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10 मार्च 2012

देश में धर्म के नाम पर पनप रहे अधर्म के व्यापार को रोकने के लियें प्रथक से धर्म मंत्रालय का गठन कर इस मामले में सख्ती की जरूरत है .

देश में धर्म के नाम पर पनप रहे अधर्म के व्यापार को रोकने के लियें प्रथक से धर्म मंत्रालय का गठन कर इस मामले में सख्ती की जरूरत है .....सभी जानते है के देश की संस्क्रती धर्म आधारित है और धर्म का जब हमारे देश में सम्मान था तो देश विश्व स्तर पर सोने की चिड़िया कहलाता था लेकिन धर्म के चरित्र में गिरावट निरंतर होने से देश के हालात बिगड़ने लगे है देश में धर्म के नाम पर दल गुट फिरके पैदा हो गए है पहले तो एक ही धर्म के लोग फिरकों में बंट कर लड रहे है दुसरे अपने अपने धर्म की गलत परिभाषाएं पढाये जाने से देश में नफरत की आग भडक रही है और धर्म का जो मूल भाव मूल शिक्षा भाई चारे और सद्भावना राष्ट्रिय एकता की है वोह इन झगड़े फसाद में विलीन हो गयी है धर्म के नाम पर चंदा वसूली एशो इशरत एक व्यापार बन गया है और प्रत्येक धर्म का अर्थ का अनर्थ निकालकर लोगों को पढ़ाया जा रहा है जिससे नफरत का भाव निरंतर बढ़ता जा रहा है और समाज ही समाज का दुश्मन होता जा रहा है यही वजह है के समाजों में बुराइयां चरम सीमा पर हैं .............दोस्तों जरा आप अपने जमीर पर हाथ रख कर देखे और अपने अपने धर्म की मूल पुस्तक मूल संदेश पढ़ कर आज के महात्मा और मोलवियों द्वारा दी जा रही शिक्षा से इसकी तुलना करे खुद बा खुद आपको इन धर्मगुरुओं से नफरत होने लगेगी जो धर्मगुरु अपने मज़हब की शिक्षा इमानदारी से दे रहे हैं समाज में इन तन्ख्य्ये मोलवी और पंडितों ने उनका विरोध शुरू कर दिया है इन परिस्थितियों में देश में चरित्र निर्माण और अधर्म पर धर्म की जीत के लिएँ अब धर्म प्रचार को सुव्यवस्थित और नियंत्रित करना आवश्यक हो गया है ..दोस्तों अगर देश में एक प्रथक से धर्म नियंत्रक मंत्रालय स्थापित किया जाए जिसमे सभी धर्मों के विशेषग्य धर्म गुरुओं को साथ रखा जाये और उनकी मूल धर्म संदेश पुस्तक के हिसाब से धर्म की शिक्षा दी जा रही है या नहीं इसे नियंत्रित किया जाए ..धर्म के जो भी शेक्षणिक कोर्स हों वोह सरकार द्वारा नियंत्रित हो ..साधू हो ..सन्यासी हो ..महंत हो ..शन्कराचार्य हो ..पंडित हो ..मोलवी हो ..मुल्ला हो .मोलाना हो ..काजी हो ..मुफ्ती हो ...क्रिश्चियन और सिक्ख के धर्म गुरु हो सभी लोगों का सरकार अपना रिकोर्ड रखे इनका पहचान पत्र जारी हो ..थानों से इन लोगों की तस्दीक हो यह लोग कहां और किस जिले किस गनाव किस थाना क्षेत्र के हैं इसकी सभी को जानकारी हो इनकी धार्मिक शिक्षा की डिग्रियां जो मान्यता प्राप्त इदारों से हो वोह सार्वजनिक प्रदर्शन के स्थान पर लगाने का प्रावधान हो उसकी जांच हो और इनके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा या धर्म प्रचार मामले में यह पाबंदी हो के धर्म शास्त्रों जेसे गीता ..कुरान वगेरा में जो लिखा है जो धर्म कानून बनाये गये हैं उनके विपरीत कोई धर्मप्रचार किसी भी समाज को गुमराह कर नहीं किया जाए अगर कोई भी ऐसा धर्म प्रचारक या मोलवी..मुल्ला ...काजी .मुफ्ती ..साधू..संत...महंत...शन्कराचार्य ..गुरुग्रंथी ..फादर ..धर्म ग्रंथों की भावनाओं के विपरीत लोगों को धर्म के नाम पर गुमराह करते हुए पाया जाए तो उसे दंडित करने का प्रावधान हो और अगर ऐसा कोई भी धर्म प्रचारक अपने धर्म प्रचार को धार्मिक रीती रिवाजों ..धर्म ग्रंथों और पूर्व इतिहास से साबित करने में असमर्थ रहे तो उसे खतरनाक दंड दिए जाने का प्रावधान हो इसके लियें धार्मिक गुरुओं का एक पेनल तय्यार हो जो इन लोगों की शिकायतें सुने ...दोस्तों यह बात चाहे आपको हास्यास्पद सी लगे लेकिन आप सभी जानते हैं के आज कल सभी लोगों ने कुछ एक अपवादों को छोड़ कर धर्म को रोज़गार का जरिया पेट पालने का जरिया बना लिया है ..चंदे करना ..समाजों को अलग अलग बांटना ..और महल जेसे धार्मिक स्थलों का निर्माण कर उनमे एश करना कुछ लोगों ने फेशन बना लिया है और धर्म स्थलों के नाम पर लोग अपनी जागीरें और सत्ता बनाने लगे है ..सभी जानते है के कई कथित धर्म शिक्षाएं धर्मग्रंथों के नियमों के विपरीत दी जाती है और कई स्थानों पर तो स्न्वम्भु धर्मगुरु हैं जो ना तो नमाज़ पढ़ते हैं और ना ही पूजा पाठ करते है ..कई धार्मिक कार्यों में लगे लोग खुद अधर्म के कार्यों से जुड़े हैं ....यही वजह है के देश में गुटबाजी फेलने लगी है चारित्रिक शिक्षा खत्म हो गयी है और अस्तित्व को लेकर विवाद होने लगे है फर्जी लोगों द्वारा रूपये लेकर फतवेबाजी के किस्से तो पिछले दिनों इलेक्ट्रोनिक मिडिया ने खुलेआम टी वी पर दिखा कर लोगों के होश उड़ा दिए थे इसी तरह से पंडितों और धर्मगुरुओं के विवादित कथन कई बार सुख शान्ति के लियें सर दर्द बन चुके है ..आज समाज में यह पता करना मुश्किल है के जो धर्मगुरु है वोह काबिल मान्यता प्राप्त संस्था से कोर्स करके आये हैं या नहीं और अगर कोर्स मान्यता प्राप्त है तो उनकी डिग्री कहाँ है फिर अगर एक स्थान से दुसरे स्थान पर कोई धर्म के नाम पर रोज़ी कमाने जाता है तो उसकी सकुनत पता कहाँ का है उसकी तस्दीक भी नहीं हो पाती है और बाद में दिक्क़तों का सामना करना पढ़ता है .ऐसे में सरकार अगर सभी धर्मों के मूल स्वरूप को जीवित रखते हुए धर्म के नाम पर अधर्म फेलाने वालों को सुनवाई का अवसर देकर दंडित करने का प्रावधान रखे तो शायद देश के बहुत कुछ हालात सुधार जाएँ और देश में चरित्र शिक्षा को बढ़ावा मिले और मूल धर्म शिक्षा का प्रचार प्रसार हो जिससे देश में मानवता और मानव सेवा ..सुख शांति का माहोल बने .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

