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18 मार्च 2012

पापमोचिनी एकादशी पापों का नाश करती है ये एकादशी



पुराणों के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। इस बार यह एकादशी 18 मार्च, रविवार को थी । इसकी कथा इस प्रकार है-

राजा मान्धाता ने एक बार लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजऱ अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयास में सफल हुई और ऋषि की तपस्या भंग हो गई।

ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी।

मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी (पापमोचिनी एकादशी) का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ तब वह पुन: स्वर्ग चली गई।

असरदार इलाज: पाइल्स से रिलीफ के लिए ऐसे उपयोग करें अनार का छिलका


अनार एक ऐसा फल है जो खट्टा-मीठा और स्वाद से भरपूर होने के साथ ही अनार स्वरतंत्र, फेफड़े, यकृत, दिल, आमाशय तथा आंतों के रोगों पर बहुत फायदेमंद है। अनार में एंटीऑक्सिडेंट, एंटीवायरल और एंटी-ट्यूमर जैसे तत्व पाये जाते हैं। अनार विटामिन्स का एक अच्छा स्रोत है। इसमें विटामिन ए, सी और ई भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

अनार दिल के रोगों से लेकर पेट की गड़बड़ी और मधुमेह जैसे रोगों में फायदेमंद होता है। अनार का छिलका, छाल और पत्तियों को लेने से पेट दर्द में राहत मिलती है। पाचन तंत्र के सभी समस्याओं के निदान में अनार कारगर है। अनार की पत्तियों की चाय बनाकर पीने से पाचन संबंधी समस्याओं में भी बहुत आराम मिलता है। दस्त और कॉलरा जैसी बीमारियों में अनार का जूस पीने से राहत मिलती है। मधुमेह के रोगियों को अनार खाने की सलाह दी जाती है इससे कॉरोनरी रोगों का खतरा कम होता है।

अनार में लोहा की भरपूर मात्रा होती है, जो रक्त में आयरन की कमी को पूरा करता है। सूखे अनार के छिलकों का चूर्ण दिन में 2-3 बार एक-एक चम्मच ताजा पानी के साथ लेने से बार-बार पेशाब आने की समस्या ठीक हो जाती है। अनार के छिलकों को पानी में उबालकर, उससे कुल्ला करने से सांस की बदबू समाप्त हो जाती है। अनार के छिलकों के चूर्ण का सुबह-शाम एक-एक चम्मच सेवन करें या अनार के छिलकों को पानी में भिगो दें। फिर छिलकों को पानी से हटा दें जब भी प्यास लगे, इस पानी को पीने से बवासीर ठीक हो जाता है। खांसी में अनार के छिलके को मुंह में रखकर उसे धीरे धीरे चूसना शुरू कर दें।

पढ़िए, मृत्यु से जुड़ी 1 दिलचस्प बात!



अक्सर यह कहा-सुना जाता है कि जन्म के समय हर व्यक्ति खाली हाथ आता है और मौत के वक्त खाली हाथ चला जाता है। यहां तक कि माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी, पुत्र, पुत्री सहित अनेक संबंधी भी मृत शरीर का साथ छोड़ देते हैं। किंतु धर्म शास्त्रों में लिखी बातों पर गौर करें तो व्यक्ति अकेला नहीं जाता है, बल्कि उसके साथ जाने वाला भी कोई होता है। कौन है वह जो हर व्यक्ति के साथ जीवन ही नहीं मृत्यु में भी साथ निभाता है। जानिए -

धर्मशास्त्रों की यह बात गहराई से समझकर व्यवहार में अपनाई जाए तो संभवत: व्यक्ति ही नहीं हमारे आसपास फैले अशांत और कलह भरे माहौल को खुशहाल बना सकती है। क्योंकि यह बात जीवन से जुड़ी सच्चाई ही उजागर नहीं करती बल्कि व्यावहारिक संदेश भी देती है।

शास्त्र लिखते हैं कि -

मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्टलोष्टसमं जना:।

मुहूर्तमिव रोदित्वा ततोयान्ति पराङ्मुखा:।।

तैस्तच्छरीमुत्सृष्टं धर्म एकोनुगच्छति।

तस्माद्धर्म: सहायश्च सेवितव्य: सदा नृभि:।।

इसका सरल और व्यावहारिक अर्थ यही है कि मृत्यु होने पर व्यक्ति के सगे-संबंधी भी उसकी मृत देह से कुछ समय में ही मोह या भावना छोड़ देते हैं और अंतिम संस्कार कर चले जाते हैं। किं तु इस समय भी मात्र धर्म ही ऐसा साथी होता है, जो उसके साथ जाता है।

