तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
06 मार्च 2012
मुर्खानंद दीक्षांत समारोह में आपका स्वागत है होली मुबारक हो
शांति कुमार धारीवाल ...केबिनेट मंत्री राजस्थान सरकार .......राजस्थान में विकास के नये आयाम ..नये काम नई दिशा ..............भरत सिंह केबिनेट मंत्री राजस्थान सरकार ...क्या करूं मंत्री तो बन गया लेकिन ठसका जाता ही नहीं ..इजय राज सिंह ..सांसद कोटा ......विनम्रता से लोगों के दिल जीत लिए जनाब ने ........श्रीमती रत्ना जेन ..महापोर कोटा ...डोक्टर होने के नाते कोटा की नब्ज़ चेक कर बीमारियाँ दूर करने का सपना है खुदा पूरा करे ..........रघुवीर सिंह कोशल ..पूर्व भाजपा सांसद ..यारों के यार है .......मोलाना फजले हक ..चेयरमेन मदरसा बोर्ड .........घर घर साक्षरता की अलख जगाने में कामयाब है हम ..........भवानी सिंह राजावात ..विधायक लाडपुरा ...मुखर विपक्ष हूँ बोलूंगा तो सही ...... ओम कृषण बिरला ...विधायक कोटा दक्षिण ...जन सेवा से लोगों के दिलों पर राज किया है ........विद्या शंकर नन्दवाना ...जिला प्रमुख कोटा .....हारी हुई बाज़ी जीत में बदल डाली है ...... गोविन्द जी शर्मा ....अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस कोटा ......सभी को साथ लेकर चलूँगा ..... श्याम सुन्दर शर्मा ...भाजपा कोटा जिला अध्यक्ष .........वक्त हमारा भी आयेगा ...........रामकिशन वर्मा पूर्व मंत्री ..... देवनारायण बोर्ड का हकदार हूँ .....प्रहलाद गुंजल ..टूट जाउंगा झुकूँगा नहीं ........ ललित किशोर चतुर्वेदी पूर्व सांसद ...कोटा का विकास तो मेने भी कराया है ..भुवनेश चतुर्वेदी पूर्व केन्द्रीय मंत्री .......अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि हूँ लेकिन आदत से मजबूर हूँ ...पंकज मेहता .महासचिव कोंग्रेस ..कुशल प्रवक्ता ......रविन्द्र त्यागी .चेयरमेन नगर विकास न्यास ....कोटा की आधुनिक तस्वीर बनाऊंगा .....डोक्टर ज़फर ..प्रदेश सचिव कोंग्रेस ...इन्ना लिल्लाहे माँ अस्साबेरिन ......राजेन्द्र सांखला ......कछुवा चाल से खरगोश को पीच्छे छोड़ कर आया हूँ ....नईमुद्दीन गुड्डू ...लोगों के दिलों पर तो आज भी राज है जनाब का संघर्ष करता रहूँगा .......श्रीमती रुकमनी मीना ..देहात कोंग्रेस अध्यक्ष .....क्या हुआ कार्यकारिणी बना तो दी है अब ......आनंद पाटनी ............लगातार जीत रहा हूँ अब विधायक के टिकिट का हकदार बन गया हूँ .....राकेश सोरल उप महापोर कोटा ....यार साला शहर साफ़ क्यूँ नहीं हो पाता है .......अज़ीज़ अंसारी चेयरमेन कोटा जिला वक्फ कमेटी .......धीरे धीरे सब ठीक कर दूंगा थोडा इन्तिज़ार करो ...........हुकम जेन काका ..छुपा रुस्तम हूँ देख लेना एक दिन ......
प्रीतम सिंह ..संभागीय आयुक्त कोटा ......मेरे पास करने को तो कुछ है नहीं तो बताओ क्या करूं ...जी एल गुप्ता ..कलेक्टर कोटा ..कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का .....पोखर मल ..नगर दंडनायक ...कुछ वक्त दो करके तो बताऊंगा .... आर पी सिंह ..आई जी कोटा ..बस अब जा रहा हूँ होली मुबारक हो .......प्रफुल कुमार ..एस पी कोटा शहर .....सभी को साथ लेकर चलता हूँ जनाब ... पी राम जी ..एस पी ग्रामीण कोटा ...सभी को सुधार दूंगा .....हनुमान मीना ..अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण ..उफ़ यह कोनसी मुसीबत वाली नयी जाँच आ गयी ........लक्ष्मण गोड .. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक कोटा नगर ...कोटा और राजस्थान पर फूल कमांड है जनाब का .....