हाइब्लडप्रेशर की घरेलू आयुर्वेदिक दवा, ऐसे बनाकर खाएंगे तो स्वस्थ हो जाएंगे


हाइब्लडप्रेशर एक ऐसी बीमारी है जिसमें रोगी को रोज दवाई खानी पड़ती है। लेकिन अगर इसका आयुर्वेदिक तरीके से इलाज किया जाए तो इसे प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है।आयुर्वेद में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो इन रोगों पर नियंत्रण करके शरीर को स्वस्थ बनाती है। कुछ ऐसी ही जड़ी बूटियों के मिश्रण से तैयार नुस्खा यहां बताया जा रहा है, जो उच्चरक्तचाप, अनिद्रा, मानसिक तनाव, दिल की धड़कनों का बढऩा, शरीर में जलन सी रहना आदि व्याधियों पर बहुत असरकारक है।

सामग्री- अश्वगंधा, जटामांसी, नागरमोथा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, पुष्कर मूल, तगर, कपूर कचरी और बड़ी इलायची।

बनाने की विधि- इन सबकी बराबर-बराबर मात्रा लेकर कूट-पीसकर कपड़े से छान कर महीन चूर्ण तैयार कर लें। बस तैयार है, अनमोल नुस्खा। इसे साफ -सूखी शीशी में भरकर रख दें। रोग तथा रोगी की स्थिति के अनुसार डेढ़ से 3 ग्राम तक की मात्रा में रात में सोने से पहले पानी से लें। यदि रोग बढ़ा हुआ है, तब दिन में भी एक बार इतनी ही मात्रा में और ले सकते हैं। आयुर्वेदिक पद्धति पर आधारित उक्त नुस्खा भले ही तुरंत असर न दिखाए लेकिन यह रोग की जड़ पर प्रहार कर धीरे-धीरे उसे खत्म कर देता है।

तलवार उठाई और लाखों सिर काट डाला, प्रायश्चित की तो बना महान!

