आपका-अख्तर खान

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07 मार्च 2012

फेस बुक से जुड़े आग के अंगारे


दोस्तों आप माने या ना माने होली के रंग ही अजीब होते हे जो दूर होते महीनों से वोह दिल के करीब होते हें अगर बिछड़ता हे कोई तो वोह कोई रंग नहीं सिर्फ बेरंग आंसू होते हें और इसी धमाल के साथ बुरा ना मानों होली के नारे के बाद पेश हे आपके सामने अख्तर खान अकेला की फेसबुक से जुड़े कुछ अंगारों की आग ................
अरुण चतुर्वेदी ....राजस्थान में भाजपा फिर से आ रही हे लेकिन सन्गठन के पदाधिकारी की लिस्ट पूरी नहीं हो रही हे ....इन्द्रेश कुमार जी ..बुरे फंसे अजमेर बाबा के श्राप में ... ओम कृष्ण बिरला ...जनता की सेवा ही मुझे मेवा देती हे ....भवानी सिंह राजावत ......आने वाले कल में फिर हीरो बनूंगा ..... प्रताप सिंह सिंघवी ...में तो भगत हूँ वसुंधरा देवी का ...... .महेश विजयवर्गीय .... कितना ही पीछे छोड़ दो सिद्धांत नहीं छोडूंगा ...... प्रमोद माहेश्वरी ..... कोटा को प्रतिभाएं देता रहूंगा .... अनिल दासवानी ....यह दांत का दर्द भी अजीब होता हे ...संगीता माहेश्वरी ...फिर समर केम्प आ रहे हें .......कुंती मेवाडा .....घर पर मेवाडा जी से पुन्छुंगी .....अतुल कनक ......कोटा का लाडला हूँ इसलियें कोटा में चिराग रोशन करता हूँ ......धीरज गुप्ता तेज .......लो बंद कर लिया कोटा प्रेस क्लब फिर मुट्ठी में ......प्रद्युम्न शर्मा ...... जननायक का महानायक हूँ .... आशीष जेन ....कुछ तो लेखन में गर्मी हे ......अशोक चक्रधर ...... आजकल भास्कर में भी देखने को रोज़ मिल जाता हूँ ... अरविन्द सिसोदिया ....सोनिया को बदल कर ही दम लूंगा .......राजेश त्रिपाठी ....ओपरेशन खबर हे अस्पताल की .....जय प्रकाश सिंह ..... इस बार फिर पत्रिका पुरस्कार जीतूंगा..........सुनील माथुर ........ हरफन मोला पत्रकार हूँ ...........अली सोहराब .....सुचना का अधिकार दिलवाकर रहूंगा....अनिल भारद्वाज ...शरीर लुधियाना में दिल कोटा में हे ...........नीरज गुप्ता .......में आपकी हर बात का साक्षी हूँ .....गजेंदर जी व्यास ..मुझ से क्या छुपा हे यारों ...सेफ खान ....टोंक को सर पर उठा रखा हें ....मुमताज़ उर्फ़ व्क्कास ...एक आदमी दो नाम सब असली एक चीज़ नकली बताओ क्या .....अभिषेक मलेठी ...........सब के दिलों में रहता हूँ .....भारत तिवारी ....भारत मेरा महान हे ...धरमेंदर सोनी ... में वोह धरमेंदर नहीं ......जाग्दिश गुप्ता ..बी एस ऍन एल का हीरो हूँ .....इमरान खान ....अब मेरी भी शादी की बारी हे .आनन्द पाटनी ...अभी तो पार्षद हूँ कल का कोटा का भविष्य बन जाउंगा ....संजय सेन ......यद् उनकी कभी कभी आती हे .... पंकज झा ...मुझे सब ही तो पढ़ते हें .....शायर अशोक ..बहतरीन शायर हूँ .....अख्तर खान उदयपुरी .....झीलों की नगरी के प्रेस क्लब को जीत लिया हे .... हाजी शरीफ पठान ....में झूंठ नहीं बोलता कसाटा आइस क्रीम पहुंचा दूंगा ......विवेक नंदवाना ...आदर्श वकालत हे ...शोभराज प्रभाकर ......खूब देख रहा हूँ में .....म्र्युन्जय कुमार ..मेरा लिखा सब पढ़ते हें .....सबा हिजाब ...हिजाब ही तो हे जो सब कुछ हे .....तन्हा अजमेरी ...मेरी शायरी के सब शोकिन हें ....वन्दना राग ...मेरा भी अपना राग हे ....अशोक पांडे ....मेरी भी आवाज़ सुनो ...अशोक पुनमिया ...में भी कुछ लिख रहा हूँ जो सबसे बहतर हे ....प्रवीन अधिवक्ता .हे कोई वकालत का काम ...आबिद सुरती ...जिसको सलाह चाहिए तय्यार हूँ ....आमिर पठान .. पापा जब से पार्षद बने हें मेरे बारे में सोचते ही नहीं ..एडवोकेट जगदीश सोनी ...कानून का डंडा चलेगा ....आसिफ अली हाश्मी ........... खुबसूरत चेहरा खुबसूरत ....भागीरथ आकोदिया ,......मानवाधिकार भी कुछ चीज़ हे यारों ......बीना जेन ........किसकी कुंडली देखना हे .........बिपाशा बासु ...मुझे बचाओ ....भवानी जोशी ...मेरी तो सब जगह चलती हे ....इंजिनियर आर ऍन अग्रवाल .कोई पुल मिलन का फिर बनाना हे ..फेंकू हिन्दुस्तानी ....हे कोई मुझ से बढ़ी फेंक नहीं ना ..... डॉक्टर गजेंदर सिसोदिया ...कोटा के स्वस्तय को सुधरने की कोशिशों में जुटा हूँ .....डॉक्टर अनिल गुप्ता ....इलाज चाहिए ....डॉक्टर सलमान .... हर दिल अज़ीज़ हूँ ...गोविन्द हान्क्ला ....कविता सुनोगे ....इन्दर मोहन हनी ..जो मुझ से टकराएगा चूर चूर हो जाएगा ....गुरमीत बग्गा ......अच्छी जगह लग गया हूँ ....कमला गुप्ता ...एक अच्छा कवि हूँ .....डोक्टर इकबाल ........ हड्डी पसली जुडवा लो ...डोक्टर सरदाना .......लाइलाज बीमारी का मानवीयता से इलाज करता हूँ ........संजय जायसवाल ..गरीबों का भी मुफ्त इलाज होता हे ..........मोंटो खान ...उदयपुर के अख्तर खान का शरारती फोटू छापा था ......यशस्वी गोतम ..मेरे इलाज का यश हे ....योगेश जोशी ...................प्रेस क्लब का टीम मेनेजर जिंदाबाद .................. दोस्तों मेरे और भी फेस बुक भाई बहन हें जिनके लियें अगला अनक आ रहा हे .. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

होली आई रे होली आई रे .......


कल में जेसे ही वकालत के दफ्तर से घर पहुंचा गली नुक्कड़ की होली वाले बच्चे मेरे पास आये और होली का चंदा मांगने लगे मेने देखा के अब एक नई पीडी इस होली के चंदे के लियें तय्यार हो गयी हे .
हमने भी होली बनाई हे होली सजाई हे चंदे भी किये हें लेकिन लिमिटेड चंदा खुबसुरत सजावट और रुपयों की कम बर्बादी लेकिन इन दिनों महंगाई हे सही बात हे जो होली हम ५०० रूपये के चंदे में सजा लिया करते थे वोह होली आज दस हर में सजाई जाती हे और कई फालतू आकर्षक सजावट के चक्कर में यह खर्च कई लाख रूपये तक पहुंच जाता हे , में सोचने लगा के देश में सवा अर्ब लोगों की जनसंख्या के बीच छोटी बढ़ी होली करीब पन्द्रह लाख लोग मनाते हें और एक होली पर कमसे कम बीस हजार रूपये का एवरेज खर्च आता हे क्योंकि कुछ बढ़ी होलियाँ तो लाखों में सजती हे और कुछ होलियों का खर्च हजारों में सिमट जाता हे बस मेने हिसाब लगाया १५ लाख को १० हजार से गुणा करो तो कुल राशी १५ अरब रूपये बैठती हे इस तरह से केवल होली सजाने और जलाने में हम हर साल १५ अर्ब तो यूँ ही खर्च कर देते हें फिर हम रंग गुलाल और पानी मिष्ठान के अलग खर्च करते हें इन दिनों पेट्रोल और दुसरे खर्च अलग से होते हें खेर त्यौहार हे और त्यौहार भी सिख देने वाला भाईचारा सद्भावना अपनापन का पाठ पढ़ने वाला सभी को साथ लेकर चलने वाला अपने पन का पैगाम और इश्वर पर दृढ विशवास पैदा करने वाला त्यौहार हे रंगों का खुबसुरत इन्द्रधनुष से देश को सजाने वाला यह त्यौहार हे इसलियें यह खर्च कोई बढ़ी बात नहीं हे यहाँ कई बार होली के प्रबन्धन से गली मोहल्ले के बच्चे एक प्रबन्धन कार्यक्रम का संयोजन सीखते हें जो उनके जीवन में कई जगह काम भी आती हे .
लेकिन आजकल यह सब नहीं होता हे होली के नाम पर लडकियों से अभद्रता रंग के नाम पर गंदगी ग्रीस आयल लगा कर लोगों के चेहरे खराब करने कपड़े फाड़ना होली की नफासत होली का फलसफा ही खत्म हो गया हे ऐसे में हम देखते हे हर होली पर शराब के नशे में भांग के नशे में कई लोग जेल में बंद होते हें आपस में ही लढ कर एक दुसरे का सर फाड़ देते हें यहाँ तक के कई इलाकों में तो अनावश्यक हत्या तक और गेंगवार तक बात पहुंच जाती हे जो सदियों की दुश्मनी बना देती हे बूंद बूंद पानी बचाने का नारा देने वाले यही लोग अरबों रूपये का बेशकीमती पानी यूँ ही बर्बाद कर देते हे तो दोस्तों त्यौहार भाई चारा सद्भावना बढाने के लियें और देश का विकास करने के लियें होते हें इस तरह से देश की बर्बादी के लियें नहीं इसलियें इस मामले को गम्भीरता से सोचना होगा और इस गम्भीर चिन्तन में खुले मन से विचार कर एक सुझाव और एक संकल्प जो खुद अपने परिवार पर लागू किया जाए और गीली होली से बचा जाए ऐसे रंग जिनमें तेज़ाब होता हे उससे बचा जाए फ़िज़ूल खर्ची के स्थान पर उस खर्च से अपने इलाके में होली की धार्मिक रस्म से पूजा अर्चना तो की जाए लेकिन साथ ही किसी गरीब की शादी किसी गरीब को खाना किसी गाँव मोहल्ले में हेंड पम्प डिस्पेंसरी या कोई भी रचनात्मक काम में इस राशी को खर्च कर त्यौहार ईद हो होली हो दीपावली हे इन्हें यादगार बनाया जाए . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

