तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
09 जुलाई 2012
कोटा कोंग्रेस में चल रही महाभारत पर कोंग्रेस हाईकमान की चुप्पी यहाँ कोंग्रेस को खत्म कर देगी कोंग्रेस को
गया वो जमाना! अब च्यवनप्राश खाने से नहीं मिलेगी शक्ति
नई दिल्ली स्थित केंद्रीय आयुर्वेद विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) ने देश के सभी 32 केंद्रीय आयुर्वेद रिसर्च सेंटरों के डायरेक्टर्स और आयुर्वेद कॉलेजों को पत्र लिखा है। इसमें उन्हें आगाह किया गया है कि अष्ट वर्ग (आठ औषधियों का समूह) की सात औषधियों समेत कुल 32 औषधियां विलुप्तप्राय हैं। जिन इलाकों में पहले यह पर्याप्त मात्रा में मिलती थीं वहां भारी दोहन और रखरखाव के अभाव में ये विलुप्तप्राय स्थिति में पहुंच गई हैं।
च्यवनप्राश में लगती हैं 54 औषधियां
च्यवनप्राश बनाने में अष्ट वर्ग के साथ अग्नि मंथ, ब्रिहाती, करकट संगी, मांस पर्णी सहित करीब 54 प्रकार की औषधियां प्रयोग में लाई जाती हैं। अष्ट वर्ग शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। अष्ट वर्ग आठ हिमालयन औषधियों रिद्धि, वृद्धि, जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, छीरकाकोली से मिलकर बनता है।
ये औषधियां जो नहीं मिल रहीं
अग्निमंथ (दो प्रकार), ब्रिहाती, भारंगी, चव्य, दारूहरिद्रा (तीन प्रकार), गजपीपली, गोजीहवा, ऋषभक, जीवक, काकोली (दो प्रकार), क्षीरकाकोली, करकटसरंगी, ममीरा, मासपर्णी, मेदा, मुदगापर्णी, परपाटा, दक्षिणी परपाटा, प्रसारणी, प्रतिविषा, रेवाटेसिनी, रिद्धि, सलामपंजा, सप्तारंगी, रोजा सेंटीफोलिया, उसवा व विधारा प्रमुख हैं।
अष्ट वर्ग दूर रखता है बुढ़ापा
‘च्यवनप्राश में प्रयुक्त होने वाला अष्ट वर्ग हिमालयन प्लांट का एक समूह है। अष्ट वर्ग मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के साथ रक्त संचार और श्वसन तंत्र को व्यवस्थित करता है। इसके सभी अवयव शक्तिवर्धक हैं। यह बुढ़ापे को दूर रखता है। इसके लगातार सेवन से बुढ़ापा लंबी उम्र तक नहीं छू पाता।’
-डॉ. रामकुमार पाराशर, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, शा. आयुर्वेद कॉलेज ग्वालियर
विकल्प खोजने की कोशिश
अष्ट वर्ग की औषधियां विलुप्तप्राय हैं। इन दवाइयों के विकल्प का प्रयोग हो रहा है। जिन दवाइयों के विकल्प नहीं हैं उन्हें खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं।
-डॉ. एमडी गुप्ता, प्रभारी अधिकारी राष्ट्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध मानव संसाधन विकास अनुसंधान संस्थान, ग्वालियर
विकल्प पर भी संकट
यह सही है कि च्यवनप्राश का प्रमुख अंग अष्ट वर्ग अब नहीं मिल पा रहा है। अष्ट वर्ग के विकल्प के रूप में सिदारीकल का उपयोग च्यवनप्राश कंपनियां कर रही हैं, लेकिन यह इसका पूर्ण विकल्प नहीं है। सिदारीकल मप्र के अमरकंटक के ढालों और सागर के आसपास के क्षेत्र में खूब पाया जाता था। भारी दोहन के कारण यह भी अब दुर्लभ स्थिति में पहुंचता जा रहा है।
