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12 मई 2012

इन दो बड़े देवताओं के दर्शन पीछे से नहीं करना चाहिए, क्योंकि

शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से हमारे सभी पाप अक्षय पुण्य में बदल जाते हैं। इस बात के महत्व को देखते हुए ऋषि-मुनियों द्वारा कई नियम बनाए गए हैं। वैसे तो सभी देवी-देवताओं के दर्शन कहीं से भी कर सकते हैं लेकिन श्रीगणेश और भगवान विष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए।

गणेशजी और भगवान विष्णु दोनों ही देवों के दर्शन पीछे से नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है। ये दोनों ही देव सभी सुखों को देने वाले माने गए हैं। अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करते हैं और उनकी शत्रुओं से रक्षा करते हैं। इनके नित्य दर्शन से हमारा मन शांत रहता है और सभी कार्य सफल होते हैं।

गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है। इनकी पीठ के दर्शन करना वर्जित किया गया है। गणेशजी के शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं। गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है। गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो जाती है। ऐसा माना जाता है इनकी पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। गणेशजी की पीठ के दर्शन करने वाला व्यक्ति यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव बढ़ जाता है। इसी वजह से इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए। जाने-अनजाने पीठ देख ले तो श्री गणेश से क्षमा याचना कर उनका पूजन करें। तब बुरा प्रभाव नष्ट होगा।

भगवान विष्णु की पीठ पर अधर्म का वास माना जाता है। शास्त्रों में लिखा है जो व्यक्ति इनकी पीठ के दर्शन करता है उसके पुण्य खत्म होते जाते हैं और अधर्म बढ़ता जाता है। इन्हीं कारणों से श्री गणेश और विष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।

2 फीट लंबा रॉड शरीर से हो गया आर-पार, देखने वालों की निकल गई चीख


जयपुर. सवाई मानसिंह अस्पताल के डॉक्टरों ने युवक की पीठ में आरपार हुई सवा दो फीट लंबी रॉड को ऑपरेशन कर निकाल दिया। चाकसू निवासी 22 वर्षीय युवक जगदीश की हालत खतरे से बाहर है। यह युवक एक ट्रक पर बैठा हुआ था।

तभी वहां से गुजर रहे एक ट्रोले में रखी रॉड इसके पीठ में घुस गई, जो दाएं कंधे की हड्डी को तोड़ते हुए बाहर निकली। कार्डियो थोरेसिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने डॉ. अनिल शर्मा के नेतृत्व में डेढ़ घंटे के ऑपरेशन के बाद रॉड को निकाला।

इसके लिए दो छोटे चीरे लगाए गए। ऑपरेशन में डॉ. सुनील दीक्षित, डॉ. अनुज, डॉ. नीरज, डॉ. पंकज एवं डॉ. ओमेश्वर शर्मा का सहयोग रहा।

2 फीट लंबा रॉड शरीर से हो गया आर-पार, देखने वालों की निकल गई चीख



जयपुर. सवाई मानसिंह अस्पताल के डॉक्टरों ने युवक की पीठ में आरपार हुई सवा दो फीट लंबी रॉड को ऑपरेशन कर निकाल दिया। चाकसू निवासी 22 वर्षीय युवक जगदीश की हालत खतरे से बाहर है। यह युवक एक ट्रक पर बैठा हुआ था।

तभी वहां से गुजर रहे एक ट्रोले में रखी रॉड इसके पीठ में घुस गई, जो दाएं कंधे की हड्डी को तोड़ते हुए बाहर निकली। कार्डियो थोरेसिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने डॉ. अनिल शर्मा के नेतृत्व में डेढ़ घंटे के ऑपरेशन के बाद रॉड को निकाला।


इसके लिए दो छोटे चीरे लगाए गए। ऑपरेशन में डॉ. सुनील दीक्षित, डॉ. अनुज, डॉ. नीरज, डॉ. पंकज एवं डॉ. ओमेश्वर शर्मा का सहयोग रहा

एक 'श्रवण कुमार' ऐसा जिसे देख हर मां-बाप हैरान


जबलपुर इतिहास अपने आप को दोहराता है, ऐसा आपने कई बार सुना होगा। मातृ भक्ति का ऐसा ही एक उदाहरण मघ्यप्रदेश के जबलपुर में देखने को मिला। मदर्स डे पर इससे अच्छा उदाहरण भला क्या होगा ।


कलयुग के इस श्रवण कुमार की मातृ भक्ति के कायल पूरे जबलपुर के लोग है। यह युवक अपनी मां को पिछले 14 वर्षों से कंधे पर बांस के सहारे दो टोकरियों में बैठाकर तीर्थदर्शन करवा रहा है। इन्हें देखकर हर कोई हैरान है और इनके किए हुए संकल्प को लोग प्रणाम कर रहे है। कैलाश नाम का यह युवक मध्यप्रदेश के जबलपुर का है और वर्तमान में बद्रीनाथ व केदारनाथ के दर्शन कराके अपनी मां को लेकर दूसरे तीर्थ पर जाने का विचार कर रहा है।



कौन थे श्रवण कुमार
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ के अयोध्या शासन काल में वैष्णव ब्राह्मण पिता शांतनव और वैष्णव शूद्र मां ज्ञानवती के घर एक बालक पैदा हुआ जिसका नाम आगे चलकर श्रवण कुमार के नाम से जाना गया। कथा के अनुसार ऐसा हिंदू विश्वास है कि बुढ़ापे में विभिन्न धार्मिक स्थलों और पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा आत्मा को शुद्ध करती है। अपने नेत्रहीन माता-पिता की इस अन्तिम इच्छा को पूर्ण करने के लिए उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। अपने माता-पिता को कंधे पर बांस के सहारे दो टोकरियों में बैठाकर वे तीर्थदर्शन पर निकल गए थे बीच यात्रा में दशरथ के बाण से उनके प्राण चले गए थे हालांकि बाण भूलवश चलाया गया था।

कुरान का सन्देश

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