दोस्तों आज की सुबह होली की हुडदंग में महिला दिवस के जोश को छुपा रहा था

दोस्तों आज की सुबह होली की हुडदंग में महिला दिवस के जोश को छुपा रहा था ..एक तरफ महिला दिवस दूसरी तरफ राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा सिंधिया का जन्म दिन ..उत्तर प्रदेश में सपा की जीत का जश्न होली का अजीबो गरीब माहोल बना रहा था .जी हाँ दोस्तों जयपुर में वसुंधरा के जन्म का जश्न ..राजस्थान की बसों में महिलाओं के लियें मुफ्त यात्रा की घोषणा ..और सारे देश में होली मिलन का माहोल ...देश में रंगों की महत्ता प्यार ..सम्मान का माहोल बना रहा था ..होली पर सभी अपनी बुराइयाँ अपने दिलों के मेल दुश्मनी जला कर राख कर देते है और फिर सभी रंगों के साथ होली को खुशनुमा बना दिया जाता है जिससे सिर्फ एक ही संदेश मिलता है के हमारे देश में विभिन्न तरह के रंगों की संस्क्रती .जाती .धर्म ...भाषा है और यह सभी संस्कृति रंग मिलकर देश का एक खुबसूरत इन्द्रधनुष ...तिरंगा बनाते है .......देश के तीन रंगों और चोबीस तीलियों से बना हमारा तिरंगा हमे हमारे गोरव का स्वाभिमान का एहसास दिलाता है ..देश की संस्क्रती के रंग हमे प्यार मोहब्बत अनेकता में एकता का आभास दिलाता है ..लेकिन कुछ है ऐसे जो इस होली के रंग को गंदगी और बदले में बदल देना चाहते है कुछ लोग हैं जो होली के इस रंग में छेड़ छाड़ और वासना को तलाशते है ..कुछ लोग है जो इस दिन रंगों में तेज़ाब मिलाकर दुश्मनी निकालने के सपने देखते हैं ................होली के इस रंग में मेने हमारे इस कोटा को भी देखा है ..यहाँ की गलियाँ यहाँ की सडकें खुदी पढ़ी है ...यहाँ नालियों में कीचड़ है ..अँधेरी गलियाँ है जो नगर निगम की नाकामयाबी बयान कर रही है सडकों पर मोटर बाइक सवार नोसिखियें आशिक मिजाज़ लडकों का जमावड़ा है ..हुडदंग है ...कुछ लडकियाँ और महिलाएं हैं जो सर से पैर तक रंगों में अटी पढ़ी है और हर कोई उनसे होली खेलने को आतुर हैं .....थानों में पुलिस नदारद है चोराहों पर पुलिस की गश्त बढ़ी हुई है ..आज ब्रहस्पतिवार है मुस्लिम धर्म प्रेमी मजारात पर अपनी खिदमत और फातिहा के लिए जाने की तय्यारी कर रहे है ..और यह हमारा शहर प्यार मोहब्बत के जश्न में कहीं फ्लाई ओवर ..कहीं एलिवेटेड रोड तो कहीं सोंद्र्य्करण की योजनाओं के पूरा होने का इन्तिज़ार कर रहा है .....................कल रात को होली जलाने का जश्न था नयापुरा में पुलिस आई जी ..एस पी .मोजूद थे खुद राजस्थान सरकार के मंत्री शान्ति कुमार धारीवाल लोगों को होली की मुबारकबाद दे रहे थे ....... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बहुत चमत्कारी है ये मामूली बांसुरी, पढ़ें और जानें कितने कमाल की है


आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि बांसुरी कितने कमाल की है। वैसे तो कई तरह की बांसुरियां होती है जो अलग अलग असर दिखाती है लेकिन बांस से बनी बांसुरी और चांदी की बांसुरी विशेष असर दिखाने वाली और कमाल की होती है।


- चांदी की बांसुरी अगर आपके घर में होगी तो उस घर में पैसों से जूड़ी कोई परेशानी नहीं होगी।

- सोने की बांसुरी घर में रखने से उस घर में लक्ष्मी रहने लग जाती है और ऐसे घर में पैसा ही पैसा होता है।

- बाँस के पौधे से बनी होने के कारण लकड़ी की बांसुरी शीघ्र उन्नतिदायक प्रभाव देती है अत: जिन व्यक्तियों को जीवन में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही हो, अथवा शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो, तो उसे अपने बैडरूम के दरवाजे पर दो बाँसुरियों को लगाना चाहिए।

- यदि घर में बहुत ही अधिक वास्तु दोष है, या दो से अधिक दरवाजे एक सीध में है, तो घर के मुख्यद्वार के ऊपर दो बांसुरी लगाने से लाभ मिलता है तथा वास्तु दोष धीरे धीरे समाप्त होने लगता है।

- घर का कोई सदस्य अगर बहुत दिनों से बीमार हों या अकाल मृत्यु का डर या अन्य कोई स्वास्थ्य से सम्बन्धित बड़ी समस्या हो, तो प्रत्येक कमरें के बाहर और बीमार व्यक्ति के सिरहाने पर बांसुरी का प्रयोग करना चाहिए इससे बहुत जल्दी असर होने लगेगा।

- चांदी या बांस से बनी बांसुरी के बारे में एक जबरदस्त कमाल की बात ये है कि जब ऐसी बांसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है, तो बुरी आत्माएं दूर हो जाती है और जब इसे बजाया जाता है, तो ऐसी मान्यता है कि घरों में शुभ चुम्बकीय प्रवाह का प्रवेश होता है।

पूजन में शहद का उपयोग क्यों किया जाता है?


शिव का अभिषेक हो या किसी और देवता की पूजा, पूजन सामग्री में शहद का उपयोग पंचामृत के एक हिस्से के रूप में किया जाता है। विशेषतौर पर भगवान शिव के अभिषेक में इसका उपयोग सबसे ज्यादा होता है। शहद में ऐसे कौन से गुण होते हैं जिनके कारण यह इतना खास माना गया है?

वास्तव में शहद को उसके गुणों के कारण ही पूजा में उपयोग किया जाता है। शहद तरह होकर भी पानी में नहीं घुलता है। जैसे संसार में रहकर भी अलग रहने के भाव का प्रतीक है। यह घी या तेल की तरह पानी में बिखरता भी नहीं है। यह पंच तत्वों में आकाश तत्व का प्रतीक भी माना गया है। शहद में कई औषधीय गुण भी होते हैं। इसे आयुर्वेद में भी स्थान दिया गया है। शहद ऐसा पदार्थ होता है जिसे पेट और शारीरिक कमजोरी संबंधी सभी बीमारियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी तासिर ठंडी होती है।

एकदार्शनिक कारण यह भी है कि शहद ही ऐसा तत्व है जो जिसके लिए इंसान को प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है, इसे कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता। मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया एकदम शुद्ध पदार्थ होता है। जिसके निर्माण में कोई मिलावट नहीं हो सकती। शहद को भगवान को इसी भाव से चढ़ाया जाता है कि हमारे जीवन में भी शहद की तरह ही पवित्र और पुण्य कर्म हों। चरित्र और व्यवहार में शहद जैसा ही गुण हो, जो संसार में रहकर भी उसमें घुले मिले नहीं, उसमें रहे भी और उससे अलग भी हो।

एक श्राप में छुपा सबसे बड़ा 'रहस्य', इसलिए है ब्रह्मा का दुनिया में एक मंदिर



अजमेर/जयपुर.राजस्थान के पुष्कर में बना भगवान ब्रह्मा का मंदिर अपनी एक अनोखी विशेषता की वजह से न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है, यह ब्रह्मा जी एकमात्र मंदिर है। भगवान ब्रह्मा को हिन्दू धर्म में संसार का रचनाकार माना जाता है।

क्या है इतिहास इस मंदिर का

ऐतिहासिक तौर पर यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन है।संगमरमर और पत्थर से बना यह मंदिर पुष्कर झील के पास स्थित है जिसका शिखर लाल रंग से रंग हुआ है। इस मंदिर के केंद्र में भगवान ब्रह्मा के साथ उनकी दूसरी पत्नी गायत्री कि प्रतिमा भी स्थापित है। इस मंदिर का यहाँ की स्थानीय गुर्जर समुदाय से विशेष लगाव है। मंदिर की देख-रेख में लगे पुरोहित वर्ग भी इसी समुदाय के लोग हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री भी गुर्जर समुदाय से थीं।

कैसे नाम पड़ा 'पुष्कर'

हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। ब्रह्मा जी ने जब उसका वध किया तो उनके हाथों से तीन जगहों पर पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बनी। इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा। इस घटना के बाद ब्रह्मा ने यज्ञ करने का फैसला किया। पूर्णाहुति के लिए उनके साथ उनकी पत्नी सरस्वती का साथ होना जरुरी था लेकिन उनके न मिलने की वजह से उन्होंने गुर्जर समुदाय की एक कन्या 'गायत्री' से विवाह कर इस यज्ञ को पूर्ण किया, लेकिन उसी दौरान देवी सरस्वती वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं।

उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी, हालाँकि बाद में इस श्राप के असर को कम करने के लिए उन्होंने यह वरदान दिया कि एक मात्र पुष्कर में उनकी उपासना संभव होगी। चूंकि विष्णु ने भी इस काम में ब्रह्मा जी की मदद की थी इसलिए देवी सरस्वती ने उन्हें यह श्राप दिया कि उन्हें अपनी पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी कारण उन्हें मानवरूप में राम का जन्म लेना पड़ा और 14 साल के वनबास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था।

चेतावनीः सूर्यास्त के बाद न जाना वहां, वरना मौत पक्की...!