धीरज गुप्ता तेज .अध्यक्ष प्रेस क्लब कोटा ...वसुंधरा लहर का इन्तिज़ार है बस फिर मज़े ही मज़े है .........हरी मोहन शर्मा ..सचिव प्रेस क्लब कोटा .....सभी का प्यारा सभी का न्यारा कृष्ण कन्हय्या हूँ ..नीरज गुप्ता ...वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रेस क्लब कोटा ..आपका साक्षी हूँ ........ओमेन्द्र सक्सेना उपाध्यक्ष प्रेस क्लब कोटा ..मेरे साथ बेठे और कोई हंसे नहीं हो ही नहीं सकता .........प्रद्युमन शर्मा ....कुछ करने का होसला है ..सुनील माथुर ..वरिष्ठ हूँ ........कय्यूम अली ....यारों का यार हूँ ..सलिमुर्र्ह्मन खिलजी ........संघर्ष कर रहा हूँ .........के एल जेन ...और बाबू साहब सब ठीक है .......रविन्द्र शर्मा ........समझोता नहीं करूंगा ..मॉल सिंह शेखावत ..माल से नाम जुड़ा है इसलियें स्थायी कोषाध्यक्ष हूँ ......जे पी सिंह ......म्रदुल स्वभावि रिपोर्टर ............हेमंत शर्मा ..टॉप सीनियर हूँ ....भूपेन्द्र शर्मा ...बहतरीन लेखक बन गया हूँ ......श्याम रोहिडा ....... सभी को साथ लेकर चलता हूँ .........जगेन्द्र भटनागर ..रिटायर हो गया हूँ ....ज्योति पाठक ..खुदी को कर बुलंद इतना के बंदे से खुद खुदा पूछे तेरी रजा क्या है .....हुकुम चंद जेन ..पत्रकारिता के सभी संघर्ष देखे है ......प्रदीप जेन ....तोल मोल के बोलता हूँ जनाब .........दादा मदन मदिर ....खुद लिखता हूँ इसलियें मेरा लोगों के दिलों पर राज है ...............सुनील वर्मा ..पुराना ज्न्गाग्र्ती का हूँ .........रजत खन्ना .....दिल से पत्रकारिता करता हूँ सोदेबाज़ी नहीं .............भंवर जी ई टी वी ..........किसी से नहीं डरता ........ओम जी ई टी वी .....आपनी राजस्थानी ..........शाकिर अली ..खबर भारती ..सबकी खबर दूँ सबकी खबर लूँ ......सुरक्षा ......पत्रकारिता को सुरक्षित कर रही हूँ ...प्रताप सिंह तोमर .सच्चा पत्रकार हूँ ............गिरीश गुप्ता ...क्या करें यार ...........जय नारायण सक्सेना ..संघर्ष है तो जीवन है ...........संजीव सक्सेना ..सभी को साथ लेकर चलना है ..प्रशांत सक्सेना ...सभी को खून देकर जान बचाई है जनाब ने .................
तो जनाब होली की उपाधि कार्यक्रम समाप्त होता है ....... और जो भी कहता हो उसके लियें हम क्षमा प्रार्थी है ..रंगों का यह त्यौहार आपके लियें खुशियाँ लाये ..कामयाबी लाये ..तरक्की लाये ..आपके दिलों की हर मुराद पूरी हो देश खुश हाल हो देश में सुख शांति हो ...आमीन सुम्मा आमीन ............अख्तर खान अकेला कोटा rajsthan
होली: इस दिन कामदेव को भस्म किया था शिव ने
होली से जुड़ी कई कथाएं पुरातन ग्रंथों में मिलती है। इन कथाओं के पीछे जीवन के सूत्र भी छिपे हैं। होली से जुड़ी एक कथा यह भी है-
इंद्र भगवान शिव की तपस्या भंग करना चाहते थे। उन्होंने कामदेव को इस कार्य पर लगाया वह दिन वसंत पंचमी का था। कामदेव ने उसी समय वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया इससे सारे जगत के प्राणी काममोहित हो गए। कामदेव का शिव को मोहित करने का यह प्रयास होली तक चला इसलिए इन दो माह में वसंत पर्व मनाया जाता है। होली के दिन शिव की तपस्या भंग हुई।
उन्होंने रोष से भरकर कामदेव को भस्म कर दिया तथा यह संदेश दिया कि होली पर काम (मोह, इच्छा, लालच, धन, मद) इनको अपने पर हावी न होने दें। तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा प्रारंभ हुई। इस घटना के बाद शिव ने पार्वती से विवाह की सम्मति दी। जिससे सभी देवी-देवताओं, शिवगणों, मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया। उन्होंने एक-दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर आपस में गले मिलकर जोरदार उत्सव मनाया। जो आज धुलेंडी के रूप में घर-घर मनता है।
मात्र 20 लाख रुपए दे दिए होते तो आज ‘लाहौर’ हमारा होता
इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मेन डॉ. अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि आने वाले समय में भारत महाशक्ति बनेगा। भारत के पास 2021 तक 65 प्रतिशत युवा होंगे और यही युवा भारत को महाशक्ति बनाएंगे। ये बातें मंगलवार को राष्ट्रवादी पत्रकार और विद्वान लेखक पदमश्री डॉ. मुजफ्फर हुसैन ने वापी स्थित वीआईपी हॉल में आयोजित एक परिसंवाद में कहीं।