इस बात में संकेत यही है कि धर्म पालन यानी व्यक्ति द्वारा जीवन में किए गए अच्छे काम ही उसकी पहचान, व्यक्तित्व और चरित्र बनाते हैं। यह तभी संभव है जब व्यक्ति ने जीवन में स्वभाव, व्यवहार और बोल में प्रेम, सच, दया, भलाई जैसी बातों को अपनाया हो। इसलिए माना गया है कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु के बाद भी लोगों की यादों में हमेशा जीवित रहता है।

धर्म के नजरिए से यही भाव व्यक्ति की मृत्यु होने पर धर्म के साथ जाने से जुड़ा है। इसलिए जहां तक संभव हो जिंदग़ी में अच्छा और ऊंचा उठने का संकल्प रखें। ताकि जीवन में ही नहीं मौत के पहले भी मन अशांत और बेचैन न रहे।

आयुर्वेदिक टिप्स...जोड़ों के दर्द का बेजोड़ इलाज



आजकल जोड़ों का दर्द एक आम समस्या है। बहुत अधिक वर्कलोड व थकान होने पर पर्याप्त आराम न मिलने पर या अन्य कारणों से किसी को भी कम उम्र में जोड़ों का दर्द परेशान कर सकता है। यदि आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है, आयुर्वेद में ऐसे कई उपाय हैं जिनसे आप जोड़ों में होने वाले दर्द से निजात पा सकते हैं।

अगर आपके साथ भी किसी भी तरह की जोड़ों के दर्द से जुड़ी समस्या है, तो आप नीचे लिखे आयुर्वेदिक उपाय एक बार जरुर आजमाएं।

- सौंठ,मरीच एवं पिप्पली का प्रयोग त्रिकटु के रूप में 1/2 चम्मच नित्य गुनगुने पानी से प्रयोग जोड़ों के दर्द में राहत देता है।

- अरंडी की जड़ का चूर्ण 1/2-1 चमच्च लेने से भी गठिया के रोगियों में चमत्कारिक लाभ मिलता है।

- प्रारंभिक अवस्था में यदि जोड़ों के दर्द की शुरुआत हुई हो तो अरंडी के तेल के मालिश भी अत्यंत प्रभावी होते है।

- केवल सौंठ का प्रयोग भी पुराने से पुराने जोड़ों के दर्द में लाभ देता है।

- अश्वगंधा,शतावरी एवं आमलकी का चूर्ण जोड़ों से दर्द के कारण आयी कमजोरी को दूर करता है।

- यदि जोड़ों का दर्द बहुत पुराना हो तो बालू की पोटली का सेक भी सूजन से राहत दिलाता है।

- दशमूल का का काढा भी 10-15 एम.एल. की मात्रा में जोड़ों के दर्द में लाभ पहुंचाता है।

- जोड़ों के दर्द के साथ यदि सूजन हो तो एरंडी एवं निर्गुन्डी के पत्तों की सिकाई दर्द एवं सूजन को कम करती है।

- यदि गठियावात (आर्थराईटिस) के दर्द का कारण फेक्टर हो तो गुग्गुलु का प्रयोग चिकित्सक के परामर्श से करना चाहिए।

- गठियावात के कारण उत्पन्न जोड़ों के दर्द में पंचकर्म चिकित्सा अत्यंत प्रभावी है। कुछ छोटी -छोटी बातों एवं सावधानियों का ध्यान रखकर हम जोड़ों के दर्द से रहत पा सकते हैं।

- यदि जोड़ों के दर्द का कारण यूरिक एसिड का बढऩा है तो भोजन में प्रोटीन की मात्रा कम कर देनी चाहिए।

- सूजन की अवस्था में आसनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

- गठिया की प्रारंभिक अवस्था में योग एवं प्राणायाम का नित्य प्रयोग संधिवात के कारण उत्पन्न जोड़ों के दर्द को कम करता है।

- गठिया के रोगियों को तले भुने भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।

- हरी पत्तेदार एम रेशेदार फल सब्जियां योगी के कब्ज को ठीक कर जोड़ों के दर्द में लाभ पहुंचाती है।

कुरान का सन्देश


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