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जयपुर.इस किले में प्रवेश करने वाले लोगों को पहले ही चेतावनी दे दी जाती है कि वे सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात् इस इस किले के आस पास समूचे क्षेत्र में प्रवेश ना करें अन्यथा किले के अन्दर उनके साथ कुछ भी भयानक घट सकता है। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में भूत प्रेत का बसेरा है,भारतीय पुरातत्व के द्वारा इस खंडहर को संरक्षित कर दिया गया है।

गौर करने वाली बात है जहाँ पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाये है वहीँ इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से किमी दूर बनाया है। जयपुर और अलबर के बीच स्थित राजस्थान के भानगढ़ के इस किले के बारे में वहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि रात्रि के समय इस किले से तरह तरह की भयानक आवाजें आती हैं और साथ ही यह भी कहते हैं कि इस किले के अन्दर जो भी गया वह आज तक वापस नहीं आया है,लेकिन इसका राज क्या है आज तक कोई नहीं जान पाया।

मिथकों के अनुसार भानगढ़ एक गुरु बालू नाथ द्वारा एक शापित स्थान है जिन्होंने इसके मूल निर्माण की मंज़ूरी दी थी लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी थी कि महल की ऊंचाई इतनी रखी जाये कि उसकी छाया उनके ध्यान स्थान से आगे ना निकले अन्यथा पूरा नगर ध्वस्त हो जायेगा लेकिन राजवंश के राजा अजब सिंह ने गुरु बालू नाथ की इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और उस महल की ऊंचाई बढ़ा दी जिससे की महल की छाया ने गुरु बालू नाथ के ध्यान स्थान को ढंक लिया और तभी से यह महल शापित हो गया।

एक अन्य कहानी के अनुसार राजकुमारी रत्नावती जिसकी खूबसूरती का राजस्थान में कोई सानी नहीं था।जब वह विवाह योग्य हो गई तो उसे जगह जगह से रिश्ते की बात आने लगी। एक दिन एक तांत्रिक की नज़र उस पर पड़ी तो वह उस पर कला जादू करने की योजना बना बैठा और राजकुमारी के बारे में जासूसी करने लगा।

एक दिन उसने देखा कि राजकुमारी का नौकर राजकुमारी के लिए इत्र खरीद रहा है,तांत्रिक ने अपने काले जादू का मंत्र उस इत्र की बोतल में दाल दिया,लेकिन एक विश्वशनीय व्यक्ति ने राजकुमारी को इस राज के बारे में बता दिया। राजकुमारी ने वह इत्र की बोतल को चट्टान पर रखा और तांत्रिक को मारने के लिए एक पत्थर लुढ़का दिया,लेकिन मरने से पहले वह समूचे भानगढ़ को श्राप दे गया जिससे कि राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ बासियों की म्रत्यु हो गई। इस तरह की और और भी कई कहानियां हैं जो भानगढ़ के रहस्य पर प्रकाश डालती हैं लेकिन हकीकत क्या है वह आज भी एक रहस्य है।

15 के बाद हो सकती है राज्यसभा चुनाव प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा!

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जयपुर.राज्यसभा की तीन सीटों के लिए होने वाले चुनाव को लेकर मंगलवार को विपक्ष की नेता वसुंधरा राजे ने पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर से चर्चा की। इसके बाद वे बुधवार को दिल्ली चली गईं।

सूत्रों के अनुसार दोनों नेताओं की यह मुलाकात सिविल लाइंस स्थित वसुंधरा राजे के निवास परहुई। करीब दो घंटे की इस मुलाकात के दौरान दोनों ने प्रदेश में संगठनात्मक परिस्थितियों, सरकार की विफलताओं पर चर्चा की।इन चुनाव में भाजपा के खाते में एक ही सीट आने की संभावना है।

इस एक सीट के लिए सांसद रामदास अग्रवाल, ओंकारसिंह लखावत, प्रदेशाध्क्ष अरुण चतर्वेदी, ललित किशोर चतुर्वेदी, सांसद जसवंतसिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह,पूर्व प्रदेशाध्यक्ष महेश शर्मा, दिल्ली से नजमा हेपतुल्ला समेत सहित कई लोग टिकट के दावेदार हैं। विपक्ष की नेता के नाते पूरा पावर गेम वसुंधराराजे के हाथ में है।

माना जा रहा है कि अभी दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेता कुछ दिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के विश्लेषण में व्यस्त रहेंगे। संभवतः 15 मार्च के बाद ही राज्यसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के नामों पर चर्चा होगी।

रालेगण से लाइव: धोती दागदार हुई तो अनशन पर बैठ गए अन्‍ना

रालेगण-सिद्धि के मंदिर परिसर के अन्ना जी के कक्ष में उनकी टीम के सदस्य पहुंचे, तो वे विश्राम कर रहे थे। अतिथियों को देखा तो उठकर बैठ गए। केजरीवाल ने कहा, अन्ना, तबीयत तो ठीक है न? आप लेटे हुए थे। अन्ना बोले, ठीक है, लेकिन यूपी जाने लायक नहीं है। रिजल्ट यहीं बैठकर देखेंगे-सुनेंगे। खेत की ओर घूमकर आने के बाद थक गया था, इसीलिए लेटा था। कुमार विश्वास ने कहा, वह तो ठीक है अन्ना, लेकिन होली के दिन आप ऐसी उजली धोती और कुरते में कैसे हैं।

अन्ना ने पहले तो नारा लगाया, ‘भारत मात की जै! फिर बोले, अपने लोगों का वस्त्र तो साफ-सुथरा ही रहने का। दाग और दागी चाहिए, तो दिल्ली चले जाओ। कहीं से फ्लाइट पकड़ लो। कुमार विश्वास ने कहा- कल शाम को दिल्ली में ही था। होली की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन में भाग लेने गया था। क्या सुनाया वहां? हम लोगों को भी सुना दो, होली का आनंद आ जाएगा। अन्ना ने आग्रह किया।

पूरी कविता तो याद नहीं है, डायरी भी साथ नहीं है। कुछ पंक्तियां सुनाता हूं :

एक बार ही एक बरस में होली का हुड़दंग मचे

एक बार ही एक बरस में दीपों की होलिका सजे

दिन को होली, रात दीवाली, रोज मनाते हैं नेता

धवल वस्त्र तन पर राजे, पर मन में मुजरा रोज बजे ये दागी हैं। ये रागी हैं, ये बागी हैं, नेता हैं ये बहार में, ये बिहार में, ये तिहाड़ में, नेता हैं पांच बरस में एक बार ही दर्शन देने आते हैं वादों का अंबार लगाते, फिर बिसराते, नेता हैं एक टर्म भी जीत गए तो जीवन भर इतराते हैं नीली-पीली फिल्म देखने, फिर भी न शरमाते हैं शिलाजीत-सेवन से यौवन, स्वर्ग-गमन तक बना रहे

सुप्रीमो की चरण-वंदना, भजन उन्हीं के गाते हैं।

कुमार विश्वास सांस लेने को रुके। अन्ना खुश हो गए, भारत माता की जै! कविता तो ठीक है, मगर केजरीवाल से पूछ लीजिए कि संसद ने विशेषाधिकार-हनन की नोटिस थमा दी तो क्या करोगे। अन्ना हंसे, वंदे मातरम्।

केजरीवाल ने कहा, मैंने तो सरकारी आंकड़े बता दिए हैं। डरिएगा मत विश्वास जी। मैंने तो सोचा था कि इस होली में दिल्ली में रहूं। वहां दिग्विजयी राजा, उनके वेणिग्रंथित सखा, राजा के उत्तराधिकारी आदि के साथ होली खेलूं, फिर उत्तर प्रदेश जाकर मुलायम-कठोर भाई-बहनों को होली का प्रणाम कहूं।

लेकिन इनके तन-बदन पर भ्रष्टाचार के इतने रंग पहले से ही लगे हैं, इसलिए आइडिया ड्रॉप कर दिया। सोच रहा हूं, दोपहर की फ्लाइट से दिल्ली जाकर बेईमानों से घिरे ईमानदार- दुर्बल वृद्ध के चरणों पर अबीर रखकर कहूं कि अगर सचमुच देश की फिक्र है, तो कुछ कीजिए सर! जबानी जमा खर्च से कुछ नहीं होने वाला

विश्वास बोले, आइडिया बढ़िया है। मुझको तो मुंबई के एक कवि-सम्मेलन में आज रात शामिल होना है, अन्यथा मैं भी चलता।

अन्ना के चरणों पर विश्वास और केजरीवाल ने अबीर रखकर प्रणाम किया और बोले, अन्ना हमें आशीर्वाद और बल दीजिए कि भ्रष्टाचार मिटाने में हम सफल हों। होली शुभ हो अन्ना।