पटना। सम्राट अशोक महाशक्तिशाली और प्रतापी सम्राट था। अपनी क्रूरता के लिए जाना जाने वाला ये सम्राट कैसे अचानक हिंसा को त्याग दिया? ऐसा क्या हुआ था जो उसने क्रूरता को अपना हथियार बना डाला? आईये हम बताते हैं...
बात तब कि है जब अशोक का ज्येष्ठ भाई सुसीम तक्षशिला का प्रांतपाल था। उस दौरान तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे। साथ ही वह क्षेत्र विद्रोह के लिए भी उपयुक्त था।
अशोक का भाई सुसीम को एक अकुशल प्रशासक के तौर पर जाना जाता था, जिस कारण उस क्षेत्र में अचानक विद्रोह पनप उठा। ऐसे में सुसीम ने अपने पिता राजा बिन्दुसार से कहकर अशोक को विद्रोहियों का दमन करने के लिए भिजवा दिया। अशोक के आने की खबर जैसे ही विद्रोहियों तक पहुंची उन लोगों ने बिना किसी युद्ध के अपना हथियार डाल दिया। (हालांकि बाद में अशोक के शासनकाल में भी एक बार विद्रोह की कोशिश हुई, लेकिन इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया।)
इसके बाद अशोक की कुशल नेतृत्व की सबने सराहना शुरू कर दी। ये सुसीम को नागवार गुजरने लगा औऱ साथ ही उसे सत्ता खोने का भय सताने लगा। ऐसे में उसने सम्राट बिंदुसार से कहकर अशोक को राज्य से निर्वासित करवा दिया। तब अशोक कलिंग चला गया। वहां उसे मत्स्य कुमारी कौर्वाकी से प्यार हो गया। हाल में मिले साक्ष्यों के अनुसार बाद में अशोक ने उसे दूसरी या तीसरी रानी बनाया था।
इस दौरान अशोक को सूचना मिली कि पिता के रूग्णावस्था में चले जाने के बाद भाईयों ने उसकी मां धर्मा को मार डाला। इससे आक्रोशित अशोक राजमहल में जाकर अपने सभी भाईयों का कत्ल कर दिया। इस क्रूर हत्या के बाद से शुरू होता है अशोक से सम्राट अशोक बनने का सफरनामा।
सम्राट की गद्दी हासिल करने के बाद अशोक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो अपने सम्राज्य विस्तार में लग गया। उसने अपनी राजधानी पाटलीपुत्रा ( वर्तमान पटना ) बनाई। अशोक ने सत्ता सम्हालते ही पूर्व तथा पश्चिम दोनों दिशा में बहुत तेजी से अपना साम्राज्य फैलाना शुरु किया। उसने आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक का साम्राज्य विस्तार केवल आठ वर्षों में ही कर लिया। सम्राज्य विस्तार के दौरान जिसने भी विद्रोह करनी चाही उसके विद्रोह को बड़ी क्रूरता के साथ कूचल डाला गया।
कलिंग की लड़ाई ने बदल डाला अशोक को
अशोक को हिंसा पर पूरा विश्वास था। उसे ये लगता था कि लोगों के विद्रोह को हिंसा से ही दबाया जा सकता है। लेकिन एक दौर ऐसा आया कि अशोक ने हिंसा त्याग दी। वो दौर कलिंग युद्ध के बाद का था। इस युद्ध में अशोक ने कत्लेआम मचा डाला था, लाखों लोगों के सिर धड़ से अलग हो गए। लेकिन इस युद्ध में हुए नरसंहार से अशोक का मन ग्लानि से भर गया और उसने प्रायश्चित करनी चाही। इसके बाद उसने सबकुछ त्याग कर बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। इस तरह एक क्रूर सम्राट से अशोक महान सम्राट बन गया।

