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12 अप्रैल 2012

मां-मां चिल्लाते हुए अर्थी से उठा, खाना खाया और फिर चल बसा

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रायपुर. छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े आंबेडकर अस्पताल में एक मरीज 27 साल के मनोज (ध्रुव) सोनवानी के साथ अजीब घटनाक्रम हुआ। डॉक्टरों ने मंगलवार रात उसका डेथ सर्टिफिकेट जारी करने के बाद शव को मर्चूरी में भिजवा दिया था।

कल बुधवार को अंतिम संस्कार के लिए उसे ले जाने की तैयारी थी। दोपहर करीब तीन बजे अर्थी पर उसे लिटा दिया गया था। अचानक युवक मां-मां चिल्लाते हुए खड़ा हो गया। करीब 35 घंटे बाद गुरुवार रात करीब एक बजे घर पर मनोज की मौत हो गई। मनोज लालपुर का रहने वाला था। उसे टीबी के इलाज के लिए आंबेडकर अस्पताल में भर्ती किया गया था। चार दिनों से उसका इलाज चल रहा था।


मनोज के भाई भोला ने बताया कि 10 अप्रैल यानी मंगलवार की रात 12 बजे अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। घर में मातम छा गया। बुधवार को परिजन उसके कथित शव को डिस्चार्ज कराकर अस्पताल से लालपुर पहुंचे। दोपहर करीब 3 बजे उसे अर्थी पर लिटा दिया गया। अंतिम संस्कार के लिए ले जाने को तैयारी हो ही रही थी कि अचानक मनोज अर्थी से उठ बैठा।

परिजन और मोहल्ले के लोग सकते में आ गए। रोते लोगों की आंखों से खुशी के आंसू निकलने लगे। बात केवल यहीं खत्म नहीं हो जाती। अस्पताल के डॉक्टरों को इसकी भनक लगी तो पूरी टीम दौड़े-दौड़े मनोज के घर पहुंची। डॉक्टरों को इस बात की चिंता सताने लगी कि उनकी पोल न खुल जाए।

डेथ सर्टिफिकेट और अन्य जरूरी कागजात घर वालों से लेकर पूरी टीम लौट गई। मनोज के परिवार को समझ में ही नहीं आया कि डॉक्टरों की टीम अचानक घर पहुंचकर दस्तावेज क्यों लेने लगी। भास्कर संवाददाता गुरुवार दोपहर को उसके घर पहुंचा तो मनोज खाना खा रहा था।
सामान्य रूप से बातचीत कर रहा था। हालांकि उसकी हालत बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन गरीब परिवार के ये लोग उसे दोबारा अस्पताल लेकर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। आधी रात को अचानक मनोज की तबियत बिगड़ी। कुछ देर बाद उसने दम तोड़ दिया।
अस्पताल के रिकार्ड में मौत का उल्लेख नहीं
आंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि मनोज सोनवानी रात को बिना बताए अस्पताल से चला गया था। परिजनों ने उसे अस्पताल से ले जाने की सूचना नहीं दी। अस्पताल के रिकार्ड में उसकी मौत का कोई उल्लेख नहीं है। जबकि उसके भाई दावा है कि डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था। दूसरे दिन घर से आकर कागजात भी ले गए हैं।

- सामान्यत: बिना मरीज की मृत्यु के मृत्यु प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाता। मामले की जानकारी नहीं है। इस संबंध में शुक्रवार को एमआरडी से पता कर बता पाऊंगा। -डॉ. एके पडऱाहा, प्रवक्ता आंबेडकर अस्पताल
- मेरा भाई जिंदा है। डॉक्टरों ने उसे मृत बताकर हमारे हवाले कर दिया था। अचानक वह जिंदा हो गया। हम लोगों ने उसे अपने घर में ही रखा है। अभी वह सबसे बात कर रहा है। -भोला (ध्रुव) सोनवानी, मरीज का भाई (