अन्ना प्रसन्न हुए, माता की जै। आप अवश्य सफल होंगे। इन लोगोंका नाम ही जबान पर न लाएं। इससे जिह्वा ही नहीं, आत्मा भी कलुषित होती है।

तो हम लोग चले अन्ना, आप आराम कीजिए। अन्ना केजरीवाल उठने ही को थे कि उत्तर भारतीय जैसे दिखने वाले लोगों का एक हुजूम हवा के झोंके की तरह आया और रंग-बिरंगी बाल्टी अन्ना पर उझल दी

अन्ना के वस्त्र भी दागदार हो गए। होली है, कहते हुए वह टोली भागी नहीं, दरवाजे पर बैठकर ढोल-मजीरे पर फाग गाने लगी

होली खेलैं रघुवीरा, अवध में होली खेलैं रघुवीरा। केकरा हाथ कनक-पिचकारी, केकरा हाथे अबीरा! केकरा हाथे अबीरा, अवध में होली खेलैं रघुवीरा। अन्ना बोले, सीबीआई होली खेलने की तैयारी कर रही है और ये यहां हम लोगों पर रंग डालकर दागदार बनाने आए हैं। इनकी साजिश के खिलाफ मैं यहीं आमरण अनशन पर बैठ रहा हूं। अन्ना जमीन पर पलथी लगाकर बैठ गए, भारत माता की जै।

विश्वास और केजरीवाल गिड़िगिड़ाए, ऐसा मत कीजिए अन्ना, आपका स्वास्थ्य इसकी इजाजत नहीं देता। किसी तरह से आप थोड़े-बहुत ठीक होकर लौटे हैं। अन्ना ने कहा, आप लोगों की बात मानकर फिलहाल अनशन त्याग देता हूं। आप लोग रुकिए, संतरे का जूस मंगाता हूं। आप लोग भी पीकर जाएं और मुझको भी अपने हाथों जूस पिला दें, ताकि विधिवत अनशन समाप्त कर सकूं। वंदे मातरम्!