पाकिस्‍तान को मिलेगा मुंहतोड़ जवाब, राजस्‍थान बॉर्डर पर ब्रह्मोस तैनात

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जोधपुर.भारतीय सेना की जमीन से जमीन पर मार करने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस की दूसरी रेजिमेंट ऑपरेशनल हो गई है। इसे पाकिस्तान से सटे राजस्थान बॉर्डर पर पाकिस्तान के सिंध फ्रंटियर के सामने तैनात की गई है।
‘कोल्ड स्टार्ट’ युद्ध सिद्धांत के अनुसार सेना में बदली जा रही रणनीति के तहत पाक बॉर्डर पर पहली मिसाइल रेजिमेंट की तैनातगी की जा रही है। इसकी मारक क्षमता 290 किलोमीटर है। पाक बॉर्डर पर इंडो-यूएस आर्मी के संयुक्त अभ्यास के बीच मिसाइल रेजिमेंट की तैनातगी को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भारतीय सेना और रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) के विशेषज्ञों ने पिछले छह महीने में ब्रह्मोस मिसाइल का पोकरण स्थित चांधन फायरिंग रेंज में दो बार परीक्षण कर उसकी मारक क्षमता को परखा था।
गत 4 मार्च को मिसाइल के परीक्षण के बाद सेना में ब्रह्मोसमिसाइल की दूसरी रेजिमेंट की तैनातगी शुरू कर दी गई है। पहली मिसाइल रेजिमेंट की तैनातगी चीन बॉर्डर पर की गई थी। राजस्थान बॉर्डर पर पहली बार यह मिसाइल रेजिमेंट बाड़मेर से बीकानेर सेक्टर के बीच तैनात की जाएगी।

जंग की नई रणनीति के तहत मिसाइल की तैनातगी :

सेना की दक्षिण कमान (पूना) व दक्षिण पश्चिमी कमान के अधिकारियों के 25 से 28 फरवरी के बीच हुए वार गेम में युद्ध की नई रणनीति पर विचार विमर्श किया गया। साथ ही सेना में किए जा रहे नए बदलाव की रणनीति को अंतिम रूप दिया गया। साथ ही चीन के अरुणाचल में मोर्चा खोलने पर पाकिस्तान के राजस्थान बॉर्डर पर हमला बोलने की आशंका के दृष्टिगत जंग की तैयारी पर विचार विमर्श किया गया था। उस वार गेम में तय रणनीति के तहत ही ब्रह्मोस मिसाइल की दूसरी रेजिमेंट को राजस्थान बॉर्डर पर तैनात करने का फैसला लिया गया।

पाक ने भनक लगने पर किया हत्फ का परीक्षण :

ब्रह्मोस मिसाइल रेजिमेंट की राजस्थान बॉर्डर पर तैनातगी की भनक लगते ही पाकिस्तान ने 700 किमी दूरी तक मार करने वाली हत्फ मिसाइल का 5 मार्च को परीक्षण किया था। इससे पूर्व पाकिस्तान द्वारा भारत के दस शहरों को निशाने पर रख 24 परमाणु हथियार युक्त मिसाइल की तैनातगी करने की खबरें पाक मीडिया में प्रकाशित हो चुकी हैं।

ऐसे में ब्रह्मोस मिसाइल की तैनातगी को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इधर पाक बॉर्डर पर यूएस-इंडो आर्मी का संयुक्त अभ्यास चल रहा है। वहीं सेना की मथुरा स्थित 1 स्ट्राइक कोर के नेतृत्व में साठ हजार सैनिकों के थार में तीन महीने के युद्धाभ्यास ‘शूरवीर’ की तैयारी भी चल रही है।

शेहला मर्डर: सीबीआई के हाथ लगी जाहिदा-ध्रुव की सेक्स सीडी


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भोपाल.सीबीआई के हाथ में जाहिदा परवेज और भाजपा विधायक ध्रुव नारायण सिंह की सीडी हाथ लगी है।

इसमें दोनों कम्प्रोमाइजिंग पोजीशन में दिख रहे हैं। यह सीडी खुद जाहिदा ने धोखे से बनाई है। अब इसकी वजह क्या है, यह जांच का मसला है। जाहिदा के घर से दो सीडी मिली थीं।

आज हो सकता है ध्रुव का पॉलिग्राफ टेस्ट


शेहला मसूद हत्याकांड में शक के घेरे में आए विधायक ध्रुवनारायण सिंह का पॉलिग्राफ टेस्ट रविवार को हो सकता है। उनके साथ इस मामले में आरोपी जाहिदा परवेज और सबा फारुखी का पॉलिग्राफ टेस्ट भी किया जा सकता है। टेस्ट के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने सवालों की सूची तैयार कर ली है। टेस्ट कराने के पहले सभी का मेडिकल कराया जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक रविवार सुबह दिल्ली से सीएफएसएल की एक अन्य टीम राजधानी पहुंच रही है, जबकि एक टीम पहले ही जरूरी उपकरणों के साथ यहां पहुंच चुकी है। जाहिदा और सबा की सीबीआई रिमांड 13 मार्च को खत्म हो रही है, जबकि इंदौर की सीबीआई कोर्ट ने 16 मार्च के पहले ध्रुवनारायण सिंह का पॉलिग्राफ टेस्ट कराने के निर्देश दिए हैं। शनिवार रात सीबीआई के डीआईजी अरुण बोथरा भी राजधानी पहुंच गए हैं।
ऐसे होता है पॉलिग्राफ टेस्ट
पॉलिग्राफ टेस्ट के पहले संबंधित व्यक्ति को सामान्य करने के लिए साइकोलॉजिकल टेस्ट लिया जाता है। इसके बाद सीएफएसएल के अधिकारी सीबीआई द्वारा तैयार किए गए सवाल पूछते हैं। जिसका टेस्ट होना है उसके सीने, कलाइयों और सिर को मशीन से जोड़ा जाता है।
वह व्यक्तियदि किसी सवाल का गलत जवाब देता है तो उसका ब्लड प्रेशर, पल्स रेट और हार्ट बीट बढ़ जाती है जिसे मशीन पकड़ लेती है। इसकी रिपोर्ट ईसीजी मशीन की रिपोर्ट के समान ही होती। व्यक्ति जिस सवाल का गलत जवाब देता है उसका ग्राफ बढ़ा हुआ आता है। इसकी रिपोर्ट करीब एक घंटे में तैयार हो जाती है।