इन्दोर में इंटरनेट कनेक्शन तक नहीं है साइबर सेल के पास


इंदौर। साइबर थानों की लंबी मांग के बाद इंदौर और भोपाल में साइबर सेल खोले गए। मगर अफसोस कि सेल खुलने के दो महीने बाद भी सेल में इंटरनेट कनेक्शन तक नहीं है। इतना ही नहीं सेल के एसपी रैंक के अधिकारी के पास प्रकरण दर्ज करने का अधिकार भी नहीं है। सवाल है कि अब तक सिर्फ मामले दर्ज करने वाली यह सेल औपचारिकता भर है।

कैसे रोकेंगे अपराध निहत्थे सिपाही

प्रदेश में पिछले कुछ सालों से साइबर थानों की मांग की जा रही थी, जिसके बाद फरवरी 2012 में भोपाल और इंदौर में साइबर सेल खोले गए। जितना हाईटैक ये अपराध है उतनी ही घटिया सेल्स की व्यवस्था है। साइबर क्राइम से लड़ने के लिए सबसे पहले जरूरत पड़ती है इंटरनेट कनेक्शन की। तीन महीने हो गए हैं इन्हें कनेक्शन का आवेदन दिए हुए लेकिन पुलिस मुख्यालय ने अभी तक इसकी मंजूरी नहीं दी है।

साइबर सेल में जिस तरह का टैक्निकल स्टाफ होना चाहिए वो भी यहां नहीं है। न ही इन्हें किसी तरह की एडवांस ट्रेनिंग दी गई है। ट्रेनिंग के नाम पर इन्हें सिर्फ कम्प्यूटर और इंटरनेट की बेसिक जानकारी दी गई है। ये लोग फेसबुक और ई-मेल भी ठीक से नहीं समझते। विभाग के पास न तो इनके लिए बजट है और न कोई योजना। ऐसे में हाईटेक क्राइम से किस तरह लड़ा जाएगा।

एफआईआर भी दर्ज नहीं कर सकते

इंदौर साइबर में एक एसपी, एक डीएसपी, एक एएसआई, एक हेड कांस्टेबल और तीन कांस्टेबल हैं। सात लोगों के इस स्टाफ में सिर्फ एसपी ही इस क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं। इनका काम सिर्फ मुख्यालय से पत्राचार तक ही सीमित रखा गया है। इनके एसपी के पास भी अपनी मर्जी से प्रकरण दर्ज करने के अधिकार नहीं हैं। इनका काम सिर्फ इतना है कि ये शिकायतें साइबर मुख्यालय भोपाल भेज दें। अगर वहां के अफसर शिकायत को इस लायक समझते हैं तो एफआईआर दर्ज कर इन्हें रिकॉर्ड भेज देते हैं।

फिलहाल बजट नहीं है

अभी सेल खोलने के लिए नोटिफिकेशन नहीं मिला है। बजट भी तय नहीं है, इसलिए इंटरनेट सहित अन्य खर्च मंजूर नहीं किए गए हैं। हम मानते हैं कि स्टाफ को जरूरी ट्रेनिंग नहीं दी गई है, इसके लिए हम उचित व्यवस्था कर रहे हैं। फिलहाल सेल का काम साइबर अपराधों में पुलिस की मदद करना है। साइबर सेल का प्रदेश में एकमात्र थाना भोपाल में खोला जाएगा। जिसकी ब्रांच इंदौर, ग्वालियर में भी होगी। अभी शिकायतें मुख्यालय भेजने को कहा है लेकिन भविष्य में उसी शहर में एफआईआर दर्ज हो जाएगी।
- संजय चौधरी, एडीजी, साईबर सेल, भोपाल

किन अपराधों से था निपटना

- किसी की साइट हैक करना।

- फेक ई-मेल से होने वाली परेशानियां।

- अपने नाम की गलत साइट खोलना।

- इंटरनेट बैंकिंग में पासवर्ड चुराकर दूसरे के खाते से ट्रांजेक्शन करना।

- मोबाइल फोन्स से जुड़े सभी मामले।

- साइबर से जुड़े सभी तरह के अपराध

गृहमंत्री होते हुए एसीबी ने मेरे खिलाफ ही कार्रवाई कर दी: धारीवाल

जयपुर. नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने गुरुवार को विधानसभा में एसीबी की तारीफ करते हुए कहा, गृहमंत्री रहते हुए एक परिवाद पर मेरे खिलाफ ही कार्रवाई कर दी। एसीबी वाले किसी को नहीं छोड़ते। जब मैंने मामला दिखवाया तो पता चला कि नगर निगम के सामने बन रही बिल्डिंग की अनुमति तत्कालीन मेयर के रूप में भाजपा विधायक अशोक परनामी ने दी थी, तब जाकर मुझे राहत मिली।