बारात का अयोध्या लौटना और अयोध्या में आनंद


* चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥4॥
भावार्थ:-डंका बजाकर बारात चली। छोटे-बड़े सभी समुदाय प्रसन्न हैं। (रास्ते के) गाँव के स्त्री-पुरुष श्री रामचन्द्रजी को देखकर नेत्रों का फल पाकर सुखी होते हैं॥4॥
दोहा :
* बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत।
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥343॥
भावार्थ:-बीच-बीच में सुंदर मुकाम करती हुई तथा मार्ग के लोगों को सुख देती हुई वह बारात पवित्र दिन में अयोध्यापुरी के समीप आ पहुँची॥343॥
चौपाई :
*हने निसान पनव बर बाजे। भेरि संख धुनि हय गय गाजे॥
झाँझि बिरव डिंडिमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥1॥
भावार्थ:-नगाड़ों पर चोटें पड़ने लगीं, सुंदर ढोल बजने लगे। भेरी और शंख की बड़ी आवाज हो रही है, हाथी-घोड़े गरज रहे हैं। विशेष शब्द करने वाली झाँझें, सुहावनी डफलियाँ तथा रसीले राग से शहनाइयाँ बज रही हैं॥1॥
* पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता॥
निज निज सुंदर सदन सँवारे। हाट बाट चौहटपुर द्वारे॥2॥
भावार्थ:-बारात को आती हुई सुनकर नगर निवासी प्रसन्न हो गए। सबके शरीरों पर पुलकावली छा गई। सबने अपने-अपने सुंदर घरों, बाजारों, गलियों, चौराहों और नगर के द्वारों को सजाया॥2॥
* गलीं सकल अरगजाँ सिंचाईं। जहँ तहँ चौकें चारु पुराईं॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥3॥
भावार्थ:-सारी गलियाँ अरगजे से सिंचाई गईं, जहाँ-तहाँ सुंदर चौक पुराए गए। तोरणों ध्वजा-पताकाओं और मंडपों से बाजार ऐसा सजा कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता॥3॥
* सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदंब तमाला॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥4॥
भावार्थ:-फल सहित सुपारी, केला, आम, मौलसिरी, कदम्ब और तमाल के वृक्ष लगाए गए। वे लगे हुए सुंदर वृक्ष (फलों के भार से) पृथ्वी को छू रहे हैं। उनके मणियों के थाले बड़ी सुंदर कारीगरी से बनाए गए हैं॥4॥
दोहा :
* बिबिध भाँति मंगल कलस गृह गृह रचे सँवारि।
सुर ब्रह्मादि सिहाहिं सब रघुबर पुरी निहारि॥344॥
भावार्थ:-अनेक प्रकार के मंगल-कलश घर-घर सजाकर बनाए गए हैं। श्री रघुनाथजी की पुरी (अयोध्या) को देखकर ब्रह्मा आदि सब देवता सिहाते हैं॥344॥
चौपाई :
* भूप भवनु तेहि अवसर सोहा। रचना देखि मदन मनु मोहा॥
मंगल सगुन मनोहरताई। रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई॥1॥
भावार्थ:-उस समय राजमहल (अत्यन्त) शोभित हो रहा था। उसकी रचना देखकर कामदेव भी मन मोहित हो जाता था। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋद्धि-सिद्धि, सुख, सुहावनी सम्पत्ति॥1॥
* जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धरि धरि दसरथ गृहँ छाए॥
देखन हेतु राम बैदेही। कहहु लालसा होहि न केही॥2॥
भावार्थ:-और सब प्रकार के उत्साह (आनंद) मानो सहज सुंदर शरीर धर-धरकर दशरथजी के घर में छा गए हैं। श्री रामचन्द्रजी और सीताजी के दर्शनों के लिए भला कहिए, किसे लालसा न होगी॥2॥
* जूथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि। निज छबि निदरहिं मदन बिलासिनि॥
सकल सुमंगल सजें आरती। गावहिं जनु बहु बेष भारती॥3॥
भावार्थ:-सुहागिनी स्त्रियाँ झुंड की झुंड मिलकर चलीं, जो अपनी छबि से कामदेव की स्त्री रति का भी निरादर कर रही हैं। सभी सुंदर मंगलद्रव्य एवं आरती सजाए हुए गा रही हैं, मानो सरस्वतीजी ही बहुत से वेष धारण किए गा रही हों॥3॥
* भूपति भवन कोलाहलु होई। जाइ न बरनि समउ सुखु सोई॥
कौसल्यादि राम महतारीं। प्रेमबिबस तन दसा बिसारीं॥4॥
भावार्थ:-राजमहल में (आनंद के मारे) शोर मच रहा है। उस समय का और सुख का वर्णन नहीं किया जा सकता। कौसल्याजी आदि श्री रामचन्द्रजी की सब माताएँ प्रेम के विशेष वश होने से शरीर की सुध भूल गईं॥4॥
दोहा :
* दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारि।
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥345॥
भावार्थ:-गणेशजी और त्रिपुरारि शिवजी का पूजन करके उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत सा दान दिया। वे ऐसी परम प्रसन्न हुईं, मानो अत्यन्त दरिद्री चारों पदार्थ पा गया हो॥345॥
चौपाई :
* मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता॥
राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥
भावार्थ:-सुख और महान आनंद से विवश होने के कारण सब माताओं के शरीर शिथिल हो गए हैं, उनके चरण चलते नहीं हैं। श्री रामचन्द्रजी के दर्शनों के लिए वे अत्यन्त अनुराग में भरकर परछन का सब सामान सजाने लगीं॥1॥
* बिबिध बिधान बाजने बाजे। मंगल मुदित सुमित्राँ साजे॥
हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मंगल मूला॥2॥
भावार्थ:-अनेकों प्रकार के बाजे बजते थे। सुमित्राजी ने आनंदपूर्वक मंगल साज सजाए। हल्दी, दूब, दही, पत्ते, फूल, पान और सुपारी आदि मंगल की मूल वस्तुएँ,॥2॥
* अच्छत अंकुर लोचन लाजा। मंजुल मंजरि तुलसि बिराजा॥
छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥3॥
भावार्थ:-तथा अक्षत (चावल), अँखुए, गोरोचन, लावा और तुलसी की सुंदर मंजरियाँ सुशोभित हैं। नाना रंगों से चित्रित किए हुए सहज सुहावने सुवर्ण के कलश ऐसे मालूम होते हैं, मानो कामदेव के पक्षियों ने घोंसले बनाए हों॥3॥
*सगुन सुगंध न जाहिं बखानी। मंगल सकल सजहिं सब रानी॥
रचीं आरतीं बहतु बिधाना। मुदित करहिं कल मंगल गाना॥4॥
भावार्थ:-शकुन की सुगन्धित वस्तुएँ बखानी नहीं जा सकतीं। सब रानियाँ सम्पूर्ण मंगल साज सज रही हैं। बहुत प्रकार की आरती बनाकर वे आनंदित हुईं सुंदर मंगलगान कर रही हैं॥4॥
दोहा :
* कनक थार भरि मंगलन्हि कमल करन्हि लिएँ मात।
चलीं मुदित परिछनि करन पुलक पल्लवित गात॥346॥
भावार्थ:-सोने के थालों को मांगलिक वस्तुओं से भरकर अपने कमल के समान (कोमल) हाथों में लिए हुए माताएँ आनंदित होकर परछन करने चलीं। उनके शरीर पुलकावली से छा गए हैं॥346॥
चौपाई :
* धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ॥
सुरतरु सुमन माल सुर बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं॥1॥
भावार्थ:-धूप के धुएँ से आकाश ऐसा काला हो गया है मानो सावन के बादल घुमड़-घुमड़कर छा गए हों। देवता कल्पवृक्ष के फूलों की मालाएँ बरसा रहे हैं। वे ऐसी लगती हैं, मानो बगुलों की पाँति मन को (अपनी ओर) खींच रही हो॥1॥
* मंजुल मनिमय बंदनिवारे। मनहुँ पाकरिपु चाप सँवारे॥
प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि। चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि॥2॥
भावार्थ:-सुंदर मणियों से बने बंदनवार ऐसे मालूम होते हैं, मानो इन्द्रधनुष सजाए हों। अटारियों पर सुंदर और चपल स्त्रियाँ प्रकट होती और छिप जाती हैं (आती-जाती हैं), वे ऐसी जान पड़ती हैं, मानो बिजलियाँ चमक रही हों॥2॥
* दुंदुभि धुनि घन गरजनि घोरा। जाचक चातक दादुर मोरा॥
सुर सुगंध सुचि बरषहिं बारी। सुखी सकल ससि पुर नर नारी॥3॥
भावार्थ:-नगाड़ों की ध्वनि मानो बादलों की घोर गर्जना है। याचकगण पपीहे, मेंढक और मोर हैं। देवता पवित्र सुगंध रूपी जल बरसा रहे हैं, जिससे खेती के समान नगर के सब स्त्री-पुरुष सुखी हो रहे हैं॥3॥
* समउ जानि गुर आयसु दीन्हा। पुर प्रबेसु रघुकुलमनि कीन्हा॥
सुमिरि संभु गिरिजा गनराजा। मुदित महीपति सहित समाजा॥4॥
भावार्थ:- (प्रवेश का) समय जानकर गुरु वशिष्ठजी ने आज्ञा दी। तब रघुकुलमणि महाराज दशरथजी ने शिवजी, पार्वतीजी और गणेशजी का स्मरण करके समाज सहित आनंदित होकर नगर में प्रवेश किया॥4॥
* होहिं सगुन बरषहिं सुमन सुर दुंदभीं बजाइ।
बिबुध बधू नाचहिं मुदित मंजुल मंगल गाइ॥347॥
भावार्थ:-शकुन हो रहे हैं, देवता दुन्दुभी बजा-बजाकर फूल बरसा रहे हैं। देवताओं की स्त्रियाँ आनंदित होकर सुंदर मंगल गीत गा-गाकर नाच रही हैं॥347॥
चौपाई :
* मागध सूत बंदि नट नागर। गावहिं जसु तिहु लोक उजागर॥
जय धुनि बिमल बेद बर बानी। दस दिसि सुनिअ सुमंगल सानी॥1॥
भावार्थ:-मागध, सूत, भाट और चतुर नट तीनों लोकों के उजागर (सबको प्रकाश देने वाले परम प्रकाश स्वरूप) श्री रामचन्द्रजी का यश गा रहे हैं। जय ध्वनि तथा वेद की निर्मल श्रेष्ठ वाणी सुंदर मंगल से सनी हुई दसों दिशाओं में सुनाई पड़ रही है॥1॥
* बिपुल बाज ने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे॥
बने बराती बरनि न जाहीं। महा मुदित मन सुख न समाहीं॥2॥
भावार्थ:-बहुत से बाजे बजने लगे। आकाश में देवता और नगर में लोग सब प्रेम में मग्न हैं। बाराती ऐसे बने-ठने हैं कि उनका वर्णन नहीं हो सकता। परम आनंदित हैं, सुख उनके मन में समाता नहीं है॥2॥
* पुरबासिन्ह तब राय जोहारे। देखत रामहि भए सुखारे॥
करहिं निछावरि मनिगन चीरा। बारि बिलोचन पुलक सरीरा॥3॥
भावार्थ:- तब अयोध्यावसियों ने राजा को जोहार (वंदना) की। श्री रामचन्द्रजी को देखते ही वे सुखी हो गए। सब मणियाँ और वस्त्र निछावर कर रहे हैं। नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं का) जल भरा है और शरीर पुलकित हैं॥3॥।
* आरति करहिं मुदित पुर नारी। हरषहिं निरखि कुअँर बर चारी॥
सिबिका सुभग ओहार उघारी। देखि दुलहिनिन्ह होहिं सुखारी॥4॥
भावार्थ:-नगर की स्त्रियाँ आनंदित होकर आरती कर रही हैं और सुंदर चारों कुमारों को देखकर हर्षित हो रही हैं। पालकियों के सुंदर परदे हटा-हटाकर वे दुलहिनों को देखकर सुखी होती हैं॥4॥
दोहा :
* एहि बिधि सबही देत सुखु आए राजदुआर।
मुदित मातु परिछनि करहिं बधुन्ह समेत कुमार॥348॥
भावार्थ:-इस प्रकार सबको सुख देते हुए राजद्वार पर आए। माताएँ आनंदित होकर बहुओं सहित कुमारों का परछन कर रही हैं॥348॥
चौपाई :
* करहिं आरती बारहिं बारा। प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा॥
भूषन मनि पट नाना जाती। करहिं निछावरि अगनित भाँती॥1॥
भावार्थ:-वे बार-बार आरती कर रही हैं। उस प्रेम और महान आनंद को कौन कह सकता है! अनेकों प्रकार के आभूषण, रत्न और वस्त्र तथा अगणित प्रकार की अन्य वस्तुएँ निछावर कर रही हैं॥1॥
* बधुन्ह समेत देखि सुत चारी। परमानंद मगन महतारी॥
पुनि पुनि सीय राम छबि देखी। मुदित सफल जग जीवन लेखी॥2॥
भावार्थ:-बहुओं सहित चारों पुत्रों को देखकर माताएँ परमानंद में मग्न हो गईं। सीताजी और श्री रामजी की छबि को बार-बार देखकर वे जगत में अपने जीवन को सफल मानकर आनंदित हो रही हैं॥2॥
* सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही। गान करहिं निज सुकृत सराही॥
बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा। नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा॥3॥
भावार्थ:-सखियाँ सीताजी के मुख को बार-बार देखकर अपने पुण्यों की सराहना करती हुई गान कर रही हैं। देवता क्षण-क्षण में फूल बरसाते, नाचते, गाते तथा अपनी-अपनी सेवा समर्पण करते हैं॥3॥
* देखि मनोहर चारिउ जोरीं। सारद उपमा सकल ढँढोरीं॥
देत न बनहिं निपट लघु लागीं। एकटक रहीं रूप अनुरागीं॥4॥
भावार्थ:-चारों मनोहर जोड़ियों को देखकर सरस्वती ने सारी उपमाओं को खोज डाला, पर कोई उपमा देते नहीं बनी, क्योंकि उन्हें सभी बिलकुल तुच्छ जान पड़ीं। तब हारकर वे भी श्री रामजी के रूप में अनुरक्त होकर एकटक देखती रह गईं॥4॥
दोहा :
* निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत।
बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत॥349॥
भावार्थ:-वेद की विधि और कुल की रीति करके अर्घ्य-पाँवड़े देती हुई बहुओं समेत सब पुत्रों को परछन करके माताएँ महल में लिवा चलीं॥349॥
चौपाई :
* चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ बनाए॥
तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे। सादर पाय पुनीत पखारे॥1॥
भावार्थ:-स्वाभाविक ही सुंदर चार सिंहासन थे, जो मानो कामदेव ने ही अपने हाथ से बनाए थे। उन पर माताओं ने राजकुमारियों और राजकुमारों को बैठाया और आदर के साथ उनके पवित्र चरण धोए॥1॥
* धूप दीप नैबेद बेद बिधि। पूजे बर दुलहिनि मंगल निधि॥
बारहिं बार आरती करहीं। ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं॥2॥
भावार्थ:-फिर वेद की विधि के अनुसार मंगल के निधान दूलह की दुलहिनों की धूप, दीप और नैवेद्य आदि के द्वारा पूजा की। माताएँ बारम्बार आरती कर रही हैं और वर-वधुओं के सिरों पर सुंदर पंखे तथा चँवर ढल रहे हैं॥2॥
* बस्तु अनेक निछावरि होहीं। भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं॥
पावा परम तत्व जनु जोगीं। अमृतु लहेउ जनु संतत रोगीं॥3॥
भावार्थ:-अनेकों वस्तुएँ निछावर हो रही हैं, सभी माताएँ आनंद से भरी हुई ऐसी सुशोभित हो रही हैं मानो योगी ने परम तत्व को प्राप्त कर लिया। सदा के रोगी ने मानो अमृत पा लिया॥3॥
* जनम रंक जनु पारस पावा। अंधहि लोचन लाभु सुहावा॥
मूक बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सूर जय पाई॥4॥
भावार्थ:-जन्म का दरिद्री मानो पारस पा गया। अंधे को सुंदर नेत्रों का लाभ हुआ। गूँगे के मुख में मानो सरस्वती आ विराजीं और शूरवीर ने मानो युद्ध में विजय पा ली॥4॥
दोहा :
* एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु।
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु॥350 क॥
भावार्थ:-इन सुखों से भी सौ करोड़ गुना बढ़कर आनंद माताएँ पा रही हैं, क्योंकि रघुकुल के चंद्रमा श्री रामजी विवाह कर के भाइयों सहित घर आए हैं॥350 (क)॥
* लोक रीति जननीं करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं।
मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसुकाहिं॥350 ख॥
भावार्थ:-माताएँ लोकरीति करती हैं और दूलह-दुलहिनें सकुचाते हैं। इस महान आनंद और विनोद को देखकर श्री रामचन्द्रजी मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं॥350 (ख)॥
चौपाई :
* देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥
सबहि बंदि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥
भावार्थ:-मन की सभी वासनाएँ पूरी हुई जानकर देवता और पितरों का भलीभाँति पूजन किया। सबकी वंदना करके माताएँ यही वरदान माँगती हैं कि भाइयों सहित श्री रामजी का कल्याण हो॥1॥
* अंतरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अंचल भरि लेहीं॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥2॥