राम राज्याभिषेक की तैयारी, देवताओं की व्याकुलता तथा सरस्वती से उनकी प्रार्थना

राम राज्याभिषेक की तैयारी, देवताओं की व्याकुलता तथा सरस्वती से उनकी प्रार्थना
दोहा :
* सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु॥1॥
भावार्थ:-सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर (प्रार्थना करके) कहते हैं कि राजा अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें॥1॥
चौपाई :
* एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा॥
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू॥1॥
भावार्थ:-एक समय रघुकुल के राजा दशरथजी अपने सारे समाज सहित राजसभा में विराजमान थे। महाराज समस्त पुण्यों की मूर्ति हैं, उन्हें श्री रामचन्द्रजी का सुंदर यश सुनकर अत्यन्त आनंद हो रहा है॥1॥
* नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें॥वन तीनि काल जग माहीं। भूरिभाग दसरथ सम नाहीं॥2॥
भावार्थ:-सब राजा उनकी कृपा चाहते हैं और लोकपालगण उनके रुख को रखते हुए (अनुकूल होकर) प्रीति करते हैं। (पृथ्वी, आकाश, पाताल) तीनों भुवनों में और (भूत, भविष्य, वर्तमान) तीनों कालों में दशरथजी के समान बड़भागी (और) कोई नहीं है॥2॥
* मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिअ थोर सबु तासू॥
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा॥3॥
भावार्थ:-मंगलों के मूल श्री रामचन्द्रजी जिनके पुत्र हैं, उनके लिए जो कुछ कहा जाए सब थोड़ा है। राजा ने स्वाभाविक ही हाथ में दर्पण ले लिया और उसमें अपना मुँह देखकर मुकुट को सीधा किया॥3॥
* श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा॥
नृप जुबराजु राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू॥4॥
भावार्थ:-(देखा कि) कानों के पास बाल सफेद हो गए हैं, मानो बुढ़ापा ऐसा उपदेश कर रहा है कि हे राजन्‌! श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद देकर अपने जीवन और जन्म का लाभ क्यों नहीं लेते॥4॥
दोहा :
* यह बिचारु उर आनि नृप सुदिनु सुअवसरु पाइ।
प्रेम पुलकि तन मुदित मन गुरहि सुनायउ जाइ॥2॥
भावार्थ:-हृदय में यह विचार लाकर (युवराज पद देने का निश्चय कर) राजा दशरथजी ने शुभ दिन और सुंदर समय पाकर, प्रेम से पुलकित शरीर हो आनंदमग्न मन से उसे गुरु वशिष्ठजी को जा सुनाया॥2॥
चौपाई :
* कहइ भुआलु सुनिअ मुनिनायक। भए राम सब बिधि सब लायक॥
सेवक सचिव सकल पुरबासी। जे हमार अरि मित्र उदासी॥1॥
भावार्थ:-राजा ने कहा- हे मुनिराज! (कृपया यह निवेदन) सुनिए। श्री रामचन्द्रजी अब सब प्रकार से सब योग्य हो गए हैं। सेवक, मंत्री, सब नगर निवासी और जो हमारे शत्रु, मित्र या उदासीन हैं-॥1॥
* सबहि रामु प्रिय जेहि बिधि मोही। प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही॥
बिप्र सहित परिवार गोसाईं। करहिं छोहु सब रौरिहि नाईं॥2॥
भावार्थ:-सभी को श्री रामचन्द्र वैसे ही प्रिय हैं, जैसे वे मुझको हैं। (उनके रूप में) आपका आशीर्वाद ही मानो शरीर धारण करके शोभित हो रहा है। हे स्वामी! सारे ब्राह्मण, परिवार सहित आपके ही समान उन पर स्नेह करते हैं॥2॥
* जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं। ते जनु सकल बिभव बस करहीं॥
मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजे

कुरान का संदेश

आमदनी अठन्नी और उधार करोड़ों का


पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लचर प्रदर्शन के बाद अब नजरें टिकी हैं 16 मार्च के वित्त मंत्री के भाषण पर। यूपीए सरकार की तरह देश की आर्थिक स्थिति भी दबाव में है। ऐसे में प्रणबदा क्या रास्ता लेते हैं - 2014 की खातिर वोट जुटाने के लिए लोक लुभावन बजट निकालते हैं या चरमराती अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के उपाय करते हैं। बजट के दिन चर्चा सिर्फ करों पर होती है। आम आदमी या नौकरीपेशा लोगों - जो करदाता हैं - के लिए यह समझना जरूरी है कि सरकार कभी करों को कम क्यों नहीं करती। क्यों कीमतें आमदनी के मुकाबले ज्यादा तेजी से भाग रही हैं? आर्थिक तेजी के बिना नौकरीशुदा या कारोबारियों की आय क्यों नहीं बढ़ती? इसलिए यह जानना जरूरी है कि सरकार आपका पैसा कहां और कैसे खर्च कर रही है, क्या इससे आपका कल बेहतर होगा? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए हम सीरीज शुरू कर रहे हैं। पहली कड़ी में हम समझा रहे हैं कि सरकार की आमदनी और उधारी पर किस तरह बजट प्रबंधन निर्भर करता है।

सरकार के खाते सिर्फ आय से नहीं चलते। सरकार के पास जब पैसे की कमी होती है तब वह या तो और पैसा छाप सकती है या उधार ले सकती है। जब सरकार ज्यादा पैसे छापती है तो अर्थव्यवस्था में तरलता आती है और हर चीज के दाम बढ़ते हैं। इसलिए सरकार आय और व्यय की खाई को उधारी से पाटती है। थोड़ा बहुत हो तो ठीक है, मगर सरकार पूरी तरह से उधार पर निर्भर हो जाए तो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा नहीं है।

यूपीए सरकार ने 2008 से खर्च पर अंकुश लगाना बंद कर दिया है। 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान सरकार ने तय किया कि अर्थव्यवस्था को बूस्ट की जरूरत है। ऋण माफ किए गए, ग्रामीण अर्थव्यव-स्था में आय बढ़ाने के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रम को बढ़ाया गया। एक्साइज ड्यूटी पर कैप लगाया गया ताकि उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके। इस दौरान सरकार ने उधार लेकर खर्च करना और गरीबों के नाम पर खर्च बढ़ाना एक उद्देश्य बना लिया। इसका असर अब सरकार के बजट पर हावी हो गया है। पिछले साल यानी 2011-12 के बजट में सरकार का सबसे बड़ा खर्च किसी सब्सिडी, विकास कार्य या इन्फ्रास्ट्रक्चर पर नहीं, बल्कि ब्याज के भुगतान पर हुआ। सरकार ने इस मद में 2.68 लाख करोड़ रुपये का अनुमान लगाया था। तोड़ें तो यह आंकड़ा आता है 2,67,986,00,000,00 जो सिर्फ ब्याज में जाएगा। यह अनुमान इस बात पर निर्भर था कि अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और टैक्स वसूली में तेजी रहेगी। मगर पिछले छ: महीने में अर्थव्यवस्था हिल गई है।

कर राजस्व लगातार नीचे आ रहा है। जनवरी तक सिर्फ 4.58 लाख करोड़ रुपये का कर संग्रह हुआ जो पूरे वित्त वर्ष के अनुमान से 2.06 लाख करोड़ कम है। यह कमी सरकार ने कर्ज लेकर पूरी की है।

गैर-कर राजस्व भी करीब 35,000 करोड़ कम रहने का अनुमान है।उधार बढ़ रहा है। इसका असर विकास पर भी पड़ता है, क्योंकि जब सरकार खुद लगातार इतना कर्ज उठा रही है तो निजी क्षेत्र अपने निवेश के लिए कहां से कर्ज लेगा। सरकार जब कर्ज लेती है, बैंक और नॉन बैंकिंग कंपनियां सरकारी ट्रेजरी बिल में निवेश करती हैं। यह निवेश रिस्क-फ्री माना जाता है, जबकि कंपनी को उधार देने में जोखिम होता है। ब्याज दरें वैसे ही रिकॉर्ड स्तर पर हैं। इस माहौल में अगर सरकार निजी कंपनियों से ऋण के लिए स्पर्धा करे तो निजी क्षेत्र में निवेश नहीं होगा। अभी ऐसा ही हो रहा है। सरकार की जरूरत को देखते हुए उसके लिए भी ब्याज दरें लगातार बढ़ रही हैं। निजी क्षेत्र निवेश नहीं कर पा रहा क्योंकि उसे कर्ज आसानी से और सस्ती दर पर नहीं मिल रहा।

