएंगे। इन लोगों को आलू और चावल फेंक देना चाहिए क्योंकि अब पेटु लोगों का पेट फटने ही वाला है। ऑफिस से घर आते ही बीवी की कर्कश आवाज इनका दिमाग खराब कर देगी। सालभर बीवी को देखकर ये खुद को कोसेंगे कि मैंने शादी क्यों की? हमारी इन लोगों को यही सलाह है कि ये लोग रोज बीवी की सेवा करें। घर के बर्तन धोएं तब शायद इनका कल्याण हो सकता है।

मिथुन राशि
इस बार की होली इन लोगों के बहुत खास है क्योंकि ये लोग किसी विवाहित महिला मित्र के साथ फिल्म देखने जाएंगे। फिल्म मस्त रहेगी, इंजोय भी करेंगे लेकिन थोड़ी देर बाद ही उस महिला का पति आपको रंगे हाथों पकड़ लेगा। इसके बाद भयंकर पिटाई होने के प्रबल योग बन रहे हैं। लूट-पिट के जब घर पहुंचे तो इनका कुत्ता भी इन्हें देखकर पूंछ नहीं हिलाएगा। अपनी फिल्म वाली करतूत छिपाने के लिए पत्नी से झूठ बोलेंगे लेकिन चोरी पकड़ी जाएगी। इसके बाद क्या होगा, आप खुद समझ सकते हैं। साल के बाकि दिनों में ऑफिस में खुद को खरगोश समझेंगे लेकिन कोई कछुआ इनसे आगे निकल कर इन्हें चिढ़ाएगा। इन सब कारनामों के बाद भी किस्मत चमकाना हो तो किसी जिंदा नाग को कुमकुम का तिलक लगाएं, मजा आ जाएगा।

कर्क राशि
घर हो या ऑफिस हर जगह इस राशि के लोगों का बोलबाला रहेगा क्योंकि हर जगह ये लोग धिक्कारे जाएंगे। हमेशा की तरह इस साल भी ये लोग केवल बने बनाए काम बिगाडऩे का ही काम करेंगे। ऑफिस में बॉस गालियां सुनाएगा और घर पर बीवी इंतजार करेगी। अविवाहित लोग जिस लड़की को पटाने के लिए जी तोड़ मेहनत करेंगे वह किसी और लड़के से ही पटी हुई रहेगी। इन्हीं हरकतों के कारण न तो इन्हें ऑफिस में भाव मिलेगा और न ही घर पर बच्चे इज्जत करेंगे। घर के आसपास कुत्तों से भी सावधान रहें क्योंकि वे भी आपको देखकर नाक और भौहें सिकुड़ लेंगे। होली पर गोबर से स्नान करेंगे तो शायद आपके पाप धुल जाएंगे।

सिंह राशि
ये लोग बहुत सारी गलतफहमियां पाल कर बैठे रहते हैं लेकिन एक निवेदन है कि पहले अपना मुखड़ा आइने में देखें। आइना आपको बता देगा कि इस मुंह को मसूर की दाल नसीब नहीं हो सकती। आप खुद को होशियार समझते हैं लेकिन सच्चाई आपका मन जानता है। ऑफिस में इस साल भी कुछ उखाड़ नहीं पाएंगे। इसके बाद आपकी हालत खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे जैसी हो जाएगी। घर-परिवार में भी पत्नी और बच्चे एक गिलास पानी के लिए भी नहीं पूछेंगे। घबराइए नहीं आप फिर से कोशिश करें घर हो या ऑफिस आपको फिर से मान-सम्मान मिल जाएगा, ये हमारी झूठी दिलासा है। सुबह-शाम किसी कौएं को शहद चटाएं शायद कोई तीर निशाने पर लग जाए।