भावार्थ:-देवता छिपे हुए (अन्तरिक्ष से) आशीर्वाद दे रहे हैं और माताएँ आनन्दित हो आँचल भरकर ले रही हैं। तदनन्तर राजा ने बारातियों को बुलवा लिया और उन्हें सवारियाँ, वस्त्र, मणि (रत्न) और आभूषणादि दिए॥2॥
* आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥
भावार्थ:-आज्ञा पाकर, श्री रामजी को हृदय में रखकर वे सब आनंदित होकर अपने-अपने घर गए। नगर के समस्त स्त्री-पुरुषों को राजा ने कपड़े और गहने पहनाए। घर-घर बधावे बजने लगे॥3॥
* जाचक जन जाचहिं जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥4॥
भावार्थ:-याचक लोग जो-जो माँगते हैं, विशेष प्रसन्न होकर राजा उन्हें वही-वही देते हैं। सम्पूर्ण सेवकों और बाजे वालों को राजा ने नाना प्रकार के दान और सम्मान से सन्तुष्ट किया॥4॥
दोहा :
* देहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ।
तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥351॥
भावार्थ:-सब जोहार (वंदन) करके आशीष देते हैं और गुण समूहों की कथा गाते हैं। तब गुरु और ब्राह्मणों सहित राजा दशरथजी ने महल में गमन किया॥351॥
चौपाई :
* जो बसिष्ट अनुसासन दीन्ही। लोक बेद बिधि सादर कीन्ही॥
भूसुर भीर देखि सब रानी। सादर उठीं भाग्य बड़ जानी॥1॥
भावार्थ:- वशिष्ठजी ने जो आज्ञा दी, उसे लोक और वेद की विधि के अनुसार राजा ने आदरपूर्वक किया। ब्राह्मणों की भीड़ देखकर अपना बड़ा भाग्य जानकर सब रानियाँ आदर के साथ उठीं॥1॥
* पाय पखारि सकल अन्हवाए। पूजि भली बिधि भूप जेवाँए॥
आदर दान प्रेम परिपोषे। देत असीस चले मन तोषे॥2॥
भावार्थ:-चरण धोकर उन्होंने सबको स्नान कराया और राजा ने भली-भाँति पूजन करके उन्हें भोजन कराया! आदर, दान और प्रेम से पुष्ट हुए वे संतुष्ट मन से आशीर्वाद देते हुए चले॥2॥
* बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा। नाथ मोहि सम धन्य न दूजा॥
कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी। रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी॥3॥
भावार्थ:-राजा ने गाधि पुत्र विश्वामित्रजी की बहुत तरह से पूजा की और कहा- हे नाथ! मेरे समान धन्य दूसरा कोई नहीं है। राजा ने उनकी बहुत प्रशंसा की और रानियों सहित उनकी चरणधूलि को ग्रहण किया॥3॥
* भीतर भवन दीन्ह बर बासू। मन जोगवत रह नृपु रनिवासू॥
पूजे गुर पद कमल बहोरी। कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी॥4॥
भावार्थ:-उन्हें महल के भीतर ठहरने को उत्तम स्थान दिया, जिसमें राजा और सब रनिवास उनका मन जोहता रहे (अर्थात जिसमें राजा और महल की सारी रानियाँ स्वयं उनकी इच्छानुसार उनके आराम की ओर दृष्टि रख सकें) फिर राजा ने गुरु वशिष्ठजी के चरणकमलों की पूजा और विनती की। उनके हृदय में कम प्रीति न थी (अर्थात बहुत प्रीति थी)॥4॥
दोहा :
* बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु।
पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु॥352॥
भावार्थ:-बहुओं सहित सब राजकुमार और सब रानियों समेत राजा बार-बार गुरुजी के चरणों की वंदना करते हैं और मुनीश्वर आशीर्वाद देते हैं॥352॥
चौपाई :
* बिनय कीन्हि उर अति अनुरागें। सुत संपदा राखि सब आगें॥
नेगु मागि मुनिनायक लीन्हा। आसिरबादु बहुत बिधि दीन्हा॥1॥
भावार्थ:-राजा ने अत्यन्त प्रेमपूर्ण हृदय से पुत्रों को और सारी सम्पत्ति को सामने रखकर (उन्हें स्वीकार करने के लिए) विनती की, परन्तु मुनिराज ने (पुरोहित के नाते) केवल अपना नेग माँग लिया और बहुत तरह से आशीर्वाद दिया॥1॥
* उर धरि रामहि सीय समेता। हरषि कीन्ह गुर गवनु निकेता॥
बिप्रबधू सब भूप बोलाईं। चैल चारु भूषन पहिराईं॥1॥
भावार्थ:-फिर सीताजी सहित श्री रामचन्द्रजी को हृदय में रखकर गुरु वशिष्ठजी हर्षित होकर अपने स्थान को गए। राजा ने सब ब्राह्मणों की स्त्रियों को बुलवाया और उन्हें सुंदर वस्त्र तथा आभूषण पहनाए॥2॥
* बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्हीं। रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्हीं॥
नेगी नेग जोग जब लेहीं। रुचि अनुरूप भूपमनि देहीं॥3॥
भावार्थ:-फिर अब सुआसिनियों को (नगर की सौभाग्यवती बहिन, बेटी, भानजी आदि को) बुलवा लिया और उनकी रुचि समझकर (उसी के अनुसार) उन्हें पहिरावनी दी। नेगी लोग सब अपना-अपना नेग-जोग लेते और राजाओं के शिरोमणि दशरथजी उनकी इच्छा के अनुसार देते हैं॥3॥
* प्रिय पाहुने पूज्य जे जाने। भूपति भली भाँति सनमाने॥
देव देखि रघुबीर बिबाहू। बरषि प्रसून प्रसंसि उछाहू॥4॥
भावार्थ:-जिन मेहमानों को प्रिय और पूजनीय जाना, उनका राजा ने भलीभाँति सम्मान किया। देवगण श्री रघुनाथजी का विवाह देखकर, उत्सव की प्रशंसा करके फूल बरसाते हुए-॥4॥
दोहा :
* चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाइ।
कहत परसपर राम जसु प्रेम न हृदयँ समाइ॥353॥
भावार्थ:-नगाड़े बजाकर और (परम) सुख प्राप्त कर अपने-अपने लोकों को चले। वे एक-दूसरे से श्री रामजी का यश कहते जाते हैं। हृदय में प्रेम समाता नहीं है॥353॥
चौपाई :
* सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू॥
जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे। सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे॥1॥
भावार्थ:-सब प्रकार से सबका प्रेमपूर्वक भली-भाँति आदर-सत्कार कर लेने पर राजा दशरथजी के हृदय में पूर्ण उत्साह (आनंद) भर गया। जहाँ रनिवास था, वे वहाँ पधारे और बहुओं समेत उन्होंने कुमारों को देखा॥1॥
* लिए गोद करि मोद समेता। को कहि सकइ भयउ सुखु जेता॥
बधू सप्रेम गोद बैठारीं। बार बार हियँ हरषि दुलारीं॥2॥
भावार्थ:-राजा ने आनंद सहित पुत्रों को गोद में ले लिया। उस समय राजा को जितना सुख हुआ उसे कौन कह सकता है? फिर पुत्रवधुओं को प्रेम सहित गोदी में बैठाकर, बार-बार हृदय में हर्षित होकर उन्होंने उनका दुलार (लाड़-चाव) किया॥2॥
* देखि समाजु मुदित रनिवासू। सब कें उर अनंद कियो बासू॥
कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू। सुनि सुनि हरषु होत सब काहू॥3॥
भावार्थ:-यह समाज (समारोह) देखकर रनिवास प्रसन्न हो गया। सबके हृदय में आनंद ने निवास कर लिया। तब राजा ने जिस तरह विवाह हुआ था, वह सब कहा। उसे सुन-सुनकर सब किसी को हर्ष होता है॥3॥
* जनक राज गुन सीलु बड़ाई। प्रीति रीति संपदा सुहाई॥
बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी॥4॥
भावार्थ:-राजा जनक के गुण, शील, महत्व, प्रीति की रीति और सुहावनी सम्पत्ति का वर्णन राजा ने भाट की तरह बहुत प्रकार से किया। जनकजी की करनी सुनकर सब रानियाँ बहुत प्रसन्न हुईं॥4॥
दोहा :
* सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति।
भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति॥।354॥
भावार्थ:-पुत्रों सहित स्नान करके राजा ने ब्राह्मण, गुरु और कुटुम्बियों को बुलाकर अनेक प्रकार के भोजन किए। (यह सब करते-करते) पाँच घड़ी रात बीत गई॥354॥
चौपाई :
* मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥1॥
भावार्थ:-सुंदर स्त्रियाँ मंगलगान कर रही हैं। वह रात्रि सुख की मूल और मनोहारिणी हो गई। सबने आचमन करके पान खाए और फूलों की माला, सुगंधित द्रव्य आदि से विभूषित होकर सब शोभा से छा गए॥1॥
* रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई॥
प्रेम प्रमोदु बिनोदु बड़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥2॥
भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी को देखकर और आज्ञा पाकर सब सिर नवाकर अपने-अपने घर को चले। वहाँ के प्रेम, आनंद, विनोद, महत्व, समय, समाज और मनोहरता को-॥2॥
* कहि न सकहिं सतसारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू॥
सो मैं कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी॥3॥
भावार्थ:-सैकड़ों सरस्वती, शेष, वेद, ब्रह्मा, महादेवजी और गणेशजी भी नहीं कह सकते। फिर भला मैं उसे किस प्रकार से बखानकर कहूँ? कहीं केंचुआ भी धरती को सिर पर ले सकता है?॥3॥
* नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाईं रानी॥
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई॥4॥
भावार्थ:-राजा ने सबका सब प्रकार से सम्मान करके, कोमल वचन कहकर रानियों को बुलाया और कहा- बहुएँ अभी बच्ची हैं, पराए घर आई हैं। इनको इस तरह से रखना जैसे नेत्रों को पलकें रखती हैं (जैसे पलकें नेत्रों की सब प्रकार से रक्षा करती हैं और उन्हें सुख पहुँचाती हैं, वैसे ही इनको सुख पहुँचाना)॥4॥
दोहा :
* लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ॥355॥
भावार्थ:-लड़के थके हुए नींद के वश हो रहे हैं, इन्हें ले जाकर शयन कराओ। ऐसा कहकर राजा श्री रामचन्द्रजी के चरणों में मन लगाकर विश्राम भवन में चले गए॥355॥
चौपाई :
* भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग डसाए॥
सुभग सुरभि पय फेन समाना। कोमल कलित सुपेतीं नाना॥1॥
भावार्थ:-राजा के स्वाभव से ही सुंदर वचन सुनकर (रानियों ने) मणियों से जड़े सुवर्ण के पलँग बिछवाए। (गद्दों पर) गो के फेन के समान सुंदर एवं कोमल अनेकों सफेद चादरें बिछाईं॥1॥
* उपबरहन बर बरनि न जाहीं। स्रग सुगंध मनिमंदिर माहीं॥
रतनदीप सुठि चारु चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहिं जोवा॥2॥
भावार्थ:-सुंदर तकियों का वर्णन नहीं किया जा सकता। मणियों के मंदिर में फूलों की मालाएँ और सुगंध द्रव्य सजे हैं। सुंदर रत्नों के दीपकों और सुंदर चँदोवे की शोभा कहते नहीं बनती। जिसने उन्हें देखा हो, वही जान सकता है॥2॥
* सेज रुचिर रचि रामु उठाए। प्रेम समेत पलँग पौढ़ाए॥
अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही। निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही॥3॥
भावार्थ:-इस प्रकार सुंदर शय्या सजाकर (माताओं ने) श्री रामचन्द्रजी को उठाया और प्रेम सहित पलँग पर पौढ़ाया। श्री रामजी ने बार-बार भाइयों को आज्ञा दी। तब वे भी अपनी-अपनी शय्याओं पर सो गए॥3॥
* देखि स्याम मृदु मंजुल गाता। कहहिं सप्रेम बचन सब माता॥
मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का मारी॥4॥
भावार्थ:-श्री रामजी के साँवले सुंदर कोमल अँगों को देखकर सब माताएँ प्रेम सहित वचन कह रही हैं- हे तात! मार्ग में जाते हुए तुमने बड़ी भयावनी ताड़का राक्षसी को किस प्रकार से मारा?॥4॥
दोहा :
* घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु।
मारे सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु॥356॥
भावार्थ:-बड़े भयानक राक्षस, जो विकट योद्धा थे और जो युद्ध में किसी को कुछ नहीं गिनते थे, उन दुष्ट मारीच और सुबाहु को सहायकों सहित तुमने कैसे मारा?॥356॥
चौपाई :
* मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी॥
मख रखवारी करि दुहुँ भाईं। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाईं॥1॥
भावार्थ:-हे तात! मैं बलैया लेती हूँ, मुनि की कृपा से ही ईश्वर ने तुम्हारी बहुत सी बलाओं को टाल दिया। दोनों भाइयों ने यज्ञ की रखवाली करके गुरुजी के प्रसाद से सब विद्याएँ पाईं॥1॥
* मुनितिय तरी लगत पग धूरी। कीरति रही भुवन भरि पूरी॥
कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा॥2॥
भावार्थ:-चरणों की धूलि लगते ही मुनि पत्नी अहल्या तर गई। विश्वभर में यह कीर्ति पूर्ण रीति से व्याप्त हो गई। कच्छप की पीठ, वज्र और पर्वत से भी कठोर शिवजी के धनुष को राजाओं के समाज में तुमने तोड़ दिया!॥2॥
* बिस्व बिजय जसु जानकि पाई। आए भवन ब्याहि सब भाई॥
सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे॥3॥
भावार्थ:-विश्वविजय के यश और जानकी को पाया और सब भाइयों को ब्याहकर घर आए। तुम्हारे सभी कर्म अमानुषी हैं (मनुष्य की शक्ति के बाहर हैं), जिन्हें केवल विश्वामित्रजी की कृपा ने सुधारा है (सम्पन्न किया है)॥3॥
* आजु सुफल जग जनमु हमारा। देखि तात बिधुबदन तुम्हारा॥
जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें॥4॥
भावार्थ:-हे तात! तुम्हारा चन्द्रमुख देखकर आज हमारा जगत में जन्म लेना सफल हुआ। तुमको बिना देखे जो दिन बीते हैं, उनको ब्रह्मा गिनती में न लावें (हमारी आयु में शामिल न करें)॥4॥
दोहा :
* राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन।
सुमिरि संभु गुरु बिप्र पद किए नीदबस नैन॥357॥
भावार्थ:-विनय भरे उत्तम वचन कहकर श्री रामचन्द्रजी ने सब माताओं को संतुष्ट किया। फिर शिवजी, गुरु और ब्राह्मणों के चरणों का स्मरण कर नेत्रों को नींद के वश किया। (अर्थात वे सो रहे)॥357॥
चौपाई :
* नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥
घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥1॥
भावार्थ:-नींद में भी उनका अत्यन्त सलोना मुखड़ा ऐसा सोह रहा था, मानो संध्या के समय का लाल कमल सोह रहा हो। स्त्रियाँ घर-घर जागरण कर रही हैं और आपस में (एक-दूसरी को) मंगलमयी गालियाँ दे रही हैं॥1॥
* पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी॥
सुंदर बधुन्ह सासु लै सोईं। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोईं॥2॥
भावार्थ:-रानियाँ कहती हैं- हे सजनी! देखो, (आज) रात्रि की कैसी शोभा है, जिससे अयोध्यापुरी विशेष शोभित हो रही है! (यों कहती हुई) सासुएँ सुंदर बहुओं को लेकर सो गईं, मानो सर्पों ने अपने सिर की मणियों को हृदय में छिपा लिया है॥2॥
* प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन लागे॥
बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥3॥
भावार्थ:-प्रातःकाल पवित्र ब्रह्म मुहूर्त में प्रभु जागे। मुर्गे सुंदर बोलने लगे। भाट और मागधों ने गुणों का गान किया तथा नगर के लोग द्वार पर जोहार करने को आए॥3॥
* बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे॥4॥
भावार्थ:-ब्राह्मणों, देवताओं, गुरु, पिता और माताओं की वंदना करके आशीर्वाद पाकर सब भाई प्रसन्न हुए। माताओं ने आदर के साथ उनके मुखों को देखा। फिर वे राजा के साथ दरवाजे (बाहर) पधारे॥4॥
दोहा :
* कीन्हि सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ।
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥358॥
भावार्थ:-स्वभाव से ही पवित्र चारों भाइयों ने सब शौचादि से निवृत्त होकर पवित्र सरयू नदी में स्नान किया और प्रातःक्रिया (संध्या वंदनादि) करके वे पिता के पास आए॥358॥