- डॉ.ओपी मिश्रा, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर, सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज, नई दिल्ली
खुद के नियम बनाकर बांट दिया 21 लाख का पेट्रोल
केवल बोर्ड की बैठक में यह फैसला किया और उसे लागू कर दिया। गत दो सालों में ही इससे निगम को 21 लाख रुपए का चूना लग चुका है। उधर, भास्कर ने पड़ताल की तो निकला कि निगम के अधिकारी-कर्मचारी एक लीटर पेट्रोल भरवाने के बावजूद एक दिन में 15-20 किलोमीटर से ज्यादा कोई नहीं घूमता।
इस वाहन भत्ते में सीएसआई, एसआई, राजस्व विभाग के कर्मचारी, गोशाला में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं। इनको मिल रही यह सुविधा देखकर वर्ष-09 में तकनीकी विभाग के अभियंताओं ने भी इस सुविधा के आदेश करा लिए। उन्होंने पहले इसे बोर्ड की बैठक में पारित कराया, इसके बाद तत्कालीन महापौर मोहन लाल महावर से यू नोट लिखाकर यह सुविधा शुरू करा ली। तत्कालीन सीईओ ने 7 अक्टूबर-09 को इसके आदेश जारी किए। इसके आधार पर अब तकनीकी विभाग के 3 एईएन व 9 जेईएन भी यह लाभ उठा रहे हैं।
गैराज प्रभारी तो और आगे निकले
निगम गैराज प्रभारी एक्सईएन मोहन लाल चोकनीवाल तो इससे भी आगे निकले। निगम की ओर से दी गई मोटरसाइकिल आर.जे-20-7350 का तो उपयोग करते रहे। साथ ही अनुबंध कार आर.जे.-20-0909 का भी उपयोग करते रहे। उन्होंने दोनों वाहनों का लाभ उठाया।
1 लीटर पेट्रोल, घूमते हैं 15 किलोमीटर
निगम के तकनीकी अभियंता व कर्मचारी निगम से एक लीटर पेट्रोल तो लेते हैं, लेकिन घूमते मात्र 15 से 20 किलोमीटर ही हैं। सफाई बेड़े में शामिल सीएसआई, एसआई व अन्य कर्मचारियों की भी यही हालत है। जमादार अवश्य वार्ड में दिखाई देते हैं, जबकि इंसपेक्टर कभी-कभी ही दिखाई देते हैं। यही हाल एईएन व जेईएन का है। एईएन सुभाष अग्रवाल ने माना कि रोजाना 15 से 20 किलोमीटर तो जाना ही पड़ता है, वहीं अशोक गोयल रोजाना 25 से 30 किलोमीटर साइड पर आना-जाना बताते हैं। एईएन प्रेमशंकर शर्मा ऐसे एईएन हैं, जो यह सुविधा नहीं लेकर सरकार की ओर से मिलने वाला भत्ता ही लेते हैं।
स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग की ओर से इन दिनों निगम के कार्यो की आडिट की जा रही है। इसमें ही कर्मचारियों व अभियंताओं को अलाउंस के नाम पर पेट्रोल देने का खुलासा हुआ है। विभाग की टीम ने माना कि पेट्रोल देने के लिए न तो निगम एक्ट में प्रावधान है न ही सरकार ने इसके आदेश दिए हैं। केवल बोर्ड की बैठक व महापौर के आदेश पर यह व्यवस्था की गई है। इससे दो साल में ही निगम को 21 लाख रुपए का चूना लगा है।
पेट्रोल देने का फैसला काफी पुराना है। इसकी सरकार से अनुमति नहीं है, मुझे जानकारी नहीं है। बोर्ड की मोहर इस पर लगी हुई है। यदि बिना सरकार की अनुमति से इसे दिया जा रहा है तो बंद कर दिया जाएगा। जिन्होंने भत्ते से अधिक पेट्रोल उठा लिया, उनसे वसूली की जाएगी।
-दिनेश चंद्र जैन, सीईओ निगम
तड़प-तड़प कर मर गई तीसरी कक्षा की छात्रा, शिक्षक नाश्ता करते रहे!
