भगवान शिव की पूजा उत्तम फूलों से करने पर हर मुराद पूरी हो जाती है। शिव की पूजा में सिर्फ केतकी का ही पुष्प क्यों नहीं चढ़ाया जाता, इसके बारे में एक कथा हमारे धर्म शास्त्रों में है, जो इस प्रकार है-
एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सर्वानुमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की आलोचना की।
दोनों देवताओं ने महादेव की स्तुति की तब शिवजी बोले कि मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूँ। मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है। शिव ने केतकी पुष्प को झूठा साक्ष्य देने के लिए दंडित करते हुए कहा कि यह फूल मेरी पूजा में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए शिव के पूजन में कभी केतकी का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 जुलाई 2012
नहीं चढ़ाते शिव को केतकी का फूल?
जिनके नाम से कोटा का नाम पड़ा 300 साल बाद लगाई जाएगी उनकी प्रतिमा
कोटा जब अलग शहर या राज्य न होकर बूंदी के अधीन था, तब चंबल नदी के दाहिनी तट पर अकेलगढ़ के शासक सरदार कोटिया भील ने सन् 1264 में बूंदी पर हमला किया था। बूंदी के तत्कालीन शासक जैत सिंह से उनका वर्तमान में कोटा गढ़ पैलेस वाले स्थान पर युद्ध हुआ। कई दिन तक चले युद्ध में कोटिया भील शहीद हुए। उनकी बहादुरी और पराक्रम को देखते हुए बूंदी के शासक ने कोटिया भील के नाम पर कोटा राज्य की अलग से स्थापना की। रंगबाड़ी सर्किल के निकट पार्क में संगमरमर की आदमकद प्रतिमा लगाने के लिए यूआईटी 59 लाख रुपए खर्च करेगा। टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई।
राजा ने बनवाया था मंदिर
इतिहासकार फिरोज अहमद के अनुसार वर्तमान में जहां कोटा गढ़ पैलेस है वहां पर कोटिया भील पर तीन बार हमले हुए। एक बार उनकी गर्दन अलग हुई, लेकिन फिर उनका धड़ लड़ता रहा। फिर उनके धड़ को भी दो हिस्सों में बांटा गया। उसी स्थान पर गढ़ की नींव रखी गई है। गढ़ बनने के बाद सबसे पहले वहां कोटिया भील के तीन रूप स्थापित किए गए। उन तीनों रूपों की तब से लेकर आज तक पूजा की जाती है। अब भी गढ़ की तरफ से उनकी पूजा के लिए पुरोहित नियुक्त कर रखा है।
कोटिया भील की प्रतिमा कैसी होगी, इसके लिए भील समाज द्वारा पिछले दिनों यूआईटी को हाथ से बनी कोटिया भील की कुछ फोटो दी थी। उन्हीं फोटो के आधार पर प्रतिमा तैयार करवाई जा रही है।
अब हर पांच साल बाद कराना होगा वकालत के लिए रजिस्ट्रेशन
इसमें रिन्युअल ऑफ सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस रूल्स 2006 को रविवार से ही दुबारा लागू किया गया। रिन्युअल की अंतिम तारीख 31 दिसंबर तक रखी गई है।
चारों ओर खौफनाक मंजर, 13 घंटे तकता रहा बचाने वालों की राह
मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में हो रही बरसात के चलते बारां-झालावाड़ जिले में नदियां और नाले उफान पर आ गए। अटरू से करीब छह किमी दूर पार्वती नदी में उफान आने के कारण रविवार को एक युवक फंस गया। वह टापू पर लकड़ियां लेने गया था।
इसके पांच-छह साथी तो पानी का प्रवाह बढ़ते देख तैरकर बाहर निकल गए, लेकिन युवक को तैरना नहीं आने के कारण वह टापू पर ही रह गया। एसपी शिवलाल जोशी ने बताया कि रविवार सुबह 9 बजे अटरू के जेल कॉलोनी निवासी भरतराज (20) पुत्र बाबूलाल कालबेलिया कॉलोनी के 8-9 महिला-पुरुषों के साथ पार्वती नदी के टापू पर लकड़ियां लेने गया था।
एमपी में तेज बारिश होने के चलते दोपहर करीब 12 बजे नदी में पानी का बहाव तेज होने लगा। इसे देखकर भरतराज के साथ गए अन्य महिला-पुरुष तो जैसे-तैसे तैरकर बाहर आ गए, लेकिन भरत तैरना नहीं आने के कारण टापू में ही फंसा रहा। इसके साथियों ने गांव में आकर इसकी सूचना ग्रामीणों व पुलिस को दी। इसके बाद ग्रामीणों के अलावा पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी रस्सियां, ट्यूब लेकर मौके पर पहुंचे। उसे निकालने के प्रयास किए जा रहे है।