नवाह्नपारायण, तीसरा विश्राम
चौपाई :
* भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठे हरषि रजायसु पाई॥
देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥1॥
भावार्थ:-राजा ने देखते ही उन्हें हृदय से लगा लिया। तदनन्तर वे आज्ञा पाकर हर्षित होकर बैठ गए। श्री रामचन्द्रजी के दर्शन कर और नेत्रों के लाभ की बस यही सीमा है, ऐसा अनुमान कर सारी सभा शीतल हो गई। (अर्थात सबके तीनों प्रकार के ताप सदा के लिए मिट गए)॥1॥
* पुनि बसिष्टु मुनि कौसिकु आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए॥
सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥2॥
भावार्थ:-फिर मुनि वशिष्ठजी और विश्वामित्रजी आए। राजा ने उनको सुंदर आसनों पर बैठाया और पुत्रों समेत उनकी पूजा करके उनके चरणों लगे। दोनों गुरु श्री रामजी को देखकर प्रेम में मुग्ध हो गए॥2॥
* कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा॥
मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ठ बिपुल बिधि बरनी॥3॥
भावार्थ:-वशिष्ठजी धर्म के इतिहास कह रहे हैं और राजा रनिवास सहित सुन रहे हैं, जो मुनियों के मन को भी अगम्य है, ऐसी विश्वामित्रजी की करनी को वशिष्ठजी ने आनंदित होकर बहुत प्रकार से वर्णन किया॥3॥
* बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची॥
सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥4॥
भावार्थ:-वामदेवजी बोले- ये सब बातें सत्य हैं। विश्वामित्रजी की सुंदर कीर्ति तीनों लोकों में छाई हुई है। यह सुनकर सब किसी को आनंद हुआ। श्री राम-लक्ष्मण के हृदय में अधिक उत्साह (आनंद) हुआ॥4॥
दोहा :
* मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति।
उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति॥359॥
भावार्थ:-नित्य ही मंगल, आनंद और उत्सव होते हैं, इस तरह आनंद में दिन बीतते जाते हैं। अयोध्या आनंद से भरकर उमड़ पड़ी, आनंद की अधिकता अधिक-अधिक बढ़ती ही जा रही है॥359॥
चौपाई :
* सुदिन सोधि कल कंकन छोरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे॥
नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं॥1॥
भावार्थ:-अच्छा दिन (शुभ मुहूर्त) शोधकर सुंदर कंकण खोले गए। मंगल, आनंद और विनोद कुछ कम नहीं हुए (अर्थात बहुत हुए)। इस प्रकार नित्य नए सुख को देखकर देवता सिहाते हैं और अयोध्या में जन्म पाने के लिए ब्रह्माजी से याचना करते हैं॥1॥
* बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं॥
दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ॥2॥
भावार्थ:-विश्वामित्रजी नित्य ही चलना (अपने आश्रम जाना) चाहते हैं, पर रामचन्द्रजी के स्नेह और विनयवश रह जाते हैं। दिनोंदिन राजा का सौ गुना भाव (प्रेम) देखकर महामुनिराज विश्वामित्रजी उनकी सराहना करते हैं॥2॥
* मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी॥3॥
भावार्थ:-अंत में जब विश्वामित्रजी ने विदा माँगी, तब राजा प्रेममग्न हो गए और पुत्रों सहित आगे खड़े हो गए। (वे बोले-) हे नाथ! यह सारी सम्पदा आपकी है। मैं तो स्त्री-पुत्रों सहित आपका सेवक हूँ॥3॥
* करब सदा लरिकन्ह पर छोहू। दरसनु देत रहब मुनि मोहू॥
अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी॥4॥
भावार्थ:-हे मुनि! लड़कों पर सदा स्नेह करते रहिएगा और मुझे भी दर्शन देते रहिएगा। ऐसा कहकर पुत्रों और रानियों सहित राजा दशरथजी विश्वामित्रजी के चरणों पर गिर पड़े, (प्रेमविह्वल हो जाने के कारण) उनके मुँह से बात नहीं निकलती॥4॥
* दीन्हि असीस बिप्र बहु भाँति। चले न प्रीति रीति कहि जाती॥
रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई॥5॥
भावार्थ:-ब्राह्मण विश्वमित्रजी ने बहुत प्रकार से आशीर्वाद दिए और वे चल पड़े। प्रीति की रीति कही नहीं जीती। सब भाइयों को साथ लेकर श्री रामजी प्रेम के साथ उन्हें पहुँचाकर और आज्ञा पाकर लौटे॥5॥