इससे गुस्साए ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया और शाम तक शव नहीं उठाया। बाद में पूरे स्कूल स्टाफ, डॉक्टर व नोडल अधिकारी को एपीओ करने पर ग्रामीण शांत हुए। सरपंच राजूराम चौधरी ने बताया कि स्कूल की प्रधानाध्यापिका सुमन शर्मा व अन्य शिक्षकों ने छात्राओं को फर्श व दरियां धोने के लिए कहा और खुद स्टाफ रूम में जाकर चाय-नाश्ता करने लगे।
तीसरी कक्षा की छात्रा अन्नु (10) पुत्री मुकनपुरी स्वामी टांके से तीन बाल्टियां पानी भरकर लाई। चौथी बार पानी निकालते हुए वह टांके में गिर गई। यह देख अन्य छात्राओं ने स्टाफ को बुलाया, मगर कोई भी नहीं आया। इस पर विद्यार्थी अपने घरों से परिजनों को बुलाकर लाए जिन्होंने बच्ची को बाहर निकाला।
टीचर्स-डॉक्टर की आपराधिक लापरवाही
पानी की बाल्टियां भरती-भरती मासूम टांके में गिर पड़ी। बच्चे टीचर्स को बताने दौड़े लेकिन उन्हें लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो। ग्रामीण डॉक्टर को बुलाने गए तो उसने भी आने से मना कर दिया। जब ग्रामीण फट पड़े और प्रदर्शन किया तो प्रशासन जागा।
सांसें टूटी, तब पहुंचा डॉक्टर
इस बीच कुछ ग्रामीणों ने तत्काल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से डॉ. संजयकुमार को बुलाया। लेकिन डॉक्टर ने भी मौके पर आने से इनकार करते हुए बच्ची को अस्पताल लाने को कहा। बाद में काफी संख्या में ग्रामीणों के एकत्र होने पर डॉक्टर चलने को राजी हुआ, लेकिन तब तक मासूम की सांसें उखड़ चुकी थीं।
ग्रामीणों ने की स्कूल में तोड़फोड़
हादसे की खबर पर सैकड़ों ग्रामीण एकत्र हो गए तथा स्कूल स्टाफ व डॉक्टर के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। गुस्साए ग्रामीणों ने स्कूल के बर्तन फेंक दिए और फर्नीचर तोड़ दिया। मामला बढ़ने पर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी स्कूल पहुंचे। ग्रामीणों ने स्कूल स्टाफ, नोडल अधिकारी व डॉक्टर को हटाने की मांग व मृतक मासूम के परिवार को पांच लाख मुआवजा दिलाने की मांग की।
बच्चे ही तो करेंगे सफाई: नोडल अधिकारी
मामला चल रहा था कि इसी दौरान क्षेत्र के नोडल अधिकारी नखतसिंह बोले कि स्कूल में साफ-सफाई बच्चे नहीं तो कौन शिक्षक करेंगे? इस बात पर ग्रामीण और भड़क गए।
सबको एपीओ करने पर माने ग्रामीण
एसडीएम निसार खान ने शाम 6 बजे कार्यवाहक प्रधानाध्यापिका सुमन शर्मा, शिक्षिका निर्मला डाबी, वीणा पुरोहित, मधुबाला माथुर, रेखा सिसोदिया, कविता शेखावत, नोडल अधिकारी नखतसिंह और डॉक्टर संजय शर्मा को एपीओ करने की घोषणा की। इसके बाद ग्रामीणों ने शव उठाया।
दो स्कूलों में खुले पड़े हैं नौ टांके
स्कूल प्रशासन की लापरवाही का आलम यह है कि कस्बे के दो सरकारी स्कूलों में नौ टांके खुले ही पड़े हैं। इन टांकों में कई फीट पानी भरा रहता है। यहां रोजाना सैकड़ों विद्यार्थी पढ़ने आते हैं। जरूरत का पानी भी अधिकांशत: विद्यार्थियों से ही मंगवाया जाता है। इन टांकों में किसी जानवर या विद्यार्थी के गिरने की आशंका हमेशा बनी रहती थी। आखिर सोमवार को इसी लापरवाही ने अन्नु की जान ले ली।
देशभर में लागू होगा राजस्थान का क्राइम कंट्रोल ट्रैकिंग सिस्टम
वे राजस्थान पुलिस की ओर से फरवरी 2011 में लागू किए गए सीसीटीएनएस के बारे में जानकारी लेने आए थे। स्टेट क्राइम ब्रांच के हैड और सीसीटीएनएस के नोडल ऑफिसर शरत कविराज ने सिस्टम के बारे में उनको जानकारी दी। इससे पहले उन्होंने पुलिस मुख्यालय में डीजीपी हरीशचंद्र मीना से मुलाकात की।