बाद में कलेक्टर वी सरवन कुमार व एसपी जोशी ने उच्चाधिकारियों को अवगत कराकर कोटा से रेस्क्यू टीम बुलाई। कलेक्टर ने भी मौके पर पहुंचकर जायजा लिया। इस दौरान यहां पहुंची रेस्क्यू टीम ने रात करीब 9 बजे भरतराज को बाहर निकाला।
बांसवाड़ा में 26 घंटे से रिमझिम
रविवार को प्रदेश में कई स्थानों पर बारिश हुई। बांसवाड़ा में पिछले 26 घंटे से बारिश का दौर जारी है। जयपुर में शाम साढ़े 8 बजे तक 5.9 मिमी बारिश हुई। हनुमानगढ़ के रोडावाली में पिता-पुत्र तथा अबोहर (पंजाब) धरांगवाला में दंपती की नहर में डूबने से मौत हो गई।
उदयपुर संभाग के सबसे बड़े माही बजाज सागर बांध में पिछले कुछ दिनों से रुकी पानी की आवक फिर शुरू हो गई। बांसवाड़ा-दाहोद मार्ग पर स्थित सुरवानिया बांध का जलस्तर 12 फीट 1 इंच होने पर दस में से दो गेट खोलने पड़े। बीकानेर, पाली, जोधपुर, श्रीगंगानगर और अलवर में बादल छाए रहे, लेकिन लोगों का बारिश का इंतजार खत्म नहीं हुआ। बारां में 14 तथा डूंगरपुर में 18.6 मिमी. बारिश दर्ज की गई।
कम दबाव का क्षेत्र नहीं बनने से मानसून धीमा
मौसम विभाग के निदेशक एसएस सिंह का कहना है कि राज्य में फिलहाल कम दबाव का क्षेत्र नहीं बन पा रहा। इससे बादल छाए रहने के बावजूद बरसात नहीं हो रही। यह कम दबाव का क्षेत्र उड़ीसा व आसपास के इलाकों तक ही सीमित है। मध्य प्रदेश तक आते-आते यह धीमा पड़ जाता है।
देवी-देवताओं के नाम पर हो रहा था ऐसा धंधा!
देवी-देवताओं के नाम पर हो रहा था ऐसा धंधा!
नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस ने देवी-देवताओं और धार्मिक संस्थाओं के नाम पर वसूली करने के आरोप में चार युवकों को गिरफ्तार किया है।
पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने ओखला इंडस्ट्रीयल इलाके के व्यवसायियों से उगाही की थी। इनके पास से 1,100 रुपए नगद, दुर्गा की 20, गुरुनानक देव की चार, गणोश जी की नौ और शिव जी की 11 तस्वीरें बरामद की गई हैं।
दक्षिण पूर्व जिला के अतिरिक्त आयुक्त अजय चौधरी ने बताया कि बीते कुछ दिनों से देवी-देवताओं के नाम पर डरा धमका कर ओखला इलाके में व्यवसायियों से उगाही की शिकायते मिल रही थी।
इसी बीच इंटेक्स कंपनी के मैनेजर ने भी इसी तरह की शिकायत दी। पीड़ित ने बताया कि भगवान गणोश की तस्वीर दिखाकर आरोपी उनसे 15 से 20 हजार रुपए मांगने लगा।
हालांकि, वह उनसे 1,100 हजार रुपए लेने में कामयाब हो गया। जांच के दौरान पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया, जिनकी पहचान मानसरोवर पार्क, शाहदरा निवासी जागीर सिंह (44), हरी सिंह (32), दर्शन सिंह (42) और बलबीर सिंह (37) के रूप में की गई।
जागीर सिंह ने बताया कि वह वसुंधरा में जिम ट्रेनर है और गाजियाबाद स्थित एक जिम में काम करता है। दर्शन सिंह बाबू राम अखाड़े में पहलवानी करता है।
हरी ज्योतिषी और बलबीर साप्ताहिक बाजार में काम करता है। पूछताछ के दौरान आरोपियों ने बताया कि जल्द रुपए कमाने की चाह में वह अपनी कद काठी का भरपूर प्रयोग करते और देव-देवताओं के नाम पर डरा-धमका कर लोगों से उगाही करते थे।
महाभारतकाल के इस तीर्थ पर हर साल लगता है भक्तों का तांता
सोमवार को इस कावड़ से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है। सावन का अंतिम सोमवार होने के कारण रविवार को कुंड के पास कावड़ कलशों में जल लेने के लिए लगी कावड़ियों की लंबी कतार।
यहां लगती है भगवान शिव की अदालत, होती है मुकदमों की सुनवाई!