कुरान का संदेश

केवल एक दिन महिला दिवस से महिलाओं को इन्साफ नहीं मिलता है दोस्तों हर रोज़ महिला दिवस हो और माँ ..बेटी..बहन..पत्नी को इन्साफ मिले तो देश सुधार जाएगा

जी हाँ दोस्तों यह मेरा भारत महान है ..यहाँ नारी का सम्मान है ,,नारी वन्दनीय पूजनीय है ..यहाँ कहा जाता है के पत्नी अर्धांग्नी होती होती है ..यहाँ कहावत है के माँ के पैर के नींचे जन्नत होती है ..कहा जाता है के त्रिया चरित्रं अहो पुरुषम भाग्यम ........कुरान मजीद हो ..गीता हो ..रामायण हो ..महाभारत हो ..हदीस हो ..सुन्नत हो ..बाइबिल हो ..गुरुवाणी हो ..तोरेत हो ..इंजील हो जो भी मज्हाबी किताबें है सभी में महिलाओं का महत्वपूर्ण दर्जा दिया है ..लेकिन अधर्म की हालत देखो ..धर्म के नाम पर ओरतों पर ज़ुल्म होते हैं ..और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मामले में लगातार चर्चाओं के बाद अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष और महिला दिवस बना कर सरकारें ..समान सेवी संगठन ..मिडिया अपने कर्तव्यों की इतिशिरी करती है ...क्या आप को पता है के न्यूयार्क ..कोपेन्हेंगन और दूसरी जगहों पर महिला कल्याण मामले में कितनी चर्चा हुई है और भारत में महिलाओं के हालातों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कितनी नाराज़गी जताई गयी है ....दोस्तों यह वोह देश है जहाँ महिला की गोद में बच्चा पल बढ़ कर बढा होता है संस्कार सीखता है ..यह वोह देश है के यहाँ इसी महिला को रुलाया जाता है ..सरे आम छेड़ा जाता है ..इज्ज़त तार तार की जाती है ..गर्भ में ही बच्चियों को मार दिया जाता है ..लडकियों को दुसरे दर्जे का नागरिक बना कर सुलूक किया जाता है यह वोह देश है जहां प्रधानमन्त्री .राष्ट्रपति और सभी शीर्ष पदों पर महिलाएं हैं लेकिन अफ़सोस की बात है के संसद में महिलाओं के आरक्षण के बिल को कोई पारित नहीं करा सका है ....महिलाओं के लियें देश में कहने को तो हजारों हजार कल्याणकारी योजनायें है आयोग है ..महिला विकास अभिकरण है जन्म के पूर्व ही महिला को गर्भ में जीने का अधिकार दिया है ..उसे आंगन बढ़ी के जरिये दूध दलिया खिलाने का प्रावधान है लेकिन हम और आप सभी जानते है के नेता महिला कल्याण के लियें कितने गंभीर है ...हमारे देश में किसी भी महिला के कल्याण के नाम पर आंसू तो बहाए जाते है ..लेकिन जब भंवरी देवी के योन शोषण के बाद राजस्थान में मंत्री और विधायक द्वारा हत्या की जाती है ..तो कोंग्रेस ..भाजपा सभी पार्टियाँ एक हो जाती है महिला आयोग चुप्पी साध लेता है ..महिला नेता वसुंधरा की जुबान नहीं खुलती कोंग्रेस की महिला नेता खामोश रहती है क्या यही महिलाओं को न्याय देने का तरीका है ......केवल एक दिन महिला वर्ष बना कर लाखों करोड़ों के सरकारी विज्ञापन छपवा कर क्या महिला कल्याण की बात की जा सकती है नहीं ना फिर यह तमाशा मेरे इस देश में होते हुए आप क्यूँ देख रहे है ...आप जानते है महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लियें देश में सेकड़ों कानून है लेकिन उन्हें समयबद्ध न्याय दिलाने के लियें आज भी पर्याप्त अदालतें ..अधिकारी ..समितियां नहीं है ...घरेलू हिंसा कानून है लेकिन उसके लियें राजस्थान सहित किसी भी राज्य में प्रथक से नियम नहीं बनाये गये है ...देश में महिलाओं को जल्दी न्याय मिले ..थाना स्तर पर या प्रोटेक्शन अधिकारी खुद महिलाओं को बिना किसी विधिक शुल्क के इन्साफ दिलवाए कानून में लिखा है लेकिन ऐसा पांच सालों में एक भी महिला को न्याय नहीं मिला है ..कहने को तो महिला कल्याण ..सुरक्षा के नाम पर निजी स्नव्य्म सेवी संस्थाएं करोड़ों अरबों रूपये पानी की तरह बहा रहे है या अपना रोज़गार चला रहे है लेकिन जनाब महिलाओं को क्या कुछ दिया है आप और हम सब जानते हैं ..इसलियें दोस्तों हम चिंता नहीं चिंतन करे ,,मन से मनन करे सोचें और जो कानून महिलाओं के लियें बन गये है उन्हें पूरा नहीं तो काम से काम पचास फीसदी तो लागू करवा दें केवल एक दिन महिला को सुलतान बना कर पुरे तीन सो चोसथ दिन उस पर अन्याय हो क्या यह इंसाफ की बात है ..बसों में एक दिन मुफ्त यात्रा क्या तमाशा नहीं ...राजनितिक आधार पर महिला आयोग की नियुक्तिया ..तलाकशुदा ..विधवाओं को नोकरी देने के मामले में अडंगे क्या महिलाओं के साथ अन्याय नहीं है अगर आप इसे सही मानते है ..अगर आप मानते है के महिलाओं के कल्याण के लियें सरकारें गंबीर नहीं है तो जनाब उठिए कलम उठाइए .सडकों पर आइये और अपनी माँ बहनों को सुरक्षित कीजिये ..वोह महिलाएं जो अपने जिस्म ..बेच रही है वोह महिलाएं जो नंगापन देखा कर रूपये कमा रही है उन्हें भी घेरें उन्हें भी उनकी ओकात बताएं तहज़ीब सिखाये लेकिन साथ साथ उनमे जो पीड़ित हैं उन्हें इंसाफ भी दिलवाएं ..क्योंकि महिला जब तक आगे नहीं बढ़ेगी ..महिला सुरक्षित नहीं रहेगी तब तक देश का विकास नहीं हो सकेगा इसलियें महिला सुरक्षित तो देश सुरक्षित क्योंकि हमारे देश का भविष्य महिलाओं की ही गोद में पल बढ़ कर संस्कार सीखता है ..पोषक तत्व खा कर बहादुर बनता है ..और फिर महिला के साथ ही कंधे से कन्धा मिलकर अपनी जिन्वन संगिनी के साथ देश के वर्तमान को सूधारने में लगता है इसलियें माँ हो चाहे बहन हो चाहे पत्नी हो हर रिश्ते में ओरत है और यह सभी रिश्ते हमारे देश ..हमारी संस्क्रती के लियें ओरत को इतना आवश्यक बना देते है के देश के निर्माण के लियें महिलाओं की सुरक्षा उनकी सुक्ख शांति उनका मान सम्मान ज़रूरी है इसलियें देश को बचाना है ..हमारी संस्क्रती को बचाना है ..देश को मजबूत और विकसित करना है तो महिला वर्ष साल में एक बार नहीं रोज़ महिला देवास मनाओ महिलाओं को उनका माँ सम्मान साल में एक बार नहीं रोज़ दोगे तभी तुम्हे सुकून ..मान सम्मान और एकता अखंडता वाला भारत मिलेगा ऐसा तभी सम्भव है जब हम माँ को माँ...बहन को बहन और पत्नी को पत्नी समझ कर उनके अधिकार दें उन्हें भटकने पर उनके जिस्म फरोशी के धंधे में जाने पर उनके अश्लील विज्ञापन देकर मर्दों की भावनाएं भडकाने पर हम उनके काम भी उमेठे तो उनके अधिकार भी दें तब इंसाफ सम्भव है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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