‘बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर’ विषय के अंतर्गत आयोजित इस परिसंवाद में डॉ. हुसैन ने लगभग सवा घंटे तक भारत के गरिमापूर्ण इतिहास और उसके भविष्य के बारे में व्यक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि इस समय महापुरुष स्वामी विवेकानंद की 150 जन्मजयंती मनाई जा रही है। विवेकानंद ने वर्षो पहले कहा था कि उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की 150 पुण्यतिथि तक भारत विश्व की महाशक्ति बन जाएगा। उसके बाद महर्षि अरविंदो और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी 2021 तक भारत के महाशक्ति बनने की बात कही थी। लेकिन वर्तमान में भारत अनेक खंडों में विभाजित है, इसलिए महाशक्ति बनने के प्रश्न पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।
चीन अपने भार तले ही दब जाएगा
डॉ. हुसैन ने भारतीय मजदूर संघ के स्थापक दत्तोपंत ठेंगडी को याद करते हुए कहा कि 1989 में ही ठेंगडीजी ने रशिया के खंडित हो जाने की बात कही थी और 1992 में ठीक ऐसा ही हुआ। रशिया कई टुकड़ों में बंट गया। दत्तोपंत ने यह भी कहा था कि अमेरिका का डॉलर भी इस समय तक कमजोर हो जाएगा।
और आज अमेरिका की स्थिति कैसी है, यह बात किसी से छुपी नहीं। आज चीन का बोलबाला है, लेकिन उसकी हालत डायनासोर की तरह हो जानी है। आगामी समय में वह अपने भार तले ही दब जाएगा। चीन के पूर्वी भाग का ही विकास हुआ है, लेकिन पश्चिम की हालत अच्छी नहीं। इसके अलावा ताईवान, हॉगकांग और तिब्बत जैसी कई बड़ी समस्याएं उसके आगे मुंह बाएं खड़ी हैं, जिनके आगे चीन टिक नहीं पाएगा।
मात्र 20 लाख रुपए दे दिए होते तो आज ‘लाहौर’ भारत में होता :
डॉ. हुसैन ने देश के विभाजन के समय की बात करते हुए कहा...ब्रिटिशर रेड क्लिफ ने हमारे देश का विभाजन किया था। तब पाकिस्तान के लाहौर में हिंदू बहुसंख्यक थे। इस समय लाहौर के आर्य समाज के प्रमुख, रेड क्लिफ से मिलने गए थे और रेड क्लिफ ने उनसे कहा था कि आप मुझे 20 लाख रुपए दे दो, लाहौर आपका हो जाएगा। लेकिन इस समय सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधीजी ने इसे लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई थी, वरना पाकिस्तान का लाहौर आज भारत का हिस्सा होता
होलिका दहन की इस अनूठी प्रथा को सुन अचरज में पड़ जाएंगे आप
जिला मुख्यालय से 28 किमी दूर कुआकोंडा के गढ़पदर में अनूठे ढंग से यह रस्म पूरी होती है। ग्रामीणों ने सदियों पुरानी परंपरा को संजोए रखी है। यहां कोंडराज देव की गुड़ी के सामने सेमल लकड़ी की होलिका सजती है। इस होलिका में माचिस से सुलगाई आग का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि बांस की खपच्चियों को घिसकर पैदा की गई आग से सुलगाया जाता है। खपच्ची घिसने का काम गांव के ही तारम परिवार के लोग पुश्तैनी तौर पर करते आ रहे हैं।
डंडारी नाचा मुख्य आकर्षण : पुराने समय से प्रचलित डंडारी नाचा इस आयोजन का अभिन्न हिस्सा है। गुजरात के डांडिया से मिलते-जुलते इस नृत्य में बांस के 3 से 5 फीट लंबे टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।
कोंडराजदेव की गुड़ी से मांझी घर तक बाजा मोहरी की धुन पर ग्रामीण डंडारी खेलते चलते हैं। यहां पर मैलावाड़ा गांव से डंडारी नृत्य करते पहुंचे गंगनादेई माता के सेवकों के दल की अगवानी के बाद दोनों समूह मिलकर देर रात मंदिर लौटते हैं। यहां धूमधाम से होलिका दहन कर बांस की डंडारियां भी होलिका की आग के हवाले कर दी जाती है।
डोंगरदेव तक पहुंचती है अग्नि
पुजारी परिवार के श्यामलाल बघेल के मुताबिक कोंडराज मंदिर में होलिका दहन के बाद आग लाकर पास ही स्थित डोंगरदेव मंदिर में भी दहन किया जाता है। इसके बाद राख का टीका माथे पर लगाकर लोग घर लौट जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि दंतेवाड़ा में होने वाले प्रसिद्ध होलिका दहन के लिए भी यहीं से आग ले जाने का रिवाज था, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव हो चुका है।
होली में क्यों डाले जाते हैं गेहूं और चावल?