क्या है मान्यता ?
लोगों की ऐसी मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार में यदि दीवानी मुकदमों की सुनवाई होती है तो बासुकीनाथ में फौजदारी मुकदमे की सुनवाई होती है। जब तक बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक नहीं किया जाता तब तक बाबा बैद्यानाथ धाम की पूजा अधूरी मानी जाती है।
बासुकीनाथ मंदिर, बाबा बैद्यनाथ धाम से करीब 42 किलोमीटर दूर झारखंड के दुमका जिले में है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर स्थित कामना लिंग पर जलाभिषेक करने जाने वाले कांवडिये अपनी पूजा पूर्ण करने के लिए नागेश ज्योतिर्लिग के नाम से विख्यात बासुकीनाथ मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते।
पैदल ही होती है बासुकीनाथ धाम की यात्रा
कांवडिये अपने कांवड़ में सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा नदी से जिन दो पात्रों में जल लाते हैं, उनमें से एक का जल बाबा बैद्यनाथ में चढ़ाया जाता है, जबकि दूसरे का बाबा बासुकीनाथ में। देवघर कामना लिंग में जलाभिषेक के बाद कई कांवडिये पैदल ही बासुकीनाथ धाम की यात्रा करते हैं, लेकिन अधिकतर कांवडिये वाहनों से यहां तक की यात्रा करते हैं। भक्तों को विश्वास है कि बाबा बासुकीनाथ के दरबार में मांगी गई मुराद अवश्य व तुरंत पूरी होती है।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में बासुकीनाथ घने वनों से आच्छादित क्षेत्र था, जिसे उन दिनों दारूक वन क्षेत्र कहा जाता था। पौराणिक कथा के अनुसार, इसी वन में नागेश्वर ज्योतिर्लिग का निवास था। शिव पुराण में मिले वर्णन के अनुसार यह दारूक वन दारूक नाम के राक्षस के अधीन था। माना जाता है कि दुमका का नाम भी इसी दारूक वन से पड़ा है।
है दिलचस्प कहानी
किंदवंतियों के मुताबिक, एक बार बासु नाम का एक व्यक्ति कंद की खोज में भूमि खोद रहा था। इस दौरान बासु का औजार भूमि में दबे शिवलिंग से टकरा गया और वहां से दूध बहने लगा। बासु यह देखकर भयभीत हो गया और भागने लगा। उसी वक्त एक आकाशवाणी हुई, ''भागो मत, यह मेरा निवास स्थान है। तुम पूजा करो।'' आकाशवाणी के बाद बासु वहां पूजा-अर्चना करने लगा और तभी से शिवलिंग की पूजा होने लगी जो अब भी जारी है।
बासु के नाम पर इस स्थल का नाम बासुकीनाथ पड़ गया। आज यहां भगवान भोले शंकर और माता पार्वती का विशाल मंदिर है। मुख्य मंदिर के नजदीक शिव गंगा है, जहां भक्त स्नान कर अपने आराध्य को बेल पत्र, पुष्प और गंगाजल समर्पित करते हैं तथा अपने कष्ट क्लेश दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
बासुकीनाथ मंदिर के पुजारी सदाशिव पंडा ने बताया कि बासुकीनाथ में शिव का रूप नागेश का है। यहां पूजा में अन्य सामग्रियां तो चढ़ाई ही जाती हैं, लेकिन दूध से पूजा करने का काफी महत्व है। मान्यता है कि नागेश रूप के कारण दूध से पूजा करने से भगवान शिव खुश रहते हैं।
उन्होंने बताया कि यहां वर्ष में एक बार महारूद्राभिषेक का आयोजन किया जाता है। जिसमें काफी मात्रा में दूध चढ़ाया जाता है। उस दिन यहां दूध की नदी सी बह जाती है। रूद्राभिषेक में घी, मधु तथा दही का भी प्रयोग किया जाता है। इस अनुष्ठान के समय भक्तों की भारी भीड़ एकत्र होती है।
उन्होंने कहा, ''यूं तो वर्ष भर बासुकीनाथ मंदिर में श्रद्घालुओं का तांता लगा रहता है, परंतु सावन में यहां श्रद्घालुओं की भारी भीड़ इकट्ठा हो जाती है।''
ढाई महीने से दफन था जमीन के नीचे, निकाला गया बाहर और फिर...