धारीवाल गुरुवार को विधानसभा में आय से अधिक संपत्ति जब्त करने के लिए लाए गए विधेयक पर हुई बहस का जवाब दे रहे थे। उन्होंने माना कि भ्रष्टाचार बढ़ा है। भ्रष्टाचार के संबंध में पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया पर कटाक्ष करते हुए धारीवाल ने कहा, जब रामबाग होटल में अफसरों को बुलाकर फैसले किए जाते थे, तब आप चुप क्यों रहे? इससे पहले विपक्ष के उपनेता घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि इस विधेयक से भ्रष्टाचार के राक्षसों पर अंकुश लगेगा। यह पहल अच्छी है। इस विधेयक में आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने पर तो अंकुश का प्रावधान है, लेकिन उसके उद्गम पर नियंत्रण का प्रावधान नहीं है। प्राधिकृत अधिकारी की नियुक्ति पर सवाल नहीं उठने चाहिए।

पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि यह आधा-अधूरा और कच्चा कानून है, इससे देश नहीं सुधरेगा। सरकार की मंशा में खराबी है इसलिए इसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को नियुक्त करने की गली छोड़ी गई है। प्राधिकृत अधिकारी और विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए अलग सलेक्शन बोर्ड होना चाहिए। भाजपा के ओम बिड़ला ने कहा कि एसीबी सीधे सरकार के नियंत्रण में काम करती है। सरकार इसका इस्तेमाल अपने निहित उद्देश्य के लिए कर सकती है। इसलिए स्वतंत्र एजेंसी होनी चाहिए। 3 साल में राज्य मंत्रिमंडल के कई सदस्यों पर भी आरोप लगे, परंतु उन पर कार्रवाई नहीं हुई। एसीबी और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं को कमजोर कर दिया गया।

राव राजेंद्र सिंह ने कोर्ट के प्रसंज्ञान लेने से पहले ही संपत्ति जब्त करने को गलत बताया। उन्होंने कहा कि सद्भावना पूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संबंधित अफसर को दंडित न करने का प्रावधान हटाया जाना चाहिए। किरण माहेश्वरी ने कहा कि गलत कार्रवाई करने पर संबंधित अधिकारी को दंडित करने का प्रावधान होना चाहिए। सत्तापक्ष के प्रतापसिंह खाचरियावास ने कहा कि विधेयक से डरने की जरूरत नहीं है। इसमें कमियां हो सकती हैं, उन्हें दूर किया जा सकता है।

कुरान का संदेश सुरे ता हां

चुटकीभर हल्दी का देसी नुस्खा: ये हर तरह के जाइंट पेन को ठीक कर देगा





खान-पान और प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण आजकल किसी भी उम्र में जोड़ों का दर्द होना एक आम समस्या है। असल में हमारा शरीर इस प्रकृति का ही एक हिस्सा है। इसलिये शरीर से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी हमें प्रकृति की गोद में ही मिल सकता है। आइये हम बताते हैं कि आप कैसे नेचुरल देसी तरीकों से जोड़ों के दर्द से छुटकारा पा सकते हैं....