कन्या राशि
2012 में इन लोगों की हालत ऐसी होगी जैसे किसी चूहे को चिंदी मिल गई हो। ऑफिस में बॉस एक लॉलीपॉप पकड़ा देगा और गधों के जैसे काम करवाएगा। जैसे-जैसे समय निकलते जाएगा इनकी आंख खुलती जाएगी कि ऑफिस के लोग इन्हें बेवकूफ बना रहे हैं। ये जानकर दुख होगा कि इतना काम करने के बाद भी आपकी हैसियत दो कौड़ी की भी नहीं है। उदास मन से फेसबुक पर जाएंगे लेकिन वहां भी आपको कोई भाव नहीं देगा। हताश होकर घर जाएंगे, वहां आपकी बीवी जले पर नमक छिड़कने के लिए तैयार बैठी है। इन लोगों को एक ही सलाह है कि खुद का दिमाग चलाए क्योंकि आज तक आपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया है। पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें।

कन्या राशि
2012 में इन लोगों की हालत ऐसी होगी जैसे किसी चूहे को चिंदी मिल गई हो। ऑफिस में बॉस एक लॉलीपॉप पकड़ा देगा और गधों के जैसे काम करवाएगा। जैसे-जैसे समय निकलते जाएगा इनकी आंख खुलती जाएगी कि ऑफिस के लोग इन्हें बेवकूफ बना रहे हैं। ये जानकर दुख होगा कि इतना काम करने के बाद भी आपकी हैसियत दो कौड़ी की भी नहीं है। उदास मन से फेसबुक पर जाएंगे लेकिन वहां भी आपको कोई भाव नहीं देगा। हताश होकर घर जाएंगे, वहां आपकी बीवी जले पर नमक छिड़कने के लिए तैयार बैठी है। इन लोगों को एक ही सलाह है कि खुद का दिमाग चलाए क्योंकि आज तक आपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया है। पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें।


जानिए, क्या सीखाता है होली का त्योहार


हिन्दू पंचांग के अंतिम मास फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। होली का त्योहार मनाए जाने के पीछ कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें सबसे प्रमुख कथा इस प्रकार है-
राजा हिरण्यकश्यपु राक्षसों का राजा था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु का भक्त है तो उसने प्रह्लाद को रोकने का काफी प्रयास किया लेकिन तब भी प्रह्लाद की भगवान विष्णु की भक्ति कम नहीं हुई। यह देखकर हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की किंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। हिरण्यकश्यपु की एक बहन थी- होलिका।
उसे वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका से कहा। होलिका प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कई किंतु भगवान विष्णु की कृपा से हवा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में होली का त्योहार मनाया जाने लगा

जानें, क्यों मनाई जाती है होली, क्या है इसका महत्व


हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन उत्सवों में से प्रमुख उत्सव है। इस पर्व का महत्व धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। इसलिए इसे वैदिक पर्व भी कहते हैं। इस बार होलिका दहन 7 मार्च, बुधवार को किया जाएगा तथा धुरेड़ी 8 मार्च, गुरुवार को खेली जाएगी।
इस पर्व में होलाका नामक अन्न, जिसका संस्कृत भाषा में अर्थ है खेत का आधा कच्चा, आधा पक्का अन्न या भुना हुआ अन्न, से हवन कर प्रसाद लेने की परंपरा थी। संभवत: इसलिए इसका नाम होलिकोत्सव हुआ। श्रीमद्भागवत में भी नई फसल का एक भाग देवताओं को चढ़ाने का महत्व बताया गया है। फाल्गुन माह में आने के कारण इसे फाल्गुनोत्सव भी कहा जाता है।
पुराणों में भी इस पर्व की परंपरा आरंभ होने की कथाएं है। जिनमें होलिका दहन की कथा सबसे लोकप्रिय है। धर्मावलंबी आज भी इस कथा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में याद करते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से यह दिन मौसम में बदलाव का होता है। इस दिन से बसंत ऋतु का आंरभ होता है, जिसे प्रेम और नवचेतना की ऋतु माना गया है।
होलिकोत्सव का आरंभ प्रमुख रुप से होलिका दहन से शुरु होता है। अगले दिन अर्थात् चैत्र माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को धुरेड़ी मनाई जाती है। भारत के कईं भागों में उत्सव का यह सिलसिला चैत्र कृष्ण पंचमी को रंगपंचमी तक चलता है। भारतीय समाज में होली एकता का पर्व है। जिसमें सभी नर-नारी, बच्चे, बुजुर्ग जाति और वर्ण के भेद को भुलाकर इस पर्व को बड़े उत्साह और उल्लास से मनाते हैं।