नई दिल्ली। जिला पंचशीलनगर (हापुड़) के पिलखुआ कस्बे में उच्चाधिकारियों के आदेश पर लगभग ढाई माह पहले दफनाए गए शकील नामक व्यक्ति के शव को शनिवार देर शाम कब्र से निकलवाकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। इस दौरान पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ भारी संख्या में लोग मौके पर मौजूद थे।
हापुड़ पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार पिलखुआ के शमशाद रोड़ निवासी शकील 9 मई से लापता था। 11 मई को उसका शव संदिग्ध परिस्थितियों में गाजियाबाद के गोविंदपुरम में एक चाय के खोखे के पास नाले में पड़ा मिला था, जिसकी शिनाख्त काफी मशक्कत के बाद शकील के रूप में की गई थी।
मामले में पुलिस द्वारा बेहद लापरवाही बरती गई। परिजनों द्वारा बार बार हत्या की आशंका व्यक्त करने के बावजूद पुलिस ने शव को बिना पोस्टमार्टम के परिजनों को सौंप दिया, जिसके बाद परिजनों ने शव को सुपुर्दे खाक कर दिया।
इस मामले के लेकर शकील के पिता जमील ने पुलिस के आला अधिकारियों से शिकायत करते हुए कहा कि 9 मई को शकील को उसके दोस्त बुलाकर ले गए थे। ऐसे में उन्हें आशंका है कि इन्हीं लोगों ने उसकी हत्या की है। जमील ने आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की।
घटना के ढाई माह बाद पुलिस जागी और मामले को लेकर गंभीर हुई। एसएसपी गाजियाबाद प्रशांत कुमार ने मामले में कार्रवाई के आदेश दिए। शनिवार को गाजियाबाद के एसडीएम केशव कुमार पुलिस अधिकारियों के साथ चंडी मंदिर के पास स्थित कब्रिस्तान पहुंचे, जिसके बाद मृतक के पिता जमील व सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में शकील के शव को कब्र से बाहर निकाला गया।
इसके बाद पुलिस ने शव को सील कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। मृतक के पिता जमील को उम्मीद है कि अब उसके बेटे के हत्यारे जल्दी ही पुलिस गिरफ्त में होंगे
तीन दिन मंदिर से बाहर रहेंगे मथुराधीशजी, देखेंगे शहर
इस दौरान उन श्रद्धालुओं को समझौता करना होगा, जो कई सालों से नियम से उनके अलग-अलग 7 रूपों के रोज दर्शन करते आ रहे हैं। उन्हें 17 से 19 अगस्त तक ठाकुरजी के दो ही दर्शन हो सकेंगे, लेकिन खुशी इस बात की होगी कि वे 25 साल बाद ठाकुरजी के मंगला व विशेष मनोरथ के दर्शन कर सकेंगे।
ऐसा विशेष संयोग इससे पूर्व वर्ष 1986 में आया था। छप्पनभोग की स्थापना वर्ष 1886 में हुई थी। उसके 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रथम पीठाधीश्वर गोस्वामी श्रीनित्य लीलास्थ गोस्वामी श्रीरणछोड़लाल महाराज ने विशेष छप्पनभोग का आयोजन किया था। उस समय भगवान की भ्रमण यात्रा जैसा अदभुत व अनूठा अवसर भी देखने का योग आया था। भविष्य में ऐसा योग अब फिर कब मिलेगा, यह तय नहीं होता है। इस अनूठे अवसर का लाभ लेने के लिए कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, गुना, बीकानेर, झालावाड़, बारां, बूंदी, गुजरात, मप्र सहित देश के कई शहरों से सैकड़ों की संख्या में वल्लभ संप्रदाय के श्रद्धालु कोटा आएंगे।