मगर सरकार का खर्च संपत्ति या कैपेसिटी बिल्डिंग में नहीं हो रहा है। इसलिए यह निश्चित है कि आगे जाकर अर्थव्यवस्था को कोई खास फायदा नहीं होगा। यह उसी तरह है जैसे कोई उधार लेकर सिर्फ अपने रोज के खर्चे में उसे व्यय करता हो। समझदार व्यक्ति अगर उधार लेता है तो उसे घर बनाने या कोई धंधा शुरू करने में करता है। जो उधार से आय का स्रोत शुरू करते हैं वही उधार चुका पाते हैं। जो नहीं कमाते वह उधारी के चक्र में फंस जाते हैं। देश भी जब ऐसे चक्र में फंसते हैं तो दिवालिया हो जाते हैं। ग्रीस का उदाहरण हमारे सामने है। अगली कड़ी में पढ़ेंगे कि क्या सरकार सही जगह पर सही तरह से खर्च कर रही है?

रंगपंचमी 12 को, अनूठी परंपरा है इस पर्व की

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होली का त्योहार अपने अंदर अनेक विविधताओं को समेटे हुए हैं। भारत के हर प्रदेश, क्षेत्र व स्थान पर होली के त्योहार की एक अलग परंपरा है। कुछ स्थानों पर होली के पांच दिन बाद यानि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को रंगपंचमी खेलने की परंपरा भी है। धुरेड़ी पर गुलाल लगाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी पर रंग लगाया जाता है। इस बार रंगपंचमी का पर्व 12 मार्च, सोमवार को है।

महाराष्ट्र में इस दिन विशेष भोजन बनाया जाता है, जिसमें पूरनपोली अवश्य होती है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच, गाना और मस्ती होता है। ये मौसम रिश्ते(शादी) तय करने के लिये उपयुक्त होता है, क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक दूसरे के घरों में मिलने जाते हैं और काफी समय मस्ती में व्यतीत करते हैं।

मध्यप्रदेश में भी रंगपंचमी खेलने की परंपरा है। खासतौर पर मालवांचल में इस दिन युवकों की टोलियां सड़कों पर निकलती है और रंग लगाकर खुशियों का इजहार करती है। मालवांचल में इस दिन जुलूस जिसे गैर कहते हैं, निकालने की परंपरा भी है। गैर में युवक शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए चलते हैं और हैरतअंगेज करतब भी दिखाते हैं। रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता है और इस दिन होली पर्व का समापन हो जाता है।

अखिलेश के सामने हैं पांच चुनौतियां




नई दिल्ली. अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी के नवनिर्वाचित 224 विधायकों ने अपना नेता चुन लिया है। वे 15 मार्च को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। 38 साल के अखिलेश यादव राजनीतिक तौर पर देश के सबसे अहम सूबे के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया से पढ़कर लौटे 'समाजवाद' की खुरदुरी राजनीतिक जमीन पर अपने राजनीतिक करियर की अब तक की सबसे बड़ी 'परीक्षा' देने जा रहे अखिलेश के लिए चुनौतियों का सिलसिला शुरू हो चुका है। आइए, उनके सामने सवाल के रूप में खड़ीं कुछ चुनौतियों पर नज़र डालें:
कानून व्यवस्था
समाजवादी पार्टी की विचारधारा भले ही सैद्धांतिक तौर पर लोहिया का 'समाजवाद' हो, लेकिन सच यही है कि पार्टी की आम लोगों के बीच छवि इससे मेल नहीं खाती है। सपा की धुर विरोधी मायावती हमेशा ही सपा को 'गुंडों' की पार्टी बताती रही हैं। इस्तीफा देने के तुरंत बाद मायावती ने राज्य की जनता को चेतावनी भी दे डाली है कि जल्द ही उन्हें सपा की सरकार बनवाने का पछतावा भी होगा। क्या ये आरोप पूरी तरह से निराधार हैं? शायद नहीं, क्योंकि 6 मार्च को नतीजे सामने आने के बाद सपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं, नवनिर्वाचित विधायकों के जीत के जुलूस में मारपीट, राजनीतिक विरोधियों की हत्या और कानून को हाथमें लेने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। नतीजे आने के बाद अखिलेश यादव ने कहा था कि वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को अनुशासन में रहने की हिदायत दे चुके हैं। लेकिन उनकी हिदायत का अब तक कोई असर नहीं दिख रहा है। ऐसे में आपराधिक इतिहास वाले नेता डीपी यादव को अपनी पार्टी से अलग रखने का फैसला लेने वाले अखिलेश यादव की मौजूदा समय में सबसे बड़ी जिम्मेदारी न सिर्फ अपनी पार्टी के लोगों पर लगाम लगाना है बल्कि सूबे में कानून व्यवस्था का 'राज' कायम करना भी है ताकि उनके विरोधियों को यह कहने का मौका न मिले कि यह 'पुरानी' समाजवादी पार्टी है, जिसकी छवि 'गुंडागर्दी' से जुड़ती रही है। उन्हें अपनी कार्यशैली से इस मान्यता को तोड़ना होगा।
वादे पूरे करना
सपा ने घोषणापत्र में वादों की झड़ी लगा दी है। लगातार खस्ताहाल हो रहे उत्तर प्रदेश के सरकारी खजाने पर उनकी घोषणाएं भारी लग रही हैं। अखिलेश लगातार कह रहे हैं कि उनकी पार्टी सभी वादेपूरी करेगी। लेकिन करीब 19 हजार करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे वाले उत्तर प्रदेश पर अखिलेश के वादे आने वाले पांच सालों में करीब 66 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार डालेंगे। ऐसे में अखिलेश यादव के सामने यह भी बड़ी चुनौती है कि वे सूबे की जनता से किए अपने वादे पूरे करें।