उन्होंने बताया कि यह योजना लागू होने के बाद दूसरे राज्यों की पुलिस को अपराध व अपराधियों के आंकड़े शेयर करने में आसानी होगी। इससे यह होगा कि अगर कोई अपराधी दूसरे राज्य में जाकर अपराध करेगा तो उसकी जानकारी संबंधित थाने को ऑनलाइन मिल जाएगी और उसको ट्रैकिंग कर पकड़ना आसान हो जाएगा।
राजस्थान में हुआ सबसे पहले लागू
शरत कविराज ने बताया कि क्राइम कंट्रोल ट्रैकिंग सिस्टम देश में पहली बार राजस्थान में 8 फरवरी 2011 को लागू हुआ था। इसमें राजस्थान में 1960 से अब तक के अपराधियों के बारे में ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध है। सिस्टम लागू होने के बाद राज्य के थानों से 32140 पुराने आपराधिक मामलों का निस्तारण हुआ है। अभी 47903 मामलों में कार्रवाई होनी है।
मुस्तैदी से काम करे पुलिस : कमिश्नर
कमिश्नरेट के पुलिसकर्मी अपराध नियंत्रण के लिए मुस्तैद होकर कार्य करें। उन्हें बांटी गई बीट बुक की सभी प्रविष्टियां नियमित भरें, ताकि अपराधियों को पकड़ने में विशेष मदद मिल सके। यह बात पुलिस कमिश्नर बी.एल. सोनी ने कही।
वे शहर पुलिस लाइन में सोमवार से शुरू हुई कांस्टेबल से सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) स्तर तक के पुलिसकर्मियों की प्रशिक्षण कार्यशाला में बोल रहे थे। तीन दिवसीय कार्यशाला में पुलिसकर्मियों को पुलिस अनुसंधान एवं पुलिस व्यवहार से संबंधित विषयों पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा।
देशभर में लागू होगा राजस्थान का क्राइम कंट्रोल ट्रैकिंग सिस्टम
वे राजस्थान पुलिस की ओर से फरवरी 2011 में लागू किए गए सीसीटीएनएस के बारे में जानकारी लेने आए थे। स्टेट क्राइम ब्रांच के हैड और सीसीटीएनएस के नोडल ऑफिसर शरत कविराज ने सिस्टम के बारे में उनको जानकारी दी। इससे पहले उन्होंने पुलिस मुख्यालय में डीजीपी हरीशचंद्र मीना से मुलाकात की।
उन्होंने बताया कि यह योजना लागू होने के बाद दूसरे राज्यों की पुलिस को अपराध व अपराधियों के आंकड़े शेयर करने में आसानी होगी। इससे यह होगा कि अगर कोई अपराधी दूसरे राज्य में जाकर अपराध करेगा तो उसकी जानकारी संबंधित थाने को ऑनलाइन मिल जाएगी और उसको ट्रैकिंग कर पकड़ना आसान हो जाएगा।
राजस्थान में हुआ सबसे पहले लागू
शरत कविराज ने बताया कि क्राइम कंट्रोल ट्रैकिंग सिस्टम देश में पहली बार राजस्थान में 8 फरवरी 2011 को लागू हुआ था। इसमें राजस्थान में 1960 से अब तक के अपराधियों के बारे में ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध है। सिस्टम लागू होने के बाद राज्य के थानों से 32140 पुराने आपराधिक मामलों का निस्तारण हुआ है। अभी 47903 मामलों में कार्रवाई होनी है।
मुस्तैदी से काम करे पुलिस : कमिश्नर
कमिश्नरेट के पुलिसकर्मी अपराध नियंत्रण के लिए मुस्तैद होकर कार्य करें। उन्हें बांटी गई बीट बुक की सभी प्रविष्टियां नियमित भरें, ताकि अपराधियों को पकड़ने में विशेष मदद मिल सके। यह बात पुलिस कमिश्नर बी.एल. सोनी ने कही।
वे शहर पुलिस लाइन में सोमवार से शुरू हुई कांस्टेबल से सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) स्तर तक के पुलिसकर्मियों की प्रशिक्षण कार्यशाला में बोल रहे थे। तीन दिवसीय कार्यशाला में पुलिसकर्मियों को पुलिस अनुसंधान एवं पुलिस व्यवहार से संबंधित विषयों पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा।
देश में भ्रष्टाचार पर सर्वमान्य परिभाषा का अभाव
हर मामले में अपनाएं जा रहे हैं अलग मानदंड
घोटालों पर कैग और सरकार आमने-सामने
देश में उचित आवंटन नीतियों का है अभाव
प्राकृतिक संसाधनों का नागरिक हित में प्रयोग संभव