छप्पनभोग में बनेगी यमुना नदी
इसी दिन शाम को भगवान का नाव का मनोरथ होगा। छप्पनभोग में ही यमुना नदी का भावनात्मक प्रतिरूप बनाया जाएगा और ठाकुरजी नाव में विराजमान होंगे। 18 को छप्पनभोग के दर्शन होंगे, 19 की शाम फूल बंगले का मनोरथ होगा। फूल बंगले सजाने के लिए वृंदावन से कलाकार आएंगे। ठाकुरजी 19 या 20 को गुप्त रूप से फिर से अपने गृह बड़े मथुराधीशजी मंदिर में पधारेंगे।
300 साल पुराने रथ में होगे सवार
महाराजश्री के निजी सचिव मथुरेश कटारा के अनुसार 16 अगस्त को शाम 4.30 बजे से गृहप्रवेश की शोभायात्रा प्राचीन परंपरानुसार गढ़ पैलेस से बड़े मथुराधीश मंदिर के लिए प्रारंभ होगी। शाम को भगवान के कुंडारे के दर्शन होंगे। 17 अगस्त को सुबह 7 बजे भगवान मथुराधीशजी शाही ठाठ-बाठ से छप्पनभोग के लिए पधारेंगे। भगवान झाजी (चारों तरफ से बंद मंदिरनुमा घर) में सवार होकर 300 साल पुराने सीकरम रथ में विराजमान होंगे, जिसे प्राचीन परंपरा के अनुसार बैल हांकेंगे।
छप्पनभोग में बनेगी यमुना नदी
इसी दिन शाम को भगवान का नाव का मनोरथ होगा। छप्पनभोग में ही यमुना नदी का भावनात्मक प्रतिरूप बनाया जाएगा और ठाकुरजी नाव में विराजमान होंगे। 18 को छप्पनभोग के दर्शन होंगे, 19 की शाम फूल बंगले का मनोरथ होगा। फूल बंगले सजाने के लिए वृंदावन से कलाकार आएंगे। ठाकुरजी 19 या 20 को गुप्त रूप से फिर से अपने गृह बड़े मथुराधीशजी मंदिर में पधारेंगे।
प्रथम पीठाधीश्वर के स्वागत में होगा यह भ्रमण
वल्लभकुल संप्रदाय के प्रथम पीठाधीश्वर गोस्वामी श्रीविट्ठलनाथजी (श्रीलालमणि) के पौत्र प्रथम पीठाधीश्वर युवराजात्माज गो. चि. रणछोड़लाल बावा (श्रीकृष्णास्य बावा) अपने जन्म के बाद पहली बार कोटा आ रहे हैं। उनके गृह प्रवेश को उत्सव के रूप में मनाया जाएगा। इसी शुभ उपलक्ष्य में ठाकुरजी भी भ्रमण पर पधारेंगे। इस अवसर पर श्रीलालमणि महाराज के पुत्र प्रथम पीठाधीश्वर युवराज गोस्वामी श्री प्रभुजी (मिलनकुमार) भी उपस्थित होंगे। परंपरा यह है कि प्रथम पीठाधीश्वर के बड़े पुत्र ही मथुराधीश पीठ के पीठाधीश्वर होते हैं।
इंडिया गेट से जंतर मंतर तक कैंडल मार्च
अन्ना हजारे के समर्थक बड़ी तादाद में इंडिया गेट पर रविवार शाम को जुट गए। उन्होंने वंदे मातरम के नारे लगाते हुए लोकपाल की मांग की।
प्रशांत भूषण के नेतृत्व में अन्ना समर्थक इंडिया गेट पहुंचे। इंडिया गेट पर अन्ना समर्थकों ने सांकेतिक रूप में भ्रष्टाचार में शामिल न होने की प्रतिज्ञा भी ली। इंडिया गेट पर थोड़ी देर रुकने के बाद अन्ना समर्थकों ने जंतर मंतर तक कैंडल मार्च किया। दूसरी तरफ, सरकार भी अन्ना के अनशन से परेशान होने लगी है। अन्ना के अनशन पर प्रतिक्रिया देते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा है, 'जब टीम अन्ना अनशन न