- सरसों के तेल में चुटकीभर हल्दी मिलाकर धीमी आंच पर गर्म कर लें। इस तेल के ठंडा होने पर शरीर के सभी जोड़ों पर इसकी हल्की मसाज करें। सुबह की नर्म धूप में यह प्रयोग करने पर सीघ्र लाभ मिलता है। मसाज के बाद शरीर को तत्काल ढक लें हवा न लगने दें अन्यथा लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है।

- अजवाइन को तवे के ऊपर थोड़ी धीमी आंच पर सेंक लें तथा ठंडा होने पर धीरे-धीरे चबाते हुए निगल जाएं। लगातार 7 दिनों तक यह प्रयोग किया जाए तो आठवे दिन से ही जोड़ों के दर्द या कमर दर्द में 100 फीसदी लाभ होता है।

- जहां दर्द होता होता है हो वहां 5 मिनट तक गरम सेंक करें और दो मिनट ठंडा सेंक देने से तत्काल लाभ पहुंचता है।

शिक्षा का अधिकार लागू, गरीब बच्चों को देनी होगी 25 फीसदी सीट

नई दिल्ली. 6-14 साल की उम्र के हर बच्चे को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का अधिकार देने वाले कानून (राइट टू एजुकेशन) को सुप्रीम कोर्ट ने आज हरी झंडी दिखा दी। निजी स्कूलों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट के आदेश के मुताबिक गुरुवार से ही देश के हर स्‍कूल में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो गया है। चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने बहुमत से सुनाए फैसले में कहा कि यह कानून सरकार से वित्तीय सहायता नहीं ले रहे अल्पसंख्यक स्कूलों पर लागू नहीं होगा।

शिक्षा के अधिकार कानून के तहत कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए सभी सरकारी स्कूलों, वित्तीय सहायता प्राप्त और गैर-वित्तीय सहायता प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी आरक्षण लागू हो गया है। इस बाध्यता से सिर्फ उन स्कूलों को राहत मिलेगी जो गैर सहायता प्राप्‍त अल्‍पसंख्‍यक संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं। इसी मामले में एक अन्य अहम मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जन्‍म प्रमाण पत्र के बिना भी स्कूलों को बच्चों का दाखिला लेना होगा।

सरकार ने इस कानून को 2009 में ही लागू कर दिया था, लेकिन प्राइवेट स्कूलों ने इसके खिलाफ याचिका दायर करके कहा था कि यह धारा 19 (1) के तहत कानून निजी शिक्षण संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनका तर्क था कि धारा 19 (1) निजी संस्थानों को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपना प्रबंधन करने की स्वायत्तता देता है। केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ दलील दी कि यह कानून सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की उन्नति में सहायक है।

दूसरी शादी से बचे हिंदुस्तान के मुसलमानः दारुल उलूम


दारुल उलूम से जारी किए गए ताजा फतवे में मुसलमानों को एक से ज्यादा शादी से बचने की सलाह दी गई है। इसके मुताबिक इस्लाम एक से ज्यादा शादी की इजाजत इस शर्त के साथ देता है कि दोनों बीवियों को एक जैसा इंसाफ और हक मिलना चाहिए। लेकिन मौजूदा भारतीय हालातों में बराबर के इंसाफ को मुश्किल करार देते हुए मदरसे ने सलाह दी है कि हिंदुस्तान के मुसलमान एक से ज्यादा बीवियां रखने से बचें।

देवबंद. देश के शीर्ष इस्लामी शिक्षा संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए हिंदुस्तान में रह रहे हुए मुसलमानों को हिदायत दी है कि वो दूसरी शादी से बचें। इस शीर्ष मदरसे ने कहा है कि हिंदुस्तान की परिस्थितियों में यह माकूल नहीं है कि मुसलमान दो शादियां करे। अपनी इस सलाह में दारुल उलूम ने कहा है कि हिंदुस्तानी रीति-रिवाजों में दो-दो बीवियों को एक जैसा इंसाफ और हक मुहैया कराना मुश्किल है।

दारुल उलूम देवबंद हिंदुस्तान में रह रहे मुसलमानों के जीवन से जुड़े तमाम पहलुओ पर अपनी सलाह और फतबे जारी करता रहा है। इस मदरसों को राष्ट्रीय एकता के विचारों को भी बढ़ावा देने के लिए जाना जाता रहा है लेकिन यहां से कई फतवे ऐसे भी निकले हैं जिसके कारण इसे कट्टरपंथी करार देते हुए खूब आलोचना भी हुई है।

इस फतवे में कहा गया है कि भारत में पहली बीवी के जिंदा रहते दूसरी शादी करना सही नहीं माना जाएगा क्योंकि यहां के रीति-रिवाजों को देखते हुए दो-दो बीवियों से पूरा-पूरा इंसाफ करना मुश्किल है।