2जी घोटाले के मुख्य आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा को तो जेल हुई लेकिन कोयला घोटाले के छीटें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी पड़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि जब यह गड़बड़ी हुई, उस समय कोयला मंत्रालय मनमोहन सिंह संभाल रहे थे।
भ्रष्टाचार को आप कैसे परिभाषित करेंगे? एक परिभाषा तो यह है कि किसी व्यक्ति को किसी काम के बदले अवैध रूप से कोई रकम या वस्तु दी जाती है तो वह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। भारत में अनेक घोटाले हुए हैं। इनमें से कई घोटालों की प्रकृति एक दूसरे से भिन्न है। ऐसे में भ्रष्टाचार की परिभाषा को व्यापक बनाए जाने की जरूरत है।
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला
उदाहरण के लिए, हम साल 2008 के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन का मामला ले सकते हैं। डीएमके पार्टी के ए. राजा उन दिनों दूरसंचार मंत्री थे। उन्होंने नीलामी के बजाय पहले-आओ-पहले-पाओ आधार पर स्पेक्ट्रम का आवंटन किया। इसके लिए उन्होंने स्पेक्ट्रम की कीमत का आधार 2001 की कीमत को रखा। स्पेक्ट्रम की कीमत कम रखने और पहले आओ-पहले पाओ की नीति चुनने के बदले लाभार्थियों ने रिश्वत दी। लेकिन रिश्वत की यह राशि सरकार को हुए राजस्व नुकसान की तुलना में बहुत कम है।
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया। इस अनुमान का आधार यह है कि अगर दूरसंचार मंत्रालय 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी करता तो सरकार को इतनी रकम और मिलती। सीएजी के इस अनुमान पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं कि वास्तव में इतना नुकसान हुआ या नहीं, लेकिन यहां यह कहना तो वाजिब है कि स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए अपनाई गई नीति संदेहास्पद थी और सरकार के खाते में जो हजारों करोड़ रुपये जाते, वह नहीं गई।
कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला
सीएजी की ही एक और रिपोर्ट है कोल ब्लॉक के आवंटन पर। वैसे तो यह रिपोर्ट 'लीकÓ होकर सार्वजनिक हुई है, लेकिन इसमें भी कहा गया है कि 2004 से 2009 के दौरान सार्वजनिक और निजी कंपनियों को मनमाने तरीके से कोल ब्लॉक का आवंटन किया गया। इसके लिए नीलामी की प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोल ब्लॉक का यह आवंटन उस समय हुआ जब कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जिम्मे था। मई 2004 से लेकर यूपीए -एक के पूरे कार्यकाल और यूपीए-दो में मई 2009 से जनवरी 2011 तक कोयला मंत्रालय मनमोहन सिंह ने ही संभाला था।
कोल ब्लॉक का आवंटन निजी बिजली कंपनियों के अलावा सीमेंट और स्टील कंपनियों के कैप्टिव पावर के लिए किया गया था। प्रभारी मंत्री होने के नाते प्रधानमंत्री को यह मालूम होना चाहिए था कि सार्वजनिक कंपनी कोल इंडिया द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले कोयले की कीमत और इन कंपनियों की कोयला उत्पादन लागत में कितना अंतर है। देश के प्राकृतिक संसाधनों पर वैधानिक हक नागरिकों की प्रतिनिधि सरकार का होता है। अगर कोल ब्लॉक का आवंटन होता तो उससे मिलने वाली ज्यादा रकम का फायदा सरकार यानी अंतत: देश के नागरिकों को होता।
अपनी रिपोर्ट में सीएजी ने अप्रत्याशित लाभ (विंड फॉल गेन) के दो अनुमान लगाए हैं। एक अनुमान 6.31 लाख करोड़ रुपये का है जिसमें सार्वजनिक कंपनियों को होने वाला लाभ 3.37 लाख करोड़ का और निजी कंपनियों का 2.94 लाख करोड़ रुपये का है। यह अनुमान आवंटन के दौरान कोयले की बाजार कीमत के आधार पर लगाया गया है। विंडफॉल गेन का दूसरा अनुमान 10.67 लाख करोड़ रुपये का है जिसमें सार्वजनिक कंपनियों का लाभ 5.88 लाख करोड़ का और निजी कंपनियों का 4.79 लाख करोड़ का है। इसमें 31 मार्च 2011 की कीमत को आधार बनाया गया है।