भूमि अधिग्रहण का मुद्दा
मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव के सामने भूमि अधिग्रहण का भी सवाल होगा। उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार की कई योजनाएं भूमि अधिग्रहण के विवाद में फंस गईं। मायावती को मजबूरी में भूमि अधिग्रहण को लेकर नया कानून बनाना पड़ा। लेकिन उनके नए कानून से भी प्रदेश के कई किसान खुश नहीं हैं। गंगा एक्सप्रेस वे, नोएडा एक्सटेंशन जैसी योजनाएं अटकी पड़ी हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश के सामने इन मुद्दों का जल्दी से निस्तारण और ऐसा हल खोजना बड़ी चुनौती होगी, जिससे किसान, बिल्डर और आम निवेशक-तीनों के हित प्रभावित न हों।

तजुर्बा न होना
अखिलेश यादव प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रचने जा रहे हैं। लेकिन जहां एक तरह उनका युवा होना उनका सबसे मजबूत पक्ष माना जा रहा है, वहीं जानकार यह भी मानते हैं कि देश के सबसे बड़े सूबे के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के तौर पर लोगों की उम्मीदें पूरी करना बेहद मुश्किल है। सपा के 20 सालों के इतिहास में यह सबसे पहला मौका है, जब पार्टी को अपने बलबूते पर बहुमत मिला है। ऐसे में अखिलेश से लोगों की उम्मीदें भी बहुत ज़्यादा हैं। अखिलेश आज तक किसी पद पर नहीं रहे हैं। वे सपा के सांसद और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर काम करते रहे हैं। उनके पास किसी तरह का प्रशासनिक अनुभव नहीं है। ऐसे में बिल्कुल न के बराबर तजुर्बा रखने वाले अखिलेश के लिए जनता उम्मीदों का बोझ उठाना आसान नहीं होगा। सपा की संभावित कैबिनेट में कुछ ही मंत्री होंगे जो अखिलेश यादव से कम उम्र के होंगे। कैबिनेट के ज़्यादातर मंत्री उनसे ज़्यादा उम्र के और राजनीति का लंबा तजुर्बा रखने वाले होंगे। ऐसे में सबके साथ तालमेल बिठाकर चलना और सरकार चलाना अपने आप में बड़ी चुनौती होगी।

पार्टी में स्वीकार्यता
अखिलेश यादव को सपा के विधायकों ने अपना नेता चुन लिया है। शनिवार को आजम खान और शिवपाल यादव जैसे नेताओं ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा और उसका समर्थन किया। मुख्यमंत्री पद के लिए अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव की 'जगह' ले ली है। लेकिन क्या वे पार्टी में भी वैसे ही 'सर्वमान्य' नेता बन सकेंगे जैसे मुलायम सिंह यादव हैं? पार्टी में अखिलेश को लेकर ऊहापोह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजम खान और शिवपाल यादव ने अब तक अखिलेश यादव के यूपी का अगला सीएम बनने को लेकर खुलकर अपनी राय नहीं रखी है। शनिवार से पहले तक आजम खान से जब भी अखिलेश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मुलायम सिंह यादव को ही अपना नेता बताया और कहा कि पार्टी इस बात पर फैसला करेगी कि अखिलेश मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं। यानी साफ है कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने अखिलेश का बतौर मुख्यमंत्री खुलकर समर्थन नहीं किया है। जबकि राम गोपाल यादव ने ऐसे ही सवाल के जवाब में कहा था कि अगर अखिलेश मुख्यमंत्री बनते हैं तो उन्हें सबसे ज़्यादा खुशी होगी। ऐसे में पार्टी के युवा नेताओं और पार्टी के पुराने 'समाजवादियों' को साथ लेकर चलना अखिलेश का सामने बड़ी चुनौती है।

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