होली यानी रंगों का त्यौहार हमारे देश की सबसे अनोखी परंपराओं में से एक है। जिन्दगी को रंगों से भर देने वाले इस त्यौहार का हमारे देश में धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस दिन से जुड़ी हमारे यहां अनेक लोक परंपराएं है। ऐसी ही एक परंपरा है होलिका का पूजन कर जलती होली में अन्न या धान डालने की।
दरअसल इस परंपरा का कारण हमारे देश का कृषि प्रधान होना है। होलिका के समय खेतों में गेहूं और चने की फसल आती है। ऐसा माना जाता है कि इस फसल के धान के कुछ भाग को होलिका में अर्पित करने पर यह धान सीधा नैवैद्य के रूप में भगवान तक पहुंचता है। होलिका में भगवान को याद करके डाली गई हर एक आहूति को हवन में अर्पित की गई आहूति के समान माना जाता है।
साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस तरह से नई फसल के धान को भगवान को नैवैद्य रूप में चढ़ा कर और फिर उसे घर में लाने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। इसलिए होलिका में धान डालने की परंपरा बनाई गई। आज भी हमारे देश के कई क्षेत्रों में इस परंपरा का अनिवार्य रूप से निर्वाह किया जाता है।
बारात का अयोध्या लौटना और अयोध्या में आनंद
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥4॥
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥343॥
झाँझि बिरव डिंडिमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥1॥
निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहटपुर द्वारे॥2॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥3॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥4॥
सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि॥344॥
मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥1॥
देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न केही॥2॥
सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष भारती॥3॥
कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेमबिबस तन दसा बिसारीं॥4॥
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥345॥
राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥
हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला॥2॥
छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥3॥
रचीं आरतीं बहतु बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल गाना॥4॥
चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात॥346॥
सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं॥1॥
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥2॥
सुर सुगंध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी॥3॥
सुमिरि संभु गिरिजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा॥4॥
बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ॥347॥
जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी॥1॥
बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न समाहीं॥2॥
करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक सरीरा॥3॥
सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी॥4॥
मुदित मातु परिछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार॥348॥
भूषन मनि पट नाना जाती। करहिं निछावरि अगनित भाँती॥1॥
पुनि पुनि सीय राम छबि देखी। मुदित सफल जग जीवन लेखी॥2॥
बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा॥3॥
देत न बनहिं निपट लघु लागीं। एकटक रहीं रूप अनुरागीं॥4॥
बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत॥349॥
तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनीत पखारे॥1॥
बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं॥2॥
पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृतु लहेउ जनु संतत रोगीं॥3॥
मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई॥4॥
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु॥350 क॥
मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसुकाहिं॥350 ख॥
सबहि बंदि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥2॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥4॥
तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥351॥
भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी॥1॥
आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे॥2॥
कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी॥3॥
पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी॥4॥
पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु॥352॥
नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा॥1॥
बिप्रबधू सब भूप बोलाईं। चैल चारु भूषन पहिराईं॥1॥
नेगी नेग जोग जब लेहीं। रुचि अनुरूप भूपमनि देहीं॥3॥
देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू॥4॥
कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ॥353॥
जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे॥1॥
बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि दुलारीं॥2॥
कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि सुनि हरषु होत सब काहू॥3॥
बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी॥4॥
भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति॥।354॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥1॥
प्रेम प्रमोदु बिनोदु बड़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥2॥
सो मैं कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी॥3॥
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई॥4॥
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ॥355॥
सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना॥1॥
रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं जोवा॥2॥
अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही॥3॥
मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का मारी॥4॥
मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु॥356॥
मख रखवारी करि दुहुँ भाईं। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाईं॥1॥
कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा॥2॥
सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे॥3॥
जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें॥4॥
सुमिरि संभु गुरु बिप्र पद किए नीदबस नैन॥357॥
घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥1॥
सुंदर बधुन्ह सासु लै सोईं। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोईं॥2॥
बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥3॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे॥4॥
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥358॥
नवाह्नपारायण, तीसरा विश्राम
देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥1॥
सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥2॥
मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ठ बिपुल बिधि बरनी॥3॥
सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥4॥
उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति॥359॥
नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं॥1॥
दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ॥2॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥3॥
अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी॥4॥
रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई॥5॥
बुधवार की रात पीपल के नीचे लगाएं घी दीपक, क्योंकि...