पानी में गिरने के बाद भी चलेगा फोन, बैटरी लाइफ 15 साल


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कंप्यूटर की तरह काम करने वाले स्मार्टफोन की दुनियाभर में धूम है और बार्सिलोना में हाल ही में हुई 'मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस' में तरह-तरह के स्मार्टफोन छाए रहे, लेकिन फोन की इस भीड़ में क्या कुछ ऐसा भी है जो वाकई लीक से हटकर है। फोन के इस मेले में अजीबोगरीब और ताज़ातरीन फोन को देखने के लिए लोगों में जितना उत्साह था उतना ही दबाव था फोन बनाने वाली कंपनियों पर कुछ नया परोसने का।

इस मेले में हमें कई नायाब फोन दिखे मसलन मछलीघर में रखे ऐसे फोन जो घंटों पानी के भीतर रह सकते हैं। पानी में गिर कर फोन अक्सर खराब हो जाते हैं और यही वजह है कि कंपनियां इन ‘वाटरप्रूफ फोन’ के ज़रिए कुछ नया करने का सोच रही हैं। इनके भीतर लगी मशीनरी पर सिलिकॉन की ऐसी परत चढ़ी है कि फोन घंटो पानी में रहने पर भी खराब नहीं होगा।

15 साल चलेगी बैट्री

इस मेले में कई अजीबोगरीब फोन भी मौजूद थे मसलन लंबाई में बड़ा और चटकीले रंगों वाला एक ऐसा फोन जिसकी खासियत है कि ये आपकी सांस की बदबू का ब्यौरा देगा और शर्मिंदा होने से बचाएगा।

स्मार्ट-फोन हर चीज़ में माहिर हैं और वाकई लाजवाब, लेकिन एक बड़ी समस्या है जल्द खत्म होने वाली उनकी बैटरी। मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में हमें एक ऐसा फोन भी दिखा जो बैटरी की शिकायत को हमेशा के लिए खत्म कर देगा। इस फोन में लगी है खासतौर पर बनाई गई डबल चार्ज एए बैटरी यानि इसे चालू करके भूल जाइए और ये 15 साल तक भी काम करता रहेगा। आपात स्थितियों के लिए वाकई इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।

कंप्यूटर से आगे फोन

स्मार्ट-फोन का बाज़ार बढ़ता जा रहा है, लेकिन क्या ये फोन कंप्यूटर की तरह काम करेंगे। कितना फर्क है कंप्यूटर और इन फोन में ये जानने के लिए हमने बात की चिप्स मैकार्थी से जिनकी तकनीक के सहारे ही ज़्यादातर स्मार्टफोन काम कर रहे हैं।

चिप्स कहते हैं, ''अगर आप कंप्यूटर के विकास को देखें तो आज हम कंप्यूटर का जो रुप देखते हैं उसे सामने आने में 25 साल लगे, लेकिन स्मार्टफोन्स के मामले में अच्छी खबर ये है कि बाज़ार में प्रतिस्पर्धा इतनी कड़ी है कि ग्राहकों की मांग हर दिन कुछ नया करने का दबाव बना रही है।

मारुति की इस कार के 'बिकते' ही रो पड़ी थी इंदिरा

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देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति का आज जितना जानदार है, उतना ही यादगार उसका कल था। कंपनी की पहली कार की चाबी एक ग्राहक को सौंपते हुए 14 दिसंबर 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आंखों से आंसू तक आ गए थे। मारुति की उस पहली कार का मालिक एक फौजी हरपाल सिंह था।

पहली मारुति 800 कार की चाबी सेना में काम करने वाले हरपाल को सौंपते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था, ''मैं उम्मीद करती हूं कि यह कार भारत के आम लोगों के काम आए.. मैं उम्मीद करती हूं कि राष्ट्र निर्माण में इससे हर तरह से मदद मिलेगी और भारत के लोगों को इससे सुविधा होगी।''