उत्तर प्रदेश इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रेजिडेंट मुफ्ती जुल्फिकार ने कहा कि इस्लाम ने एक से ज्यादा शादी को इसी शर्त पर मान्य बताया है कि शौहर दोनों बीवियों से एक जैसा व्यवहार सुनिश्चत करे। मगर मौजूदा हालात में दोनों बीवियों को एक जैसी सुख-सुविधाएं और बराबर का हक मुहैया कराना मुश्किल है।

दूसरी शादी से बचे हिंदुस्तान के मुसलमानः दारुल उलूम


दारुल उलूम से जारी किए गए ताजा फतवे में मुसलमानों को एक से ज्यादा शादी से बचने की सलाह दी गई है। इसके मुताबिक इस्लाम एक से ज्यादा शादी की इजाजत इस शर्त के साथ देता है कि दोनों बीवियों को एक जैसा इंसाफ और हक मिलना चाहिए। लेकिन मौजूदा भारतीय हालातों में बराबर के इंसाफ को मुश्किल करार देते हुए मदरसे ने सलाह दी है कि हिंदुस्तान के मुसलमान एक से ज्यादा बीवियां रखने से बचें।

देवबंद. देश के शीर्ष इस्लामी शिक्षा संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए हिंदुस्तान में रह रहे हुए मुसलमानों को हिदायत दी है कि वो दूसरी शादी से बचें। इस शीर्ष मदरसे ने कहा है कि हिंदुस्तान की परिस्थितियों में यह माकूल नहीं है कि मुसलमान दो शादियां करे। अपनी इस सलाह में दारुल उलूम ने कहा है कि हिंदुस्तानी रीति-रिवाजों में दो-दो बीवियों को एक जैसा इंसाफ और हक मुहैया कराना मुश्किल है।

दारुल उलूम देवबंद हिंदुस्तान में रह रहे मुसलमानों के जीवन से जुड़े तमाम पहलुओ पर अपनी सलाह और फतबे जारी करता रहा है। इस मदरसों को राष्ट्रीय एकता के विचारों को भी बढ़ावा देने के लिए जाना जाता रहा है लेकिन यहां से कई फतवे ऐसे भी निकले हैं जिसके कारण इसे कट्टरपंथी करार देते हुए खूब आलोचना भी हुई है।

इस फतवे में कहा गया है कि भारत में पहली बीवी के जिंदा रहते दूसरी शादी करना सही नहीं माना जाएगा क्योंकि यहां के रीति-रिवाजों को देखते हुए दो-दो बीवियों से पूरा-पूरा इंसाफ करना मुश्किल है।

उत्तर प्रदेश इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रेजिडेंट मुफ्ती जुल्फिकार ने कहा कि इस्लाम ने एक से ज्यादा शादी को इसी शर्त पर मान्य बताया है कि शौहर दोनों बीवियों से एक जैसा व्यवहार सुनिश्चत करे। मगर मौजूदा हालात में दोनों बीवियों को एक जैसी सुख-सुविधाएं और बराबर का हक मुहैया कराना मुश्किल है।

'पापड़ भी तोड़ दें तो निर्मल बाबा को देंगे 15 लाख रुपये'



नागपुर. अजीबोगरीब उपाय बता कर लोगों की किसी भी तरह की समस्‍याएं सुलझाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा की मुसीबतें बढ़ती लग रही हैं। उनके खिलाफ जहां एक के बाद एक शिकायतें दर्ज हो रही हैं, वहीं अब उन्‍हें खुले आम चुनौती भी दी गई है। उन पर पैसे देकर लोगों से अपना महिमा मंडन कराने वाले बयान दिलवाने के आरोप भी लग रहे हैं।


वहीं निर्मल बाबा के खिलाफ धोखाधड़ी की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज कर जांच की मांग कर रहे लखनऊ के दो बच्चे आज डीआईजी और डीजीपी के कार्यालय गए। वहां से भी उन्हें एफआईआर दर्ज कर जांच का आश्वासन दिया गया है। इन बच्चों का कहना है कि यदि एफआईआर दर्ज नहीं हुई तो वो फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे


बाबा की मुश्किलें अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने भी बढ़ा दी हैं। समिति का कहना है कि निर्मल बाबा दैविक शक्ति का दावा करके लोगों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। यहां जारी बयान में समिति के कार्याध्यक्ष उमेश चौबे व हरीश देशमुख ने आरोप लगाया कि निर्मल बाबा का दैविक शक्ति का दावा खोखला, निराधार व धार्मिक प्रवृत्ति के कट्टरपंथी लोगों के लिए मानसिक रूप से गुमराह करने वाला है। उन्होंने आरोप लगाया कि टीवी चैनलों पर नकली भक्तों को पेश कर बाबा अपनी वाहवाही कराते हैं। समिति ने टीवी चैनलों पर चल रहे इन विज्ञापनों पर पाबंदी लगाने की मांग केंद्र सरकार से की है। उन्‍होंने कहा कि यदि बाबा के पास वास्तव में चमत्कारिक शक्तियां हैं, तो वह अपनी शक्तियों के बल पर एक पापड़ भी तोड़ कर दिखा दें तो समिति उन्‍हें 15 लाख रु. इनाम देगी।
उधर, लखनऊ और रायपुर में बाबा के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई गई है। रायपुर के डीडी नगर थाने में दर्ज शिकायत में टीवी चैनलों में दिखाए जा रहे 'थर्ड आई निर्मल बाबा' कार्यक्रम में लोगों की समस्याओं का समाधान करने का दावा करने वाले निर्मल बाबा पर पाखंडी होने का आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि बाबा लोगों को अनर्गल उपाय बतलाकर उनके साथ धोखाधड़ी करके फीस के रूप में मोटी रकम वसूलते हैं। बाबा के बताए उपाय खोखले और भोलेभाले लोगों को गुमराह करने वाले हैं।

शिकायत दर्ज कराने वाले रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष योगेन्द्र शंकर शुक्ला ने रायपुर में प्रेस वार्ता कर कहा है कि चैनलों में निर्मल बाबा को ईश्वर का अवतार व दुखों का हरण करने वाले बाबा के रूप में प्रचारितकिया जा रहा है। वे लोगों को बताते हैं कि समस्याएं सुलझाने के लिए भजिया, समोसा खाएं या महंगे जूते पहने, महंगा पर्स जेब में रखें या नोटों की गड्डी तिजोरी में रखें। घर में शिवलिंग न रखें। ऐसे ही अनेक उपाय पूर्ण रूप से खोखले हैं और इनसे समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि लोगों में अंधविश्वास जैसी भावना पनपती है। उन्‍होंने कहा कि शिवलिंग को घर में न रखने की सलाह से उनकी धार्मिक भावना को ठेस पहुंची है। वे बरसों से शंकर के भक्त हैं और उनके जैसे अनेक लोग आहत हुए हैं। लखनऊ के गोमती नगर थाने में भी ऐसी ही शिकायत दर्ज हुई है।

उधर, कई टीवी सीरियल में काम कर चुकी जूनियर आर्टिस्ट निधि के हवाले से भी मीडिया में खबर आई है कि निर्मल बाबा प्रारंभिक दिनों में ठगी का धंधा चमकाने के लिए ठग नोएडा की फिल्म सिटी स्थित एक स्टूडियो में अपने प्रोग्राम की शूटिंग करवाते थे। उसमें बाबा के सामने जो लोग अपनी समस्या हल होने का दावा करते थे, वे लोग असली न होकर जूनियर आर्टिस्ट हुआ करते थे। निधि ने बताया कि उन जूनियर आर्टिस्टों की लिस्‍ट में उसका भी नाम था।
निधि का कहना है कि निर्मल बाबा सवाल पूछने के लिये उसे 10 हजार रुपये देते थे। बाबा की पोल खोलते हुए निधि कहती हैं कि शुरू के दो महीने तक निर्मल बाबा ने अपने ही आदमियों और जूनियर आर्टिस्टों से प्रश्‍न पुछवाया।

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