सबके हैं अपने अपने दावे
भले ही लोग मान रहे हैं कि कोयला ब्लॉक और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में भारी घोटाला हुआ है लेकिन इन पर मंत्रालयों और कैग जैसे दूसरे संगठनों अपने अपने दावें हैं। कोयला ब्लॉक आवंटन के मामले पर कोयला मंत्रालय का कहना है कि इनमें कोई घोटाला हुआ ही नहीं। मंत्रालय के बयान के मुताबिक, 137 कोयला ब्लॉक में से 62 ब्लॉकों का आवंटन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को किया गया।
इनमें से 17 ब्लॉक बिजली क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को आवंटित किए गए। मंत्रालय का कहना है कि आवंटन सही तरीके से किया गया है और इसमें किसी तरह का कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है।
वहीं कैग का दावा है कि इसमें हजारों करोड़ रुपये का नुकसान सरकार को हुआ है।
कैग का कहना है कि सरकारी दावें ठीक नहीं और कानून सम्मत नहीं है। अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए कैग ने सुप्रीम कोर्ट के 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले दिए गए निर्णय को शामिल किया है। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों का अपने नागरिकों के हितों में प्रयोग कर सकती है लेकिन बिना सार्वजनिक हित सुनिश्चित किए इनका आवंटन निजी कंपनियों का व्यक्तियों को नहीं किया जा सकता है।
इन घोटालों ने राजनीतिक स्तर पर भी तूफान मचाया है। 2जी घोटाले के मुख्य आरोपी तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा को तो जेल हुई लेकिन कोयला घोटाले के छीटें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी पड़ रहे हैं। इसका कारण यह है कि जब यह गड़बड़ी हुई, उस समय कोयला मंत्रालय मनमोहन सिंह संभाल रहे थे।
तनाव और चिंता में भी हो सकता है रचनात्मक काम...
तनाव यदि अल्पकालीन है तो उसमें से सृजन किया जा सकता है। रचनात्मक बदलाव के सारे मौके कम अवधि के तनाव में बने रहते हैं। लेकिन लम्बे समय तक रहने पर यह तनाव उदासी और उदासी आगे जाकर अवसाद यानी डिप्रेशन में बदल जाती है।
दु:ख और आघात सभी की जिन्दगी में आते रहते हैं। कोशिश करिए ये अल्पकालीन रहें, जितनी जल्दी हो इन्हें विदा कर दीजिए। इनका टिकना खतरनाक है। क्योंकि ये दोनों स्थितियां जीवन का नकारात्मक पक्ष है। यहीं से तनाव का आरम्भ होता है।
कुछ लोग ऐसी स्थिति में ऊपरी तौर पर अपने आपको उत्साही बताते हैं, वे खुश रहने का मुखौटा ओढ़ लेते हैं और कुछ लोग इस कदर डिप्रेशन में डूब जाते हैं कि लोग उन्हें पागल करार कर देते हैं। दार्शनिकों ने कहा है बदकिस्मती में भी गजब की मिठास होती है।
इसलिए दु:ख, निराशा, उदासी के प्रति पहला काम यह किया जाए कि दृष्टिकोण बहुत बड़ा कर लिया जाए और जीवन को प्रसन्न रखने की जितनी भी सम्भावनाएं हैं उन्हें टटोला जाए। मसलन अकारण खुश रहने की आदत डाल लें। हम दु:खी हो जाते हैं इसकी कोई दिक्कत नहीं है पर लम्बे समय दु:खी रह जाएं समस्या इस बात की है। हमने जीवन की तमाम सम्भावनाओं को नकार दिया, इसलिए हम परेशान हैं।
पैदा होने पर मान लेते हैं बस अब जिन्दगी कट जाएगी लेकिन जन्म और जीवन अलग-अलग मामला है। जन्म एक घटना है और उसके साथ जो सम्भावना हमें मिली है उस सम्भावना के सृजन का नाम जीवन है।
इसलिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त नहीं है। इस जीवन के साथ होने वाले संघर्ष को सहर्ष स्वीकार करना पड़ेगा और इसी सहर्ष स्वीकृति में समाधान छुपा है। सत्संग, पूजा-पाठ, गुरु का सान्निध्य इससे बचने और उभरने के उपाय हैं।