गौरतलब है कि इंदिरा गांधी के लिए यह एक भावुक लम्हा था। आम आदमी के लिए कार बनाने का सपना उनके बेटे संजय गांधी ने देखा था। एक हवाई दुर्घटना में संजय की मृत्यु के बाद यह लगभग टूट ही गई थी। हालांकि 14 दिसंबर 1983 को संजय के जन्मदिन के मौके पर जब यह हकीकत में तब्दील हुआ तो उनकी मां के आंखों में आंसू आना स्वाभाविक था।

दिलचस्प है कि कंपनी की पहली कार मारुति 800 थी। जैसे-जैसे समय बीता इस कार की मांग भी बढ़ती चली गई है। आज भी ये कार कंपनी के पोर्टफोलियों का अहम हिस्सा है और हरपाल की जिंदगी का भी। हरपाल ने अब तक इस कार को वैसे ही सहेज कर रखा है, जैसे इंदिरा गांधी ने उन्हें पहली बार दी थी।

जानिए, क्यों असफल हो जाते हैं शादी के बाद रिश्ते?



अक्सर देखा जाता है कि कई पति-पत्नी के रिश्ते कई बार शादी के कुछ ही दिनों में दरकने लगते हैं। ऐसा तब होता है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे को अपनी ओर खिंचने में लग जाते हैं। कई परिवारों में बहुओं आते ही उन पर अपने घर का अनुशासन, जिम्मेदारियां और नियम कायदे इस तरह थोप दिए जाते हैं कि लड़की अपने आप को उस घर में पराया समझने लगती है। लड़के का परिवार उस पर अपनी अपेक्षाओं का इतना वजन रख देता है कि उसके मन में ससुराल के प्रति अपनापन महसूस ही नहीं कर पाती, उसे यह सब केवल जिम्मेदारी ही लगता है।

जबकि नई बहु के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए कि उसका मन कम समय में ही पति के घर और परिवार को अपना मान ले। भागवत के एक प्रसंग में चलते हैं। भगवान कृष्ण रुक्मिणी का हरण करके भागे। रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने उनका पीछा किया और कृष्ण को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। भगवान कृष्ण ने रुक्मी से घमासान युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया।

जब भगवान रुक्मी को मारने लगे तब रुक्मिणी ने उन्हें रोक दिया। भाई की जान बचा ली। फिर भी कृष्ण ने उसे आधा गंजा करके और आधी मूंछ काटकर कुरुप कर दिया। रुक्मिणी इस पर कुछ नहीं बोली, वो उदास हो गई। लेकिन बलरााम ने रुक्मिणी के मन के भाव ताड़ लिए। उन्होंने कृष्ण को समझाया कि रुक्मी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना था। वो तुम्हारी पत्नी का भाई है। तुम्हारा परिजन है।

बलराम ने रुक्मिणी से हाथ जोड़कर माफी मांगी। उन्होंने रुक्मिणी से कहा कि तुम्हारा भाई हमारे लिए आदरणीय है और कृष्ण द्वारा किए गए व्यवहार के लिए मैं क्षमा मांगता हूं। तुम उस बात के लिए अपना मन मैला मत करना। ये परिवार अब तुम्हारा भी है, इसे पराया मत समझना। तुम्हारे भाई के साथ हुए दुव्र्यवहार के लिए मैं तुमसे माफी मांगता हूं।

इस बात से रुक्मिणी की उदासी जाती रही। वो यदुवंश में घुल मिल कर रहने लगी और उसी परिवार को अपना सबकुछ मान लिया। नई बहुओं को जिम्मेदारी दें लेकिन उनसे सिर्फ अपेक्षाएं ही ना रखी जाएं, उन्हें आदर-सम्मान और अपनापन भी दिया जाए। बहुओं के आते ही अपने घर के अनुशासन में भी थोड़ा बदलाव करें, जिससे वो अपने आप को उस माहौल में ढाल सके।

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