बुधवार को है रंगों का त्यौहार होली। होली के दिन चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल होता है। साथ ही शास्त्रों में इस पर्व का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन कुछ नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति के जीवन से समस्याओं दूर हो सकती हैं।
होली की मध्य रात्रि के बाद पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक लगाया जाना चाहिए। साथ ही हाथ में सफेद तिल लेकर पीपल की सात परिक्रमा करें। तिल धीरे-धीरे छोडते जाएं। इसके बाद पीछे देखे बिना ही वापस घर आ जाएं। ध्यान रहे पीपल को छुना नहीं है। यह छोटा सा उपाय काफी लाभदायक है। बिना त्रुटि से किए जाने पर कुछ ही दिनों में श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं।
होली की रात किसी भी पूजन कार्य के लिए काफी सिद्ध मानी गई है। थोड़े ही विधि विधान के बाद ही मनोवांछित कार्य पूर्ण होने के योग बन सकते हैं। इसी वजह से इस रात को अधिकांश ज्योतिषीय उपाय किए जाते हैं।
हजारों साल पुरानी है इस त्योहार की दुर्लभ परंपरा
होली... बसंत उत्सव... फाग... फागुन... एक ऐसा त्यौहार जिसमें सभी रिश्तों, दोस्ती आदि के मतभेद, मनमुटाव, गिले-शिकवे, दूरियां मिट जाती हैं... और मजबूत होती है रिश्तों की नाजुक डोर। होली को लेकर यह बात आधुनिक समाज में ही नहीं प्रचलित है अपितु पुरातन काल से ही होली का त्यौहार मिलन का प्रतिक माना गया है। होली को सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। होली की शुरूआत कब हुई इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। परंतु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में होली संबंधी अनेक कथाएं मिलती है। उन्हीं में से कुछ प्रमुख दंत कथाएं इस प्रकार है:
प्रहलाद और होलिका
होली का प्रारंभ प्रहलाद और होलिका के जीवन से जुड़ा है। प्रहलाद और होलिका की कथा विष्णु पुराण में उल्लेखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से मर सकता था न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी। परंतु पुत्र प्रहलाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहुत सी यातनाएँ दीं। पंरतु पुत्र ने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को विष्णु भक्त पुत्र का अंत करने के लिए प्रहलाद सहित आग में प्रवेश करा दिया। परंतु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। बस प्रहलाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
शिव पार्वती और कामदेव
शिव पुराण के अनुसार हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थी और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा, परंतु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
पूतनावध
कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि वासुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसका विनाशक होगा। तो कंस ने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में जन्में देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मार दिया। आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। वासुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए। कंस उस कन्या को मार नहीं सका। तब आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है। अब कंस ने उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा। वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई। लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अत: पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।
राधा और श्रीकृष्ण
होली का त्यौहार राधा और श्रीकृष्ण की पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। वसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण की लीला का ही एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो जगप्रसिद्ध है। होली पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर-द्वेष की, ईष्र्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम।
राक्षसी ढुंढी की मृत्यु
राजा पृथु के समय में एक राक्षसी थी ढुंढी। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी। राक्षसी को वर प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी। राजा पृथु को ढुंढी को खत्म करने के लिए राजपुरोहित ने एक उपाय बताया कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखें और जलाए, मंत्र पढ़ें और अग्नि की परिक्रमा करें तो राक्षसी मर जाएगी। हुआ भी ऐसा ही इतने बच्चे एक साथ देखकर राक्षसी ढुंढी अग्नि के नजदीक आई तो उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से इसी तरह मौज मस्ती के साथ होली मनाई जाने लगी।